बंधन (मलयालम कहानी) : एम. टी. वासुदेवन नायर
Bandhan (Malayalam Story in Hindi) : M. T. Vasudevan Nair
दूर से देखने पर ऐसा प्रतीता होत था कि रेलवे गेट खुला हुआ है, किन्तु पास पहुँचने पर मालूम हुआ कि वह तो बंद है। उसने कार रोक ली। मन ही मन किसी को शाप दिया। कार की ओर निगाहें डाले बगैर खामोश होकर चलने वाले 'गेटमैन' का उसकी नाराजगी भरी नजरों ने पीछा किया।
गाड़ी की आवाज तक नहीं सुनता। हाथ की घड़ी की ओर निगाहें डालीं। छह बजकर बीस मिनट।
कुछ देर पहले रवाना होने का विचार था। शनिवार होने के नाते दोपहर के बाद छुट्टी है। लेकिन भात खाने के बाद उसे लगा कि कुछ देर तक सो लिया जाये। दिन में सोने पर रात को नींद नहीं आयेगी। ऐसा निष्कर्ष उसने पिछली रात को दो बजे सोने के आधार पर निकाला था।
तड़के वह ठीक साढ़े पाँच बजे उठा। दरवाजे के पास वह खड़ा हो गया। सुबह की चमकने वाली सफेद धूप अकस्मात् गायब हो गई। फिर चंद मिनट के बाद तेज बरसात होती नजर आयी। प्रकृति में परिवर्तन जल्द ही होता है।
सोचा कि न जाये तो ! रविवार शहर में बिताने का मतलब है, छुट्टी का पूरा दिन मिस डिसूज के साथ बिताना। 'काले चाँद' और अप्रेल महीने के इश्क के माधुर्य और विषाद से भरे गीतों को सुन, उसकी देह की गंध और मृदुता का उपभोग कर मदोन्मत्त होना है।
लेकिन तीन शनिवारों की छुट्टियाँ बीत गई हैं। गाँव की पत्नी की निगाहों में बिना चाँदनी का अँधेरा ही समा गया है। उसकी याद आने पर...जाने का इरादा किया।
'त्याग' करने की तैयारी के साथ कार में चढ़कर बैठ गया। अब फौरन पहुँचना है। हमेशा उसे उतावलापन महसूस होता है।
जाने के नाम पर सुस्ती आयेगी। जब जाने का इरादा किया है तो जल्दीबाजी किस बात की। पत्नी इंतजार कर रही है, छोटी मुन्नी भी।
साँझ को शोरगुल से भरे शहरों के टेढ़े-मेढ़े रास्तों और इंसानों के कोलाहल से बचकर जाना है।
नजदीक ही रुकी हुई कार में से किसी ने पुकारा, 'हलो सर"...उसने सिर घुमाकर देखा। साल भर पूर्व शहर में आने के तुरंत बाद परिचित कंपनी वाला।
"हलो !"
वह हाथ उठाकर हँस दिया।
इतने में नजदीक खिसकती रेलगाड़ी के इंजन की आवाज़ ने उसकी बात नहीं सुनने दी। 'क्या घर जा रहे हो ?' पूछा होगा। उसने हँसते हुए सिर हिला दिया।
मालगाडी है। नीरस रात-दिन की भाँति धीरे-धीरे ही वैगन आगे बढ़ता है। पहियों से टकराने की आवाज चारों ओर गूंज उठती है।
एक युग के बाद गेट खोला गया। पीछे गाड़ियों और यात्रियों का पारावार है। जब गाड़ी स्टार्ट करने पर गड़बड़ी होगी उसने कार जोर से स्टार्ट की। सात साल से एक गुलाम की तरह पैरों के नीचे दबी हुई वह छोटी-सी कार। फिलहाल कभी-कभी गड़बड़ करती है। नहीं, इंजन तड़प कर जी उठा।
शहर की सीमा पर पहुँचते-पहुँचते संदेह घेरने लगा। क्या इतना पेट्रोल काफी है ? सात-आठ लिटर होगा। सत्ताईस मील दूर जाना है। वापस आते वक्त तंग करे तो ? नजदीक के पेट्रोल पंप पर कार रोक ली। दस लिटर भरने के बाद पैंट की जेब में हाथ डालकर पर्स बाहर निकालने पर दवा लेने की बात याद आयी। डाक्टर का नुस्खा बहुत दिनों से पर्स में ही पड़ा रहा। यदि दवा लेने गये तो चार मील वापस जाना पड़ेगा। दो दरवाजे और खिड़की खोलनी है। नहीं। लेकिन घर पहुँचने पर जब भारती पूछेगी, "बेबी की दवा ले आये ?"
...तब एक झूठ बोलूँगा-"वह दवा कहीं नहीं मिलती। डाक्टर से कोई दूसरा टॉनिक लिखाना है।"
झूठी बात करने में तो आसानी है। मैं झूठ बोलूँ तो चेहरे पर ईमानदारी की झलक होगी। शांत चेहरा और आर्द्र नजरें मनुष्य को प्रकृति से सहज ही मिले हुए हैं। बचपन में माँ और दूसरी औरतें कहा करतीं..."हमारी संतानों में सबसे भोला-भाला केशु ही है।"
भारती मुन्नी को नियमित रूप से एक टॉनिक देती है। जब मैं कहँगा तो वह मुझ पर अविश्वास नहीं करेगी। वह सिर्फ भरोसा करना ही जानती है। वह इस विश्वास पर ही तो जिन्दा रहती है। वह समझती है कि उससे ब्याह कर मैंने त्याग ही किया है। अच्छी खूबसूरत अमीर लड़की से शादी करने का मौका मिलने पर भी मैंने जो त्याग किया उसकी गरिमा का बोध उसमें है। समुद्र तट पर बत्तीस एकड़ उर्वर जमीन का मालिक होते हुए भी, जो अच्छे नारियलों के पेड़ों से भरी है, मैं उससे मुहब्बत करता हूँ, यही उसका भरोसा है। विश्वास की श्रृंखलाएँ न टूटने पायें।
उल्टी दिशा से आते हुए वैगन से दो आदमियों ने हाथ हिलाया। इस शहर में पहुँचने के बाद मेरा इन लोगों से परिचय हुआ है। मित्र नहीं के बराबर हैं। पहले भी मैंने जहाँ नौकरी की उन जगहों का भी यही अनुभव रहा। मैं भीड़ में अकेला ही रहूँगा। अधिक बातचीत नहीं करूँगा। यों दूसरों की आँखों में मैं सीधा-सादा और भला था।
अकेले खड़े होने पर अपनी ही मान्यता का परिवेश अपने चारों ओर. दृष्टिगोचर होता था। क्लबों और मित्रों की गोष्ठियों में अच्छी पोशाक पहनकर जाता था। शांत होकर बातचीत बहुत कम की। फिर बधाई की महफिलों और विदाई की सभाओं में बिना प्रयास के चुने हुए शब्दों से कमाल कर लोगों को अचंभे में डाल देता था।
विदेशी और महँगी शराबों की दावतों में तो मैं सिर्फ लेमनजूस ही पीता। किन्तु अपने कमरे में पहुँचने पर वेस्ट पेपर वास्केट से सस्ती शराब की बोतल निकालकर गटक जाता।
मेरा नौकर भी यह सब कुछ जानता है। इसलिए वह घृणा करता है। काले बदसूरत होंठों के साथ-साथ वह लँगड़ा भी है। शहर के बहुत बड़े ऊँचे स्तर पर रहने वाले एक और इंसान का चेहरा उसने देखा था पसीने से तर लाल चेहरा। वह एक समस्या के रूप में सामने खड़ा होता है खौफ और घृणा करने वाले के रूप में।
इस ढंग की और भी समस्याएं हैं।
कार धीरे-धीरे चलने लगी। दोनों ओर विस्तृत रेतीली जमीन थी। शहर की सीमा को पार कर गंतव्य अधिक दूर नहीं था। लेकिन चारों ओर निर्जन था। एक टूटे-फूटे मंदिर के सामने चारों ओर घूमकर एक आदमी दीपक जला रहा है।
इस ओर सड़क सुनसान है। कभी-कभी नारियल लादे एक बैलगाड़ी आयेगी लगता है। कि इधर सिर्फ दो ही बसें आती-जाती हैं।
सामने की ओर निगाहें डालकर कार चालू की।
बैंगलूर के सहकर्मी एक मुसलमान मित्र की याद आई। उसने सोलह वर्ष की उम्र में कार चलाना सीखा था। उसके लिए कार जिंदगी का ही एक हिस्सा थी। फिर भी मुझे तो अकेले कार चलाने पर दुर्घटना हो जाने का भय बना रहता है। अकेले रहने पर सबकी याद आ रही है।
आगे का रास्ता दुर्गम है। कहीं-कहीं गड्ढे भी हैं।
नारियल के बाग के सूनेपन के उस पार साँझ के दीपकों की मद्धिम लौ दिखाई पड़ रही थी। पेड़ों के झुरमुट की ओर निगाहें डालीं।
रास्ते के नजदीक ही घरों के अंदर परिवार और बाहर दकानें नज़र आयीं। लोग और चिराग। जिससे लगा कि कोई बाजार है।
बूंदाबांदी फिर होने लगी। पानी की बूंदें गिरने से स्क्रीन में दुकान की बत्तियों और इंसानों के रूप विकृत हो गये। नगर से बाहर आने पर सड़क सीधी लकीर की तरह दृष्टिगोचर होती थी। इधर कभी-कभी हॉर्न बजाना पड़ता है।
बाजार के मध्य से दाईं ओर मुड़ना होगा। मुड़ने पर तुरंत ब्रेक लगाने पड़े। भीड़, जेबकतरे, मृत्यु, मारकाट, पागल कोई भी हो सकता है। उसने शाप देते हुए कार एक कोने में रोक ली। बुरा हो उन लोगों का जो सड़क के बीच से टस से मस नहीं होते। फिर हाथों से आँखें बंद करके बैठ गया।
"क्या यह घर की दिशा है ?"
देखा तो एक बुजुर्ग सामने खड़े हैं। कंधे पर तौलिया पड़ी है और बड़े अदब से झुके हुए देख रहे हैं।
हाँ।
"हुजूर, मैं पिछले हफ्ते दर्शन करने आया था।"
"मैं गत सप्ताह घर नहीं आया था।"
"जी, वहीं से मालूम हुआ था। मेरे लड़के वाली वह समस्या सुलझा दीजिए सर !"
अब यदि...बाप-बेटे के बीच का सीमा-विवाद है। दो महीने पूर्व एक रविवार की साम को जब मैं वापस लौटने को तैयार हो रहा था, तब वह आया था।
"कल आप होंगे।"
"आओ, आना, मैं रहूँगा।"
"कब आऊँ सर?"
"शाम को।"
शाम को उसके आने से पूर्व ही मैं लौट पढूंगा, यही सोचकर मैंने उसे ऐसा बताया था। भीड़ कम होती जा रही है। हौले से हार्न बजाया। लोग हट गये। लोगों को आकृष्ट करने वाली चीज एक बड़ी मछली थी।
"हुजूर, क्या मैं आपकी कुछ सेवा करूँ?"
"और कुछ नहीं चाहिए।"
मुझे मालूम है कि यह मान-सम्मान मेरे लिए नहीं। ससुर आसपास के मामलों-मुकदमों का निपटारा करते थे। वे मुखिया और अमीर थे। बड़े प्रभावशाली थे। उस इंसान की उपलब्धियाँ मेरा पीछा कर रही हैं।
अत्यंत विस्तृत चारदीवारी के भीतर, विशाल नारियल के बाग के नजदीक, घर के सामने खड़े होने पर लगता था कि मैं यहां अब भी अजनबी हूँ, सात साल के बाद भी।
देहात के लोग उनकी बहुत इज्जत करते हैं। मुकदमे के निपटारे के समय जब लोग घर के आँगन में लुक-छिपकर खड़े होकर देखते तो उसे अजीबसा महसूस होता था।
रात को मूसलाधार बारिश के वक्त, बड़े घर के बरामदे में नंगे बदन खड़ होकर अन का सपना देखनेवाले लड़के की तस्वीर आँखों में घूमने लगी।
और बड़ी नानी के घर नारियल के एक टुकड़े के लिए रोते, लड़कों से लड़ते, फिर भी नारियल हासिल न होने पर अपनी झोंपड़ी की ओर जाते वक्त चिनगारी की तरह दिल में एक ही बात कौंधती आज नहीं तो कल !
हथकरघे के बने दो नीले कुर्ते और बड़ी नानी के एक गहने की चोरी करके बेचने से प्राप्त पचास रुपये एक थैली में रखकर घर से विदा होते समय भी वही विचार खून में खौलता रहा।
फिर जिन्दगी के चौराहे पर आ खड़ा हुआ।
दिन में गोदाम में हिसाब लिखता और रात को पढ़ता। कई लोग उसकी इस कमठता और विजय-यात्रा को देखकर आश्चर्य में पड़ गये।
सेल्फ मेड मैन।
कालेज में पढ़ने के लिए जरूरी मदद और रहने के लिए एक कमरा देने वाले उस अच्छे इंसान ने अपने गैर-जिम्मेदार लड़के से कहा- "उसको देखकर सीखा। एफर्ट आलवेज़ 'पेज'।"
उस गौरवर्ण लड़की की आई आँखों की याद आज भी ताजा है।
खैर, आप उसे धोखेबाज या अहसान फरामोश कहिए।
मैं अपने लिए भी अजनबी इंसान बन गया था।
(भलाइयां हमेशा मेरे लिए व्यामोह मात्र थीं।)
एस्टेट के मोड़ वाली सड़क पर पहुँच गया। वहाँ सड़े हुए नारियल के छिल्कों की बदबू हमेशा भरी रहती है। बड़े ध्यान से कार चलानी है। एक बार मुझे देखने आये फर्नाडिस की जीप यहाँ उलट गई थी।
दूर एक दीवार दिखाई पड़ी। नजदीक के मोड़ पर पहुँचने पर गेट कार के आलोक में चमकने लगा।
धीमे से हार्न बजाया। अच्युतन को सावधान करने के लिए। गेट के नजदीक पहुँचने पर देखा कि गेट खुल गया था।
ठंडी हवा चल रही थी। सागर के नजदीक होने के कारण वातावरण में हमेशा पानी की बूंदें रहती थीं। मिस डिसूज से परिचित होने के बाद ही गीली समुद्री हवा अपनी मदद करने आयी थी।
एक बार पत्नी के सामने थकावट भरे चेहरे के साथ खड़ा रहा।
"क्या तबीयत ठीक नहीं ?"
"नहीं, रात में ज़रा बुखार आ गया था। वैसे कुछ बात नहीं है।"
"बुखार आते कितने दिन हो गये ?"
"दो-तीन दिन।"
"अरे ! फिर भी आपने डॉक्टर को नहीं दिखाया ?"
"उसकी कोई जरूरत नहीं।"
"हमेशा इसी तरह अपनी तकलीफ तो आप कभी देखेंगे नहीं। कल ही डॉक्टर को दिखाना है।"
पत्नी ने शिकायत की कि वह अपना सुख-चैन नहीं देखते—जरूरत से ज्यादा काम करते हैं, काम में ही उनका भरोसा है।
उसको यह भी भरोसा है कि जिन रातों में मैं घर नहीं आया, उन रातों में दफ्तर के कामों के लिए जगह-जगह घूमता रहा हूँ। दिन में ठीक तरह भोजन भी नहीं करता होऊँगा।
आखिर राजी हो गया। कल वह डॉक्टर को दिखा आयेगा।
दूसरे दिन।
"डॉक्टर को दिखाया या नहीं ?"
"दिखाया ! चिन्ता की कोई बात नहीं। हल्का बुखार है।"
"चिन्ता क्यों नहीं ? दवा नहीं दी है ?"
"गोलियाँ दी हैं, खा रहा हूँ।"
रात में खाई जाने वाली गोलियाँ बुखार के लिए हैं। ऐसा उसका विश्वास था। "आनंद के क्षणों का विस्तार करने के लिए उसका इस्तेमाल किया जाता है।" शीशी के बाहर व्यंग भाषा में ऐसा छापा गया था। उसकी अंग्रेजी शिक्षा एस॰एस॰एल॰सी॰ तक ही सीमित थी।
सोते समय समुद्री हवा के झोंके से बुख़ार दूर नहीं होगा। शहर में ही रहना है। डॉक्टर ऐसी सलाह देते हैं। क्या यह संभव है ?
"बुखार उतर जाये...बस...।"
उसको घबराहट थी।
शहर में एक घर लेकर रहेंगे। लेकिन यहाँ का काम कौन देखेगा ?
दस-बीस लोग इतने बड़े घर में काम करते हैं। नौकर-चाकरों पर कैसे यकीन कर सकते हैं ? सब चौपट हो जायेगा। सारी संपत्ति नष्ट हो जायेगी।
"तेरी...!"
मेरी !!!!
वही ठीक है। अंत में उसने ही सुझाव दिया। जब तक बीमारी दूर नहीं होती तब तक उसको शहर में रहना चाहिए। उसकी आँखों से आँसू बह रहे हैं।
मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि मेरे दिल की हँसी चेहरे पर प्रतिफलित नहीं होती।
उसकी प्रार्थना को अस्वीकृत करना अनुचित है, ऐसा बहाना कर वह उसकी राय से सहमत हो गया।
समुद्र और लहरों की गूंज निकट आने लगी। बरसात के कारण समुद्र गर्जना करके लहरा रहा है। जब कार ऊँचाई पर चढ़ी तो बाग में सर्वत्र रोशनी फैल गई।
इधर पहुँचने पर बरामदे में लेटने वाले सीजर की नज़रें कार की हेड लाइट से हरे रत्न की तरह चमकने लगीं। यह एक सुंदर दृश्य है।
गैरेज का दरवाजा खुला हुआ था। कार रुकने पर गोपालन दौड़कर आया। उसने पिछली सीट पर झाँककर देखा कि उठाने के लिए कोई सामान तो नहीं था।
बारिश हो रही थी।
सीज़र ऊँची आवाज़ में भौंकने लगा। लगा जैसे संपूर्ण आर्द्र वातावरण काँप उठा हो।
उसने पुकारा "सीज़र।"
सीज़र खामोश हो गया।
बरामदे में झूलते हुए 'पैट्रोमैक्स' के चारों ओर पतंगे उड़ रहे थे। बरामदे में आने पर सीज़र दुम हिलाने, गुर्राने तथा जंजीर से छूटने के लिए शोरगुल करने लगा।
उसने निकट जाकर उसे सहलाया। आते समय बेबी के लिए लाए गए बिस्कुटों के पैकेट में से एक बिस्कुट सीज़र को दिया। कई बार वह खाली हाथ आता है। ऐसा लगा कि सीज़र ने उसे समझा है। उसकी निगाहों में देखने से नृशंसता की झलक महसूस हुई। 'ऊँ चलने दे' ऐसा भाव उसके चेहरे पर विद्यमान था। वह मेरी गोद में बैठकर शीशी में दूध पीकर पला था। बेबी से उसकी उम्र तीन महीना अधिक है। देखा कि दरवाजे के पास भारती आकर झाँकते हुए चली गई। सीजर को पुनः देखा। हवा को सूंघकर नाक को ऊपर उठाकर वह खड़ा है। फिर गर्दन सहलाने गया तो उसने अपनी जीभ बाहर निकालकर अजीब स्वर निकाला। मैंने उसके लंबे दाँतों और स्थूल शरीर पर ध्यान दिया। अविश्वास की झलक की सूचना देने वाली उसकी नजरों के सामने मैं काँप उठा।
पैट्रोमैक्स के नीचे की जगह जले हुए पतंगों और उनके टूटे पंखों से गंदी हो गई थी।
दरवाजे के नजदीक से पुकारा "बेबी बिटिया।"
दरवाजे से भारती ने बताया "बिटिया खाना खा रही है।"
घड़ी में देखा। सात बज कर दस मिनट।
"आपको कॉफी चाहिए या हारलिक्स ?"
"कॉफी चाहिए।" उसने प्रसन्न होने का बहाना करते हुए कहा। भारती भारी पेट के साथ हौले-हौले रसोईघर में चली गई। वह बेहद थकी हुई है। आँखें गड्ढों में धंसी हुई हैं। चेहरे पर तेज का नामोनिशान तक नहीं।
आवाज लगाई, "बेबी मुन्नी, तू खाना खा रही है क्या ?"
उसके खाना खाने की जगह गया। भारती कॉफी ले आई थी। बेबी मुत्री भात खा चुकी थी। नारियम्मा उसके हाथ धो रही थी। कुछ यूंट कॉफी पी फिर काले प्लास्टिक की शीट वाली मेज़ पर उसे रख दिया। बेबी अपनी बड़ी-बड़ी चमकती काली आँखों और हलकी मुस्कान के साथ नजदीक आ गई।
उसकी दवा नहीं लाया इस बात की याद रह-रहकर आ रही थी। मुन्नी के हाथ पकड़कर अंदर के कमरे में गया। भारती सुन न ले इस कारण हौले से बिटिया से बोला "बेटी तेरे पेट में दर्द होता है।"
"नहीं। माँ हमेशा दवा देती है।"
"क्या दवा ?"
"आसव...।"
दीवार के शेल्फ में रखी आयुर्वेदिक औषधि की बोतल की तरफ इशारा किया।
कुर्सी पर बैठ कर बेबी को छाती से लगाया तो कई बातों की याद तो आई। मिस डिसूज की छोटी-सी बात को भी नहीं भूलता था। पसंद की गई उसकी चीजें खरीदने में भूल-चूक नहीं होती।
वह बिटिया का सिर सहलाते तथा अपनी आँखें बंद कर लेट गया। बिटिया से पूछने के लिए कुछ नहीं है। उससे कुछ कहने के लिए भी नहीं।
"स्कूल जाती हो ?"
"हाँ।"
"मास्टर जी गुस्सा करते हैं क्या ?"
"मास्टर नहीं, टीचर हैं।"
(पहले भी कई बार उसने यह बात बताई थी।)
"क्या किताब की कविता तुमने याद कर ली है ?"
"चिड़िया का गीत टीचर ने याद कराया था।"
"आज क्या पढ़ा था ?"
"नौका और मछुआरावाला पाठ।"
"क्या पढ़ा ?"
"नौका और मछुआरा।"
भारती पीछे खड़ी थी। दवा के बारे में उसने कुछ नहीं पूछा। पिछले तीन हफ्तों से न आने का कारण भी नहीं पूछा।
"हे ईश्वर, वह मुझे समझने लगी है !"
भारती की खामोशी उसको तंग करती है।
"अब कैसा हाल है ?"
उसने मूर्ख की तरह कहा "ऐं ऐं क्या ?"
"रात को अब भी बुखार रहता है ?"
"अधिक नहीं।"
खिड़की से ठंडी हवा आ रही थी। उसे खोलने पर सागर दिखता था। सीमा के उस पार रेत पर लहरें सिर पटकती होंगी। मैंने सिर उठाए बिना ही कहा-
"क्या खिड़कियाँ बंद करनी हैं ?"
"नहीं।"
"दूसरी कुर्सी पर बैठिए। इस हवा में बैठने से जुकाम हो जाएगा।"
उसकी हँसने और साथ ही रोने की इच्छा हुई। कुढ़ने, बिगड़ने, शिकायत करने और ईर्ष्या भरे दिल वाली एक पत्नी होती तो अच्छा होता। दीनतापूर्ण चेहरे पर गड्ढे में पड़ी हुई आँखों में इश्क, दर्द और विश्वास भरा है। ऐसी औरत के सम्मुख वह लाचार हो जाता है।
मैंने इंतजार किया कि वह मुझसे पिछले सप्ताह न आने का कारण पूछेगी।
"रविवार को जनरल मैनेजर आ गये थे।"
उससे पिछले हफ्ते में कौन आ गया था, यह सवाल भी उसने नहीं पूछा।
"मेरा जो अव्यक्त भय था इसलिए शायद अब की बार भी उसने कुछ नहीं पूछा। केवल इतना ही बोली थी, "आपकी तबीयत ठीक नहीं होगी। गोपालन को भेजना चाहा था।"
"उससे पिछली बार आने का मौका ही न मिला। कार वर्कशाप में थी।"
"पिछले हफ्ते नारियल खरीदने आदमी आये थे। मैंने बताया कि आपके आने के बाद दे देंगे।"
"नारियल बेच देतीं...बेच देना ही बेहतर था।" तसल्ली भरी आवाज में उसने कहा, "मुझे तो 'फाइनेंशियल ईयर एंड' होने के नाते एक पल की भी फुर्सत नहीं मिलती। रविवार को भी स्टाफ से काम कराना होता है।" वो एक मशीन की तरह विकार-रहित होकर बता रहा था।
"आपको धोती चाहिए ?"
"हाँ, चाहिए।"
बेबी उसकी उँगली पकड़कर अंदर चली गई।
"मुनी, किधर जा रही है ?"
सीजर और बेबी साथी हैं। बैल को मार गिराने की ताकत रखने वाला वह जानवर किसी की नहीं सुनता, लेकिन बेबी की हर बात वह अवश्य मानेगा। सुबह गोपालन की जंजीर में आबद्ध न होने वाला सीजर बेबी के पुकारने पर एकदम मान जाता है।
धोती पहनकर, तौलिया से छाती ढककर बाहर बरामदे में आया तो देखा कि बेबी सीजर को सहला रही है। उसके आने की पदचाप सुनकर सीजर उठ खड़ा हुआ।
"सीजर !"
उसने देखा, फिर मुन्नी के आगे गर्दन फैला दी। मुझे लगा, "इस परिवार में ठीक तरह से मुझे पहले पहल पहचानने वाला सीजर ही है।"
"बेबी, तू सीजर को नहलाती नहीं ?"
"गर्मी होती है तो हर रोज नहलाती हूँ।"
लगता है कि सीजर की मित्रता के कारण बेबी अधिकाधिक अनुशासन का पालन करती है।
उसने सीजर को पुनः पुकारा। वह खामोश ही रहा। कान पकड़कर उठाने पर उसने मुँह खोला, नृशंसता भरे टेढ़े और नुकीले दाँत दिखाई पड़े। अधिकार के मद में उसने उस कुत्ते को झकझोर दिया।
रसोईघर से माँ ने बेबी को पुकारा।
वह बरामदे में इधर-उधर टहलने लगा।
"पिता जी को बोलो गर्म पानी रखा है।"
नहाने पर ताजगी महसूस हुई।
खाने के लिए पत्नी ने पुकारा। वह बालों में कंघी कर रहा था। गौवन से दीप्त अपना चेहरा दर्पण में देखने पर उसको बड़ी खुशी हुई।
भारती ने एक ओर रखी बेबी की चारपाई जमीन पर बिछाई। झुककर जब वह बिछा रही थी तो मुझे लगा कि अपने पेट के भार से वह नीचे गिर जाएगी। उसकी हड्डियां दिखाई पड़ी।
"नौकरानी बिछा देगी न ? तू इस प्रकार..."
भारती कुछ नहीं बोली।
उसको आठवाँ महीना है।
"भोजन के लिए सिर्फ तरकारियाँ ही हैं।" उसने कहा, "बारिश के कारण मछली मिलती ही नहीं।"
वह नजदीक आकर खड़ी हो गई।
"आपका शरीर तो कमजोर हो गया है।" हमेशा यही वह कहती थी। शहर की जिंदगी आपकी तबीयत को बिगाड़ती है।
उसकी तन्दुरुस्ती के बारे में मैंने कुछ नहीं पूछा था। पाँच मील दूर की एक लेडी डॉक्टर के हफ्ते में एक बार आकर जाँच करने का प्रबंध कर गया था। पास ही एक मेटेरनिटी असिस्टेंट भी था।
"डॉक्टर नहीं आई थी ?"
"आज सबेरे आई थी।"
"छोटी नानी को यहाँ आने के लिए चिट्ठी लिखी थी ?"
"लिखी थी।"
आखिर उसको तसल्ली देने के लिए मैंने कहा, "कोई बात नहीं"अगले महीने मैं छुट्टी लूँगा।" उसने नकली जोश में बताया। "नया मैनेजर एक तरह का शैतान है। प्रार्थनापत्र देने पर भी यदि उसने छुट्टी नहीं दी तो मैं गाली सुनाकर चला आऊँगा।"
मैनेजर की भयंकर तस्वीर पहले ही उसने उसके सामने पेश कर रखी थी कि वह हमेशा नाकों-दम किये रहता है। छुट्टी नहीं देता। कुछ गड़बड़ी होने पर वह जरूर बदला लेता है।
"झगड़े के लिए न जाइए। कुछ गड़बड़ी न हो, यही बेहतर होगा।"
"तब इधर का काम कैसे चलेगा ?"...यह आवाज किसकी है ?"
"वह माँ हर रोज आती है। अगले सप्ताह छोटी नानी भी आ जायेगी, फिर काम पड़ा तो गोपालन को भेज दूंगी।"
"ठीक है।"
"मेरी तसल्ली के लिए बीच-बीच में आ जाना ही काफी होगा।"
सीजर के लिए खाना डालना चाहा तो उसने कहा "वह आप खाइए न, कुत्ते को मैं परोस दूंगी।"
"नहीं...।"
सीज़र के सम्मुख रखी एल्यूमीनियम की प्लेट में मैंने मुट्ठी भर अन्न डाल दिया। भारती आकर अपनी जगह बैठ गई।
नारिणयम्मा जूठे पत्तों में अन्न परोस रही है।"
अंदर मेज पर एक अंग्रेजी मासिक की तस्वीर बेबी देख रही है।
"बेबी ! क्यों नींद नहीं आ रही है क्या ?"
वह मानसिक उलट-पुलट कर चारपाई के समीप शंकित-सी खड़ी रही।
वह कमरे में अनमना-सा खड़ा रहा।
न कुछ कहने के लिए था, न करने के लिए ही। बेटी को अकेला छोड़ना ही ठीक है। बरामदे में आकर कुर्सी खींच उस पर बैठ गया। बाहर वह लहरों का आपस में हिल-मिलकर साँपों की तरह सिर पटकते देखने लगा।
दो मील दूर पर दीप-स्तंभ का घूमने वाला प्रकाश काले समुद्र तट पर बीच-बीच में हाथ पसार रहा है। दूर पर स्थित जहाजों के लिए वह मार्गदर्शी है।
सागर का गर्जन-तर्जन, लहरों का उत्थान-पतन देखने इधर बैठकर जितनी रातें गुजारी थीं, वे दुनिया के अज्ञात कोने के अनुभव-सी लगती थीं।
अब मिस डिसूस अपने खूबसूरत कमरे में पढ़ती होगी। नहीं तो विषाद भरे किसी गीत की मादकता में मग्न होगी।
एकांत खामोश रात के बारे में मिस डिसूज ने लिखा था-"इस कमरे के अंदर आपकी उपस्थिति महसूस होती है। मेज का दराज खींचने पर आपकी चिट्ठियाँ, मेज पर आपकी भेंट का सामान और रात में मैं जो रिकार्ड सुनती हूँ वह भी आपने ही दिया था। गले का मोतियों का हार, मेरा उम्दा साटिन जाकेट, सब कुछ आपकी याद कराते हैं।"
रात को चारपाई पर लेटते, बैडरूम लैंप की रोशनी में फर्श पर आपके पदचिह्न निगाहों में पड़ेंगे। मेरे दिल में और इस कमरे में हमेशा तुम दिखाई पड़ते हो।
मेरे प्रियतम ! तुम्हारे घर का दरवाजा कब मेरे लिए खुलेगा ?
मारगरेट डिसूस, यही मेरा घर है। इसके दरवाजे पर तुम्हारा स्वागत करने के लिए मेरी ग्रामीण पत्नी और पाँच बरस की लड़की ही है।
सत्ताईस मील दूर पर उसका आशिक एक परिवार का कर्ता-धर्ता होकर रहता है। उस गोवन युवती को यह सच्चाई मालूम होगी तो, खैर उसकी चिन्ता करना ठीक नहीं।
उसकी देह काँप उठी। सीखचों को पकड़े हाथ काँपने लगे, वह स्वयं उसने देखा।
एक बार इन मुखौटों को हटाना है। मिस डिसूज से सच्चाई कहती है। फिर भारती के सामने खड़े होकर कहूंगा-"भारती, मैं उतना अच्छा आदमी नहीं हूँ। मैंने कभी भी तुमसे मुहब्बत नहीं की थी।"
उस दिन से एक आजाद इंसान के तौर पर नई जिंदगी की शुरुआत करूँगा।
शराब पीकर बेहोश होने वाली रातों और थियेटर के सामने निजी सुखों का व्यापार करने वाली गली के निकृष्ट क्षणों का वर्णन करने वाली क्षमता उस दिन मुझमें आ जाए, ऐसी ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ।
भारती रसोई से वापस लौट आई। हाथ में एक गिलास दूध था।
"क्या बेबी सो गई ?"
"हाँ, आप लेटे नहीं ?"
शहर की शाम की शुरुआत के समय से ही यह मोहल्ला सोने लगता है।
भारती ने पलंग पर एक सफेद बैडशीट बिछाई। अलमारी के ऊपर रखा तकिया लेकर पैरों के तले रखा। नीचे बेबी की चारपाई के नजदीक बड़ी चारपाई बिछाई।
फिर रसोईघर में जाकर नारिणयम्मा से और बाहर खड़े गोपालन से कुछ देर तक बातचीत की। उसकी धीमी आवाज मैंने सुनी थी। सबेरे ही गाय को दुहना है। पानी गर्म करना है। तड़के ही जाकर गोपालन को मांस और लीवर खरीद कर लाना है। फिर कमरों को बंद करती चाभियाँ बज उठीं।
संदूक और कपड़े-लत्तों को रखा गया। फिर 'बैडरूम' में छोटा 'लाइट लैंप' जलाकर रखते हुए उसने कहा-
"सो जाइए।"
मैंने चुपचाप मान लिया। दरवाजे की ओर से ठंडी हवा बीच-बीच में साँस ले रही थी। सागर की आवाज दूर से एक भीड़ के अस्पष्ट शोर-गुल-सी सुनाई देती थी।
फिर भारती ने गोपालन को पुकारकर बताया "सीजर को छोड़ दो।"
सीजर अपना नाम सुनकर गुर्राने लगा। नारियल के बाग का विशाल साम्राज्य उसके लिए खुला है। यह उसको मालूम है। बंधन से मुक्त होते ही वह परछाइयों को धमका कर भौंकने लगा।
"बत्ती बुझा दूँ ?"
"हाँ"
मैंने बेबी को सीधे लिटा दिया। बत्ती बुझाकर उसने हौले से प्रार्थना की-"हे भगवान रक्षा करो।" नाइट-लैंप की रोशनी कमरे में फैल गई।
हाथ फैलाने की दूरी पर पत्नी और मुन्नी लेटती है। आने वाला नया मेहमान पत्नी के उभरे पेट में हिल रहा है। लेकिन इस सच्चाई को मन मंजूर नहीं करता। दूर पर कार रोककर, सड़क की ओर से चलकर डिसूज के दरवाजे को खटखटाने वाले कामुक आशिक को भी उसका मन स्वीकार नहीं करता।
वह करवट लेकर लेट गया। भारती सोयी नहीं होगी। उसकी खामोशी की गहराइयों में उतर जाने की उसकी इच्छा है।
उसके दुबले-पतले शरीर ने उसमें हमेशा हमदर्दी ही पैदा की थी। वह बदसूरत न थी। लेकिन उसने कभी भी उसमें सौंदर्य का अंश नहीं देखा। वह कभी भी मेरी जिंदगी का अंश नहीं हुआ। दूसरी संतान का भार ढोटे इस पल भी वह मेरे लिए द्वंद्व ही है। उसके प्रति सिर्फ सहानुभूति ही होती है।...
भारती एक वेदना है तो मिस डिसूज एक आनंद।
मारगरेट की देह में भी नशा देने वाली कोई चीज है। उससे विदा लेकर वापस लौट जाने पर भी उसके शरीर की खुशबू मेरी देह में कहीं-कहीं छिपी रहती है। भीगे होंठों से जब वह चुंबन लेती है तब एक चुंबन से औरत को जो कुछ देना होता है, वह सब कुछ उपहार दे देती है।"
माँ और बेटी के श्वासोच्छ्वास कमरे में लीन हो रहे हैं। बंद दरवाजों के । उस पार से आती सागर की गूंज अब एक बड़े दिल के क्षोभ-सी लगती है। डिसूज की पोशाक और उसके घने बालों की खुशबू शून्य से उद्भूत हो, जैसे हौले-हौले उस पर छा जाती है।
शहर में पहुँचते ही मारगरेट को लिखने जा रहा हूँ, 'क्षमा करो..' मेरे बारे में सच्चाई मालूम होने पर मारगरेट चौंक उठेगी। समुद्र-तट की गीले बालू में खड़ी एक अविवाहिता की आँखों के नीचे की काली परछाइयाँ !
भारती माफ कर देगी।
मारगरेट को एक चिट्ठी लिख दूँ कि वह महीने की छुट्टी लेकर मुझे देहात वापस आना है। फिर पिता और पति के रूप में दिन बिताकर लौटने तक मारगरेट के गम और गुस्सा गायब हो जाएँगे। फिर कभी उनकी मुलाकात नहीं होगी। उसके लिए कोई दूसरा साथी मिलना मुश्किल बात नहीं है।
"झूठ न बोलने वाले सपनो"..."काले चाँद' के गीतों को सुन उसकी सेज पर कोई दूसरा उसे बर्दाश्त न कर सकूँगा। वह काँप उठा !
उसके लिए मेरे घर का दरवाजा खुला नहीं है। मेरे लिए अलग कोई घर नहीं है। यह बात शायद उसको मालूम नहीं है। लेकिन वह किसी दूसरे आदमी को आनंद प्रदान करे ऐसी तस्वीर की मैं परिकल्पना भी नहीं कर सकूँगा अँधेरे और उजाले की दुनिया देख कर उसने आँखें मूंद लीं।
तड़के ही साढ़े पाँच बजे सोकर उठा। आधे घंटे तक सोए बिना आँखें मूंदकर लेटा रहा। लगता है कि भारती पाँच बजे ही उठी है। गर्म कॉफी लेकर जब वह पलंग के नजदीक आई तो वह उठ बैठा। वह रविवार को सोए बिना ही सात बजे तक लेटा रहता।
बेबी सो रही है। वह उठ गया। शेविंग सेट और साबुन लेकर बरामदे में चला। शेव करके अंदर घुसते ही नारिणयम्मा ने बाथरूम में गर्म पानी रख दिया था। भारती ने जो कपड़े निकालकर मेज पर रखे थे, वही उसने नहाकर पहन लिए।
रात के विचार दूर से दिखाई देने वाले निरर्थक सपने से प्रतीत होने लगे।
"आप इतने सबेरे क्यों उठ गए ?"
"मुझे अभी जाना है।"
वह कुछ नहीं बोली।
"शाम को लौट आऊँगा।"
जाने लगा तो बेबी नींद से जागकर उठा बैठी। भारती ने उसको मेज के ऊपर खड़ा करके कहा "पिता जी जाते हैं। शाम को लौट आएँगे।"
बेबी आँखें मलती हुई कंधे पकड़कर खड़ी रही।
"मुन्नी के लिए क्या लाऊँ ?"
"ऊँ ! ऊँ!"
"क्या चाहिए बिटिया ?"
उसने कुछ नहीं बताया।
शायद मेरा मुखौटा माँ-बेटी और घर में पले सीजर के सामने तहस-नहस हो गया होगा। हार मानने के लिए तो मैं तैयार नहीं। मैंने जोर से कहा-"भारती ! मैं शाम को वापस लौट आऊँगा। जाते वक्त लेटी डॉक्टर से कुछ कहना है ?"
"कुछ नहीं।"
"फिर भी मैं उससे मिलकर जाऊँगा। मैं भूल गया था कि कल एक मुकद्दमा है। मुझे वकील से मुलाकात करनी है।"
वह बाहर गया। चलते समय गैरेज में सीजर गुर्राने लगा। नाराजगी के साथ मुड़कर उसने पुनः एक बार सीजर की तरफ नजर घुमाई।
गैरेज का दरवाजा गोपालन ने खोला। ओस और जलकणों से वातावरण ढंका हुआ था। ठंडी हवा कानों को छूकर बहने लगी। रेत से भरी वीरान सड़क पर कार दौड़ने लगी। लगता है कि तुरंत पहुंचने की जल्दबाजी उसके दिल को जानने वाली मशीन को भी थी। लेडी डॉक्टर के घर को पीछे छोड़कर कार आगे बढ़ती रही। लेकिन इसकी धुंधली याद तक नहीं रही।
ओस-भीगी धूल-भरी सड़क से मुख्य सड़क पर मुड़ते समय घर सिर्फ एक धुंधली स्मृति मात्र रह गया है।
नारियल ढोती गाड़ियों को खींचने वाले कमजोर बैल, नारियल के छिलकों को ढोने वाली काली औरतें और पुराने गंदे तौलियों से सिर और गले को ढंककर जाने वाले देहाती लोगों की यह सड़क शहर की ओर ही जाती है।
उसने गाड़ी को तेजी से चलाया। सड़क को पार करती कुतिया के चिंचियाने की आवाज शीघ्र ही पीछे छूट गई। रात के आँसुओं से भीगी सड़क पर गाड़ी चली जा रही थी। सामने होटल के मुलायम स्प्रिंगवाले बैड थे। शरीफ और कुलीन महफिलें थीं। अदब से झुकते बैरों के सिर थे, हाथों में जाम थे...कंपनी के मकान में चलती पार्टियाँ थीं...शराब की गंध से महकते कमरे और बाथरूम थे...मोहब्बत के व्यापार थे...एजेंटों के बाजार थे...और अब वह इन सबकी खुली सैर कर सकता है...।
कापिस्त्रोविन में चिड़ियाँ चहचहा रही थीं...वापस लौटने वाले जमाने की यादें आ रही थीं...और वह फ्रेंच परफ्यूम से भरे बिस्तर की तरफ वापस लौट जाता है।
अनुवाद : पी० कृष्णन्