छोटे स्वामी की गलती (कन्नड़ कहानी) : के.वी. तिरुमलेश

Chhote Swami Ki Galti (Kannada Story in Hindi) : K. V. Tirumalesh

‘क्यों बे, जब से मेरी सेहत सुधरी है, तब से तुम बहुत दुखी लग रहे हो? बात क्या है?’ बुजुर्ग स्वामी जी ने छोटे स्वामी को देखते हुए पूछा। सवाल अचानक था और सीधा-सा था, सुनकर छोटा स्वामी दंग रह गया।

‘हाय! ऐसा कहीं हो सकता है? आपकी सेहत सुधर गई है, सुन कर मुझे इतनी खुशी हुई है कि मैं अपनी जबान से कह नहीं सकता। महाराज, मैंने सुना है कि कभी-कभी ज्यादा संतोष मनुष्य को मुरझा देता है। मुझे भी यही हुआ है, और-तो-और…’

‘और-तो-और क्या है? बताओ न, क्यों रुक गए?’

‘आप जब बिस्तर पर पड़े थे, मैंने आपकी कितनी सेवा की है? उसके साथ-साथ मठ का कार्य-भार भी संभाल लिया था। इन सबसे मैं थोड़ा थक गया हूँ, महाराज।‘

‘तुम्हारी इस थकान को हम सदा के लिए मिटाना चाहते हैं, क्या कहते हो?’

‘मैं समझ नहीं पाया, हुजूर।’

‘सब समझ में आ जाएगा। तुम हमारी दवा में जो विष मिलाते थे, उसका नाम क्या है?’

‘शांतम् पापम्! क्या मैं आपकी दवा में विष मिला सकता हूँ? क्या मैं ऐसा आदमी हूँ? ऐसी सोच क्या मेरे दिमाग में आ सकती है?’

‘बोलने में शब्द की मिलावट करने से पाप का समाधान नहीं हो सकता। कालहस्ती है उसका नाम। है न? तुम मूर्ख हो। तुमको छोटा स्वामी बताए हुए दस बरस हो गए, मगर आज तक तुम मुझे समझ नहीं पाए। मैं विष-विशेषज्ञ हूँ!’

‘विष-विशेषज्ञ?’

‘और कोई भी मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकता। पता है, क्यों?’

‘नहीं महाराज।’

जब मैं पूर्वाश्रम में था, मेरी सौतेली माँ मुझे मार डालने के इरादे से मुझे रोज विष खिलाती थी। इससे मेरे शरीर में सारे विषों के विरुद्ध अवरोधशक्ति आ गई है।

‘यह मुझे मालूम नहीं था।’

‘इतना ही नहीं, जब तुम विष देते थे, मेरी सेहत अच्छी होने लगी, जैसे टॉनिक से होती है।’

‘आश्चर्य की बात है!’

‘छि:! तुम मेरे दूर के रिश्ते में हो और अनाथ हो, यह सोच कर मैंने तुम्हें छोटे स्वामी के रूप में अपनाया था। मगर तुमने क्या किया? तुमने मेरी ही जड़ उखाड़ने की कोशिश की। अगर तुम सब्र से सेवा करते रहते तो एक न एक दिन इस पूरे मठ के वारिस तुम ही बन जाते। तुम्हें मालूम है, अब मैं क्या करने वाला हूँ?’

‘चाहे कुछ भी कीजिए, मगर मठ से मत निकालिएगा।’ छोटा स्वामी उनके पैर पकड़कर गिड़गिड़ाने लगा। बुजुर्ग स्वामी ने उसे लात मारी और कहा, ‘तुम्हारे पाप के लिए तुम्हें सचमुच डेथ पेनाल्टी देनी चाहिए थी। मगर हम यह नहीं करेंगे। तुम्हें मठ से निकाल रहे हैं। आज से तुम्हें इस मठ के भीतर नहीं आना चाहिए! मठ के अधिकारी और चौकीदार को सूचना दे दी गई है। जल्द से जल्द हम एक योग्य ब्रह्मचारी को छोटे स्वामी के रूप में नियुक्त करनेवाले हैं।’

दूसरा मार्ग नहीं है?’

‘तुम्हारी जो-जो चीजें हैं, बाँध कर चले जाओ!’

‘मैंने तो सर्वस्व परित्याग किया है, मेरा अपना क्या बचा है, महाराज?’

‘लोफ़र! हमने जो सिखाया, हमें ही वापिस कर रहे हो?’

‘आपने क्या सिखाया है, महाराज? मैं सिर्फ आपकी सेवा कर सकता हूँ, मुझे संध्योपासन करना भी नहीं आता। आपने मुझे इतने साल गधे के जैसा रखा। अब आपकी छोटी बहन का बेटा युवावस्था में पदार्पण कर रहा है। इसलिए आप मुझसे जलते हैं, मुझे बाहर निकाल रहे हैं। मगर एक बात याद रखें-अगर आप मुझे मठ से बाहर कर देंगे तो, मठ में जो-जो नाजायज काम चल रहा है, गीत रच-रच कर गाऊँगा। शारदम्मा, पार्वतम्मा, रुक्माबाई सब पंक्तिबद्ध आएंगी। आप जिसे बहन का बेटा कह रहे हैं, मुझे मालूम है कि वह सचमुच किसका बेटा है।’

‘जाओ, जाओ। तुम क्या करोगे, कर लो। मगर तुमने फिर से मठ में पैर रखा तो तुम्हारे हाथ-पैर की खैर नहीं है, सावधान! एक बात समझ लो। जिसे बाहर धकेल दिया जाता है, उसकी बात का कोई विश्वास नहीं करता। जाओ-जाओ मूर्ख, मुनिवेंकटप्पा।’

‘गलकंठेश्वर महाराज।’

‘तेरा बाप गलकंठेश्वर। यह नाम मैंने ही रखा था। अब तुम मुनिवेंकटप्पा हो। पैदा होते वक्त जैसा था, वैसा ही… देखो, तुम कितने बेवकूफ हो। एक बात बताता हूँ, सुनो। कुछ भी करने के लिए एक मेथड होता है और वह ठीक हो। मैंने बूढ़े स्वामी जी को सायुज्य [मोक्ष] के लिए भेज दिया था; कैसे भेजा था, पता है तुम्हें?’

‘…. …’

‘तकिया! तकिये के जैसा सरल और आसान तरीका दूसरा नहीं है।’

‘मगर यहाँ एक नियम है कि कोई तकिये का इस्तेमाल न करे?’

‘उस नियम को मैंने ही बनाया था। बूढ़े स्वामी को भेज देने के बाद, किसी को भी मालूम नहीं है कि कैसे भेजा? लोगों ने सोचा कि सेहत की वजह से चले गए हैं। मूर्ख लोग। नाउ गेट आउट!’

और कुछ दिनों तक छोटा स्वामी उर्फ गलकंठेश्वर स्वामी उर्फ मुनिवेंकटप्पा मठ के आहाते के बाहर के सड़क पर विलाप करता हुआ और गालियाँ देता हुआ और बददुआ देता हुआ भीख माँग रहा था। सामने जो अश्वत्थ वृक्ष था, उसके चबूतरे पर वह रहता था।

जब उसे डंडे से भगाया जाता था, वह कुछ देर के लिए गायब हो जाता और फिर आ टपकता। कहा जाता था कि वह पगला गया है। शायद यह बात सच है, क्योंकि वह हमेशा अपनी बगल में एक तकिया बांध कर चलता था। एक दिन वह दिखाई नहीं पड़ा; उसके साथ उसका तकिया भी!

अनुवाद : डी. एन. श्रीनाथ

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