चाहत थी... (आलेख) : प्रोफसर ललिता
Chahat Thi... (Article) : Pro. Lalitha
हिंदी सलाहकार समिति संसदीय कार्य मंत्रालय की बैठक में शामिल होकर जैसे ही दिल्ली से लौटी थी, कि उत्तर प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री माननीय श्री रविंद्र शुक्ला जी का फोन आया यह संदेश देते हुए कि “क्या आप चलेंगी फीजी, 12 वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग लेने? अगर ऐसा है तो जल्दी पासपोर्ट तथा आपका संक्षिप्त परिचय भेजिए।” जैसे ही फोन को रखा फ़ौरन सेकंडों में जो विवरण माँगा गया था भेज दिया क्योंकि समय बहुत कम था।
विश्व हिन्दी सम्मेलन, फीजी में होने जा रहा है, ये विषय हल्का सा मेरे कान तक पड़ रहा था। मगर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मुझे कौन बुलाने वाले हैं जबकि हिन्दी की सेवा में लगे अनेक धुरंधर विश्व में भरे पड़े है। इसलिए दस्तावेज़ को भेजने से क्या लाभ आदि बात तो मन में थी ही। इसलिए मैंने इस बात को उतना गंभीरता से नहीं लिया। किन्तु उसी बृहस्पतिवार रात 22:45 बजे विदेश मंत्रालय से फोन आया कि क्या आप NEP को समर्थन दे रही है, सकारात्मक पक्ष में है, आदि बातों से मेरे आंतरिक पक्ष का भी अनुमान लगा लिया था। तत्काल पासपोर्ट इत्यादि डॉक्युमेंट व्हाट्सएप में भेजने के लिए बोले तो तत्क्षण भेज दिया था। इसके बाद बहुत ही फोन कॉल्स आती रहीं। अब मेरा मन इस बात को स्थापित करने लगा कि शायद मेरा नंबर लग सकता है। इतने में फीजी को लेकर स्टडी करने लगी तो पता चला वह गिरमिटिया देशों में से एक है जहाँ 40% आबादी हिंदी बात करती है। वहाँ के कालेजों तथा स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है। वहाँ के उप प्रधानमंत्री हिंदी अच्छी तरह जानते हैं। फीजी एक ख़ूबसूरत द्वीप है मगर छोटा है। आस्ट्रेलिया के निकट है आदि बातों को भी मैंने जाना। जैसे-तैसे दिन निकलते गए दिल में एक अजीब सा बोध हुआ जिसको मैं समझ नहीं पा रही थी।
10 फरवरी शुक्रवार दोपहर जब 12:00 बज रहा था माननीय श्री रविंद्र शुक्ला जी बता रहे थे कि “यह लिंक भेज रहा हूँ उसमें आपका सारा डिटेल्स भर देना” कहते हुए फ़ॉर्म भरने की तरकीब भी बता रहे थे। 2 घंटे का कठिन परिश्रम रंग लाया कि फ़ॉर्म सफलतापूर्वक जिसमें पासपोर्ट संबंधित सारा विवरण अपलोड हो गया था। कुछ ही देर में विदेश मंत्रालय से बुलावा आया कि आपका चयन विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए किया गया है अब कुछ ही देर में आपको मेल द्वारा सारा विवरण भेज दिया जाएगा। अब तो बात पक्की हो गई है। सबके सूचनार्थ एक टिप्पणी बनाकर महाविद्यालय में, परिवार में, समाज में, और छात्रों में यह ख़बर फैला दी कि मैं फीजी जा रही हूँ। सारा काम जिसको 24 घंटे में अंजाम देना था। तन मन का तनाव को झेलते हुए आवश्यक निद्रा को भी खो बैठी थी। बीच में 1 दिन की अवधि थी। रविवार निकलूँगी तो सोमवार का फ़्लाइट फीजी के लिए है। 1 दिन में जो शॉपिंग होनी थी सब हुई। बाद में पैकिंग! इस ऐतिहासिक ट्रिप के लिए जैसा तैयार होना चाहिए वैसा ही होकर जबकि ये यात्रा की शान भारत वर्ष से जुड़ी हुई है कि कोयंबटूर से निकली। इतने में सम्मेलन के प्रतिभागी जिनकी लिस्ट भी मीडिया द्वारा निकलती जा रही थी, अतएव उसमें जान-पहचान के लोग शामिल जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई।
मन में यह विचार चल रहा था कि इस सम्मेलन का सही लाभ उठाना चाहिए। समय-समय में जो भी सेशन्स होंगे उसे तन्मयता के साथ योगदान करना चाहिए तथा पर्याप्त समय देकर ग़ौर करते हुए नई बात को जितना हो सके आत्मसात करना भी चाहिए। इस तरह सम्मेलन को लेकर मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी। क्यों न बढ़ेगी, करोड़ों की आबादी में चयनित तीन सौ सरकारी डेलिगेट्स में मैं भी एक हूँ। सम्मेलन का विषय भी इतना रुचिकर है कि पारंपरिक ज्ञान से लेकर कृत्रिम मेधा तक! आर्टिफ़िशियल इंटेलिजन्स आज का उभरता हुआ विषय है। इसी पर आज संसार चलना शुरू किया है। इसको लेकर बहुत सारी बातें जानने को मिलेंगी, जिसमें मेरी समझ कम है। साथ ही गिरमिटिया मज़दूरों के बारे में तथा उन्हीं की वजह से हिन्दी का इतना विकास हुआ है आदि बातों को और गहराई से अध्ययन करने का अवसर भी मिलेगा। दरअसल ये भी मेरे मन में था कि हम दक्षिण के प्रतिनिधियों के द्वारा एक अलग सत्र भी जब मौक़ा मिले तो करेंगे।
13 फरवरी सवेरे 11 बजे दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुँच गई थी। फीजी डेलिगेट्स के लिए अलग गेट को देखकर मन की गुदगुदी बढ़ने लगी। लगभग दो घंटे की लंबी क़तारें पार करते हुए सूटकेस वग़ैरह चेकिंग के बाद गेट पास लेते हुए इमिग्रेशन की ओर बढ़ रहे थे। चार पाँच लाईन पार करते हुए चेकिंग पहुँचनी है। इतने में मैंने देखा कि एक युवा महिला बहुत ही ज़्यादा तनाव ग्रस्त थी। अपने पति को कुछ इशारे से कहती और बेचैन दिख रही थी। स्थिति को जानते हुए मैंने उस महिला से पूछा तो बता रही थी उसकी फ़्लाइट आधे घंटे में निकल जाएगी। तब मैंने उनसे कहा कि बिलकुल भी समय नहीं गँवाया जाए। तुरंत निकलिए, कहते हुए उनका मार्ग प्रशस्त किया। इस घटनाक्रम को देखते हुए एक युवा जबकि वह पंजाबी ऐन आर आई है कहने लगा कि, “मैडम, यू हैव डन अ ग्रेट जॉब. यूँ नोटीस्ड इट, एंड यू हेलप्ड टू. गॉड ब्लैस,” कह रहा था। बाद में विषय बता रही थी कि मैं कहाँ जा रही हूँ। वह कहने लगा कि “यस आई टू वाँट टु स्पीक हिन्दी, आई लाईक दिस लैंग्वेज, वी विल मीट इन द लॉबी, इट्स क्वायट इंट्रस्टिंग,” अमेरीकी अंग्रेज़ी में कहने लगा।
मैं अपनी सेक्यूरिटी चेक के बाद सीधा जिस द्वार से फ़्लाइट में चढ़ना था वहाँ चली गई थी। कुछ हिन्दी सेवियों का पदार्पण हो चुका था। यहाँ-वहाँ दृष्टि डाली, जान-पहचान को लोगों को क्या ढूँढ़ना! ये सारे विद्वानों से परिचय तो होना ही है जबकि अब तक कितने ही डेलिगेट्स से परिचय भी हो चुका था। ख़ाली कुर्सी में अपना आसन जमा लिया था। पास में विराजमान पौरुष से परिपूर्ण 'प्रभात खबर' के संपादक महोदय से बात हुई थी। नये विषयों को ख़ास गिरमिटियों को लेकर उनका अंदाज़ बड़ा रुचिकर था।
इतने में चेन्नई के डॉ. भवानी महोदया बुलाते हुए कह रहीं थी कि “ये लोग आपको बुला रहे हैं।” मुझे लगा कोई दक्षिण प्रांत के लोग अपने पास बुला रहे हैं। ख़ैर बाद में भी मिल सकते हैं। मन ही मन कहते हुए उनसे बात को आगे बढ़ा रही थी, तब तक किसी आगंतुक का कॉल आया। जैसे ही मैं वहाँ पहुँची, “मैडम अपना पासपोर्ट दिखाइए,” रोबदार आवाज़ को सुनते हुए, “लीजिए” उनके सामने रख दिया था। “मैम आप नहीं जा सकतीं।”
“क्यों नहीं जा सकती, मैं ज़रूर जाऊँगी, कितनी कल्पनाएँ, कितने अरमान, हिन्दी को लेकर तो मैं ज़रूर जाऊँगी ही,” मैं गिड़गिड़ाने लगी। शुरूआत में मुझे लगा कि ये लोग ऐसे ही कुछ कहेंगे, बाद में छोड़ देंगे। लगातार तर्क करती रही। तब वे युवतियाँ बोलने लगी कि “पहले मेरी बात को सुनिए। आपके पासपोर्ट 6 महीने के हिसाब से तीन दिन कम पड़ रहे हैं। हमने फीजी ऐम्बेसी से बात कर ली, वे आपको मना कर रहे हैं। हमने अपनी तरफ़ से कोशिश कर ली। अब कुछ नहीं हो सकता।” कहते हुए वे अन्य कामों में व्यस्त हो चुकी थी।
मेरी स्थिति को केवल उस परमात्मा मात्र समझ सकता था। ये लिखते-लिखते मेरी आँसुओं को रोक नहीं पा रही हूँ। इधर-उधर इनसे-उनसे करते हुए जो भी अफ़सर दिख रहे थे उन सबसे घिघियाते हुए “कैसे भी करके मुझे भेजिए सर”, भाई साहब आदि शब्दों के दीन-हीन स्वर में याचना की भीख माँगती रही।
कोई-कोई बेरहमी से कहने लगे, “अब कुछ नहीं होगा मैम।”
“ऐसे नहीं बोलिए, पूरी दुनिया को पता है मैं फीजी जा रही हूँ। उलटे पाँव कैसे लौट जाऊँ। कुछ तो कीजिए साहब।”
वे भी किसी से बात करने का बहाना बनाते हुए, “5 मिनट रुकिए, मैं कुछ करता हूँ।” समाधान के ये शब्दों ने भी मेरे हर घाव को मरहम लगाने का काम किया। “हे परमात्मन, हे मेरे कृष्ण! मेरे साथ ये क्या हो रहा है? कोई तो मेरी मदद कीजिए।” इस तरह लगभग15 मिनट तक रोती बिलखती-चिल्लाती रही। मुझे लगने लगा कि गले का फँदा अब जान लेवा हो गया है। साँस लेकर ही रुकेगा। मैं अब चेतना शून्य, क्या करूँ, कुछ तो रास्ता खुलेगा, कोई तो मेरी सहायता करेगा। हर चेहरे को ताकती रही, जैसे कोई चेहरा इस निर्जीव प्राणी में प्राण फूँक दे।
पक्षियों के समूह से एक-एक कर सारी उड़ती जा रही थी। अगले15 मिनट में मेरे और इमिग्रेशन वालों को छोड़कर अन्य कोई नहीं थे। जैसे एवरेस्ट से गिरने पर चूर-चूर हो जाएँगे न! ठीक उसी प्रकार मैं अपने ढाँचे को ढूँढ़ती रही। इस सारे घटनाक्रम के बाद एक मात्र आजीवन सहारा मैंने अपने पतिदेव को, जो कि मेरी ख़ुशियों को चौगुनी कर प्रसन्न होते हैं, फोन लगाकर रोना शुरू किया। पूरी बात का बयान दिया। काश! चाहत थी उन कंधों की जिन पर सिर अपना रखकर आश्वासन ले सकती। मेरी टूटी वाणी से घबराकर वे कहने लगे कि ”कोई चिंता नहीं, तू वापस आ जाओ, फ़ील नहीं करो” मुझसे कह तो रहे थे मगर उनकी घिग्घी बँधती होते हुए अनुमान लगा रही थी। इस तरह एक-एक कर बेटा-बेटी का आश्वासन मिलता रहा। फिर भी मेरी यातना, अकेली वरिष्ठ नारी जानी-मानी शिक्षाविद् के साथ ऐसा सलूक? कहाँ का न्याय है ये?
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मेरा आपसे यही सवाल है कि मेरी इस मानसिक यातना में मेरा क्या दोष था?
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आप को सभी जानकारी एक सप्ताह पूर्व ही मिल चुकी थी।
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सभी अपेक्षित तथ्यों को प्रमाणों के साथ प्रस्तुत कर दिया गया था आवेदन पत्र में।
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तो फिर इस बात को उस समय क्यों नहीं पूछा गया?
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और जब जहाज़ में चढ़ने ही वाली थी तब मुझे गेट के पास निरीक्षण और परीक्षण का हवाला देकर रोक दिया गया।
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कृपया इस पूरी घटना की विधिवत जाँच की जाए। और मुझे मानसिक यातना देने वाले हर एक व्यक्ति को कटघरे में लाया जाए।
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मुझे मेरी देश की न्याय व्यवस्था पर, आप पर पूरा विश्वास है।
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मेरा अनुरोध है कि इस घटना की जाँच की जाए!
अपील के साथ
पीड़ित भारतीय नागरिक
प्रो. ललिता राव
कोयंबत्तूर तमिल नाडु
9994768387।