चौहद्दी के पार : रुडयार्ड किपलिंग

Chauhaddi Ke Paar : Rudyard Kipling

प्यार न देखे जात-कुजात, नींद न देखे टूटी खाट।
प्यार खोजने मैं चला, मैं खुद ही खो गया।

-एक भारतीय कहावत

जो भी हो जाए, व्यक्ति को अपनी ही जाति, नस्ल और कुटुंब के साथ रहना चाहिए। जो गोरा है वह गोरे की तरफ जाए और जो काला है वह काले की तरफ। फिर, अगर कोई मुसीबत आ पड़ती है तो वह स्वाभाविक होती है-अचानक, अनजानी या अप्रत्याशित नहीं होती।

यह कहानी एक ऐसे आदमी की है, जिसने जानबूझकर रोजमर्रा के शालीन समाज की सुरक्षित हदों को पार किया और उसकी भारी कीमत चुकाई।

पहले तो उसने बहुत ज्यादा देख लिया और फिर बहुत ज्यादा जान लिया। उसने यहाँ की जिंदगी में बहुत ज्यादा दिलचस्पी ली; मगर अब वह ऐसा कभी नहीं करेगा।

शहर के बीच में, जीठा मेगजी की बस्ती के पीछे अमीरनाथ की गली है, जो एक दीवार में जाकर खत्म होती है और उस दीवार में एक जालीदार खिड़की है। गली के सिरे पर एक बड़ी गोशाला है और गली के दोनों ओर की दीवारों में कोई खिड़की नहीं है। न तो सुचेत सिंह को और न ही गौरचंद को यह पसंद है कि उनके घरों की औरतें दुनिया को देखें। अगर दुर्गाचरण की राय भी उनकी जैसी होती तो आज वह सुखी इनसान होता और नन्ही बिसेसा अपनी रोटी के लिए खुद आटा गूंध पाती। उसके कमरे में ही वह जालीदार खिड़की थी, जहाँ से वह सँकरी अँधेरी गली दिखती थी, जहाँ धूप कभी नहीं आती थी और जहाँ भैंसें नीली कीचड़ में लोट लगाती थीं। वह करीब पंद्रह साल की एक विधवा थी और रातदिन भगवान् से प्रार्थना करती थी कि वह उसे एक प्रेमी दें, क्योंकि अकेली रहना उसे पसंद नहीं था।

एक दिन वह आदमी—जिसका नाम त्रिजागो था—यूँ ही घूमता हुआ अमीरनाथ की गली में आ पहुँचा और भैंसों के पास से निकलकर चारे के भूसे के एक बड़े ढेर से टकरा गया।

तब उसने देखा कि गली के छोर पर एक फंदा लगा था और उस जालीदार खिड़की के पीछे से हँसी की धीमी-सी आवाज सुनाई दी। वह एक प्यारी-सी धीमी-सी हँसी थी। त्रिजागो को चूँकि पता था कि ऐसे मौकों के लिए 'अरेबियन नाइट्स' अच्छा रास्ता सुझानेवाली होती हैं, इसलिए उसने आगे खिड़की के पास जाकर हरदयाल के प्रेम-गीत का वह छंद धीमे से कह सुनाया, जिसकी शुरुआत इस तरह होती है-

'क्या कोई आदमी नंगे सूरज के आगे तनकर खड़ा हो सकता है या कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका के सामने?

अगर मेरे पाँव जवाब दे जाते हैं, हे मेरी जाने-जाँ, तो क्या यह मेरा कसूर है, मुझे तो तुम्हारी सुंदरता ने अंधा कर दिया है?'

जाली के पीछे से एक औरत की चूड़ियों की हल्की-सी खनखनाहट सुनाई दी और एक धीमी आवाज ने गीत के पाँचवें छंद को आगे बढ़ाया-

हाय, हाय! क्या चाँद अपने प्यार के बारे में कमल को बता सकता है, जब स्वर्ग का द्वार बंद होता है और बादल जमा होते हैं बारिश के लिए?

उन्होंने मेरी प्रियतमा को पकड़ लिया है और उसे लद् घोड़ों के साथ उत्तर की ओर ले गए हैं।

उन पैरों में जंजीरें हैं, जो मेरे दिल पर जमे थे।
तीरंदाज को कहो कि वह तैयार हो जाए।

आवाज अचानक बंद हो गई और त्रिजागो अमीरनाथ की गली से यह सोचता हुआ बाहर आ गया कि किसने हरदयाल के प्रेम गीत को इतनी सफाई से गाया था।

अगली सुबह जब वह दफ्तर जा रहा था तो एक बूढ़ी औरत ने उसकी घोड़ा गाड़ी में एक पैकेट फेंका। उस पैकेट में एक अधटूटी चूड़ी, एक सिंदूरी लाल ढाक का फूल, एक चुटकी चारेवाला भूसा और ग्यारह इलायचियाँ थीं। वह पैकेट एक पत्र था-कोई फूहड़, परेशानी में डालनेवाला पत्र नहीं, बल्कि एक मासूम व अबूझ प्रेमी का पत्र था वह।

त्रिजागो को इन चीजों के बारे में काफी कुछ पता था, यह मैं पहले ही बता चुका हूँ। कोई अंग्रेज चीजों के जरिए भेजे गए संदेश को नहीं पढ़ सकता। मगर त्रिजागो ने वे सारी मामूली चीजें अपने दफ्तर की पेटी के ढक्कन पर फैला ली और लगा उनकी पहेली बूझने।

टूटी काँच की चूड़ी पूरे भारत में एक हिंदू विधवा का प्रतीक होती है, क्योंकि जब किसी औरत का पति मरता है तो उसकी चूड़ियाँ उसकी कलाइयों में ही तोड़ दी जाती हैं। त्रिजागो ने काँच के उस छोटे से टुकड़े का मतलब समझ लिया। ढाक के फूल का मतलब उसके साथ की चीजों के हिसाब से अलगअलग होता है; जैसे चाहत, आओ, लिखो या खतरा। एक इलायची का मतलब होता है 'ईर्ष्या'। अगर चीजों के जरिए लिखे गए खत में कोई चीज दो बार रखी जाती है तो फिर उसका सांकेतिक अर्थ नहीं रह जाता और उससे बस वक्त का इशारा होता है; मगर उसके साथ अगरबत्ती, दही या जाफरान भी हो तो वह जगह का पता देता है। इस तरह यह संदेश था—'एक विधवा, ढाक का फूल और भूसा-ग्यारह बजे।' चुटकी भर भूसे ने त्रिजागो को ज्ञान दे दिया। उसने समझ लिया कि इस तरह के खत में बहुत कुछ आपके कुदरती इल्म पर निर्भर होता है और वह समझ गया कि भूसा से मतलब उस चारे के भूसे के बड़े ढेर से था, जिस पर वह अमीरनाथ की गली में गिरा था और यह भी कि यह संदेश जाली के पीछे से ही आया होगा। वह एक विधवा थी। इस तरह यह संदेश था—'एक विधवा उस गली में, जिसमें भूसे का ढेर है, चाहती है कि तुम ग्यारह बजे आओ।'

त्रिजागो ने उन सारी फालतू चीजों को आतिशदान में फेंक दिया और हँसने लगा। वह जानता था कि पूरब में आदमी लोग दिन में ग्यारह बजे खिड़कियों के नीचे प्यार नहीं करते और न ही औरतें एक हफ्ते पहले मुलाकात का समय तय करती हैं। इसलिए वह उसी रात ग्यारह बजे मर्दो और औरतों को ढकनेवाला बुर्का पहनकर अमीरनाथ की गली में पहुँच गया। सिटी का घंटा बजते ही जाली के पीछे से उस महीन आवाज ने हरदयाल के प्रेमगीत को उस छंद से गाना शुरू किया, जहाँ वह लड़की हरदयाल से लौटने की गुजारिश करती है। अपनी मूल बोली में यह गीत सचमुच प्यारा है। यहाँ उसका असर कम हो जाता है। वह कुछ इस तरह है-

"अकेले घर की छत पर, उत्तर की ओर
मैं मुड़ती हूँ और आसमान में बिजली को देखती हूँ-
तेरे कदमों की चकाचौंध उत्तर में,
लौट आओ मेरे पास दिलवर, नहीं तो मैं मर जाऊँगी।
मेरे पाँवों के नीचे खामोश बाजार पड़ा है
दूर, दूर नीचे थके ऊँट लेटे हैं-
ऊँट और बंदी तेरे धावे के।
लौट आओ मेरे पास दिलवर, नहीं तो मैं मर जाऊँगी।
मेरे बाप की बीवी बूढ़ी और कठोर है,
और अपने बाप के पूरे घर की नौकरानी हूँ मैं।
मेरी रोटी है दुःख और मेरा पीना है आँसू,
लौट आओ मेरे पास दिलवर, नहीं तो मैं मर जाऊँगी।"

गाना रुका तो त्रिजागो ने जाली के नीचे पहुँचकर धीमे से कहा, "मैं आ गया हूँ।"

बिसेसा देखने में अच्छी थी।

उस रात कई अजीब बातों की और एक ऐसी बहशी दोहरी जिंदगी की शुरुआत हुई, जिसके बारे में सोचकर आज कभी-कभी त्रिजागो को हैरानी होती है कि कहीं यह सब एक सपना तो नहीं था। बिसेसा ने वह खत उसकी गाड़ी में फेंकनेवाली उस बूढ़ी नौकरानी ने उस भारी जाली की दीवार से निकाल दिया था और इस तरह वह खिड़की अंदर की तरफ सरक जाती थी और एक चौकोर जगह बन जाती थी, जिसमें कोई भी फुरतीला आदमी घुस सकता था।

दिन के समय त्रिजागो अपने दफ्तर के काम से निकलता था या अपने खास कपड़े पहन स्टेशन की महिलाओं से मिलने पहुँचता था और यह सोचकर हैरान होता था कि अगर उन्हें बेचारी नन्ही बिसेसा के बारे में पता चला तो फिर वे उसे कितने दिन जानेंगी। रात में जब सारा शहर खामोश हो जाता तो वह बदबूदार बुर्का ओढ़ निकल पड़ता, जीठा मेगजी की बस्ती में गश्त लगाता, सोते मवेशियों एवं बेजान दीवारों के बीच जल्दी से अमीरनाथ की गली में मुड़ जाता और फिर सबसे आखिर में होती थी बिसेसा तथा उस बूढ़ी औरत की गहरी व बराबर साँसें, जो उस खाली छोटे से कमरे के दरवाजे के बाहर सोती थी, जो दुर्गाचरण ने अपनी भानजी को दे रखा था। दुर्गाचरण कौन था या क्या था, यह त्रिजागो ने कभी नहीं पूछा। उसे कभी पकड़ा क्यों नहीं गया और चाकू क्यों नहीं मार दिया गया, यह बात भी उसके दिमाग में तब जाकर आई, जब उसका पागलपन उतर गया और बिसेसा...। मगर यह बाद की बात है।

बिसेसा ने त्रिजागो को कभी न खत्म होनेवाली खुशी दी। वह एक चिड़िया की तरह मासूम थी। और बाहर से उसके कमरे में उस तक पहुँचनेवाली अफवाहों को वह जैसे तोड़-मरोड़कर पेश करती थी। त्रिजागो को उसमें करीब-करीब उतना ही मजा आता था जितना उस समय जब वह उसका नाम 'क्रिस्टोफर' बोलने की तुतलाहट भरी कोशिश करती थी। पहला अक्षर बोलना उस पर हमेशा ही भारी पड़ता था और वह अपने गुलाब की पंखुड़ियों जैसे हाथों से ऐसे मजेदार इशारे करती थी, जैसे कोई नाम दूर फेंक रहा हो। और फिर, घुटनों के बल त्रिजागो के सामने बैठ ठीक किसी अंग्रेजन की तरह उससे पूछती थी कि क्या वह सचमुच उसे प्यार करता है। त्रिजागो कसम खाकर कहता था कि वह उसे दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करता है। और यह सच था।

इस बेवकूफी के एक महीने बाद त्रिजागो को अपनी दूसरी जिंदगी के जरूरी कामों से अपनी जानपहचान की एक महिला पर खास ध्यान देना पड़ा। आप इसे सच मान सकते हैं कि इस तरह की किसी भी बात पर व्यक्ति की अपनी नस्ल के लोग ही गौर नहीं करते, बल्कि लगभग डेढ़ सौ देसी बाशिंदे भी ऐसा ही करते हैं। त्रिजागो को उस महिला के साथ बैंड स्टैंड पर जाना और बोलना पड़ता था और एकदो बार उसके साथ सवारी भी करनी पड़ती थी। पहले उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इससे उसकी उस ज्यादा प्यारी और लीक से अलग जिंदगी पर असर पड़ेगा। मगर यह खबर हमेशा की तरह न जाने कैसे लोगों के मुँह से उड़ती-उड़ती बिसेसा की संरक्षिका के कानों तक जा पहुँची और उसने बिसेसा को बता दिया। वह बच्ची इतनी परेशान हो गई कि उसने घर का काम भी बुरे तरीके से किया और इसके लिए उसे दुर्गाचरण की बीवी से मार भी खानी पड़ी।

एक हफ्ते बाद बिसेसा ने त्रिजागो को इस बारे में बताया। वह कोई ऊँच-नीच नहीं समझती थी और उसे जो कहना था, उसने खुलकर कहा। त्रिजागो इस पर हँस दिया तो बिसेसा अपने नन्हे-नन्हे पाँव पटकने लगी-नन्हे-नन्हे पाँव, जो गेंदा के फूलों से हल्के थे और किसी पुरुष की एक हथेली में समा सकते थे।

पूरब के लोगों के मनमौजीपन और जुनून के बारे में जो लिखा जाता है, उसमें अधिकतर बढ़ाचढ़ाकर और सुनी-सुनाई बातों पर आधारित होता है; मगर इसमें कुछ तो सच होता है। और जब किसी अंग्रेज को यह कुछ मिल जाता है तो वह उसकी अपनी ठीक-ठाक जिंदगी के किसी जुनून जितना ही चौंकानेवाला होता है। बिसेसा ने खूब गुस्सा दिखाया, तूफान खड़ा किया और आखिरकार उसने यह धमकी दे डाली कि अगर त्रिजागो ने उस विदेशी मेम साहब को तुरंत छोड़ नहीं दिया, जो उनके बीच आ गई थी, तो वह अपनी जान दे देगी। त्रिजागो ने उसे समझाने की और यह जताने की कोशिश की कि वह पश्चिमी नजरिए से इन बातों को नहीं समझती।

बिसेसा ने अपने आपको सँभाला और बस इतना कहा, "हाँ, मैं नहीं समझती। मैं तो बस यह जानती हूँ कि यह अच्छा नहीं हुआ कि मैंने तुम्हें अपने दिल से भी ज्यादा प्यारा बना लिया, साहब। तुम ठहरे अंग्रेज। मैं तो बस एक काली लड़की हूँ।" जबकि वह टकसाली सोने से भी साफ रंग की थी—"और एक काले आदमी की विधवा हूँ।"

फिर वह सिसकने लगी और बोली, "मगर मेरी जान और मेरी माँ की जान कसम, मैं तुम्हें प्यार करती हूँ। मुझे चाहे जो हो जाए, तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा।"

त्रिजागो ने उस बच्ची को दलीलें दी और उसे तसल्ली देने की कोशिश की; मगर वह कुछ ज्यादा ही और बेवजह परेशान दिख रही थी। उसे इसके अलावा और किसी बात से इत्मीनान नहीं हो रहा था कि उनके बीच सारे रिश्ते खत्म हो जाने चाहिए। उसे फौरन जाना होगा और वह चला गया। जब वह खिड़की से बाहर कूद रहा था तो बिसेसा ने उसके माथे पर दो बार चूमा। त्रिजागो हैरत में पड़ गया और घर की तरफ चल दिया।

पहले एक हफ्ता और फिर तीन हफ्ते का समय बीत गया और बिसेसा की तरफ से काई इशारा नहीं मिला। त्रिजागो यह सोचते हुए कि अनबन हुए काफी दिन हो गए, उन तीन हफ्तों में पाँचवीं बार अमीरनाथ की गली में पहुँचा। उसे उम्मीद थी कि उस सरकनेवाली जाली की सिल पर ठकठकाने से उसे जवाब मिलेगा। उसे मायूस नहीं होना पड़ा।

चाँद निकला हुआ था और रोशनी की एक पट्टी अमीरनाथ की गली में आ रही थी और उस जाली पर पड़ रही थी, जो उसके ठकठकाने पर सरका ली गई थी। घुप्प अँधेरे से बिसेसा ने अपनी बाँहें चाँदनी में निकाली। दोनों हाथ कलाइयों से काट दिए गए थे और ठूँठों के जख्म करीब-करीब ठीक हो चुके थे।

और तब, जब बिसेसा ने अपना सिर अपनी बाँहों के बीच झुकाकर सिसकियाँ भरनी शुरू की, तभी कमरे में से किसी के गुर्राने की आवाज आई, जो किसी जंगली जानवर के जैसी थी और कोई धारदार चीज-चाकू, तलवार या भाला—बुर्का पहने त्रिजागो के जिस्म में आकर लगी। वह उसके जिस्म में लगी तो नहीं, मगर उसकी जाँघ के ऊपरी सिरे की एक मांसपेशी कट गई और उस घाव की वजह से वह पूरी जिंदगी थोड़ा लँगड़ाकर चलता रहा।

जाली अपनी जगह पर वापस आ गई। मकान के अंदर से किसी भी तरह का कोई संकेत नहीं मिला -बस, ऊँची दीवार पर चाँदनी की वह पट्टी थी और पीछे अमीरनाथ की गली का अँधेरा था।

उन बेरहम दीवारों के बीच किसी पागल की तरह गुस्सा करने और चिल्लाने के बाद जो अगली बात त्रिजागो को याद है, वह यह है कि जब सवेरा हो रहा था तब उसने खुद को नदी के पास पाया था, अपना बुर्का फेंका था और नंगे सिर घर चला गया था।

त्रासदी क्या हुई? क्या बिसेसा ने अकारण हताशा के दौरे में सबकुछ बता दिया था या उस साजिश का पता चल गया था और उसे प्रताड़ित करके सबकुछ उगलवा लिया गया था? क्या दुर्गाचरण को उसके नाम का पता था? और बिसेसा का क्या हुआ, त्रिजागो को आज तक नहीं पता। कुछ तो भयंकर हुआ था। और यह क्या था, उसका खयाल त्रिजागो को अकसर रात में आ जाता है और सुबह तक उसके साथ रहता है।

इस मामले की एक खास बात यह है कि उसे यह नहीं पता कि दुर्गाचरण के मकान का अगवाड़ा कहाँ है। यह दो या उससे ज्यादा मकानों के साझा आँगन की तरफ हो सकता है या यह जीठा मेगजी की बस्ती के किसी दरवाजे के पीछे भी हो सकता है। त्रिजागो को नहीं पता। उसे बिसेसा–बेचारी नन्ही बिसेसा–वापस नहीं मिल सकती। उसने बिसेसा को उस शहर में खो दिया है, जहाँ हर आदमी का मकान कब्र की तरह निगरानी में और न जानने लायक है। अमीरनाथ की गली में खुलनेवाली जाली की जगह दीवार चुन दी गई है।

मगर त्रिजागो वहाँ लगातार जाता रहता है और उसे बहुत शालीन किस्म का आदमी समझा जाता है।

वह बिल्कुल सामान्य है। बस, उसके सीधे पैर में हल्की-सी जकड़न आ गई है, जो घुड़सवारी की वजह से है।

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