कैमिल (कहानी) : अल्फ्रेड द मसेट
Camille (French Story in Hindi) : Alfred de Musset
('कैमिल' मसेट की उत्कृष्ट रचनाओं में से एक है। इसमें उन्होंने एक मूक-बधिर बालिका के संघर्षपूर्ण जीवन का मार्मिक एवं संवेदनशील चित्रण किया है।)
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आर्सीस का सामंत अश्वसेना में उच्चाधिकारी था। 1760 में ही नौकरी छोड़ देने के बाद वह मेंस के समीप अपनी जागीर पर रहने लगा था। कुछ समय के बाद उसने पड़ोस में रह रहे रिटायर व्यापारी की बेटी के साथ शादी कर ली। काफी समय तक दोनों का दांपत्य जीवन अत्यधिक सुखी रहा। सेसिल के संबंधी प्रतिष्ठित लोग थे। परिश्रम द्वारा अर्जित सुख-सुविधाओं का वे अपनी प्रौढ़ावस्था में प्रत्येक रविवार को आनंदपूर्वक उपभोग करते थे। वर्सेल्स के आडंबरयुक्त जीवन से ऊबकर वह भी उनकी साधारण खुशियों में आनंदपूर्वक शामिल हो गया। सेसिल के एक प्यारे अंकल थे—नाम था गिराड। वे एक कुशल राज-मिस्त्री थे। बाद में धीरे-धीरे आर्किटेक्ट बन गए। अब वे अच्छी-खासी संपत्ति के मालिक थे। सामंत का घर, जिसका नाम जार्डोनीयक्स था, गिराड ने अपनी अभिरुचि के अनुरूप बनवाया था। वह घर का नियमित व आदरणीय मेहमान था।
सामंत तथा सेसिल के यहाँ एक प्यारी नन्ही बिटिया ने जन्म लिया। आरंभ में माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, परंतु उनकी किस्मत में कष्टदायी सदमा लिखा था। जल्दी ही उन्हें पता चल गया था कि उनकी नन्ही बेटी कैमिल बहरी व गूँगी थी।
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माँ ने पहले इलाज करवाना चाहा, परंतु यह आशा इच्छा के विपरीत छोड़नी पड़ी। जिस समय की यह बात है, उस समय तथाकथित गूँगे-बहरे प्राणियों के प्रति कठोर, निर्मम अवधारणा थी। यह सच है कि कुछ सद्गुणसंपन्न व्यक्तियों ने इसका विरोध किया। सोलहवीं सदी के एक स्पेनिश संत ने सर्वप्रथम लोगों को बोलना सिखाने के साधनों की खोज की। बाद में बोनट, वेलीस, बुल्वर ने इटली, इंग्लैंड, फ्रांस में अलग-अलग समय में उसका अनुकरण किया। कहीं-कहीं पर उनके प्रयास सफल भी हुए। फिर भी यहाँ तक कि पेरिस में भी आमतौर पर गूँगे बहरे प्राणी को दैवी-प्रकोप का प्रतीक समझकर एक ओर कर दिया जाता था। बोलने की शक्ति के साथ-साथ उनकी विचारशक्ति की भी अवहेलना की जाती थी। उन्हें सहानुभूति के स्थान पर घृणा की दृष्टि से देखा जाता था।
कैमिल के माता-पिता की खुशियों को ग्रहण लग गया था। अचानक दोनों के बीच तलाक से ज्यादा कष्टदायी, मृत्यु से ज्यादा क्रूर मनमुटाव हो गया। माँ अपनी बेटी को बेतहाशा प्यार करती थी, जबकि सहृदय सामंत भावनाओं के वशीभूत हो, बहुत कोशिशों के बाद भी अपनी बीमार बेटी के प्रति घृणा से उबर नहीं पाया।
माँ अपनी बेटी से इशारों में बात करती थी और केवल वही उसकी बात को समझ पाती थी। घर के सभी सदस्य, यहाँ तक कि उसका पिता भी, कैमिल के लिए अजनबी थे। मादाम-द-आर्सीस की माँ, जो बिल्कुल भी व्यवहारकुशल नहीं थी, अपनी बेटी और दामाद के दुर्भाग्य की रात-दिन भर्त्सना करती रहती, ‘‘अच्छा होता कि वह पैदा ही नहीं होती,’’ एक दिन उसने कह ही डाला।
‘‘यदि मैं ऐसी पैदा होती, तब तुम क्या करती?’’ सेसिल ने गुस्से में पूछा।
अंकल गिराड को अपनी भतीजी की बेटी का गूँगा-बहरापन बिल्कुल भी दुर्भाग्यपूर्ण नहीं लगता था। वे कहते, ‘‘मेरी पत्नी इतनी ज्यादा बातूनी थी कि उसकी तुलना में और सब बातें कम बुरी लगती थीं। यह नन्ही बच्ची न तो कभी बुरे शब्द बोल पाएगी और न ही सुन पाएगी; पूरे घर में ओपेरा के हाव-भाव दिखाएगी; कभी लड़ाई नहीं करेगी, पति के जोर से खाँसने पर कभी जागेगी नहीं और अपने नौकरों को देखने के लिए जल्दी नहीं उठेगी। वह सबकुछ स्पष्ट देख पाएगी, क्योंकि बहरे व्यक्तियों में देखने की शक्ति अधिक होती है। वह सुंदर और बुद्धिमान होगी। किसी प्रकार का शोर नहीं करेगी। काश! मैं जवान होता तो उससे शादी करना चाहता। बूढ़ा हूँ, इसलिए जब तुम उससे थक जाओगी तो मैं उसको बेटी के रूप में गोद ले लूँगा।’’
अंकल गिराड की बातें सुनकर उदास माता-पिता के चेहरे थोड़ी देर के लिए खिल उठे, लेकिन जल्दी ही उन पर दोबारा उदासी के घने बादल घिर आए।
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समय के साथ-साथ नन्ही बालिका बड़ी होती गई। प्रकृति ने उसका कार्य सफलतापूर्वक निष्ठा के साथ संपन्न किया। दुर्भाग्यवश कैमिल के प्रति सामंत की कठोर भावनाओं में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं आया। उसकी माँ उसका प्रेमपूर्वक ध्यान रखती, आतुरतापूर्वक उसके छोटे-छोटे क्रियाकलापों, जीवन में उसकी रुचि के प्रत्येक हाव-भाव को देखने के लिए उसे कभी अकेला नहीं छोड़ती।
जब कैमिल की युवा मित्रों की शिक्षिका से पढ़ने की आयु हो गई, तब उस अभागी बालिका को अपने तथा दूसरों में अंतर दिखाई दिया। पड़ोसी के एक बालक की शिक्षिका बहुत कठोर थी। एक दिन कैमिल वहाँ पर स्पेलिंग-पाठ के समय उपस्थित थी। उसने अपनी आँखों से नन्हे साथी की कोशिश को हैरानी के साथ देखा। उसको महसूस हुआ जैसे वह उससे मदद माँग रही थी, डाँट पड़ने पर रो रही थी। संगीत के पाठ कैमिल को विशेष रूप से परेशान कर देते थे।
पड़ोसी अपने बच्चों के साथ नियमित रूप से संध्या-प्रार्थना करते थे। कैमिल को यह अजीब पहेली लगता। वह अपने मित्रों के साथ झुकती, बिना कुछ जाने-समझे अपने हाथ जोड़ देती थी। सामंत इसको धर्म-विरुद्ध समझता था, परंतु उसकी पत्नी नहीं। आयु के साथ-साथ उसके मन में एक भावना तीव्र होती गई—मानो यह पवित्र भावना ईश्वरेच्छा से प्रेरित हो, चर्चों के लिए जिन्हें वह देखती थी। एक मूक-बधिर का कथन है, ‘‘जब मैं बालक था, तब मैंने भगवान् नहीं देखा था, केवल आकाश देखा था।’’ धार्मिक शोभायात्रा, फूहड़, भड़कीली पोशाक में ‘वर्जिन’ की प्रतिमा, गंदे, ढीले-ढाले चोगों में गायक, जिनकी आवाज कैमिल को सुनाई नहीं देती थी, मालूम नहीं बालिका की आँखें ऊपर उठने का क्या मतलब है, आँखें ऊपर उठाकर देखने से क्या फर्क पड़ता है?
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कैमिल मनमोहक चाल-ढाल, लंबे, काले बालों, गोरे रंग की छोटी-सी, प्यारी-सी बालिका थी। वह अपनी माँ की इच्छा फौरन समझ जाती और बिना देर किए उसका अनुपालन करती। कोमलता और सुंदरता के साथ दुर्भाग्य जुड़ा था, जो सामंत को परेशान करता था। वह अक्सर उत्साहित होकर कैमिल का आलिंगन करता, ऊँचे स्वर में कहता, ‘‘मैं इतना कठोर हृदय नहीं हूँ।’’
बाग के आखिर में पेड़ों की छायादार पगडंडी थी। नाश्ते के बाद सामंत को वहाँ सैर करने की आदत थी। अपने कमरे की खिड़की से मादाम-द-आर्सीस उसको पेड़ों के नीचे इधर-से-उधर टहलते हुए ललचाई नजर से देखती रहती। एक दिन धड़कते दिल से उसने उसके साथ घूमने की हिम्मत जुटाई। उसकी इच्छा थी कि शाम को पड़ोस में होनेवाले किशोर-नृत्य में वह कैमिल को ले जाए। वह देखना चाहती थी कि उसकी बेटी के सौंदर्य का बाहरी दुनिया और उसके पति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? कैमिल के लिए सौंदर्य प्रसाधन चुनने के कारण वह पूरी रात नहीं सोई। अपने मन में उसने मधुरतम आशाएँ सँजो रखी थीं। ‘‘निश्चित रूप से यह होगा,’’ उसने स्वयं से कहा, ‘‘सामंत को गर्व होगा व अन्य सब लोग इस अभागी लड़की से ईर्ष्या करेंगे। वह कुछ नहीं बोलेगी, परंतु वह सबसे ज्यादा सुंदर होगी।’’
सामंत ने वर्सेल्स के सभ्याचार के अनुरूप अपनी पत्नी का विनम्रतापूर्वक स्वागत किया। साथ-साथ टहलते हुए उन्होंने कुछ साधारण वाक्यों से बातचीत शुरू की। फिर दोनों के बीच मौन छा गया। मादाम-द-आर्सीस पति से कैमिल के बारे में बात करने के लिए उपयुक्त शब्द तलाश रही थी। उसको विश्वास था कि वह उसे कैमिल के बाहरी दुनिया न देखने के संकल्प को तोड़ने के लिए मना लेगी। सामंत भी सोच में डूबा हुआ था। उसने पहले बात शुरू की। पत्नी को बताया कि अत्यावश्यक पारिवारिक काम से उसको अगली सुबह हौलेंड जाना पड़ेगा।
मादाम आसानी से उसका वास्तविक उद्देश्य समझ गई। सामंत के मन में पत्नी का परित्याग करने का विचार नहीं था फिर भी उससे कुछ समय अलग रहने की अदम्य इच्छा एवं आवश्यक विवशता थी। किसी भी दुःख के समय मनुष्य एकांत खोजता है, दुःखी पशुओं में भी यह इच्छा होती है।
उसकी पत्नी ने उसके कार्यक्रम का कोई विरोध नहीं किया, परंतु उसका हृदय इस बात से दुःखी हो गया। थकावट की शिकायत कर वह एक जगह बैठ गई। बहुत देर तक वह वहाँ पर उदास अन्यमनस्क बैठी रही। आखिरकार उठी, अपनी बाँह पति की बाँह में डाली और दोनों एक साथ लौट आए।
अभागी औरत पूरी दोपहर अपने कमरे में शांतिपूर्वक प्रार्थना करती रही। शाम को लगभग आठ बजे उसने घंटी बजाई और बग्घी में घोड़े जोतने का आदेश दिया, साथ ही सामंत के पास संदेश भिजवाया कि वह नृत्य समारोह में जाना चाहती है, आशा है, वह भी उसके साथ चलेगा।
सफेद मलमल की कढ़ाई की हुई ड्रेस, सफेद साटिन के छोटे जूते, अमेरिकी मोतियों का नेकलेस, नीले पुष्पों का मुकुट—ऐसी सामान्य सज्जा थी कैमिल की। तैयार करने के बाद माँ खुशी से उछल पड़ी। मादाम अपनी बेटी को गले लगाकर बोली, ‘‘तुम सुंदर हो! सचमुच बहुत सुंदर हो।’’ सामंत भी उनमें शामिल हो गया। उसने अपने हाथ में पत्नी का हाथ पकड़ा और तीनों नृत्य समारोह में चल दिए।
कैमिल पहली बार लोगों के बीच जा रही थी। उसका उत्सुकता से उत्तेजित होना स्वाभाविक था। सामंत प्रत्यक्ष रूप से दुःखी था। जब उसके मित्र उसकी बेटी के सौंदर्य की प्रशंसा कर रहे थे, तब उसको महसूस हो रहा था मानो वे उसे तसल्ली दे रहे हैं। ऐसी सांत्वना उसके स्वभाव के अनुरूप नहीं थी। इस पर भी वह अपने गर्व और प्रसन्नता की भावना को छिपा नहीं पा रहा था। उसकी भावनाएँ अजीब तरीके से मिली-जुली थीं। कमरे में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति का सांकेतिक अभिवादन करने के बाद कैमिल अपनी माँ के साथ बैठ गई। सामान्य रूप से प्रशंसा अतीव उत्साहवर्धक थी। वास्तव में उस मूक-बधिर आत्मा के लिए हाथ में रखे लिफाफे से ज्यादा प्रिय और क्या हो सकता था! उसके शरीर की बनावट, उसका चेहरा, लंबे घुँघराले बाल, आँखों की अतुलनीय चमक ने सबको हैरान कर दिया। उसका विचारमग्न चेहरा, मनमोहक हाव-भाव भी अत्यधिक करुणाजनक थे। मादाम-द-आर्सीस को लोगों ने घेर लिया और उससे कैमिल के बारे में हजारों सवाल पूछने शुरू कर दिए। आश्चर्य व थोड़ी बेरुखी से हार्दिक सहानुभूति व दयाभाव प्रकट करने लगे। उन्होंने इतना आकर्षक बच्चा पहले कभी नहीं देखा था। उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती थी, क्योंकि उस जितना आकर्षक कोई था ही नहीं। कैमिल पूर्ण रूप से संतुष्ट थी।
बाहर से हमेशा शांत रहनेवाली मादाम-द-आर्सीस ने उस रात अपने जीवन में पूर्ण, असीम आनंद का रसास्वादन किया। उसके और पति के बीच मुसकराहट का आदान-प्रदान अनेक आँसुओं का मूल्य था।
सामंत अपनी बेटी को निहार रहा था कि लोक-नृत्य शुरू हो गया। कैमिल ने दत्तचित्त होकर उसको देखा। एक लड़के ने उसको नृत्य के लिए आमंत्रित किया। जवाब में उसने सिर हिलाकर मना कर दिया। ऐसा करते समय उसके मुकुट से कुछ नीले पुष्प नीचे गिर गए। माँ ने उनको उठाया और जल्दी ही जूड़े में ठीक स्थान पर लगा दिया। मुकुट उसने अपने हाथ से बनाया था। उसके बाद उसने अपने पति को चारों तरफ देखा, परंतु वह कमरे में नहीं था। उसने पूछा कि क्या वे चले गए थे? पता चला कि वे पैदल ही घर चले गए थे।
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सामंत ने अपनी पत्नी को बताए बिना घर जाने का फैसला कर लिया था। वह किसी भी तरह के वाद-विवाद और जवाबदेही से बचना चाहता था। वह जल्दी ही वापस जाना चाहता था। इसलिए उसने जुबानी विदाई लेने की अपेक्षा पत्र द्वारा सूचना देने में ही बुद्धिमानी समझी। कारोबार के सिलसिले में बाहर जाने की बात कुछ सीमा तक सच थी, परंतु कारोबार ही उसकी प्राथमिकता नहीं थी। उसके एक मित्र ने जल्दी चलने के लिए लिखा था, यह एक अच्छा बहाना था। अपने घर अकेला लौटने के बाद (एक छोटे रास्ते से) उसने अपने नौकरों को अपने जाने की बात बताई। जल्दी-जल्दी अपना सामान बाँधा, हलका-फुलका सामान शहर भेज दिया। स्वयं घोड़े पर सवार होकर चला गया।
इस पर भी उसको एक चिंता सताती रही, वह जानता था कि इस प्रकार उसके चले जाने के कारण सेसिल को दुःख होगा। हालाँकि वह खुद को दिलासा देता रहा कि उसने ऐसा न केवल अपने लिए, बल्कि उसके लाभ के लिए भी किया था। जो भी हो, वह अपने रास्ते पर बढ़ता रहा।
मादाम-द-आर्सीस भी बग्घी में बैठकर वापस घर के लिए चल पड़ी। उसकी बेटी उसके घुटनों के ऊपर सिर रखे सो रही थी। सामंत के कठोर व्यवहार से दुःखी थी कि उसने उन्हें वापस जाने के लिए अकेला छोड़ दिया था। यह उसका और उसकी बच्ची के लिए सार्वजनिक रूप से तिरस्कार था। नई बनी सड़क के पत्थरों पर हिचकोले खाती बग्घी के साथ-साथ माँ के दिल में अज्ञात आशंका होने लगी। उसने सोचा, ‘हम सबको ईश्वर देख रहा है। दूसरों की भाँति उसकी दृष्टि हम पर भी है, परंतु हम क्या कर सकते हैं? मेरी इस अभागी बच्ची का क्या होगा?’
‘जार्डोनीयक्स’ से पहले एक नदी को पार करना पड़ता था। पिछले एक महीने से लगातार भारी बरसात के कारण नदी का पानी किनारे तोड़कर बह रहा था। पहले तो मल्लाह ने बग्घी को अपनी नाव में ले जाने से मना कर दिया। उसने कहा कि वह केवल सवारियों और घोड़े को ही दूसरे किनारे पर पहुँचा सकता है, बग्घी को नहीं। महिला अपने पति से मिलने के लिए उत्सुक थी। उसने मल्लाह की बात नहीं मानी। कोचवान को नाव पर बग्घी चढ़ाने का आदेश दिया। केवल कुछ ही मिनटों का रास्ता था, जिससे वह सैकड़ों बार गुजर चुकी थी।
बीच नदी में तेज लहरों से नाव अपने सीधे रास्ते से भटक गई। मल्लाह ने कोचवान से नाव को बाँध से दूर रखने में मदद माँगी। बाँध के पास ही एक पनचक्की थी, जहाँ पर पानी की तेज धार जलप्रपात की तरह गिरती थी। स्पष्ट था कि यदि नाव उस स्थान पर चली गई तो भयंकर दुर्घटना हो जाएगी।
कोचवान अपनी सीट से उतरकर पूरी ताकत के साथ कोशिश करने लगा। उसके पास काम करने के लिए एक ही चप्पू था। अँधेरी रात, धुआँधार बारिश, कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। जल्दी बाँध के शोर ने आनेवाले भयावह खतरे की चेतावनी दे दी। बग्घी में बैठी मादाम-द आर्सीस ने खतरे की आशंका से घबराकर खिड़की खोल दी। ‘‘क्या हम रास्ता भटक गए हैं?’’ वह चिल्लाई। उसी वक्त चप्पू टूट गया। दोनों आदमी जख्मी हाथों के साथ थककर नदी में गिर गए।
मल्लाह तैरना जानता था, कोचवान नहीं। समय नहीं था। ‘‘पियरे जॉर्ज,’’ मादाम ने मल्लाह को उसका नाम लेकर पुकारा, ‘‘क्या तुम मुझे और मेरी बेटी को बचा सकते हो?’’
‘‘निश्चित रूप से।’’ मानो यह सवाल पूछने पर उसकी बेइज्जती हो गई हो, उसने जवाब दिया।
‘‘हमें क्या करना होगा?’’ मादाम-द-आर्सीस ने पूछा।
‘‘आप मेरे कंधों पर लटक जाएँ।’’ मल्लाह ने कहा, ‘‘अपनी बाँहें मेरे गले में डाल लें। जहाँ तक बच्ची का सवाल है, उसे मैं एक हाथ से पकड़ लूँगा और दूसरे से तैरूँगा। वह डूबेगी नहीं। यहाँ से थोड़ी ही दूर आपके आलूवाले खेत हैं।’’
‘‘और जॉन।’’ मादाम ने कोचवान के बारे में पूछा।
‘‘मेरे खयाल में जॉन बच जाएगा। यदि वह बाँध के साथ लटका रहता है तो वापस आकर उसको ले जाऊँगा।’’
पियरे जॉर्ज ने दोहरा बोझ उठा लिया। उसने अपनी ताकत का गलत अंदाजा लगा लिया था। वह अब जवान नहीं था। किनारा दूर था। नदी में पानी का बहाव तेज था। वह पूरी ताकत के साथ कोशिश कर रहा था, लेकिन बहते-बहते बचा। तभी पानी में सरपत के पेड़ का तना उसके सिर से जोर से टकराया और वह रुक गया। जख्म से खून बहने लगा और नजर धुँधली पड़ गई।
‘‘अगर तुम्हें ले जाना पड़े तो क्या तुम मेरी बच्ची को बचा सकते हो?’’ माँ ने पूछा।
‘‘मैं कह नहीं सकता, सोचता हूँ, बचा लूँगा!’’ मल्लाह बोला।
माँ ने मल्लाह के गले से अपनी बाँहें निकाल लीं और पानी में समा गई।
मल्लाह ने कैमिल को आलू के खेत में सुरक्षित उतार दिया। कोचवान को भी एक किसान ने बचा लिया था। कोचवान ने मादाम-द-आर्सीस का मृत शरीर ढूँढ़ने में मल्लाह की मदद की। अगले दिन वह नदी के किनारे पर मिला।
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माँ के निधन पर कैमिल का दुःख देख पाना भयावह था। वह बेसुध अस्पष्ट स्वर में चिल्लाती हुई, अपने बाल नोचती, दीवारें पीटती इधर-उधर भाग रही थी। इन कष्टकारक भावनाओं के कारण घर में असहज शांति छा गई। धीरे-धीरे कारण भूलने लगा था।
ऐसे समय अंकल गिराड अपनी भतीजी की बेटी की सहायता के लिए आगे आए। ‘‘अभागी बच्ची!’’ इस समय उसके पास माता-पिता कोई नहीं है । वह हमेशा से मेरी लाडली रही है। मैं अब उसको अपने संरक्षण में लेना चाहता हूँ।“परिवर्तित माहौल, "अंकल गिराड ने कहा, "बच्ची के लिए लाभदायक रहेगा ।"
सामंत को पत्र लिखकर अनुमति ली और कैमिल को अपने साथ पेरिस ले गए। सामंत का जार्डोनीयक्स लौट आया। वहाँ पर वह सभी का साथ छोड़कर शोक तथा पश्चात्ताप की अग्नि में दग्ध एकाकी जीवन व्यतीत करने लगा। एक साल बीत गया। अंकल गिराड अभी तक कैमिल को दुःख से उबार नहीं पाए थे। धीरे-धीरे उसने किसी भी चीज में रुचि लेनी छोड़ दी थी । आखिरकार उन्होंने एक दिन जैसे-तैसे उसको ओपेरा चलने के लिए राजी किया। वहाँ जाने के लिए एक सुंदर ड्रेस खरीदी। उसे पहनकर दर्पण में अपना सुंदर चेहरा देखकर वह बहुत खुश हुई। उसके प्यारे अंकल उसके चेहरे पर मुसकराहट देखकर प्रसन्न हो गए।
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कैमिल को जल्दी ही ओपेरा में उकताहट होने लगी । उसको लग रहा था जैसे सभी अभिनेता, संगीतकार, श्रोता उससे कह रहे थे, 'हम बोल सकते हैं, तुम नहीं। तुम किसी चीज का आनंद नहीं ले सकती, कुछ नहीं सुन सकती। तुम केवल एक प्रतिमा हो, तुम इनसान की प्रतिकृति हो, जीवन की मूकदर्शक हो ।'
इस हास्यास्पद दृश्य को दिमाग से निकालने के लिए उसने आँखें बंद कर लीं। उसके दिमाग में बचपन के दृश्य कौंधने लगे। वह कल्पना में अपने गाँव वाले घर में पहुँच गई, अपनी माँ का प्यारा चेहरा देखा । बहुत भावुक हो गई थी वह। अंकल गिराड उसकी आँखों से लुढ़कते आँसू देखकर परेशान हो गए। उन्होंने उसके दुःख का कारण पूछा तो उनको इशारों से बताया कि वह वापस जाना चाहती थी । वह उठ खड़ी हुई और अपने बॉक्स का दरवाजा खोल लिया ।
उसी क्षण किसी चीज ने उसका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। सुंदर, बढ़िया कपड़े पहने एक नौजवान दिखाई दिया। वह अपनी छोटी-सी स्लेट पर चाक से अक्षर और आकृतियाँ बना रहा था। बीच-बीच में उम्र में अपने से बड़े पड़ोसी को वह स्लेट दिखा रहा था, स्पष्ट था कि वह उसपर लिखा फौरन समझ जाता था और उसी प्रकार उत्तर लिख देता था, साथ ही साथ दोनों आपस में संकेतों का आदान-प्रदान भी कर रहे थे ।
कैमिल की उत्सुकता और रुचि बढ़ती जा रही थी । उसने यह बात देख ली थी कि उस नौजवान के होंठ नहीं हिल रहे थे। वह समझ गई कि वह ऐसी भाषा में बात कर रहा था, जो दूसरों की भाषा नहीं थी। उसने बोलने की शक्ति के बिना अपनी बात बताने का कोई तरीका ढूँढ़ निकाला था। वह तरीका उसके लिए अबोध्य तथा असंभव था। वह उसे अधिक देखने की इच्छा को रोक नहीं पाई। वह बॉक्स के किनारे पर झुककर उस अजनबी के क्रियाकलापों को गौर से देखने लगी। जब उसने स्लेट पर लिखकर दोबारा अपने साथी को स्लेट पकड़ाई तो अनचाहे कैमिल ने उसे लेने का इशारा किया। ऐसा करने पर नौजवान ने मुड़कर कैमिल को देखा। दोनों की आँखें मिलीं। दोनों में एक ही भाव था, 'हम दोनों की स्थिति समान है; हम दोनों मूक-बधिर हैं।'
अंकल गिराड अपनी भतीजी की बेटी के कपड़े ले आए थे, लेकिन अब उसने वापस जाने का इरादा छोड़ दिया था। वह अपनी सीट पर बैठ गई थी और उत्सुकतापूर्वक आगे झुककर देख रही थी।
उस समय कुछ लोग ऐबे-द-लेपे के बारे में जानने लगे थे। मूक-बधिरों की दयनीय स्थिति देखकर इस भद्र पुरुष ने एक ऐसी भाषा का आविष्कार किया था जो संभवतः लेबनीज से श्रेष्ठ थी। उसने मूक-बधिरों को लिखना पढ़ना सिखाकर अपने साथियों के बराबर बना दिया था । वह अकेले, बिना किसी सहायता के अपने मूक-बधिर साथियों को प्रशिक्षण दे रहा था । उनके हित के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार था। कैमिल द्वारा देखा गया नौजवान ऐबे के प्रथम शिष्यों में से एक था। वह मौवरे के सामंत का बेटा था।
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यह एक निर्विवाद तथ्य था कि कैमिल अथवा उसके अंकल को ऐबे -द-लेपे के इस नए तरीके के बारे में किसी प्रकार की जानकारी नहीं थी। कैमिल की माँ यदि जीवित रहती तो निश्चित रूप से ढूँढ़ निकालती, लेकिन जार्डोनीयक्स पेरिस से बहुत दूर था, सामंत कोई अखबार नहीं लेता था, लेता भी तो उसे पढ़ता नहीं था। इसलिए आलस्य अथवा मृत्यु का प्रभाव समान रूप से पड़ सकता था।
ओपेरा से लौटने के बाद कैमिल के दिमाग में एक ही विचार घूम रहा था । उसने अपने अंकल को इशारों से समझाया कि उसे लिखने का सामान चाहिए। हालाँकि भले आदमी ने डिनर नहीं किया था, फिर भी वह अपने कमरे में भागा-भागा गया और बोर्ड व चाक का एक छोटा टुकड़ा, जो बिल्डिंग और बढ़ईगिरी के पुराने प्यार की याद था, ले आया।
कैमिल ने घुटनों पर बोर्ड रखकर अंकल को इशारों से बताया कि वे उसके पास बैठकर बोर्ड पर कुछ लिखें। बेटी के हृदय पर कोमलता से हाथ रखकर उसने बड़े-बड़े अक्षरों में उसका नाम 'कैमिल' लिखा। उसके बाद अपने शाम के काम से संतुष्ट होकर वह खाने की मेज पर बैठ गया ।
कैमिल, जितना जल्दी संभव हो पाया, बाँहों में बोर्ड लेकर अपने कमरे में चली गई। भारी-भरकम कपड़े उतारकर एक तरफ रखे, अपने बाल ढीले किए और अपने अंकल द्वारा लिखे हुए शब्द की परिश्रम और सावधानी के साथ नकल उतारने लगी। कई बार कोशिश के बाद वह अक्षरों को एकदम साफ लिखने में सफल हो गई। उस शब्द का उससे क्या संबंध था, यह कौन बताएगा ?
जुलाई की सुहावनी रात थी। कैमिल ने खिड़की खोल रखी थी, काम में रुक-रुककर बाहर देख लेती थी । यद्यपि बाहर का नजारा उदासी से भरा था । बग्घियाँ रखनेवाले दालान के ऊपर खिड़की थी । शेड के नीचे चार-पाँच बग्घियाँ खड़ी थीं। दो-तीन बग्घियाँ ऐसे खड़ी थीं जैसे अस्तबल से घोड़ों के आने का इंतजार कर रही हों। दालान की दीवारें ऊँची थीं तथा दरवाजा बंद था ।
अचानक कैमिल को कठिन परिश्रम के बाद किसी आदमी के इधर से उधर चक्कर काटने का एहसास हुआ। वह बुरी तरह से डर गई। आदमी एकटक उसकी खिड़की की तरफ देख रहा था । कुछ क्षणों के बाद कैमिल ने साहस बटोरा, अपने हाथ में लैंप लिया और खिड़की से नीचे झुककर इस तरह घुमाया कि उसकी रोशनी दालान में फैल गई। मौवरे का सामंत! हाँ, वही था । समझ गया कि उसे देख लिया गया है। उसने घुटनों के बल बैठकर सम्मानजनक, प्रशंसनीय भाव से कैमिल की तरफ देखते हुए ताली बजाई। फिर वह उठ खड़ा हुआ, बीच में खड़ी दो-तीन बग्घियों के ऊपर चढ़कर कुछ ही मिनटों में कैमिल के कमरे में जा पहुँचा। वहाँ उसने सबसे पहले उसका झुककर अभिवादन किया । वह उससे बात करने का कोई तरीका ढूँढ़ रहा था। मेज पर ‘कैमिल' शब्द लिखे बोर्ड पर उसकी नजर पड़ी, उसने चाक का टुकड़ा उठाया और उस नाम के साथ अपना नाम 'पियरे' लिख दिया।
'तुम कौन हो, यहाँ क्या कर रहे हो?" गुस्से में भरी आवाज दहाड़ी। अंकल गिराड थे। उन्होंने उस घुसपैठिए पर गालियों की बौछार कर दी। वे उसी समय कमरे में आए थे। सामंत ने शांत भाव से बोर्ड पर कुछ लिखा और अंकल गिराड के हाथ में थमा दिया। उन्होंने हैरानी के साथ ये शब्द पढ़े, "मैं मिस कैमिल से प्रेम करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ। मैं मौवरे का सामंत हूँ। क्या आप कैमिल का हाथ मेरे हाथ में देंगे?"
अंकल का गुस्सा शांत हो गया था । 'ठीक है, ' उन्होंने मन ही मन कहा। उन्होंने ओपेरा में मौजूद उस नौजवान को पहचान लिया था, सीधे विषय पर आकर जल्दी से मतलब की बात की, 'मैंने ऐसे मूक-बधिर नहीं देखे'।
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सच्चा प्रेम शांतिपूर्वक परवान चढ़ने लगा। सामंत ने अपनी बेटी के विवाह की स्वीकृति सहजता से दे दी। उसको यह विश्वास दिलाना कि मूक-बधिर को लिखना पढ़ना सिखाया जा सकता था, अति कठिन काम था। हाथ कंगन को आरसी क्या! (आँखों देखे को प्रमाण की जरूरत नहीं थी) विवाह के दो-तीन साल बाद सामंत को एक दिन बेटी का पत्र मिला । लिखा था, “प्रिय पापा, मैं बोल सकती हूँ, मुँह से नहीं हाथों से।" उसने लिखा था कि उसने यह किस प्रकार सीखा था । भद्र पुरुष लेबे द लेपे को अपनी इस नई जुबान का श्रेय दिया था। उसने अपने बच्चे की खूबसूरती का विवरण लिखा था और प्रेमपूर्वक अनुरोध किया था कि वे अपनी बेटी और नाती से मिलने के लिए आएँ ।
पत्र मिलने के बाद सामंत काफी समय तक बेटी के पास जाने में हिचकिचाता रहा। जब उसने अंकल गिराड से परामर्श किया, तब उन्होंने कहा, "तुम्हें जरूर जाना चाहिए। तुम अपनी पत्नी को नृत्य समारोह में अकेले छोड़ आने के लिए निरंतर स्वयं को धिक्कारते रहते हो। क्या तुम अपनी बच्ची को, जो तुमसे मिलना चाहती है, भी त्याग दोगे? आओ, हम दोनों चलते हैं। उसने निमंत्रण-पत्र में मुझे शामिल नहीं किया है, इसके लिए मैं उसको कृतघ्न समझता हूँ ।"
'वे ठीक कह रहे हैं,' सामंत ने सोचा, 'मैंने दो श्रेष्ठ महिलाओं के ऊपर अनावश्यक निर्मम अत्याचार किया है। मैंने अपनी पत्नी का संरक्षक होने की बजाय उसको भयावह मृत्यु के हवाले कर दिया । यदि कैमिल के पास जाने से कष्ट होता है तो वह उपयुक्त पश्चात्ताप होगा। मैं उस दुःखद सुख की अनुभूति करूँगा। मैं अपनी बेटी से मिलने जाऊँगा ।'
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फबोर्ग सेंट जरमेन में एक घर के सुसज्जित बेडरूम में कैमिल के पिता और अंकल गिराड की कैमिल और पियरे से मुलाकात हुई। मेज पर किताबें और चित्र फैले हुए थे। पति पढ़ रहा था, पत्नी कढ़ाई कर रही थी, बच्चा कालीन पर खेल रहा था । आदरणीय नवागुंतकों को देखकर नौजवान सामंत खड़ा हो गया, कैमिल अपने पिता के पास दौड़ी। पिता ने जब उसको प्यार से गले लगाया, तब वह अपने आँसू नहीं रोक पाई । सामंत ने उत्साहपूर्वक बच्चे को देखा । कोशिश करने पर भी जो अरुचि कैमिल की विकलांगता को देखकर होती थी, वही नन्हे प्राणी को देखकर होने लगी । निस्संदेह, बालक को भी विरासत में विकलांगता मिली होगी।
"एक और मूक-बधिर, " वह चिल्लाया ।
कैमिल ने अपने बेटे को बाँहों में उठाया, बिना सुने ही वह पिता के मन की बात समझ गई थी । बच्चे को प्यार से सामंत के पास ले गई, उसने बच्चे के होंठों पर उँगलियाँ रखीं, उनको धीरे से सहलाया, मानो बोलने के लिए कह रही हो। कुछ ही क्षणों बाद वह उन शब्दों को, जो माँ ने सिखाए थे, स्पष्ट बोल रहा था, "गुड मॉर्निंग पापा ।"
'अब तुम समझ सकते हो," अंकल गिराड बोले, “भगवान् सब पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखता है।"
(अनुवाद : प्रमिला गुप्ता)