बाढ़ में (मलयालम कहानी) : तकषी शिवशंकर पिल्लै
Baadh Mein (Malayalam Story in Hindi) : Thakazhi Sivasankara Pillai
गाँव में ऊँचें स्थान पर एक मन्दिर है। वहाँ
देवता गले तक
पानी में डूबा पड़ा है। पानी। सब कहीं पानी-ही-पानी है। सभी गाँव वाले
बसेरा ढूँढने चले गये हैं। जिसके घर नाव है उसके यहाँ घर की रखवाली के लिए
एक आदमी रह गया है। मन्दिर की तीन कमरों वाली छत पर सड़सठ बच्चे थे। तीन
सौ छप्पन लोग, कुत्ता, बिल्ली, बकरी, मुर्गा-जैसे पालतू जानवर भी। सभी एक
जुट होकर रह रहे थे। कोई झगड़ा नहीं था।
चेन्नन् को पानी में खड़े एक रात और दिन हो गया। उसके नाव नहीं है। उसके
यजमान को प्राण लिये किनारे पहुँचे तीन दिन हो गये। जब पानी झोंपड़े के
अन्दर पहुँचने को हुआ तो टहनियों और लठ्ठों से ताक और मचिया बना ली थी। यह
सोचकर की पानी जल्दी उतर जाएगा, वह दो दिन तक उसी पर बैठा रहा। इसके अलावा
चार-पाँच केले के गुच्छे और फूस का अम्बार भी तो था। वहाँ से चल दिया तो
सारी चीजें कोई चालाक उड़ा ले जाएगा।
अब तक तो मचिया पर घुटनों पानी है। छप्पर छाने वाले नारियल के पत्तों की
दो पक्तियाँ पानी के नीचे हैं। अन्दर से चेन्नन् चिल्लाया, पर सुनेगा कौन?
पास है कौन? गर्ववती पत्नी, चार बच्चे, एक बिल्ली और एक कुत्ता-इतने
प्राणी उसी पर आश्रित हैं। उसे निश्चय हो गया कि झोंपड़े के अन्दर पानी
निकलने में तीस घण्टे से कम नहीं लगेंगे। अब तो अपना व परिवार का अन्त
आसन्न है। मूसालाधार वर्षा तीन दिनों से लगातार हो रही है। झोंपड़े के
नारियल-पत्ते हटाकर चेन्नन् किसी प्रकार बाहर आया। चारों ओर देखा। उत्तर
की तरफ बड़ी नाव जा रही थी। उसने जोर लगाकर नाव वालों को पुकारा। नाव
वाले, सौभाग्य से, बात समझ गये। उन्होंने नाव झोपड़े की ओर मोड़ी। चेन्नन्
अपने बच्चों, पत्नी, कुत्ते और बिल्ली को एक-एक करके छप्पर बाहर ले आया।
तब तक नाव भी आ गयी।
बच्चे नाव पर चढ़ने लगे। ‘‘चेन्नन् भाई, सुनो
जरा!’’ पश्चिम की ओर से कोई बोल रहा था। चेन्नन् ने
मुड़कर
देखा। ‘‘इधर आओ!’’ वह कुंजप्पन
था। अपनी मचिया पर
से बुला रहा था। चेन्नन् ने पत्नी का हाथ पकड़कर उसे नाव पर बिठाया। उसी
ताक में बिल्ली भी नाव पर चढ़ गयी। किसी को कुत्ता याद नहीं आया। वह
झोपड़े के पश्चिमी ओर इधर-उधर कुछ सूँघता फिर रहा था।
नाव चल दी।
कुत्ता छप्पर पर लौट आया। तब तक चेन्नन् की नाव दूर पहुँच गयी थी। वह मानो
उड़ रही थी। कुत्ता मर्मान्तक पीड़ा से किकियाने लगा। बेसहारे मनुष्य
की-सी आवाज उसने दी। कौन था उसे सुनने को ? झोपड़े के चारों ओर फिरा।
कहीं-कहीं सूँघा, और फिर किकियाया।
एक मेढ़क आराम से मचिया पर आ बैठा था। यह अप्रत्याशित शोरगुल सुन वह डर
गया और कुत्ते के सामने से पानी में कूद पड़ा, धुटीम्म्...। कुत्ता डर कर
काँपने लगा और पीछे उचककर पानी को देखता रहा, पानी हिल रहा था।
शायद खाना खोज रहा होगा, कुत्ता इधर-उधर सूँघने लगा। कोई मेढक उसकी नाक
में पेशाब करके पानी में कूद गया। कुत्ते को बेचैनी में छींकें आने लगीं।
वह सिर हिला-हिलाकर छींका। फिर आगे के पैर से मुँख पोंछ लिया।
मूसलाधार वर्षा शुरू हो गयी। कुत्ता उकड़ूँ बैठकर सहता रहा। उसका मालिक
अम्पलप्पुबा पहुँच चुका था।
रात हो गयी। एक भयंकर घड़ियाल पानी में अधडूबी झोंपड़ी को छूते हुए
धीरे-से बह गया। कुत्ता भय से पूँछ हिलाते हुए भौंका। घड़ियाल बह गया मानो
कुछ नहीं जानता हो।
मचिया पर उकड़ूँ बैठा कुत्ता भूख से पीड़ीत हो , कालें बादलों और अँधेरे
से युक्त वातावरण को देख किकिया उठा। उसकी दीनता भरी रूलाई दूर तक सुनाई
दे रही थी। सहानुभूति से पवनदेव उसे लेकर आगे बढ़े। घर की रखवाली करने
वाले कुछ हृदयालुओं ने कहा होगा-हाय! छत पर बैठा कुत्ता किकिया रहा है!
समुन्दर के किनारे उसके मालिक उसी रात का खाना खा रहा होगा। खाना खत्म
करके उसने अपने कुत्ते के लिए आज भी मुट्ठी-भर भात अलग रख छोड़ा होगा।
कुत्ता कुछ देर तक लगातार ऊँचे स्वर मे किकियाता रहा। फिर आवाज मन्द होकर
बन्द हो गयी। उत्तर की दिशा में कोई अपने घर बैठे रामायण बाँच रहा था।
कुत्ते ने उस तरफ देखा, मानो वह उसे सुन रहा हो। वह हला खाड़कर दूसरी बार
भी थोड़ी देर किकियाया।
निस्तब्ध निशीथिनी में मधुर स्वर में रामायण-पाठ एक बार और सुनाई पड़ा।
कुत्ता कान लगाकर देर तक उसे सुनता रहा। शीतल पवन में वह शान्त मधुर गान
घुल-मिल गया। हवा के झोंके और लहरों की आवाज को छोड़ और कुछ सुनाई नहीं
मचिया के सबसे ऊपर चेन्नन् का कुत्ता लेट गया और लम्बी साँसे लेने लगा।
बीच-बीच में निराश होकर किकियाया भी रहा। तभी मेढक ने छलाँग लगायी। कुत्ता
फिर बेचैन हो उठा।
सवेरा हो गया। कुत्ता धीमी आवाज में फिर किकियाने लगा। उसने हृदय विदारक
राग छेड़ा। मेढ़कों ने उसे घूरकर देखा। पानी की सतह पर उछलते-कूदते मेढकों
को वह एकटक देखता रहा।
पानी के ऊपर दीखते झोंपड़े के पत्तों को उसने आशा से देखा। सब ओर बिजन!
कहीं पर चूल्हा भी नहीं जल रहा था। कुत्ता उन पक्खियों पर लपक रहा था जो
उनके शरीर में खुशी से काट रही थीं। पिछले पैरों से चिबुक को बार-बार
खुजलाकर वह मक्खियों को भगाने लगा।
थोड़ी देर के लिए सूरज निकला। सवेरे की धूप में वह थोड़ा सोया भी । उस
केले के पत्ते की छाया मचिया पर पड़ रही थी, जो मन्द पवन में हिल-डुल रहा
था। कुत्ता उस पर लपक उठा। वह एक बार फिर भौंका।
बादलों से सूरज छिप गया। सब कहीं अँधेरा। हवा ने पानी को तरंगित कर दिया।
पानी की सतह से जानवरों की लाशें बह रही थीं। लहरों में पड़कर उनका प्रवाह
और तेज हो गया था। वे जहाँ कहीं स्वच्छन्द बहती जा रही थीं। कुत्ते ने चाव
से उन सबको देखा और फिर किकियाने लगा।
दूर कहीं कोई छोटी नाव तेज से जा रही थी। वह उठकर दुम हिलाने लगा। उस नाव
की गति देखने लगा, पर वह जल्दी ही छिप गयी।
पानी बरसने लगा। कुत्ते ने उकड़ूँ बैठकर चारों ओर देखा। उन आँखों में किसी
को भी रूलाने वाली निस्सहाय स्थिति प्रतिफलित हो रही थी।
पानी बन्द हो गया। उत्तर के घर से छोटी नाव आयी और एक नारियल के पेड़ का
पास रूक गयी। कुत्ता दुम हिलाते और जँभाई लेते हुए किकियाया। नाव वाला
नारियल का पेड़ पर चढ़कर कच्चे नारियल तोड़ने के बाद नीचे उतरा। वह नाव पर
नारियल का पानी पीकर डाँड से नाव खेने लगा।
दूर किसी पेड़ की डाली से एक कौआ उड़कर आया और उस सड़ी-गली लाश पर उतरा,
जो एक मोटे भैंसे की थी। चेन्नन् का कुत्ता चाव से उसे देखकर भौंक उठा।
कौआ भैसे का मांस चिकोटने लगा था। फिर सन्तुष्ट होकर वह भी उड़ गया।
एक हरी चिड़िया झोपड़े के पास खड़े केले के पेड़ पर आ बैठी और चहकने लगी।
कुत्ता बेचैन होकर फिर भौंका। वह चिड़िया भी उड़ गयी।
पहाड़ो से बहे जा रहे पानी पर चींटियों का एक झुण्ड था, जो जाकर झोंपड़े
से अटक गया। फिर बच गया। खाने की चीज समझकर कुत्ता उसे सूँघने लगा। वह
एकदम छींक उठा, उसका मुलायम चेहरा लाल होकर थोड़ा-सा सूज गया।
दोपहर बाद, एक छोटी नाव में दो आदमी उस तरफ आये। कुत्ता दुम हिलाकर उन्हें
देख भौंकने लगा। वह अपनी भाषा में कुछ बोला, जो मनुष्य की भाषा-जैसी थी।
पानी में उतर कर नाव में चढ़ने को वह तैयार खड़ा था।
‘‘देख,
एक कुत्ता खड़ा एक बार फिर किकियाया, मानो वह उनकी सहानूभूति का आभार
प्रकट कर रहा हो। ‘‘वहीं रहने
दे।’’ दूसरे आदमी
ने कहा। कुत्ता मुँह बन्द करके कुछ बोलने लगा, एक-दो बार उस ओर लपकने का
प्रयास भी किया।
नाव दूर चली गयी। कुत्ता एक बार और किकियाया। नाव वालों में एक ने मुड़कर
देखा।
‘‘हाय!’’
यह नाव वाले की नहीं, कुत्ते की आवाज थी।
‘‘हाय!’’
उसकी थकी-माँदी हृदयस्पर्शी दीन रूलाई दूर हवा में विलीन हो गया। फिर
लहरों का अनन्त नाद। किसी ने फिर मुड़कर नहीं देखा। कुत्ता उसी तरह नाव के
गायब हो जाने तक खड़ा रहा। वह भौंकता हुआ मचिया पर चढ़ गया मानो कह रहा था
कि अब दुनियाँ से अन्तिम विदा ले रहा है । शायद कह रहा हो कि वह आगे कभी
किसी मनुष्य को प्यार नहीं करेगा।
उसने थोड़ा पानी पिया, फिर ऊपर उड़ने वाली चिड़ियों को देखा। लहरों में
बहता हुआ एक सांप उसके पास आया। कुत्ता छट से मचिया पर जा पहुँचा। चेन्नन्
और परिवार जिस सेंध से बाहर निकले थे, उसी से साँप अन्दर रेंग गया। कुत्ते
ने सेंध की ओर झाँका। वह फिर भौंकने लगा। फिर किकियाया। उसमें प्राणों का
डर और भूख दोनों मिल गये थे। वह भाषा कोई भी भाषा-भाषी, यहाँ तक कि
ग्रहवासी भी समझ सकता था। इतनी संवेदनशील थी उसकी भाषा।
रात हो गयी। भयंकर तूफान आया। वर्षा हुई। छप्पर पानी के थपेडों से हिल डुल
रहा था। दो बार कुत्ता ऊपर से नीचे गिरने को हुआ। एक लम्बा सिर पानी के
ऊपर उठा। वह एक मगर था। कुत्ता प्राण-पीड़ा से भौंकने लगा। पास ही कहीं
मुर्गियों की एक साथ रोने की आवाज सुनाई दी।
‘‘कुत्ता कहाँ से भौंक रहा है ? यहाँ से लोग गये नहीं
क्या
?’’ केले के पेड़ के पास एक नाव आयी जो फूस, नारियल
और केले
से भरी हुई थी।
कुत्ता नाव वालों की ओर मुड़कर भौंकने लगा। वह क्रुद्ध होकर, पूँछ उठाये,
पानी के पास गया और फिर भौंका। नाववालों में से एक केले के पेड़ पर चढ़
गया।
‘‘भई, लगता है कि कुत्ता
लपकेगा।’’
कुत्ता आगे की ओर लपका भी। केले पर से वह आदमी गिर पड़ा। दूसरे ने उसे हाथ
देकर नाव पर चढ़ाया। इतने में कुत्ता तैरकर मचिया पर जा पहुँचा और शरीर
झटकते हुए क्रुद्ध होकर भौंकने लगा।
चोरों ने केले के गुच्छे काट लिये। ‘‘तुझे मिल
जाएगा।’’ गला फाड़ भौंक रहे कुत्ते से उन्होंने कहा।
फिर
उन्होंने फूस नाव में डाला । अन्त में एक आदमी मचिया के ऊपर चढ़ा तो
कुत्ते ने उसका पैर काट लिया। कुत्ते के मुँह में मांस भर गया।
‘‘हाय!’’ वह आदमी रोते हुए कूदकर
नाव पर जा चढ़ा।
नाव में खड़े आदमी ने डाँड लेकर कुत्ते के पेट पर दे मारा।
‘‘कैं...कैं....कैं!’’ कुत्ते की
आवाज मन्द पड़ गयी। जिस कुत्ते ने काटा था वह नाव पर रो रहा था।
‘‘अरे! चुप रह, कोई...’’ दूसरे
ने उसे ढाढस
बँधाया। वे आगे बढ़ गये। बहुत देर बाद कुत्ते ने उस ओर देखा और भौंका,
जहाँ से नाव चली गयी थी।
आधी रात के करीब का समय। एक मोटी गाय की लाश बहती हुई झोंपड़े से आ लगी।
कुत्ता उसे उपर से देख रहा था। वह नीचे नहीं उतरा। लाश धारे-धीरे बहने
लगी। कुत्ता किकियाया। नारियल के पत्तों को छीला। दुम हिलायी। अलग हट रही
गाय की लाश के पास गया और दाँतों से उसे पास खींचकर खाने लगा। भयंकर भूख
मिटाने को उसे काफी भोजन मिल गया था।
‘ठे’ एक प्रहार! कुत्ता दिखाई नहीं पड़ा। गाय की लाश
थोड़ी डूबकर बह गयी।
तब से सिर्फ तूफान की गर्जन, मेढक के टर्र और लहरों की आवाज ही सुनाई दे
रही थी। और कुछ नहीं। सब ओर सन्नाटा! घर की रखवाली करने वाले लोगों ने फिर
कुत्ते की दारुण रूलाई नहीं सुनी। सड़ी-गली लाशें जल की सतह पर इधर-उधर बह
रही थीं। किसी पर बैठा कौआ मांस नोच-नोचकर आराम से खा रहा था। कोई बाधा
रूकावट नहीं, चोरों को भी अपने काम में व्यवधान नहीं पड़ा। सभी ओर एकान्त!
थोड़ी देर बार वह झोंपड़ा गिर पड़ा और पानी में डूब गया। उस अनन्त जलराशि
पर कुछ दिखाई नहीं पड़ता था। अपने मालिक के घर की रखवाली उस वफादार कुत्ते
ने आखिरी दम तक की। वह चला गया। पर झोंपड़ा तक पानी की सतह पर खड़ा रहा,
जब तक उस कुत्ते को मगर नहीं पकड़कर ले गया। अब वह झुककर पानी में पूर्णतः
डूब चुका था।
पानी उतरने लगा। चेन्नन् कुत्ते की खोज करता हुआ वहाँ आया। किसी नारियल के
पेड़ के नीचे कुत्ते की लाश पड़ी हुई थी। लहरें उसे धीरे-से चला रही थीं।
पैर के अँगूठे से चेन्नन् ने उसे हिलाया, उसे उलटकर देखा। उसे निश्चित
नहीं हो सका कि यह उसी का कुत्ता है। उसका एक कान कट गया था। खाल सड़ जाने
से रंग का भी पता नहीं चल रहा था।