बड़ा क्या है ? (कहानी) : हजारीप्रसाद द्विवेदी

Bada Kya Hai ? (Hindi Story) : Hazari Prasad Dwivedi

एक बड़े राजा की राजसभा में एक ब्राह्मण रहते थे । ब्राह्मण जैसे पंडित थे, वैसे ही सुशील भी । जीव हिंसा, चोरी, मिथ्या आदि के पास भी वह नहीं जाते थे । राजा उनको खूब चाहते और उनका काफी आदर-सम्मान करते । और सब लोग भी उनकी श्रद्धा-भक्ति करते थे। एक दिन उन्होंने सोचा- "अच्छा, राजा जो मेरी इतनी खातिर - बात, इतना आदर-सम्मान करते हैं, वह क्यों? मेरी जाति के लिए, या मेरे कुल के लिए? या देश, विद्या और चरित्र, इनमें से किसी एक के लिए? अच्छा, तो एक दिन इसकी परीक्षा क्यों न की जाये ?”

राजा के एक कर्मचारी थे । ये राज्य से जिसका जो कुछ रुपया-पैसा पावना होता था, उसे हिसाब करके चुकाते थे । ब्राह्मण की ये भी बड़ी भक्ति किया करते थे । एक दिन ब्राह्मण राजसभा में राजा के साथ भेंट करके घर लौटे जा रहे थे। उसी समय उन राजकर्मचारी ने आदमियों को देने के लिए जो रुपया-पैसा संभालकर रखा था, ब्राह्मण आंख बचाकर उसमें से कुछ लेकर चुपके से चल दिये । राजकर्मचारी ने यह देखा, लेकिन वे उनकी खूब भक्ति करते थे अतएव उस दिन कुछ न बोले ।

ब्राह्मण फिर एक दिन रुपया चुराकर चले । राजकर्मचारी टेर पाते ही 'चोर, चोर' कहकर चिल्ला उठे । चारों ओर से आदमी-जन दौड़कर आ पहुंचे और ब्राह्मण को पकड़ लिया। उन्होंने कहा, “वाह, बाबाजी, इतने दिनों तक खूब सच्चरित्र और सुशील बनते थे ! अब चलो राजा के पास ।" ब्राह्मण को धर-पकड़कर वे राजा के पास ले गये और सारी घटना कह सुनायी । राजा सुनकर बड़े दुखी हुए। बोले, "ब्राह्मण तुम ऐसे दुःशील हो-इतने दुष्ट हो !” यह कहकर राजा ने कहा, “ले जाओ, इसे यथोचित दंड दो ।"

ब्राह्मण ने कहा, “महाराज, मैं चोर नहीं हूं।” राजा ने कहा, “तुम अगर चोर नहीं हो तो ऐसा काम क्यों किया ?” ब्राह्मण ने तब सारी बातें खोलकर कहीं, “महाराज, आप मुझसे बड़ा प्रेम करते थे, बड़ा आदर-सम्मान करते थे। लोग भी मेरी भक्ति करते थे । यही देखकर मैंने सोचा कि हमारा इतना मान-सम्मान किसलिए है? यह हमारी जाति, विद्या, कुल, देश चरित्र के लिए ? इसी की परीक्षा करने के लिए, महाराज, मैंने आपका धन चुराया था। अब मैं समझ रहा हूं कि जो कुछ मान-सम्मान है, सब कुछ चरित्र के गुण से है, जाति, कुल, देश या विद्या के लिए नहीं ।"

ब्राह्मण इसके बाद संन्यासी होकर तपस्या करने चले गये ।

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