बूढ़े की चालाकी : मुंडारी/झारखण्ड लोक-कथा

Boodhe Ki Chalaki : Lok-Katha (Mundari/Jharkhand)

बहुत पहले एक गाँव में बूढ़ा और बुढ़िया रहते थे। उनके कोई संतान नहीं थी। बूढ़ा बहुत मेहनती था। वह अपने खेत में बहुत मेहनत करता था। मगर खाने-पीने के मामले में बहुत चटोर था। वह बढ़िया स्वादिष्ट भोजन खाना चाहता था। बुढ़िया बहुत कंजूस थी। उसकी कंजूसी के कारण बूढ़े को कभी अच्छा भोजन नहीं मिल पाता था।

बूढ़े ने एक दिन बुढ़िया से कहा, "क्यों न हम लोग एक तोता पाल लें। इससे हमारा समय अच्छी तरह से कट जाया करेगा...।" बुढ़िया ने अपनी स्वीकृति दे दी।

बुढ़िया के राजी होते ही बूढ़े ने खुश होकर कहा, "उस तोते को हम अपने खेत के पास वाले आम के कोटर में रखेंगे। तुम जब मेरा खाना लेकर आया करोगी, तो उसके लिए बढ़िया-बढ़िया भोजन और दूध-मलाई लाया करना। इससे तोता जल्दी बड़ा हो जाएगा।"

इस बात पर बुढ़िया राजी हो गई। प्रति दिन वह बढ़िया-बढ़िया भोजन तथा दूध और मलाई लाने लगी। और बूढ़ा पेड़ के कोटर में जाकर मजे से सारा का सारा बढ़िया भोजन हजम करने लगा।

एक दिन बुढ़िया जब स्वादिष्ट भोजन लेकर पहुंची, तो बूढ़ा उसे कोटर में लेजाकर खाने लगा। इतने में बुढ़िया के मन में विचार आया कि जरा देखू तो कि तोता कितना बड़ा हो गया है? बुढ़िया ने जब पेड़ के कोटर में झाँक कर देखा, तो वहाँ बूढ़ा बैठा हुआ मजे से भोजन कर रहा था। वहाँ पर कोई तोता-ओता नहीं था।

बूढ़े की चालाकी पर बुढ़िया को बहुत गुस्सा आया और मायके जाने की तैयारी में जुट गई। उसने बूढ़े का साथ छोड़ने की तैयारी कर ली। बुढ़िया अपना सारा सामान एक बड़े से बक्से में रखकर रास्ते में खाने के लिए रोटियाँ पकाने के लिए चली गई।

बूढ़े ने बुढ़िया को मनाना चाहा, मगर वह मानी नहीं। तब वह बहुत चिंतित हुआ। वह बुढ़िया को मनाने का उपाय सोचने लगा। मौका पाकर वह बुढ़िया के बड़े-से बक्से में कपड़ों के नीचे दुबक कर बैठ गया।

बुढ़िया ने जल्दी-जल्दी रोटियाँ सेंकी और बक्से में ऊपर ही रखकर बक्से को बंद कर दिया। इसके बाद अपने सिर पर उस बक्से को उठाकर चल पड़ी।

काफी दूर जाने पर बुढ़िया को भूख लगी। वह थक भी गई थी, इसलिए एक स्थान पर बक्से को अपने सिर पर से उतारकर खोलने लगी।

बक्सा खोलकर उसने देखा, तो पाया कि सारी रोटियाँ गायब हैं और वह बूढ़ा उस बक्से में दुबक कर बैठा बड़ी करुण दृष्टि से टुकुर-टुकुर ताक रहा था।

थकी हुई भूख से व्याकुल बुढ़िया ने जब बूढ़े को इस प्रकार बक्से में देखा, तो वह एकाएक खिल-खिलाकर हँस पड़ी। उस बूढ़े पर बुढ़िया को दया आ गई। और मायके न जाकर वह बूढ़े के साथ अपने घर वापस लौटकर आ गई।

इसके बाद बुढ़िया ने कंजूसी छोड़ दी और अच्छा-अच्छा स्वादिष्ट भोजन बनाकर बूढ़े को खिलाने लगी। दोनों फिर प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे।

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