बिना विचारे जो करे : बिहार की लोक-कथा

Bina Vichare Jo Kare : Lok-Katha (Bihar)

एक बार की बात है। गिद्धों का एक झुंड खाने की तलाश में भटक रहा था। उड़ते-उड़ते वे एक टापू पर पहुँच गए। वो जगह उनके लिए स्वर्ग के समान थी। हर तरफ़ खाने के लिए मेंढक, मछलियाँ और समुद्री जीव मौजूद थे और इससे भी बड़ी बात ये थी कि वहाँ इन गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था। वे बिना किसी भय के वहाँ रह सकते थे। युवा गिद्ध कुछ ज़्यादा ही उत्साहित थे। उनमें से एक ने कहा, “वाह! मज़ा आ गया। अब तो मैं यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला, यहाँ तो बिना किसी मेहनत के ही हमें बैठे-बैठे खाने को मिल रहा है।” बाक़ी गिद्ध भी उसकी हाँ में हाँ मिला ख़ुशी से झूमने लगे। सबके दिन मौज़-मस्ती में बीत रहे थे लेकिन झुंड का सबसे बूढ़ा गिद्ध इससे ख़ुश नहीं था।

एक दिन अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए वह बोला, “भाइयों, हम गिद्ध हैं, हमें हमारी ऊँची उड़ान और अचूक वार करने की ताक़त के लिए जाना जाता है। पर जब से हम यहाँ आए हैं हर कोई आरामतलब हो गया है। ऊँची उड़ान तो दूर ज़्यादातर गिद्ध तो कई महीनों से उड़े तक नहीं हैं और आसानी से मिलने वाले भोजन की वजह से अब हम सब शिकार करना भी भूल रहे हैं। ये हमारे भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। मैंने फ़ैसला किया है कि मैं इस टापू को छोड़ वापस उन पुराने जंगलों में लौट जाऊँगा। अगर मेरे साथ कोई चलना चाहे तो चल सकता है।”

बूढ़े गिद्ध की बात सुन बाक़ी गिद्ध हँसने लगे। किसी ने उसे पागल कहा तो कोई उसे मूर्ख की उपाधि देने लगा। बेचारा बूढ़ा गिद्ध अकेले ही वापस लौट गया।

समय बीता। कुछ वर्षों बाद बूढ़े गिद्ध ने सोचा, “न जाने मैं अब कितने दिन जीवित रहूँ, क्यों न एक बार चलकर अपने पुराने साथियों से मिल लिया जाए।” लंबी यात्रा के बाद जब वह टापू पर पहुँचा तो वहाँ का दृश्य भयावह था। ज़्यादातर गिद्ध मारे जा चुके थे और जो बचे थे वे बुरी तरह से घायल थे। “ये कैसे हो गया?” बूढ़े गिद्ध ने पूछा। कराहते हुए एक घायल गिद्ध बोला, “हमें क्षमा कीजिएगा, हमने आपकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया और आपका मज़ाक तक उड़ाया। दरअसल, आपके जाने के कुछ महीनों बाद एक बड़ा-सा जहाज़ इस टापू पर आया और चीतों का एक दल यहाँ छोड़ गया। चीतों ने पहले तो हम पर हमला नहीं किया, पर जैसे ही उन्हें पता चला कि हम सब न ऊँचा उड़ सकते हैं और न अपने पंजों से हमला कर सकते हैं, उन्होंने हमें खाना शुरू कर दिया। अब हमारी आबादी ख़त्म होने की कगार पर है। बस हम जैसे कुछ घायल गिद्ध ही ज़िंदा बचे हैं।” बूढ़ा गिद्ध उन्हें देखकर बस अफ़सोस ही कर सकता था। वह वापस जंगलों की तरफ़ उड़ चला।

दोस्तों, अगर हम अपनी किसी शक्ति का प्रयोग नहीं करते तो धीरे-धीरे हम उसे खो देते हैं। उदाहरण के तौर पर, हम अपने दिमाग़ का इस्तेमाल नहीं करते तो उसकी तीक्ष्णता घटती जाती है। अगर हम अपनी मांसपेशियों का इस्तेमाल नहीं करते तो उनकी ताक़त घट जाती है। इसी तरह अगर हम अपने कौशल को निखारते नहीं तो हमारी काम करने की क्षमता कम होती जाती है। तेज़ी से बदलती इस दुनिया में हमें ख़ुद को बदलाव के लिए तैयार रखना चाहिए। इसलिए अपनी क़ाबिलियत, अपनी ताक़त को ज़िंदा रखिए। अपने कौशल, अपने हुनर को और तराशिए। उस पर धूल मत जमने दीजिए। और जब आप ऐसा करेंगे तो बड़ी से बड़ी मुसीबत आने पर भी आप ऊँची उड़ान भर पाएँगे।

(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)

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