चढ़ावा (नाइजीरियाई कहानी) : चिनुआ अचेबे

Chadhava (Nigerian Story in Hindi) : Chinua Achebe

जूलियस ओबी अपने टाइपराइटर को घूर रहा था । मोटा चीफ क्लक, उसका बॉस, अपनी मेज़ पर खरटि भर रहा था। बाहर, अपनी हरी यूनिफॉर्म में गेटकीपर अपनी चौकी में सो रहा था । आप उस पर दोष नहीं लगा सकते । पिछले एक सप्ताह से एक भी ग्राहक उस गेट से नहीं घुसा था । बड़ी तौल मशीन पर एक खाली टोकरी रखी थी । मशीन के आस-पास धूल में कुछ पाम की गिरियाँ बिखरी पड़ी थीं। सिर्फ मक्खियों का ज़ोर था ।

जूलियस उस खिड़की की तरफ गया जो नाइजर नदी के किनारे बड़े हाट पर खुलती थी। अब बाज़ार, जिसका नाम अभी भी न्कोवो था, कभी का ऐके, ओये तथा आफो तक फैल गया था । सभ्यता के आते ही शहर एक बड़े पाम तेल के बन्दरगाह में बदल गया था । लेकिन इस अतिक्रमण के बावजूद हाट आरम्भिक न्कोवो के दिन ही सबसे अधिक व्यस्त रहता था क्योंकि हाट की प्राचीन देवी ने अपने ही दिन का जादू बिखेर रखा था - चाहे लालच में लोग कहीं भी फैल कर चले जायें । कहा जाता है कि मुर्गे की बाँग से पहले वह एक बूढ़ी औरत के रूप में हाट के बीच में आकर अपना जादुई पंखा धरती की चारों दिशाओं में घुमाती थी- अपने सामने, अपने पीछे, दायें और बायें ताकि दूर-दूर से लोग उस हाट में आयें । और वे अपने साथ अपने- अपने स्थान की उपज लाते थे । पाम तेल और गिरियाँ, कोला नट्स, कसावा, चटाइयाँ, टोकरियाँ, तथा मिट्टी के बर्तन, और वे वापिस घर को ले जाते थे-रंग-बिरंगे कपड़े, सिकी हुई मछली, लोहे के बर्तन और प्लेटें । ये जंगल के लोग थे । दुनिया का दूसरा आधा भाग जो नदी के किनारे रहता था, वह भी आता था - नाव द्वारा - रतालू और मछली लेकर । कभी-कभी नाव बड़ी होती थी जिसमें दर्जन या अधिक लोग रहते थे । कभी तेज़ बह रही अनामबारा से छोटी सी नाव लिए कोई मछुआरा अकेले अपनी पत्नी के साथ आता था। वे लोग अपनी नाव किनारे लगा लेते और बहुत मोल-भाव के बाद ही अपनी मछली बेचते । फिर औरतें नदी के ऊँचे किनारे पर चढ़कर हाट के बीचो-बीच जातीं नमक और तेल खरीदने के लिए, और अगर बिक्री अच्छी हुई हो तो कपड़े का एक टुकड़ा भी । घर के बच्चों के लिए वह केक और माई - माई खरीदतीं जिसे इगारा औरतें पकाती थीं। शाम ढलते ही वे अपने चप्पू उठा लेते और वापस चल पड़ते; सूर्यास्त में चमकते पानी में उनकी नाव छोटी होती चली जाती तब तक जब तक कि वह पानी की सतह पर एक काला धब्बा सा रह जाता और उसमें दो काली मूर्तियाँ आगे पीछे हिलती दिखाई देतीं । उन दिनों उमरु जंगल से आने वाले लोगों के जिन्हें इग्बो कहते थे और परदेसी नदी वाले लोगों के जिन्हें इग्बो औलू पुकारते थे, मिलने का स्थान था और उसके परे दुनिया अनिश्चितता में लीन हो जाती थी ।

जूलियस ओबी उमरु का रहनेवाला नहीं था । वह अन्य अनगिनत लोगों की तरह देश के आन्तरिक भाग के जंगल के किसी गाँव से आया था । मिशन स्कूल से कक्षा छह पास करने के बाद वह उस शक्तिशाली युरोपीय कम्पनी के दफ्तर में क्लर्क का काम करने आया था जो अपनी कीमत पर पाम गिरियाँ खरीदती थी और अपनी ही तय की हुई कीमत पर कपड़े और धातु की वस्तुएँ बेचती थी । दफ़्तर उस विख्यात हाट के साथ ही स्थित था और पहले दो-तीन हफ़्ते तो जूलियस को उसकी गहमागहमी में काम करने की आदत डालनी पड़ी । जब चीफ क्लर्क कहीं गया होता तो वह खिड़की तक जाता और नीचे चींटियों के इस बड़े बिल में हो रही गतिविधियों को देखता । इनमें से अधिकतर लोग कल यहाँ नहीं थे, वह सोचता, लेकिन फिर भी हाट इतना भरा हुआ था । हाट को इस तरह हर रोज़ भरने के लिए दुनिया में असीम लोग होंगे । स्वाभाविक है कि हाट में आने वाले सभी असली व्यक्ति नहीं थे । जैनेट की माँ जिनका नाम मा था, यही कहती थीं ।

“भीड़ में से धक्का-मुक्की करके निकलती इन सुन्दरियों में बहुत-सी तुम्हारे मेरे जैसी मानवीय नहीं हैं बल्कि वे मैमी-वोदा हैं जिनका घर नदी की गहराइयों में बने शहरों में है," वह कहती थीं, “तुम उन्हें पहचान सकते हो क्योंकि उनकी सुन्दरता एकदम सम्पूर्ण और गर्म जोशी रहित है । आँखों के किनारे से उसे एक नज़र देखो, पलक झपको और ध्यान से दुबारा देखो तो वह भीड़ में गुम हो चुकी होगी ।"

जब उमुरु छोटा-सा गाँव था तो एक विशेष आयु वर्ग के लोग हर न्कोवो दिन पर हाट के मैदान की सफाई करते थे । लेकिन उन्नति ने अब इसे एक व्यस्त, फैला हुआ, भीड़-भड़क्के से भरपूर नदी का बन्दरगाह बना दिया था, एक बेनाम जगह जहाँ अजनबी मूल निवासियों से अधिक थे जो अब अपनी प्रार्थनाओं के विपरीत फल पर सिर्फ सिर ही हिला सकते थे क्योंकि यह प्रार्थना तो उन्होंने ही की थी- कौन उन्हें इसके लिए दोषी ठहरा सकता है कि उनका शहर फले-फूले और उन्नति करे । और शहर ने उन्नति की थी । लेकिन एक अच्छी उन्नति होती है और एक बुरी । पेट सिर्फ खाने-पीने से ही नहीं फूलता, बुरी बीमारी भी आक्रांत को उसके पूरी तरह मर जाने से पहले ही घर से बाहर जाने पर मजबूर कर देती है।

उमुरु आने वाले अजनबी वहाँ व्यापार और पैसे के लिए आते थे न कि कर्तव्यों के पालन के लिए क्योंकि ये तो वापस गाँव में भी बहुत थे जो उनका असली घर था ।

और अगर यह भी काफी नहीं था तो उमुरु की धरती के पुत्र स्कूल तथा चर्च द्वारा प्रोत्साहित होकर अजनबियों की ही तरह व्यवहार कर रहे थे । वे अपने सभी पुराने कार्यों को भुलाकर सिर्फ रंगरेलियाँ मना रहे थे ।

शहर की यही हालत थी जब किटिक्पा उसे देखने आया और रहनेवालों से देवताओं को देय बलि की माँग की । उसमें लोगों के अन्दर भय पैदा कर सकनेवाले विश्वास का ज्ञान था । वह एक बुरा दैव था और उसे इस पर गर्व था । वह बुरा ना मान जाये इसलिए उसके द्वारा मारे गये लोग मारे नहीं माने जाते थे बल्कि उन्हें प्रतिष्ठित माना जाता था और किसी को भी उनके लिए रोने की हिम्मत नहीं थी । वह पड़ोसियों और गाँव वालों के बीच आना-जाना रोक देता था । वे कहते थे "किटिक्पा उस गाँव में है" और तुरन्त पड़ोसी उस गाँव से नाता तोड़ लेते थे ।

जूलियस दुखी और चिन्ता से भरपूर था क्योंकि उसे जैनेट को मिले हुए एक हफ़्ता हो गया था, जैनेट जिससे वह विवाह करने जा रहा था । मा ने उसे बहुत ही नम्रता से समझाया था कि वह तब तक उसे मिलने न जाये जब तक कि जिओवाह का यह प्रकोप खत्म नही हो जाता" । ( मा एक अत्यन्त धार्मिक प्रकृत्ति वाली थीं जो धर्म परिवर्तन करके क्रिश्चियन बनी थीं और जिनके जूलियस को अपनी इकलौती बेटी के लिए पसन्द करने का एक कारण यह था कि वह सी एम एस चर्च के कॉयर में गाता था । "तुम्हें अपने कमरे में ही रहना चाहिए" उन्होंने धीमे स्वर में कहा था क्योंकि किटिक्पा ने किसी भी प्रकार के शोर और तेज़ आवाज़ की मनाही कर रखी थी । “क्या पता, तुम्हें सड़क पर कौन मिल जाये । उस परिवार में भी वह है ।” उन्होंने अपनी आवाज़ और भी धीमी करते हुए सड़क के पार उस मकान की ओर चुपके से इशारा किया जिसके दरवाज़े पर ताड़ के एक पीले पत्ते ने रास्ता रोक रखा था । “उसने उनमें से एक को पहले ही प्रतिष्ठित कर दिया है और बाकियों को आज बड़ी सरकारी लॉरी में ले जाया गया है ।"

जैनेट कुछ दूर जूलियस के साथ चली और फिर रुक गई, इसलिए वह भी रुक गया । उनके पास एक दूसरे को कहने के लिए कुछ भी नहीं था फिर भी वे एक दूसरे के साथ चलते रहे । फिर उसने 'गुड नाइट' कहा और जूलियस ने भी 'गुड नाइट' कहा । फिर उन्होंने एक-दूसरे से हाथ मिलाया जो बहुत अजीब था जैसे कि रात भर के लिए अलग होना कोई नयी और गम्भीर बात हो ।

वह सीधे घर नहीं गया क्योंकि वह इस अजीबोगरीब विदाई के साथ - चाहे अकेले ही- और देर रहना चाहता था । शिक्षित होन के कारण उसे डर नहीं था रास्ते में कौन मिल जायेगा और वह नदी के किनारे जाकर इधर-उधर चहलकदमी करता रहा । वह वहाँ बहुत देर तक रहा होगा क्योंकि जब रात के मुखौटे का गजर बजा तो वह वहीं था । तब वह तुरन्त घर की ओर चल दिया- कुछ चलते हुए, कुछ भागते हुए- क्योंकि रात के मुखौटे अन्धविश्वास का विषय नहीं थे, वे तो असली थे । वे अपनी रंगरेलियों के लिए रात को ही चुनते थे क्योंकि चमगादड़ों की तरह उनकी बदसूरती बहुत ही भयावह थी ।

जल्दी में उसका पाँव किसी ऐसी ठोस चीज़ पर पड़ा जो 'पट्' जैसी आवाज़ से टूट गई । वह रुका और उसने नीचे फुटपाथ पर देखा । चाँद अभी निकला नहीं था लेकिन आसमान पर एक ऐसी हल्की रोशनी थी जिससे लगता था कि उसका निकलना अधिक दूर नहीं था । इस आधी रोशनी में उसने देखा कि उसने चढ़ावे में चढ़ाये हुए एक अण्डे पर पाँव रख दिया था । मुसीबत के मारे किसी ने साँझ के झुटपुटे में यह चढ़ावा चौराहे पर रख दिया था । और उसने उस पर पाँव रख दिया था। उसके चारों तरफ रस्मी ताड़ के पत्ते भी रखे थे । लेकिन जूलियस ने उसे एक भिन्न दृष्टि से देखा, एक ऐसे घर के रूप में जहाँ वह भयावह रचनाकार अपने काम में व्यस्त था । उसने अपने जूते के सोल को रेत पर पोंछा और तेज़ी से चलने लगा । उसके मन में एक अस्पष्ट-सी बेचैनी का भाव था। लेकिन तेज़ी से चलने का कोई फायदा नहीं था, तेज़ चलनेवाला मुखौटा सभी जगह मौजूद था । शायद चाँद के जल्दी निकल आने की आशंका से मुखौटा भी जल्दी मचा रहा था । शान्त रात में उसकी आवाज़ एक लपटदार तलवार की तरह ऊँची उठ रही थी । हालाँकि वह काफी दूर थी लेकिन जूलियस को पता था कि उसके सामने दूरियाँ बेकार थीं । इसलिए वह सड़क के किनारे कोकोयाम के फार्म में घुस गया और चौड़ी पत्तियों के आश्रय में पेट के बल पड़ गया । उसने अभी ऐसा किया ही था कि उसे प्रेतात्मा के डंडे की आवाज़ और उसके अजीबोगरीब भाषण की आवाज़ सुनाई दी । वह काँपने लगा । आवाजें उस पर हावी होने लगीं, उसके चेहरे को गीली धरती में लगभग गाड़ने लगीं । और अब उसे पैरों की आवाज भी सुनाई दी। लगता था कि बीसियों प्रेतात्माएँ एक साथ भाग रही हों । डर के कारण उसके सारे शरीर में पसीना छूट पड़ा और उसे उठकर भाग खड़े होने की इच्छा होने लगी । सौभाग्य से उसने स्वयं पर पूर्ण नियंत्रण रखा... जल्दी ही हवा और पृथ्वी में यह हलचल - बिजली का कड़कना, मूसलाधार बारिश, भूचाल और तूफान - सभी ख़त्म हो गया और दूर सड़क के दूसरी ओर खो गया ।

अगले दिन, चीफ क्लर्क के दफ्तर में एक स्थानीय निवासी गई रात में कुछ सिरफिरे नौजवानों द्वारा बुजुर्गों की सलाह के विरुद्ध शोर-शराबे और तेज़ रफ्तार वाले मुखौटे को शुरू करने की प्रक्रिया द्वारा किटिक्पा को उत्तेजित करने के खिलाफ शिकायत कर रहा था क्योंकि बुजुर्ग जानते थे कि इससे किटिक्पा को गुस्सा आयेगा और फिर...

मुश्किल तो यह थी कि इन अवज्ञा करनेवाले नौजवानों ने कभी भी स्वयं किटिक्पा की शक्ति का अनुभव नहीं किया था। उन्होंने तो सिर्फ सुना भर ही था । लेकिन जल्दी ही उन्हें भी पता लग गया ।

वहाँ खिड़की पर खड़े, खाली पड़े हाट को निहारते हुए जूलियस ने उस भयावह रात का अनुभव फिर किया । एक ही हफ्ता तो गुज़रा था लेकिन ऐसा लगता था कि जैसे वह कोई और ही जीवन रहा हो जहाँ वर्तमान और उस जीवन के बीच एक लम्बी खाई हो, खालीपन की । हर दिन के गुज़रने पर यह खाई गहरी होती जा रही थी । खाई के इस पार जूलियस खड़ा था और दूसरी ओर मा और जैनेट जिन्हें भयावह रचनाकार प्रतिष्ठित कर चुका था ।

(अनुवादक : हरीश नारंग)

(साभार : फौजी लड़कियाँ तथा अन्य कहानियाँ-साहित्य अकादेमी)

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