चर्बी की गुड़िया (कहानी) : गाय दी मोपासां
Charbi Ki Gudiya (Boule de Suif : French Story) : Guy de Maupassant
पिछले कई दिनों से सेना का बचा-खुचा हिस्सा कस्बे से गुजर रहा था। ये नियमित सैनिक नहीं, बल्कि सेना से अलग-थलग पड़ गए सिपाहियों के बिखरे हुए झुण्ड थे। चेहरों पर लम्बी और गन्दी दाढ़ियाँ थीं, वर्दियाँ चिथड़ों में तब्दील हो गई थी और उनके पास न कोई झण्डा था और न ही रेजीमेण्ट का कोई प्रतीक। वे बगैर किसी पहचान के सड़कों से गुजर रहे थे। थकान से पस्त और बेहाल इन सैनिकों को देखकर ऐसा लगता जैसे कोई अदृश्य शक्ति इन्हें आगे धकेले जा रही हो! कहीं ठहरते ही सब एक-दूसरे पर थकान से भहराने लगते। कुल मिलाकर, यह लामबन्द कर दिए गए शान्तिप्रिय लोगों की भीड़ थी जो अपने ही हथियारों के बोझ से दोहरे हुए जा रहे थे। उनमें कुछ-कुछ टोलियाँ सतर्क, उत्साही और चुस्त दिख रही थीं जो आदेश मिलते ही हमला करने या भागने के लिए तैयार थीं; और इन्हीं के बीच भीषण लड़ाई में बिखर गई डिवीजन के अवशेष के रूप में कुछ लाल बिरजिसवाले थे; इन तरह-तरह के पैदल सैनिकों से कदम मिलाते कुछ तोपची थे और कभी-कभी पैदल घिसट रहे किसी घुड़सवार सैनिक का चमकदार हेल्मेट भी दिख जाता था जिसके लिए थोड़ी दूर पैदल चलना भी भारी पड़ रहा था।
'हार का बदला लेनेवाले', 'कब्रिस्तान के नागरिक' या 'मौत से टक्कर लेनेवाले' जैसे शौर्यपूर्ण नामों से खुद को पुकारनेवाले छुट्टा बन्दूकचियों की कुछ टुकड़ियाँ भी बीच-बीच में गुजरती थीं जो दिखने में लुटेरे लगते थे। इनका नेतृत्व करनेवाले भूतपूर्व कपड़ा व्यवसायी, चर्बी की मोमबत्तियों अथवा साबुन के व्यापारी थे। वे परिस्थितिजन्य योद्धा थे, जिन्हें उनके कुलचिह्नों अथवा मूंछों की लम्बाई के आधार पर कमाण्डर चुन लिया गया था। हथियारों से लदे-फंदे और चोटियाँ बाँधे ये लोग दबी आवाज में अभियानों के बारे में इस तरह बातचीत करते थे जैसे सन्ताप सह रहे फ्रांस का दुख वे अपने दम पर दूर कर देंगे! हालाँकि कभी-कभी उन्हें खुद अपने सैनिकों से डर लगता क्योंकि जेल के ये पंछी प्रायः शुरू में तो बहादुरी दिखाते लेकिन बाद में वे लुटेरे और बलात्कारी साबित होते थे।
ऐसी चर्चा थी कि प्रशियाई रूएन में घुसने जा रहे हैं। नेशनल गार्ड पिछले दो महीने से पास के जंगल में निगरानी कर रहे थे और कभी-कभी पहरा दे रहे अपने ही साथियों पर गोलियाँ दाग बैठते या घनी झाड़ियों के पीछे भेड़िये की हल्की-सी गुर्राहट पर भी उनकी अंगुलियाँ बन्दूक के घोड़ों पर कस जाती थीं। पर वे अब अपने ठिकानों को लौट चुके थे। उनके हथियार, उनकी वर्दियाँ तथा वे खतरनाक ताम-झाम, जो तीन मील दूर से ही लोगों में दहशत फैला देते थे, अचानक गायब हो गए थे।
आखिरकार, सेन नदी पार कर सेण्ट-सीवर और बूर्ग-अशार से होते हुए ओदेमर पुल पर अन्तिम फ्रांसीसी सैनिक आते नजर आए। उनके पीछे तोपखाने के दो अफसरों के बीच पैदल मार्च करता हुआ जनरल आया। जनरल काफी निराश नजर आ रहा था। वह इस बेमेल खस्ताहाल भीड़ को लेकर कुछ करने की स्थिति में नहीं था। जीतने के आदी लोगों के इस मान-मर्दन और अपनी विख्यात बहादुरी के बावजूद बुरी तरह हारने से वह खुद खोया-खोया-सा था।
पूरे शहर में तूफान आने से पहले की शान्ति पसरी हुई थी। ऐसा लग रहा था मानो शहर चुपचाप किसी अनहोनी का इन्तजार कर रहा हो! चौपट हो चुके उद्योग-धन्धों के कारण कड़की में दिन बिता रहे लोग आशंका-भरी उत्सुकता के साथ विजयी सेना का इन्तजार कर रहे थे। वे यह सोचकर ही काँप रहे थे कि कहीं उनकी गोश्त भूननेवाली सलाइयों और रसोई की छुरियों को भी हथियार न समझ लिया जाए।
यहाँ पर फिलहाल जिन्दगी ठहर-सी गई लगती थी। सभी कुछ रुक गया था। दुकानें बन्द थीं, सड़कें सूनी। कभी-कभी इस खामोशी से डरा कोई बाशिन्दा दीवारों के किनारे-किनारे तेजी से गुजरता दिख जाता था। इन्तजार के पलों ने उन्हें अब बेसब्र बना दिया था। वे चाहते थे कि अब दुश्मनों से आमना-सामना हो ही जाए।
फ्रांसीसी सेना की कस्बे से रवानगी की अगली दोपहर न जाने कहाँ से आए कुछ उल्हान (घुड़सवार बींधारी सैनिक-अनु.) चुस्ती के साथ कस्बे से गुजर गए। कुछ ही देर बाद सेण्ट कैथरीन की तरफ से काला हुजूम आता दिखाई दिया। विजेता सैनिकों की दो अन्य टुकड़ियाँ दारनेतल तथा ब्वासगिलोम की ओर से आ रही थीं। तीनों टुकड़ियों के अगले दस्तों की मुलाकात होटल द विल चौराहे पर हुई। आसपास की सभी सड़कों से जर्मन सेना मधुमक्खियों के झुण्ड की तरह आती दिखाई दे रही थी। उनकी टुकड़ियाँ कस्बे में धीरे-धीरे फैलती जा रही थी और वातावरण में लय में मार्च करते सैनिकों के बूटों की धमक गूंज रही थी।
जंग जीतने के कारण स्वाभाविक रूप से मिले 'अधिकारों' के कारण अब वे इस कस्बे के लोगों के भाग्यविधाता बन गए थे। विदेशी लहजे में कड़कदार, रौबीली आवाज में कमाण्डर द्वारा सैनिकों को दिए जा रहे आदेश आसपास के घरों तक पहुँच रहे थे, जो बाहर से वीरान दिखाई दे रहे थे लेकिन बन्द खिड़की-दरवाजों के सुराखों से कई जोड़ी आँखें इन विजेता सैनिकों को देख रही थीं।
अपने ही कमरों में कैद लोग उस उत्तेजना की गिरफ्त में थे जो ऐसी भयानक विपत्ति के साथ आती है जिसके सामने दुनिया की सारी ताकतें बेकार होती हैं। जब भी सारी व्यवस्था अचानक उलट-पुलट जाए और असुरक्षा की भावना पूरी तरह हावी हो जाए और इनसानी और कुदरती कानूनों की हिफाजत करनेवाली हर चीज खुद को खूखार दरिन्दगी के रहमोकरम पर पाये, तो ऐसा ही होता है। जब धरती काँपती है और ढहे मकानों का मलबा लोगों की कब्रगाह बन जाता है; जब किनारों को तोड़कर उफनती नदी किसानों और उनके ढोर-डाँगर और छतों की शहतीरें बहा ले जाती है और जब कोई विजयी सेना उन सबका संहार करने में जुट जाती है जो अपना बचाव करना चाहते हैं-ये सब क्रूरता के ऐसे ताण्डव हैं जिनके बीच शाश्वत न्याय जैसे शब्द अपने मायने खो देते हैं और ईश्वर की कृपा तथा मनुष्य के विवेक में विश्वास भंग हो जाता है।
दरवाजों पर कई दस्तकें हुईं और फिर हाहाकार मच गया। इस तरह हर घर में सैनिक घुस चुके थे। वे जंग जीतने के बाद कब्जे की मुहिम को अंजाम दे रहे थे। इसके बाद शुरू होना था पराजितों द्वारा विजेताओं के प्रति कृतज्ञता दिखाने का कर्तव्य।
कुछ समय बाद दहशत का पहला दौर खत्म होते ही कस्बे में एक नई शान्ति पसर जाती है। कई परिवारों में प्रशियाई अफसर लोगों के साथ भोजन करता है। कभी-कभी वह सुसंस्कृत होता है और विनम्र दिखते हुए, इस खूनखराबे में शामिल होने के प्रति अपनी अरुचि का इजहार करता है। लोग इन भावनाओं की कद्र करते थे। उन्हें पता था कि किसी दिन अपनी जान बचाने के लिए उन्हें इस अफसर की मदद की जरूरत पड़ सकती है। दूसरे, अकेले इस अफसर को भोजन कराकर वे बहुत सारे सैनिकों को भोजन कराने के खर्च से भी बच जाते थे। वे उस व्यक्ति का अपमान या नुकसान क्यों करते जिसकी दया पर उनकी जिन्दगी चल रही थी? ऐसा करना साहस नहीं, दुस्साहस होता और रूएन की आम जनता की इसमें कोई गलती नहीं थी। उन्हें अपने शहर के दूसरे हाथों में चले जाने पर इस तरह की सुरक्षा की जरूरत थी। बहरहाल, सबने यह सोचकर खुद को दिलासा दे दिया कि फ्रांसीसी सभ्यता की उच्च परम्पराओं का तकाजा है कि वे अपने घरों में अजनबी सैनिकों की मेहमाननवाजी करें, बशर्ते घर के बाहर वे उसके साथ अजनबी की तरह पेश आएँ। लोगों के सामने वे एक-दूसरे से नहीं बोलते थे लेकिन अपने घर में वे जर्मन सैनिक से घंटों बातचीत करते। हर शाम उनके घरों में वह आग के सामने अपने पैरों को गर्माहट देने के लिए देर तक बैठा रहता।
कस्बे की जिन्दगी अब धीरे-धीरे सामान्य ढर्रे पर लौटने लगी। फ्रांसीसी घर से निकलते हुए डरते थे पर प्रशियाई सैनिक सीना फुलाए घूमते थे। यहाँ तक कि कन्धे पर मौत के हथियार लटकाए नीली वर्दियों में सजे दम्भी हुस्सार आम नागरिकों पर उससे ज्यादा ध्यान नहीं देते थे जितना कि कुछ समय पहले इन्हीं कफे में पीनेवाले अफसर और सैनिक देते थे।
लेकिन हवाओं की सरगोशियों में कहीं न कहीं कोई बात जरूर थी। कुछ अनजानी और अनचाही-सी चीज लगातार खटकती रहती थी। एक असह्य-सा माहौल था, जिसमें एक तीखी गन्ध समाई थी-आसन्न हमले की गन्ध । हर सार्वजनिक स्थल पर इसे महसूस किया जा सकता था। इसने भोजन का स्वाद फीका कर दिया था। लोगों को ऐसा लगता था कि वे बर्बर और खूनी कबीलों के बीच किसी विचित्र देश की यात्रा पर हों।
विजेता सैनिक लोगों से धन की उगाही कर रहे थे। वे ज्यादा से ज्यादा धन बटोरना चाहते थे, कस्बे के निवासी उन्हें धन देने में कंजूसी नहीं करते, क्योंकि उनके पास पर्याप्त धन था। लेकिन एक नॉर्मन व्यापारी जितना ही अमीर होता है, अपनी रकम का कोई हिस्सा दूसरों के हाथों में जाता देख उसे उतनी ही तकलीफ होती है।
इसीलिए कस्बे से छह या नौ मील दूर क्रुवासे, दिएपदाल या बिएसार की ओर नदी में मछुआरों को अकसर नदी के तल से किसी वर्दीधारी जर्मन की फूली हुई लाश मिलती। उसके शरीर पर चाकुओं के जख्म होते या सिर पत्थर से कुचला होता; अथवा कभी-कभी उन्हें ऊँचे पुलों पर से ढकेल दिया गया होता। छिछली नदी की तली का कीचड़ इन गुमनाम प्रतिशोधों को खुद में समेट लेता। ये सच्चे, पर अनजान बहादुरों के कारनामे थे। चुपचाप किए गए ये वार दिन के उजाले की लड़ाइयों से ज्यादा घातक थे।
विदेशी आतताइयों के खिलाफ नफरत हमेशा ही कुछ निडर व्यक्तियों को जगा देती है जो किसी विचार के लिए जान देने को तैयार रहते हैं।
विदेशी सैनिकों ने जल्द ही कस्बे पर अपने नियम-कानून लागू कर दिए। अपनी ख्याति के अनुरूप कायदे-कानूनों को लागू करने में उन्होंने जोर-जबरदस्ती का सहारा नहीं लिया। धीरे-धीरे लोग घरों से बाहर निकलने लगे। रोजमर्रा की जरूरतों के चलते कामकाज और व्यापार पटरी पर आने लगा। कुछ लोगों की काफी सम्पत्ति हाव में थी, जो फ्रांसीसी सेना के कब्जे में था। वे इस तटवर्ती शहर में जाना चाहते थे। सड़क के जरिये दिएप पहुँचने के बाद उनकी पानी के जहाज से हाव्र जाने की योजना थी।
इसके लिए उन्होंने उन जर्मन सैनिकों का इस्तेमाल किया, जिससे उनकी निकटता बन चुकी थी और अन्त में जनरल-इन-चीफ से उन्हें यात्रा की अनुमति मिल गई।
यात्रा के लिए चार घोड़ोंवाली बड़ी बन्द गाड़ी किराये पर ली गई जिसमें दस लोगों के बैठने की जगह थी। तय हुआ कि लोगों की नजरों से बचने के लिए मंगलवार की सुबह दिन निकलने से पहले चल पड़ा जाए।
कुछ समय पहले हुए हिमपात से जमीन कठोर हो गई थी। सोमवार को दोपहर बाद तीन बजे से ही उत्तर से आए काले घने बादलों के साथ हिमपात फिर शुरू हो गया, जो पूरी शाम और पूरी रात जारी रहा।
तड़के साढ़े चार बजे यात्री अपना सफर शुरू करने के लिए होटल नॉर्मण्डी के परिसर में इकट्ठा हुए जहाँ से उन्हें गाड़ी पकड़नी थी।
उन पर अभी नींद की खुमारी छाई हुई थी और गर्म कपड़ों के बावजूद वे ठण्ड से काँप रहे थे। हल्की रोशनी में उन्हें एक-दूसरे का चेहरा धुंधला-सा ही दिख रहा था और जाड़े के भारी कपड़ों में वे लम्बा लबादा ओढ़े गिरजाघर के पादरी के मोटे सहायकों की तरह लग रहे थे। इनमें से केवल दो लोग एक-दूसरे से परिचित थे। एक अन्य सहयात्री भी उनके पास आ गया और बातचीत में शामिल हो गया। उनमें से एक ने कहा, "मैं अपनी पत्नी को भी साथ ले जा रहा हूँ।" दूसरे ने कहा, "मैं भी।" तीसरे ने भी अपनी पत्नी को साथ ले जाने की बात स्वीकारी। पहले ने कहा, "हम अब रूएन नहीं लौटेंगे और यदि प्रशियाई हाव भी पहुँच गए तो हम इंग्लैण्ड चले जाएँगे।" एक ही मानसिकता के होने के कारण उन सबकी एक ही योजना थी।
घोड़ों को अभी तैयार नहीं किया गया था। हाथ में छोटी-सी लालटेन लिये अस्तबल का कर्मचारी एक दरवाजे से निकलता था और तुरन्त दूसरे दरवाजे से वापस आता दिखाई देता था। अस्तबल में घासफूस पड़ी होने के बावजूद पथरीले फर्श पर घोड़ों के पैर पटकने की आवाज सुनाई दे रही थी। बीच-बीच में किसी व्यक्ति की आवाज सुनाई देती, जो घोड़ों को पुचकार रहा था और उनसे बातें कर रहा था। घण्टियों की हल्की आवाज से पता चल रहा था कि घोड़ों पर जीन चढ़ाई जा रही है।
धीरे-धीरे यह आवाज और स्पष्ट और लयबद्ध हो गई। कभी यह अचानक थम जाती तो कभी जानवर का बदन जोर से हिलने और सख्त धरती पर खुर की धमक के साथ फिर शुरू हो जाती।
अचानक दरवाजा बन्द हो गया और चारों ओर सन्नाटा पसर गया। यात्रियों ने चुप्पी साध ली और अपने स्थान पर जड़वत् खड़े रहे।
अनवरत गिर रहे सफेद हिमपुष्पों का पर्दा धरती पर गिरते हुए चमक रहा था। इसने हर चीज को सफेदी से ढंक दिया था। इस सन्नाटे में कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। बर्फ की चादर ओढ़े कस्बा पूरी तरह शान्त था।
लालटेन लिये अस्तबल का कर्मचारी फिर निकला। वह एक उदास घोड़े को बाहर खींचकर लाने का प्रयास कर रहा था, जो आना नहीं चाहता था। कर्मचारी ने उसे एक खम्भे से बाँधा और देर तक लगाम ठीक करता रहा क्योंकि लालटेन के कारण वह एक ही हाथ से काम कर पा रहा था। वह दूसरे घोड़े को लेने जा रहा था कि उसकी नजर यात्रियों पर पड़ी जो बर्फ के कारण सफेद हो चुके थे। उसने यात्रियों से कहा, "आप लोग गाड़ी में क्यों नहीं बैठ जाते? उसमें कम-से-कम आप बर्फ से बचे रहेंगे।"
यात्रियों ने इस बारे में सोचा ही नहीं था। तीनों पुरुषों ने झट से अपनी पलियों को पिछली सीट पर बैठाया और खुद भी उनके पीछे गाड़ी में घुस गए। फिर अन्य व्यक्ति बिना कुछ कहे शान्ति से गाड़ी में बैठ गए। उनकी पहचान अभी तक कपड़ों से ढंकी हुई थी।
गाड़ी के अन्दर बिछी पुआल उनके पैरों को गरमाहट दे रही थी। पीछे बैठी महिलाएँ पैर गर्माने के लिए कार्बन से जलनेवाले ताँबे के छोटे-छोटे स्टोव लाई थीं। स्टोव जलाने के बाद धीमी आवाज में कुछ देर तक इस उपकरण की उपयोगिता पर वे पुरानी बातें दोहराई गईं जिन्हें वे लम्बे अरसे से जानती थीं।
आखिरकार गाड़ी तैयार हो गई। रास्ता खराब होने के कारण चार के बजाय छह घोड़े जोते गए थे। एक आवाज आई :
“क्या सभी लोग गाड़ी में बैठ गए हैं?"
अन्दर से एक आवाज ने जवाब दिया, “हाँ।" वे चल पड़े। गाड़ी कुछ दूर तक धीरे-धीरे चली।
भारी बर्फ के कारण पहिये फँस रहे थे। गाड़ी से चरमराने की आवाज ऐसे आ रही थी जैसे भारी बोझ से वह कराह रही हो! हाँफते हुए घोड़ों के बदन पसीने से चमक रहे थे और उनसे भाप उठ रही थी। कोचवान बगैर रुके उन पर चाबुक बरसा रहा था। घोड़ों पर पड़ रहे चाबुक को देखकर ऐसा लगता, जैसे हवा में पतले-पतले साँप लहरा रहे हों! कोचवान की मार से त्रस्त घोड़े पूरा जोर लगाकर दौड़ने की कोशिश कर रहे थे।
सुबह की उजास फूटने लगी थी। एक यात्री ने बर्फ के फाहों को रुई की बारिश कहा था, पर अब वह बन्द हो चुकी थी। घने धूसर बादलों के बीच से एक हल्की रोशनी फूट रही थी जिससे मैदानों में बिछी बर्फ की चादर और सफेद दिखाई दे रही थी। हर चीज बर्फ की चादर से ढंकी हुई थी चाहे वह पेड़ों की कतार हो या मकानों की चिमनियाँ। सुबह की उदास किरणों के बीच गाड़ी में बैठे लोगों ने पहली बार एक-दूसरे के चेहरों को उत्सुकता से देखा।
गाड़ी के पीछे सबसे बढ़िया स्थान पर ग्रां-पों स्ट्रीट का शराब का थोक व्यापारी मि. ल्वासो और मिसेज ल्वासो आमने-सामने बैठे सो रहे थे। ल्वासो ने इस व्यवसाय में जमकर कमाई की थी। वह देहात के छोटे दुकानदारों को खराब शराब ऊँचे दामों पर बेचता था और अपने मित्रों तथा परिचितों के बीच उसे एक मक्कार दिल्लगीबाज, छल और हँसोड़पन से भरा असली नॉर्मन माना जाता था।
ठग के रूप में कस्बे में उसकी ऐसी प्रतिष्ठा थी कि एक शाम प्रीफेक्ट के घर पर चल रही पार्टी में अपने किस्से-कहानियों और व्यंग्य लेखों के लिए मशहूर मि. तूर्नेल ने नींद से बोझिल कुछ महिलाओं के सामने प्रस्ताव किया कि “ल्वासो के तमाम हथकण्डों को मिलाकर एक खेल बनाया जाए।" इसके बाद तो कमरे में हँसी-ठट्टे का माहौल बन गया। धीरे-धीरे यह किस्सा पूरे कस्बे में मशहूर हो गया और लोग मजे ले-लेकर एक-दूसरे को यह किस्सा सुनाते।
ल्वासो को विशेषकर अपनी मजाकिया आदतों और अच्छे-बुरे हर प्रकार के चुटकुलों के कारण जाना जाता था। उससे बात करने के बाद कोई भी यह सोचे बिना नहीं रह सकता था : 'ये ल्वासो है बेशकीमती।' लम्बे कद के ल्वासो के शरीर का अगला हिस्सा गुब्बारे जैसा फूला हुआ था जिसके ऊपर खिचड़ी गलमुच्छों से घिरा लाल चेहरा टिका था।
उसकी पत्नी लम्बी, मजबूत तथा दृढ़निश्चयी महिला थी। वह इस कारोबारी घर की व्यवस्था और गणित सँभालती थी, जबकि उसका पति कारोबार की जान था।
इनकी बगल में मि. कार्र-लमादों पूरे रुतबे के साथ बैठा था मानो वह किसी ऊँची जाति से सम्बन्ध रखता हो! रुई के व्यापार में उसका खासा नाम था। वह तीन मिलों का मालिक और महापरिषद् का सदस्य था और लीजन ऑफ ऑनर का तमगा पाये हुए था। सम्राट (नेपोलियन तृतीय-अनु.) के शासन के दौरान वह मित्रवत् विपक्ष का प्रमुख था। अपने पति से कहीं अधिक युवा मदाम कार्र-लमादों रूएन की छावनी में भेजे जानेवाले उच्चकुलीन अफसरों की राहत का सबब थी। वह अपने पति के सामने बैठी फर में लिपटी बहुत सुन्दर लग रही थी और उदास निगाहों से गाड़ी की आन्तरिक सज्जा को निहार रही थी।
उनके पड़ोस में बैठे थे काउण्ट और काउण्टेस ह्यूबर्ट द ब्रेविल । द ब्रेविल नॉर्मण्डी के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित परिवारों में से था। अच्छी कद-काठी का बुजुर्ग काउण्ट मेकअप की मदद से अपनी शक्ल राजा हेनरी चतुर्थ से मिलाने की पूरी कोशिश करता था। इनके कुल की एक गाथा के अनुसार राजा हेनरी चतुर्थ ने द ब्रेविल परिवार की एक महिला को गर्भवती कर दिया था जिसकी एवज में उसके पति को काउण्ट तथा एक प्रान्त का गवर्नर बना दिया गया था।
महापरिषद् में मि. कार्र-लमादों के सहयोगी काउण्ट ह्यूबर्ट ओरलियंस पार्टी की नुमाइन्दगी करते थे।
निजी लड़ाकू पोत के एक मामूली-से कप्तान की बेटी से उनकी शादी कैसे हो गई, यह एक रहस्य बना हुआ था। लेकिन चूँकि काउण्टेस राजसी अदाओं से रहती थी और माना जाता था कि वह लुई फिलिप के पुत्र की प्रेयसी रह चुकी थी, इसलिए कुलीनों के बीच उसका बड़ा सम्मान था और उसके ड्राइंगरूम को इलाके में सबसे आलीशान माना जाता था। वहाँ पुराना ठाट-बाट अब भी कायम था और उसमें प्रवेश भी मुश्किल था। बताते थे कि ब्रेविल परिवार की सालाना आय पाँच लाख फ्रैंक थी।
ये छह लोग गाड़ी के यात्रियों की बुनियाद थे। ये उच्च घराने, धर्म और • सिद्धान्तोंवाले लोग थे जिन्हें समाज का मजबूत अंग माना जाता था।
इत्तिफाक से सभी महिलाएँ एक ही सीट पर बैठी थीं। काउण्टेस की बगल में दो ननें बैठी थीं जो हाथों में मनकों की माला लिये भगवान के नाम का जाप कर रही थीं। इनमें से एक बूढ़ी थी और उसके चेहरे पर चेचक दाग ऐसे थे मानो किसी बन्दूक से निकले सारे छर्रे सीधे उसके मुँह पर आ लगे हों। दूसरी खूबसूरत लेकिन, उदास थी और वह फेफड़ों की बीमारी का शिकार थी। इन वजहों से शायद ईश्वर के प्रति उनकी निष्ठा और बढ़ गई थी और उनके चेहरों पर शहीदाना भाव आ गया था।
इन दो भक्तिनों के सामने एक पुरुष और एक महिला बैठे थे जिन पर बार-बार सभी की निगाहें जा रही थीं। पुरुष को सब जानते थे। वह था कोर्नूदे, लोकतंत्र का हिमायती और प्रतिष्ठित लोगों के लिए आतंक का पर्याय। कफे में बैठकर लोकतंत्र पर लम्बी-लम्बी बहसों में हिस्सा लेना उसकी आदत थी। साथियों की गोष्ठियों में समय बिताना उसका प्रिय शगल था। उसके कनफेक्शनर पिता ने उसके लिए काफी संम्पत्ति छोड़ी थी जिसे वह उड़ा चुका था और इस उम्मीद के साथ गणतंत्र की स्थापना का इन्तजार कर रहा था कि इन बहसों और खर्चों के बदले उसे कोई पद मिल जाएगा। चार सितम्बर को शायद किसी के मजाक के चलते उसे यकीन हो गया कि वह प्रीफेक्ट चुन लिया गया है। पर जब वह कार्यालय पहुँचा तो वहाँ क्लर्क मालिक बन चुके थे और उन्होंने उसे पहचानने से इनकार कर दिया। वह अविवाहित और खुशमिजाज था। जब उसने सबकुछ अपने हाथों से बाहर पाया तो वह प्रशियाइयों को रोकने में लग गया। सड़कों पर गड्ढे खोदने से लेकर जंगलों से पेड़ों को काटकर रास्ते पर डालने तक उसने हर सम्भव प्रयास किया था। अब उसे लगता था कि हाव ही उसके लिए उचित स्थान है जहाँ और मोर्चेबन्दियों की जरूरत थी।
महिला उनमें से थी जिन्हें छिनाल कहा जाता है। वह अपनी मांसलता के लिए मशहूर थी जिसकी वजह से लोग उसे 'चर्बी की गुड़िया' कहकर पुकारते थे। छोटी, गोल-मटोल तथा मोटी-मोटी सॉसेज जैसी उँगलियोंवाली इस लड़की की त्वचा बेहद चमकदार थी। उसके भारी स्तन कपड़ों के अन्दर से भी हिलते नजर आते थे। बहरहाल, मर्द उसे पसन्द करते थे क्योंकि उसके चेहरे पर ताजगी और व्यवहार में प्रफुल्लता थी जो बरबस ही किसी को भी आकर्षित कर लेती थी। उसका चेहरा सेब की तरह गोल तथा भरे हुए होंठ, घनी भौंहों से सजी दो चमकदार आँखों के नीचे खूबसूरत मुँह में अनार के दानों की तरह छोटे-छोटे दाँत थे। उसके नम होंठों को देखकर ऐसा लगता जैसे वह चूमने का निमंत्रण दे रहे हों। किसी को भी लुभा लेनेवाली कई खूबियाँ थीं उसमें।।
(4 सितम्बर, 1870 को फ्रांस में नेपोलियन तृतीय को हटाये जाने के बाद तृतीय गणतंत्र कायम हुआ। -सं.)
उसको पहचानते ही गाड़ी में सच्चरित महिलाओं के बीच कानाफूसी शुरू हो गई और 'वेश्या' और 'शर्मनाक' जैसे शब्द इतनी ऊँची आवाज में फुसफुसाए गए कि चर्बी की गुड़िया ने सिर उठाकर देखा। उसने अगल-बगल बैठे लोगों पर ऐसी तीखी निगाह डाली कि सभी ने चुप्पी साध ली और ल्वासो को छोड़ सभी नीचे देखने लगे। ल्वासो पूरी दिलचस्पी के साथ चर्बी की गुड़िया को निहारे जा रहा था।
फिर तीनों महिलाओं के बीच बातचीत शुरू हो गई जिन्हें इस लड़की की मौजूदगी ने आपस में मित्र बना दिया था या यों कह लीजिए कि वे अन्तरंग हो गई थीं। उन्हें लगा कि बेशर्मी के साथ बिकनेवाली गरिमा के विरुद्ध उन्हें अपनी वैवाहिक गरिमा की एकजुटता प्रदर्शित करनी चाहिए क्योंकि कानूनी प्रेम हमेशा ही प्रेम के मुक्त व्यापार को नीची निगाह से देखता है।
तीनों मर्द भी कोर्नूदे को देखकर बचाव की सहजवृत्ति से एक-दूसरे के करीब आ गए थे और गरीबों के प्रति हिकारत के स्वर में धन-सम्पत्ति की बातें कर रहे थे। काउण्ट ह्यूबर्ट प्रशियाइयों द्वारा मचाई गई तबाही का विवरण देने लगा। पशुओं की लूट और फसलों के विनाश से होनेवाले नुकसान के बारे में वह ऐसे करोड़पति के अन्दाज में बातें कर रहा था जिसे इस बरबादी से एकाध साल थोड़ी उलझनभर होगी। सूती कपड़ा उद्योग के अनुभवी कार्र-लमादों को इंग्लैण्ड में सुरक्षित रखने के लिए छह लाख फ्रैंक की छोटी-सी रकम भेजनी थी। ल्वासो ने फ्रांसीसी प्रशासन को अपने गोदामों में बची सारी शराब को बेचने का सौदा कर लिया था जिसकी एवज में मिलनेवाली रकम लेने के लिए वह हावर जा रहा था।
तीनों एक-दूसरे पर मित्रतापूर्ण नजरें डाल रहे थे। अलग-अलग स्थितियाँ होने के बावजूद पैसे के जरिये तीनों आपस में भाइयों जैसा महसूस कर रहे थे। पैसावह जन्तर जो अपने स्वामियों के हाथों में जादू पैदा कर सकता है, जो अपनी जेबों में हाथ डालकर स्वर्ण मुद्राओं की खनक सुनते हैं।
गाड़ी की चाल काफी धीमी थी। दिन के दस बजे तक वे बारह मील का सफर भी नहीं तय कर सके थे। पहाड़ की चढ़ाइयों पर पुरुषों को तीन बार गाड़ी से उतरना पड़ा था। उन्हें उम्मीद थी कि वे सुबह का नाश्ता टोटे में करेंगे, लेकिन अब वे वहाँ रात से पहले नहीं पहुँच सकेंगे। रास्ते में सभी की निगाहें किसी सराय को ढूँढ रही थीं कि गाड़ी बर्फ में फँस गई और उसे निकालने में दो घंटे से भी ज्यादा समय लग गया।
भूख उनके दिमाग पर हावी होने लगी थी। रास्ते में न तो कोई रेस्तरां मिला और न ही कोई मयखाना। प्रशियाइयों के आने की खबर और गुजरते सैनिकों के डर से ये सारे कारोबार बन्द हो गए थे। गाड़ी में सवार पुरुषों ने रास्ते में पड़नेवाले हर फार्म में भोजन की तलाश की, लेकिन सैनिकों द्वारा लूटे जाने के डर से किसानों ने अपनी सारी खाद्य सामग्री छिपा दी थी। उन्हें खाने को रोटी भी नहीं मिली।
दोपहर करीब एक बजे ल्वासो ने भूख बर्दाश्त न होने की घोषणा कर दी। इस समस्या से सभी परेशान थे। बढ़ती भूख के कारण बातचीत बन्द हो गई थी। समय-समय पर कोई न कोई जम्हाई लेता। दूसरों को भी उसकी देखा-देखी जम्हाई आने लगी। बारी-बारी सभी अपनी स्वभावगत विशेषता और सामाजिक रुतबे के मुताबिक लापरवाही से या विनम्रता से मुँह पर हाथ रखकर जम्हाइयाँ ले रहे थे।
कई कोशिशों के बाद चर्बी की गुड़िया नीचे झुकी, मानो अपने घाघरे में कुछ खोज रही हो। वह एक पल के लिए हिचकिचाई तथा अगल-बगल बैठे लोगों पर निगाह डालने के बाद शान्त होकर बैठ गई। भूख के कारण सभी के चेहरे पीले और उदास नजर आ रहे थे। ल्वासो ने कहा कि वह हैम के एक टुकड़े के लिए एक हजार फ्रैंक देने को तैयार है। उसकी पत्नी ने हाथ उठाया, जैसे विरोध करना चाहती हो लेकिन वह चुप रही। पैसा यूँ ही उड़ाने की बात पर उसकी भृकुटियाँ तन जाती थीं। ऐसे मामलों में वह मजाक पसन्द नहीं करती थी। काउण्ट ने कहा, "मुझे यह बात समझ क्यों नहीं आई कि अपने साथ कुछ खाने का सामान लाना चाहिए था।" सभी ने काउण्ट की तरह खुद को इसके लिए कोसा।
बहरहाल, कोर्नूदे के पास रम से भरा फ्लास्क था। उसने सभी से दो घूँट लेने का प्रस्ताव किया लेकिन पेशकश ठुकरा दी गई। अकेले ल्वासो ने दो यूंट पीकर थर्मस उसकी ओर बढ़ा दिया और शुक्रिया के तौर पर कहा कि कुछ नहीं से यह बेहतर है। यह गर्मी देती है और भूख भी रोकती है। शराब के सुरूर ने उसे मजाक के मूड में ला दिया। उसने हँसते हुए कहा कि एक बार समुद्र में फँसने पर नाविकों ने सबसे मोटे साथी को मारकर खा लिया था और वे भी उनका अनुसरण कर सकते हैं। उसका परोक्ष रूप से इशारा चर्बी की गुड़िया की ओर था। कोर्नूदे को छोड़कर गाड़ी में सवार कोई भी नहीं हँसा। दोनों भली ननों ने सीने पर सलीब का निशान बनाया और मुँह में कुछ बुदबुदाने लगीं। उन्होंने आँखे नीची कर रखी थी। इससे साफ था कि वे भूख सहने के लिए भगवान से ताकत माँग रही थीं।
आखिरकार, तीन बजे, जब गाड़ी एक ऐसे मैदानी इलाके में पहुँच गई जहाँ दूर-दूर तक कोई गाँव नजर नहीं आ रहा था तो चर्बी की गुड़िया अचानक नीचे झुकी और सीट के नीचे से सफेद तौलिये से ढंकी एक टोकरी बाहर निकाली।
उसने पहले चीनी मिट्टी की एक प्लेट और चाँदी का एक कप निकाला, फिर एक बड़ी-सी रकाबी निकाली, जिसमें गाढ़े शोरबे में डूबे दो मुर्गे थे। उसकी टोकरी में और भी बढ़िया चीजें दिख रही थीं-वह फलों और कचौड़ियों और मिठाइयों से भरी हुई थी। कुल मिलाकर उसके पास तीन दिन तक के खाने की व्यवस्था थी। टोकरी में से चार बोतलें भी झाँक रही थीं। उसने मुर्गे का एक टुकड़ा लिया और एक बिस्कुट के साथ बड़ी नजाकत से उसे खाने लगी।
सबकी नजरें उसी की ओर घूम गईं। खाने की खुशबू से उनके नथुने फड़क रहे थे, मुँह में पानी आ रहा था और कान के पीछे सुरसुराहट हो रही थी। इस लड़की के प्रति महिलाओं की नफरत उग्र हो चली थी, मानो वे उसे मारकर गाड़ी के बाहर फेंक देना चाहती हों-उसके चाँदी के कप, उसकी टोकरी और खाने के सामान सहित।
लेकिन ल्वासो अपनी आँखों से मुर्गे की रकाबी को खाये जा रहा था। उसने कहा, "किस्मत से मदाम हमसे ज्यादा सावधान निकलीं, कुछ लोग हमेशा ही दूरदर्शी होते हैं।"
वह उसकी ओर मुड़ी और कहा, “आप कुछ लेंगे, सर? इतने लम्बे समय तक बिना कुछ खाये रहना कठिन है।"
ल्वासो ने बड़ी अदा से उसे सलाम करके जवाब दिया, "ईमान से, सच कहूँ तो मैं इनकार नहीं कर सकता। मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकता। युद्ध के समय सब जायज होता है, क्यों, ऐसा ही है न मदाम?" फिर चारों ओर नजर दौड़ाकर उसने कहा, "ऐसे मौकों पर आप मददगार लोगों को पाकर खुश हुए बिना नहीं रह सकते।"
उसके पास एक अखबार था जिसे उसने घुटनों पर फैला लिया ताकि उसकी पतलून पर धब्बा न लगे। फिर उसने अपनी जेब में हमेशा पड़े रहनेवाले चाकू की नोक पर मुर्गे की एक टाँग उठाई, उसे दाँतों के बीच रखकर काटा और ऐसे सन्तोष के साथ चबाने लगा जिससे गाड़ी में एक लम्बी दुखभरी आह फैल गई।
फिर चर्बी की गुड़िया ने बड़े मीठे और विनम्र स्वर में दोनों ननों से खाने का प्रस्ताव किया। उन्होंने फौरन इसे स्वीकार कर लिया और हड़बड़ाते हुए शुक्रिया अदा कर नजरें उठाये बिना जल्दी-जल्दी खाने लगीं। कोर्नूदे ने भी अब अपनी पड़ोसी की पेशकश नहीं ठुकराई और चारों ने घुटनों पर अखबार बिछाकर एक मेज जैसी बना ली।
उनके मुँह अनवरत चल रहे थे और वे भूखे भेड़ियों की तरह चबा-चबाकर निगल रहे थे। अपने कोने में बैठा ल्वासो लगातार जारी था और धीमी आवाज में अपनी पत्नी को भी राजी करने की कोशिश कर रहा था। वह काफी देर तक विरोध करती रही, लेकिन फिर जब उसे लगा कि भूख से गश खा जाएगी तो वह तैयार हो गई। उसके पति ने अपने लच्छेदार अन्दाज में अपनी 'मोहक सहयात्री' से पूछा कि क्या उसे मदाम ल्वासो को एक छोटा-सा टुकड़ा पेश करने की इजाजत है।
उसने जवाब दिया, “क्यों नहीं, जरूर लीजिए सर!" और सौहार्दपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए रकाबी बढ़ा दी।
जब उन्होंने बोर्दो वाइन की पहली बोतल खोली तो जरा उलझन में डालनेवाली स्थिति पैदा हो गई क्योंकि उनके पास एक ही कप था। ऊपर से ही एक-एक घूँट लेकर सबने उसे बढ़ा दिया। सिर्फ कोर्नूदे ने, निस्सन्देह विनम्रतावश, अपने होंठ प्याले से लगाये जिस पर उसकी सुन्दर पड़ोसन के होंठों की नमी थी।
चारों ओर खा रहे लोगों से घिरे और खाने की दमघोंटू गन्ध से बेहाल काउण्ट और काउण्टेस द ब्रेविल तथा मदाम और मि. कार्र-लमादों वही सजा भुगत रहे थे जो टेण्टालुस
को मिली थी। अचानक उद्योगपति की युवा पत्नी ने ऐसी आह भरी कि सब उसकी ओर घूम गए। वह बाहर की बर्फ-जैसी सफेद पड़ गई थी। उसकी आँखें बन्द हो गई थीं और सिर आगे ढुलक गया था। वह बेहोश हो गई थी। उसका पति बुरी तरह घबरा उठा और सबसे मदद की गुहार करने लगा। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। फिर दोनों ननों में से बड़ीवाली ने मूर्छित महिला का सिर थामा, चर्बी की गुड़िया का प्याला उसके होंठों से लगाया और वाइन की कुछ बूंदे उसके गले में उतार दीं। प्यारी-सी महिला के चेहरे पर कुछ रंगत आई, उसने आँखें खोली और मरी हुई आवाज में कहा कि वह अब बहुत बेहतर महसूस कर रही है। लेकिन सिस्टर ने कहा कि दौरा दोबारा न पड़ जाए, इसके लिए उसे बोर्दो का पूरा गिलास पी लेना चाहिए। उसने कहा, “यह भूख के कारण है, और कोई बात नहीं।"
फिर चर्बी की गुड़िया ने लजाते और झेंपते हुए अब भी व्रत पर कायम चारों यात्रियों को देखा और हकलाते हुए कहा, “भगवान कसम! अगर मैं इन सज्जनों और देवियों को कुछ लेने के लिए कह सकती तो..." वह अचानक चुप हो गई मानो उसे डर हो कि कोई उसे अपमानित कर देगा। ल्वासो ने उसकी बात लपकते हुए कहा, "ओह! जरूर! ऐसे मौकों पर तो सारी दुनिया भाइयों की तरह होती है और सबको एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। आइए, महिलाओ, लिहाज छोड़िए। स्वीकार क्यों नहीं करतीं? पता नहीं हमें रात बिताने के लिए भी कोई घर मिलेगा या नहीं! जिस रफ्तार से हम जा रहे हैं, हम कल दोपहर के पहले टोटे नहीं पहुँचेंगे।"
(टेण्टालुस-ग्रीक मिथकों का एक राजा जिसे देवताओं को अप्रसन्न करने के कारण दण्ड मिला था कि वह फलों और पानी से घिरा रहेगा, पर जैसे ही वह खाने या पीने की कोशिश करेगा, वे उससे दूर खिसक जाएँगे!-सं.)
उनके मन में अब भी हिचकिचाहट थी। कोई भी 'हाँ' कहने की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहता था। काउण्ट ने मामला तय कर दिया। वह डरी हुई लड़की की ओर मुड़ा और कहा, “मदाम, हम आभारपूर्वक ग्रहण करने को तैयार हैं।"
पहला ही कदम महत्त्वपूर्ण होता है। एक बार लक्ष्मणरेखा पार हो जाए, फिर कोई हिचक नहीं रहती। खाने की टोकरी खाली कर दी गई। टोकरी में अब भी बहुत कुछ था-मांस की कचौड़ियाँ, सिरके में भीगी नासपतियाँ, डबलरोटी, आलू के चिप्स, ककड़ी और प्याज-तमाम ऐसी चीजें जो सभी औरतों की तरह चर्बी की गुड़िया को पसन्द थीं।
वे चर्बी की गुड़िया से कुछ बोले बगैर उसका खाना नहीं खा सकते थे। इसलिए उन लोगों ने उससे बात शुरू कर दी। पहले तो सम्भ्रान्त महिलाएँ चुप रहीं लेकिन फिर वह भी घुल-मिल गईं। मदाम द ब्रेविल और कार्र-लमादों जो सुसंस्कारों के सभी पहलुओं से परिचित थीं, थोड़ी नजाकतभरी शालीनता के साथ पेश आ रही थीं।
काउण्टेस विशेष रूप से उन कुलीन महिलाओं की तरह पेश आ रही थी जिन्हें कीचड़ से भी बिल्कुल साफ-सुथरे निकलने का यकीन होता है। लेकिन मदाम ल्वासो का बातचीत पर कम, खाने पर अधिक ध्यान था।
बातचीत का विषय स्वाभाविक रूप से युद्ध था। इस दौरान प्रशियाइयों की बर्बरता और फ्रांसीसियों के साहस के किस्से सुनाए गए। हालाँकि ये सभी लोग कस्बे को छोड़कर भाग रहे थे, लेकिन उन्होंने पीछे रह गए कस्बेवासियों की सराहना की। इसके बाद निजी अनुभव सुनाने की बारी आई। और चर्बी की गुड़िया रूएन छोड़ने का किस्सा बयान करने लगी। वह ऐसे भावुकतापूर्ण और उत्तेजित लहजे में बोल रही थी जिसमें उस जैसी लड़कियाँ प्रायः अपनी स्वाभाविक भावनाएँ व्यक्त करती हैं।
उसने कहा, “पहले तो मैंने रुके रहने का फैसला किया था, क्योंकि मेरे पास कुछ सैनिकों का पेट भरने के लिए पर्याप्त व्यवस्था थी। मैं यह भी नहीं जानती थी कि कहाँ जाऊँगी। लेकिन जैसे ही मैंने प्रशियाइयों को देखा, मेरा खून उबाल मारने लगा। मैं शर्म के मारे पूरा दिन रोई। काश! मैं पुरुष होती। मैं खिड़की से नुकीली हेल्मेट पहले इन सैनिकों को जाता हुआ देख रही थी। यदि मेरी नौकरानी ने पीछे न खींचा होता तो शायद मैं उनके ऊपर फर्नीचर फेंक देती। इनमें से एक मेरे घर रहने आ गया। मैं फौरन उसके गले पर झपटीं। उनका गला दबाना औरों के मुकाबले मुश्किल थोड़े ही न होता है। मैं उसे वहीं खत्म कर देती लेकिन लोगों ने मुझे बालों से पकड़कर दूर झटक दिया। इस घटना के बाद मेरा छिप जाना जरूरी हो गया था। आखिरकार मुझे मौका मिला और मैंने कस्बा छोड़ दिया। अब मैं आपके साथ हूँ।"
उन्होंने उसे बधाइयाँ दीं। वह अपने साथियों की नजरों में थोड़ी और उठ गई क्योंकि वे खुद इतने गर्ममिजाज नहीं साबित हुए थे। कोर्नेदे ने उसकी बातों को सुनते हुए एक अर्थपूर्ण मुस्कान बिखेरी, जैसे कोई पादरी भगवान की पूजा करते हुए भक्त को देखकर मुस्कराता है क्योंकि लम्बी दाढ़ीवाले लोकतंत्रवादी देशभक्ति पर वैसे ही अपना एकाधिकार समझते थे जैसाकि लबादेधारी महानुभाव धर्म पर अपना समझते हैं। अपनी बारी आने पर उसने बड़े सैद्धान्तिक अन्दाज में बोलना शुरू किया। उसका स्वर कुछ ऐसा था जैसे शहर की दीवारों पर लगी घोषणाओं का होता है। अन्त में उसने डींग हाँकते हुए कहा कि उसने उस 'बादिंगुए (फ्रांसीसी जनरल-अनु.) के बच्चे को कसकर लताड़ लगाई।
इस बात पर चर्बी की गुड़िया नाराज हो गई क्योंकि वह बोनापार्टिस्ट थी। गुस्से से उसका चेहरा लाल हो गया और नाराजगी से हकलाते हुए उसने कहा, "काश! उसकी जगह तुम होते। फिर सबकुछ ठीक हो गया होता। ओ, हाँ! वह तुम ही थे जिसने इस आदमी को धोखा दिया है। अगर तुम जैसे पाजियों का राज होगा तो वे फ्रांस छोड़कर कभी नहीं जाएँगे!"
उसकी नाराजगी का कोर्नूदे पर कोई असर नहीं पड़ा और वह हिकारत और श्रेष्ठता के भाव से मुस्कुराता रहा। सबने महसूस किया कि बात जरा ज्यादा बढ़ गई और काउण्ट ने किसी तरह गुस्से से भरी लड़की को शान्त किया और अधिकारपूर्वक घोषणा की कि सभी के ईमानदार विचारों का आदर किया जाना चाहिए। लेकिन काउण्टेस तथा मिल-मालिक की पत्नियों के दिल में गणतंत्र का समर्थन करनेवालों के प्रति बेवजह की नफरत और एक सजावटी निरंकुश सरकार के प्रति वही स्वाभाविक कोमलता थी जो सभी महिलाओं में होती है। न चाहते हुए भी इन महिलाओं ने महसूस किया कि इस गरिमापूर्ण वेश्या से उनके विचार काफी मिलते हैं। वे उसके प्रति लगाव महसूस करने लगीं।
रात के दस बज चुके थे। अब खाने की टोकरी भी खाली हो चुकी थी और वे इसके इतनी जल्दी खत्म हो जाने पर दुख व्यक्त कर चुके थे। बातचीत कुछ देर और चली लेकिन खाना खत्म होने के बाद बातों में गर्माहट नहीं थी।
रात का अँधियारा घना होता जा रहा था। उन्हें ठण्ड भी काफी लगने लगी थी। चर्बी की गुड़िया मोटापे के बावजूद ठण्ड से काँप रही थी। मदाम द ब्रेविल ने अपना फुट स्टोव उसकी ओर बढ़ा दिया। स्टोव में सुबह से कई बार ईंधन डाला जा चुका था। चर्बी की गुड़िया उस पर खुशी-खुशी पैर सेंकने लगी। कार्र-लमादों और ल्वासो की पत्नियों ने भी अपने स्टोव दोनों ननों की ओर बढ़ा दिए।
कोचवान ने लालटेनें जला दी थीं। मद्धिम रोशनी में घोड़ों के पसीने से चमकते जिस्म के आगे बस झाग का बादल दिख रहा था: सड़क के दोनों ओर पड़ रही रोशनी में बर्फ गाड़ी के साथ-साथ लुढ़कती दिखाई दे रही थी। गाड़ी के भीतर कुछ भी दिख नहीं रहा था। अचानक चर्बी की गुड़िया और कोर्नेद के बीच कुछ हरकत हुई। घनी परछाइयों के बीच आँखें फाड़कर देखने की कोशिश कर रहे ल्वासो ने यह महसूस किया कि लम्बी दाढ़ीवाला आदमी झटके से पीछे हटा है, जैसे उसे एक बेआवाज वार लगा हो।
सड़क पर दूर रोशनी दिखाई दी। यह टोटे था, जहाँ पहुँचने में उन्हें ग्यारह घंटे लग गए थे और यदि घोड़ों को खिलाने और उन्हें आराम देने के दो घंटे जोड़ दिए जाएँ तो कुल तेरह घंटे। कस्बे में घुसने के बाद गाड़ी कॉमर्स होटल के बाहर रुक गई।
गाड़ी का दरवाजा खुला! एक परिचित आवाज से यात्री चौंक पड़े। यह सड़क पर तलवार टकराने की आवाज थी। फौरन ही अँधेरे में एक जर्मन आवाज सुनाई दी।
गाड़ी में बैठे यात्री दम साधे पड़े थे। ऐसा लग रहा था कि गाड़ी के बाहर मौत उनका इन्तजार कर रही है। इस बीच कोचवान लालटेन लेकर आ गया। उसने लालटेन गाड़ी के अन्दर की ओर दिखाई। गाड़ी में आमने-सामने बैठे फक पड़े चेहरेवाले यात्रियों के मुँह खुले हुए थे और उनकी आँखें डर और आश्चर्य से फैली थीं।
बाहर, कोचवान की बगल में एक जर्मन अफसर खड़ा था। सुनहरे बालोंवाले, पतले, बेहद लम्बे युवा सैनिक ने वर्दी ऐसे कसकर डाट रखी थी जैसे किसी युवती ने चोली कस रखी हो। उसने सिर पर कपड़े की चपटी टोपी पहन रखी थी जिससे वह किसी अंग्रेजी होटल का पोर्टर लग रहा था। उसके चेहरे पर बड़ी-बड़ी नुकीली मूंछे थीं, जिनकी नोक इतनी पतली थी कि कोई यह अन्दाजा नहीं लगा सकता था । कि मूंछे कहाँ खत्म होती हैं। भारी मूंछों के कारण होंठों के पास सिलवटें पड़ गई थीं।
उसने फ्रांसीसी में लोगों से गाड़ी से उतरने का अनुरोध किया, “कृपा करके आप नीचे उतरेंगे?"
सबसे पहले दोनों ननें नीचे उतरीं। इसके बाद काउण्ट और काउण्टेस नीचे आए। इसके बाद उद्योगपति और उसकी पत्नी, फिर ल्वासो और उसकी पत्नी बाहर निकले। गाड़ी से उतरते ही ल्वासो ने अफसर से कहा, "गुड ईवनिंग सर!" इसमें आदर से अधिक दूरदर्शिता थी। सभी ताकतवर लोगों की तरह वह अफसर धृष्टतापूर्वक चुप रहा और उन्हें बिना कुछ बोले देखता रहा।
दरवाजे के पास बैठने के बावजूद चर्बी की गुड़िया और कोर्नूदे सबसे बाद में उतरे। चर्बी की गुड़िया के लिए अपने गुस्से पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो रहा था, जबकि लोकतंत्र समर्थक उदासी से हाथ हिला रहा था और उसकी लम्बी दाढ़ी काँपती-सी और पहले से ज्यादा लाल लग रही थी। वे अपनी गरिमा बनाये रखना चाहते थे, क्योंकि यहाँ पर वे अपने महान देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। अपने पड़ोसियों के समर्पण से क्षुब्ध चर्बी की गुड़िया ज्यादा गरिमामय दिखने की कोशिश कर रही थी। वह सहयात्रियों के लिए एक मिसाल पेश करना चाहती थी और उसने यात्रा की शुरुआत से जारी अपनी विरोधपूर्ण मुद्रा बनाये रखी।
वे होटल की बड़ी-सी रसोई में आ गए थे। जर्मन अफसर ने 'जनरल-इन-चीफ' द्वारा जारी यात्रा सम्बन्धी दस्तावेजों-जिनमें उनके नाम, पते और व्यवसाय के बारे में जानकारी दी गई थी-की माँग की। कागजात की बारीकी से जाँच करने तथा लोगों के दस्तखतों का मिलान करने के बाद उसने कहा, “ये तो ठीक है," और बाहर चला गया।
काफी देर से किसी अनहोनी आशंका से परेशान यात्रियों ने अब जाकर राहत की सांस ली। उन्हें भूख लग आई थी। इसलिए तुरन्त खाने का आदेश दिया गया। खाना परोसने में आधे घंटे का समय था और दो नौकर इसमें लगे थे। वे अपने-अपने कमरों की ओर चल दिए। उनके कमरे एक गलियारे के दोनों ओर बने थे। यह गलियारा आगे एक बड़े चमकदार पालिशवाले दरवाजे पर समाप्त होता था।
आखिरकार, सब खाने की मेज पर इकट्ठा हुए। वहाँ होटल का मालिक भी मौजूद था। वह किसी समय घोड़ों का व्यवसाय करता था। दमे का मरीज यह व्यक्ति हमेशा छींकता रहता था तथा उसके गले में खराश रहती थी। उसके पिता ने उसे फोलेनवी नाम दिया था। उसने पूछा :
"क्या मिस एलिजाबेथ रूसे यहाँ हैं?"
चर्बी की गुड़िया ने चौंककर कहा, “हाँ! मैं ही हूँ।"
"प्रशियाई अफसर आपसे तुरन्त बात करना चाहते हैं।"
"मुझसे?"
"हाँ, अगर आपका नाम ही मिस एलिजाबेथ रूसे है तो।"
वह थोड़ी परेशान हो गई और एक पल सोचकर बोली, “यह मेरा ही नाम है, लेकिन मैं नहीं जाऊँगी।"
चर्बी की गुड़िया के इस जवाब से लोग बेचैन हो उठे। वे इस आदेश का कारण जानने की कोशिश करने लगे। काउण्ट ने लड़की के पास जाकर कहा, “आप शायद गलती कर रही हैं, मदाम! आपके इनकार से मुश्किलें पैदा हो सकती हैं, न केवल आपके लिए बल्कि आपके साथियों के लिए भी। जिनके पास ताकत है, उनका प्रतिरोध करना उचित नहीं होता। इस अनुरोध से कोई नुकसान नहीं होने जा रहा है। हो सकता है कि कोई औपचारिकता बाकी रह गई हो!"
सभी ने काउण्ट की राय से सहमति जताई और उसे हर तरह से मनाने की कोशिश में जुट गए। उन सबको डर लग रहा था कि आदेश का पालन नहीं होने के बुरे नतीजे हो सकते हैं।
आखिरकार वह तैयार हो गई। उसने कहा, "यह मैं आप लोगों के लिए कर रही हूँ, यह समझ लीजिए।”
काउण्टेस ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, “और हम इसके लिए तुम्हारे बहुत आभारी हैं।"
वह बाहर चली गई। उसके जाने तक सभी खड़े रहे।
सभी ने लड़की के स्थान पर अपना बुलावा न आने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा किया और अपना बुलावा आने पर वे क्या कहेंगे, इसके लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करने लगे।
लेकिन दस मिनट बाद ही लड़की वापस आ गई। वह हाँफ रही थी। गुस्से से उसका चेहरा लाल था। वह हकलाते हुए बोली, “ओह, लुच्चा-लफंगा कहीं का!"
सब उसके आसपास जमा हो गए, लेकिन उसने कुछ नहीं बताया। जब काउण्ट ने जोर दिया तो वह बोल पड़ी, “यह आपके मतलब की बात नहीं है। मैं कुछ नहीं बता सकती।"
फिर वे सब मेज पर बैठे शोरबे के बड़े-से पतीले के इर्द-गिर्द बैठ गए जिसमें से पत्तागोभी की गन्ध आ रही थी। खतरे के बावजूद खाना खुशी-खुशी खाया गया। दोनों ननों और ल्वासो ने पैसे बचाने के लिए सेब की शराब ली थी जो अच्छी निकली थी। बाकियों ने वाइन की माँग की और कोर्नूदे ने बीअर मँगाई। वह बीअर की बोतल के ढक्कन को नजाकत से खोलकर गिलास में डाल रहा था। उसने ध्यान से गिलास को भरा और बीअर के रंग को परखने के लिए उसे उठाकर रोशनी में देखा। पीते हुए उसकी घनी दाढ़ी में बीअर की झाग लग गई। उसकी आँखें सिकुड़ी हुई थीं और वह अपने गिलास में झिलमिलाते पेय को बड़े गौर से देख रहा था। उसके हाव-भाव में कुछ ऐसी बात थी मानो वह जिस काम के लिए जन्मा है, उसे ही अंजाम दे रहा है। कहा जा सकता है कि उसके मस्तिष्क में उसके जीवन की दो खास अनुरक्तियों का मिलन हो रहा था-एक तो हल्की शराब और दूसरी क्रान्ति । यकीनन, वह दूसरी के बारे में सोचे बिना पहलेवाली का स्वाद नहीं ले सकता था।
फोलेनवी और उसकी पत्नी मेज के दूसरे छोर पर भोजन कर रहे थे। दमे के कारण फोलेनवी की साँस भाप के इंजन की तरह चल रही थी। उसे खाते वक्त बात करने में बेहद परेशानी हो रही थी लेकिन उसकी पत्नी काफी वाचाल थी। प्रशियाइयों । ने यहाँ आने के बाद क्या किया, क्या कहा-इन सब चीजों का वह विस्तृत ब्योरा दे रही थी। उसकी बातों में नफरत थी क्योंकि प्रशियाइयों के कारण उसे आर्थिक क्षति हो रही थी और उसके दो बेटे सेना में थे। वह खास तौर से काउण्टेस से बातें कर रही थी और ऊँचे रुतबेवाली महिला से बात करके गद्गद थी।
जब वह कोई गम्भीर बात करने के लिए अपनी आवाज धीमी करती तो उसका पति समय-समय पर उसे टोकता, “मदाम फोलेनवी, आपके लिए बेहतर है कि आप चुप रहें।" लेकिन वह उसकी ओर ध्यान दिए बिना इस तरह बोलती रहती :
हाँ, मदाम, ये लोग बस हमारे आलू और सूअर का गोश्त नहीं खा रहे हैं बल्कि हमारा सारा सुअर का गोश्त और आलू खाये जा रहे हैं। आप ये न सोचें कि वे ठीक-ठाक लोग हैं। अरे नहीं! वे ऐसी गन्दी हरकतें करते हैं! जरा उन्हें दिन में घंटों कवायद करते हुए देखिए। कभी मार्च करते हुए आगे जाते हैं तो कभी मार्च करते हुए पीछे आते हैं। कभी इधर तो कभी उधर। वे अपने देश में खेती करते होंगे या कम से कम सड़कें बनाने का काम करते होंगे। लेकिन मदाम, ये सैनिक किसी के लिए फायदेमन्द नहीं हैं। गरीब लोगों को उनका पेट भरना पड़ता है। न करें तो जान से हाथ धोना पड़े। मदाम, ये सही है कि मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, लेकिन जब मैं किसी को सुबह से रात तक गुस्सा करके अपनी सेहत चौपट करते हुए देखती हूँ तो मैं कहती हूँ-'जब इतने सारे लोग बेकार पड़े हैं तो फिर किसी को गड़बड़ी करने के लिए जहमत उठाने की क्या जरूरत है? लोगों की हत्या करना, चाहे वह प्रशियाई हो या अंग्रेज, पोलिश हो या फ्रांसीसी, बिल्कुल गलत है। यदि किसी ने कोई नुकसान किया और दूसरा उसका बदला लेता है तो उसे सजा दी जाती है; लेकिन जब वे हमारे लड़कों को मौत के घाट उतारते हैं, जैसे शिकार कर रहे हों तो इसके लिए उन्हें पुरस्कृत किया जाता है, बल्कि सबसे ज्यादा तबाही मचानेवालों को सबसे बढ़कर तमगे मिलते हैं।' मेरी समझ में यह बात कभी नहीं आई।"
कोर्नूदे ने कहा, “जंग के नाम पर शान्तिपूर्ण पड़ोसी पर हमला करना बर्बरता है। लेकिन जब कोई अपने देश की रक्षा करता है तो यह पवित्र कार्य बन जाता है।"
बूढ़ी औरत ने सिर झुका लिया, “हाँ, यदि कोई अपनी रक्षा करता है तो यह अलग बात है। लेकिन क्यों नहीं उन राजाओं को मार डालने का बीड़ा उठाया जाता, जो अपनी खुशी के लिए लोगों को जंग की आग में झोंक देते हैं?" ।
कोर्नूदे की आँखें चमक उठीं, “धन्य है मेरे देश की औरत!” उसने कहा।
कार्र-लमादों इस सारे प्रकरण पर विचार कर रहा था। हालाँकि उद्योगपति होने के कारण उसके अपने विचार थे लेकिन इस किसान औरत की समझ ने उसे यह हिसाब लगाने पर मजबूर कर दिया था कि अगर सारे शरारती तत्त्वों और अनुत्पादक फौजियों को किसी औद्योगिक काम में लगा दिया जाए तो कितनी समृद्धि पैदा होगी!
ल्वासो ने उठते समय होटल-मालिक से धीरे से कुछ कहा। बूढ़ा आदमी जोर से ठहाका लगाकर हँस पड़ा और उसने प्रशियाइयों के जाने के बाद वसन्त में छः पेटी शराब खरीदने का वादा किया।
खाना खत्म होने के साथ ही यात्रियों पर थकान हावी होने लगी और वे अपने कमरों की ओर चल दिए।
लेकिन ल्वासो की नजरों ने कुछ ताड़ लिया था। पत्नी के सोने के बाद ल्वासो ने अपने कान दीवार के एक छेद के साथ लगा दिए जिससे वह उन चीजों का पता लगा सके जिन्हें 'गलियारे के रहस्य' कहा जाता है।
एक घंटे बाद कुछ आहट सुनाई दी। दरवाजे में बने सुराख से उसने देखा, सफेद लेस से सजा नीले रंग का ऊनी सोने का गाउन पहने चर्बी की गुड़िया, जो और मोटी लग रही थी, चली जा रही है। उसके हाथ में मोमबत्ती थी। वह गलियारे के छोरवाले बड़े दरवाजे की ओर जा रही थी। लेकिन बगल का एक दरवाजा खुल गया और कुछ मिनट बाद जब वह वापस लौटी तो उसके पीछे कोर्नूदे भी आ रहा था। दोनों ने रुककर धीमी आवाज में कुछ बात की। चर्बी की गुड़िया पूरी ताकत से उसे कमरे में घुसने से रोक रही थी। पहले धीमी आवाज में हो रही बातचीत अब तेज आवाज में होने लगी थी। दुर्भाग्य से ल्वासो ज्यादा कुछ नहीं सुन सका, लेकिन कुछ बातें जरूर छनकर उस तक पहुंच गईं।
कोर्नूदे लड़की से कह रहा था, “आओ न, तुम तो बेवकूफ हो, इससे क्या नुकसान हो सकता है!"
उसने जवाब में कहा, “नहीं प्यारे, कभी-कभी ऐसे मौके आते हैं जब ऐसी चीजें ठीक नहीं होती हैं। यहाँ ऐसा करना शर्मनाक होगा।"
वह समझा नहीं और फिर से इसकी वजह पूछी। इस पर वह ऊँची आवाज में बोल पड़ी, "क्यों? तुमको यह बात समझ नहीं आती कि प्रशियाई हमारे घरों में घुस चुके हैं, बल्कि हमारे बगल के कमरे में ही हैं।”
वह चुप था। वेश्या की इस देशभक्तिपूर्ण शर्म ने कोर्नूदे की सोई गरिमा को भी जगा दिया। लड़की को बस चूमने के बाद वह तेजी से अपने कमरे में चला गया।
ल्वासो बहुत रोमांचित था। उसने दरवाजे में बने छेद से हटकर कमरे में एक चक्कर लगाया, पायजामा पहना और अपनी हड़ियल संगिनी को चूमकर अचानक जगा दिया और फुसफुसाते हुए बोला, "प्रिये, क्या तुम मुझसे प्यार करती हो?"
पूरे होटल में शान्ति छा चुकी थी। लेकिन थोड़ी ही देर बाद कहीं से, शायद तहखाने से, या फिर दुछत्ती से जोरदार खर्राटों की आवाजें आने लगीं। ऐसा लग रहा था मानो कोई बड़ी-सी केतली फदक रही हो। मि. फोलेनवी सो चुके थे।
अपनी योजना के अनुसार उन्हें दूसरे दिन सुबह आठ बजे उठकर आगे की यात्रा । के लिए रवाना होना था। सुबह सारे यात्री रसोई में एकत्र हो चुके थे। लेकिन गाड़ी, जिसकी छत पर बर्फ पड़ी थी, घोड़ों और कोचवान के बगैर होटल परिसर में खड़ी थी। उन्होंने अस्तबल से लेकर हर जगह कोचवान की तलाश कर डाली, लेकिन वह नहीं मिला। हारकर वे उसे खोजने के लिए बाहर निकल पड़े। थोड़ी ही देर में वे एक चौराहे पर थे जिसके एक तरफ गिरजाघर और दूसरी ओर छोटे-छोटे मकान बने हुए थे। उन्हें यहाँ कुछ प्रशियाई सैनिक दिखे। इनमें से एक आलू छील रहा था। थोड़ा आगे जाने पर एक अन्य सैनिक नाई की दुकान साफ करता हुआ मिला। एक दूसरा, जिसकी आँखों तक दाढ़ी थी, एक रोते बच्चे को गोद में लेकर शान्त करने का प्रयास कर रहा था। किसान औरतें, जिनके पति सेना के साथ गए हुए थे, अपने विजेताओं को इशारे से बता रही थीं कि उन्हें क्या करना है : लकड़ी काटने, शोरबा पकाने, कॉफी के बीज पीसने से लेकर कुछ भी करने को एकदम तैयार। इनमें से एक तो अपनी मेजबान, एक बूढ़ी नानी के कपड़े तक धो रहा था।
काउण्ट यह सब देख आश्चर्यचकित था। उसने चर्च के एक कर्मचारी से जब इस बारे में पूछा तो उस बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा :
“ओह! ये लोग दुष्ट नहीं हैं। ये वे प्रशियाई नहीं हैं, जिनके बारे में हम सुनते हैं। ये कहीं दूरदराज क्षेत्रों से आए हैं, जिसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। ये देश में अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़कर आए हैं। मैं पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूँ, ये भी अपने घरों को याद करके रोते होंगे। वे उतने ही दुखी हैं, जितने कि हम लोग। यहाँ पर फिलहाल उतना दुख नहीं है, क्योंकि वे हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचाते हैं और यहाँ पर वे वैसे ही काम करते हैं जैसे अपने घरों पर करते होंगे। गरीबों को एक-दूसरे की मदद करनी ही पड़ती है। ये सब युद्ध की देन है।"
कोर्नूदे को विजेताओं और पराजितों के बीच धनिष्ठ रिश्ता पच नहीं रहा था और उसने होटल में रहना ज्यादा मुनासिब समझा। ल्वासो इस मौके पर भी मजाक करने से नहीं चूका, “ये लोग इस जगह को नये सिरे से आबाद करेंगे।"
मि. कार्र-लमादों ने गम्भीरता के साथ कहा, “वे अपनी गलतियाँ सुधार रहे हैं।"
बहरहाल उन्हें अपना कोचवान नहीं मिला। काफी देर तक खोजने के बाद आखिरकार वह उन्हें कस्बे के एक कफे में मिला, जहाँ वह तोपखाने के अफसर के साथ बैठा था। काउण्ट ने उसे आवाज दी:
"क्या तुम्हें आठ बजे तैयार रहने को नहीं कहा गया था?"
"हाँ, कहा तो गया था, लेकिन उसके बाद मुझे एक और आदेश दिया गया था।"
"किसने दिया?"
"प्रशियाई कमाण्डर ने।"
"उसने क्या आदेश दिया?"
“गाड़ी न तैयार करने का।"
"क्यों?"
"इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। बेहतर होगा, आप उन्हीं से जाकर पूछे। उन्होंने मुझे गाड़ी न तैयार करने का हुक्म दिया था और मैंने वही किया।"
“क्या उन्होंने तुमको यह आदेश खुद दिया?"
"नहीं, उनकी तरफ से होटल-मालिक ने आदेश दिया।"
"कब की बात है यह?"
“कल रात जब मैं सोने जा रहा था।"
तीनों पुरुष परेशानहाल वापस होटल लौट आए। उन्होंने फोलेनवी के बारे में पूछा तो नौकर ने बताया कि दमे के मरीज होने के कारण वह दस बजे से पहले नहीं उठते और आग लगने के अलावा किसी और कारण से उसके पहले न जगाने की उन्होंने सख्त हिदायत दे रखी है।
वे अफसर से मिलना चाहते थे, लेकिन यह असम्भव था। क्योंकि होटल में रहने के दौरान सिर्फ फोलेनवी ही उससे नागरिक मामलों पर बातचीत कर सकता था। उनके सामने प्रतीक्षा करने के सिवा और कोई रास्ता न था। महिलाएँ अपने कमरों में चली गईं और बेकार के कामों में जुट गईं।
कोर्नूदे रसोई की बड़ी चिमनी के पास बैठ गया, जहाँ तेज आग जल रही थी। उसने कफे से एक छोटी मेज मँगाई तथा बीअर का ऑर्डर दिया। इसके बाद उसने अपना पाइप सुलगा लिया जो लोकतंत्र प्रेमियों के बीच खुद उसके जैसी ही अहम जगह रखता था; क्योंकि कोर्नूदे की सेवा करने के जरिए वह अपने देश की सेवा कर रहा था। उसका पाइप बेहद खूबसूरत था। उसका रंग अपने मालिक के दाँतों की तरह ही काला था लेकिन वह चमकदार, पकड़ने में आसान और हर तरह से उपयुक्त था। कोर्नूदे निश्चल बैठा था, उसकी आँखें चिमनी के नीचे जलती आग की लपटों और अपने प्रिय पेय पर जमी हुई थीं। बीअर के हर घूट के साथ वह सन्तुष्ट भाव से अपनी पतली उँगलियाँ अपने बचे-खुचे खिचड़ी बालों में फिराता, और फिर बीअर की झाग से भीगी मूंछों को चाटता था।
टाँगें सीधी करने के बहाने ल्वासो देहात के दुकानदारों से अपनी शराब के लिए ऑर्डर लेने निकल गया। काउण्ट और मिल-मालिक ने राजनीति पर चर्चा शुरू कर दी। उन्हें फ्रांस का भविष्य साफ दिखाई दे रहा था। एक को ऑरलियंस1 दोहराये जाने का भरोसा था तो दूसरे को एक ऐसे अज्ञात नायक की प्रतीक्षा थी जो निराशा के दौर में देश की रक्षा करने को अचानक प्रकट हो जाएगा-कोई गुएसक्लें या जोन ऑफ आर्क या क्या पता एक और नेपोलियन प्रथम सामने आ जाए! काश, राजकुमार .. अभी बच्चे न होते!
(1 ऑरलियंस-फ्रांस का एक शहर जिसे 1429 में जोन ऑफ आर्क के नेतृत्व में अंग्रेजी कब्जे से मुक्त कराने के साथ ही फ्रांसीसियों की जीत का सिलसिला शुरू हो गया था।-सं.)
कोर्नूदे उनकी बातें सुनते हुए इस तरह मुस्कुरा रहा था जैसे भविष्य का पता सिर्फ उसे ही हो। उसके पाइप से निकलता धुआँ रसोई में खुशबू बिखेर रहा था।
जैसे ही दस बजे, फोलेनवी आता दिखाई दिया, उन्होंने जल्दी-जल्दी उस पर सवाल दागने शुरू कर दिए लेकिन उसने बगैर किसी हेर-फेर के दो-तीन बार यही शब्द दोहराए :
"अफसर ने मुझसे कहा-'देखो फोलेनवी, यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि इन यात्रियों को ले जाने के लिए कल गाड़ी न तैयार की जाए। मेरे आदेश के बगैर वे यह कस्बा नहीं छोड़ेंगे। बस, आगे कुछ नहीं।"
उन्होंने अफसर से मिलने की इच्छा जताई। काउण्ट ने उसे अपना कार्ड भेजा, जिस पर कार्र-लमादों ने अपना नाम तथा सारी उपाधियाँ भी लिख डालीं। प्रशियाई ने कहलवाया कि नाश्ता लेने के बाद यानी दोपहर एक बजे वह इन दोनों से मिलेगा।
महिलाएँ एक बार फिर खाने की मेज पर इकट्ठा हुई और खामोशी से थोड़ा-बहुत खाना खाया। चर्बी की गुड़िया बीमार और परेशान लग रही थी।
वे लोग अपनी कॉफी खत्म कर रहे थे कि अफसर की तरफ से बुलावा आ गया। ल्वासो भी उनके साथ हो लिया। उन लोगों ने अफसर के सामने और गम्भीर प्रभाव छोड़ने के इरादे से कोर्नूदे को भी साथ चलने के लिए कहा लेकिन उसने गर्व से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उसे जर्मनों से कोई लेना-देना नहीं। वह फिर आग के पास जाकर बैठ गया और एक लिटर बीअर का आदेश दे दिया।
सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद जब वे तीनों अफसर के कमरे में घुसे तो उन्होंने पाया कि यह होटल का सबसे शानदार कमरा था। आरामकुर्सी पर बैठे जर्मन अफसर ने अपने पाँव सामने मेण्टलपीस पर टिका रखे थे। वह एक लम्बा पोर्सलेन का पाइप पी रहा था और उसने एक भड़कीला ड्रेसिंग गाउन पहन रखा था जो निस्सन्देह घटिया पसन्दवाले किसी व्यक्ति के घर से लूटा गया था। वह न कुर्सी से उठा, न उनका अभिवादन लिया बल्कि वह उनकी तरफ देख भी नहीं रहा था। यह सब सैनिक विजेता में तब्दील हो गए बदमाश के स्वाभाविक पाजीपन की गवाही देता था।
कुछ पल बाद उसने कहा, “क्या चाहते हैं आप लोग?"
काउण्ट अब प्रवक्ता की भूमिका में आ गया, “सर, हम अपनी यात्रा आगे जारी रखना चाहते हैं।"
"नहीं।"
"क्या मैं इनकार का कारण पूछ सकता हूँ?"
“क्योंकि मेरी इच्छा नहीं है।"
"लेकिन मैं आपको सादर ध्यान दिलाना चाहूँगा कि आपके जनरल-इन-चीफ ने हमें दिएप जाने की अनुमति दी है और जहाँ तक मुझे जानकारी है, हमने भी आपकी शान में कोई गुस्ताखी नहीं की है।"
"मैं नहीं चाहता-बस, इतना ही काफी है। आप लोग जा सकते हैं।"
तीनों ने झुककर अभिवादन किया और लौट गए।
दोपहर काफी उदास रही। वे यह अनुमान नहीं लगा पा रहे थे कि जर्मन अफसर क्या चाहता है। सबके दिमाग में एक ही विचार कौंध रहा था कि कोई बड़ी मुसीबत आनेवाली है। सब रसोई में जमा थे और उनके बीच इस मसले पर अन्तहीन बहस जारी थी। उनके मन में दुनिया भर की आशंकाएँ जन्म ले रही थीं। शायद उन्हें बन्धक बनाकर रखा गया है लेकिन किस कारण से? या उन्हें बन्दी बना लिया जाएगा-या शायद रिहाई की एवज में मोटी रकम माँगी जाएगी। ये विचार आते ही उनमें दहशत समा गई। जो जितना अमीर था, वह उतना ही डरा हुआ था। उन्हें अभी से दिख रहा था कि वे अपनी जान के बदले इस धृष्ट सैनिक अफसर को सोने की थैलियाँ चढ़ा रहे हैं। वे अपनी समृद्धि को छिपाकर गरीबों जैसा दिखने के उपाय सोचने में लग गए। ल्वासो ने अपनी घड़ी में लगी सोने की चेन को उतारकर जेब में छिपा लिया। रात घिरने के साथ ही उनका डर बढ़ गया। रात के भोजन में अभी दो घंटे का समय बाकी था इसलिए मदाम ल्वासो ने ताश खेलने का प्रस्ताव रखा। इससे सबका ध्यान बँटा रहेगा। सबने इस प्रस्ताव को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। कोर्नूदे पाइप पी चुका था और वह भी विनम्रता दिखाते हुए खेल में शामिल हो गया।
काउण्ट पत्ते फेंट रहा था और चर्बी की गुड़िया पहले दौर में ही हारकर बाहर हो गई। खेल में वे ऐसा रमे कि दिलों में समाया डर भूल-सा गया। कोइँद देख रहा था कि ल्वासो यहाँ भी धूर्तता से काम ले रहा था।
जब वे खाने की मेज पर जा रहे थे तभी मि. फोलेनवी फिर दिखाई दिए और खरखराती आवाज में जोर से कहा :
"प्रशियाई अफसर ने मुझे मिस एलिजाबेथ रूसे से यह पूछने का आदेश दिया है कि क्या उन्होंने अपना फैसला बदल दिया?"
चर्बी की गुड़िया खड़ी रह गई और उसका चेहरा पीला पड़ गया। फिर अचानक उसका चेहरा लाल हो गया और उसका गुस्सा उबल पड़ा। पहले तो वह कुछ नहीं बोल सकी। आखिरकार वह भड़ककर बोली, “तुम उस गन्दे जानवर, उस बेवकूफ मुर्दार प्रशियाई से जाकर कह सकते हो कि मैं अपना फैसला नहीं बदलूँगी, नहीं, नहीं, कभी नहीं, समझे तुम?"
होटल-मालक चला गया। यात्रियों ने चर्बी की गुड़िया को चारों ओर से घेर लिया और अफसर के साथ हुई उसकी बातचीत के बारे में पूछने लगे। उसने पहले तो प्रतिरोध किया लेकिन फिर परेशान होकर बोल पड़ी, “वह क्या चाहता है? सचमुच आप यह जानना चाहते हैं कि वह क्या चाहता है? वह मेरे साथ सोना चाहता है।"
सबकी जबान पर ताले लग गए। क्षोभ से उनको बोलने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे। कोर्नूदे ने इतने जोर से मेज पर मुक्का मारा कि गिलास गिरकर टूट गया। इस घृणित सैनिक के खिलाफ रोष के स्वर फूट पड़े, गुस्से का एक प्रस्फोट-सा हुआ, एक प्रतिरोधी एकजुटता फौरन कायम हो गई, मानो उस लड़की से वसूली जा रही कुर्बानी के साथ-साथ उनमें से हरेक से माँग की गई हो। काउण्ट ने अधिकारपूर्ण स्वर में कहा, "उन्होंने साबित कर दिया है कि वे असभ्य और जंगली हैं।" महिलाओं ने विशेष रूप से चर्बी की गुड़िया के प्रति हमदर्दी जताई। दोनों भली ननों ने, जो सिर्फ खाने के वक्त ही दिखाई देती थीं, अपने सिर झुका लिये और कुछ नहीं कहा।
बहरहाल, गुस्से की पहली लहर गुजर जाने के बाद उन्होंने खाना खा लिया, . लेकिन बातचीत काफी कम हुई। वे सोच रहे थे।
महिलाएँ खाना खाकर जल्द ही कमरे में सोने चलीं गईं। पुरुष वहाँ बैठे पाइप पीते रहे। उन्होंने ताश खेलने का फैसला किया और फोलेनवी को भी आमंत्रित किया। वे उससे अफसर को मनाने के बारे में कुछ पूछना चाहते थे, पर वह पूरी तरह खेल में रमा हुआ था मानो उनकी बातें उसे सुनाई ही नहीं दे रही हों। कुछ पूछने पर वह कहता, “खेल पर ध्यान दीजिए, सर, खेल पर।" वह ऐसा डूबा था कि बँखारकर कफ निकालना भी भूल गया। उसके सीटी मारते फेफड़ों से पूरी सरगम निकल रही थी-गहरे भारी सुरों से लेकर मुर्गे की कुड़कुड़ाहट तक।
वह खेल में इतना रम चुका था कि एक नींद पूरी करके आई पत्नी के बुलाने पर भी नहीं उठा। आखिरकार वह अकेले ही सोने चली गई, क्योंकि वह जल्दी सोने और सुबह तड़के उठनेवाली महिलाओं में से थी जबकि उसका पति उल्लू की तरह दोस्तों के साथ पूरी रात काट देनेवालों में था। फोलेनवी ने उसे आवाज दी, "मेरा क्रीम लगा मुर्गा आग के पास रख देना!" और फिर खेल में रम गया। जब यात्रियों ने देखा कि फोलेनवी से उन्हें कुछ हासिल होनेवाला नहीं तो उन्होंने खेल बन्द कर सोने का फैसला किया।
अगले दिन वे सब जल्दी ही उठ गए। उनके मन में कहीं से यह उम्मीद थी कि शायद उन्हें यात्रा की अनुमति मिल जाए। एक और दिन उस भयानक सराय में गुजारने का भय इस उम्मीद को और बढ़ा रहा था।
पर आज फिर घोड़े अस्तबल में ही थे और कोचवान गायब था। कुछ नहीं सूझा तो वे यूँ ही जाकर गाड़ी के इर्द-गिर्द टहलने लगे।
सुबह का नाश्ता किसी को अच्छा नहीं लग रहा था और यह साफ था कि मोटी लड़की के प्रति लोगों के व्यवहार में एक ठण्डापन आ गया था। रात के दौरान, जब मन शान्त होता है, उन्होंने अपने फैसले में कुछ सुधार कर लिया था। वे मन ही मन लगभग यह मना रहे थे कि काश, प्रशियाई अफसर को रात में चुपके से यह लड़की मिल जाती और उसके सहयात्रियों को सुबह एक सुखद आश्चर्य होता। इससे बेहतर क्या हो सकता था? और फिर किसी को पता भी कहाँ चलता! वह अफसर से कह सकती थी कि उससे अपने साथियों की परेशानी नहीं देखी जा रही थी, इसलिए वह उसका कहा मान रही है। वैसे भी ऐसी लड़कियों को इन सब बातों का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता!
लेकिन कोई भी अभी इस विचार को प्रकट करने की हिम्मत नहीं रखता था।
दोपहर में जब वे बोरियत से मरे जा रहे थे तो काउण्ट ने गाँव की तरफ घूमकर आने का प्रस्ताव रखा। सबने गर्म कपड़े लपेटे और एक छोटा-सा दल गाँव की ओर निकल पड़ा, बस कोर्नूदे और दोनों ननें उनके साथ नहीं गईं। कोर्नूदे आग के पास जाकर जमा रहा। दोनों ननों का ज्यादा समय गिरजाघर में बीतता था या पादरी के पास।
धीरे-धीरे ठण्ड बढ़ती जा रही थी। उनके नाक और कान ठण्ड से लाल हो रहे थे। पैर सुन्न हो रहे थे। उनके लिए एक-एक कदम उठाना मुश्किल हो रहा था। थोड़ी देर बाद वे मैदान में पहुँचे जो पूरी तरह बर्फ से ढंका हुआ था। अन्तहीन सफेदी के इस विस्तार ने उन्हें और अधिक उदास कर दिया। वे सब भारी दिल से वहाँ से तुरन्त वापस हो लिये।
चारों महिलाएँ तीनों पुरुषों से आगे चल रही थीं। ल्वासो, जो हालात को समझ रहा था, अचानक पूछ बैठा कि क्या उन्हें लगता है कि वह लड़की उन्हें यहाँ रोके हुए है? हमेशा शिष्टता बरतनेवाले काउण्ट ने कहा कि यदि वह अपनी इच्छा से जाए तो ठीक अन्यथा इतनी बड़ी कुर्बानी के लिए उस पर दबाव नहीं डाल सकते। मि. कार्र-लमादों ने आशंका जताई कि यदि फ्रांसीसी सेना दिएप के रास्ते वापसी करती है तो दोनों सेनाओं के बीच टोटे में भिड़न्त होने की पूरी सम्भावना है। यह बात सुनकर दोनों और परेशान हो गए।
ल्वासो ने पूछा, “क्या हम यहाँ से पैदल नहीं जा सकते?"
काउण्ट ने कन्धे उचकाते हुए कहा, “इस हिमपात में पत्नियों के साथ पैदल जाने के बारे में हम सोच भी नहीं सकते। यदि हमने ऐसा किया भी तो वे दस मिनट के अन्दर हमारा पीछा करके हमें पकड़ लेंगे। हमें बन्दी बना लिया जाएगा और हम सब इन सैनिकों की दया पर होंगे।”
यह बात सच थी और एक बार फिर उन्होंने चुप्पी साध ली।
महिलाएं अपने कपड़ों के बारे में बातें कर रही थीं, लेकिन उनकी बातों में खालीपन का एक एहसास था। अचानक सड़क पर सामने की ओर से जर्मन अफसर आता दिखाई दिया। वर्दी में कसी उसकी लम्बी, ततैया जैसी आकृति बर्फीले मैदान की पृष्ठभूमि में साफ दिख रही थी। वह टाँगें खोलकर मार्च-सा करता आ रहा था। यह एक खास सैनिक ढंग की चाल होती है जिसका मकसद होता है कि बड़े ध्यान से चमकाये गए जूते आपस में घिसकर बदरंग न हो जाएँ।
महिलाओं की बगल से गुजरते हुए उसने अपना सिर झुकाकर उनका अभिवादन किया, जबकि पुरुषों की तरफ हिकारतभरी निगाह डालकर आगे बढ़ गया। पुरुषों ने भी उसकी तरफ न देखकर अपने सम्मान को बरकरार रखा। सिर्फ ल्वासो ने अपना हैट उठाने का इशाराभर किया।
चर्बी की गुड़िया के कान गुस्से से लाल हो गए और उसके साथ चल रही महिलाओं को खासा अपमानबोध हुआ, क्योंकि वे उस लड़की के साथ चल रही थीं जिसके साथ अफसर इतने अशिष्ट ढंग से पेश आया था।
लेकिन जल्द ही उस अफसर की कदकाठी और उसका चेहरा-मोहरा उनकी बातों का विषय बन गया। मदाम कार्र-लमादों चूँकि कई अफसरों को नजदीक से जानती थी, इसलिए वह खुद को इन मामलों का विशेषज्ञ मानती थी। उसे यह अफसर खासा भा गया था, यहाँ तक कि उसे इस बात का मलाल था कि वह फ्रेंच नहीं था, नहीं तो वह एक ऐसा खूबसूरत हुस्सार साबित होता जिसका साथ पाने के लिए औरतें लालायित रहतीं।
होटल लौटकर फिर किसी के पास कोई काम नहीं था। इन परिस्थितियों के बारे में कुछ तीखी टिप्पणियाँ की गईं। खाने की मेज पर भी लोग चुप्पी साधे रहे और भोजन लेने के तुरन्त बाद लोग सोकर समय बिताने के लिए अपने-अपने कमरों में चले गए।
अगले दिन सुबह एक बार फिर सब इकट्ठा हुए। अब उनके चेहरों पर परेशानी साफ झलक रही थी। महिलाएँ अब चर्बी की गुड़िया से इक्का-दुक्का शब्द ही बोल रही थीं।
तभी गिरजाघर की घण्टियाँ सुनाई दीं। शायद किसी का बपतिस्मा हो रहा था। चर्बी की गुड़िया के एक बच्चा था जो ईवेतो में किसानों के पास पल रहा था। पिछले एक साल से उसने बच्चे को देखा नहीं था, उसे याद तक नहीं किया था। लेकिन किसी बच्चे के बपतिस्मा का खयाल आते ही उसके मन में अपने बच्चे के लिए कोमल भावनाएँ जोर मारने लगी और समारोह में शामिल होने की उसकी इच्छा जाग उठी।
जैसे ही वह रवाना हुई, सबने आँखों ही आँखों में एक-दूसरे को देखा और कुर्सियाँ आसपास खींचकर बैठ गए। वे अब इस मसले का कोई अन्तिम हल ढूँढ़ना चाहते थे। ल्वासो को एक बात सूझी : चर्बी की गुड़िया को यहाँ छोड़कर उन्हें आगे . जाने की अनुमति दे दी जाए।
उन्होंने मि. फोलेनवी के जरिये अफसर तक अपनी बात पहुँचाई, लेकिन थोड़ी ही देर बाद वह वापस आ गया। जर्मन मानव-स्वभाव को अच्छी तरह जानता था और उनकी एक नहीं सुनी थी। उसने यह संकेत दे दिया कि उसकी इच्छा पूरी होने तक सब को यहीं रुकना पड़ेगा।
अब मिसेज़ ल्वासो का गुस्सा फट पड़ा। उसने कहा :
“हम यहाँ बूढ़े होकर मरने तक नहीं पड़े रहेंगे। अगर इस औरत का धन्धा ही हर किस्म के लोगों के साथ सोने का है तो वह एक और को कैसे इनकार कर सकती है। मैं कह सकती हूँ कि रूएन में वह किसी में अन्तर नहीं करती थी, यहाँ तक कि कोचवानों के साथ भी सो चुकी होगी। हाँ, मदाम, प्रीफेक्ट के कोचवान! मैं अच्छी तरह इस बात को जानती हूँ क्योंकि कोचवान हमारे यहाँ से ही शराब ले जाया करता था। आज इसी औरत के कारण हमें यहाँ सड़ना पड़ रहा है, यह सब्र की इन्तहा है। मेरे खयाल से अफसर अपनी जगह बिल्कुल ठीक है। वह लम्बे समय से अकेलापन सह रहा है और निस्सन्देह वह हम तीनों में से किसी को चुन सकता था, लेकिन नहीं, वह तो साझा सम्पत्ति से ही तसल्ली करने को तैयार है। वह विवाहित महिलाओं का सम्मान करना जानता है। और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यहाँ वह मालिक है। उसे केवल कहने भर की देर थी, 'मुझे यह चाहिए, और उसके सैनिक हमें जबरन उठाकर ले जाते।"
दोनों महिलाओं के शरीर में सिहरन दौड़ गई। खूबसूरत मदाम लमादों की आँखें चमक उठीं और उसका चेहरा पीला पड़ गया, मानो वह अफसर को वाकई उसे उठाकर ले जाते देख रही हो।
पुरुष बैठकर इस मसले पर विचार-विमर्श करने लगे। गुस्से से बौराया ल्वासो चाहता था कि 'उस बदजात' को हाथ-पाँव बाँधकर दुश्मन के पास पहुँचा दिया जाए। लेकिन काउण्ट की तीन पीढ़ियाँ राजदूतों से जुड़ी रही थीं और उसे कूटनीति का गुण विरासत में मिला था। वह होशियारी से काम लेने के पक्ष में था। उसने कहा :
"बेहतर है कि हम मिलकर कुछ फैसला करें।" वे बैठकर साजिश रचने लगे।
महिलाएँ अलग बैठी धीमी आवाज में बतिया रही थीं। हर कोई सुझाव दे रहा था और बात इधर-उधर भटक रही थी। सभी कुछ बहुत सौहार्दपूर्ण था। महिलाएँ एकदम अजीबोगरीब बातें भी बड़ी नजाकत और सलीके से कह रही थीं। वे जिस तरह की भाषा का प्रयोग कर रही थीं, उसे सुनकर कोई भी अजनबी कुछ नहीं समझ पाता। वे काफी विनम्र नजर आ रही थीं और इस तरह की बातों से उनके शरीर में बिजलियाँ कौंध रही थीं। वे काफी उत्साहित थीं और पूरी रौ में थीं। वे बड़े प्यार और ऐन्द्रिकता के साथ बातें कर रही थीं, जैसे कोई लालची रसोइया अपने मालिक के लिए स्वादिष्ट व्यंजन तैयार कर रहा हो!
इन बातों में उन्हें इतना मजा आने लगा कि उनके दिलों में रौनक लौट आई। काउण्ड को कुछ लतीफे फीके लगे, लेकिन वे इतनी अच्छी तरह सुनाये गए थे कि उसे मुस्कुराना पड़ा। ल्वासो ने कुछ अश्लील किस्म के लतीफे सुनाए, लेकिन इस बार किसी ने बुरा नहीं माना। सबके दिमाग में मदाम ल्वासो की यह निर्मम बात घूम रही थी : 'उसका यही धन्धा है, तो अफसर के साथ सोने में उसे क्यों परहेज है?' मदाम कार्र-लमादों शायद सोच रही थी कि चर्बी की गुड़िया की जगह वह होती तो एक बार से ज्यादा कभी न मना करती।
उन्होंने उसे घेरने की योजना पर विस्तार से चर्चा की मानो किसी दुर्ग को घेरने जा रहे हों। सबने अपनी-अपनी भूमिका बाँट ली। उन्होंने हमले की योजना तय की, बहाने सोचे, अचानक धावा बोलकर चौंका देने के उपाय सोचे ताकि यह जीता-जागता दुर्ग दुश्मन को अपने कमरे में स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाए।
कोर्नूदे इन बातों से अलग रहा और इस बहस में उसने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
वे अपनी बातों में इतने व्यस्त थे कि चर्बी की गुड़िया के अन्दर आने की उन्हें खबर तक नहीं हुई। काउण्ट ने धीमे से 'श्श्श्श!' की आवाज की। सबकी आँखें उसकी ओर घूम गईं। अचानक छा गई चुप्पी से लड़की हिचकिचा गई और कुछ देर के लिए वे भी सकपका गए। काउण्टेस ऐसे दोहरेपन की औरों से ज्यादा आदी थी। उसने प्यार-भरे अन्दाज में उससे पूछा, “क्या बपतिस्मा का कार्यक्रम अच्छा रहा?"
मोटी लड़की में भावनाएँ उफान मारने लगीं। उसने कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताया। उसने कहा, “कभी-कभी प्रार्थना करना अच्छा होता है।"
दोपहर के भोजन के समय इन महिलाओं का लड़की के प्रति व्यवहार नम्र था। वे उसका विश्वास जीतना चाहती थीं। खाने की मेज पर बातचीत शुरू हुई। यह बातचीत बलिदान के उदाहरणों से शुरू हुई।
उन्होंने प्राचीन उदाहरण दिए-जूडिथ और होलोफरनेस, ल्यूक्रेस और सेक्सटस और फिर क्लियोपेट्रा की कहानी सुनाई गई कि वह कैसे अपने रूप का इस्तेमाल कर दुश्मनों को अपने बस में कर लिया करती थी। फिर इन जाहिल धनपशुओं की कल्पना में उपजी एक विचित्र कहानी उसे सुनाई गई कि कैसे रोम की औरतें कापुआ गई थी ताकि वे हन्नीबाल और उसके अफसरों और उसके भाड़े के सिपाहियों को फुसलाकर अपनी बाँहों में सुला दें। उन्होंने उन तमाम औरतों की कहानियाँ सुनाई जिन्होंने दुश्मन के हाथ में पड़ने के बाद अपने शरीर को जंग का मैदान और सफलता का हथियार बना लिया। उन्होंने एक अंग्रेज परिवार का भी किस्सा सुनाया जिसने अपनी एक औरत को एक खतरनाक बीमारी से संक्रमित कराया, ताकि वह बोनापार्ट को बीमार कर सके, लेकिन किसी चमत्कार के चलते बोनापार्ट इस संक्रामक बीमारी से बच गया।
ये कहानियाँ ऐसे रोमांचित कर देनेवाले और उत्साह से भर देनेवाले अन्दाज से सुनाई जा रही थीं कि उन्हें सुनकर कोई भी इनके अनुकरण के लिए तैयार हो जाए।
इन कहानियों को सुनने के बाद कोई भी महिला इस बात पर आँख मूंदकर विश्वास कर सकती थी कि उसका एकमात्र कर्तव्य अपने रूप का बलिदान करना और विजेता सैनिकों की शारीरिक जरूरतों को पूरा करना ही है।
दोनों ननें वहाँ मौजूद रहकर भी अपने खयालों में खोई थीं। चर्बी की गुड़िया ने कुछ नहीं कहा। पूरी दोपहर उन्होंने उसे सोचने दिया। वे अब उसे 'मदाम' के बजाय 'मदमोजाल1' कहकर पुकारने लगी थीं। शायद वे उसका दर्जा नीचे गिराकर उसे उसकी शर्मनाक स्थिति का एहसास कराना चाहती थीं।
रात का खाना लगने के दौरान मि. फोलेनवी एक बार फिर वहाँ आए और रटे हुए अन्दाज में बोले, “प्रशियाई अफसर ने मुझे मिस एलिजाबेथ रूसे से यह पूछने का आदेश दिया है कि क्या उन्होंने अपना फैसला बदल दिया है?"
चर्बी की गुड़िया ने रूखे अन्दाज में कहा, “नहीं, मोस्यू2।"
(1 मदमोजाल-कुमारी 2 मोस्यू-श्रीमान्। -सं.)
भोजन के दौरान गठबन्धन फिर कमजोर पड़ गया। ल्वासो ने तीन बार नाराजगी में कोई टिप्पणी की। हर किसी ने नये उदाहरण पेश करने के लिए दिमाग दौड़ाया लेकिन किसी को कुछ नहीं सूझा। काउण्टेस को उस समय धार्मिक उपदेश की सख्त जरूरत महसूस हुई। काउण्टेस ने बड़ी नन से सन्तों के परोपकार की कहानियाँ सुनाने का आग्रह किया। इन सन्तों के कई कृत्य आज अपराध माने जाते लेकिन चर्च ने उन्हें क्षमा कर दिया क्योंकि वे भगवान के गौरव या मानवता की भलाई के लिए किए गए थे। यह एक ताकतवर दलील थी। काउण्टेस ने इस पर काफी जोर दिया।
कुल मिलाकर, नन ने जाने-अनजाने साजिश को पुरजोर समर्थन दिया था। उन्होंने उसे दब्बू समझ रखा था, लेकिन उसने दिखा दिया था कि वह साहसी, बड़बोली, यहाँ तक कि उग्र भी हो सकती है। ऐसा लगता था कि वह अपनी आस्था पर अडिग है और उसका भरोसा अटूट है। उसने कहा कि अब्राहम का बलिदान तो बहुत सरल था। वह खुद भी दैवी आदेश पर अपने माता या पिता की हत्या कर सकती थी। उसके विचार में कुछ भी बुरा नहीं था, अगर उद्देश्य उच्च हो तो भगवान कभी नाराज नहीं होगा। काउण्टेस ने अपनी अनजान सहयोगी की बात को बल प्रदान करने के लिए कहा, “साध्य साधन को उचित ठहराता है।"
फिर उसने उससे पूछा, “तो मेरी बहन, तुम यह मानती हो न कि अगर उद्देश्य अच्छा हो तो भगवान आपकी भावनाओं को स्वीकार करता है?"
"इसमें कोई शक नहीं है, मदाम! अगर किसी गलत काम के पीछे भी उद्देश्य पवित्र हो तो वह सद्कार्य बन जाता है।"
दोनों ननें महिलाओं को सन्तों की कहनियाँ सुनाने लगीं। बीच-बीच में वे उनके सवालों के जवाब भी दे रही थीं। इन ननों की बातों का असर चर्बी की गुड़िया पर होता दिखाई दे रहा था। अब बातचीत का रुख थोड़ा बदल गया था। दोनों ननों ने अपने बारे में बताना शुरू किया। उन्होंने बताया कि चेचक से ग्रस्त सैकड़ों सैनिकों की देखभाल के लिए उन्हें हाव के अस्पतालों से बुलावा भेजा गया है। लेकिन प्रशियाई अफसर की उच्छंखलता के कारण उन्हें यहाँ रुकना पड़ा है। उनके यहाँ रुकने से बड़ी संख्या में फ्रांसीसी सैनिक मर जाएँगे जिनकी जान शायद बचाई जा सकती थी! सैनिकों की सेवा करना उनकी विशेषता थी। वे क्रीमिया, इटली, आस्ट्रिया में रह चुकी थीं। उन्होंने बताया कि वे जंग के दौरान युद्धभूमि से घायलों को निकालकर अस्पतालों तक पहुँचाती थीं। बड़ी नन के चेहरे पर मौजूद अनगिनत दाग युद्ध की विभीषिका की दास्तान को और असरदार बना रहे थे।
उनकी बातों का ऐसा प्रभाव पड़ा कि लोगों के पास कहने के लिए अब कोई बात ही नहीं बची। जल्द ही सभी अपने-अपने कमरों में चले गए और दूसरे दिन काफी देर बाद नीचे उतरे।
नाश्ते के दौरान चुप्पी छाई रही। वे बीज को अँखुआने और फल देने के लिए समय दे रहे थे। खाने के बाद काउण्टेस ने बाहर घूमने का प्रस्ताव रखा, जिसे सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। काउण्ट चर्बी की गुड़िया की बाँह में बाँह डाले उनके पीछे चल रहा था। अपनी प्रतिष्ठा का लाभ उठाते हुए वह अभिभावक की भूमिका में आ गया था। वह उसे 'मेरी बच्ची' जैसे सम्बोधनों से पुकार रहा था। जल्द ही वह मुख्य मुद्दे पर आ गया :
“तो तुमने यह फैसला किया है कि हम यहीं रहें और पराजय के बाद होनेवाली हिंसा का सामना करें क्योंकि तुम एक बार वह समर्पण करने को तैयार नहीं हो जो तुम जीवन में न जाने कितनी बार कर चुकी हो?"
चर्बी की गुड़िया ने कोई जवाब नहीं दिया।
फिर काउण्ट ने स्नेहपूर्वक, तर्कों से और अन्ततः भावनात्मक दबाव से उसे कमजोर करने की कोशिश की। वह जानता था कि आग्रही या स्नेहिल दिखाते हुए भी किस प्रकार 'काउण्ट' बने रहा जाता है। वह लड़की को कुर्बानी के लिए उकसाने लगा और फिर अचानक खुशमिजाजी से कहा :
“प्रिय, शायद तुमको यह नहीं पता कि उसके पास डींग हाँकने को यह हो जाएगा कि वह एक खूबसूरत लड़की को जानता था, जो बात उसके देश में मुश्किल है।"
चर्बी की गुड़िया ने काउण्ट को कोई जवाब नहीं दिया और आगे बढ़कर अन्य लोगों के साथ हो ली।
जैसे ही वे वापस होटल में पहुँचे, चर्बी की गड़िया अपने कमरे में चली गई। बाकी लोग इस दुविधा में पड़े थे कि वे क्या करें। बेचैनी अपने चरम पर थी। अगर वह ऐसे ही अड़ी रही तो क्या होगा?
भोजन का वक्त आया। वे बैठे प्रतीक्षा कर रहे थे। आखिरकार मि. फोलेनवी कमरे में आए और कहा कि मिस रूसे की तबियत ठीक नहीं है, इसलिए वे भोजन पर नहीं आएँगी। सबके कान खड़े हो गए। काउण्ट होटल-मालिक के पास आया और धीमी आवाज में पूछा :
“क्या, वह अन्दर है?"
"हाँ।"
सुविधा के लिए काउण्ट मुँह से कुछ नहीं बोला सिर्फ सिर हिला दिया। तुरन्त ही सबने राहत की साँस ली और उनके चेहरे पर चमक आ गई। ल्वासो ने जोर से कहा:
“यदि यहाँ शैम्पेन मिल सके तो मैं उसकी कीमत चुकाने को तैयार हूँ।"
थोड़ी ही देर बाद होटल-मालिक को चार बोतलों के साथ आता देख मिसेज ल्वासो के सीने पर साँप लोट गए।
अचानक ही सब बातचीत करने लगे। सबके चेहरे पर खुशियाँ दिखाई दे रही थीं। काउण्ट को अचानक लगा कि मदाम लमादों वाकई सुन्दर है और मिल-मालिक काउण्टेस पर फिदा हो रहा था। सबकी बातों में जीवन्तता और रौनक आ गई थी।
अचानक ल्वासो ने दोनों हाथ उठाए और कहा, “शान्त!" सबने आश्चर्यचकित हो चुप्पी साध ली, बल्कि वे डर-से गए। उसने कान लगाकर कुछ सुनने की कोशिश की और 'श्श्श्श !' की आवाज की। उसकी आँखें और हाथ छत की ओर थे, जैसे । वह कुछ सुनने की कोशिश कर रहा हो। फिर उसने स्वाभाविक अन्दाज में कहा, "सब ठीक चल रहा है, कहीं कोई दिक्कत नहीं है।"
पहले तो वे समझ नहीं पाये, लेकिन जल्द ही वे जोरदार ठहाके के साथ हँस पड़े। पन्द्रह मिनट बाद ल्वासो ने फिर यही हरकत दोहराई। पूरी शाम यही सिलसिला चलता रहा। बीच-बीच में वह ऊपर की मंजिल पर किसी को आवाज देने का नाटक करता और कोई द्विअर्थी सलाह देता था। कभी-कभी वह आह भरकर कहता, “बेचारी लड़की!" फिर वह गुस्से से दाँत पीसते हुए कहता, “ओह! प्रशियाई बदमाश!" कभी-कभी वह दुखी-सी आवाज बनाकर कहता, “बहुत हो गया! बहुत हो गया!" और फिर मानो स्वयं से बात करते हुए कहता, “काश, हम उसे दोबारा देख पाते। अरे, क्या उस बेचारी को मार ही डालेगा!"
ये सारे मजाक घटिया थे पर वे इसका आनन्द ले रहे थे। कोई भी इनसे आहत नहीं था क्योंकि उनके इर्द-गिर्द का माहौल ऐन्द्रिक विचारों से भरा हुआ था।
खाने के बाद मीठा खाते हुए महिलाओं ने भी इशारों-इशारों में कुछ मजाक किए। उनकी आँखें चमक रही थीं। वे बहुत अधिक पी चुकी थीं। काउण्ट ने अपनी तुलना उस क्षत-विक्षत जहाज के नाविकों से की जिन्हें जमीन दिख जाती है। इसे काफी पसन्द किया गया।
ल्वासो अचानक उठ खड़ा हुआ। उसके हाथ में शैम्पेन से भरा गिलास था। उसने कहा, “यह जाम हमारी मुक्ति के नाम!" सबने जोरदार आवाज में सहमति जताई। यहाँ तक कि दोनों ननों ने भी शराब को अपने होंठों से लगा लिया, जिसका स्वाद उन्होंने कभी नहीं चखा था। उनके मुताबिक उसका स्वाद तेज लेमोनेड जैसा था, बल्कि थोड़ा बेहतर।
ल्वासो जारी रहा, “यह दुर्भायपूर्ण है कि हमारे पास आज जश्न मनाने के लिए पियानो नहीं है, वरना हम क्वाड्रिल नाच सकते थे।"
कोर्नूदे ने कुछ नहीं कहा और न ही कोई इशारा किया। वह गहरी सोच में डूबा हुआ लग रहा था। कई बार उसके चेहरे पर नाराजगी के भाव उभर जाते थे। आधी रात के आसपास उन लोगों ने अपने कमरों में जाने का फैसला किया। ल्वासो ने चलते-चलते कोर्नूदे के पेट में धौल जमाते हुए कहा, "तुम खुश नहीं दिख रहे हो। न ही तुमने कुछ कहा है।" कोर्नूदे ने अचानक सिर उठाया और उन सब पर तीखी, भयंकर दृष्टि फेरते हुए कहा, "मैं कहे देता हूँ, तुम सब कमीनेपन के दोषी हो!" वह उठा और दरवाजे की ओर जाते हुए दोबारा बोला, “हाँ, तुम लोगों ने कमीनापन किया है!" वह अपने कमरे की ओर चला गया।
कुछ देर तक सन्नाटा छाया रहा। ल्वासो हक्का-बक्का रह गया। लेकिन फौरन ही वह इससे उबर गया और हँसते हुए कहा, “दोस्तो, वह ईर्ष्या से जल रहा है।" वे समझे नहीं, इसलिए फिर ल्वासो ने उस रात का गलियारेवाला किस्सा सुना डाला। फिर से हँसी-ठट्ठे का माहौल बन गया। महिलाएँ तो हँस-हँसकर पागल हुई जा रही थीं। काउण्ट और कार्र-लमादों की आँखों से हँसते हुए आँसू निकल पड़े। उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था।
"ऐसा कैसे हो सकता है? क्या तुम यकीन के साथ कह सकते हो?"
"मैंने अपनी आँखों से देखा है।"
“और उसने इनकार कर दिया था..."
"हाँ, क्योंकि प्रशियाई अफसर बगल के कमरे में था।"
“असम्भव!"
“मैं कसम खा सकता हूँ!"
काउण्ट के ठहाके रोके नहीं रुक रहे थे। उद्योगपति दोनों हाथों से पेट पकड़कर हँस रहा था। ल्वासो जारी था :
“अब आप समझ सकते हैं कि आज शाम को उसे कुछ भी अच्छा क्यों नहीं लग रहा था! कुछ भी नहीं!” और हँसी के मारे बेदम हुए तीनों फिर चालू हो गए।
वे अपने कमरों में चले गए। मिसेज़ ल्वासो ने बिस्तर पर जाते समय पति से कहा कि कार्र-लमादों की पत्नी का चेहरा शाम से ही ईर्ष्या से पीला दिख रहा था। उसने कहा, “तुम जानते हो, कुछ औरतों को सैनिक बहुत पसन्द आते हैं, उनके लिए सब बराबर होते हैं, चाहे वे फ्रेंच हों या प्रशियाई! ओह! कितने शर्म की बात है!"
गलियारे के अँधेरे में पूरी रात फुसफुसाहट जैसी धीमी आवाजें और नंगे पैर चलने की आहटें सुनाई देती रहीं। वे देर रात तक सोए नहीं थे यह तो तय था क्योंकि दरवाजों के नीचे से रोशनी की लकीरें काफी समय तक दिखती रहीं। शैम्पेन अपना असर दिखा रही थी। कहते हैं, यह नींद में खलल डालती है।
अगले दिन मौसम साफ था और सर्द धूप में बर्फ चमक रही थी। गाड़ी होटल के सामने तैयार खड़ी थी। गुलाबी आँखों और पंखों पर काले धब्बेवाले सफेद कबूतरों की फौज छः घोड़ों के पैरों के बीच लीद में अपनी आजीविका की तलाश कर रही थी।
कोचवान भेड़ की खाल ओढ़े तैयार था। उसने सीट के नीचे सिगड़ी सुलगा दी थी और प्रसन्नचित्त यात्री रास्ते के लिए कुछ खाने का बन्दोबस्त कर अपना सामान समेट रहे थे। वे बस चर्बी की गड़िया का इन्तजार कर रहे थे। थोड़ी देर बाद वह भी आ गई।
उसके चेहरे पर थोड़ी परेशानी और शर्मिन्दगी के भाव थे। वह धीमी चाल में अपने सहयात्रियों की ओर बढ़ी, जो सब एक साथ ऐसे मुड़ गए मानो उसे देखा ही न हो। काउण्ट ने गरिमापूर्ण ढंग से अपनी पत्नी की बाँह पकड़ी और उसे इस अपवित्र स्पर्श से दूर ले गया।
चर्बी की गुड़िया सकपकाकर रुक गई। फिर हौसला जुटाकर वह मिल-मालिक की पत्नी के पास पहुंची और विनम्रता से अभिवादन किया। उसने धीमे से सिर हिला दिया। सभी व्यस्त दिख रहे थे और उससे दूरी बनाये हुए थे। मानो वह अपने घाघरे में कोई संक्रामक रोग छिपाये हो। फिर वे जल्दी से गाड़ी में सवार हो गए, जबकि चर्बी की गुड़िया सबसे बाद में, अकेले सवार हुई और अपने पहलेवाले स्थान पर बैठ गई।
उनके हाव-भाव ऐसे थे मानो वह उस चर्बी की गुड़िया को जानते ही न हों, उसे देख ही नहीं रहे हों। हालाँकि मदाम ल्वासो ने दूर से उसे देखते हुए अपने पति के कान में फुसफुसाकर कहा, “अच्छा हुआ, मुझे उसके साथ नहीं बैठना पड़ा।"
भारी गाड़ी चलने लगी और शेष यात्रा शुरू हो गई। शुरू में कोई कुछ नहीं बोला। चर्बी की गुड़िया ने नजरें झुका रखी थीं। उसे अपने सहयात्रियों पर गुस्सा और शर्म दोनों महसूस हो रहे थे। इन्हीं लोगों के दबाव के चलते उसे प्रशियाई अफसर के सामने समर्पण करना पड़ा था और अब वे उससे अजनबी की तरह व्यवहार कर रहे थे।
असहनीय होती चुप्पी को तोड़ने की गरज से काउण्टेस ने मदाम कार्र-लमादों की ओर मुड़कर पूछा, “शायद आप मदाम द'एत्रेले को जानती हैं?"
“हाँ, वह मेरी अच्छी मित्र हैं।"
"बेहद आकर्षक महिला है वो।”
“निस्सन्देह, स्वभाव से भी बहुत विनम्र और उच्च शिक्षित होने के साथ-साथ वे एक अच्छी कलाकार हैं। वे बेहतरीन गायक और अच्छी चित्रकार भी हैं।"
मिल-मालिक और काउण्ट बातें कर रहे थे और खिड़कियों के काँच की झनझनाहट के बीच-बीच में 'कूपन-प्रीमियम-लिमिट-अन्तिम तिथि' जैसे शब्द सुनाई दे जाते थे।
ल्वासो होटल से पुराने ताश के पत्ते चुरा लाया था जो पिछले पांच साल से खाने । की मेज पर पड़े रहने के कारण बदरंग और तेल की चिकनाई से चिपचिपे हो गए थे। वह अपनी पत्नी के साथ 'बाजिक' खेलने लगा।
दोनों ननों ने कमरपेटी से लम्बी जपमाला निकाली, सीने पर सलीब का निशान बनाया और होठों में तेजी से बुदबुदाना शुरू कर दिया मानो वे पूरे ‘ओरेमस' का पाठ कर रही हों! वे बार-बार अपने गले में लटके पवित्र चिह्न को चूमतीं, सीने पर सलीब बनातीं और प्रार्थना करने लग जातीं।
कोर्नूदे चुपचाप बैठा सोच रहा था।
तीन घंटे बाद ल्वासो ने ताश के पत्तों को किनारे रख दिया और कहा, “मुझे भूख लगी है!"
उसकी पत्नी ने एक पुलिन्दा निकाला जिसमें पके गोमांस का एक टुकड़ा था। उसने इसे बराबर से पतले-पतले कतलों में काटा और दोनों बड़े मजे से खाने लगे। काउण्टेस ने कहा, “क्यों न हम भी ऐसा ही करें!"
वे सहमत हो गए और काउण्टेस ने दोनों दम्पतियों के लिए तैयार किया गया खाना निकाला। चीनी खरगोश की तस्वीर से सजे ढक्कनवाली रकाबी में सुअर के मांस और अन्य चीजों से बना स्वादिष्ट व्यंजन था। साथ में अखबार में लिपटा ग्रुएर पनीर का चौकोर टुकड़ा रखा था।
दोनों ननों ने एक बड़ी-सी सॉसेज निकाली, जिससे पूरे वातावरण में लहसुन की महक फैल गई। कोर्नूदे ने अपने कोट की जेब में दोनों हाथ डाले और उबले अण्डे तथा एक ब्रेड का टुकड़ा निकाला। उसने अण्डों के छिलके उतारकर उन्हें अपने पैरों के पास पुआल में फेंक दिया और अण्डों को खाना शुरू कर दिया। अण्डों से गिरे जर्दी के टुकड़े उसकी दाढ़ी में छितर गए जिन्हें देखकर ऐसा लग रहा था मानो अँधियारे में पीले सितारे टिमटिमा रहे हों!
चर्बी की गुड़िया हड़बड़ी और अन्यमनस्कता में कुछ लाने के बारे में सोच नहीं पाई थी। उसके चेहरे पर परेशानी और गुस्से के भाव आ रहे थे। उसके सामने बैठे लोग मजे लेकर खा रहे थे और किसी ने उससे एक बार भी नहीं पूछा। उसके पूरे शरीर में गुस्से की लहर दौड़ गई। उसने उन पर चिल्लाने, उन्हें अपनी नफरत की बाढ़ में डुबो देने के लिए मुँह खोला ही था, लेकिन क्षोभ के कारण उसका गला रुंध गया।
कोई भी उसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहा था। वह खुद इन मक्कार शरीफजादों की हिकारत में डूबी हुई महसूस कर रही थी जिन्होंने पहले उसकी बलि चढ़ाई और फिर बेकार की चीज की तरह उसे खारिज कर दिया। उसे खाने के सामान से भरी अपनी टोकरी और उसमें रखे शोरबे में डूबे मुर्गे, फल और बोतलें भी याद आ रहे थे। अचानक उसका गुस्सा समाप्त हो गया जैसे बेहद तान दिया गया कोई धागा अचानक टूट जाए। उसे अब रोना आ रहा था। उसने अपने आँसुओं को रोकने का भरसक प्रयास किया, लेकिन आँखों की कोर से आँसुओं की बूँद गालों पर होती टपक ही पड़ी, जैसे पत्थरों के बीच से रिसकर पानी की पतली धार निकल रही हो। वह झुककर बैठी थी और उसकी निगाहें एक जगह जमी थीं। आँखों से निकले आँसू उसके सीने को भिगो रहे थे। उसे उम्मीद थी कि कोई उसे नहीं देख रहा था।
लेकिन काउण्टेस ने उसे देख लिया था, उसने इशारा करके अपने पति को बताया। उसने कन्धे झटक दिए, जैसे कह रहा हो, 'इसमें मैं क्या कर सकता हूँ, इसमें मेरा तो कोई दोष नहीं है।'
मिसेज ल्वासो मन ही मन जीत की हँसी हँस रही थी। उसने फुसफुसा कर कहा, “वह शर्म के मारे रो रही है।"
दोनों ननों ने बची हुई सॉसेज को कागज में लपेटकर फिर प्रार्थना करनी शुरू कर दी।
अण्डे पचाने के लिए कोर्नूदे ने अपने पाँव सामने की सीट तक फैला दिए, बाँहों को मोड़कर सीने पर रखा और इस तरह मुस्कुराने लगा जैसे कोई मजेदार प्रहसन देख रहा हो। उसने 'मार्सेइएज'1 की धुन पर सीटी बजानी शुरू कर दी।
(1मार्सेइएज-फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान जन्मा फ्रांस का राष्ट्रगीत। -सं.)
सभी के चेहरे स्याह हो गए। जाहिर था कि यह लोकप्रिय गीत उसके पड़ोसियों को नहीं भा रहा था। वे बेचैन और परेशान हो उठे और उन कुत्तों की तरह दिखने लगे जो कोई भयानक वाद्य सुनकर गला फाड़कर चिल्लाने लगते हैं। वह यह जानता था लेकिन रुका नहीं। कभी-कभी वह इन शब्दों को गुनगुनाता था :
'देश के प्रति सच्चा प्यार
बदला लेने को करे पुकार
आजादी, प्यारी आजादी
लड़ते चलो, काहे का डर!'
उनकी गाड़ी की गति तेज हो गई थी। शायद वह ठोस बर्फ पर चल रही थी। लेकिन ऊबड़-खाबड़ सड़क पर लग रहे झटकों के बीच दिएप तक की लम्बी, उदास यात्रा के दौरान, घिरती रात के बीच, गाड़ी के गाढ़े अँधेरे में कोर्नूदे लगातार प्रतिशोधी भाव से, एकरस धुन बजाता रहा और साथ बैठे लोगों को मजबूरन उन सीटियों के साथ गाने की पंक्तियाँ याद दिलाता रहा।
चर्बी की गुड़िया लगातार रो रही थी। बीच-बीच में वह खुद पर काबू नहीं रख पाती थी और धुंधलके में बैठे लोगों की दो कतारों के बीच उसकी सिसकी गूंज उठती थी।