बालचर...हमेशा के लिए (अंग्रेज़ी कहानी) : रस्किन बॉन्ड

Baalchar...Hamesha Ke Liye (English Story in Hindi) : Ruskin Bond

किसी जमाने में मैं बालचर (बॉय स्काउट) हुआ करता था। । हालाँकि मुझे न तो स्लिप नॉट और ग्रैनी नॉट के बीच का फर्क समझ में आता था, न ही रीफ नॉट और थीफ नॉट के बीच का अंतर मालूम था। मुझे सिर्फ इतना पता था कि यदि कोई चोर पकड़ा जाता है तो उसे बाँधने के लिए थीफ नॉट का प्रयोग होता है। मैंने कभी कोई चोर नहीं पकड़ा है-और यदि पकड़ भी लेता तो पता नहीं क्या करता; क्योंकि मुझे कोई गाँठ बाँधनी नहीं आती। शायद मैं उसे चेतावनी देकर छोड़ देता और उसे भी एक बालचर बनने की सलाह देता।

'तैयार रहो!' यह एक बॉय स्काउट का नीति वाक्य है और काफी अच्छा भी है। लेकिन मैं कभी किसी बात के लिए परी तरह तैयार नहीं रहता, चाहे कोई परीक्षा हो, सफर हो या फिर अपने कमरे की छत की मरम्मत । मैं आधा भाषण देता हूँ और भूल जाता हूँ कि मुझे आगे क्या बोलना है। या फिर मैं अपने मित्र की शादी में पहनने के लिए नया सूट बनवाता हूँ और पाजामा पहनकर चला जाता हूँ।

तो फिर मेरे जैसा इतना अव्यावहारिक, लापरवाह लड़का बॉय स्काउट कैसे बन गया? जिस समय यह हुआ, मैं शिमला के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहा था।

हाँ, तो हुआ कुछ यूँ कि जूनियर स्कूल (मैं भी तब जूनियर ही था) में यह अफवाह फैल गई कि मैं खाना बहुत अच्छा बनाता हूँ। मैंने अपनी जिंदगी में कभी कुछ नहीं बनाया था; लेकिन हाँ, मैं स्कूल की कैंटीन में काफी समय बिताता था और छिप्प को. जो कैंटीन चलाता था. बेहतर समोसे, जलेबी, टिक्कियाँ और पकौड़े बनाने के नुस्खे बताया करता था। मेरी अनचाही सलाह के बदले वह कभी-कभी मुझे मुफ्त में समोसे दे देता था, इसलिए स्वाभाविक रूप से मैं उसे अपना दोस्त और संरक्षक समझने लगा था। अपनी इसी योग्यता के कारण मुझे कुकरी बैज देकर हमारी टुकड़ी के राशन की आपूर्ति सँभालने की जिम्मेदारी सौंप दी गई।

हमारी टुकड़ी में करीब बीस लोग थे। गरमी की छुट्टियों में हमारे स्काउट मास्टर मि, ऑलिवर हमें शिविर अभियान के लिए तारादेवी ले गए, जो शिमला शहर से कुछ मील दूर एक पहाड़ है, जिसके शिखर पर एक मंदिर बना हुआ है। पहली रात को हमें आलू छीलने, प्याज के छिलके उतारने, मटर छीलने और मसाला पीसने के काम दिए गए। जब सारी सामग्री तैयार हो गई तो पाक कला के विशेषज्ञ के तौर पर मुझसे पूछा गया कि उन चीजों का क्या करना है?

"सारी चीजें उस बड़ी देगची में डाल दो" मैंने आदेश दिया, ऊपर से आधा टिन घी डाल दो और थोड़ी सी बिच्छू बूटी डालकर आधा घंटा पकने दो।"

जब ये सब हो गया तो सबने उस पकवान को चखा; लेकिन आम राय यह बनी कि उसमें कुछ कमी थी।

"और नमक डालो।" मैंने सलाह दी।

नमक डाल दिया गया। फिर भी कुछ कमी लग रही थी।

"एक कप चीनी डालो।" मैंने आदेश दिया।

अब उसमें चीनी भी डाल दी गई। लेकिन अभी भी स्वाद में कुछ कमी रह गई थी।

"हम टमाटर डालना भूल गए।" एक अन्य स्काउट विमल ने कहा।

"कोई बात नहीं।" मैंने कहा, हमारे पास टमाटर सॉस है। एक बोतल सॉस डाल दो।"

"सिरका डाल दें तो?" एक और लड़के ने पूछा।

बिलकुल ठीक। "मैंने सहमति जताई, एक कप सिरका डाल दो।"

"अब तो ये बहुत खट्टा हो गया।" एक चखनेवाले ने कहा।

"हम जैम कौन सा लाए हैं?" मैंने पूछा। "करौंदे का। उसी की जरूरत थी।" पूरी बोतल डाल दो! मेरा पकवान सबको बहुत पसंद आया। सबने मजे लेकर खाया, मि, ऑलिवर ने भी, जिन्हें पता भी नहीं था कि उसमें क्या-क्या डाला गया था। इस डिश का नाम क्या है?

"ये विशुद्ध भारतीय खट्टी-मीठी जैम आलू करी है।" मैंने उन्हें बताया।

"छोटे में इसे बौंडभुर्जी कह सकते हैं।" विमल बोला। मैंने अपना कुकरी बैज सार्थक कर दिया था। बेचारे मि. ऑलिवर! वह स्काउट मास्टर बनने लायक बिलकुल नहीं थे। वैसे ही, जैसे मैं एक स्काउट बनने के काबिल नहीं था। अगले दिन उन्होंने घोषणा की कि वह हमें ट्रैकिंग के बारे में कुछ बताएँगे। उन्होंने कहा कि वो हमसे आधे घंटे पहले निकलकर जंगल में जाएँगे और अपने पीछे निशान के रूप में टूटी टहनियाँ, मुरगों के पंख, पाइन कोन, अखरोट इत्यादि छोड़ते जाएँगे। उन्हीं चिह्नों का पीछा करते हुए हमें उन तक पहुंचना था।

बदकिस्मती से हम बहुत अच्छे ट्रैकर्स नहीं थे। हमने जंगल में कुछ दूर तक तो उनकी छोड़ी निशानियों का पीछा किया, लेकिन फिर एक जगह बिलकुल साफ पानी का छोटा सा तालाब देखकर हमारा ध्यान भटक गया। अपनी यूनिफॉर्म उतारकर हम सब पानी में कूद गए और देर तक मस्ती करते रहे; कभी पानी में, कभी यूँ ही घास पर लेटकर धूप का मजा लेते रहे। करीब दो घंटे बाद, जब हमें भूख लगी, तो हम वापस अपने कैंप में आए और रात के खाने की तैयारी करने लगे।

एक बार फिर बौंडभुर्जी ही बन रही थी, लेकिन अलग विधि से।

अँधेरा होने लगा था और हमें मि. ऑलिवर की चिंता होने लगी थी। तभी हमने देखा, वह लँगड़ाते हुए कैंप के अंदर आ रहे थे। दो गाँववाले उन्हें सहारा दे रहे थे। जंगल के एक सुदूर कोने में दो घंटे हमारा इंतजार करने के बाद उन्होंने अपने छोड़े चिह्नों के सहारे खुद ही वापस लौटने का फैसला कर लिया था; लेकिन बढ़ते अंधकार में वे रास्ता भूल गए। उधर से गुजरते कुछ गाँववालों ने उन्हें देखा तो कैंप तक छोड़ने आ गए। वह हमसे बहुत नाराज थे और गुस्से में उन्होंने हमसे अच्छे आचरणवाले बैज सहित सारे बैज वापस ले लिये और अपने झोले में हँस लिये। मुझे भी अपने कुकरी बैज से हाथ धोना पड़ा।

एक घंटे बाद, जब हम सोने की तैयारी कर रहे थे, मि. ऑलिवर ने आवाज लगाई, "डिनर कहाँ है?"

"हमने तो खा लिया।" विमल ने कहा, "सारा खाना खत्म हो गया, सर।"

"बॉण्ड कहाँ है ? वही तो हमारा रसोइया है। बॉण्ड, उठो और मेरे लिए एक ऑमलेट बनाओ।"

"मैं नहीं बना सकता, सर।"

"क्यों?"

"मेरा बैज आपके पास है। उसके बिना खाना पकाने की इजाजत नहीं है। ये यहाँ का नियम है।"

"मैंने तो ऐसे किसी नियम के बारे में नहीं सुना है। लेकिन तुम सब अपने बैज वापस ले सकते हो। कल हम स्कूल वापस चल रहे हैं।"

मि. ऑलिवर खीजते हुए अपने टेंट में वापस चले गए। लेकिन मैंने नरम पड़ते हुए उनके लिए एक बढ़िया सा ऑमलेट बनाया, सिंहपर्णी की पत्तियों से उसे सजाया और एक अतिरिक्त हरी मिर्च डालकर उनके पास ले गया।

"मैंने ऐसा ऑमलेट पहले कभी नहीं खाया है।" मि. ऑलिवर ने चटकारा लेते हुए स्वीकार किया, "तीखा थोड़ा ज्यादा है, लेकिन स्वाद बहुत मजेदार है।"

"आपके लिए एक और बना दूं, सर?"

"कल बॉण्ड, कल। सुबह हम जल्दी नाश्ता करेंगे।"

लेकिन हमें अपना कैंप अगले दिन बहुत जल्दी समेटना पड़ा। भोर में एक भालू घूमता हुआ हमारे कैंप में आ गया और उस जगह पहुँच गया, जहाँ हमारा राशन रखा हुआ था। उसने वहाँ सबकुछ तहस-नहस कर दिया और खाने पीने की सारी चीजें बरबाद कर दीं, यहाँ तक कि हमारी सबसे बड़ी देगची भी पहाड़ से नीचे लुढ़का दी।

इसके बाद के हंगामे और शोरगुल के बीच भालू मि. ऑलिवर के टेंट में घुस गया (खुशकिस्मती से वह बाहर आ चुके थे) और जब वहाँ से निकला तो उनके ड्रेसिंग गाउन में फंसा हुआ था। फिर वह जंगल की दिशा में चला गया।

एक भालू ड्रेसिंग गाउन में? बहुत हास्यास्पद दृश्य था। और हालाँकि हम सब बहादुर बालचर थे, फिर भी हमने यही सोचा कि ड्रेसिंग गाउन भालू के पास ही रहने दिया जाए तो बेहतर होगा।

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