बेचाराम बाबू (कहानी) : बनफूल
Becharam Babu (Bangla Story in Hindi) : Banaphool
हरीश बनिया शाम को हिसाब समझाकर गया कि पिछले महीने का उधार 27 रुपये 5 आना हो गये हैं और उसे अबिलम्ब चुकता करना जरूरी है। सद्य1-ऑफिस -प्रत्यागत2 बेचाराम बाबू बोले, ‘‘ठीक है, वेतन मिलते ही- ।’’ इसके बाद कपडे़ बदलकर बाहर बरामदे में बैठकर उन्होंने हाँक लगाई, ‘‘अरे सुनो... चाय ले आना।’’ चाय आयी। चाय आते ही पड़ोस के हरिबाबू, नवीण राय, विधू क्लर्क-जैसे चार-पाँच सज्जन भी आ जुटे और चाय-पान के साथ गपशप भी चलने लगी।
बातचीत चल रही थी। ऐसे में बेचाराम बाबू की छोटी बेटी पूँटी हाजिर हुई, ‘‘बाबा, आज डाक से दो चिट्ठियाँ आयी है। लाऊँ?’’
पूँटी की छोटी बहन टूनी भी साथ आई थी। वह बोली, ‘‘मैं लाऊँ बाबा?’’
बेचाराम बाबू ने फैसला कर दिया, ‘‘अच्छा, दोनों एक-एक ले आओ।’’
श्रीयुत् बेचाराम बक्शी की पाँच पुत्रियाँ और दो पुत्र हैं।
पूँटी और टूनी दोनों दो पत्र लेकर आयीं। पहला पत्र बेचारामबाबू के प्रवासी पुत्र ने बहरमपुर से लिखा था- उसे कॉलेज फी, हॉस्टल चार्ज वगैरह मिलाकर पचपन रुपये चाहिए। दूसरा पत्र उसकी बेटी ने ससुराल से लिखा था कि पिछले साल पूजा में अच्छे उपहार न भिजवाने के कारण उसे काफी खरी-खोटी सुननी पड़ी थी, सो इस बार पूजा में उपहार भिजवाने में कँजूसी न की जाय, वरना ससुराल में रहना दूभर हो जायेगा।
गहरी साँस छोड़कर बेचारामबाबू ने दोनों पत्र जेब में डाल लिये।
फिर गपशप शुरु हुई। नवीन राय ने एक पान मुँह में दबाकर कहा, ‘‘तुम्हारी मँझली लड़की के लिए कुछ कर रहे हो कि नहीं? अब तो उसकी शादी कर ही डालो।’’
बेचाराम बोले, ‘‘एक पात्र देखो ना!’’
इसके उत्तर में नवीन ने कहा, ‘‘पात्र एक है। माँग भी कुछ खास नहीं है। पाँच सौ एक नकद, तैंतीस भरी सोना और वर के कपड़े आदि। आजकल के जमाने में यह कोइ ज्यादा भी नहीं है।’’
पसीना पोंछकर बेचाराम ने उत्तर दिया, ‘‘सो तो है।’’
थोड़ी देर में सभा टूटी। बेचाराम बाबू अन्दर गये। अन्दर भोजन के लिए बैठते ही स्त्री हरिमती पास आकर बैठ गयी और इधर-उधर की बातों के बाद बोली, ‘‘विनोद के मार्फत मासी माँ ने खबर भिजवायी है कि वे कल आ रहीं हैं। थोड़े अरवा चावल मँगवा लेना और सेरभर दूध कल से तय कर देना। वे अफीम खाती हैं, जानते ही हो।’’
सोने के लिए गये, तो देखा, बच्चे नीन्द से जागकर रो रहे हैं। पूछे, ‘‘क्या हुआ इन्हें ...’’
स्त्री बोली, ‘‘होगा क्या ... ठण्ड पड़ गयी है, किसी के शरीर पर ढंग के कपड़े नहीं हैं। रजाई भी उधड़ गयी है। पाँच साल पहले की बनवायी हुई है, फटेगी नही! तुम्हें तो बोल-बोल कर हार गयी हूँ। क्या करुँ मैं बताओ!’’
बेचाराम इसपर कुछ नहीं बोले। सिर्फ टेबल के ऊपर रोशनी की ओर देखते रहे। जलते-जलते मोमबत्ती करीब समाप्त हो चली थी।
1सद्य= अभी-अभी, 2प्रत्यागत= लौटे हुए