भय (कहानी) : डॉ पद्मा शर्मा

Bhay (Hindi Story) : Dr. Padma Sharma

‘‘दिल है छोटा सा छोटी सी आशा’’ गाने के साथ मोबाइल की रिंगटोन बजी तो पारूल ने बैग से मोबाइल निकालकर स्क्रीन पर नजर डाली। स्क्रीन पर घर लिखा आ रहा था। कॉलेज से हॉस्टल पहुँचकर, शाम सात बजे वह घर पर मम्मी पापा से बात करती थी और दिन भर का घटनाक्रम सुनाती। उसने मोबाइल में समय देखा अभी तो दिन का एक ही बजा है। अप्रत्याशित समय फोन आने से वह चिन्ता में पड़ गयी। उसकी धड़कनें तेज हो गयीं।

उसने कॉल रिसीव करते हुए कहा-‘‘हैलो !’’
उधर से मम्मी की घबरायी हुयी आवाज आयी-‘‘पारूल तू जल्दी घर आ जा’’
उसने जल्दी से कहा-‘‘क्या बात है मम्मी , इतनी घबरा क्यों रही हो ?’’
‘‘बेटा घर आ जा तेरे पापा को लकवा मार गया है।’’
‘‘अरे ! कब , कैसे हुआ’’ वह घबराते हुए कई प्रश्न कर दिए।
‘‘बेटा आज सुबह नहाने गए तो वहीं गिर पड़े जोर की आवाज आयी तो मैं दौड़कर पहुँची । वो तो बाथरूम की कुण्डी खराब है सो दरवाजा खुला हुआ था नहीं तो बहुत दिक्कत हो जाती।’’ मा
‘‘डाक्टर क्या कह रहे हैं?’’ उसकी आवाज में चिन्ता थी।
‘‘डाक्टर को दिखा दिया है कल बड़े अस्पताल में भर्ती करने के लिए कहा है उन्होंने। तू आजा तेरी जरूरत है’’ माँ के स्वर में चिन्ता झलक रही थी।
‘‘हाँ ठीक है मैं निकलती हूँ, शाम को चार बजे बाली बस मिल जायेगी, सात बजे तक पहुँच जाऊँगी।’’

बेटियाँ बहुत संवेदनशील होती हैं। उनका झुकाव पिता के प्रति कुछ अधिक ही होता है। उसने अपना बैग उठाया और तेज कदमों से हॉस्टल की ओर चल दीं रास्ते में वह सोच रही थी कि अच्छा हुआ कि लंच का समय चल रहा था। कक्षा के बाहर आकर उसने मोबाइल को सायलेन्ट मोड से हटा दिया था।दो बजे से फिर कक्षायें लगतीं तो पाँच बजे तक मोबाइल बंद रहता। पाँच बजे के बाद बस भी न मिल पाती।

यहाँ हॉस्टल के एक कमरे में दो लड़कियाँ रहती हैं । उसके साथ उसके पास के गाँव की लड़की उसकी सहसाथी है। उसने कमरे में आकर अपना बैग जमाया, अपनी मेज और अलमारी को व्यवस्थित किया। कमरे में ताला लगाकर वह तेज कदमों से हॉस्टल की वार्डन के पास गयी और सूचना देकर बाहर सड़क पर आ गयी। उसके पैरों में कंपन था। हर बार घर जाते समय एक उत्कण्ठा और खुशी मन में रहती थी। आज मन को चिन्ता के बादलों ने घेर लिया था और वे बादल आँसू के रूप में आँखों तक आ बसे थे। वह सोच रही थी बस स्टैण्ड तक जाने के लिए ऑटो मिल जाए, पर अक्सर यही होता है कि जब जिस चीज की अत्यधिक जरूरत हो तब वह उस समय नहीं मिलती। वह तेज कदमों से चलती जा रही थी और ऑटो की तलाश में आगे पीछे देखती जा रही थी।

पारूल के पिता तहसील में नौकरी करते हैं, उनकी दो बेटियाँ हैं। अपने सामथ्र्य से अधिक वे अपनी बेटियों को पढ़ाना चाहते हैं। पारूल ने जब इन्टर के बाद यूनीवर्सिटी में दाखिला लेना चाहा तो उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दे दी। अपने रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों के विरोध के बावजूद पारूल को इतनी दूर पढ़ने भेज दिया। पारूल को लग रहा था कि वह जल्दी से घर पहुँच जाये नहीं तो सबसे ज्यादा ताने ताऊजी देंगे। उसे याद है ताऊजी उसके दाखिले को लेकर सबसे ज्यादा विरोध में थे। उन्होंने मना करते हुए कहा था-‘‘सुरेन्द्र जवान लड़की को इत्ती दूर पढ़ने मत भेज कुछ ऊँच-नीच हो गयी तो समाज में क्या मुँह दिखायेगा।’’

पापा ने तर्क देते हुए कहा था-‘‘अरे नहीं भाइसाहब पारूल पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जायेगी तो परेशान नहीं होगी।’’
उन्होंने दलील दी-‘‘ अरे तू समझ न रहा शहर का माहौल भी खराब है, आजकल लड़कियों के साथ न जाने कितने गलत काम हो जाते हैं’’
पापा ने दृढ़ता से कहा-‘‘मुझे पारूल पर पूरा भरोसा है वो कुछ गलत न करेगी।’’
‘‘देख ले भाई अखबार में रोज छपता है। लड़कियों के साथ कई वारदातें हो रही हैं। फिर इतनी दूर इसकी रक्षा कौन करेगा।’’ पापा ने मर्यादावश शांत रहना ही उचित समझा था।

पारूल को अपने शहर जाने वाली बस मिल गयी थी। बस में बैठते ही उसने मम्मी को बताया कि वह बस में बैठ गयी है। जब भी वह अकेले घर जाती तो थोड़ी-थोड़ी देर में मम्मी को जानकारी देती रहती। अब तो उसे आदत हो गयी थी अकेले आने जाने की। शुरू में एक-दो बार पापा ले जाते और छोड़ जाते थे। पापा का चेहरा उसकी आँखों के सामने बार-बार घूम रहा था। वह तो सोनचिरैया हेै अपने पापा की और छोटी बहन गौरैया। उसे लग रहा था सोनचिरैया की तरह उड़कर जल्दी से पापा के पास पहुँच जाए। बस सवारियों को लेने रुकती तो मन झल्ला उठता। वह खिड़की के पास बैठी माइलेज स्टोन देखकर जान रही थी कि बस कितने किलोमीटर दूर आ चुकी है।

लगभग पचास किलोमीटर के बाद बचानक बस रुक गयी। एक-एक करके सवारियाँ नीचे उतरने लगीं। वह व्यग्र हो उठी। उसने बस के ड्रायवर से पूछा-‘‘ अंकल क्या हो गया?’’

‘‘देखते हैं शायद फेनबेल्ट खराब हो गया है।’’
‘‘कितना टाइम लगेगा’’ उसके स्वर में व्यग्रता थी।
‘‘बेल्ट मँगाने के लिए तो किसी क्लीनर को भेजना पड़ेगा। लगभग आधा पौन घण्टा तो लग जायेगा।’’
चिन्ताओं को कोई निमंत्रण की जरूरत थोड़े ही होती है वो तो बिन बुलाए मेहमान की तरह मन में बिन दरवाजा खटखटाए आ जाती हैं। पारूल चिन्ता में पड़ गयी अब तो बस लेट हो जायेगी। वह देर से पहुँचेगी। अन्य कोई साधन भी नहीं है।

शाम का धुँधलका अँधेरे में तब्दील होने लगा था जैसे-जैसे अँधेरा बड़ रहा था उसके दिल की धड़कनें तेज होती जा रही थीं। एक तरफ पापा की चिन्ता से वह व्याकुल थी तो दूसरी ओर भय का आवरण मन के अज्ञात कोने को घेर रहा था। उसने पूरी बस में नजर दौड़ाकर देखा कि कितनी महिला सवारी बैठी हैं। आठ दस महिला सवारियों को देखकर उसे तसल्ली हुई।

बस रात नौ बजे बस स्टैण्ड पहुँची। बस से उतरकर उसने मम्मी को फोन लगाकर बताया कि बस आ चुकी है।
मम्मी ने चिन्तित होते हुए कहा-‘‘अब रात के नौ बजे यहाँ तक आने के लिए सिटी बस भी न मिलेगी।’’
‘‘हाँ मम्मी ऑटो देखती हूँ।’’
मम्मी ने हिदायत देते हुए कहा-‘‘ ऑटो का नम्बर मैसेज कर देना।’’
‘‘हाँ मम्मी’’
रात के समय केवल एक ऑटो वाला मिला । पारूल ने ऑटो रोककर घर तक जाने का किराया तय किया। उसने ऑटो का नंबर मम्मी के फोन पर मैसेज किया। आज वह पहली बार अकेले रात को ऑटो में बैठी थी। अचानक सर्दी बड़ने से सड़कें सुनसान हो गयी थीं। ऑटो में बैग रखकर उसने

शॉल निकाली और कुछ महत्वपूर्ण सामान बड़े बैग से निकालकर अपने हैंड बैग में रख लिए।
पारूल ने ऑटो वाले से कहा-‘‘ भैया कोई महिला सवारी मिले तो उसे बिठा लेना।’’
‘‘ठीक है’’
ऑटो वाले ने सामने का शीशा सैट किया। शीशे में अब पारूल का चेहरा दिखाई देने लगा।

ऑटो आगे बड़ने लगा। काफी दूर तक आने के बाद भी कोई सवारी नहीं मिली। पारूल की धड़कनें तेज हो रही थीं। आगे सुनसान रास्ता आने वाला था। जब व्यक्ति मुसीबत में होता है तो वह अपने इष्ट देवता को याद करता है। ‘‘जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीश लंकेश उजागर’’ पंक्तियाँ बरबस ही उसके होंठों पर आ गयीं। हनुमान जी आपने सीता मैया की रक्षा की थी। हे भगवान मेरी भी रक्षा करना ...।

एक चैराहे पर अचानक ऑटो रुक गया। उसे लगा बस की तरह ऑटो भी खराब हो गया।पारूल ने हकलाते हुए पूछा-‘‘क्यों क्या हुआ रुक क्यों गए ?’’
ऑटो वाले ने कहा-‘‘अभी चलते हैं’’

भय की उछलती लहरें मन की दीवारों पर तेज थपेड़े मार रही थीं। ऑटोबाले ने मोबाइल निकाला और कुछ देखने लगा। फिर एक फोन लगाया। दूसरी तरफ की आवाज पारूल को सुनाई नहीं दी।
ऑटो वाला बोला-‘‘ऐसा करो तुम आ जाओ’’
उधर की आवाज नहीं आयी

ऑटो वाला आगे बोला-‘‘मैं अभी रॉयल चैराहे पर हूँ’’
उसने किसी प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा-‘‘हाँ’’
फिर किसी बात का उत्तर देते हुए उसने कहा-‘‘मैं इन्तजार कर रहा हूँ’’

पारूल को लग रहा था कि वह अपने किसी साथी को बुला रहा हैं पता भी बता दिया कि कहाँ खड़ा है। उसके साथी ने पूछा होगा कि कोई लड़की सवारी है क्या? तो इसने ‘‘हाँ’’ कह दिया है। पारूल के मन में टी व्ही पर प्रसारित कई खबरें साक्षात हो उठीं। समाचार पत्रों में प्रकाशित नकारात्मक समाचार दिमाग में उथल-पुथल मचाने लगे। उसने फिर से आग्रह किया-‘‘चलो भैया’’

ऑटो वाला उसे समझाते हुए बोला-‘‘हाँ ,अभी कोई आ रहा है फिर चलते हैं ,बस पाँच मिनिट और...।

हालांकि वह पारूल से बडी आत्मीयता से बात कर रहा था। पर यह आत्मीयता के पीछे पता नहीं कौन सी भावना छिपी है। वह मोबाइल खोलकर फिर से देखने लगा। पारूल को लग रहा था कि जरूर वह कोई आपत्तिजनक साइट देख रहा होगा।उसने बैग में रखी पुड़िया हाथ में कसकर पकड़ ली। इस पुड़िया में वह लाल मिर्च का पावडर रखकर लायी थी।

अबकी बार वह थोड़ा क्रोध में बोली-‘‘भैया चल क्यों नहीं रहे मुझे जल्दी घर पहुँचना है।’’

तभी एक मोटरसायकिल आती दिखी। उसका शक विश्वास में बदलने लगा। जरूर इसका कोई साथी होगा जिसे वह ऑटो में बिठायेगा और फिर ये लोग पता नहीं मेरे साथ क्या गलत काम करेंगे। भय के एक पल भर में ही अनगिनत आशंकायें मन पर धावा बोल देती हैं। मोटरसायकिल पास में आकर रुकी। उसे एक युवक चला रहा था। पीछे एक महिला को बैठा देखकर उसकी जान में जान आयी।
वह महिला ऑटो में बैठ गयी तो ऑटो बाले ने ऑटो चालू करते हुए कहा-‘‘इतनी देर क्यों कर दी?’’
वह बोली-‘‘व्यवस्था कर रही थी’’

पारूल ने महसूस किया कि वह महिला गहन मुस्कान के साथ उसे घूर रही थी। अब पारूल सोचने लगी कहीं ये महिला लड़कियों से गलत काम तो नहीं करवाती इसलिये मुझे घूर रही है। आजकल लोग गलत कामों में महिलाओं का सहारा लेने लगे हैं। उसने खुद को ढाँढस बँधाया।डर पर काबू करते हुए सोचने लगी- मैं अबला नहीं सबला हूँ। कॉलेज में आत्मरक्षा के जो गुर सीखे थे आज काम आयेंगे। ‘हिम्मत ही मेरी ताकत है’ स्लोगन वह बार-बार दोहराने लगी। वह सतर्क होकर रास्ते पर नजर रख रही थी कि कहीं वह ऑटो किसी गलत दिशा में न ले जाये। बीच-बीच में वह अन्दर बैठी महिला पर भी नजर रखती कि कहीं वो उसे कुछ सुंघाकर बेहोश न कर दे। अपने भय को दूर करने के लिए वह मम्मी से फोन पर बात करने लगी।

जब ऑटो उसके घर की गली में मुड़ा तो उसने चैन की साँस ली। उसने पूछा- ‘‘आंटी कहाँ तक जायेंगी ?’’

ऑटोबाला बोला-‘‘तुम डर रही थीं इसलिए मैंने अपनी पत्नी को बुलवा लिया था। रात को अकेली लड़की घर आती है तो मोहल्ले में लोग बातें बनाते हैं। पारूल आश्चर्यचकित रह गयी कि वह न जाने क्या-क्या सोच रही थी और ये तो भला आदमी है।
वह फिर से बोला-‘‘रात में जब भी मैं किसी अकेली महिला की सवारी लेता हूँ तो अपनी बेटी, बहन और पत्नी का फोटो देख लेता हूँ। देखो मोबाइल में इनके फोटो डाल रखे हैं।’’

पारूल का सिर शर्म से झुक गया।
घर के सामने ऑटो रुका तो उसने बैग में से रुपये निकालकर उसे दिए। तब तक मम्मी बाहर आ गयी थीं। पारूल ने मम्मी को उन लोगों से मिलवाया। मम्मी ने उन लोगों से अंदर आने का आग्रह भी किया। पर वे रुके नहीं। ऑटो स्टार्ट होते ही पारूल ने देखा कई घरों की खिड़कियाँ जो ऑटो आने पर खुल गयी थीं, वे अब बन्द हो रही थीं।