भाई भुहुर-भुहुर : बिहार की लोक-कथा

Bhai Bhuhur-Bhuhur : Lok-Katha (Bihar)

भोजपुर में एक गाँव था। उस गाँव में मछेंदर नाम का एक व्यक्ति रहता था। उसका विवाह हो गया था, पर गवना नहीं हुआ था। गवना करावे ख़ातिर वह पहली बार ससुराल जा रहा था। उसके दोस्तों ने कहा, “ससुराल तो जा रहे हो, यदि किसी लड़के ने क़िस्सा-कहानी सुनाने के लिए कहा तो तुम क्या करोगे? कौनो क़िस्सा-कहानी आता है?” मछेंदर ने महसूस किया कि यह तो फेर में पड़ने वाली बात है। फिर हिम्मत करके अपने को ढाढ़स बँधाया, “जे होई से देखल जाई।”

वह ससुराल के लिए रवाना हो गया। रास्ते में देखता क्या है कि एक मूस माटी के टीले पर चढ़कर कुछ कुतर रहा है। अनायास ही उसके मुँह से निकल गया, “भाई भुहुर-भुहुर। भाई भुहुर-भुहुर।” माटी भूरभूरा कर गिर रहा था। उसकी आवाज़ सुनकर मूस वहीं पर लेट गया।

ऐसा देख उसने कहा, “भाई बाड़ तू पटाइल, भाई बाड़ तू पटाइल।”

अब मछेंदर भीतर ही भीतर बहुत ख़ुश था कि यदि कोई क़िस्सा-कहानी सुनाने के लिए कहेगा तो उसे मूस की यही कहानी सुना दूँगा।

ससुराल पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई। गाँव-देहात का माटी-फूस का घर। दालान में रखे ढिबरी से थोड़ी रोशनी हो रही थी।

उसकी सास रोटी बनाकर झाड़ रही थी और साथ-साथ गिन भी रही थी कि कैगो रोटी बनल। मछेंदर यह सब देख रहा था। खाना खाते समय उसकी सास ने पूछा, “पाहुन! आउर रोटी लेब त ल न।”

इस पर उसने कहा, “सभे रोटी तो बाँट देली, अब कहाँ से देब?”

उसकी सास मन-ही-मन सोचने लगी, “दामाद जी तो बड़का ज्योतिष बुझा तड़न।” रात में भोजन-पतर के बाद लड़का सब अझुरा गया, “पाहुन एगो क़िस्सा सुनाईं।”

मछेंदर तो पहले से ही तैयार था। संयोग हुआ कि जब उसने कहानी सुनाना शुरू किया, ठीक उसी समय एक चोर ने घर में सेंध मारना शुरू किया था। सेंध काटते समय थोड़ी देर में माटी भर-भरा के गिरने लगी।

मछेंदर ने भी कहानी कहना शुरू किया, “भाई भुहुर-भुहुर। भाई भुहुर-भुहुर।” चोर समझा, “ई आदमी हमरा देख लेलेबा, वोही से कहता कि भाई भुहुर-भुहुर। भाई भुहुर-भुहुर। अब वह चोर वहिजे पटा गईल। सोचा कि अब नज़र न आएब।

मछेंदर ने कहानी को आगे बढ़ाया, “काहे बाड़ तू पटाइल। काहे बाड़ तू पटाइल।”

चोर ने समझा, “अब हिंओं हमरा के देख ता लोग।” वह भागने के लिए तैयार हो गया।

मछेंदर ने आगे कहा, “काहे भागे ल पड़ाइल, काहे भागे ल पड़ाइल।”

अब चोर जान-परान त्याग कर भागने लगा। भागते समय वह किसी चीज़ से टकरा गया। लोगों ने देख लिया कि एक चोर भागा जा रहा है। आख़िरकार चोर पकड़ लिया गया।

अब चारों तरफ़ यह शोर हो गया कि गाँव में जो नयका दामाद आया है, वह बड़ा भारी ज्योतिष है। ज्योतिष विद्या से चोर पकड़ा गया।

सुबह-सुबह मछेंदर हाथ में लोटा लेकर खेत की तरफ़ जा रहा था। रास्ते में एक गदहा मिला। उसे उसने ताड़ के पेड़ से बाँध दिया।

जब घर लौटा तो वह देखता है कि ससुर जी के दोवारे पर भीड़ लगी है। गाँव का एक धोबी उसके ससुर जी से फ़रियाद कर रहा है, “अपन दामाद से कहीं कि आपन ज्योतिष विद्या से मालूम करस कि हमार गदहा केने बा?” मछेंदर बोल पड़ा, “ई कवन बड़का बात रहे।”

उसने ज़मीन पर दो-चार आड़ी-तिरछी रेखाएँ खिंची और बोला, “पूरब दिशा में एगो ताड़ के पेड़ बा, वोकरे आस-पास राउर गदहा मिल जाई।”

धोबी उस ओर गया तो उसका गदहा मिल गया।

अब तो यह बात कि नयका दामाद बहुत बड़ा ज्योतिष है, पूरे गाँव में फैल गई। और यह बात कानो-कान गाँव के मुखिया तक पहुँच गई। मुखिया ने इस बात की परीक्षा लेनी चाही। मछेंदर को मुखिया के दरबार में बुलाया गया। अब तो उसका जान-परान सूखने लगा। उसका भेद खुलने की बारी आ गई थी, यह सोचकर उसकी हालत ख़राब हो रही थी।

मुखिया ने मुट्ठी में एक मच्छर बंद कर लिया और मछेंदर से पूछा, “हमार मुट्ठी में का बा? अगर सही उत्तर होई त दस बीघा खेत तेहरा मिली, ग़लत होई त तहरा के लोग के गुमराह करे के कारण फाँसी पर लटका दिहल जाइ। जल्दी बोल द, हमरा मुट्ठी में का बा?”

डर के मारे मछेंदर की घिग्गी बंध रही थी। किसी तरह साहस बटोरकर उसने घिघियाते हुए कहा, “मालिक! का मछेंदर के जान ले ले बानी। वोकरा पर रहम करीं और आज़ाद कर दीं।”

मुखिया ने सोचा कि वह मुट्ठी में बंद मच्छर के बारे में ही कह रहा है। वह बहुत ख़ुश हुआ और ढेर सारा ईनाम देने के साथ-साथ मछेंदर को दस बीघा खेत देकर विदा किया।

(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)

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