भीखू की डायरी (कोंकणी कहानी) : मीना काकोडकर
Bhiku Ki Diary (Konkani Story) : Meena Kakodkar
(कोंकणी कहानी का संक्षिप्त अनुवाद)
1.
भीखू की दुकान वेलिंगर चाल (बस्ती) के बिल्कुल सामने थी। दुकान असल में उसके घर के एक बाहरी कमरे में थी । वह घर जिसे उसके दादा ने बनवाया था। वह ना तो बहुत बड़ा था ना बहुत आलीशान। पर भीखू को संतोष था कि वह उसका अपना था ।
चाल के बाशिंदों की तुलना में भीखू की ज़िंदगी काफ़ी आरामदायक थी। दुकान भी अच्छी चल रही थी और वो अपना और अपनी माँ का ध्यान अच्छी तरह रख पाता था ।
भीखू तो एक अदद बीबी और बहुत सारे बच्चों को भी संभाल लेता, लेकिन पैंतालिस साल का होने के बावजूद उसकी अभी शादी नहीं हुई थी।
भीखू अब भी शादी करना चाहता था। जब आजकल लड़कियाँ चालीस साल की उमर में दुल्हन बन रहीं हैं, तो वह पचास साल की उमर में दूल्हा क्यों नहीं बन सकता?
अपनी दुकान में बैठे-बैठे भीखू को चाल के सभी घर साफ दिखाई देते थे। लेकिन वो सिर्फ घरू दादा के घर पर अपनी निगाहें जमाए रहता। घरू दादा के एक लड़का और पांच लड़कियाँ थी। सबसे बड़ी नलू और सबसे छोटी लीलू।
नलू गुड़िया जैसी खूबसूरत थी और भीखू का उस पर दिल आ गया था ।
लेकिन जैसे रंगीन पत्तियों के बीच गिरगिट छुप जाता है, ठीक वैसे ही भीखू भी अपने आसपास में घुलमिल गया था। घरू दादा को कभी ये सूझा ही नहीं कि उनकी आँखों के सामने बैठा भीखू भी उनका दामाद बन सकता है ।
2.
एक दिन नलू की शादी हो गई। तब भीखू ने अपनी नज़रें उससे छोटी बहन शीलू की तरफ घुमा ली। जब उसकी भी शादी हो गई तो भीखू तीसरी लड़की पर आस जमा बैठा । वो तो जैसे निश्चय कर बैठा था कि जैसे भी हो, एक दिन वो घरू दादा का दामाद बन कर रहेगा।
ऐसा नहीं था कि भीखू के लिए कोई आया ही ना हो। लेकिन उन दिनों उसके सपने ज़रा ऊँचे थे। हाँ, अगर नलू जैसी किसी सुंदर लड़की का रिश्ता आया होता, तो वह ज़रूर सोचता।
अब यहाँ ये बताना भी ज़रूरी हो जाता है कि भीखू खुद दिखने में कैसा था। कद में वो पांच फीट से एक इंच भी ऊँचा नहीं था। अपने पूरे कपड़ों और सिर पर अपने बालों के जमावड़े के साथ उसका वज़न कुछ 37 किलो बैठता था। लेकिन इस सबसे उसके सुंदर, लंबी और गोरी बीवी पाने के सपनों में कोई अड़चन नहीं आई ।
लेकिन अब कुछ ऐसा लग रहा था कि भीखू के सभी अरमान मिट्टी में मिल जाएँगे। घरू दादा की पाँचों लड़कियों में से सिर्फ एक ही बची थी।
अपनी जवानी को पीछे छोड़ चुकी लीलू लंबी, भारी-भरकम और सांवली थी । घरू दादा उसके लिए लड़का ढूँढते ढूँढते थक चुके थे। भीखू सोचता, मैं उन्हें क्यों नहीं दिखाई देता ! क्या मैं इतना गया-गुज़रा हूँ ?
3.
भीखू ने निश्चय किया कि अगर उसे खुद को घरू दादा का दामाद बनने लायक रखना है तो उसे घरू दादा से बना कर रखनी होगी । तब से घरू दादा को उसकी दुकान से हर सामान लगभग मुफ़्त में मिलने लगा।
भीखू के घर के पिछवाड़े काफी खाली जगह पड़ी थी जिसमें वो सब्ज़ियाँ उगा लेता था। उसने घरू दादा के घर घीया, भिण्डी और बैंगन भेजने शुरू कर दिए। इस सबके पीछे एक संदेश छुपा था - मैं देखने में भले ही बहुत अच्छा नहीं, लेकिन मेरे पास अपना मकान है, निजी पखाना और सब्ज़ियाँ उगाने की जगह भी है ।
भीखू एकांतप्रिय था। उसे अपने और अपनी दुकान के अलावा और चीज़ों से कोई लगाव नहीं था। लेकिन उसका एक शौक ज़रूर था, डायरी लिखने का । कुछ साल पहले किसी ने उसे एक डायरी भेंट की थी।
भीखू को कोई भी चीज़ फेंकने की आदत तो थी नहीं, सो उसने फ़ौरन् डायरी में लिखना शुरू कर दिया। अगर दिन में उसे कुछ ख़ास लिखने को नहीं मिलता, वो यही लिखता कि आज उसकी दुकान में कितने ग्राहक आए ।
उसकी डायरी ये दिखाती है कि वो कितना चतुर व्यापारी था।
22 फरवरीः आज आलुओं की भारी मांग रही। मैंने अच्छे आलुओं में सड़े हुए आलू मिलाकर सारे आलू बेच डाले।
23 फरवरी: दो ग्राहक सड़े हुए आलू वापस करने आए । आजकल लोगों को चीजें ख़रीदकर वापस करने में शर्म नहीं आती है। मुझे ही इससे निपटने के लिए कोई रास्ता निकालना होगा!
24 फरवरीः मैंने आज दुकान पर लिखकर लगा दिया है कि बेचा हुआ सामान वापस नहीं किया जाएगा। अब देखता हूँ कैसे सड़े आलू वापस करने आते हैं!
इनके साथ घरू दादा और उनके परिवार के बारे में टिप्पणियाँ भी थीं। उसके शब्दों में उसकी आहत भावनाओं के रंग साफ नज़र आते थे।
5 मई: आज घरू दादा अपने घर के बरामदे में अपने हाथों में सर लिए बैठे थे। लगता है लीलू के सितारों ने फिर धोखा दिया है। अब ये तो होना ही था ।
6 मईः घरू दादा को क्या अपने पड़ोस का कुँवारा लड़का नहीं दिखता ! रिश्ते के लिए इतनी दूर जाने की क्या ज़रूरत है? नलू के लिए कहाँ दूर जाकर पेडने में रिश्ता ढूँढा था। लेकिन उसमें भी क्या ख़ास है? उसके पास अपनी कहने को एक साइकिल तक नहीं, घर की तो बात ही छोड़ो !
12 मईः इस लीलू को देख! इतनी बड़ी हो गई, पर अकड़ नहीं गई। दो मीठे बोल नहीं निकलते मुँह से । सब कुछ इतना सस्ता बेचता हूँ इसे, और इस बिगड़ैल को वो मेकैनिक तुकाराम ही मिलता है नैन-मटक्का करने को।
4.
भीखू की डायरी में इससे ज़्यादा सनसनीखेज़ घटना कोई नहीं है । उसकी सारी ज़िंदगी उसकी दुकान और कुछ मुट्ठी-भर लोग जो दिन में उससे मिलते थे, बस इन्ही के इर्द-गिर्द घूमती थी।
भीखू की माँ अक्सर उससे पूछती, “बेटा तू शादी क्यों नहीं कर लेता ?”
और भीखू का हमेशा एक ही जवाब होता, “कर लूंगा। बस सही वक्त आने दो।" पर वक्त गुज़रता गया और उनके घर दुल्हन नहीं आई ।
भीखू समझ नहीं पा रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है । उसका अच्छा-खासा चलता व्यापार है, अपना घर है। वह स्वस्थ और तगड़ा है। कोई और झमेला भी नहीं है उसके साथ। कुल मिलाकर एक अच्छे दूल्हे की सभी खूबियाँ हैं उसमें । तब भी वो कुँवारा ही है ।
भीखू सोचता था कि आखिर बाहरी दिखावट कितनी ज़रूरी है।
भई अगर देखना ही है तो आदमी का व्यवहार देखो, उसका ख़ानदान देखो। तो क्या हुआ कि वो कद में थोड़ा छोटा है। उसका चाचा भी उसकी चाची से कद में छोटा था, पर उनकी शादी में तो कोई समस्या नहीं आई!
यह जानने के लिए कि उसके भाग्य में शादी का योग है या नहीं, भीखू बेलगाम के नामी ज्योतिषी से लेकर सड़क किनारे के तोते तक हर एक को अपना हाथ दिखाया।
हर किसी ने उसे एक ही बात कही, “देर से शादी का योग है, ” लेकिन किसी ने ये नहीं बताया कि ये देर कितनी लम्बी होगी। और भीखू आशा में जीता रहा ।
एंथनी का गैराज भी भीखू की दुकान से साफ़ दिखाई देता था । जब भी लीलू वहाँ से गुज़रती, वो मेकैनिक तुकाराम उसे देखकर मुस्कुरा देता, और लीलू भी शर्माती हुई नज़र भर उसे देखती ।
गोरा और देखने में सुंदर, तुकाराम लड़कियों को पटाना अच्छी तरह जानता था। आज इसके साथ तो कल उसके साथ। फेनी का भी वो पक्का यार था। लीलू इस बात को जानती थी, फिर भी उसे भाव देती थी ।
5.
यहाँ घरू दादा उसके लिए दिन रात एक करके रिश्ता तलाश कर रहे थे, और वहाँ ये लड़की ये गुल खिला रही थी। ये सब देख कर भीखू भी बहुत बेचैन था।
भीखू ने सोचा, या तो उसे इस बारे में घरू दादा को सावधान करना होगा, या फिर कम से कम लीलू से ही बात करनी होगी। कुछ भी कहा जाए, आख़िर है वो एक इज्ज़तदार परिवार की लड़की । उसका इस सड़क छाप आदमी से मिलना शोभा नहीं देता ।
फिर एक दिन जब घरू दादा उसकी दुकान पर आए, तो भीखू ने बात छेड़ ही दी।
“देखो घरू दादा, कोई कुछ भी कहे, हर काम का अपना सही वक्त होता है ।"
“हाँ भई, पर अपने हाथ में होता ही क्या है?” घरू दादा ने जवाब दिया ।
“नहीं हो तब भी मामले को हाथ में रहते निपटा देना ही अच्छा होता है ।”
“अब क्या करें ? तुम हमारी लीलू को तो जानते ही हो - लम्बी, काली, बिल्कुल खम्बे की तरह बनी हुई है। इसके लिए रिश्ता मिलना भी ... मैं तो हर जगह देख आया, कारवार, मुम्बई ... शायद अभी समय ही ठीक नहीं है, " घरू दादा निराश होकर बोले।
भीखू चिल्लाना चाहता था, कारवार और मुम्बई क्यों घरू दादा ? अपने घर के सामने रहने वाले दुकानदार से तो पूछो! लेकिन उसके मुँह से एक लफ्ज़ नहीं निकला। और जिंदगी वैसे ही चलती रही।
तभी ये हुआ, बिल्कुल वैसे ही जैसे भीखू ने सोचा था - लीलू तुकाराम मेकैनिक के साथ भाग गई !
इस घटना ने पूरे मोहल्ले को हिला कर रख दिया। घरू दादा तो बिल्कुल पस्त ही हो गए। नलू, गुलू, शीलू और पम्मी अपने-अपने पतियों के साथ भागी भागी अपने मायके आईं। तलाश शुरू की गई । परिवार ना तो इस बात से इन्कार कर रहा था और ना ही इसे सही बता पा रहा था ।
अगर लीलू मिल भी जाए तो अब उससे शादी करेगा कौन? अपनी नाक तो उसने कटवा ही ली है। तुकाराम जैसे आदमी का क्या भरोसा? वो दो-चार दिन उसके साथ मौज करेगा और फिर उसे परे हटा देगा। इस बात का उन्हें पूरा यकीन था । इस लड़की का अब क्या भविष्य ? ये सब सोच घरू दादा और उनकी पत्नी के तो आँसू ही नहीं थमते थे।
ऐसे संकट के समय भीखू ने अपनी दुकान बंद की और उनके घर गया।
उसे देखते ही घरू दादा की फिर से रुलाई फूट गई।
फिर सुबकते हुए बोले, “तू ठीक कहता था भीखू लड़की हाथ से निकल गई ! मुझे तो कहीं मुँह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा।”
“दिल छोटा मत करो। कई योग्य वर अब भी मिल जाएंगे,” भीखू सहानुभूति से बोला, “कोई ना कोई ... "
“ना रे बाबा, वो तो पहले ही बहुत मुश्किल था। अब किस मुँह से रिश्ता ढूंढने जाऊँगा?” घरू दादा अचकचा कर बोले।
“इन्सान से ही ग़लतियाँ होती हैं भीखू ने फ़ौरन् जवाब दिया ।"
“सब हमारी किस्मत का दोष है, " घरू दादा भीखू का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर बोले ।
लेकिन भीखू की बातें अनसुनी नहीं गईं। घरू दादा की पत्नी ने उन्हें सुना था।
वो फ़ौरन् नलू को लेकर भीतर गईं। थोड़ी देर बाद नलू बाहर आई और अपनी सारी बहनों को अंदर ले गई। कुछ देर बाद उनके पति भी भीतर चले गए।
6.
अंत में कोई घरू दादा को भी अंदर ले गया। भीखू के कानो में तेज़ी से होती फुसफुसाहटें सुनाई पड़ी।
“तो उससे पूछ लो..."
“उससे क्या पूछूं?”
“हे भगवान! उससे पूछो कि क्या वो लीलू से शादी करेगा?” किसी ने डाँटकर कहा ।
“क्या? लीलू इतनी बड़ी है और वो ...”
“अब यह देखने का समय नहीं है कि कौन कितना बड़ा है!” कोई गुर्राया ।
"अरे मैं उमर की बात नहीं कर रहा..."
“मुझे पता है। भीखू शायद लीलू की कमर तक ही पहुँचेगा। लेकिन ये भी तो सोचो कि इसके बाद लीलू से शादी करेगा कौन?”
“अरे कोई शैतान भी उस चुड़ैल से शादी नहीं करेगा !”
“अरे तभी तो मैं कह रही हूँ, भीखू से पूछो ! लड़का बुरा नहीं है ।”
“पर क्या हमें लीलू के मिलने का इंतज़ार नहीं करना चाहिए? क्या पता वो उन्हें मिले ही ना ।”
“अरे मिलेगी कैसे नहीं? पुलिस उसे तलाश रही है।”
यह सब सुनकर भीखू के सारे शरीर में एक अजीब सनसनी फैल गई। ज्योतिषियों की बताई हुई “देर से शादी” में अब ज़्यादा देर नहीं थी ! इसीलिए जब घरू दादा ने बात छेड़ी, तो उसने झट से “हाँ” कर दी।
किसी ने भी लीलू से पूछना ज़रूरी नहीं समझा। किसी को भी यकीन नहीं था कि लीलू और तुकाराम शादी करेंगे।
भीखू बहुत ही उत्साहित घर पहुँचा । “घर की जल्द ही पुताई करवानी पड़ेगी,” अपनी मुस्कान छुपाते हुए उसने अपनी माँ से कहा।
देर शाम तक लीलू का कोई अता-पता नहीं था। भीखू, जिसकी आँखें तो जैसे सड़क से चिपक गई थीं, बहुत उदास मन घर के अंदर गया। दो दिन ऐसे ही बीत गए ।
तीसरे दिन, वेलिंगर चाल के सामने एक टैक्सी आकर रुकी। भीखू ने आशा भरी निगाह से देखा। उसने सोचा कि अब रोती बिलखती लीलू बाहर निकलेगी ।
लीलू टैक्सी से बाहर तो निकली, पर वो रो नहीं रही थी। उसके हाथों में हरी चूड़ियाँ और गले में मंगलसूत्र था। वह घर में घुसी। तुकाराम ठीक उसके पीछे-पीछे था।
भीखू उस पैकेट को बिल्कुल भूल गया जो वो बाँध रहा था। बिना पलकें झपकाए, एकटक घरू दादा के मकान को घूरने लगा ।
वो क्या, पूरे मोहल्ले की निगाहें उस समय घरू दादा के घर पर चिपकी थीं। लेकिन किसी को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि अंदर क्या हो रहा है।
भीखू को पूरा यकीन था कि घरू दादा तुकाराम को अभी धक्के मार कर घर से बाहर निकाल देंगे। वो इंतज़ार करता रहा लेकिन कुछ नहीं हुआ।
लगभग एक घंटे बाद, लीलू और तुकाराम घर के बाहर आए, टैक्सी में बैठे। कोई उन्हें बाहर तक छोड़ने नहीं आया। लेकिन किसी ने लीलू को रोकने की कोशिश भी नहीं की। कुछ मिनटों में टैक्सी वहाँ से चली गई, और भीखू के शादी के सपने उस टैक्सी के पहियों तले दब गए।
भीखू का दिल दर्द से बिलख रहा था। वो सोचता रहा, घरू दादा ने जुबान दी थी ।
पर घरू दादा के पास और कोई रास्ता नहीं था। लीलू तुकाराम से शादी कर चुकी थी। घरू दादा और उसके पूरे परिवार के प्रति भीखू का दिल गुस्से से भर गया।
उस रात उसने अपनी डायरी में लिखा ।
1 दिसंबर : आज के बाद घरू दादा को मेरी दुकान से कुछ भी मुफ़्त नहीं मिलेगा!