Aritopolis : Asghar Wajahat
अरितोपोलिस : असग़र वजाहत
अरितोपोलिस (नाटक)
हिंदी के कुछ प्रबुद्ध पाठक असग़र वजाहत को आज का मंटो मानते हैं लेकिन उनका नया नाटक 'अरितोपोलिस' उनके विचारक और चिंतक को सामने लाता है। नाटक में उठाए गए मुद्दे उसे सार्वभौमिक बनाते हैं। नाटक की भाषा को अधिक प्रभावशाली और धारदर बनाने के लिए उन्होंने 'अरितोपोलिस' के संवादों की ऐसी संरचना की है जो कहीं कहीं कविता के बिंब और प्रतीक प्रस्तुत करती है । आगे ख़ुद ही देखिए... सं०
भूमिका
“लिसिस्ट्राटा” प्राचीन ग्रीक नाटककार अरिस्टोफेन्स द्वारा एक युद्ध-विरोधी कॉमेडी है। इसका पहली बार 411 ईसा पूर्व में मंचन किया गया था। यह पेलोपोनेसियन युद्ध को समाप्त करने के लिए लिसिस्ट्राटा पुरुषों को शांति के लिए बातचीत पर मजबूर करने के साधन के रूप में ग्रीस की महिलाओं को यौन विशेषाधिकार वापस लेने के लिए एकजुट करती है। उसके प्रयासों पर केंद्रित यह नाटक अविस्मरणीय है।
इस नाटक के बारे में सन 1994-95 के आसपास बुडापेस्ट में डॉक्टर मारिया नेज्येशी ने मुझे बताया था। उनसे इस नाटक के बारे में जानकारी मिलते ही मुझे यह लगा था की इस विषय पर काम किया जा सकता है लेकिन कोई काम शुरू नहीं हुआ था। लेकिन दिमाग के किसी कोने में यह बात पूरी तरह सुरक्षित थी। सन 2000 के आसपास पुराने मित्र लेखक और अभिनेता अतुल तिवारी से इस नाटक के संबंध में बातचीत हुई थी लेकिन बात बातचीत से आगे नहीं बढ़ी थी। कुछ नहीं हो सकता था। अभी पिछले वर्ष पुरानी बातें फिर याद आ गयीं और इस नाटक पर काम करना शुरू किया।
मूल रूप से एक हास्य नाटक माना जाने वाला यह नाटक कुछ बहुत गंभीर सामाजिक, राजनीतिक और मानवीय प्रसंगों को दर्शाता है।
इस नाटक का मुख्य प्रस्थान बिंदु महिलाओं द्वारा युद्ध रोकने के लिए पुरुषों को सेक्स आनंद से वंचित कर देने की रणनीति को आधार बनाकर मैंने एक नये कथानक की संरचना की है। यह कथानक हास्य प्रधान नहीं है। इसमें तीन प्रमुख मुद्दे सामने आते हैं। पहला, युद्ध के कारण समाज और मुख्य रूप से स्त्रियों पर पड़ने वाले भयानक प्रभाव, दूसरा मुद्दा स्त्रियों के अधिकारों से संबंधित है। स्त्री और पुरुष के समान अधिकारों के मुद्दे को भी उठाया गया है। नाटक के पात्र सम्राट अरिस्तोनिमोस की अपार, अनंत धन लोलुपता और युद्ध प्रेम के माध्यम के कुछ सार्वभौमिक मुद्दों को भी उठाया गया है।
अरितोपोलिस का सम्राट अरिस्तोनिमोस एक क्रूर और बेहद लालची शासक है। वह सारे संसार का सोना अपने खजाने में जमा कर लेना चाहता है। लूटपाट करने और अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए वह लंबे युद्ध अभियान पर निकल जाता है। लंबे समय तक चलने वाले युद्धों के कारण सबसे अधिक क़ीमत स्त्रियों को चुकानी पड़ती है। न केवल उनके पुत्र, पति और प्रेमी युद्ध में मारे जाते हैं बल्कि पारिवारिक जीवन पूरी तरह रुक जाता है, ठहर जाता है। इस कारण अरितोपोलिस गणराज्य की महारानी और सभी स्त्रियां तय करते हैं कि इस बार जब सम्राट और सेना लौटकर वापस आएंगे तो उन्हें सेक्स के आनंद से वंचित कर दिया जाए। उनसे वचन लिया जाए कि उस समय तक उनके साथ सेक्स संबंध नहीं बनाए जाएंगे जब तक वे यह वचन न दें कि भविष्य में लूटपाट और धन जमा करने के लंबे युद्ध अभियानों पर नहीं जाएंगे। यह नाटक का प्रस्थान बिंदु है। इस दिशा में नाटक आगे बढ़ता है जिसमें महिला अधिकारों का मुद्दा भी जुड़ जाता है।
~ असग़र वजाहत
अरितोपोलिस (नाटक) : पात्र
अरिस्तोनिमोस - 60 वर्ष - सम्राट
कलिसते- 30 वर्ष - महारानी
सोफे़रोन - 75 वर्ष - दार्शनिक
असपासिया - 25 वर्ष - नगर वधु
हेलियोदोरोस - 70 वर्ष - महामंत्री
सेनापति - 60 - वर्ष
न्यायाधीश - 65 - वर्ष
चार युवा स्त्रियां
लंगड़ा सिपाही
लूला सिपाही
बूढ़ा 1
बूढ़ा 2
अंधा तथा अन्य
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 1
(यूनानी मंदिर में प्रमुख पुजारी पूजा कर रहा है। कुछ बहुत गणमान्य व्यक्ति इधर उधर खड़े हैं। बहुत पवित्र और आध्यात्मिक वातावरण में अरितोपोलिस गणराज्य के सम्राट अरिस्तोनिमोस का प्रवेश। देवताओं की प्रतिमाओं की ओर देखकर सिर झुकाता है और धीरे-धीरे बोलना शुरू करता है)
अरिस्तोनिमोस— हे पृथ्वी और आकाश के स्वामी हे समुद्र और पर्वत के रखवाले हे जीवन और मृत्यु विजय और पराजय के दाता देवताओं के पितामह रक्षक यूनान के समृद्धि और ऐश्वर्य के प्रतीक पूजनीय ओसीआनस मैं अरितोपोलिस का सम्राट अरिस्तोनिमोस सिर झुका कर पृथ्वी और जल की देवियों क्रोनस और गाइया को साक्षी बनाकर मांगता हूं तुम्हारा वरदान मैं सम्राटों का सम्राट मांगता हूं ... ज्यूस की तरह धरती पर मेरा विशेष अधिकार हो... मुझे वरदान दो कि मेरे पास आ जाए संसार का समस्त स्वर्ण मुझसे अधिक धन पूरी पृथ्वी पर न हो किसी के पास और मैं सदा सदा जीवित रहूँ मृत्यु रूपी शत्रु मुझसे सदा रहे दूर... बहुत दूर... देववाणी— तुम्हारी आस्था और भक्ति से प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान है तुम रहोगे सदा सदा जीवित तुम सदा स्वर्ण की आभा से रहोगे आलोकित सदा तुम्हारे चारों ओर होगा स्वर्ण ही स्वर्ण ... तुम्हारे ऊपर क्रोनस की छाया सदा बनी रहेगी अरिस्तोनिमोस — सारे संसार का सोना सारे संसार की मणियां मोती सारे संसार का धन और वैभव मैं करूंगा प्राप्त चाहे क्यों न करना पड़े निरंतर युद्ध पूरे जीवन युद्ध अनंत काल तक युद्ध चाहे पृथ्वी का रंग लाल ही क्यों न हो जाए मैं करता रहूंगा युद्ध और करता संचय स्वर्ण हे देवताओं के पितामह मुझे दो वरदान युद्ध के क्षेत्र में विजय सदा सदा मेरी विजय देववाणी— वरदान है युद्ध के क्षेत्र में लड़ाई के मैदान में तुम्हारी सदा विजय होगी शत्रु की सदा पराजय (धीरे धीरे मंच से प्रकाश चला जाता है। सेना के युद्ध करने की आवाज़ें सुनाई देने लगती हैं)
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 2
(अरितोपोलिस गणराज्य की महारानी कलिसते अकेली और उदास बैठी शून्य में देख रही है। पास में पांच छः साल का एक बच्चा अपने खिलौनों से खेल रहा है।)
(अंगरक्षक का प्रवेश। अंगरक्षक झुक कर अभिवादन करता है) अंगरक्षक— महिमामयी, महारानी स्वीकार करें सेवक का अभिवादन (रानी धीरे से सिर हिला कर अभिवादन स्वीकार करती है) अंगरक्षक— संदेशवाहक युद्ध के मैदान से लाया है... महाप्रतापी, परमवीर, चक्रवर्ती सम्राट अरिस्तोनिमोस का संदेश... महिमामयी बहुत शुभ है समाचार महाप्रतापी सम्राट ने अगथोनेसोस के बाद मत्तेश गणराजय को भी युद्ध के मैदान में पराजित कर दिया है... अनुमति है संदेश सुनाने की... (महारानी अंगरक्षक को उदासी से देखती) अंगरक्षक— संदेश पढ़ने की अनुमति है? रानी- नहीं मत पढ़ो यह संदेश भी होगा जैसे थे पिछले संदेश इसमें भी होंगे शत्रु नाश और विजय के लंबे विवरण होगी रक्त की गंध तलवारों की चमक तीरों की वर्षा भालों की धमक दिखाई देंगे शत्रुओं के सिरों से बने स्तंभ उन पर लहराती विजय पताकाएं आग में जलते नगर रक्त से लाल नदियों का जल अनगिनत लाशें मां की गोद में बच्चे की लाश बूढ़े बाप के कंधे पर बेटे की लाश लाशों के मैदान में विजय के नगाड़े बाजे ताशे ...यही होता है हर संदेश में और होती है अपार धन की चर्चा अनगिनत स्वर्ण मुद्राओं हीरे जवाहरात मणि मोतियों का उल्लेख सम्राट के खजाने में बढ़ते सोने के भंडार लेकिन फिर भी कभी न ‘भरने’ वाला सम्राट का खजाना सदा खाली है सदा खाली रहता है जैसे भिखारी का पात्र... अनगिनत युद्ध अपार दौलत खजाने का एक कोना भी नहीं भर पाए सम्राट का मन और खजाना दोनों ही खाली रह गए अंगरक्षक— सम्राट के पराक्रम, शौर्य और साहस से पूरा गणराज्य आह्लादित है महिमामयी... रानी— सुख के पीछे दुःख झूठ के पीछे छिपी सच्चाई इस बालक से पूछो जन्म लेने के बाद आज तक जिसने नहीं देखा अपने पिता का चेहरा कौन दे सकता है मुझे उन हजारों रातों की उदासी एकाकी रुदन का बदला सम्राट से कहो, अंगरक्षक जब आएं अपने साथ लेते आएं समय भी हजारों रातें भी लेते आएं रति-सुख भी लेते आयें चुम्बनों की गर्मी आंलिग्नो की अग्नि और चरम आनंद के लाखों क्षण और हज़ारों रातें भी साथ लाएं जो इस विशाल राज महल की चहारदीवारी में उनके बिना काटी हैं मैंने... स्त्री के जीवन का नाम क्या केवल प्रतीक्षा है? (अंगरक्षक सिर झुका लेता है) रानी— जाओ अंगरक्षक, विजय का जश्न मनाओ मैं पराजय के अपमान बोध के नीचे... (अंगरक्षक सिर झुका कर चला जाता है। चार युवा महिलाओं का प्रवेश। वे सब रानी के सामने उदास नृत्य करती हैं। अपना संवाद बोलकर रानी के सामने अपने बाल खोलकर लेट जाती है।) औरत एक— महिमामयी ... सूखे शरीर में प्रतीक्षा का जहर आत्मा तक उतर गया प्रेमी के स्पर्श की लालसा मन सूखे पत्ते जैसा डोलता है हवा में... काली अंधेरी रातें प्रेत आत्माओं-सी करती हैं नृत्य समुद्र से आने वाली हवाएं निष्ठुर अपमान बोध... शरीर की ज्वाला में अस्तित्व ही जला जा रहा है औरत दो— उसकी पाषाण बाहों में चरम आनंद के क्षण हो गए कल्पना परमसुख की सांस के तार टूट गए मिलन की आस के दोनों छोर जल रहे हैं टुकडे़-टुकडे़ हो गया है अंग-अंग विरह का दुःख पहाड़ बन गया तूफानी नदी जैसी उजड़ती हैं आंखें औरत तीन— वह प्रेमी नहीं, समय है संबंधों की गर्मी पिघल कर पानी बन गई ठंडा और बेस्वाद पानी जैसे जौ की रोटी सूख कर बन जाए पाषाण... चूल्हे की आग न जाने कब से बुझी पड़ी है... न जाने कब से कोई पक्षी नहीं चहका कली खिलने की प्रतीक्षा में गयी सूख औरत चार— लाकर रख देगा स्वर्ण मुद्राएं मूल्यवान आभूषण कीमती वस्त्र मुद्राओं, आभूषणों पर लगा होगा इतना रक्त जो पानी से नहीं होगा साफ वह रक्त... रक्त से ही मिटेगा... सब औरत एक साथ— हम क्या करें महिमामयी... क्या करें?
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 3
(दार्शनिक सोफे़रोन के छोटे से मकान के सामने कुछ लोग जमा होते हैं। मंच पर प्रकाश होते ही एक बूढ़ा लंगड़ा बैसाखी पर चलता आता है। उसके पीछे एक अधेड़ आदमी आता है जिसका एक हाथ नहीं है। एक और आदमी आता है जो लंगड़ा रहा है। दो बूढ़े आते है जिनकी कमर झुकी हुई है। एक लड़की के कंधे पर हाथ रखे एक बूढ़ा अंधा आता है। ये सब झोपड़े के दरवाजे के सामने खड़े हो जाते हैं।)
बूढ़ा लंगड़ा— आत्मा को दहकाने वाले विचारों की आग से... सोफरोन बाहर आओ बूढ़ा अंधा— मन के अंधे कुएं में चिराग रोशनी का सोफरोन बाहर आओ बूढ़ा 1— डूब रहा है अनंत में आशा का विशाल पोत सोफरोन बाहर आओ (मकान का दरवाजा खुलता है. सोफरोन बाहर निकलता है। उसकी दाढ़ी सफेद है सिर पर बाल नहीं है। माथे पर झुर्रियां हैं लेकिन आंखें चमकती है।) सोफे़रोन— अभिवादन करो स्वीकार महान गणराज्य आरितोपोलिस के नागरिकों अभिवादन लंगड़ा सिपाही— धन्यवाद सोफे़रोन पर अज्ञात दिशा से बढ़ता चला आता है रात का अंधकार लूला सिपाही— निराशा के मेघ जल देंगे आशा के नगर बूढ़ा 1— आशा के सीने पर जमी है निराशा की बर्फ बूढ़ा 2— सात वर्षों बाद सूर्योदय क्या होगा वैसा ही जैसा होता था (नगर वधु असपासिया का प्रवेश। सब उसे आश्चर्य से देखते हैं। वह बहुत सुंदर और आकर्षक लग रही है। कुछ समय के लिए सन्नाटा हो जाता है) अंधा— क्यों हो गए सब चुप आ गया क्या कोई गुप्तचर लूला सिपाही— काश तुम देख सकते गेन्स अपूर्व ,अपार सुंदरता साक्षात हमारे सामने सुंदरता की देवी का महान प्रतिरूप नगरवधू असपासिया दार्शनिक- स्वागत है असपासिया... जिसके द्वार रगड़ते हैं नाक बड़े-बड़े वीर वह क्यों है अधीर असपासिया— दार्शनिक अब सौंदर्य और कुरूपता में नहीं बचा अंतर नहीं है कोई देखने वाला सजीले सैनिकों की केवल आती हैं लाशें मनचले जवान गले मिलते हैं तलवार के व्यापारी बाहर हैं नगर के साहूकार सेना के पीछे हैं नगर पुरुषों से है खाली सुंदर बालाएं पथरा गई हैं गणराज्य देख रहा है तुम्हारी ओर अंधा— सोफरोन कह दो प्रकाश प्रकाश और प्रकाश सब मिलकर— कह दो प्रकाश प्रकाश प्रकाश (काले कपड़ों में लिपटा हुआ अपना चेहरा छुपाए है कोई आकर खड़ा हो जाता है।) सोफे़रोन— आरितोपोलिस के गणमान्य नागरिकों बूढ़ा 1— सोफेरोन मत डालो आग में घी मत डालो हमारे जख्मों पर नमक बूढ़ा 2— नागरिक थे हम जब कर सकते थे युद्ध लंगडा— जब काट सकते थे गर्दनें अंधा— जब हमारी चमकीली तलवारें उड़ा सकती थीं दुश्मनों के सिर बूढ़ा 1— हम उठा सकते थे पताकाएँ फहरा सकते थे राज ध्वज बूढ़ा 2— कर सकते थे जयजय कार लूट सकते थे स्वर्ण मुद्राएं (सब गर्दन झुका लेते हैं) लंगड़ा सिपाही— अब कमजोर अपाहिज बूढ़े लूला सिपाही— अभिशप्त नगर के वासी बूढ़ा 1— नागरिक कहां... नगर निष्कासित हैं बूढ़ा 2— हम केवल करते रहते हैं रणक्षेत्र से आने वाले घायलों की प्रतीक्षा एक अंधा— सम्राट का युद्ध अभियान के सुखद समाचार खाते हैं पीते हैं ओढ़ते हैं बिछाते हैं उन पर गर्व करते हैं लंगड़ा— स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा के समाचार सुनकर हमें गर्व से फुला लेना चाहिए छाती जो अब हमारे पास कहां है बूढ़ा 1— खेत में होता है जो कुछ चला जाता है युद्ध में लगी सेना का भरने पेट... अंधा— लोहार, बढ़ई, कुम्हार धोबी चले गये साथ सेना के लूल— घर में रौशनी खून से हो नहीं सकती नहीं है तेल लंगड़ा— भूख पेट के अंदर चिल्लाती है (काली चादर में अपना मुंह छुपाए जो खड़ा है, वह बोलता है। औरत की आवाज सुनाई देती है।) आवाज़— जारी है सम्राट का युद्ध अभियान रथ के नीचे क्या केवल शत्रु ही आते हैं नहीं सोफरोन विजय के रथ के नीचे मित्र भी आते है बल्कि मित्र ही आते हैं आते हैं प्रिय जन आती है प्रेमिका आते हैं वह जिन्होंने नहीं देखा उसे वर्षों से जो बना उसके जन्म का एक कारण (भीड़ में फुसफुसाहट होती है) लोग कहते हैं— यह तो महिला है महिला है पर कौन है? बूढ़ा 1- विदुषी अपने मुख से काला वस्त्र हटाओ विचार और व्यक्ति का संबंध पता चले आवाज़— मुंह पर पड़े आवरण से आवश्यक है बुद्धि पर पड़े आवरण को हटाना (महिला चेहरे पर से काली चादर हटा देती है। सब देखते हैं कि वह महारानी है। झुक कर उसका अभिवादन करते हैं। असपासिया जाकर महारानी के साथ खड़ी हो जाती है।) सोफ़ेरोन— अहो भाग्य स्वागतम महिमामयी महारानी आदेश दिया होता सेवक आता राजमहल महारानी— जल प्यासे के पास नहीं आता प्यासा जल के पास जाता है सोफ़ेरोन... सोफेरोन— आदेश करें महिमामयी महारानी— जिन पर विश्वास नहीं होता उन्हें दिया जाता है आदेश तुमसे कुछ साझा करना है कुछ सूझता नहीं लगता है समय अंधकार में बदल गया सब रंग मिल कर हो गये बदरंग कलियों ने छोड़ दिया है खिलना सात साल से एक आग हमारे दिलों को जला रही है सम्राट व्यस्त हैं युद्ध में जमा कर रहे हैं सोने के पहाड़ आभूषण... सैनिक... घायल सैनिकों से नगर पटा पड़ा है... सात साल से नहीं देखा कोई स्वस्थ पुरुष... युद्ध में हार जीत सम्राटों की होती है पर स्त्रियां सदा हारती हैं सोफे़रोन— गणराज्य की महिमामयी महारानी विचार की छाया में तर्क के सागर के तट पर मिलते हैं उत्तर तर्क देता है दिशा सत्य संभावनाओं का अरण्य है सत्य का एक कण... महारानी— क्या अपराध है हमारा अथवा हमारा कौन है अपराधी सुनेगा हमारी पीड़ा देखो सोफ़ेरोन कैसा है गणतंत्र जिसने छीन लिए अधिकार सुख और शांति के अधिकार धूमिल हो गए वंचित हैं हम उस सुख और शांति से जिस पर है हमारा अधिकार सोफ़ेरोन— सम्राट और प्रधानमंत्री सेनापति और योद्धा नायक और संतरी सिपाही और सैनिक आएं जब लौटकर उन्हें भी वंचित कर दिया जाए महारानी— हमारे पास क्या है जिससे हम उन्हें वंचित करेंगे सोफरोन ? सोफ़ेरोन— महिमामयी शक्ति का गति का प्रजनन का केंद्र है स्त्री अपार सुख नैसर्गिक आनंद का केंद्र है स्त्री प्रकृति की सर्वोत्तम रचना है स्त्री भूखे भेड़ियों के आगे समर्पण न करने का अधिकार है स्त्रियों को उनसे कहना जाओ युद्धों से आनंद प्राप्त करो लूटमार हत्या नगर उजाड़ने का सुख भोगो तलवार से गर्दन उड़ा देने में खोजो आनंद हमारे पास क्यों आए हो जाओ तलवार से संभोग करो भाले को गले लगाओ ढाल का चुम्बन लो घोड़ों के साथ करो संभोग (महारानी और असपासिया एक दूसरे की ओर प्रसन्नता से किस तरह देखते हैं जैसे उन्हें पूरी समस्या का समाधान मिल गया है।)
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 4
(मंच पर प्रकाश आने से पहले अरितोपोलिस गणराज्य की सेना मार्च करने की ध्वनियां विजय के अवसर पर बजाए जाने वाले वाद्यों की आवाजें, हथियारों की खनक, घोड़ों की हिनहिनाहट तथा अन्य संबंधित ध्वनियां सुनायी देती हैं। मंच पर प्रकाश आते ही घोड़े पर सवार सम्राट अरितोपोलिस का प्रवेश। पीछे-पीछे प्रधानमंत्री हेलिमोदोरोस और सेनापति अदैइमनतोस आते हैं। पीछे अन्य सैनिक अधिकारी हैं। पताकाएं फहरा रही हैं। विजय संगीत बज रहा है। सम्राट घोडे़ से उतरता है। संगीत बंद हो जाता है। गणराज्य के सभी बूढ़े, लंगड़े, लूले, अपाहिज, अंधे सम्राट का स्वागत करने के लिए उपस्थित हैं।वे सम्राट के आगे झुकते हैं और सम्राट के भाषण पर तालियां बजाते हैं। खुश होते हैं। नाचने लगते हैं)
हेलियोदोरोस— महामहिम महाप्रतापी रणवीर शत्रु नाशक परमवीर अरितोपोलिस गणराज्य के सम्राट अगथोनेसोस और मित्तोस के विजेता का राजधानी में स्वागत है। (विजय संगीत फिर बनजे लगता है। गणराज्य के बूढ़े, कमजोर, घायल सिपाही, दूसरे लंगड़े, लूले,अपाहिज विजय संगीत पर नाचने लगते हैं) हेलियोदोरोस— सात वर्ष निरंतर युद्ध निरंतर विजय निरंतर शत्रुनाश निरंतर अघिकार निरंतर शक्ति संचय निरंतर धन संचय अस्सी रथों पर लदी स्वर्ण मुद्राएं आ चुकी हैं राजकोष में... मणियों, रतनों आभूषणों से भरे... बीस रथ... राजकोष...को दिया जा रहा है विस्तार स्वर्ण का इतना विशाल भंडार... अरिस्तोनिमोस-(बात काटकर) प्रधानमंत्री... ठहर जाओ... फिर भी कम है स्वर्ण भण्डार... फिर भी कम है रत्न... फिर भी कम है आभूषण... हम बनाना चाहते हैं... स्वर्ण नगरी... हमारा सपना है सोने की नगरी... जहां सब हो सोने का... सब कुछ हो सोने का... संसार में जितना है सोना उतना मुझे चाहिए सोना... सोने की अट्टालिकाएं सोने के राजमार्ग सोने के आसन सोने के वासन सोने के वाहन सोने के जंगल सोने का जल सोने की पक्षी सोने की पशु हा...हा...हा...हा... सारे संसार का सोना... (आक्रामक होकर) हमें चाहिए... हम ले लेंगे... चाहे...जितने युद्ध चाहे...जितनी हत्याएं चाहे...जितनी आग... लगानी...हो... खून की बह जाएं चाहे नदियां लाल हो जाएं जले हुए आदमियों की गंध फैल जाए संसार में आकाश का रंग चाहे हो जाए लाल... रक्त जैसा लाल मैं करता रहूंगा युद्ध युद्ध मैं जमा करता रहूंगा लाल चमकता हुआ सोना (विजय संगीत फिर बजने लगता है। गणराज्य के बूढ़े, कमजोर, घायल सिपाही, दूसरे लंगड़े, लूले,अपाहिज विजय संगीत पर नाचने लगते हैं)
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 5
(महारानी कलिसते एक ऊंचे आसन पर बैठी है। वे चारों स्त्रियों जो दूसरे दृश्य में आयी थीं। आती हैं। झुक कर महारानी का अभिवादन करती हैं। महारानी आसन से उतर कर उनसे बातचीत करती है। धीरे धीरे और स्त्रियां भी जमा हो जाती हैं सब मिलकर सौगंध लेते हैं)
महारानी— सात वर्षों के बाद सोने के भण्डार लेकर लौट आये हैं सम्राट लौट आये हैं प्रधानमंत्री लौट आये हैं सेनापति उनका करो स्वागत... जैसा कभी न किया था पहले... निराला स्वागत करो करो ऐसा स्वागत जो याद रहे जीवन भर जो बदल दे जीवन... स्त्री 1— हम समझी नहीं महिमामयी... महारानी— प्रेमी और पति के स्वागत में... जाओ जाकर करो देह पर लेपन गुलाब जल से स्नान करो शरीर को चमकाओ जैसे चंद्रमा आंखों की कालिमा और पलकों के रंग को करो गहरा भावों को करो एक आकार लंबे काले केशों में डालो सुगंधित तेल सीधे केशों को बनाओ घुंघराला चिकने केश रहित शरीर पर करो धारणा पारदर्शी रेशमी वस्त्र दिख सकती हो जितना सुन्दर आकर्षक मारक उत्तेजित करने वाली... सात साल तक तुम्हें पाने की चाह रखने वालों को रिझाओ... मीठी बातें करो शहद जैसी... उनकी आग को इतना भड़काओं... कि वे हो जायें बेक़ाबू... स्त्री 2— फिर महिमामयी ? महारानी— फिर जब के आगे बढ़े आलिंग्न के लिए पास आयें... चली जाओ दूर छू तक न सकें तुम्हें व्याकूल हो जाये... तुम्हें पास बुलाएं तो न जाओ... स्त्री 3— तब महिमामयी? महारानी- कहो... वचन दो... फिर नहीं जाओगे युद्ध अभियानेां पर वचन दो तो पास आओ... नही तो रहो दूर... वचन दो... विजय का अहंकार धन की लालसा से अधिक प्रेम करते हो मुझसे... स्त्री 4— पर यह...कौन... कौन करेगा... महिमामयी... महारानी— गणराज्य की सभी स्त्रियां... सम्राट से यही वचन लिया जायेगा... प्रधानमंत्री से भी सेनापति से हर सिपाही से... गणराज्य की सभी स्त्रियां खाती हैं सौगंध... सौगंध... एफ्रोडाइटी की सौगंध जब तक नहीं होते बंद युद्ध जब तक नहीं समाप्त होती सम्राट की लालच तब तक कोई स्त्री न करेगी अपने पति या प्रेमी से संभोग (सब मिलकर उल्लास में एफ्रोडाइटी की मूर्ति के सामने नृत्य करती हैं।)
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 6
(सम्राट का शयन कक्ष। महारानी बहुत पारदर्शी और उत्तेजित कर देने वाले कपड़े पहने हैं। सम्राट के हाथ में शराब का गिलास है। वह बहुत कामातुर दिखाई दे रहा है। महारानी के पास लड़खड़ाते हुए कदमों से आता है।)
सम्राट— सात वर्षों का अंतराल सात वर्ष नहीं बीती सात शताब्दियां तुम्हारे विरह की अग्नि में जला हूं... अलौकिक आनंद को तरसा हूं... तुम्हारी मांसल देह तुम्हारे निर्मल वक्ष कोमल पंखड़ियों वाली कमल योनि के स्मरण में व्याकुल हो याद किया है... धन्य हैं कि आज तुम हो और हम हैं... आओ... सात शताब्दियों की प्यास बुझाओ... (सम्राट रानी को अलिंग्न में लेना चाहता है पर वह हट जाती है।) सम्राट—(हंसकर) यह उचित ही है... तुम्हारा स्पर्श पाना सरल नहीं... तुम्हारे लिए एक अनूठा उपहार एक दुर्लभ और मूल्यवान उपहार यह रत्न पड़ित माला... (मेज़ पर रखे डिब्बे से माला निकालता है और दिखाता है।) मेरे निकट आओ... मैं अपने हाथों से... (महारानी पास जाती है। राजा माला पहना देता है और आंलिंग्न में लेना चाहता है पर रानी दूर चली जाती है।) सम्राट -(हंसकर) प्रिये... तुम्हारा क्रोध उचित है... प्रिये...मेरा निवेदन है... मुझे क्षमा करो... प्रिये...रूठो मत... प्रिये पास आओ... अब मैं...व्याकुलता... (सम्राट रानी को पकड़ने बढ़ता है। वह दूर हो जाती है। सम्राट एक-दो प्रयास और करता है पर रानी को पकड़ नहीं पाता।) सम्राट— हम जल रहे हैं प्रिये... हमें...और धैर्य नहीं... नस-नस टूट रही है... शरीर का रक्त... प्रवाह...उत्तंग शिखर पर है... आ जाओ... (वह फिर रानी को पकड़ने का प्रयास करती है पर रानी उसके हाथ नहीं आती।) सम्राट— (ग़ुस्से में) यह क्या व्यवहार कैसा आचार प्रिये... मेरे निकट आओ... (महारानी दूर ही रहती है। सम्राट उसे गु़स्से से देखता है।) सम्राट— हम तुम्हें आदेश देते हैं... महारानी— यह युद्ध का क्षेत्र नहीं... राजदरबार नहीं... शत्रु का सेनापति नहीं... न कोई प्रधानमंत्री न यहां कोई सेनापति... आदेश का अर्थ? यह प्रेम का क्षेत्र सहमति का क्षेत्र है... समर्पण सम्मान के बाद ही...संभव है... सम्राट— हम तुमसे अथाह प्रेम करते हैं... तुम्हारे दम मरते हैं... विश्वास नहीं... महारानी— अथाह प्रेम है... विश्वास है... एक अश्वासन दो... एक वचन दो... एक वायदा करो... एक बात मानो... सम्राट— आदेश करो...सम्राज्ञी ? सम्राज्ञी— वचन दो कि भविष्य में... नहीं जाओगे... विजय अभियानों पर... नहीं ले जाओगे सेना... नहीं करोगे दूसरे गणराज्यों पर आक्रमण स्वर्ण भण्डार... सम्पदा...संग्रह... नहीं करोगे... सम्राट— (गुस्से में आ जाता है।) सम्राट का धर्म है... महारानी—(बात काट कर) सम्राट का धर्म... प्रजा की रक्षा गणराज्य की रक्षा नागरिकों का सुख सुविधा, शांति... सम्राट— सम्राट का धर्म... सम्राट को बताने वाली तुम कौन... राजा को युद्ध शेर को शिकार और बाज़ को उड़ान से रोकनी वाली तुम कौन? क्या अधिकार है...तुम्हें... महारानी— सब के हित से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं कर्तव्य के बिना अधिकार है ...निरर्थक सम्राट— तुम्हारे गले से बोल रहा है कोई और... हमारा शत्रु हमारा शत्रु हम विजेता हैं... शत्रु लड़ाई के मैदान में हो या शयन कक्ष में विजय हमारी ही होगी... तुम भी पराजित होगी सम्राज्ञी... पराजित...
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 7
(स्त्रियों और पुरुषों का सामूहिक नृत्य जिसने पुरुष स्त्रियों के पास आने की कोशिश कहते हैं लेकिन स्त्रियां उन्हें दूर कर देती हैं। यह नृत्य धीरे धीरे आक्रामक हो जाता है लेकिन स्त्रियां पुरुषों के वश में नहीं आतीं।)
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 8
(सम्राट मंच पर बेचैनी से टहल रहा है। प्रधानमंत्री का प्रवेश।)
प्रधानमंत्री -(झुक कर) आदेश महराजाधिराज... सम्राट— आदेश नहीं... मंत्रणा... मंत्रणा... विचार...विमर्श... प्रधानमंत्री— सेवक उपस्थित है... सम्राट— एक अनहोनी घटना... घटी कल रात... शयन कक्ष बन गया युद्ध क्षेत्र... पर सेनाएं आमने-सामने थीं... पर विजय... प्रधानमंत्री— समझा महाराजाधिराज... यह केवल महाराज के साथ ही नहीं हुआ... सम्राट— क्या मतलब प्रधानमंत्री... प्रधानमंत्री— हमारी पत्नी ने भी... इंकार कर दिया... रोक दिया... मना कर दिया... संभोग से... सम्राट— कारण? प्रधानमंत्री— आश्वासन कि युद्ध अभियान विजय अभियान जब तक न होंगे बंद तब तक कपट नहीं खुलेंगे... सात वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद ऐसी विचित्र स्थिति अकल्पनीय... स्पष्ट है महाराज... यह षड़यंत्र है... (सेनापति आता है। अभिवादन करता है।) सेनापति— परम प्रतापी महाराजाधिराज... अनर्थ... भयानक अनर्थ... सेनाधिकारियों, नायकों, योद्धा, वीरों, सैनिकों... सबके साथ... कठिन स्थिति... प्रधानमंत्री— क्या हुआ... सेनापति— नारी विद्रोह स्त्री विद्रोह... सैनिक विद्रोह का तो उत्तर है इस विद्रोह का क्या उत्तर है? हथियार बेकार तीर, तलवार भाले, बर्छे कवच और सब निरर्थक... सम्राट— विद्रोह... यह विद्रोह है... षड़यंत्र है... प्रधानमंत्री— महाराज... गुप्तचरों से मिली है सूचना... जानकारी... विद्रोह का जन्मदाता है... दाशर्निक...के विचार विद्रोह सूत्रपात किया सम्राज्ञी...ने विद्रोह को मूर्तरूप दिया... दूसरी महिलाओं ने दिया... साथ... सम्राट— गणराज्य की शांति भंग करने वाले दाशर्निक को बंदी बना कर दरबार में प्रस्तुत किया जाये...
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 9
(नगरवधू आसन पर बैठी है। सामने कुछ लड़कियां नृत्य कर रही हैं। संगीत बज रहा है। कुछ सैनिक प्रवेश करते हैं। वे शराब के नशे में धुत हैं। वे लडकियों को देखते ही शोर मचाने लगते हैं और गंदे इशारे करने लगते हैं।)
सिपाही एक हम बहुत प्यासे हैं नगरवधू हमारी प्यास बुझाओ नगरवधू प्यास कैसे बुझेगी खून दिया जाए या सोने का पानी सिपाही 2 मजाक मत करो नगरवधू गणराज्य के लिए सात वर्ष युद्ध किया है नगरवधू हां सैनिकों सात वर्ष में गणराज्य बन गया है स्वर्ग सबके घरों में आ गया कितना गेहूं बाजरा इतनी जैतून कितने सेब कितने अंगूर सम्राट अगर फिर से सात वर्ष के युद्ध अभियान पर निकल जाएं तो हम सुख से रहेंगे सिपाही 3— हमें मत उलझाओ बातों बालाओं के साथ लेने दो आनंद मजा सात वर्ष के सूखे पौधे को हरा हो जाने दो (सब सिपाही हंसते हैं) सिपाही 1— आह इन सुंदरियों के लिए कितना तड़पे हैं हम नगरवधू— सुंदरिया भी तड़पी हैं पर तुम्हारे लिए नहीं अभाव से उपेक्षा से निराशा से सभी सिपाही— (चिल्लाकर) पर अब हम आ गए हमारी जेबों में हीरे जवाहरात हैं हमारे थैलों में सोने के सिक्के हैं हमें सुंदरियों के साथ सोने दो नगरवधू आज तुम्हें मिल जाएगा इतना धन जितना कभी ना मिला नगरवधू— हां आज मेरी भी यही इच्छा है आज मैं इतना बड़ा धन चाहती हूं जितना मुझे कभी नहीं मिला... मेरा धन होगा तुम्हारी प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा करो सिपाही- क्या नगरवधू...क्यों नगरवधु— प्रतिज्ञा करो अब तुम कभी सम्राट की सेना में युद्ध अभियानों पर नहीं जाओगे अब लूटपाट नहीं करोगे अब तुम सोने की लालच में दानव नहीं बनोगे सिपाही 1— यह क्या कह रही हो नगरवधू सौगंध वचन प्रतिज्ञा यह है क्या यह तो नगरवधू का स्थान है जहां धन से खरीदा जाता है सुख नगरवधू— सुख का मूल्य बहुत बढ़ गया है सिपाहियों जब तक नहीं करोगे प्रतिज्ञा नहीं लोगे शपथ नहीं दोगे वचन तब तक नहीं कर सकोगे सुंदरियों से सहवास यदि नहीं कर सकते प्रतिज्ञा तो चले जाओ निकल जाओ यहां सोने के सिक्कों के साथ करो सहवास जाओ यहां से (सिपाही लड़कियों की तरफ झपटते हैं। लड़कियां तैयार हैं। वे डंडे लेकर सिपाहियों की पिटाई करती हैं। शराब के नशे में मार खाकर के गिरते पड़ते भाग जाते हैं)
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 10
(सम्राट के दरबार में सिपाही दार्शनिक और नगरवधू को लेकर आते हैं। दरबार में महामंत्री भी उपस्थित है।)
सम्राट— (महामंत्री से) हम प्रसन्न हुए तुम्हारी बुद्धिमत्ता है स्वागत योग्य दार्शनिक के साथ लाए हो नगरवधू को जो मेरे अत्यंत अशांत मन और तन को दे सकती है राहत जो विश्वासघात के इस वातावरण में दे सकती है आनंद व्याकुल अग्नि को कर सकती है शांत महामंत्री— महाराज नगरवधू भी लाई गयी है बंदी बनाकर सम्राट बन्दी क्यों? महामंत्री कुछ सेना अधिकारी नगरवधू के भवन गए थे पर वहां न उनकी इच्छा पूरी हुई और न हुआ आदर सत्कार वेश्याओं ने नहीं किया उचित व्यवहार नहीं परोसी गई मदिरा न गायन हुआ न नृत्य सम्राट पर क्यों ऐसा हुआ नगरवधू का तो कर्तव्य है आगंतुकों के लिए खोल दे द्वार और सेना के अधिकारियों शासन के कर्मचारियों के लिए सभी द्वार महामंत्री— नगरवधू भी षड्यंत्र में संलग्न है वह भी महामहिम महारानी के साथ कर रही है आलिंगन और समर्पण से इनकार सम्राट—(गुस्से में) सुंदरी छोड़ो राजद्रोह का रास्ता नहीं तो ऐसा कड़ा दंड मिलेगा कि उदाहरण बंद जाएगा नगरवधू महामहिम मन और शरीर का विश्वास और व्यवहार का गहरा है संबंध एक रिश्ता महिमामयी महारानी को दिया गया वचन अमूल्य है कोई भी दंड स्वीकार है सम्राट— (गुस्से में दार्शनिक से) तुम ही हो षड्यंत्र के जन्मदाता तुम राजद्रोही हो दार्शनिक राजद्रोह क्या है महामहिम समझाओ सम्राट तुम नहीं जानते क्या है राजद्रोह दार्शनिक मेरी जानकारी कम है सम्राट मुझे समझाओ क्या राजद्रोह सम्राट सम्राट के आदेशों का न करना पालन सम्राट के विरुद्ध काम करना राजद्रोह है दार्शनिक आप सम्राट है आप अरितोपोलिस के सम्राट हैं अरितोपोलिस न होता तो? सम्राट क्या बकवास है दार्शनिक महाराज अरितोपोलिस है इसलिए कि वहां लोग हैं अगर अरितोपोलिस में लोग न होते तो क्या अरितोपोलिस होता और अरितोपोलिस न होता तो क्या आप सम्राट होते? इसलिए सम्राट मेरे लिए आपका आदेश से बड़ा आदेश है अरितोपोलिस के लोगों का आदेश सम्राट— (बहुत गुस्से में) तुम दार्शनिक बने ही हो ज़हर का प्याला पीने के लिए तुम्हें याद है सुकरात का अंजाम दार्शनिक— सुकरात ने ज़हर नहीं अमृत पिया था सम्राट ऐसा अमृत जो सब के हिस्से में कभी भी नहीं आता सम्राट रहस्यमयी बातें छोड़ो बताओ कि क्या यह सत्य नहीं कि तुमने महारानी को सलाह दी दार्शनिक स्त्रियों को उनके अधिकार के बारे में कौन दे सकता है सलाह सम्राट—तुम जानते हो गणराज्य में स्त्री को नहीं है पूरे अधिकार दार्शनिक गणराज्य में न हो स्त्री को अधिकार पर स्त्री का अपने शरीर पर है उतना ही अधिकार है जितना आपको है सम्राट सम्राट—(गुस्से में) दोनों को ले जाओ कारागार दंड का दिया जाएगा आदेश
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 11
(शराब के नशे में डूबे हुए बीस-पच्चीस सिपाही नाचते, गाते मंच पर आते हैं। उनके हाथ में शराब की बोतलें और गिलास हैं। वे बिना कारण हंस और चीख रहे हैं। एक-दो गिटार बजा रहे हैं। कुछ नाच रहे हैं, एक रोजी गा रही है।)
गायक समूह— ओ मेरी जान ओ मेरी जान ओ मेरी जान एक सिपाही— काले हैं बाल गेरे हैं गाल नाजुक बदन है जैसे गुलाब... गायक समूह— ओ मेरी जान... ओ मेरी जान... कुछ अन्य सिपाही— आंखें नशीली हैं पलकें घनेरी हैं बातें हैं उसके सुरीली-सुरीली... गायक समूह— ओ मेरी जान ओ मेरी जान ओ मेरी जान... कुछ सिपाही— देती है खाने को पीने को देती है कहती है कैसे हो बैठो क्यों खड़े हो... कुछ सिपाही— आता हूं जब उसके पास आने नहीं देती अपने पास आने नहीं देती अपने पास... कुछ सिपाही— ओ मेरी जान ओ मेरी जान ओ मेरी जान... कुछ सिपाही— कैसा जु़लम है ये कैसा जु़लम मिलता नहीं हमको अपना बलम सब मिल कर— आने नहीं देती अपने पास... कुछ सिपाही— जलवे दिखती है बातें बनाती है आंखें लड़ाती है कमर लचती है कूल्हे मटकती है फिसल फिसल जाती है जाता हूँ जब उसके पास
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 12
(सम्राट और प्रधानमंत्री मंच पर मंत्रणा कर रहे हैं।)
प्रधानमंत्री— पूरब से काले बादल पश्चिम से तेज़ हवाएं उत्तर से आग की लपटें दक्षिण से शास्त्रों की झनकार सब दिशाओं से होने को है... सम्राट— क्या? प्रधानमंत्री— विद्रोह ... क्रोधित हैं मंत्री व्याकुल हैं सिपाही अशांत हैं घुड़सवार बेचैन है व्यापारी दुःखी हैं दरबारी... सम्राट— एक महान विजय का उत्सव मानते क्यों नहीं... आये हैं लेकर धन...सोना...हीरे... दरबारियों के भरे हैं थैले सिपाहियों की भरी हैं जेबें व्यापारियों की तिजोरियां प्रधानमंत्री, सेनापति... की भरे हैं घर प्रधानमंत्री— महामहिम... उचित है... पर सभी स्त्रियां, प्रेमिकाएं यहां तक कि वेश्याएं शारीरिक संबंध संभोग रतिक्रीड़ा से कर रही हैं इंकार... सैनिक मांग रहे वह सुख जो अद्वितीय है कहते ठगे गये वे यदि जानते होगा यह न जाते अभियान पर सम्राट— (बिगड़ कर) ऐसा साहस... यह तो राजद्रोह अवमानना प्रतिकार है प्रधानमंत्री— सबको... सूली पर नहीं लटकाया जा सकता... महामना... हां जिसे सब चाहें वह सूली पर लटक सकता है सम्राट— (डर कर) क...क्या कह रहे हो... प्रधानमंत्री— स्थिति भयानक है कल राजमहल के चारों ओर... होंगे सैनिक... व्यापारी कामगर सेवक सब मांग करेंगे... सम्राट— क्या मांग करेंगे? प्रधानमंत्री— षड्यंत्र की जननी जिसने किया है यह षड्यंत्र शुरू उसे फांसी दी जाये... सम्राट— उचित है... राज्य की रक्षा खजाने की सुरक्षा सिंहासन बचाने को शांति बनाये रखने को सम्राज्ञी...को... प्रधानमंत्री— महामहिम... अराजकता के पांव नहीं होते... अराजकता उड़ती है अराजकता... की पकड़ में कब, कौन...कहां आ जायेगा... कौन जानता है... और कहीं... महारानी के न रहने पर प्रतिक्रिया क्या होगी रास्ता खुलेगा या और हो जाएगा बन्द सम्राट— फिर... फिर... बताओ... बताओ... प्रधानमंत्री— सम्राज्ञी का बचन पड़ेगा तोड़ना... सम्राज्ञी के टूटते ही सब स्त्रियां जायेंगी टूट... वही हैं जो... सम्राट— पर कैसे... कर डाले हैं सारे उपाय... पर सम्राज्ञी अपनी बात पर... मुझसे वचन लेने पर है अड़ी... कहती है प्रतिज्ञा करो देवताओं को साक्षी मानकर भविष्य में नहीं होगा युद्ध अभियान भविष्य में नहीं होगा कोई आक्रमण यह असंभव है प्रधानमंत्री असंभव है युद्ध और सत्ता के बिना न सम्राट है, न प्रधानमंत्री, न सेनापति न सेना और न साम्राज्य यह प्रतिज्ञा असंभव है... असंभव प्रधानमंत्री- यह सत्य कथन है महामहिम युद्ध तो शासन का है अभिन्न अंग नहीं हो सकता कि युद्ध न हो ऐसा संभव है समस्या का कोई दूसरा समाधान उचित समाधान सोचना होगा सम्राट—बताओ क्या करें प्रधानमंत्री— कुछ हर किसी को जान से प्यारा होता है... कोई किसी के लिए कुछ भी कर सकता है सबका एक बहुत कमज़ोर पक्ष होता है दुखती रग... स्त्री को संतान से प्यारा अधिक कुछ नहीं... सम्राट— सम्राज्ञी के संतान है प्रधानमंत्री— अवश्य... महाराज अवश्य. रास्ता है... एक ही रास्ता सर्वमान्य रास्ता उस रास्ते पर सम्राट धर्माचार्य चलते हैं माना हुआ रास्ता सरल है महाराजाधिराज सभी ने उचित ठहराया है... सम्राट— स्पष्ट कहो... प्रधानमंत्री— ...महामहिम... लालसा में पुत्र की स्त्री कर सकती है कुछ भी... संतान के बिना अधूरी है स्त्री स्त्री का सबसे बड़ा सपना संतान है... सम्राट— सम्राज्ञी का पुत्र है... संतान है... प्रधानमंत्री— संतान न रहे तो... (सम्राट गु़स्से में खड़ा हो जाता है और चिल्लाता है।) सम्राट— नहीं नहीं यह तुम कह क्या रहे हो तुम क्या कह रहे हो प्रधानमंत्री मेरे पुत्र ...मेरे प्यारे पुत्र... मेरे इकलौते पुत्र ... की हत्या असंभव.. असंभव... असंभव ... वह है जान अधिक प्यारा कल्पना भी नहीं कर सकता उसकी हत्या की अपने पुत्र की हत्या मेरा वंश... असंभव... असंभव...
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 13
(महारानी कारागार में आती है जिसे देखकर दार्शनिक हैरान हो जाता है।)
दार्शनिक— स्वागतम् सम्राज्ञी... नियति है, अवसर या संयोग कारागार में सम्राज्ञी महारानी— संयोग और विधि से तुम को ले जाने बाहर आई हूं... सामान समटो अपना और मेरे साथ चलो बाहर... गणराज्य से बाहर जाने को तैयार है रथ... सूरज निकले से पूर्व बाहर हो जाओगे... उठाओ समेटो सामान... दार्शनिक— महिमामयी... सामान? मैं अपना सामान उठा नहीं सकता... महारानी— कितना भारी है... यहां कुछ दिखाई तो देता नहीं दार्शनिक— दिखाई पड़ने वाला होता सामान तो उठा लेता... मैं ही उठा लेता पर... न दिखने वाला सामान नहीं उठा सकता महारानी— आदेश हो सकता है मृत्युदण्ड ज़हर पीने का... प्राणों से अधिक मूल्यवान नहीं है कुछ दार्शनिक— सच कहती है सम्राज्ञी... प्राण से बड़ा क्या है? पर मेरे प्राण को खतरा क्या है मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया बिना कारण मेरे प्राण लेंगे? वे केवल मेरा शरीर ले लेंगे प्राण नहीं महारानी— दार्शनिक तुम्हारा जीवन अमूल्य है हमारे लिए केवल अपने लिए मत सोचो यह तो स्वार्थ है दार्शनिक चलो... निकल चलो... दार्शनिक— सम्राट से बच जायेंगे... पर अपने से नहीं हम अपने-आपको सदा पायेंगे अपने सामने... प्राण दण्ड देने के बाद न्याय परिपद् मुझे देगी अवसर... अपनी बात कहने का अवसर... जो मैं कहूंगा... मेरे प्राणों से अधिक होगा मूल्यवान महारानी— अधिक न कहो, तुम आओ मेरे साथ... विश्वासनीय रथचालक कुछ सेवक सिपाही... ले जायेंगे... किसी दूसरे गणराज्य... आओ... देर मत करो कि पहरा बदलने वाला है... दार्शनिक— मैंने अपना पक्ष रख दिया मैं विवश हूं इसी विवशता में काटा है पूरा जीवन महारानी— (नगरवधू से) चलो... तुम तो चलो.. नगरवधु— मेरे यहां न रहना दार्शनिक का अपराध माना जायेगा... दार्शनिक— (हंसकर) युवा नगरवधु इतना मत सोचो... मृत्यु दण्ड से बड़ी सज़ा के बारे में वे नहीं जानते... मुझे मृत्यु दण्ड मिलेगा...इससे अधिक कुछ नहीं तुम जाओ... नगरवधु— तुम्हें छोड़कर... नहीं जा सकती... दार्शनिक— मेरी बच्ची...जाओ... कोई किसी के साथ कौन किसके साथ रहा है कहां तक जाओ...लम्बा जीवन तुम्हारी प्रतीक्षा में है... नगरवधु— दार्शनिक... महिलाओं की इस अलख में... एक महिला की आहुति...क्यों न हो...
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 14
(सम्राट के दरबार में संभ्रात नागरिक न्याय परिषद के सदस्य, व्यापारी, प्रधानमंत्री, महंत (पुजारी) सब चिंता में डूबे हैं...बाहर से शोर सुनाई दे रहा है।)
प्रधानमंत्री— महामहिम स्थिति विस्फोटक है बढ़ रहा है... अविश्वास...जो है अशांति की जड़ व्यापारी— महामहिम की उपलब्धियां अनगिनत... रखना है उन्हें सहेज कर... हमारे जलपोत... समुद्र में करते यात्राएं सुदूर देशों की अपार धन-सम्पदा है गणराज्य में... आवश्यक है... सामान्य स्थिति... होता रहे ताकि व्यापार... सामन्त— अंगूर की लताएं रहें इठलाती जै़तून के पेड़ों पर बैठती रहें चिड़ियां कल-कल करता पानी बहता रहे खेतों में कुछ हो ऐसा उपचार न्याय परिषद का सदस्य— न्याय कहां मिलेगा जहां होगी अराजकता अशांति... विद्रोह... न्याय की देवी दिओनिसस् की सौगंध... विद्रोह का समाप्त हो जाना है अनिवार्थ... पुजारी— महामहिम... अपोलो की सौगंध आपने जिसका स्थापित किया है भव्य मंदिर... मोती जैसा चमकता है... राजा का गुणगान करता... ऐथेना की पूजा से महकता है... वातावरण... अराजकता से सब हो जायेगा नष्ट... प्रधानमंत्री— किसी भी तरह चाहे जो हो... इस आग को किया जाना चाहिए ठण्डा... नहीं तो...यह सब न रहेगा...जो है... (सम्राट हाथ उठाकर इशारा करता है। प्रधानमंत्री के अलावा बाक़ी लोग चले जाते हैं।) प्रधानमंत्री— महामहिम... और कोई उपाय नहीं... सम्राज्ञी...की हट बनी हुई है... उनकी हट पर टिकी है सत्ता... तोड़नी पड़ेगी हट... सम्राट— क्या उपाय है... सब करके देख लिया... यातना की गयी... लालच दी गयी... और क्या दिया था महामंत्री— राज्य के लिए वही लोग होते हैं सबसे खतरनाक जो नहीं डरते यातना से और लालच से... लिया जा सकते है... प्राण पर नहीं टूटेगा...यह षड्यंत्र... सम्राज्ञी के मन में काम की इच्छा केवल संतान की चाह से पैदा होगी... संतान का सुख नारी का चरम सुख उसके लिए वह कर सकती है सैकड़ों बलिदान... संतान का मोह... महामोह है... महाराजधिराज... संतान का मोह स्त्री निःसंतान... नहीं रहना चाहती विधवा तो रह सकती है...पर बिना संतान... और सामज्ञी को चाह संतान की उत्कंठ लालसा... उसी समय होगी... जब कोई संतान न रहे ... सम्राट— नहीं-नहीं...असंभव प्रधानमंत्री— महाराजाधिराज... चुनना है... तय करना है... पुत्र या राज्य... पुत्र या सिंहासन... पुत्र या स्वर्णनगरी पुत्र या सत्ता... पुत्र या आपका अपना जीवन... महाराजाधिराज पुत्र तो फिर हो सकता है पर राज्य गया तो कभी न प्राप्त होगा... सम्राट— और रास्ता नहीं... कोई... महामंत्री— और कोई रास्ता नहीं है कोई रास्ता नहीं है सम्राट— अनुमति है... करो कोई ऐसी व्यवस्था पता न चले कैसे आई व्यथा प्रधानमंत्री— महामहिम... आपको ही कष्ट करना होगा... सम्राट—(घबरा कर) क्या कह रहे हो... मैं करूं अपने पुत्र की हत्या? प्रधानमंत्री— सम्राट के दुर्ग में इतनी सुरक्षा है इतने पहरेदार रक्षक, संतरी सिपाही योद्धा रक्षा कर रहे हैं कि बाहर का कोई व्यक्ति अंदर जा ही नहीं सकता... सम्राट अंदर जा सकते हैं और कोई संदेह भी न करेगा सम्राट क्या कर सकते हैं.. (सम्राट सोच में डूब जाता है।)
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 15
(राजकुमार के शयन कक्ष में महारानी बिस्तर पर तकिये आदि लगा रही है। राजकुमार आता है उसे पलंग के नीचे लिटा देती है। बिस्तर पर तकिये रख कर चादर डाल देती है। लगता है राजकुमार बिस्तर पर सो रहा है। महारानी कमरे की रौशनी कम करके चली जाती है। कुछ क्षण बाद सम्राट हाथ में तलवार लिए अंदर आता है। वह बहुत डरा और घबराया हुआ है। इधर-उधर देख रहा है कि कोई उसे कम कर देता है। बिस्तर पर तलवार से वार करता है। जोर की आवाज़ आती है। दोनों तरफ से महिलाएं निकल आती है। महारानी उनके आगे-आगे है। वे सब मिल कर सम्राट को पकड़ने की कोशिश करती हैं। सम्राट भागना चाहता है पर पकड़ लिया जाता है।)
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 16
(न्याय परिषद की बैठक में मुख्य न्यायाधीश, महामंत्री, सेनापति के अतिरिक्त अन्य सदस्य भी बैठे हैं। बैठक का संयोजक खड़ा होकर बोलता है।)
संयोजक— न्याय और बुद्धिमत्ता की देवी थीम्स और उनकी बेटी डाइक के आशीर्वाद से न्याय परिषद की यह बैठक देवताओं को साक्षी मान करती है प्रतिज्ञा नियम, कानून और परंपरा के अनुसार होगा निर्णय न्याय परिषद के समक्ष बराबर हैं सब सम्राट और भिखारी में कोई अंतर नहीं न्याय परिषद करती है न्याय न्याय और न्याय (संयोजक बैठ जाता है) सभी सदस्य— न्याय न्याय और न्याय (सदस्य 1 खड़ा होता है) सदस्य 1— आया नहीं आज तक न्याय परिषद के सम्मुख ऐसा अभियोग विश्वास और अविश्वास के बीच सच्चाई न जाने कहां है छुपी अध्यक्ष— देवता ज़ीउस के दिव्य कानून के आलोक में ओलंपस और थंडरर ने जैसे कानूनों का निष्पादन किया वैसे ही हमारा कार्य है सत्य तक पहुंचना न्याय करना प्रस्तुत किया जाए अभियोग सदस्य 2— विधान के अनुसार सम्राट को बनाया जा सकता है आरोपी इस अभियोग में सम्राट ही है आरोपी गंभीर आरोप सम्राट ने अपने एकमात्र पुत्र प्राणों से प्यारे पुत्र की हत्या करने का किया था प्रयास महामंत्री— आरोप लगाया है किसने ? सदस्य 2— महारानी ने लगाया है आरोप महामंत्री— विचित्र, विचित्र और विचित्र पति पर पत्नी लगा रही है पुत्र की हत्या का आरोप लगता है महारानी का मानसिक संतुलन बिगड़ गया जानता है पूरा गणराज्य सम्राट ने पुत्र प्राप्ति के लिए कितने नहीं किए थे जतन बड़ी कठिनाइयों से प्राप्त पुत्र धन को क्या कोई कर सकता है नष्ट अविश्वसनीय, अकल्पनीय अध्यक्ष— घटनाक्रम प्रस्तुत किया जाए सदस्य 3— रात के समय मदिरा के नशे में चूर अपने होश हवास खो कर सम्राट रात के अंधेरे में घुसे राजकुमार के शयन कक्ष में किया प्रहार महामंत्री- (चिल्ला कर) झूठ बिल्कुल झूठ कहां है खून में डूबी तलवार? राजकुमार के रक्त रंजित वस्त्र कहां है? कोरी कल्पना के आधार पर हो नहीं सकता न्याय महारानी ने देखा होगा कोई बुरा सपना सदस्य 3— महारानी के आरोप इतने बड़े आरोप को नहीं कह सकते सपना नहीं समझना चाहिए सपना अध्यक्ष— आरोपी को प्रस्तुत किया जाए (सम्राट को परिषद के सामने लाया जाता है) अध्यक्ष— आरोपी तुम्हें अपने पक्ष में कहना है कुछ सम्राट— हम सदा से रहे हैं न्याय के पक्ष में सत्य और न्याय के बिना नहीं चल सकता गणराज्य सत्य का आलोक देव जगत का रास्ता है सभी देवताओं को साक्षी बनाकर हम चाहते हैं कहना यह आरोप झूठा है झूठा है और झूठा है (महामंत्री तालियां बजाता है) अध्यक्ष— घटना के साक्षी हैं जो उन्हें किया जाय प्रस्तुत सदस्य 1— महारानी के अतिरिक्त चार महिलाएं हैं साक्षी महामंत्री— अध्यक्ष महोदय गणराज्य की परम्परा और कानून के अनुसार नहीं हो सकती कोई स्त्री साक्षी गणराज्य का कानून नहीं देता स्त्रियों को समान अधिकार स्त्रियों का साक्ष्य नहीं माना जाता सत्य यह है कि न्याय परिषद में आ ही नहीं सकती स्त्रियां सदस्य 1— सम्राट की ओर से साक्षी हो सकते हैं प्रस्तुत संयोजक— पहले गवाह हैं महामंत्री महामंत्री— जिस समय की बताई जाती है घटना उस समय तो हो रही थी मंत्री परिषद की बैठक सेनापति और सभी मंत्री से उपस्थित सब दे सकते हैं गवाही मंत्रिपरिषद से बड़ी क्या हो सकती है गवाही (सभी सदस्य ताली बजाते हैं) अध्यक्ष— सभी आरोपों को बयानों को सुनने और परिस्थितियों के अध्ययन के बाद न्याय परिषद देती है निर्णय सम्राट निर्दोष है ... आरोप निराधार है गणराज्य के कानून के अनुसार सम्राट पर झूठा आरोप लगाने वाले को दी जाएगी कड़ी सज़ा... (सभी जोर की तालियां बजाते हैं)
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 17
(रात का समय है मुख्य न्यायाधीश के निवास पर वेऔर न्याय परिषद का एक सदस्य बातचीत कर रहे हैं)
सदस्य-1 ठीक महा न्यायाधीश नहीं है कोई गवाह नहीं है कोई साक्षी जो अभियुक्त के पक्ष में ही होता है परंतु न्याय का एक बड़ा पक्ष है लोगों को लगना भी चाहिए कि न्याय हुआ सम्राट को न्याय परिषद ने अपराधी नहीं पाया पर क्या गणतंत्र के लोग यही मानते हैं मुख्य न्यायाधीश— हम विवश हैं हमारे हाथ बंधे हुए हैं हम नियम और परंपरा से अलग जाकर कोई निर्णय नहीं ले सकते सदस्य 1— न्याय का क्या महत्व बचेगा विचार करें एक समय वह आएगा जब न्याय परिषद राज परिषद में बदल जाएगी लोग मानकर चलेंगे न्याय परिषद में होता है जो राजा की इच्छा होती है (दरवाजा खटखटाने की आवाज) मुख्य न्यायाधीश— इतनी रात गए कौन हो सकता है... (जोर से आवाज देकर आओ) अंदर चले आओ न्याय का दरवाजा रात दिन रहता है खुला (महारानी अंदर आती है) अध्यक्ष— स्वागतम अभिवादन महारानी इस समय यहां महारानी— अन्याय का भार इतना बढ़ गया था कि सहन नहीं हुआ निर्णय जो हो गया है हो गया पर करना है विचार सम्राट से बड़ी शक्ति है न्याय परिषद सम्राट को गणराज्य कर सकता है क्षमा नहीं कर सकता न्याय परिषद को अध्यक्ष— महारानी हो चुका है निर्णय न्याय परिषद ने दे दिया है गवाहों के आधार पर महारानी- साक्ष की बैसाखी सम्राट के पक्ष में न्याय परिषद के निर्णय पर हंस रहा है गणराज्य का बच्चा-बच्चा न्यायाधीश— हम विवश हैं महारानी— (बात काटकर) विवश हैं न्याय करने पर न्यायाधीश न्याय के आवरण को फेंक दीजिए मुझे चढ़ा दीजिए सूली पर यही होगा सबसे बड़ा न्याय गणराज्य आप और न्याय परिषद पर गर्व करेगा न्यायाधीश— (हकलाने लगता है) म-म-म... महारानी- आपका पद सम्राट से भी ऊंचा है सम्राट आते हैं जाते हैं पर न्याय की देवी... अडिग न्याय से बड़ा क्या है न्यायाधीश यह आपको बताने की नहीं आवश्यकता न्यायाधीश— (निराशा से) अब क्या संभव है हो चुका है सबकुछ महारानी— न्याय परिषद कर सकती है पुनर्विचार सदस्य-1 माननीय अभियोग बहुत गंभीर है इतिहास में हो रहा है पहली बार की सम्राट या महारानी का अपराध किया जाना है तय पुनर्विचार संभव है न्यायाधीश— ऐसा कभी हुआ नहीं हो सकता है कैसे महारानी— न्याय परिषद इस बात पर तो कर सकती है विचार की स्त्रियों का साक्ष्य माना जाए या नहीं सदस्य— (प्रसन्न होकर) निश्चित ही यह है संभव न्याय परिषद का बुलाया जा सकता है विशेष सत्र और चर्चा हो सकती है स्त्रियों की गवाही मानी जाए या नहीं (न्यायाधीश स्वीकृति में सिर हिलाता)
अरितोपोलिस (नाटक) : सीन — 18
(न्याय परिषद की बैठक में सभी सदस्यों के अतिरिक्त सम्राट महामंत्री सेनापति उपस्थित हैं। महारानी दार्शनिक और नगर वधु भी मौजूद है। न्याय परिषद की बैठक यह निर्णय लेने जा रही है कि स्त्रियों को साक्षी बनाया जा सकता है या नहीं।)
संयोजक— न्याय परिषद की विशेष सभा में स्वागत है गणमान्य जनों का... सभा में लिया जाना है एक बड़ा निर्णय.... स्त्रियां न्याय परिषद के समक्ष गवाही दे सकती हैं या नहीं पक्ष और विपक्ष पर सदस्य करेंगे गंभीर चिंतन विशेष अनुरोध पर सभा में दार्शनिक सोफरोन और नगरवधू असपासिया हैं आमंत्रित महामंत्री— महान देवता ज़ीयूस की सौगंध पुरुष और स्त्री नहीं हो सकते समान स्त्रियां नहीं दे सकतीं न्याय परिषद में गवाही महारानी— सबसे बड़े देवता न्यूज़ की माता रहिया(RHEA) की सौगंध हीरा, ऐफ्रोडाइटी, एथीना देवियों की सौगंध सत्य तक पहुंचने में कर सकती हैं सहायता स्त्रियाँ क्यों न बने साक्षी पाप और पुण्य की नगरवधू— देव लोक भी नहीं बनता बिना नारी के... महामंत्री— देव लोक में सिद्ध है पुरुष की श्रेष्ठता पुरुष पर आरोप सिद्ध करने के लिए स्त्री की गवाही नहीं हो सकती महारानी— क्या कारण है? महामंत्री— पुरुष स्त्री से श्रेष्ठ है महारानी— कैसे ? महामंत्री— पुरुष स्त्री से अधिक शक्तिशाली अधिक बुद्धिमान दार्शनिक— महामंत्री शक्ति की करो व्याख्या महामंत्री— शक्तिशाली जिसके शरीर में ताकत शक्तिशाली दार्शनिक— महामंत्री शारीरिक शक्ति से ही अगर कोई शक्तिशाली बनता है तो मैं कहना चाहता हूं कि महिमामयी महारानी के शरीर में मेरे शरीर की तुलना में अधिक शक्ति है महामंत्री— दार्शनिक तुम्हारी और महारानी की आयु में बहुत अंतर है दार्शनिक इस कारण शक्ति का आधार आयु है स्त्री या पुरुष नहीं ... महामंत्री की अस्सी साल के आदमी जिसे ठीक से न दिखाई देता है न सुनाई देता है की गवाही अधिक मान्य होगी या तीस साल की स्त्री की गवाही जिसे अच्छी तरह सुनाई और दिखाई देता है की गवाही मान्य होगी ? महामंत्री— मेरा परंपरा पर विश्वास है हमारे पूर्वजों ने सैकड़ों साल से जिन नियमों का किया है पालन हमें भी करना आवश्यक दार्शनिक— यदि साक्ष्यों के आधार पर होना है न्याय तो खून की एक बूंद एक टूटा हुआ शस्त्र एक फटा हुआ कपड़ा साक्ष्य माना जा सकता है तो चार स्त्रियों की गवाही क्यों न स्वीकार की जाय... सत्य तक पहुंचने में स्त्रियां करती हैं सहायता तो इंकार क्यों किया इनकार का मतलब होगा सत्य को अस्वीकार करना मुख्य न्यायाधीश— दोनों पक्षों तर्क सुनने के बाद इस अभियोग में स्त्रियों को है गवाही की अनुमति (कई दिशाओं से स्त्रियां निकल आती हैं। सम्राट बचने और भागने का प्रयास करता है। यह क्रम गति और नृत्य में बदल जाता है। अंततः स्त्रियां सम्राट को घेर लेती हैं। सबकी उंगलियां उस पर उठती हैं। वह घिर जाता है। धीरे-धीरे महिलओं और न्याय परिशद के सदस्य उसे अधिक संकरे घेरे में ले लेते हैं। मंच के ऊपर से सम्राट के ऊपर एक सोने का पिंजड़ा गिरता है। सम्राट सोने के पिंजड़े में कैद हो जाता है। दार्शनिक सम्राट को सोने के पिंजरे में देखकर) दार्शनिक— (ठहाका लगा कर) हा-हा-हा सम्राट राज दरबार के सिंहासन और सोने के पिंजड़े में नहीं है बहुत अंतर अनंत इच्छाएं बन जाती हैं सोने का पिंजड़ा सम्राट हृदय की धरती पर इच्छाओं के बीज कभी नहीं होते हरे सम्राट सत्ता और धन की अनन्त इच्छाएं हैं क्रूरता जंगल अमानवीयता के नरक तक जाती हैं बंध जाती है आंखों पर काली पट्टी सब कुछ काला हो जाता है सोने का हिरण छलावा है सोना हो जाता है मिट्टी... सभी पात्र— सोना हो जाता है मिट्टी महारानी - सम्राट को वरदान है वह कभी नहीं मरेंगे दार्शनिक— हां वे कभी नहीं मरेंगे हर युग में यह प्रमाणित करते रहेंगे कि सोने से प्यार करने वाला कैसे हो जाता है बंद सोने के पिंजरे में ..... समाप्त