बूढ़ी हवेली (फिनिश कहानी) : फ़्रांस एमिल सिलांपा

Boodhi Haveli (Finnish Story in Hindi) : Frans Eemil Sillanpää

सेल्मा कोल्जास को उसके साथी अच्छी तरह से समझते नहीं थे। विशेष रूप से वे लोग, जो युवा थे और रोमांच पसंद करते थे। उसने कुछ ऐसा प्रभाव बना लिया था, जैसे वह दुनिया की सबसे निपुण लड़की है। अपनी सम्मोहक आँखों से वह ऐसा जादू फेंकती कि कोई कवि भी सॉनेट लिखने लगता।

लोगों को आश्चर्य था कि उसने विवाह क्यों नहीं किया। उसके बारे में गाँव में किसी तरह के क़िस्से नहीं फैले। हर दृष्टि से वह बहुत आकर्षित थी। वह बड़ी सादगी से नृत्य करती और सुरुचिपूर्ण वस्त्र पहनती। इन सारे गुणों के अतिरिक्त उसकी निश्चल आँखें कुछ ऐसी मोहक थीं कि किसी का भी दिल जीत सकती थीं।

एक शाम, एक नृत्य में एक बड़ी आश्चर्यजनक घटना घटी। सेल्मा भी वहाँ उपस्थित थी। ऐसे कार्यक्रमों में युवतियाँ अपनी माओं या पारिवारिक मित्रों के संरक्षण में आती थीं। ऐसी ही एक संरक्षिका मादाम लितुका, जो एक अमीर व्यापारी की पत्नी थी, अपनी बेटी एल्मा और संभावित दामाद के साथ वहाँ आती थी। वह लड़का एक निर्धन छात्र था, जो समय-समय पर उस व्यापारी की मदद से गुज़ारा करता था, समाज उसे नीची नज़रों से देखता था।

जब एल्मा अपने भावी पति के साथ नाचती तो कई परिचित निगाहें और फुसफुसाहटें उसकी माँ से टकरातीं। पर आज लग रहा था कि एल्मा की वह पूरी शाम अकेले में ही कटेगी, क्योंकि उसके भावी पति का कहीं नामोनिशान नहीं था। व्याकुलता-भरे अंतराल के बाद अचानक वह प्रकट हुआ। सेल्मा उसके साथ थी और वह उसी के साथ नाचने लगा।

ग़ुस्से से लाल-पीली हुई व्यापारी की पत्नी झटके से उठी और सारे शिष्टाचार भूलकर दरवाज़े के बाहर निकल गई। उसकी बेटी एल्मा, जो प्यार के बारे में सिर्फ़ उतना ही जानती थी, जितना उसकी माँ ने उसे बताया था, अपनी माँ को उठते देख उठी और हिचकती हुई-सी पीछे-पीछे चल पड़ी। उस अपमानजनक स्थिति को लेकर अपनी माँ के तीखे शब्द उसके कानों में पड़ रहे थे।

इसी बीच एक दयालु मित्र ने छात्र के कानों में फुसफुसाकर मादाम लितुका की नाराज़गी के बारे में बताया।

उस अभागे युवक ने कई तरह से अपनी सफ़ाई देने की कोशिश की, पर उसकी क्षमायाचना पर मादाम लितुका ने कोई ध्यान न दिया।

दूसरी ओर सेल्मा ने इल्मारी सेलोने के साथ नाचना शुरू करने के बाद से अपने इस नए संबंध को लेकर पुनर्विचार नहीं किया। इस तरह के संबंधों को लेकर वह ज़्यादा सोच-विचार नहीं करती थी। वह सुबह होने तक नाचती रही और उसके बाद अपने भाई और छोटी बहन के साथ, उस शाम के आनंद से संतुष्ट हो घर चली गई।

कोल्जास परिवार का घर बहुत ही रमणीक जगह पर बना हुआ था। पास से गुज़रते लोग कई दृष्टियों से उसकी प्रशंसा करते थे। अपने उपभवनों के साथ यह एक बड़ा ही मोहक आकार बनाता था। बारिश के बाद तो यह और भी मोहक लगता था। सफ़ेद दीवारों के ऊपर लाल रंग की ढलवाँ छत, आस-पास सब जगह हरियाली और ऊपर नीला आसमान, इस पर आते-जाते काले बादल उसकी रूप छटा को द्विगुणित कर देते थे।

कोई भी छात्र (ऊपर वर्णित छात्र नहीं) जब पास से गुज़रता तो वह दरवाज़े के बिलकुल पास से गुज़रने के मोह से थोड़ा लंबा रास्ता लेने में संकोच न करता। वह स्कूल जाने वाली सेल्मा कोल्जास और उसकी छोटी बहन को शक्ल से पहचानता था और गेट से भीतर झाँकते हुए वह यह अनुमान लगा लेता कि वे इस पुरानी हवेली के भीतर किसी न किसी कमरे में चहलक़दमी कर रही होंगी। वह उनके भाई उर्तो कोल्जास को थोड़ा-सा जानता था। वह डॉक्टरी पढ़ रहा था।

उस विशेष दिन वहाँ कोई नहीं दिखाई दिया। यहाँ तक कि गुलाब तथा अँगूर की बेलें, जो बालकनी तक चली गई थीं, भी बड़ी बेरुख़ी रही थीं।

दूर घर के पिछवाड़े से चिराबेल के विशाल झुरमुट झील तक चले गए थे। एक छोटी-सी घटना ने घटनाओं की एक कड़ी को जन्म दे दिया था। जैसे एक कली खिलकर फूल बनती है तो पूरी फ़िज़ा में ही अपनी सुगंध बिखेर देती है।

ऊपर की एक खिड़की पर सेल्मा एक क्षण के लिए दिखाई दी। पर वह एक क्षण ही खिड़की पर पड़ी उसकी लंबे बालों वाली छायाकृति को पहचानने के लिए काफ़ी था। हवा से उड़ रहे नीले और सफ़ेद पर्दे को उसने ठीक किया और एक क्षण के लिए विचारपूर्ण दृष्टि से बाहर बिखरी शांति और सौंदर्य को देखा।

इसी एक घटना की उम्मीद से ही तो छात्र कोल्जास निवास के बाहर आकर ठहरता था। वायनो कोल्जास के सोलहवें जन्मदिन के बाद दो दिन और बीत गए हैं, पर इस अवसर पर दी गई पार्टी के निशान अभी तक दिख रहे थे।

हालाँकि घर में फिर से रोज़ वाले काम शुरू हो गए थे, फिर भी सेल्मा पर वे प्रभाव अभी बाक़ी थे, जो उत्सव ने उस पर छोड़े थे।

उसके भाई समेत सारे मेहमान जा चुके थे। बाहर से बुलाया गया हलवाई अपने सारे कारीगरों के साथ लौट गया था। रसोई में चिरपरिचित गंध उठने लगी थी और रसोइए ने अपना काम सँभाल लिया था।

वायनो पहले की तरह दूर पार्क में बने गुड़ियाघर में घंटों बैठे रहने की अपनी आदत पर चलने लगी थी।

जुलाई की उस गर्म दुपहर को उस पुरानी हवेली में हर चीज़ सो रही प्रतीत हो रही थी।

समय एक भार-सा लटका हुआ था और बेआवाज़ आगे खिसक रहा था। सेल्मा कुर्सी के हत्थे पर बैठ गई और सोचने लगी, ‘वायनो सोलह साल की हो गई है—काफ़ी बड़ी हो गई है वह और मैं अट्ठाईस की हूँ इसका क्या मतलब? यानी इतने वसंत मैंने देख लिए हैं और दो साल बाद मैं तीस की हो जाऊँगी। मैं कितनी ख़ुश हूँ। क्या यहीं पर बूढ़ा हो जाना संभव है? नहीं, मैं नहीं समझती कि ऐसा होगा।’ उसने ख़ुद से कहा।

जब भी वह अपने बारे में सोचने बैठती, ऐसे विचार उसके दिमाग़ में भी आते। उसके विचार अधिकाधिक अस्पष्ट हो जाते, जैसे उसका दिमाग़ ची चीज़ों को अपने कोटरों में छिपाता जा रहा हो। वह अपने जीवन की ख़ुशियों का महत्त्व समझती थी। वह जो कुछ चाहती, उसे मिल जाता। वह सुंदर थी, लोकप्रिय थी, पर एक छोटी-सी चीज़ कहीं ऐसी थी, जो नहीं थी वह क्या है, वह नहीं जानती थी।

वायनो का जन्मदिन बीत गया था, पर बड़ी बहन अभी भी कुछ आस लगाए बैठी थी। किसी असामान्य-सी घटना की एक अस्पष्ट-सी प्रतीक्षा उसे थी।

घर की मालकिन होने के नाते उसे पार्टी की सफलता से ख़ुश होना चाहिए था। पर इसके विपरीत वह निरुद्देश्य घर के एक कमरे से दूसरे कमरे में भटक रही थी और घर के रोज़ाना के काम को वह जैसे टाल रही थी। वह पार्टी में बाधा पड़ने और किसी चीज़ के अभाव से रोमांचित थी।

वहाँ बैठी-बैठी सेल्मा एक पुरानी वाल्ज धुन गुनगुनाने लगी। हालाँकि पार्टी में वह धुन नहीं बजी थी।

फिर उसे एक सपने ने आ घेरा, जो इतना सजीव था कि वास्तविकता जैसा ही लग रहा था। उसे लगा, जैसे वह जुलाई के आख़िरी दिनों में दुपहर को एक पार्क में है।

हर चीज़ उसे वास्तविक लग रही थी। संगीत की तरह की सनसनी उस पर ऊपर से नीचे तक छा रही थी। उसका मस्तिष्क उससे सराबोर था और लगता था कि प्रकृति की हर चीज़ इसे प्रतिध्वनित कर रही हो।

अपने सारे प्राकृतिक उपहारों के साथ जुलाई का महीना बहुत ख़ूबसूरत होता है। मध्य ग्रीष्म का यह समय वर्ष का सबसे अधिक समृद्ध महीना होता है। फूलों, फलों और फ़सलों की बहार छाई रहती है। सूरज अपनी पूरी गर्मी से तपता है और दिन सबसे लंबा होता है (सूरज का तपना भारत जैसे गर्म देश में कष्टकर होता है, पर फ़िनलैंड जैसे ठंडे देश में यह वरदान है)। फिर भी दिन ऐसे बीत जाता है, जैसे हमारा जीवन बीत जाता है और साल खिसकते चले जाते हैं।

जुलाई के उस दिन एक अजनबी कोल्जास निवास पर आया। आस-पास कोई नहीं था। विशालकाय प्रवेशकक्ष ख़ाली था और उसके स्वागत के लिए वहाँ कोई नहीं था। फिर भी उस बूढ़ी हवेली की स्वागत की भावना ही उसके लिए पर्याप्त थी। वह हवेली को अच्छी तरह से पहचानता था और इसके भीतर की ख़ुशनुमा यादें उसके दिमाग़ में घूम रही थीं।

वह एक कमरे से दूसरे कमरे में भटकता हुआ बैठक के कमरे में आ गया। वह खड़ा होकर अपने सामने के दृश्य को प्रशंसा-भरी नज़रों से देखने लगा। घड़ी की टिक-टिक के साथ बहुत पुराने दिनों की यादें ताज़ा हो आईं। उसने मेज़ पर बिछे कढ़े हुए मेज़पोश और पियानो के संगीत को छुआ। हर चीज़ शांत थी। आगंतुक को लगा, जैसे उसके हृदय की धड़कन इस शांत जीवन के साथ एकस्वर हो गई है। हर चीज़ वैसी ही है, जिसकी उसने कल्पना की थी।

अचानक दरवाज़ा खुला और वह युवक तथा उसकी चाहत में बसी युवती आमने-सामने थे।

एक छोटे-से क्षण के लिए प्यार बीच में लटका रह गया। वे अकेले साथ-साथ थे। इस युवती के अलावा सभी लोग खेतों पर गए हुए थे।

अधखुले दरवाज़े की देहरी पर खड़ी सेल्मा इल्मारी सेलोने का हाथ थामे अवचेतन में उसके चुंबन की प्रतीक्षा करने लगी। धीरे से उसने उसे अपनी बाँहों में लिया और पुरानी हवेली के इस शांत कोने में उसे चूम लिया। उस क्षण से वे एक-दूसरे के हो गए। सेल्मा के जीवन की ख़ुशियाँ गर्मियों के किसी फूल या फ़सल की तरह सचमुच खिलने लगी थीं।

यह क्षण उसके सपने का वास्तवीकृत रूप था।

प्यार ने सेल्मा के दिल पर क़ाबू कर लिया था, वह इसके पूरे अस्तित्व पर छा गया था। उसके जीवन की सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो गई थी।

यह सेल्मा के जीवन का सबसे महान् क्षण था। जब वह रोज़ाना के काम करने लगी, तब भी उसे लगा, जैसे वह सपने में चल रही हो।

देहरी पर इल्मारी से मुलाक़ात होने से पहले उसे लग रहा था, जैसे वह घर में अकेली है और पिता की बनाई हुई इस छत के नीचे वह पूरी तरह से सुरक्षित है। पर अब वह अकेली नहीं थी और उसे किसी भी तरह की असुविधा नहीं हो रही थी।

जब वह मेज़ पर चाय रख रही थी तो उसे एक नई तरह की सनसनी महसूस हुई। यह क्या भावना थी—क्या नवागंतुक उसके लिए स्वीकृति योग्य नहीं रह गया था?

सेल्मा उस परिवर्तन का अनुभव न कर सकी, जो उसके भीतर आ गया था। उसका यह सपना दूसरे सपनों में विलीन होता जा रहा था। बिना अपने संबंधों की पूर्णता पाए, वे अतीत में विचरण करने लगे थे। वह इल्मारी सेलोने को पसंद करती थी, पर वह अभी उसे अजनबी लग रहा था। जल्दी ही वह कमरे में वापस आ गया। बैठक के कमरे में बैठकर दोनों कॉफ़ी पीते हुए तब तक प्यार-भरी बातें करते रहे, जब तक सेल्मा के पिता खेतों से लौट नहीं आए। शाम तक उनकी बातचीत ने मोस्यों कोल्जास और इल्मारी के बीच संवाद का रूप ले लिया था। इल्मारी अपने मेज़बान को अपने भविष्य की योजनाओं और सफलताओं के बारे में बताता रहा। उसका ख़याल था कि सभी लोग उसकी बात को सहानुभूतिपूर्वक सुन रहे हैं और उसके उत्साह के भागीदार हैं।

जो कुछ वह कह रहा था, उसे सबसे ज़्यादा सेल्मा ही सुन रही थी। हालाँकि साथ ही साथ वह घर का कामकाज भी कर रही थी। वह महसूस कर रही थी कि यह व्यक्ति, जो कुछ ही घंटों पहले उसे इतना प्रिय हो गया था, कितने काम का आदमी था और कितना प्रेमी था...

दिन गुज़रने के साथ ही साथ उस पुराने भोजनकक्ष में भी शाम का झुटपुटा सीधे-सादे ढंग से प्रवेश कर गया था। खाना ख़त्म होने के बाद नौकरानियों को छुट्टी दे दी गई और थोड़ी देर बाद ही मेहमान ने भी अपने मेज़बान से शुभरात्रि कहकर विदा ली।

उस शाम सेल्मा अपना दरवाज़ा अधखुला छोड़कर बाहर ढल रही शाम का आनंद ले रही थी। इल्मारी पास से गुज़र रहा था। दरवाज़े को खुला देख वह भीतर आ गया।

‘वह आ रहा है,’ वह अपने से फुसफुसाई, ‘अब वह मुझे अपनी बाँहों में ले लेगा। तब मैं क्या करूँगी?’ जवाब वह जानती थी और वह उसे ऐसा करने देगी। वह जानती थी कि वह उसी के लिए है। उसे लगा कि कुछ नया और सुकुमार उसके दिल के भीतर जन्म ले रहा है और जब तक वह पूरी तरह से आकार नहीं ले लेता, उसे दबाया नहीं जाना चाहिए।

इल्मारी सेलोने सोचता था कि वह औरतों को समझता है, पर उस शाम उसने महसूस किया कि इस मामले में उसे बहुत कुछ सीखना है। काफ़ी समय से वह सेल्मा की कल्पना भावी साथी के रूप में करता आ रहा था। आज शाम जब वह सीढ़ियाँ चढ़ रहा था तो वह जानता था कि उसके जीवन का वह उदात्त क्षण आ गया है। जिस हवा में वह साँस ले रहा था, लगता था, वह भावना उसमें व्याप्त है। उसे लगा, जैसे वह हवा में उड़ रहा हो।

इसी मनःस्थिति में उसने अपनी प्रियतमा को बाँहों में भरकर चूम लिया। वह उसके ऊपर झुकी मुस्करा रही थी। फिर उसने भी इल्मारी को आलिंगन में लिया, इल्मारी ने मुस्कराते हुए कहा, उस दोस्ती और जादू के नाम, जो इस शानदार शाम ने हम पर कर दिया है।

अपने प्रेमी की बाँहों में झूलते हुए सेल्मा अस्फुट स्वरों में कुछ बुदबुदाई, पर उन वाक्यों का अर्थ कुछ न था। बस, जैसे भीतर के आवेग को बाहर निकाल रही हो, जैसे बहुत देर के इंतज़ार के बाद मिलने वाली दावत का मज़ा ले रही हो।

जब इल्मारी वहाँ से चला गया तो सेल्मा पिछले घंटों की घटनाओं के सपने लेती, उन पर पुनर्विचार करती, बैठी रही। वह समय उसके लिए कितना प्रबल था। उसे लगा कि उस थोड़े से अंतराल में वह बहुत बड़ी हो गई है। पर जैसे ही उसे नींद आई तो वह उनींदे में भी आश्चर्य कर रही थी कि वह इन सबसे ख़ुद को कितना उदासीन पा रही है!

(अनुवाद: भद्रसेन पुरी)

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