सर्टिफिकेट (बांग्ला कहानी) : विभूतिभूषण मुखोपाध्याय

Certificate (Bangla Story) : Bibhutibhushan Mukhopadhyay

आज नियुक्ति-पत्र मिला है।
नौकरी कोई बड़ी नहीं है, गृह-शिक्षक का काम मिला है। लेकिन यह पद भी लोभनीय है। कारण, गृह-शिक्षक का काम मिला है एक जमींदार के यहाँ। वह स्थान मुफस्सल में होते हुए भी स्वास्थ्यकर है। अभी वेतन अस्सी रुपए मिलेगा. भोजन और रहने का सम्पूर्ण बन्दोबस्त जमींदार ही करेंगे, जिसे पढ़ाना होगा-अर्थात् छात्र-वह स्कूल की आठवीं श्रेणी में पढ़ता है। वह तीन वर्ष के बाद मैट्रिक की परीक्षा देगा। इसके पश्चात् वह जब कॉलेज में पढ़ने जाएगा तो उसी के साथ कलकत्ते जाकर रहना होगा। कॉलेज की पढ़ाई समाप्त होने पर मुझे जमींदारी में ही कहीं नौकरी प्राप्त होने की भी संभावना है।

इस नियोग की एक बड़ी शर्त थी-सर्टिफिकेट। चरित्र प्रभृति के बारे में एक अच्छा सर्टिफिकेट न रहने पर दरख्वास्त पर विचार नहीं किया जाएगा-यह बात विज्ञापन में स्पष्ट लिखी हुई थी।

उपरोक्त नौकरी मिलने की कोई आशा ही नहीं थी। ऐसे पद के लिए प्रथम श्रेणी के एम.ए., पी-एच.डी. उपाधि-प्राप्त लोगों की दरख्वास्तें पहुँचेंगी; उस पर भी जान-पहचान, सिफ़ारिश आदि भी विचारणीय होंगी, इसलिए मेरे जैसा साधारण बी. ए. आवेदक टिक ही नहीं सकता था। फिर भी लोभ के वश में आकर मैंने आवेदन कर दिया था। शास्त्रों ने लोभ को रिपु की श्रेणी में रखा है, लेकिन यहाँ उसने मेरे मित्र का काम किया।
लेकिन फिर यह भी सोचता हूँ कि मित्र का काम अधिक किसने किया-लोभ ने, अथवा मेरे छात्र निकुंजलाल के निबंध ने?

निकुंजलाल को मैंने आठवीं श्रेणी से पढ़ाना शुरू किया था, इस बार उसने मैट्रिक की परीक्षा दी है। गत सप्ताह परीक्षा का फल प्रकाशित हुआ है। निकुंजलाल का फल भी बुरा नहीं हुआ। उसने द्वितीय श्रेणी में पास किया है। इसलिए मेरी इस कीर्ति के लिए मैं भी नेपोलियन की तरह यदि कहूँ कि 'असम्भव' शब्द केवल मूर्खों के कोष में ही मिलता है तो अशोभन नहीं लगेगा।

निकुंजलाल के पिता ब्रजमाधव बाबू खड़े हुए और बोले, 'आपने एक असाध्य साधन किया है, मास्टर साहब! मेरा लड़का है. इसलिए आपको आपके प्राप्य यश से वंचित रखूँगा, ऐसी बात नहीं है।

ब्रजमाधव बाबू स्वयं जमींदार थे। साथ ही ऑनरेरी मजिस्ट्रेट, और बंगीय जमींदार संघ के एक विशिष्ट कार्यकर्ता थे। वे यदि मुझे एक सर्टिफिकेट दे देवें तो मेरा काम बन जाए। लेकिन मैं जानता हूँ, वे ऐसा नहीं करेंगे।

इसका कारण यह है कि मैं असाध्य साधन कर सकता हूं। निकुंजलाल के पास होने की खबर जिस दिन मिली, उस दिन शाम को ही मैं ब्रजमाधव बाबू के पास गया और बोला, 'अब एक अच्छा-सा सर्टिफिकेट दे दीजिए। इसके लिए मैं बहुत दिनों से आशा कर रहा हूँ और आपने 'दूँगा' भी कहा था। आपके एक सर्टिफ़िकेट से मेरा भविष्य-निर्माण हो सकता है।'
ब्रजमाधव बाबू ने स्नेह से कहा, 'मिलेगा, ब्रजमाधव वैसा 'अन-एप्रिशिएटिव्' व्यक्ति नहीं है। कल सुबह आकर मिलना।'

दूसरे दिन मिलने पर उन्होंने निकुंजलाल के छोटे भाई को मुझे देते हुए कहा, 'यह रहा तुम्हारा सर्टिफिकेट...यह थोड़ा और भी डल (dull) है,-अपने बेटे की अयथा प्रशंसा ही करनी पड़ेगी इसका कोई अर्थ नहीं है।...यह लो, और अगले महीने से और भी पाँच रुपए अधिक मिला करेंगे।'

इनाम के रूप में उन्होंने एक महीने की तनख्वाह दे दी। मैंने यह सोचकर ग्रहण किया कि दूसरा चारा ही क्या है। कलकत्ते जैसे शहर में खाना-पीना और रहना। उस पर मासिक पच्चीस रुपए मिलता है। लेकिन भविष्य की विभीषिका को देखकर आतंक भी होता है। निकुंजलाल के बाद कुंजलाल, उसके बाद रंजनलाल और उसके बाद मंजुलिका। सभी एक-एक करके सिर पर चढ़ेंगे। उन्हें परीक्षा में पास कराने के बाद एक महीने का बोनस और पाँच रुपए वेतन में वृद्धि होगी। यही मेरे जीवन का प्रोसपेक्ट है? थोड़ा अधिक डल (dull) होता-होता सबसे छोटा रंजनलाल अब गूंगा होकर पैदा हुआ है।

कुंजलाल जलपान करने गया हुआ था। पढ़ाई के घर में बैठकर मैं किताबों के पन्ने उलट रहा था। लेकिन मन में शान्ति नहीं थी। विज्ञापन देखने के बाद से चित्त चंचल था। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। विज्ञापित नौकरी मिलने की आशा यद्यपि कम थी, लेकिन राय - बहादुर

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सोचते-सोचते सचमुच मेरा मन अत्यन्त अप्रसन्न हो गया। स्थिर कर लिया कि यदि झगड़ा हो जाए और नौकरी भी चली जाए, तो भी सर्टिफिकेट माँगूँगा।

इन्हीं सब प्रकार की चिन्ताओं में सहसा दिमाग में एक नई तरकीब पैदा हुई...मैंने सोचा, एक बार आजमा कर ही क्यों न देख ली जाए। क्या जरूरत है राजाबहादुर की खुशामद करने की!

निबन्ध के पन्नों को काट कर जेब में भर लिया और नौकर से कह दिया कि कुंजलाल आए तो कहना कि मास्टर जी का सिर दर्द करने लगा था इसलिए वे चले गए।

घर लौट कर मैंने एक दरख्वास्त लिखी। सर्टिफिकेट के रूप में निकुंजलाल के निबन्ध को नत्थी करके उस पर लिख दिया-सातवीं श्रेणी में जिस लड़के की पढ़ाई-लिखाई का यह नमूना है उसे मैंने तीन वर्ष की अमानुषिक मेहनत से इस वर्ष सेकेण्ड डिवीजन में मैट्रिक पास करवाया है। इसके अलावा और कोई सर्टिफिकेट की आवश्यकता होने पर भेजने का प्रयास कर सकता हूँ, लेकिन वह इतना प्रामाणिक नहीं होगा।

निकुंज का पितृ-परिचय भी थोड़ा-सा लिख दिया। जिससे किसी बात का संदेह पैदा न हो, और अखबार से निकुंज का परीक्षा-फल काट कर उसके नीचे लाल स्याही से दाग लगा कर सर्टिफिकेट के साथ चिपका दिया।

आज सुबह नियुक्ति-पत्र मिला है-टेलिग्राम, अर्थात् ऐसा असाध्य साधन, जो शिक्षक कर सकता, वह हाथ से कहीं निकल न जाए।

(अधूरी रचना)

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