भूलना (तमिल कहानी) : वासंती (अनुवाद : एस. भाग्यम शर्मा)

Bhoolna (Tamil Story in Hindi) : Vaasanthi (Translator : S. Bhagyam Sharma)

छोटू आज बहुत जल्दबाजी में था। आज उसके अध्यापक ने कहा था कि रात को जल्दी सो जाना क्योंकि कल सुबह 7:00 बजे तुम्हें स्कूल आना है। परंतु उसका काम अभी खत्म नहीं होगा ऐसा उसको लग रहा है। आजकल जल्दी अंधेरा हो जाता है। ठंडी हवाएं चल रही है। 10 दिन पहले तक शाम को 7:00 बजे तक अच्छी धूप रहती थी। परंतु रसोई में चूल्हे के पास बैठो तो बड़ी गर्मी लगती थी। चंदन काका की दुकान पर सब्जी लेने आने वाले कहते कि अभी तक गर्मी नहीं हुई और अपने रुमाल से चेहरे को पोंछते थे। चंदन काका सबको हंसते हुए जवाब देते, तराजू में सब्जियों को ध्यान से डालते। साथ में उनके मोबाइल पर जो ऑर्डर आता उसे वे नोटबुक में छोटू को लिखने के लिए देते।

'आलू... भिंडी आधा किलो' ऐसे उनके कान में जो ऑर्डर आता वह दोबारा उसे बोलते ताकि छोटू उसे लिख ले। इतने छोटे लड़के को लिखना आता है क्या - कोई पूछता तो चंदन काका हंसकर हामी भरते। काका को जब भी समय मिलता, तब वह सब्जियों को थैले में डालकर उसके दाम की एक पर्ची और पता लिख कर छोटू को दे देते। वह उस थैले को पहुंचा कर आता। किसी किसी दिन रात 9 बजे तक ऑर्डर आते ही रहते। ठंड के दिनों में ठंड से कांपते हुए गलियों में पैदल जाते समय उसे लगता कब घर जाएं और बिस्तर पर पड जाएँ। खाने से ज्यादा नींद की जरूरत होती है। कभी-कभी ग्राहक सब्जियों के पैसे देते समय इनाम के तौर पर छोटू को दो या पांच का सिक्का पकड़ा देते। सिक्का मिलते ही छोटू के शरीर में गर्मी आ जाती।

छोटू ने मन में सोचा कि अगर आज कोई ना बुलाए तो अच्छा होगा। चंदन काका से ‘आज जल्दी जाऊंगा’ कहकर रवाना हो जाऊंगा। काका बहुत अच्छे आदमी थे। कभी भी उस पर गुस्सा नहीं करते ना उसे मारते थे। रोजाना स्कूल से घर जाकर बस्ते को रखकर यहां आने पर काका उसे चाय और समोसा देते और वो खाकर ही उसमे ताकत आती। काका उसे प्रतिदिन के काम के लिए 50 रूपये देते और वही उसके लिए बहुत बड़ी मदद होती। वह एक पैसा भी बिना खर्च किए सब कुछ अम्मी को दे देता।

आज उसे बहुत थकावट हो रही है। वह आज सुबह से धूप में खड़े होकर कल होने वाले गांधी जयंती उत्सव के लिए गाने और नाटक का अभ्यास कर रहा था। उसे गांधी जी की भूमिका मिली थी। उसे धोती पहनना है और खुली छाती में एक छोटा सा सफेद अंग वस्त्र, हाथ में एक छड़ी, आंखों में चश्मा आदि पहनाकर पूर्वाभ्यास करवाया गया। अध्यापक ने उसे देख कर हंसकर उसकी पीठ को थपथपाया।

वे बोले "इमरान, तुम्हारे ऊपर गांधीजी की वेशभूषा बहुत अच्छी लग रही है"। उनके ऐसा बोलते ही उसे बहुत खुशी हुई। सबके लिए वह छोटू था पर अध्यापक उसे नाम से बुलाते।

कल वह स्टेज पर बीच में नायक बना चर्खा चलाते हुए बैठेगा। गांधीजी उसपर सूत कातते थे। छोटू ने घर में अपने दादाजी को बताया कि यह बहुत मुश्किल काम है। उसके दादाजी उसे बहुत-सी कहानियां सुनाते। वह कई बार उसे दिल्ली आने के पहले, लखनऊ के मीना बाजार में सुरमा बेचने की कहानी सुनाते। सुरमा खरीदने बहुत सी लड़कियां आतीं। वह उसे बताते कि सुरमा बेचना उनका पारंपरिक  धंधा था। “मेरे दादाजी, उनके पिताजी और उनके पिताजी सभी लोग उस मीना बाजार में जहां बैठकर धंधा करते थे, उसी जगह मैं भी बैठता था। उस जगह पर बैठते बैठते गड्ढा पड़ गया था”। वे गांधीजी के बारे में भी बताते थे । वे कहते है कि छोटी उम्र में गांधीजी को उन्होंने देखा था। वह इस बात पर विश्वास ना कर सका। जब स्कूल में अध्यापक गांधी जी के बारे में बोलते तो उसे गांधी जी एक भगवान जैसे लगते। उन्होंने ही गोरों को यहाँ से भगाया। उन्होंने बंदूक से नहीं अहिंसा के प्रयोग से गुलाम भारत को स्वतंत्रता दिलवाई।

साधारण मनुष्य ऐसा कर सकता है?

बेचारे दादाजी थोड़े दिनों से कुछ अजीब से भ्रम में रहते है ऐसा लगता है। खाना खाया है कि नहीं, सोए हैं कि नहीं यह भी वे भूल जाते हैं ! अम्मी कहती है उनकी उम्र ज्यादा हो गई छोटू । वे फिक्र भी ज्यादा करते है । क्या फिक्र करते हैं यह उन्होंने मुझे नहीं बताया। ज्यादा पूछो तो कहती हैं यह सब बड़ों की बातें हैं। कल दादाजी को स्कूल ले जाना है ऐसा छोटू सोच रहा था ।

चंदन काका के मोबाइल की घंटी बजी वह सीधा हुआ। आर्डर आ गया क्या?

"अच्छा अच्छा भेज देता हूं बोल दो" काका ने उसे लिखने का इशारा किया तो उसने लिखना शुरू कर दिया। बीन्स आधा किलो, गाजर 250 ग्राम....'

उठाते समय उसे बोझ भारी लगा। उसने उसे सिर के ऊपर रखकर लिफ्ट से कई माले वाली बिल्डिंग में जाकर दसवें मंजिल में जाकर घर की घंटी बजाई। उसे लगा कंधा टूट जाएगा। दरवाजे को खोलने वाला युवा उसे देख मुस्कुराया और थैले को अंदर ले गया। "इस बोझ को तू उठाकर लेकर आया है?" दया दिखाते हुए बोला। उसने सब्जियों के रुपयों के अलावा 10 का नोट भी उसको दिया। "यह तुम्हारे लिए है।" बोला ।

वह एकदम से खुश हो गया।

"धन्यवाद भैया"

"पढ़ता है?"

"हां भैया।"

कल स्कूल में मैं महात्मा गांधी का वेश पहनूंगा बोलूं क्या सोचने के पहले ही उस युवा ने दरवाजे को बंद कर दिया।

चंदन काका को सब्जियों के पैसे देकर घर की तरफ आ रहा था तो उसके मन में एक उत्साह था। वह भैया कितने अच्छे हैं!

अम्मी उसका इंतजार कर रही थी। उस दिन के मिले 50/ को उनको दे दिया फिर अलग से उस 10/ को देने लगा।

"यह कैसे?" अम्मी ने संदेह से पूछा। "सब्जी डिलीवरी करने गया वहां एक भैया ने मुझे दिया।"

अम्मी के चेहरे में हल्की सी खुशी दिखाई दी। "तुम ही इसे रख लो छोटू। इसका कुछ भी ले लेना।"

दादाजी बिना सोए बिस्तर पर लेटे हुए थे। उनके पास जाकर बैठा।

"देर हो गई जाकर सो जा छोटू" दादा बोले।

'मैं सो जाऊंगा। आप कल मेरे स्कूल में आओगे क्या? वहाँ नाटक होगा। उसमें मैं ही महात्मा गांधी बनूंगा।"

दादा ने मुस्कुराया। "अरे तुम्हारे स्कूल में यह सब करते हैं? आश्चर्य से बोले।

वह हंसा। "कल गांधी जयंती है आप भूल गए क्या? कल सब की छुट्टी है दादा। बाजार भी बंद रहेगा चंदन काका ने बोला।"

दादा ने आंखें बंद कर ली। "वह ठीक है। एक दिन की छुट्टी मिल रही है ना ?"

"हां मैं कल 12:00 बजे घर आ जाऊंगा आप आ रहे हो दादा जी?"

दादाजी ने आंखें खोली "कहां?"

"क्या है दादा, मैंने बोला था ना, हमारे स्कूल में मैं नाटक में हूं।"

"नहीं मेरे बच्चे। मुझे किसी से जाकर मिलना है। रोज मुझे यहां वहां जाना पड़ता है। कल तुम अच्छी तरह नाटक में काम करना। गांधी की पोशाक में ही घर पर आना ताकि मैं भी देखूं।"

"मुझे भी गांधी जैसे दो दांत नहीं है!" हंसकर उसने दिखाया।

"दादा आपने सचमुच में गांधीजी को देखा है?"

"हां मेरे बेटे। उस समय तुम्हारी उम्र का था मैं । एक बार वे लखनऊ आए थे। उन्हें देखने बड़ी भीड़ आती थी तुझे विश्वास नहीं होगा। मेरे पिता ने मुझे अपने कंधे पर बैठा कर उन्हें दिखाया।"

"मेरे स्कूल में कोई इस बात पर विश्वास नहीं करता।"

"किस बात का ?"

"आप ने गांधीजी को देखा है बोले तो।"

दादा जी उठ कर बैठे।

"विश्वास नहीं करेंगे" अचानक गुस्से से बोले। "कैसे विश्वास करेंगे? तुम विदेशी हो ? तुम कौन हो इस बात का प्रूफ दिखाओ। बोलते हैं। उनकी पुस्तक में मेरा नाम नहीं है। बार-बार पूछते हैं तुम्हारा नाम क्या है? तुम्हारा नाम क्या है? मेरा नाम उमर अब्दुल्लाह बापूजी। क्या बोला? उमर अब्दुल्लाह!

यहां तुम्हारा नाम नहीं है अब्दुल्लाह। वह कोई गलती है साहब। मैं  यही तो पैदा हुआ हूं। यही बड़ा हुआ हूं। लखनऊ के मीना बाजार में जाकर पूछिए। कब बेचा था सुरमा ? 10 साल पहले तक। जा जा तुम झूठ बोल रहे हो। ऐसा कहते हैं। मैंने गांधी को देखा है बोलेंगे तो हंसेंगे। कौन है गांधी भी पूछ सकते हैं!"

छोटू को दादा जी के गुस्से से डर लगा।

"प्रूफ चाहिए प्रूफ! प्रूफ मेरे दादा जी से किसी ने नहीं मांगा । मेरे परदादा से नहीं मांगा। उन गोरे लोगों ने नहीं मांगा।"

अम्मी जल्दी से आई। "अब्बा आप इससे क्यों इसके बारे में बात कर रहे हो। इसके क्या समझ में आएगा? तुम जाकर सो जाओ छोटू।"

दादाजी तुरंत चुप हो गए। लेट कर चद्दर से अपना मुंह ढक लिया।

छोटू असमंजस में पड़ जाकर लेटा। दादा का गुस्सा उसकी समझ में नहीं आया। 2 साल पहले अब्बा एक दुर्घटना में मर गए। उसके बाद लखनऊ से दादा इन लोगों के साथ दिल्ली में ही आकर रहने लगे। आज तक उन्हें कभी गुस्से में उसने नहीं देखा। प्रूफ प्रूफ यह क्या है उसे समझ में नहीं आया। सुबह पूछ लेंगे सोच कर वह लेटा।

सुबह जब वह उठा दादा जी कहीं जा चुके थे। नाश्ता करने के लिए उसके पास समय नहीं था चाय पी कर ही वह रवाना हुए ।

"प्रूफ का क्या मतलब है अम्मी?

"पता नहीं क्या है बकवास तू जा।"

"बताओ ना अम्मी?"

"हम कौन हैं बताने वाला पहचान पत्र, आधार जैसे।"

"वह दादाजी के पास नहीं है?"

"नहीं। उनके पास वोट डालने का कार्ड तो था वह एक बार बहुत तेज बारिश हुई उस समय वह कहीं  गुम गया।"

"दूसरा नहीं बना सकते?"

अम्मी ने जवाब नहीं दिया।"चलो रवाना हो।" बोली।

स्कूल में सबको हलवे का नाश्ता मिला। सबने बड़े उत्साह के साथ गांधी जयंती मनाई। उसने गांधी जैसी वेशभूषा में नायक बन स्टेज पर बैठ चरखा कातते हुए 'रघुपति राघव राजाराम' गाना गाया गया 'ईश्वर अल्लाह तेरे नाम'।

जैसे ही पर्दा गिरा लोगों ने इतनी तालियां बजाई कि पूरा स्कूल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। दादा और मम्मी के न आने का उसे दुख था।

दादा को दिखाना है यह सोचकर वह कपड़े बदले बिना घर रवाना हुआ। बीच में जो बगीचा था उसे पारकर जाना पड़ता है। बगीचे के द्वार पर एक लड़का कुछ फोटो बेच रहा था।

"गांधी जी की फोटो है क्या?" छोटू ने पूछा।

"हां है कांच का फ्रेम किया हुआ है। 10/- का है।"

छोटू ने उस पोपले हंसते हुए दादा को प्रेम से देखा। जल्दी से उसके पास जो 10 था उसे दे दिया।

उसने बहुत बड़ा अलादीन का चिराग ले लिया हो वैसी खुशी हुई।

बगीचे में जगह-जगह तोरण लगे हुए थे। तबले बज रहे थे गानों की आवाज आ रही थी। अरे यहां भी गांधी जयंती मना रहे हैं ऐसा वह मन ही मन बुदबुदाया। वह कूदते हुए तेज चला।

बगीचे में एक तरफ बहुत भीड़ थी। विवेकानंद जी की फोटो को ही उसने पहचाना। कोई तीन जनों की फोटो छोटे मेज पर रखी थी।

गांधी की फोटो नहीं थी। उसे बड़ा अजीब लगा।

वह थोड़ी देर उस भीड़ में खड़ा हो कर देखता रहा। कोई माइक में हाथ को जोर जोर से हिला कर बोल रहा था। पर इसकी समझ में कुछ नहीं आया। कल उसे जिस भैया ने दस रुपए दिए वह भी वहां खड़े थे। वह जल्दी से उनके पास गया। "भैया भैया" धीमी आवाज में बोला। उस युवा ने मुड़कर देखा।

छोटू की वेशभूषा को देखकर आंखों को अजीब सा कर पूछा "तुम कौन हो?"

"आपको याद नहीं? कल आपके घर सब्जी ला कर दिया था ना। आपने मुझे 10/ दिए।"

भीड़ में खड़े लोग मुड़ कर देखने लगे। युवा झुककर, "उसके लिए अभी क्या है?" बोला।

"उस रुपए की मैंने गांधी की फोटो ले ली। इसे वहाँ पर रख दीजिए। आज गांधी जयंती है, भूल गए क्या?"

"उश.. उश.."करके आवाज आई। युवा दोबारा झुका, "यहां से जा । उसके लिए आज गांधी जी का भेष बनाया?"

छोटू ने थोड़े गर्व के साथ बोला "हां स्कूल में नाटक खेला था।"

"जा जा कोई और कुछ बोले उससे पहले यहां से चला जा। इस फोटो के लिए यहां जगह नहीं है।" गुस्से से बोला।

छोटू को धक्का-सा लगा। कल जिस भैया को देखा वह यह नहीं है ऐसा लगा।

सुबह जो खुशी थी वह खत्म हो हुई।

उसे देख मम्मी गले लगाया उसे चूमा। उसने गांधी जी की फोटो उन्हें दिखाई। "कल एक भैया ने 10/ दिए थे बोला था ना,उस रुपए से यह ले लिया।

"तू अच्छा लड़का है। इसे संभाल कर रख।” मम्मी बोली।

"मम्मी, उस भैया को मैंने बगीचे में देखा। वे किसी और फोटो को वहां रख रखा था और गांधी की फोटो नहीं चाहिए बोले।"

"हमें क्या है उसके बारे में ?"अम्मी बोली।

घर के आंगन में दादा जी बैठे थे। वह "दादा देखो यह कौन है?" कहकर गांधीजी फोटो में खड़े जैसे स्वयं खड़ा हो गया।

दादा के चेहरे में हल्की सी मुस्कुराहट आई। "आ...आ... गांधी का भेष बनाया?"

वह भाग कर जाकर दादाजी के गले से लिपट कर उनके गाल को चूमा।

"ऐसे थे क्या गांधी?" गर्व से अपने हाथ की तस्वीर को दिखाया।

दादा ने अपने चश्मे को पोंछकर पहन तस्वीर को देखा। धीरे से मुस्कुराया।"हां हां बिल्कुल ऐसे ही थे अच्छी तरह मुझे याद है।" "पर मुझ पर कोई विश्वास नहीं करेगा?"

"क्यों दादा?"

दादा कहीं देखते हुए बोले "मेरे नाम उनके पुस्तक में नहीं हैं तो मेरे पर कौन विश्वास करेगा?"

"आपका नाम क्यों नहीं है?"

"किसे पता ? गांधी ने उसे मिटा दिया होगा, जाते समय।"

उसे रोना आया। दादा के ऊपर गुस्सा आया। "झूठ, गांधी क्यों ऐसा करते हैं?"

"यह बात मुझे भी नहीं पता बेटे।"

दादा को कैसे खुश करें वह सोचने लगा।

"गांधीजी की कहानी सुनाइए दादा।"

दादा ने एक दीर्घ श्वास लिया।

"बोलता हूं। मैं ही भूल गया ऐसा लग रहा है। बैठ जा।"

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