अपराध और दंड (रूसी उपन्यास) : फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की - अनुवाद : नरेश नदीम

Crime and Punishment (Russian Novel in Hindi) : Fyodor Dostoevsky

अपराध और दंड : (अध्याय 4-भाग 1)

'मैं अभी तक वही सपना तो नहीं देख रहा,' रस्कोलनिकोव ने सोचा। बिन-बुलाए मेहमान की ओर उसने ध्यान और शंका से देखा।

'स्विद्रिगोइलोव! क्या बकवास है! हो ही नहीं सकता!' उसने आखिरकार भड़क कर उलझन के साथ से कहा।

लग रहा था कि अजनबी को उसके इस तरह भड़कने पर जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ।

'आपके पास मैं दो वजहों से आया हूँ। पहली तो यह कि मैं आपसे निजी जान-पहचान पैदा करना चाहता था, क्योंकि आपकी तारीफ में बहुत-सी दिलचस्प बातें मैं सुन चुका हूँ। दूसरे, मैं यह दिली उम्मीद ले कर आया हूँ कि आप एक ऐसे मामले में मेरी मदद करने से इनकार नहीं करेंगे जिसका सीधा संबंध आपकी बहन अव्दोत्या रोमानोव्ना की भलाई से है। कारण यह कि आपकी मदद के बिना वह अब शायद मुझे अपने पास भी न फटकने दें, क्योंकि उनके मन में मेरे खिलाफ कुछ गलत बातें बिठा दी गई हैं। लेकिन मुझे पूरा-पूरा भरोसा है कि मैं आपकी मदद से...'

'आपको गलत भरोसा है,' रस्कोलनिकोव ने बीच में ही बात काट दी।

'मैं क्या आपसे पूछ सकता हूँ कि क्या वे लोग अभी कल ही आई हैं?'

रस्कोलनिकोव ने कोई जवाब नहीं दिया।

'कल ही आई हैं, सो मुझे पता है। मैं खुद अभी परसों आया। देखिए, आपको मैं बता दूँ, रोदिओन रोमानोविच, कि मैं अपनी तरफ से कोई सफाई पेश करना जरूरी नहीं समझता। लेकिन बराय मेहरबानी मुझे यह बताइए कि इस पूरे सिलसिले में मेरा ऐसा कौन-सा कसूर था? आप... बिना किसी की तरफदारी के, जो समझदारी की बात हो, वही कहिएगा।'

रस्कोलनिकोव उसे चुपचाप देखता रहा।

'मैंने अपने घर में एक बेबस और लाचार लड़की को सताया और उसके सामने अपने शर्मनाक सुझाव रख कर उसका अपमान किया। - क्या यही मेरा जुर्म है (आप जो कहेंगे वह मैं खुद ही कहे दे रहा हूँ!) लेकिन अगर आप सिर्फ इतना मान लें कि मैं भी एक इनसान हूँ... किसी की तरफ मैं भी खिंच सकता हूँ और किसी से मुझे भी प्यार हो सकता है (यह हमारे बस की बात तो नहीं है); तो यह मान लेने के बाद हर बात आसानी से समझ में आ जाएगी। सवाल यह है कि मैं राक्षस हूँ या मैं खुद शिकार हुआ और अगर मैं शिकार हुआ तो हो सकता है मैं जिसके पीछे पागल था, उसके सामने अपने साथ भाग कर अमेरिका या स्विट्जरलैंड चलने का सुझाव रखने के पीछे उसके लिए मेरे दिल में जो बेहद इज्जत थी, वह काम कर रही हो और मैंने सोचा हो कि मैं यह कदम हम दोनों की खुशी के लिए उठा रहा हूँ। मुहब्बत के जुनून के आगे अकल की जरा भी नहीं चलती, यह तो आप जानते हैं। हो सकता है कि जितना नुकसान मैं अपने आपको पहुँचा रहा था, उतना किसी और को नहीं...!'

'लेकिन इस बात की कोई तुक तो नहीं है,' रस्कोलनिकोव चिढ़ कर बीच में बोला। 'सीधी-सी बात इतनी-सी है कि आप सही हों या गलत, आप हमें पसंद नहीं हैं। आपसे कोई सरोकार हम नहीं रखना चाहते, आपकी सूरत भी देखना नहीं चाहते। बस, जाइए...!'

स्विद्रिगाइलोव अचानक जोरों से हँसा।

'लेकिन आप... आपको अपने रवैए से हिलाना नामुमकिन है,' उसने बेझिझक हँस कर कहा। 'मैं तो यह मान कर आया था कि आपको समझा-बुझा कर राजी कर लूँगा, लेकिन आपने तो फौरन ही नस पकड़ ली।'

'आप मुझे अब भी फुसलाने की ही कोशिश कर रहे हैं।'

'तो क्या हुआ?' स्विद्रिगाइलोव खुल कर हँसा। यह तो नेकीभरी लड़ाई है और एक सीधा-सादा जुल है जिसमें कोई मन का मैल नहीं है! ...लेकिन बीच में ही आपने मेरी बात काट दी। बहरहाल, मैं एक बार फिर कहता हूँ कि उस दिन बाग में जो कुछ हुआ, वह अगर न होता तो कभी कोई उलझन न होती। मार्फा पेत्रोव्ना ने...'

'लोग तो कहते हैं कि आपने मार्फा पेत्रोव्ना से छुटकारा पा लिया है, या नहीं?' रस्कोलनिकोव ने रुखाई से उसकी बात काट कर कहा।

'आह, तो आप तक भी यह बात पहुँच चुकी है खैर, कभी न कभी तो आपके कानों तक पहुँचनी ही थी... लेकिन जहाँ तक आपका सवाल है, मेरी समझ में सचमुच नहीं आता कि कहूँ क्या, हालाँकि इस बारे में मेरा जमीर एकदम साफ है। यह न समझिए कि इस बारे में मेरे दिल में कोई अंदेशा है। सब ठीक चल रहा था, कहीं कोई गड़बड़ नहीं थी। डॉक्टरी जाँच के बाद मौत की यह वजह बताई गई कि छक कर खाना खाने और एक बोतल पीने के फौरन बाद नहाने से फालिज मार गया। सच तो बल्कि यह है कि इसे छोड़ कोई दूसरी बात साबित भी नहीं की जा सकती थी... लेकिन आपको मैं बता दूँ कि इधर कुछ अरसे से मैं क्या सोचता रहा हूँ, खास तौर पर यहाँ तक रेल सफर के दौरान। क्या इन सबमें मेरा हाथ भी नहीं रहा ...एक तरह से, नैतिक दृष्टि से देखें तो यह जो आफत आई, क्या उसकी यह वजह नहीं थी कि मेरी वजह से कोई दिमागी उलझन, कुछ चिड़चिड़ाहट या इसी किस्म की कोई और बात पैदा हुई लेकिन मैं तो इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि इसका सवाल भी पैदा नहीं होता।'

रस्कोलनिकोव हँसा, 'मुझे तो समझ में भी नहीं आता कि आप इस बारे में परेशान होते होंगे!'

'आप हँस किस बात पर रहे हैं जरा सोचिए, उसे मैंने सिर्फ दो बार चाबुक से मारा -और वह भी इस तरह कि कोई निशान तक नहीं पड़ा... बराय मेहरबानी मुझे ऐसा बेरहम न समझिए। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मेरी यह हरकत कितनी बेहूदा थी, वगैरह-वगैरह; लेकिन साथ ही मैं यह बात भी पक्के तौर पर जानता हूँ कि मार्फा पेत्रोव्ना मेरी इस, समझ लीजिए, कि गर्मजोशी से काफी खुश हुई थी। आपकी बहन के किस्से से तो जितना रस निचोड़ा जा सकता था, एक-एक बूँद निचोड़ लिया गया था। मार्फा पेत्रोव्ना को आखिरी तीन दिन तो मजबूरन घर पर ही रहना पड़ा; उनके पास शहरवालों के लिए कुछ शिगूफा रहा ही था। इसके अलावा, उसके खत से (आपने उनके वह खत पढ़ने के बारे में सुना तो होगा? लोग तंग आ चुके थे। पर अचानक न जाने कहाँ से वे दो चाबुक पड़ गए। शायद प्रभु की ही करनी रही हो। उन्होंने पहला काम तो यह किया कि गाड़ी जुतवाने का हुक्म दिया। इस बात को खैर जाने दीजिए, ऐसा भी कभी-कभी होता है कि बेहद गुस्सा दिखाने के बावजूद औरतें इस बात से बहुत खुश होती हैं कि कोई उनका अपमान करे। इस तरह की मिसालें हर आदमी की जिंदगी में मिलती हैं। आपने कभी इस बात पर गौर किया है क्या कि सचमुच आम तौर पर हर इनसान को अपना अपमान होता बहुत अच्छा लगता है लेकिन औरतों के बारे में तो यह बात खास तौर पर सच है। और तो और, यहाँ तक भी कहा जा सकता है कि उन्हें बस इसी एक बात में मजा आता है।'

रस्कोलनिकोव के जी में एक बार तो यह बात आई कि वह उठ कर बाहर निकल जाए और बातचीत को यहीं खत्म कर दे। लेकिन किसी उत्सुकता के कारण, बल्कि यह सोच कर कि उसकी असली मंशा जान लेने में ही समझदारी है, वह एक पल के लिए रुक गया।

'आपको मारपीट का शौक है?' उसने लापरवाही से पूछा।

'जी नहीं, कोई खास नहीं,' स्विद्रिगाइलोव ने शांत भाव से जवाब दिया। 'मेरी ओर से मार्फा पेत्रोव्ना की तो शायद ही कभी पिटाई हुई हो। हम लोग बहुत दिल मिला कर रहते थे, और वह हमेशा मुझसे खुश रहती थीं। शादी के सात बरसों में मैंने कोड़े का इस्तेमाल सिर्फ दो बार किया। उस तीसरी बार को तो छोड़ ही दें जो कुछ बहुत ही गोलमोल मामला था। पहली बार तो शादी के दो महीने बाद, गाँव पहुँचने के कुछ ही दिनों बाद, और आखिरी बार वह जिसकी हम लोग बातें कर रहे हैं। आप क्या यह समझते थे कि मैं कोई राक्षस, दकियानूस, पिछड़े खयालोंवाला जल्लाद हूँ हा-हा! खैर, यह तो बताइए, रोदिओन रोमानोविच, कुछ ही साल पहले का वह किस्सा क्या आपको याद है, उन दिनों का जब अखबारों में हर बात की भरपूर चर्चा करना एक परोपकार समझा जाता था, वह किस्सा जिसमें किसी खानदानी आदमी को, उसका नाम तो मैं भूल रहा हूँ। हर जगह, हर अखबार में, इस बात के लिए लताड़ा गया था कि उसने रेलगाड़ी में एक जर्मन औरत की पिटाई कर दी थी याद है आपको मैं समझता हूँ यह बात उन्हीं दिनों की या उसी साल की है, जब पीतर्सबर्ग के एक अखबार में 'जमाना की शर्मनाक कार्रवाई' की सुर्खी से एक लेख छपा था। (आपको याद है न, किसी अफसर की बीवी पुश्किन की 'मिस्र की रातें' पढ़ रही थी, जिसकी पूरी खबर 'पीतर्सबर्ग समाचार' में छपी थी और इस पर पत्रिका जमाना ने हमारी कस्बाती मेम साहबों की दिखावटी साहित्यिक रुचि पर हिकारत से हमला करते हुए एक लेख छापा था। वे मदमाती काली आँखें! आह, हमारी जवानी के सुनहरे दिन कहाँ गए...) खैर, जहाँ तक उन साहब का सवाल है, जिन्होंने एक जर्मन औरत को पीटा था, तो मुझे उनसे कोई हमदर्दी नहीं है क्योंकि हमदर्दी की बहरहाल जरूरत ही क्या है लेकिन मैं इतना जरूर कहूँगा कि कभी-कभी ऐसी गुस्सा दिलानेवाली 'जर्मन औरतों' से पाला पड़ता है कि प्रगतिशील से प्रगतिशील आदमी भी अपने आप पर काबू नहीं रख सकता। उस वक्त किसी ने इस सवाल को इस नजर से नहीं देखा लेकिन इसे देखने का सच्चा इनसानी तरीका यही है... मैं आपको यकीन दिलाता हूँ।'

यह कह कर स्विद्रिगाइलोव अचानक एक बार फिर हँसा। रस्कोलनिकोव को साफ नजर आ रहा था कि वह एक ऐसा शख्स है जो दिमाग में कोई पक्का इरादा ले कर आया है।

'मैं समझता हूँ इधर कई दिन से आपने किसी से बात भी नहीं की है?' रस्कोलनिकोव ने पूछा।

'शायद ही किसी से की हो। आप शायद इस बात पर ताज्जुब कर रहे होंगे कि कैसी आसानी से मैं अपने आपको किसी भी साँचे में ढाल लेता हूँ!'

'नहीं, मैं इस बात पर ताज्जुब कर रहा हूँ कि आप ऐसा जरूरत से ज्यादा ही करते हैं।'

'क्या इसलिए कि मैं आपके सवालों के अक्खड़ लहजे का बुरा नहीं मान रहा? यही बात है क्या? लेकिन बुरा मानने की जरूरत ही क्या, जैसा आपका सवाल था, वैसा मेरा जवाब था,' उसने इतनी सादगी से जवाब दिया कि हैरत होती थी। 'बात यह है कि अब मुझे शायद ही किसी चीज में दिलचस्पी रही हो,' वह कहता रहा, जैसे कोई सपना देख रहा हो। 'खास कर अब जबकि मेरे पास करने को कुछ भी नहीं... आप समझते होंगे कि मैं ऐसा अपनी किसी गरज से, आपको खुश करने के लिए कह रहा हूँ, खास कर इसलिए, जैसाकि मैंने आपको अभी बताया, कि मैं किसी बात के बारे में आपकी बहन से मिलना चाहता हूँ। लेकिन मुझे यह मानने में जरा भी झिझक नहीं कि मैं बहुत उकताया हुआ हूँ। खास कर पिछले तीन दिनों से। लिहाजा मुझे आपसे मिल कर बहुत खुशी हुई है... बुरा मत मानिएगा, रोदिओन रोमानोविच, न जाने क्यों मुझे आप खुद बेहद अजीब से लग रहे हैं। कुछ भी कहें आप, लेकिन आपके साथ कहीं कोई गड़बड़ तो है, और अब भी... मेरा मतलब है, इसी पल नहीं, बल्कि आम तौर पर, इस वक्त... अच्छी बात है, अच्छा-अच्छा, आगे कुछ मैं नहीं कहूँगा, बिलकुल नहीं कहूँगा, नाक मत सिकोड़िए! इतना जान लीजिए, मैं वैसा बनमानुस भी नहीं जैसाकि आप समझते हैं।'

रस्कोलनिकोव ने गुमसुम हो कर उसे देखा। 'आप शायद बनमानुस तो हैं ही नहीं,' उसने कहा। 'सच तो यह है कि मैं समझता हूँ आप बहुत शरीफ तौर-तरीके वाले आदमी हैं, कम-से-कम जरूरत पड़ने पर शरीफों जैसा बर्ताव करना जानते हैं।'

'मुझे दूसरों की राय में कोई खास दिलचस्पी नहीं,' स्विद्रिगाइलोव ने रुखाई से, बल्कि कुछ ढिठाई से जवाब दिया, 'और इसलिए कभी-कभी बेहूदगी का सबूत देने में ही क्या हर्ज है जबकि हमारे माहौल में इस तरह का लबादा ओढ़ लेने से बेहद आसानी होती है... खास कर अगर किसी का स्वाभाविक झुकाव ही उसे ओर हो,' उसने फिर हँस कर कहा।

'लेकिन मैंने तो सुना है कि यहाँ आपकी जान-पहचान के बहुत से लोग हैं। आप, वह जो कहते हैं न, 'एकदम बेयारो-मददगार' नहीं हैं। फिर मुझसे आपको क्या गरज हो सकती है, जब तक कि आपका कोई खास मकसद न हो'

'यह बात सच है कि यहाँ मेरे दोस्त-यार हैं,' स्विद्रिगाइलोव ने मुख्य बात का जवाब दिए बिना स्वीकार किया। 'कुछ से तो मैं मिल भी चुका। पिछले तीन दिनों से इधर-उधर मँडराता रहा हूँ, सो या तो मैं उनसे कहीं मिल गया या वे मुझे कहीं मिल गए। बस यूँ ही कहीं, राह चलते। कपड़े अच्छे पहनता हूँ और मुझे गरीब भी नहीं समझा जाता; भू-दासों की आजादी का मेरे ऊपर कोई असर नहीं पड़ा : मेरी जायदाद में ज्यादातर जंगलात और नदी किनारे की चरागाहें हैं जो अकसर बाढ़ में डूब जाती हैं। मेरी आमदनी कम नहीं हुई। लेकिन... मैं उन लोगों से मिलने नहीं जाऊँगा; उनसे मैं बहुत पहले ही तंग आ चुका। यहाँ मैं तीन दिनों से हूँ और मिलने किसी से भी नहीं गया... यह भी अजीब शहर है! इस ढब से यह शहर आबाद कैसे हुआ, आप बता सकते हैं मुझे तरह-तरह के सरकारी नौकरों और छात्रों का शहर! अलबत्ता आठ साल पहले जब मैं यहाँ रहता था और किसी तरह जिंदगी के दिन काट रहा था, तब मेरा ध्यान इनमें से बहुत-सी बातों की तरफ नहीं गया था... अब तो मेरी रही-सही उम्मीद शरीर-संरचना में रह गई है, कसम से, बस उसी में!'

'शरीर-संरचना?'

'जहाँ तक इन क्लबों, रेस्तराँओं, मनोरंजन के ठिकानों का सवाल है, या तरक्की की निशानियों का भी सवाल है, यह सब कुछ मेरे बगैर भी चलता रहेगा,' वह कहता रहा और इस बार भी उसने सवाल की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। 'फिर यह बात भी है कि पत्तेबाज कौन बनना चाहता है?'

'आप क्या पत्तेबाज भी रह चुके हैं?'

'उससे मैं बचता भी कैसे, हम लोगों का एक पूरा गिरोह था, आठ साल पहले। सब अच्छे से अच्छे घरों के लोग। खूब हम लोग ऐश करते थे। वे सभी खानदानी लोग थे, और आप यह समझ लीजिए कि शायर भी सुसभ्य लोग भी। फिर सच तो यह है कि हमारे रूसी समाज में सबसे अच्छे शिष्टाचार उन्हीं लोगों में पाए जाते हैं जो मार खा चुके हैं। यह बात गौर की है आपने गाँव जा कर तो मैंने अपनी हालत ही हेठी करा ली। लेकिन नेजिन के एक कमीने यूनानी की बदौलत मुझे कर्ज अदा न कर सकने की वजह से जेल में डाल दिया गया। तभी कहीं से मार्फा पेत्रोव्ना आ गईं। उन्होंने उससे सौदा करके मुझे चाँदी के तीस हजार रूबल के बदले खरीद लिया। (मुझ पर सत्तर हजार का कर्ज था।) हम दोनों की कानूनी तौर पर शादी हुई और वह मुझे एक खजाने की तरह ले कर गाँव चली गईं। आपको शायद पता हो कि वह मुझसे पाँच साल बड़ी थीं। मुझसे उन्हें बहुत गहरा लगाव भी था। मैंने सात साल तक गाँव से बाहर कदम भी नहीं रखा। और यह बात याद रखिए कि तमाम वक्त मुझे कब्जे में रखने के लिए उनके पास एक दस्तावेज वह भी किसी और के नाम लिखा गया था, तीस हजार रूबल का वह प्रोनोट, ताकि अगर कभी मैं किसी बात पर भाग निकलने की कोशिश करूँ तो फौरन फंदे में फँसूँ! पर वह ऐसा किए बिना मानती भी नहीं! इसमें औरतों को कोई बेजा बात नहीं नजर आती।'

'अगर वह दस्तावेज न होता तो आप क्या रफू-चक्कर हो जाते?'

'समझ नहीं आता, इसका जवाब क्या दूँ। उसी दस्तावेज ने मुझे बाँध रखा हो, ऐसी बात नहीं थी। मैं कहीं जाना भी नहीं चाहता था। यह देख कर कि मैं उकताया हुआ रहता हूँ, खुद मार्फा पेत्रोव्ना ने मुझसे कहीं विदेश चलने को कहा, लेकिन विदेश तो मैं पहले भी हो आया हूँ, और वहाँ जा कर हमेशा मुझे मितली आती थी। किसी खास वजह से नहीं। लेकिन सूरज का निकलना, नेपल्स की खाड़ी, समुद्र - आप इन चीजों को देख कर ही उदास हो जाते हैं। नफरत ज्यादा इसलिए भी होती है कि आप सचमुच उदास होते हैं। पर नहीं, घर ही बेहतर। यहाँ आप बात के लिए कम-से-कम दूसरों पर इल्जाम तो रख सकते हैं और अपने आपको बेकसूर समझ सकते हैं। इस वक्त मेरे लिए शायद उत्तरी ध्रुव पर चले जाना ही सबसे अच्छी बात है क्योंकि रश् ंप सम अपद उंनअंपे1 और शराब पीने से मुझे नफरत है जबकि मेरे लिए शराब के अलावा कुछ और बचा भी तो नहीं। मैं उसे भी आजमा कर देख चुका। किसी ने मुझे बताया है कि अगले इतवार को बेर्ग एक बहुत बड़े गुब्बारे में युसूपोव बाग से उड़नेवाला है और कोई खास रकम पैसे ले कर मुसाफिरों को भी अपने साथ ले जाएगा। क्या यह बात सच है?'

'क्यों, आप जाना चाहते हैं?'

'मैं... जी नहीं... बस पूछ रहा था,' स्विद्रिगाइलोव बुदबुदाया। सचमुच वह किसी गहरे खयाल में डूबा हुआ लग रहा था।

'क्या यह ईमानदारी से बोल रहा है?'

'नहीं, मैं उस दस्तावेज की वजह से बँधा नहीं रहा,' स्विद्रिगाइलोव सोच में डूबा हुआ बोलता रहा। 'गाँव छोड़ कर कहीं न जाना मेरी अपनी मर्जी था, और कोई साल भर पहले मेरी सालगिरह पर मार्फा पेत्रोव्ना ने वह दस्तावेज मुझे लौटा दिया था, एक बहुत बड़ी रकम भी तोहफे में दी थी। उनके पास बेशुमार दौलत थी। 'देखो, मैं तुम पर कितना भरोसा रखती हूँ, अर्कादी इवानोविच' - हू-ब-हू यही लफ्ज उन्होंने इस्तेमाल किए थे। आपको यकीन नहीं आता कि उन्होंने ऐसा कहा होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि मैं उनकी जमीन-जायदाद का इंतजाम काफी अच्छी तरह करता था; आसपास के सभी लोग मुझे जानते हैं। बाहर से मैं किताबें भी मँगाता था। शुरू में तो मार्फा पेत्रोव्ना ने कोई एतराज नहीं किया, लेकिन बाद में मेरी बहुत ज्यादा पढ़ाई से उन्हें डर लगने लगा।'

'लगता है आपको मार्फा पेत्रोव्ना की काफी याद आती है?'

'याद आती है शायद। सचमुच, आती है। और हाँ, आप भूत-प्रेत में यकीन रखते हैं क्या?'

'कैसे भूत-प्रेत?'

'यही, आम किस्म के!'

'आप क्या उनमें यकीन रखते हैं?'

'शायद नहीं, च्वनत अवने चसंपतमण्ण्ण्2 मैं साफ-साफ 'नहीं' तो नहीं कह सकता।'


1. नशे में मेरी मनहूस हालत हो जाती है। (फ्रांसीसी)

2. आपकी खुशी के लिए। (फ्रांसीसी)


'कोई आपको दिखाई भी दिया?'

स्विद्रिगाइलोव ने उसकी तरफ जरा अजीब नजरों से देखा।

'मार्फा पेत्रोव्ना कभी-कभी अभी भी मुझसे मिलने आती हैं,' वह मुँह टेढ़ा करके अजीब ढंग से मुस्करा कर बोला।

'क्या मतलब है आपका?'

'अभी तक तीन बार आ चुकी हैं। उन्हें पहली बार मैंने उनके जनाजे के दिन ही देखा - उनके दफन किए जाने के बस घंटे भर बाद। जिस दिन मैं यहाँ के लिए चला उससे पहलेवाले दिन। दूसरी बार परसों, भोर के वक्त, सफर के दौरान मालया विशेरा स्टेशन पर, और तीसरी बार अभी दो घंटे पहले, उसी कमरे में जहाँ मैं ठहरा हुआ हूँ। मैं अकेला था।'

'आप जाग रहे थे?'

'पक्का जाग रहा था। तीनों बार मैं ही जाग रहा था। वह आती हैं, एक मिनट बातें करती हैं और दरवाजे से हमेशा ही दरवाजे से बाहर चली जाती हैं : उनकी आहट तक मुझे सुनाई देती है।'

'यह बात मेरे दिल में कैसे आई थी कि आपके साथ कुछ ऐसा ही हो रहा होगा,' रस्कोलनिकोव ने अचानक कहा। उसी पल उसे यह बात कहने पर आश्चर्य भी हुआ। उसकी उत्सुकता बेहद बढ़ चुकी थी।

'सच! ऐसा सोचा था आपने?' स्विद्रिगाइलोव ने हैरत से पूछा। 'सचमुच ऐसा सोचा था! आपसे मैंने कहा था न कि हम दोनों के बीच एक जैसी कोई बात जरूर है, क्यों?'

'यह तो आपने कभी नहीं कहा!' रस्कोलनिकोव ने कुछ चिढ़ कर तीखेपन से कहा।

'नहीं कहा था?'

'नहीं जी, नहीं!'

'मैंने समझा, कहा था। मैं जब अंदर आया और आपको सोने का बहाना किए हुए, आँखें बंद करके लेटे देखा तो फौरन अपने मन में कहा : यही है वह आदमी।'

'आपका वह आदमी' से मतलब क्या है आप किस बारे में बातें कर रहे हैं?' रस्कोलनिकोव चीखा।

'मतलब क्या है मेरा मुझे सचमुच नहीं मालूम...' स्विद्रिगाइलोव ने निष्कपट भाव से धीमे लहजे में कहा, मानो वह खुद चकराया हुआ हो।

दोनों मिनट भर चुप रहे और एक-दूसरे के चेहरे घूरते रहे।

'बकवास है यह सब!' रस्कोलनिकोव झुँझला कर चीखा। 'वे जब आपके पास आती हैं तो क्या कहती हैं?'

'वह आप यकीन करेंगे, वह मुझसे मामूली से मामूली बेवकूफी भरी बातें करती हैं और - आदमी तो होता ही अजीब है - मुझे भी गुस्सा आ जाता है। पहली बार जब वह आईं (मैं थका हुआ था, आप जानते ही हैं कि गिरजाघर में जनाजे की प्रार्थना, जनाजे की रस्म, फिर उसके बाद खाना। आखिर मैं पढ़ने के कमरे में अकेला रह गया। सिगार जला कर मैं कुछ सोच रहा था), तो दरवाजे से अंदर आईं और बोलीं आज तुम्हें भाग-दौड़ बहुत करनी पड़ी, अर्कादी इवानोविच, तुम खाने के कमरे में घड़ी की चाभी देना तक भूल गए। सात साल तक हर हफ्ते मैं घड़ी में चाभी देता रहा और कभी अगर भूल जाता तो वह मुझे याद दिलाती थीं। अगले दिन मैं यहाँ के लिए रवाना हुआ। स्टेशन पर उतरा। रात में ठीक से सोया नहीं था, थका हुआ ऊपर से, नींद के मारे आँखें बंद हुई जा रही थीं। बैठ कर मैं कॉफी पीने लगा। नजरें उठा कर देखा तो मार्फा पेत्रोव्ना को अचानक हाथ में ताश की गड्डी लिए हुए बगल में बैठा पाया। 'सफर के सिलसिले में क्या तुम्हारी किस्मत बताऊँ, अर्कादी इवानोविच किस्मत का हाल बताने में वह बहुत माहिर थीं। अपने आपको मैं कभी माफ नहीं कर सकता क्योंकि मैंने उनसे हाल बताने नहीं दिया! डर कर वहाँ से मैं भाग खड़ा हुआ। इसके अलावा गाड़ी चलने की घंटी भी बज चुकी थी। और आज एक होटल का बहुत ही बुरा खाना खाने के बाद तबीयत कुछ भारी-सी लग रही थी और मैं बैठा सिगार पी रहा था कि फिर अचानक वही मार्फा पेत्रोव्ना। हरे रंग के एक नए रेशमी लिबास में सजी-सँवरी, जिसमें एक बहुत लंबा फुँदना था, आईं और बोलीं : इधर देखो, अर्कादी इवानोविच, मेरा यह लिबास तुम्हें कैसा लगा ऐसा लिबास अनीस्का नहीं बना सकती। (अनीस्का गाँव में कपड़े सिलने का काम करती थी। पहले हमारे यहाँ बँधुआ मजदूर थी और यह काम उसने मास्को में सीखा था। बड़ी सलोनी लड़की थी।) वह मेरे सामने खड़ी हो कर, चारों ओर घूम कर-झूम कर अपना लिबास दिखाने लगीं। मैंने उनके लिबास को देखा, और फिर ध्यान से, बहुत ही ध्यान से उनके चेहरे को देखा। 'मुझे यकीन नहीं आता, मार्फा पेत्रोव्ना, कि आप मेरे पास ऐसी छोटी-छोटी बातों के लिए आती हैं।' 'तो सुनो, तुम किसी को अपने पास किसी भी बात के लिए आने ही नहीं देना चाहते!' मैंने उन्हें छेड़ने की गरज से कहा : 'मैं शादी करना चाहता हूँ, मार्फा पेत्रोव्ना।' 'तुम तो हो ही ऐसे, अर्कादी इवानोविच। कोई भलमनसाहत की बात तो नहीं कि एक बीवी को दफन किए अभी बहुत दिन नहीं हुए नहीं और दूसरी लाने के लिए चल पड़े। हाँ, तुम अगर कोई अच्छी-सी बीवी ढूँढ़ सकते तब भी कोई बात होती, लेकिन मैं जानती हूँ, कि न तुम सुखी रहोगे न वह रहेगी। बस अपनी खिल्ली उड़वाओगे।' इतना कह कर वह बाहर चली गईं और उनके लिबास के फुँदने की सरसराहट मैं सुनता रहा। है न बकवास या नहीं?'

'लेकिन आप कहीं झूठ तो नहीं बोल रहे?' रस्कोलनिकोव ने पूछा।

'मैं ज्यादातर तो झूठ नहीं बोलता,' स्विद्रिगाइलोव ने सोचते हुए जवाब दिया। उसने यूँ जताया गोया रस्कोलनिकोव के सवाल की गुस्ताखी की ओर उसका ध्यान गया ही न हो।

'जिंदगी में इससे पहले भी कभी आपने भूत देखे हैं?'

'जी हाँ, देखे हैं। जिंदगी में सिर्फ एक बार छह साल पहले। मेरे पास एक बँधुआ नौकर था, फील्का। उसे दफन कर देने के कुछ ही देर बाद मैंने, यह भूल कर कि वह मर चुका है, पुकारा, 'फील्का, मेरा पाइप!' वह अंदर आया और उसी अलमारी के पास गया, जिसमें मेरे पाइप रखे थे। मैं बैठा सोच रहा था कि वह यह सब बदला लेने के लिए कर रहा है। बात यह थी कि उसके मरने के कुछ ही पहले मेरा उसका भारी झगड़ा हुआ था। 'आस्तीन में कुहनी के पास एक छेद ले कर तेरी अंदर आने की हिम्मत भला कैसे हुई मैं बोला, 'निकल यहाँ से, बदमाश कहीं का!' वह घूम कर बाहर चला गया और फिर नहीं आया। मैंने मार्फा पेत्रोव्ना को उस वक्त इस बारे में नहीं बताया। मैं उसके लिए गिरजाघर में प्रार्थना करवाना चाहता था, लेकिन मैं बेहद शर्मिंदा भी था।'

'आपको किसी डॉक्टर के पास जाना चाहिए।'

'मैं जानता हूँ मेरी तबीयत ठीक नहीं है; आपको यह बात बताने की जरूरत नहीं। लेकिन कसम से, मेरी समझ में यह नहीं आता कि बीमारी क्या है। मैं समझता हूँ आपके मुकाबले मैं पाँच-गुना तंदुरुस्त हूँ। मैंने आपसे यह नहीं पूछा था कि आप क्या भूतों के दिखाई देने में यकीन रखते हैं, बल्कि यह पूछा था कि आप क्या उनके होने में यकीन रखते हैं।'

'जी नहीं, मैं उनका वजूद मान ही नहीं सकता!' रस्कोलनिकोव ने गुस्सा हो कर जोर देते हुए कहा।

'आम तौर पर लोग क्या कहते हैं,' स्विद्रिगाइलोव बगल की ओर देखते हुए सर झुका कर बुदबुदाया, गोया खुद से बातें कर रहा हो। 'लोग कहते हैं आप बीमार हैं, सो आपको जो कुछ दिखाई देता है वह कोरी कल्पना है। लेकिन इसमें कोई ठोस तर्क की बात तो है नहीं। इतना मैं मानता हूँ कि भूत सिर्फ बीमार लोगों को दिखाई देते हैं। लेकिन इससे कुल जमा इतना ही साबित होता है कि वे बीमारों के अलावा और किसी को दिखाई दे नहीं सकते; यह नहीं कि वे होते ही नहीं।'

'ऐसी बात कतई नहीं!' रस्कोलनिकोव ने चिढ़ के साथ जोर दे कर कहा।

'तो आप ऐसा समझते हैं, नहीं हैं?' स्विद्रिगाइलोव उस पर नजरें जमा कर कहता रहा। 'लेकिन अब इस दलील के बारे में आपका क्या कहना है (इसे समझने में मेरी मदद कीजिए) : भूत, एक तरह से, दूसरी दुनियाओं के ईंट-रोड़े होते हैं, उनकी शुरुआत होते हैं। जाहिर है कि जो आदमी तंदुरुस्त होगा, उसके लिए भूत नजर आने की कोई वजह नहीं होती क्योंकि वह सबसे बढ़ कर इसी दुनिया का प्राणी होता है और संपूर्णता और सुव्यवस्था की खातिर वह सिर्फ इसी जिंदगी में रहने पर मजबूर होता है। लेकिन जैसे ही आदमी बीमार होता है, जैसे ही प्राणी की स्वाभाविक सांसारिक व्यवस्था भंग हो जाती है, वह आदमी दूसरी दुनिया की संभावना को महसूस करने लगता है। लिहाजा जो आदमी जितना ही बीमार होता है, दूसरी दुनिया के साथ उसका संपर्क भी उतना ही गहरा होता है। इसका नतीजा यह होता है कि जैसे ही आदमी मरता है, सीधे उसी दुनिया में जा पहुँचता है। यह बात मैंने बहुत पहले ही सोची थी। अगर आप मरने के बाद दूसरी जिंदगी में यकीन रखेंगे।'

'मरने के बाद की जिंदगी में मेरा कोई यकीन नहीं,' रस्कोलनिकोव ने कहा।

स्विद्रिगाइलोव विचारों में डूब गया।

'वहाँ अगर सिर्फ मकड़ियाँ या इसी तरह की चीजें हों तो क्या होगा?' एकाएक वह बोला।

'पागल है,' रस्कोलनिकोव ने सोचा।

'हम हमेशा यही सोचते हैं कि परलोक ऐसी कोई चीज है जहाँ तक हमारी कल्पना भी नहीं पहुँच सकती। कोई बहुत बड़ी चीज... बहुत बड़ी! लेकिन उसका इतना बड़ा होना क्या जरूरी है इसकी बजाय अगर वह कोई छोटी-सी कोठरी हो, गाँव के हम्मामघर जैसी... अँधेरी और गंदी, हर कोने में मकड़ियों के जाले, और परलोक पूरा बस यही हो मैं कभी-कभी उसकी कल्पना इसी रूप में करता हूँ।'

'क्या आप कभी किसी इससे ज्यादा माकूल, इससे ज्यादा खुशगवार चीज के बारे में नहीं सोच सकते?' रस्कोलनिकोव दुखी हो कर चिल्लाया।

'ज्यादा माकूल? आप यह कैसे कह रहे हैं कि यह माकूल नहीं है और आप क्या जानते हैं कि बनाता उसे तो यकीनन उसे तो ऐसा ही बनाता,' स्विद्रिगाइलोव ने एक मद्धम-सी मुस्कराहट के साथ जवाब दिया।

उसका भयानक जवाब सुन कर रस्कोलनिकोव काँप उठा। स्विद्रिगाइलोव ने सर उठाया, उसकी ओर देखा और अचानक हँस पड़ा। 'जरा सोचिए तो,' वह जोश में आ कर बोला, 'अभी आधे घंटे पहले तक एक-दूसरे को हमने देखा तक नहीं था, एक-दूसरे को हम दुश्मन समझते थे; हम दोनों के बीच एक ऐसा मुद्दा है जिसका अभी तक फैसला नहीं हुआ और उसको ताक पर रख कर हम लोग अनर्गल के इलाके में चले आए! मैंने ठीक कहा था न कि हम दोनों एक जैसी रूहें हैं?

'बराय मेहरबानी,' रस्कोलनिकोव ने चिड़चिड़ाहट के साथ कहा, 'मुझे बस इतना बताएँ कि आपने मुझे इतनी इज्जत क्यों बख्शी कि मेरे पास तशरीफ ले आए... और... और मुझे बहुत जल्दी है, मेरे पास वक्त बिलकुल नहीं है। बाहर जाना है मुझे।'

'जरूर, जरूर। आपकी बहन अव्दोत्या रोमानोव्ना की शादी मिस्टर प्योत्र पेत्रोविच लूजिन के साथ होनेवाली है?'

'क्या आप इतनी कृपा करेंगे कि मेरी बहन के बारे में कोई सवाल न पूछें, उसका नाम तक न लें मेरी समझ में नहीं आता कि आप अगर सचमुच स्विद्रिगाइलोव ही हैं तो आपको मेरे सामने उसका नाम लेने की हिम्मत कैसे हुई?'

'पर मैं तो उसके ही बारे में यहाँ बात करने आया हूँ : यह कैसे हो सकता है कि उसका नाम भी न लूँ?'

'अच्छी बात है, कहिए, लेकिन कम-से-कम में!'

'मुझे यकीन है कि अगर आप मिस्टर लूजिन नाम के इस शख्स से जो मेरी बीवी की तरफ से मेरा दूर का रिश्तेदार होता है, आधे घंटे के लिए भी मिले होंगे या आपने उसके बारे में कुछ बातें सुनी होंगी तो आपने खुद उसके बारे में एक राय बना ली होगी। उसका और अव्दोत्या रोमानोव्ना का कोई मेल ही नहीं है। मैं समझता हूँ अव्दोत्या रोमानोव्ना उदारता और नासमझी की वजह से... अपने परिवार की खातिर... यह कुरबानी दे रही है। आपके बारे में जो कुछ मैंने सुना है, उसकी बुनियाद पर मैंने यही सोचा कि आप लोगों के हित को कोई नुकसान पहुँचाए बिना अगर यह रिश्ता तोड़ा जा सके, तो आपको भी खुशी होगी। अब जबकि मैं निजी तौर पर आपको अच्छी तरह समझ चुका हूँ, इसका मुझे पूरा यकीन है।'

'यह सब आपकी नादानी है... माफ कीजिए, मुझे तो कहना चाहिए कि आपकी गुस्ताखी है,' रस्कोलनिकोव ने कहा।

'आपका मतलब यह है कि मैं अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश में हूँ। आप परेशान न हों रोदिओन रोमानोचिव, मैं यह सब अगर अपने फायदे के लिए कर रहा होता तो इतनी साफ-साफ बात मैंने न की होती। मैं कोई ऐसा बेवकूफ भी नहीं। इस सिलसिले में मैं साफ-साफ मनोविज्ञान की दृष्टि से विचित्र-सी बात सामने लाऊँगा : अव्दोत्या रोमानोव्ना से अपनी मुहब्बत के बारे में सफाई पेश करते हुए, मैंने कहा था कि मैं खुद शिकार बनाया गया था। तो मैं आपको थोड़ी देर पहले बता दूँ कि अब मेरे दिल में मुहब्बत की कोई भावना नहीं है, जरा-सी भी नहीं। यहाँ तक कि इस पर मुझे खुद भी ताज्जुब हो रहा है क्योंकि कभी सचमुच मेरे दिल में इस तरह की एक भावना थी...'

'निठल्लेपन और बदकारी की वजह से...,' रस्कोलनिकोव ने बात काटी।

'मैं यकीनन निठल्ला और बदकार हूँ, लेकिन आपकी बहन में कुछ ऐसी खूबियाँ जरूर हैं कि मुझ पर भी उनका गहरा असर पड़े बिना नहीं रहा। लेकिन जैसा कि अब मैं खुद समझ चुका, वह सब बकवास था।'

'यह बात समझे आपको क्या बहुत अरसा हो गया?'

'इसका कुछ-कुछ एहसास तो पहले भी होने लगा था, लेकिन पक्का यकीन अभी परसों हुआ, यहाँ पीतर्सबर्ग पहुँचते ही। मास्को में तो मैं यही सोचा करता था कि मैं यहाँ अव्दोत्या रोमानोव्ना से अपनी शादी पक्की करने की कोशिश करने और मिस्टर लूजिन का पत्ता काटने के लिए आ रहा हूँ।'

'माफ कीजिएगा, आपकी बात मैं काट रहा हूँ : लेकिन बराय मेहरबानी अपनी बात थोड़े में कहिए और साफ-साफ बताइए कि आप यहाँ किसलिए आए। मुझे जल्दी है, बाहर जाना है...'

'बहुत खुशी से। यहाँ पहुँच कर और... एक सफर पर जाने का इरादा करके, मैं पहले कुछ जरूरी तैयारियाँ कर लेना चाहता था। अपने बच्चों को मैं उनकी चाची के पास छोड़ आया हूँ। उनके पास भरपूर पैसा है; और उन्हें निजी तौर पर मेरी कोई जरूरत भी नहीं। फिर मैं कोई बहुत अच्छा बाप भी तो नहीं। मार्फा पेत्रोव्ना ने साल भर पहले मुझे जो कुछ तोहफे में दिया था उसे छोड़ मैंने अपने लिए कुछ भी नहीं लिया। मेरे लिए बस उतना ही काफी है। माफ कीजिएगा, मतलब की बात पर मैं अभी आता हूँ। सफर पर जाने से पहले, जिस पर शायद मैं चला ही जाऊँ, मैं मिस्टर लूजिन से भी हिसाब बेबाक कर लेना चाहता हूँ। ऐसा नहीं कि मुझे उनसे कोई खास ज्यादा नफरत हो, लेकिन बात यह है कि मार्फा पेत्रोव्ना से मेरा झगड़ा उन्हीं की वजह से हुआ था, जब मुझे यह पता चला था कि उन्होंने ही यह शादी तय कराई है। अब मैं आपको बीच में ला कर और आप चाहें तो आपकी मौजूदगी में, अव्दोत्या रोमानोव्ना से उनको यह समझाने के लिए मिलना चाहता हूँ कि उन्हें मिस्टर लूजिन से नुकसान छोड़ कभी कोई फायदा नहीं होगा। फिर तमाम पिछली बदमजगियों के लिए उनसे माफी माँग कर मैं उन्हें तोहफे के तौर पर दस हजार रूबल देना चाहता हूँ ताकि मिस्टर लूजिन के साथ रिश्ता तोड़ने में मदद मिले। मैं समझता हूँ कि उन्हें अगर इसका कोई रास्ता दिखाई दे तो उन्हें यह रिश्ता तोड़ने में खुद भी कोई एतराज नहीं होगा।'

'आप यकीनन पागल है,' रस्कोलनिकोव चीखा। उसे गुस्सा उतना नहीं आ रहा था जितना कि ताज्जुब हो रहा था। 'आपकी इस तरह की बातें कहने की हिम्मत कैसे हुई!'

'मैं जानता था कि आप मुझ पर चीखेंगे। लेकिन पहली बात यह है कि मैं कोई बहुत अमीर तो नहीं हूँ पर ये दस हजार रूबल मैं नहीं चाहता, यानी मुझे उनकी कोई जरूरत सचमुच नहीं है। अगर अव्दोत्या रोमानोव्ना उन्हें नहीं लेंगी तो मैं बेवकूफी के किसी और हीले से इन्हें बर्बाद कर दूँगा। यह तो रही पहली बात। दूसरे, मेरा दिल एकदम साफ है और यह रकम दे कर मैं कोई अपनी गरज पूरी करना नहीं चाहता। आप इस पर यकीन तो नहीं करेंगे, लेकिन आपको और अव्दोत्या रोमानोव्ना को आगे चल कर पता चलेगा। बात यह है कि मेरी वजह से आपकी बहन को, जिनकी मैं बहुत इज्जत करता हूँ, जरूर कुछ परीशानी हुई है, मेरी कुछ बातें उन्हें बुरी लगी हैं, और इसलिए, इस बात पर दिली अफसोस करते हुए मैं - उस बदमजगी का हर्जाना देने के लिए नहीं, बल्कि महज उनका कुछ भला करने के लिए - यह बताना चाहता हूँ कि मैंने लोगों को नुकसान पहुँचाने का कोई ठेका नहीं ले रखा। यह रकम पेश करने के पीछे अगर मेरी जरा-सी भी खुदगरजी होती तो मैं इस तरह खुलेआम यह रकम न देता, और सिर्फ दस हजार देने की बात तो यकीनन नहीं करता, जबकि अभी बस पाँच हफ्ते पहले मैं उन्हें इससे बहुत ज्यादा देने को तैयार था। इसके अलावा, बहुत जल्द ही मैं शायद एक लड़की से शादी कर लूँ, और अकेली यही बात इसका हर शक दूर करने के लिए काफी होनी चाहिए कि अव्दोत्या रोमानोव्ना के बारे में मेरे दिल में कोई बुरा इरादा पल रहा है। आखिर में, मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि मिस्टर लूजिन से शादी करके वह पैसा ही ले रही हैं, फर्क बस यह है कि एक दूसरे आदमी से... आप नाराज न हों रोदिओन रोमानोविच, इसके बारे में ठंडे दिमाग से और शांत हो कर सोचिएगा।'

स्विद्रिगाइलोव ने खुद ठंडे दिमाग से और शांत भाव से ये सारी बातें कहीं।

'बस अब आगे और कुछ न कहिएगा,' रस्कोलनिकोव ने कहा। 'यही बहरहाल इतनी बड़ी गुस्ताखी है कि इसे माफ नहीं किया जा सकता।'

'हरगिज नहीं। अगर ऐसा होता तो कोई भी इनसान इस दुनिया में दूसरे इनसान के साथ बुराई के अलावा कुछ कर भी नहीं पाता। सच तो बल्कि यह है कि उसे तरह-तरह की बेवकूफी भरी सामाजिक परंपराओं की वजह से छोटी-से छोटी भलाई करने का भी अधिकार नहीं होता। यह एक सरासर बेतुकी बात है। फर्ज कीजिए कि मैं मर जाता और अपनी वसीयत में आपकी बहन के नाम यह रकम छोड़ जाता, तो तब भी क्या वह इसे लेने से इनकार कर देतीं?'

'बहुत मुमकिन है कर देती।'

'अरे नहीं! लेकिन अगर वह इसे लेने से इनकार करती हैं तो ऐसा ही सही। दस हजार रूबल की रकम मौका पड़ने पर काफी बड़ी पूँजी होती है। बहरहाल, आपसे मेरी यही दरख्वास्त है कि अव्दोत्या रोमानोव्ना तक मेरा सुझाव पहुँचा दें।'

'जी नहीं, मैं उससे नहीं कहनेवाला।'

'उस सूरत में रोदिओन रोमानोविच, मुझे मजबूर हो कर उनसे खुद मिलने की कोशिश करनी होगी और इससे उन्हें परीशानी ही होगी।'

'और अगर मैं कह दूँ, तो आप मिलने की कोशिश तो नहीं करेंगे?'

'मेरी समझ में सचमुच नहीं आ रहा कि क्या कहूँ। उनसे बस एक बार और मिलने को बहुत जी चाहता है।'

'इसकी उम्मीद छोड़ दीजिए।'

'अफसोस की बात है। लेकिन आप मुझे नहीं जानते। शायद आगे चल कर हम बेहतर दोस्त बन जाएँ।'

'आप क्या यह समझते हैं कि हम दोस्त भी बन सकते हैं?'

'क्यों नहीं?' स्विद्रिगाइलोव ने मुस्करा कर कहा। वह उठा और अपनी हैट उठा ली। 'आपको किसी भी तरह परेशान करने का कोई इरादा मेरा नहीं था और मैं यहाँ कोई भारी उम्मीद ले कर भी नहीं आया था... यूँ आज सुबह आपकी सूरत देखते ही मुझ पर बहुत गहरा असर पड़ा था।'

'आज सुबह मुझे आपने कहाँ देख लिया?' रस्कोलनिकोव ने बेचैन हो कर पूछा।

'आपको यूँ ही इत्तफाक से देखा... मैं सोचता रहा हूँ कि आपमें कोई बात मेरी जैसी है... लेकिन आप परेशान न हों। मैं दूसरों के मुआमलों में दखल नहीं देता। पत्तेबाजों से मेरी गाढ़ी छना करती थी, और राजकुमार स्विरबेय मेरी बातों से कभी नहीं उकताते थे; वे एक बहुत बड़ी हस्ती हैं और मेरे दूर के रिश्तेदार भी लगते हैं। मैंने मादाम प्रिलूकोवा की एल्बम में रफाएल की मैडोना के बारे में भी लिख दिया, और सात साल तक मार्फा पेत्रोव्ना का साथ मैंने नहीं छोड़ा। किसी जमाने में मैं भूसामंडी में वियाजेम्स्की के घर में रात-रात भर ठहरता था और मैं बेर्ग के साथ गुब्बारे में बैठ कर उड़ने भी जा सकता हूँ... शायद।'

'अच्छी बात है। क्या मैं पूछ सकता हूँ कि अपनी यात्रा पर आप क्या जल्दी ही जानेवाले हैं?'

'कौन-सी यात्रा?'

'अरे, वही सफर; आपने खुद ही तो कहा था।'

'सफर अरे, हाँ। मैंने तो सचमुच सफर पर जाने की बात की थी। हाँ, यह एक बहुत बड़ा सवाल है... काश आप जानते होते कि आप क्या पूछ रहे हैं,' उसने कहा और अचानक जोर-से पर थोड़ा-सा हँसा। 'सफर पर जाने की बजाय शायद मैं शादी कर लूँ। लोग मेरी शादी कराने की कोशिश कर रहे हैं।'

'यहाँ'

'जी।'

'इसके लिए आपको वक्त कैसे मिला?'

'लेकिन अव्दोत्या रोमानोव्ना से बस एक बार मिलने को मेरा जी बहुत चाहता है। मैं आपसे सच्चे दिल से इस बारे में प्रार्थना करता हूँ। खैर, इस वक्त मैं चलता हूँ। हाँ, एक बात मैं भूल ही गया। रोदिओन रोमानोविच, अपनी बहन से कहिएगा कि मार्फा पेत्रोव्ना ने अपनी वसीयत में उन्हें याद किया है और उनके नाम तीन हजार रूबल छोड़े हैं। यह बात एकदम पक्की है। मार्फा पेत्रोव्ना मरने से हफ्ताभर पहले इसका बंदोबस्त कर गई थीं, और यह काम मेरे सामने किया था। अव्दोत्या रोमानोव्ना को यह रकम दो या तीन हफ्ते में मिल जाएगी।'

'आप सच बोल रहे हैं?'

'हाँ, उनसे कह दीजिएगा और मेरे लायक कोई खिदमत हो तो मैं हाजिर हूँ। मैं यहाँ से बहुत करीब ही रहता हूँ।'

बाहर जाते हुए दरवाजे पर स्विद्रिगाइलोव रजुमीखिन से टकरा गया।

अपराध और दंड : (अध्याय 4-भाग 2)

लगभग आठ बज रहे थे। दोनों नौजवान तेज कदमों से बकालेयेव के मकान की तरफ जा रहे थे कि वहाँ लूजिन से पहले पहुँच जाएँ।

'क्यों, कौन था वह?' सड़क पर पहुँचते ही रजुमीखिन ने पूछा।

'स्विद्रिगाइलोव था... वही जमींदार। इसी के घर में मेरी बहन बच्चों की देखभाल करती थी, जब उसका अपमान किया गया था। जब इसने उस पर डोरे डालना और सताना शुरू किया तो इसकी बीवी, मार्फा पेत्रोव्ना, ने उसे नौकरी से निकाल दिया। बाद में मार्फा पेत्रोव्ना ने मेरी बहन से माफी माँग ली थी। अभी हाल में अचानक वह चल बसी। सुबह हम लोग इसी की बात कर रहे थे। मुझे इस आदमी से न जाने क्यों डर लग रहा है। बीवी के जनाजे के फौरन बाद यहाँ चला आया। अजीब आदमी है और कुछ करने पर आमादा भी है... दूनिया को इससे हमें बचाना ही होगा... मैं तुम्हें यही बात बताना चाहता था... सुन रहे हो न?'

'बचाना होगा! अव्दोत्या रोमानोव्ना को वह किस तरह नुकसान पहुँचा सकता है तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया रोद्या कि मुझ पर इतना भरोसा रख कर बातें कर रहे हो... हम बचाएँगे उन्हें। यह रहता कहाँ है?'

'मालूम नहीं।'

'पूछा क्यों नहीं तुमने? बड़ा बुरा किया! खैर, पता तो मैं लगा लूँगा।'

'उसे तुमने देखा था न?' रस्कोलनिकोव ने कुछ देर बाद पूछा।

'हाँ, देखा था... अच्छी तरह देखा था।'

'सचमुच देखा था साफ-साफ?' रस्कोलनिकोव ने आगे पूछा।

'हाँ, उसकी सूरत मुझे अच्छी तरह याद है... हजार के बीच भी उसे मैं पहचान लूँगा। लोगों के चेहरे मुझे बहुत अच्छी तरह याद रहते हैं।'

वे फिर चुप हो गए।

'तो... ठीक है,' रस्कोलनिकोव बुदबुदाया। 'जानते हो, मैं सोचता था... सोचता रहता हूँ... मुझे लगता है... मुमकिन है यह सब मेरे मन का भ्रम रहा हो।'

'मतलब क्या है तुम्हारा मेरी समझ में तुम्हारी बात नहीं आई।'

'बात यह है, तुम सभी लोग कहते रहते हो,' रस्कोलनिकोव मुँह टेढ़ा करके मुस्कराते हुए कहता रहा, 'कि मैं पागल हूँ। सो मैं अभी-अभी यह सोच रहा था कि मैं शायद सचमुच पागल हूँ और अभी-अभी मैंने कोई भूत ही देखा है।'

'मतलब क्या है तुम्हारा?'

'कौन जाने मैं शायद सचमुच पागल हूँ, और इन तमाम दिनों में जो कुछ भी हुआ है वह सब शायद केवल मेरी कल्पना रहा हो।'

'छिः रोद्या फिर बहकने लगे! ...लेकिन कहा क्या उसने? आया किसलिए था?'

रस्कोलनिकोव ने कोई जवाब नहीं दिया। रजुमीखिन पल-भर कुछ सोचता रहा।

'अच्छा, तो लो, मेरा किस्सा सुनो,' उसने कहना शुरू किया। 'मैं तुम्हारे यहाँ पहुँचा तो तुम सो रहे थे। फिर हम सबने खाना खाया और मैं पोर्फिरी के पास गया। जमेतोव तब भी वहीं था। मैंने बात शुरू करने की कोशिश की लेकिन बात कुछ बनी नहीं। मैं ठीक से अपनी बात नहीं कह सका। लगता है वे लोग बात को समझते नहीं और समझ सकते भी नहीं, लेकिन उन्हें इस पर जरा भी शर्म नहीं आती। मैं पोर्फिरी को खिड़की के पास ले गया और उससे बातें करने लगा, लेकिन बात फिर भी बन नहीं पाई। वह दूसरी तरफ देखने लगा, सो मैंने भी मुँह फेर लिया। आखिर मैंने उसके मनहूस चेहरे की तरफ घूँसा उठाया और रिश्तेदारी के लहजे में उससे कहा कि मैं उसकी नाक तोड़ दूँगा। उसने मेरी तरफ महज देखा और मैं गालियाँ दे कर चला आया। बस कितनी ही हिमाकत की बात थी। जमेतोव से मैं एक शब्द भी नहीं बोला। मुझे लगा मैंने सब कुछ गड़बड़ कर दिया है, लेकिन सीढ़ियाँ उतरते वक्त मेरे दिमाग में एक बहुत अच्छी बात आई। यह कि हम परेशान क्यों हों, अगर तुम्हें कोई खतरा होता या ऐसी कोई और बात होती तो बात दूसरी थी, लेकिन तुम्हें फिक्र करने की जरूरत ही क्या? उनकी तो तुम रत्ती-भर भी परवाह न करो। बाद में हमीं उन पर जी भर कर हँसेंगे। मैं अगर तुम्हारी जगह होता तो उन्हें और भी गहरे चक्कर में उलझाता। बाद में ये लोग कितने शर्मिंदा होंगे! छोड़ो उन्हें! बाद में हम उनकी अच्छी तरह पिटाई करेंगे; अभी तो तुम उन पर हँसो!'

'एकदम सही बात है,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया। 'लेकिन कल क्या कहोगे?' उसने मन में सोचा। अजीब बात है, तब तक उसे कभी यह बात नहीं सूझी थी कि रजुमीखिन को जब पता चलेगा तो वह क्या सोचेगा। यह सोचते हुए रस्कोलनिकोव ने उसकी ओर गौर से देखा। रजुमीखिन ने पोर्फिरी के साथ अपनी मुलाकात का जो किस्सा सुनाया था उसमें उसे बहुत ही कम दिलचस्पी थी, क्योंकि उसके बाद तो बहुत कुछ हो चुका था।

गलियारे में ही लूजिन से उनकी मुठभेड़ हो गई। वह ठीक आठ बजे पहुँच कर कमरा ढूँढ़ रहा था। इस तरह वे तीनों एक-दूसरे की ओर देखे या एक-दूसरे को सलाम किए बिना ही एक साथ वहाँ पहुँचे। पहले दोनों नौजवान अंदर गए जबकि प्योत्र पेत्रोविच शिष्टता के नाते थोड़ी देर ड्योढ़ी में ही रुक कर अपना कोट उतारने लगा। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना उसका स्वागत करने फौरन दरवाजे पर आईं। दूनिया अपने भाई का स्वागत कर रही थी।

प्योत्र पेत्रोविच ने कमरे में प्रवेश किया। काफी शिष्टता के साथ, लेकिन दुगुने रोब के साथ, उसने झुक कर दोनों महिलाओं का अभिवादन किया। लेकिन लगता तो यही था कि वह अभी तक कुछ उखड़ा हुआ है और पूरी तरह अपने आपको सँभाल नहीं सका है। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना भी कुछ अटपटा-सा महसूस कर रही थीं। जल्दी-जल्दी उन्होंने सभी को उस गोल मेज के चारों ओर बिठाया जिस पर एक समोवार में पानी उबल रहा था। दूनिया और लूजिन मेज के दो सिरों पर एक-दूसरे के आमने-सामने बैठे थे। रजुमीखिन और रस्कोलनिकोव पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना के सामने बैठे थे - रजुमीखिन लूजिन के पास और रस्कोनिकोव अपनी बहन के पास।

कुछ पल सभी चुप रहे। प्योत्र पेत्रोविच ने इतमीनान से, कैंब्रिक का इत्र में बसा रूमाल निकाल कर उसमें नाक छिनकी, कुछ यूँ जैसे उसके जैसे हीरा आदमी का अपमान हुआ है और वह इसका जवाब तलब करने का पक्का इरादा करके आया है। अंदर आने से पहले, ड्योढ़ी में उसे खयाल आया था कि वह अपना ओवरकोट न उतारे, वहीं से वापस चला जाए और इस तरह दोनों औरतों को एक जोरदार और अच्छा सबक सिखाए ताकि वे महसूस करें कि बात कितनी संगीन है। लेकिन वह ऐसा न कर सका। इसके अलावा मामले को लटकाए रखना भी उसे बर्दाश्त नहीं था और इसलिए जवाब तलब करना चाहता था। चूँकि उसके अनुरोध को खुले तौर पर ठुकरा दिया गया था, इसलिए उसके पीछे जरूर कोई बात होगी। सो ऐसी हालत में बेहतर यही था कि पहले ही उसका पता लगा लिया जाए। उन लोगों को सजा देना तो उसके अपने हाथ में था और उसके लिए वक्त तो कभी भी मिल जाएगा।

'मुझे यकीन है कि आप लोगों का सफर अच्छी तरह कटा होगा,' उसने पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना से औपचारिक ढंग से पूछा।

'जी हाँ, प्योत्र पेत्रोविच, बहुत अच्छा।'

'मुझे यह जान कर बेहद खुशी हुई। अव्दोत्या रोमानोव्ना भी कुछ ज्यादा थकी तो नहीं?'

'मैं तो जवान और हट्टी-कट्टी ठहरी, मैं नहीं थकती। लेकिन माँ के लिए यह सफर बहुत मुश्किल रहा,' दूनिया ने जवाब दिया।

'यह सुन कर मुझे दुख हुआ, लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि कुछ किया भी नहीं जा सकता था। हमारे यहाँ रेल लाइनें हैं भी बहुत लंबी। हम जिसे 'रूस माता' कहते हैं, वह है भी तो एक लंबा-चौड़ा देश... चाहते हुए भी कल मैं आप लोगों को लेने न आ सका। लेकिन मुझे उम्मीद है कि आप लोगों को किसी तरह की तकलीफ नहीं हुई होगी।'

'अफसोस प्योत्र पेत्रोविच कि ऐसा नहीं हुआ, मेरा तो दिल ही बैठा जा रहा था,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने जल्दी से कुछ अजीब लहजे में कहा, 'अगर द्मित्री प्रोकोफिच को हमारे पास न भेजा होता तो भगवान जानता है हम कहीं के भी न रहते। यह है द्मित्री प्रोकोफिच रजुमीखिन,' उन्होंने लूजिन से उसका परिचय कराते हुए कहा।

'आपसे मुलाकात हो चुकी है... कल ही,' प्योत्र पेत्रोविच ने जहरीली निगाह से रजुमीखिन को कनखियों से देखते हुए बुदबुदा कर कहा और माथे पर बल डाले खामोश हो गया। प्योत्र पेत्रोविच उन लोगों में से था जो समाज में उठते-बैठते ऊपर से तो बेहद शिष्ट बने रहते हैं, हद से ज्यादा शिष्टता बरतने पर जोर देते हैं, लेकिन कोई बात जरा-सी भी उनकी मर्जी के खिलाफ हो जाए तो अपनी सारी शिष्टता भूल कर आटे के बोरे जैसे ठस हो जाते हैं। फिर उनमें वैसी जिंदादिली नहीं रह जाती जिसके रहने से महफिल में ताजगी आ जाती है। सब लोग एक बार फिर खामोश हो गए। रस्कोलनिकोव ने अकड़ से खामोशी साध रखी थी, और अव्दोत्या रोमानोव्ना फिलहाल कोई बातचीत शुरू करना नहीं चाहती थी। रजुमीखिन के पास कहने को कुछ था भी नहीं और पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना एक बार फिर चिंता में डूब गई थीं।

'मार्फा पेत्रोव्ना चल बसीं, आपने सुना होगा?' उन्होंने अपनी बातचीत के मुख्य विषय का सहारा ले कर कहना शुरू किया।

'जी, मैंने सुना है। मुझे फौरन खबर मिल गई थी, और मैं आपको यह भी बताने आया हूँ कि अर्कादी इवानोविच स्विद्रिगाइलोव अपनी बीवी के जनाजे के फौरन बाद पीतर्सबर्ग के लिए चल पड़े थे। कम-से-कम मुझे तो पक्के तौर पर पता चला है।'

'पीतर्सबर्ग के लिए? यहाँ?' दूनिया ने चौंक कर पूछा और माँ की ओर देखा।

'जी हाँ। अब अगर इस बात को देखें कि वे इतनी जल्दी चल पड़े और उससे पहले जो कुछ हुआ था, उसे भी देखें तो यकीनन किसी खास इरादे से ही वे यहाँ आए हैं।'

'हे भगवान, दूनिया को वह यहाँ भी चैन से रहने देगा कि नहीं,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना दुखी हो कर बोलीं।

'मेरे खयाल में आपको और अव्दोत्या रोमानोव्ना को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। हाँ, आप लोग खुद ही अगर उनसे बातचीत का सिलसिला चलाना चाहें तो बात अलग है। रहा मेरा सवाल तो मैं पूरी तरह चौकस हूँ और अब यह मालूम करने की कोशिश कर रहा हूँ कि वे यहाँ ठहरे कहाँ हैं...'

'आह, प्योत्र पेत्रोविच, आप नहीं जानते कि आपने मेरे मन में कितना डर पैदा कर दिया है,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना अपनी बात कहती रहीं। 'मैं उससे सिर्फ दो बार मिली, लेकिन मैं समझती हूँ कि वह बहुत बेहूदा आदमी है। मुझे तो पूरा यकीन है कि मार्फा पेत्रोव्ना की मौत उसी की वजह से हुई!'

'इस बारे में कोई बात यकीन के साथ नहीं कही जा सकती। मुझे इसकी सही-सही जानकारी है। इस बात से मैं इनकार नहीं करता कि, एक तरह से अपमान के नैतिक प्रभाव का सहारा ले कर घटनाओं में तेजी लाने में शायद उसका हाथ रहा हो। लेकिन जहाँ तक उसके आम व्यवहार और नैतिक गुणों का सवाल है, मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। यह तो मैं नहीं जानता कि धन-दौलत के बारे में अब उसकी हालत अच्छी है कि नहीं, न ही यह मालूम है कि मार्फा पेत्रोव्ना उसके लिए कितना कुछ छोड़ गई हैं; कुछ ही दिनों में यह बात भी मुझे मालूम हो जाएगी; लेकिन इसमें तो जरा भी शक नहीं है कि अगर उसके पास थोड़ा-बहुत भी पैसा हुआ तो यहाँ पीतर्सबर्ग में वह फौरन अपने उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ेगा। इस श्रेणी के लोगों का वह सबसे चरित्रहीन और सबसे नीच किस्म का नमूना है। कई बातों की बुनियाद पर मैं समझता हूँ कि मार्फा पेत्रोव्ना ने, जिनकी बदनसीबी यही थी कि वे इसकी मुहब्बत के जाल में फँस गईं। और आठ साल पहले इसका कर्ज भी चुका दिया, एक और उस पर बहुत बड़ा एहसान किया। उन्हीं की कोशिशों और कुरबानियों का एहसान था कि उसके खिलाफ अपराध का एक इल्जाम चुपचाप दबा दिया गया। उस मामले में तो इतने अजीबोगरीब हालात में और इतनी बेरहमी से एक आदमी की जान ली गई थी कि ऐन मुमकिन था इसे साइबेरिया भेज दिया जाता। आप अगर जानना ही चाहती हैं तो सुनिए, वह इसी किस्म का आदमी है।'

'हे भगवान!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना चीख उठीं। रस्कोलनिकोव ध्यान से सब कुछ सुनता रहा।

'क्या आप यह बात सच कह रहे हैं कि आपके पास इसका पक्का सबूत है?' दूनिया ने कठोर रोबदार लहजे में पूछा।

'आपके सामने मैं वही बातें दोहरा रहा हूँ जो मार्फा पेत्रोव्ना ने मुझ पर भरोसा करके, मुझे चुपके से बताई थी। लेकिन मैं इतना जरूर कहूँगा कि कानून की नजर से मामला इतना सीधा नहीं था। किसी जमाने में यहाँ रेसलिख नाम की एक विदेशी औरत रहा करती थी, और मैं समझता हूँ कि अब भी यहीं रहती है। वह सूद पर छोटी-छोटी रकमें कर्ज देती है, उसके तरह-तरह के और न जाने कितने धंधे हैं, और उस औरत के साथ एक अरसे से स्विद्रिगाइलोव का बहुत गहरा और रहस्यमय संबंध रहा है। उसके साथ उसकी एक रिश्तेदार, शायद उसकी भतीजी भी रहती थी। वह पंद्रह साल की थी, या शायद चौदह से ज्यादा की न रही हो। वह एक गूँगी-बहरी लड़की थी। रेसलिख इस लड़की से नफरत करती थी, उसे रोटी के एक-एक टुकड़े के लिए तरसाती थी; उसे बेरहमी से पीटती भी थी। वह लड़की एक दिन अटारी में रस्सी में लटकी हुई मिली। जाँच के बाद फैसला सुनाया गया कि उसने आत्महत्या की थी। रस्मी कार्रवाई के बाद बात वहीं पर खत्म कर दी गई, लेकिन बाद में पता चला कि स्विद्रिगाइलोव ने उस बच्ची के साथ... बलात्कार किया था। यह सही है कि यह बात साबित नहीं हो सकी, क्योंकि यह जानकारी एक और बदचलन जर्मन औरत ने दी थी, जिसकी बात पर कोई भरोसा नहीं कर सकता था। मार्फा पेत्रोव्ना की दौलत और कोशिशों के चलते पुलिस के सामने किसी का बयान दर्ज नहीं कराया जा सका और बात आपसी कानाफूसी से आगे न बढ़ सकी। फिर भी ये अफवाहें बहुत महत्व रखती हैं। अव्दोत्या रोमानोव्ना, आप जब उसके यहाँ काम करती थीं तब आपने उसके नौकर फिलिप का किस्सा तो जरूर सुना होगा। वही जो कोई छह साल पहले, जब बँधुआगीरी की प्रथा खत्म नहीं हुई थी, बुरे सुलूक की वजह से मर गया था।'

'मैंने तो इसकी उलटी बात सुनी थी। यह कि फिलिप ने खुद ही फाँसी लगा ली थी।'

'यकीनन यही हुआ था। लेकिन जिस बात ने उसे आत्महत्या करने पर मजबूर किया, बल्कि कह लीजिए कि उसके दिल में यह विचार पैदा किया, वह यह थी कि यही स्विद्रिगाइलोव साहब लगातार उसे सताते थे और उसके साथ सख्ती का बर्ताव करते थे।'

'यह बात मुझे नहीं मालूम,' दूनिया ने रुखाई से जवाब दिया। 'मैंने तो बस एक अजीब-सा किस्सा सुना था कि फिलिप को कोई खब्त था। वह एक तरह खुद का बनाया हुआ फलसफी था और दूसरे नौकर-चाकर कहा करते थे कि उसने पढ़-पढ़ कर अपना दिमाग खराब कर लिया है। वह फाँसी लगा कर भी इसलिए नहीं मरा कि मिस्टर स्विद्रिगाइलोव उसे मारते-पीटते थे, बल्कि एक हद तक इसकी वजह यह थी कि वे उसका मजाक उड़ाया करते थे। जब मैं उनके यहाँ काम करती थी, तब नौकरों के साथ उनका बर्ताव बहुत ही अच्छा होता था और वे सभी उन्हें पसंद भी करते थे, हालाँकि फिलिप की मौत के लिए वे भी उन्हीं को जिम्मेदार समझते थे।'

'मैं देख रहा हूँ, अब्दोत्या रोमानोव्ना, कि अचानक आप उसका पक्ष लेने को तैयार हो गई हैं,' लूजिन ने अपने होठ टेढ़े करके एक अस्पष्ट भाव व्यक्त करनेवाली मुस्कराहट के साथ कहा। 'इसमें कोई शक नहीं कि वह बहुत ही होशियार आदमी है और जहाँ तक औरतों का सवाल है, उन्हें बड़ी जल्दी अपने जाल में फाँस लेती है। इसकी एक बहुत ही दयनीय मिसाल तो मार्फा पेत्रोव्ना ही थीं, जो अभी कुछ ही दिन हुए रहस्यमय हालत में मर गईं। मैं तो बस यही चाहता हूँ कि अपने सलाह-मशविरे से आपकी और आपकी माँ की कुछ मदद कर सकूँ, क्योंकि मुझे इस बात का पूरा डर है कि उसकी तरफ से नए सिरे से कुछ कोशिशें जरूर की जाएँगी। मुझे तो इस बात का भी पक्का यकीन है कि वह एक बार फिर कर्ज न चुका पाने पर जेल जाएगा। उसके बच्चों की भलाई का ध्यान करके मार्फा पेत्रोव्ना उसे कोई बड़ी रकम देने का इरादा नहीं रखती थीं, और अगर इसके नाम उन्होंने कुछ छोड़ा भी होगा तो वह बस काम चलाने भर की ही रकम होगी। कोई बहुत मामूली-सी रकम, जो थोड़े दिनों में खत्म हो जाएगी; और उस जैसी आदतोंवाले आदमी के पास तो साल भर भी नहीं चलेगी।'

'प्योत्र पेत्रोविच, आपसे मेरी दरख्वास्त है,' दूनिया ने कहा, 'कि अब स्विद्रिगाइलोव साहब की कोई चर्चा न करें। मुझे इससे तकलीफ होती है।'

'वह अभी मुझसे मिलने आया था,' रस्कोलनिकोव ने पहली बार अपनी खामोशी तोड़ी।

सबके मुँह से ताज्जुब के मारे चीख निकल गई, और सभी घूम कर उसकी ओर देखने लगे। प्योत्र पेत्रोविच भी भौंचक नजर आता था।

'डेढ़ घंटा हुआ कि मैं सो रहा था, जब उसने आ कर मुझे जगाया और अपना परिचय दिया,' रस्कोलनिकोव ने अपनी बात आगे बढ़ाई। 'वह काफी खुश नजर आ रहा था और जरा भी परेशान नहीं था, उसे पूरी उम्मीद है कि हम दोनों दोस्त बन जाएँगे। पर हाँ, दूनिया, तुमसे मिलने के लिए वह खास तौर पर बेचैन है और इस काम के लिए उसने मेरी मदद माँगी है। वह तुम्हारे सामने कोई सुझाव रखना चाहता है और मुझे इसके बारे में कुछ बताया भी है। उसने तो यह भी बताया दूनिया कि मरने से एक हफ्ता पहले मार्फा पेत्रोव्ना ने अपनी वसीयत में तुम्हारे नाम तीन हजार रूबल छोड़े हैं और यह रकम तुम्हें बहुत जल्दी मिल जाएगी।'

'भगवान उनका भला करे!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने हाथ से सीने पर सलीब का निशान बनाते हुए खुश हो कर कहा। 'तुम उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करो!'

'सच बात है,' लूजिन ने अनचाहे ही बक दिया।

'खैर और क्या कहा' दूनिया ने रस्कोलनिकोव से कहा।

'इसके बाद कहा कि वह बहुत अमीर आदमी नहीं है और उसकी सारी जमीन-जायदाद उसके बच्चों के नाम कर दी गई है, जो अब अपनी चाची के पास रहते हैं। फिर उसने बताया कि वह मेरे घर के पास ही कहीं रहता है, लेकिन कहाँ, यह मुझे नहीं मालूम। मैंने पूछा भी नहीं...'

'मगर वह दूनिया के सामने सुझाव क्या रखना चाहता है' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना डर कर बोलीं। 'उसने कुछ बताया था?'

'हाँ।'

'क्या?'

'बाद में तुमसे बताऊँगा।' यह कह कर रस्कोलनिकोव चुप हो गया और अपनी चाय की ओर ध्यान देने लगा।

प्योत्र पेत्रोविच ने घड़ी देखी।

'मुझे एक काम से जाना है, इसलिए मैं आप लोगों की बातों में बाधा नहीं डालना चाहता,' उसने कुछ रूठे हुए स्वर में कहा और उठने लगा।

'मत जाइए, प्योत्र पेत्रोविच,' दूनिया बोली। 'आप तो सारी शाम हम लोगों के पास गुजारने आए थे। इसके अलावा आपने खुद लिखा था कि आप माँ से किसी बात की सफाई चाहते हैं।'

'बिलकुल लिखा था अव्दोत्या रोमानोव्ना,' प्योत्र पेत्रोविच ने फिर बैठते हुए अकड़ कर जवाब दिया, लेकिन उसका हैट अभी तक उसके हाथ में ही था। आपसे और आपकी माँ से एक सचमुच जरूरी बात के बारे में मैं यकीनन कुछ सफाई चाहता था, लेकिन अगर आपके भाई साहब मेरे सामने मिस्टर स्विद्रिगाइलोव के कुछ सुझावों के बारे में खुल कर बात नहीं करना चाहते तो उन्हीं की तरह मैं भी कुछ बहुत ही गंभीर सवालों के बारे में... दूसरों के सामने... खुल कर बात करना नहीं चाहता, न कर सकूँगा। इसके अलावा मेरी सबसे बड़ी और सबसे जरूरी दरख्वास्त तो पहले ही ठुकराई जा चुकी है...'

मन में कड़वाहटवाला भाव अपना कर लूजिन ने एक बार फिर अकड़भरी खामोशी साध ली।

'आपकी जो दरख्वास्त थी कि मेरे भाई साहब हम लोगों की मुलाकात के दौरान मौजूद न रहें, वह सिर्फ मेरे कहने पर नहीं मानी गई,' दूनिया बोली। 'आपने लिखा था कि मेरे भाई साहब ने आपका अपमान किया है तो मैं समझती हूँ कि यह बात फौरन साफ होनी चाहिए और आप दोनों के बीच सुलह हो जानी चाहिए। सो अगर रोद्या ने सचमुच आपका अपमान किया है तो उन्हें माफी माँगनी चाहिए और वे जरूर माँगेंगे।'

प्योत्र पेत्रोविच ने फौरन कुछ और भी सख्त रवैया अपनाया।

'कुछ अपमान ऐसे भी होते हैं, अव्दोत्या रोमानोव्ना, कि हम उन्हें चाह कर भी भुला नहीं सकते। हर चीज की एक हद होती है जिसके आगे जाना खतरनाक होता है; और उसके आगे निकल जाने के बाद वापसी का कोई सवाल पैदा नहीं होता।'

'मैं जिस बात की चर्चा कर रही थी वह यह नहीं थी, प्योत्र पेत्रोविच,' दूनिया कुछ बेचैन हो कर बीच में बोली। 'बराय मेहरबानी आप इस बात को समझने की कोशिश कीजिए कि हमारा पूरा भविष्य अब इसी बात पर निर्भर है कि जल्द-से-जल्द सुलह-सफाई करके इस सारे मामले को निबटा लिया जाता है कि नहीं। मैं आपसे शुरू में ही साफ कह दूँ कि इस बात को मैं किसी और तरह से नहीं देख सकती। सो अगर आपको मेरा जरा-सा भी खयाल है, तो इस सारे मामले को आज ही निबटाया जाना चाहिए, चाहे उसमें कितनी ही मुश्किल का सामना हो। मैं एक बार फिर कहती हूँ कि अगर कुसूर मेरे भाई का हुआ तो वे माफी माँग लेंगे।'

'मुझे ताज्जुब है, अव्दोत्या रोमानोव्ना, कि आपने सवाल को इस तरह पेश किया,' लूजिन बोला। उसकी चिड़चिड़ाहट लगातार बढ़ती जा रही थी। 'आपकी कद्र करते हुए और कहना चाहिए कि आपको बेहद इज्जत की नजरों से देखते हुए मैं कहूँ कि यह भी तो हो सकता है कि मुझे आपके परिवार का कोई आदमी नापसंद हो। मैं आपसे शादी करके आपको खुश तो रखना चाहता हूँ लेकिन ऐसी जिम्मेदारियाँ अपने ऊपर नहीं ले सकता जिनका कोई मेल नहीं...'

'आह, इतना बुरा तो न मानिए, प्योत्र पेत्रोविच,' दूनिया ने भावुकता के साथ उनकी बात काटते हुए कहा। 'आप तो वैसा ही समझदार और उदार व्यक्ति का व्यवहार कीजिए जैसाकि मैं आपको समझती रही और समझती रहना चाहती हूँ। मैंने आपको जबान दी है, मैं आपकी मँगेतर हूँ। इस बारे में मुझ पर भरोसा कीजिए और मेरी बात मानिए; मैं किसी का पक्ष लिए बिना ही कोई फैसला करूँगी। इस तरह इन्साफ का काम अपने सर लेने पर शायद मेरे भाई को भी उतना ही ताज्जुब है जितना आपको है। आपका खत मिलने के बाद जब मैंने उनसे हमारी आज की मुलाकात के दौरान मौजूद रहने को कहा, तब मैंने उन्हें यह नहीं बताया था कि मैं करना क्या चाहती हूँ। यह समझ लीजिए कि अगर आप दोनों के बीच कोई समझौता न हुआ तो मुझे आप दो में से एक को चुनना होगा - या तो आपको या उनको। आपके सिलसिले में बात यही है और उनके सिलसिले में भी। मैं अपनी पसंद में कोई गलती नहीं करना चाहती, और मुझे करनी भी नहीं चाहिए। आपकी खातिर मुझे अपने भाई से नाता तोड़ना पड़ेगा और भाई की खातिर आपसे तोड़ना पड़ेगा। इस वक्त मैं पक्के यकीन के साथ जानना चाहती हूँ कि वे मेरे भाई हैं भी या नहीं। इसी तरह मैं आपके सिलसिले में भी जानना चाहूँगी कि क्या आप मुझे प्यार करते हैं, क्या मेरी इज्जत करते हैं और क्या आप मेरे लिए सही शौहर हैं भी कि नहीं।'

'अव्दोत्या रोमानोव्ना,' लूजिन ने झुँझला कर कहा, 'जो कुछ कहा आपने वह मेरे लिए बेहद मानी रखता है; और आपके सिलसिले में मेरी जो हैसियत है उसे देखें तो आपकी बातें अपमानजनक भी हैं। यह बात तो जाने दीजिए कि आपने अजीब और अपमानजनक ढंग से मुझे और एक बदतमीज नौजवान को एक बराबर ला खड़ा किया है, पर आपने यह भी तो माना है कि हो सकता है आपने मुझसे जो जबान दी है उससे आप पीछे हट जाएँ। आपका कहना है 'आप या वह', और आपने इस तरह साबित कर दिया है कि आपकी नजरों में मेरी कितनी कम हैसियत है। ...हम दोनों के बीच जो रिश्ता है ...जो करार है उसे देखते हुए मैं कभी इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता।'

'क्या!' दूनिया भड़क कर बोली। 'आपके हित को मैंने उन तमाम चीजों के बराबर रखा है जो मेरी जिंदगी में अब तक सबसे अनमोल रही हैं, जिनसे मेरी पूरी जिंदगी बनी है, और आप बुरा माने जा रहे हैं कि मैंने आपको बहुत कम हैसियत दी है!'

रस्कोलनिकोव व्यंग्य से मुस्कराया और एक शब्द भी न बोला। रजुमीखिन भी अपनी जगह कसमसाया। लेकिन प्योत्र पेत्रोविच ने इसको स्वीकार नहीं किया। उलटे हर शब्द पर वह और भी अकड़ता गया और उसकी चिड़चिड़ाहट बढ़ती गई, गोया उसे इसमें मजा आने लगा हो।

'आपके दिल में अपने होनेवाले जीवनसाथी, अपने शौहर के लिए अपने भाई से ज्यादा प्यार होना चाहिए,' उसने उपदेश के लहजे में जवाब दिया, 'और बहरहाल मैं उसके बराबर रखे जाने को तैयार नहीं हूँ... मैंने तो काफी जोर दे कर कहा था कि आपके भाई के सामने मैं खुल कर बातें नहीं करूँगा, लेकिन आपकी सम्मानित माताश्री से अब मैं एक महत्वपूर्ण बात के बारे में सफाई जरूर चाहता हूँ, जिसका मेरी इज्जत से गहरा संबंध है। आपके बेटे ने,' वह पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना की ओर घूमा, 'कल श्री राजसूदकिन के सामने (या... यही नाम है न आपका माफ कीजिए, मैं आपका कुलनाम भूल गया),' वह शिष्टता से रजुमीखिन की ओर झुका, 'मेरी एक ऐसी राय को जो मैंने कॉफी पीते वक्त निजी बातचीत के दौरान आपके सामने जाहिर की थी, गलत ढंग से पेश करके मेरा अपमान किया। मेरा मतलब अपनी इस राय से है कि जिसने मुसीबत के दिन देखे हों, ऐसी एक गरीब लड़की के साथ शादी करना, साथ जिंदगी बिताने के मकसद से उस लड़की से शादी करने के मुकाबले बेहतर होता है जिसने ऐश-आराम की जिंदगी बसर की हो, क्योंकि नैतिक चालचलन के लिए यही ज्यादा फायदेमंद होता है। आपके बेटे ने जान-बूझ कर मेरे शब्दों को जरूरत से ज्यादा खींचतान कर पेश किया, उन्हें हास्यजनक बना दिया, मुझ पर बुरी नीयत रखने का इल्जाम लगाया और जहाँ तक मैं समझ सका हूँ, उसके लिए उन्होंने उस खत का हवाला दिया जो आपने उन्हें लिखा था। मैं अपने को सुखी समझूँगा, पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना, अगर आप मुझे यकीन दिला दें कि मैंने जो नतीजा निकाला है वह गलत है। आप बराय मेहरबानी इस तरह मेरी तसल्ली करा दें। मेहरबानी करके मुझे यह बताइए कि आपने रोदिओन रोमानोविच के नाम अपने खत में मेरी बात को किन शब्दों में दोहराया था।'

'मुझे याद नहीं,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना अटक-अटक कर बोलीं। 'मैंने उन्हें उसी तरह दोहराया था जिस तरह उन्हें समझा था। मुझे मालूम नहीं कि रोद्या ने आपके सामने उन्हें किस तरह पेश किया, हो सकता है कि उसने बात को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया हो।'

'आपकी शह के बिना वे उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर पेश तो नहीं कर सकते थे।'

'प्योत्र पेत्रोविच,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने गरिमा के साथ ऐलान किया, 'हम लोगों की यहाँ मौजूदगी ही इस बात का सबूत है कि दूनिया ने और मैंने आपकी बात का बुरा नहीं माना था।'

'खूब कहा, माँ,' दूनिया ने बात की ताईद की।

'फिर तो लगता है कि इसमें भी दोष मेरा ही है!' लूजिन बुरा मान कर बोला।

'आप रोदिओन पर इल्जाम रखते चले जा रहे हैं प्योत्र पेत्रोविच, लेकिन हाल ही में आपने खुद उसके बारे में एक ऐसी बात लिखी जो झूठ थी,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने आगे कहा। उनकी हिम्मत बढ़ गई थी।

'मुझे याद नहीं कि मैंने कोई झूठ बात लिखी हो।'

'आपने लिखा था,' रस्कोलनिकोव ने लूजिन की ओर घूमे बिना तीखे स्वर में कहा, 'कि कल मैंने वह रकम गाड़ी से कुचल कर मरे उस आदमी की विधवा को नहीं दी, जो कि सच बात थी, बल्कि उसकी बेटी को (जिसे मैंने कल से पहले कभी देखा भी नहीं था) दी थी। आपने यह बात मेरे और मेरे परिवार के बीच झगड़ा पैदा करने के लिए लिखी थी और इस गरज से आपने एक ऐसी लड़की के चालचलन के बारे में कुछ बेहूदा बातें भी जोड़ दीं, जिसे आप जानते तक नहीं। यह सब कमीनेपन से किसी पर कीचड़ उछालना है।'

'माफ कीजिएगा, जनाब,' लूजिन ने क्रोध से काँपते हुए कहा। 'मैंने अपने खत में आपकी खूबियों और आपके व्यवहार की चर्चा सिर्फ इसलिए की थी कि आपकी बहन और आपकी माँ ने पूछा था कि मैंने आपको कैसा पाया और आप मुझे कैसे लगे। खैर, आपने मेरे खत की तरफ इशारा किया है तो उसके सिलसिले में बराय मेहरबानी एक शब्द भी ऐसा बता दें जो झूठ हो। मतलब यह कि यह साबित कर दीजिए कि आपने अपना पैसा फेंका नहीं है, और यह कि वह परिवार कितना ही मुसीबत का मारा क्यों न हो, उसमें निकम्मे और बेकार लोग नहीं हैं।'

'मेरी राय में, अपनी तमाम खूबियों के बावजूद आप उस अभागी लड़की की कानी उँगली के बराबर भी नहीं हैं जिस पर आप कीचड़ उछाल रहे हैं।'

'क्या आप यहाँ तक जाने को तैयार है कि उसे अपनी माँ और बहन के साथ मिलने-जुलने दें?'

'आप अगर जानना ही चाहते हैं तो मैं ऐसा कर भी चुका। आज उसे मैंने माँ और दूनिया के साथ बिठाया भी था।'

'रोद्या!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना की चीख निकल गई। दूनिया का चेहरा लाल हो गया, रजुमीखिन की त्योरियों पर बल पड़ गए। लूजिन दंभ भरे व्यंग्य से मुस्कराया।

'देखना चाहें तो खुद देख लीजिए, अव्दोत्या रोमानोव्ना,' उसने कहा, 'कि क्या हम लोगों के बीच कोई समझौता मुमकिन है? मैं उम्मीद करता हूँ कि यह मामला अब साफ और हमेशा के लिए तय हो गया। मैं अब चलूँगा ताकि मेरी वजह से परिवार के आपस में मिल बैठने और निजी बातें करने की खुशियों में बाधा न पड़े।' वह कुर्सी से उठा और अपना हैट उठा लिया। 'लेकिन मैं चलते-चलते इतनी दरख्वास्त करूँगा कि आइंदा मुझे इस तरह की मुलाकातों से और कहना चाहिए कि इस तरह के झंझटों से दूर रखा जाए। इस सिलसिले में, मोहतरमा पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना, मैं आपसे खास तौर पर प्रार्थना करता हूँ, इसलिए तो और भी कि मैंने वह खत आपको लिखा था, किसी और को नहीं।'

यह बात पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना को कुछ चुभ गई।

'प्योत्र पेत्रोविच, आप शायद यह समझ रहे हैं कि हम सब पूरी तरह आपके हुक्म के पाबंद हैं। दूनिया आपको बता चुकी है कि जो कुछ आप चाहते थे, उसे पूरा क्यों नहीं किया गया। ऐसा करने के पीछे उसकी नीयत अच्छी ही थी। सच तो यह है कि आपने मुझे इस तरह खत लिखा था गोया आप मुझे हुक्म दे रहे हों। क्या हम लोग आपकी हर इच्छा को हुक्म समझा करें बल्कि मैं आपको यह बता दूँ कि आपको अब हमारे साथ ज्यादा नर्मी से पेश आना चाहिए और हमारा ज्यादा खयाल रखना चाहिए, क्योंकि हम अपना सब कुछ छोड़ कर आपके भरोसे ही यहाँ आए हैं, और इसलिए एक तरह से आपके हाथों में हैं।'

'यह बात पूरी तरह सही नहीं है पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना, खास तौर पर इस वक्त, जबकि आपको मार्फा पेत्रोव्ना की तीन हजार रूबलवाली वसीयत की खबर मिल चुकी है। मेरी तरफ आपके नए रवैए को देखते हुए तो यह खबर आपके लिए बहुत मुनासिब ही मालूम होती है,' उसने व्यंग्य से कहा।

'आपकी इस बात से हम तो यही नतीजा निकाल सकते हैं कि आप हमें लाचार देखने की उम्मीद लगाए बैठे थे,' दूनिया ने चिढ़ कर कहा।

'लेकिन अब तो मैं यह उम्मीद भी नहीं लगा सकता। खास कर मैं तो यह भी नहीं चाहता कि अर्कादी इवानोविच स्विद्रिगाइलोव ने आपके भाई के सामने जो खुफिया सुझाव रखे हैं, उन पर आप लोगों की आपसी बातचीत में कोई बाधा डालूँ। मैं तो यह भी देख रहा हूँ कि उनमें आपको बहुत गहरी और शायद बहुत सुखदायी दिलचस्पी है।'

'हे भगवान!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना चीख उठीं।

रजुमीखिन अपनी जगह पर शांत बैठा नहीं रह सका।

'अब भी तुम शर्मिंदा नहीं हुई, दूनिया?' रस्कोलनिकोव ने पूछा।

'मैं शर्मिंदा हूँ, रोद्या,' दूनिया बोली। 'प्योत्र पेत्रोविच,' वह गुस्से से लाल हो कर उसकी ओर घूमी, 'आप यहाँ से जाइए!'

साफ था कि प्योत्र पेत्रोविच को ऐसी नौबत आने की उम्मीद नहीं थी। उसे अपने आप पर, अपनी ताकत पर और अपने शिकारों की लाचारी पर बहुत भरोसा था। अभी भी उसे यकीन नहीं आ रहा था। उसका चेहरा पीला पड़ गया और होठ काँपने लगे।

'अव्दोत्या रोमानोव्ना, अगर मैं इस तरह की दुतकार के बाद इस दरवाजे से बाहर गया तो यकीन जानिए कि फिर लौट कर नहीं आऊँगा। सोच लीजिए; मेरी बात अटल है।'

'आपकी यह मजाल!' दूनिया अपनी कुर्सी से उछल कर चीखी। 'मैं चाहती भी नहीं कि आप लौट कर आएँ।'

'क्या! तो यह बात है!' लूजिन भी चीखा। अंतिम पल तक यूँ उसे संबंध टूटने का विश्वास नहीं हो रहा था, और वह बौखला उठा था। 'तो यह बात है! लेकिन आप क्या यह बात जानती हैं, अव्दोत्या रोमानोव्ना, कि इसके खिलाफ मेरी कार्रवाई एकदम मुनासिब होगी?'

'आपको उसके साथ इस तरह बात करने का हक क्या है?' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना तैश में बोलीं। 'और आप शिकायत किस बारे में करेंगे? आपका अधिकार क्या है? मैं क्या अपनी दूनिया को आप जैसे के हवाले करूँगी? जाइए, हम लोगों की नजरों से दूर हो जाइए! भूल हमारी ही थी कि हम एक गलत कदम उठाने को तैयार हो गए थे, और सबसे बढ़ कर तो मैं...'

'फिर भी पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना,' लूजिन भड़क कर गरजा, 'आपने जबान दी थी, उसकी वजह से मुझे कुछ खर्च भी उठाने पड़े...' अब आप मुकर रही हैं, और...'

यह आखिरी दावा प्योत्र पेत्रोविच की असलियत को इतनी अच्छी तरह जाहिर करता था कि रस्कोलनिकोव, जो गुस्से के मारे लाल और गुस्से को रोकने की कोशिश में पीला हो रहा था, अपनी हँसी न रोक सका। लेकिन पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना का सब्र जवाब दे चुका था।

'खर्च किस खर्च की बात आप कर रहे हैं हमारा संदूक भिजवाने की बात कर रहे हैं लेकिन गार्ड ने उसे तो आपसे एक पैसा लिए बिना ही पहुँचा दिया था। यह भी अच्छी कही, जबान दी थी! आपने समझा क्या है, प्योत्र पेत्रोविच उलटे हमारे हाथ-पाँव तो आपने बाँध रखे थे।'

'रहने दो माँ, अब और नहीं,' अव्दोत्या रोमानोव्ना ने विनती की। 'प्योत्र पेत्रोविच, मेहरबानी करके यहाँ से जाइए।'

'जा रहा हूँ, लेकिन एक आखिरी बात,' उसने जामे से बाहर हो कर कहा। 'आपकी माँ यह बात शायद एकदम भूल गईं कि मैंने आपको, एक तरह से, उस वक्त अपनाने का फैसला किया था, जब आपकी बदनामी सारे इलाके में फैली हुई थी। आपकी खातिर लोगों की राय को अनदेखा न करके और आपकी इज्जतदारी साबित करके यह उम्मीद मैं जरूर रखता था कि बदले में आप लोग मेरे साथ भी वैसा ही सलूक करेंगी, और यह भी कि आप मेरा एहसान मानेंगी। लेकिन मेरी आँखें खुल चुकी हैं! मैं खुद देख रहा हूँ कि लोगों की राय की परवाह न करके मैंने अंधों की तरह ही व्यवहार किया था...'

'क्या यह शख्स समझता है कि ऐसी गुस्ताखी के बाद भी बच निकलेगा,' रजुमीखिन चिल्ला कर उससे हिसाब चुकाने के लिए उछला।

'आप कमीने और हरामी आदमी हैं!' दूनिया बोली।

'खबरदार, जो और कुछ कहा! खबरदार, जो एक इशारा भी किया!' रस्कोलनिकोव रजुमीखिन को रोकते हुए चीखा। फिर वह लूजिन के पास जा कर शांत और स्पष्ट स्वर में बोला, 'बराय मेहरबानी बाहर चले जाइए! अब अगर एक लफ्ज भी आपने निकाला तो...'

प्योत्र पेत्रोविच कुछ पल तक उसे घूरता रहा। चेहरा पीला पड़ गया था और गुस्से के मारे फड़क रहा था। फिर वह मुड़ा और बाहर निकल गया। उसके दिल में उस वक्त रस्कोलनिकोव के खिलाफ जितनी नफरत और बदला लेने की जिस कदर गहरी भावना थी, उतनी शायद ही कभी किसी ने महसूस की होगी। वह हर बात के लिए उसको, और सिर्फ उसको, गुनाहगार समझ रहा था। मजे की बात यह है कि सीढ़ियाँ उतरते वक्त भी वह यही सोच रहा था कि शायद उसकी मुराद अब भी पूरी हो सके और यह कि जहाँ तक उन दो महिलाओं का सवाल था, मुमकिन था कि सारा सिलसिला अब भी एकदम आसानी से सँभल जाए।

अपराध और दंड : (अध्याय 4-भाग 3)

असल में बात यह थी कि आखिरी पल तक उसने सोचा तक नहीं था कि यह सिलसिला इस तरह से खत्म होगा। उसने बेहद अक्खड़ रवैया अपनाए रहा क्योंकि उसे गुमान भी न था कि वे दोनों कंगाल, लाचार औरतें उसके चंगुल से निकल भी सकती हैं। अहंकार और अपनी पीठ आप थपथपाने वाले आत्मविश्वास के सबब उसका यह विश्वास और भी पक्का हो गया था। प्योत्र पेत्रोविच बहुत मामूली हैसियत से ऊपर चढ़ कर यहाँ तक पहुँचा था, बीमारी की हद तक आत्मप्रशंसा का मारा हुआ था, अपनी बुद्धि और क्षमताओं पर बेहद नाज करता था, और अकेले में कभी-कभी आईने के सामने खड़े हो कर अपने रंग-रूप पर इतराया भी करता था। लेकिन उसे जिस चीज से सबसे बढ़ कर प्यार था, जिसे वह सबसे मूल्यवान समझता था, वह थी वह दौलत जो उसने भारी मेहनत से और तरह-तरह की तिकड़म से जमा की थी। इसी दौलत के बल पर वह उन सबके बराबर पहुँच सका था, जो कभी उससे ऊँचे समझे जाते थे।

जब उसने जल-भुन कर दूनिया से कहा था कि उसके बारे में तरह-तरह की बुरी बातें सुनने के बावजूद उसने उसे अपनाने का फैसला किया था, तो यह उसके दिल की बात थी और उसे सचमुच इस तरह की 'कमीनी कृतघ्नता' पर गुस्सा आ रहा था। फिर भी दूनिया के सामने शादी का प्रस्ताव रखते समय उसे इन अफवाहों के बेबुनियाद होने का पूरी तरह पता था। मार्फा पेत्रोव्ना खुलेआम इस बकवास का खंडन कर चुकी थीं। कस्बे के लोग तो इसे न जाने कब के भुला भी चुके थे और हमदर्दी के साथ दूनिया का पक्ष भी लेने लगे थे। यूँ वह इस बात से इनकार भी न करता कि ये बातें उसे तब भी मालूम थीं। इसके बावजूद वह दूनिया को ऊपर उठा कर अपने स्तर तक पहुँचाने के फैसले को बहुत बड़ी बहादुरी समझता था। दूनिया से इसकी चर्चा करके उसने इसी गुप्त भावना को व्यक्त किया था जिसे वह अपने मन में सँजोए हुए था और जिसे सराहना की दृष्टि से देखता था। फिर यह बात भी उसकी समझ से बाहर थी कि कोई इस बात की सराहना किए बिना रह भी कैसे सकता था। वह एक ऐसे परोपकारी व्यक्ति की भावना ले कर रस्कोलनिकोव से मिलने गया था, जिसे अपने नेक कामों का फल प्राप्त होनेवाला था और जो इस सिलसिले में खुशामद के प्यारे-प्यारे बोल सुनना चाहता था। सो अब सीढ़ियाँ उतरते समय वह यही सोचे जा रहा था कि उसे चोट पहुँचा कर और इस तरह ठुकरा कर उसके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया गया है।

रही दूनिया की बात तो उसके बिना उसका काम चल भी नहीं सकता था। उसे छोड़ देना उसके लिए नामुमकिन था। वह शादी के सुनहरे सपने कई वर्षों से देखता आ रहा था, लेकिन वह राह ही देखता रहा और पैसा बटोरता रहा। एकांत में आनंद ले कर वह अपनी कल्पना में एक ऐसी लड़की का चित्र बनाया करता था जो सच्चरित्र हो, गरीब हो (उसका गरीब होना जरूरी भी था), बहुत जवान, बहुत सुंदर, अच्छे घर की और पढ़ी-लिखी हो, बेहद दब्बू हो, बेहद मुसीबतें झेल चुकी हो और उसके सामने पूरी तरह झुकी हुई रहे, ऐसी लड़की जो जीवन-भर उसे अपना समझे, उसकी पूजा करे, उसकी और केवल उसकी सराहना करे। अपने काम से फुरसत मिलने पर वह इस लुभावने और रँगीले विषय के बारे में कैसे-कैसे दृश्यों की, कैसी-कैसी प्यार की रंगरलियों की कल्पना किया करता था! और अब तो बरसों का वह सुहाना सपना पूरा भी होनेवाला था। अव्दोत्या रोमानोव्ना की सुंदरता और शिक्षा ने उसे प्रभावित किया था; उसकी लाचारी देख कर उसके मुँह में पानी भर आया था; उसे पा कर तो जितने की उसने कल्पना की थी उससे ज्यादा ही उसे मिल गया था। वह ऐसी लड़की थी जिसमें स्वाभिमान था, चरित्र था, गुण थे, जिसकी शिक्षा और जिसके लालन-पालन का स्तर उसके मुकाबले ऊँचा था (यह बात वह महसूस करता था), और यह लड़की उसके एहसान की मारी जीवन-भर उसकी बाँदी बन कर रहेगी, उसके पाँव धो कर पिएगी, उसके बस में रहेगी! ...कुछ ही समय तो हुआ जब उसने बहुत सोच-विचार के बाद और भारी आशाएँ लगा कर अपने जीवन के ढर्रे में एक बड़ा परिवर्तन करने, अपने कार्यकलापों का दायरा बढ़ाने का फैसला किया था। उसे लग रहा था कि इस परिवर्तन के साथ समाज के ऊँचे वर्ग में पहुँचने की गहरी मनोकामना अब पूरा ही होनेवाली थी। ...सच तो यह है कि वह पीतर्सबर्ग में अपनी तकदीर आजमाने का फैसला किए हुए था। वह जानता था कि औरतें 'बहुत कुछ' हासिल करा सकती हैं। एक रूपवती, सच्चरित्र और सुसभ्य स्त्री का आकर्षण उसके मार्ग को सुगम बना सकता था, लोगों को उसकी ओर खींच कर लाने का चमत्कार कर सकता था, उसके चारों ओर एक नई आभा पैदा कर सकता था। पर अब यही सपना तो बिखर कर चूर-चूर हो चुका था! इस अप्रत्याशित और भयानक संबंध-विच्छेद से गोया उस पर बिजली टूट पड़ी थी। यह एक बहुत ही भयानक मजाक था, एक बेतुकी बात थी! उसने तो बस जरा-सा अकड़ने की कोशिश की थी, उसे अपनी पूरी बात कहने का मौका भी नहीं मिला था, उसने बस एक छोटा-सा मजाक किया था, एक प्रवाह में बह गया था - और उसका इतना गंभीर परिणाम हुआ! फिर यह बात भी सच है कि वह अपने ढंग से दूनिया से प्यार भी करता था; अपने सपनों में वह उसे पा भी चुका था - और अचानक! ...नहीं! अगले दिन, अगले ही दिन, उसे सब कुछ ठीक कर लेना होगा, सारी गुत्थियाँ सुलझा लेनी होंगी, हर बात तय कर लेनी होगी। सबसे बड़ी बात यह कि उसे उस गुस्ताख लौंडे को कुचल देना होगा, जो इन सब बातों की जड़ था। उसे बरबस रजुमीखिन का ध्यान भी आया और उसके बारे में सोचते ही उसे जाने क्यों बेचैनी होने लगी। लेकिन इस बारे में जल्दी ही अपने दिल को तसल्ली दे ली; भला उस तरह के आदमी को उसकी बराबरी का कैसे माना जा सकता था! लेकिन जिस आदमी से उसे सचमुच डर लग रहा था, वह था स्विद्रिगाइलोव... मतलब यह कि उसे अभी बहुत-सी चिंताएँ करनी थीं...

'नहीं, दूसरों से ज्यादा मेरा दोष है!' दूनिया ने माँ के गले से लग कर उसे प्यार करते हुए कहा। 'मैं उसके पैसे के लालच में खो गई थी लेकिन भैया, मैं अपनी इज्जत की कसम खा कर कहती हूँ, मुझे पता भी नहीं था कि वह इतना नीच शख्स है। उसकी असलियत को अगर मैंने पहले ही पहचान लिया होता तो मैं यूँ लालच में न आती! भैया, मुझे इल्जाम न देना!'

'भगवान ने बचा लिया! हमें भगवान ने बचा लिया!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना बुदबुदाईं, लेकिन उन्हें पूरा होश नहीं था। लग रहा था कि क्या हो गया है, इसे वह अभी तक ठीक से समझ भी नहीं पाई थीं।

खुशी तो सभी को मिली थी और पाँच मिनट में सब हँसने भी लगे थे। यह सोच कर कि क्या हो गया था, बीच-बीच में दूनिया सफेद पड़ जाती थी और उसके माथे पर बल आ जाते थे। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना को इसी बात पर ताज्जुब था कि वह खुद भी खुश थीं : अभी सबेरे तक वे यही समझ रही थीं कि लूजिन से रिश्ता टूटना बहुत बड़ी बदनसीबी होगी। रजुमीखिन भी खुश हो रहा था। उसे अभी तक अपनी खुशी जाहिर करने की हिम्मत नहीं हो रही थी, लेकिन इस खुशी के मारे वह फूला नहीं समा रहा था, मानो उसके दिल पर से कोई भारी पत्थर हट गया हो। उसे अब अपना जीवन उन लोगों को अर्पित करने का, उनकी सेवा करने का अधिकार था... कौन जाने अब क्या-क्या हो सकता था! लेकिन वह अभी आगे की संभावनाओं के बारे में सोचते भी डर रहा था और उसे अपनी कल्पना के घोड़ों को ढील देने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। अकेला रस्कोलनिकोव अभी तक अपनी जगह बैठा हुआ था : उदास भी और उदासीन भी। लूजिन से नाता तोड़ने पर सबसे ज्यादा जोर तो वही देता आ रहा था, लेकिन अब लग रहा था कि जो कुछ हुआ उसमें सबसे कम दिलचस्पी उसी को थी। दूनिया को रह-रह कर यह खयाल आता था कि वह अभी तक उससे नाराज है। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना उसे सहमी हुई देख रही थीं।

'स्विद्रिगाइलोव ने क्या कहा था?' दूनिया ने उसकी ओर बढ़ कर पूछा।

'अरे हाँ, बताओ तो सही!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना उत्सुकता से बोलीं।

रस्कोलनिकोव ने सर उठा कर ऊपर देखा।

'वह तुम्हें दस हजार रूबल भेंट करने पर जोर दे रहा था और मेरी मौजूदगी में एक बार तुमसे मिलना चाहता है।'

'उससे मिलना! किसी हालत में नहीं!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने चीख कर कहा। 'और उसे पैसे देने की बात कहने की हिम्मत कैसे पड़ी!'

रस्कोलनिकोव ने स्विद्रिगाइलोव के साथ अपनी बातचीत को (कुछ रूखे ढंग से) दोहराया। पर उसने मार्फा पेत्रोवना के भूत के आने की बात नहीं कही क्योंकि वह फालतू बातों में नहीं जाना चाहता था क्योंकि जब तक एकदम जरूरी न हो, उसका कोई बात भी कहने को जी नहीं चाह रहा था।

'तुमने जवाब क्या दिया?' दूनिया ने पूछा।

'पहले तो मैंने कहा कि मैं उसका कोई पैगाम ले कर नहीं जा सकता। तब उसने कहा कि मेरी मदद के बिना भी वह तुमसे मुलाकात के लिए जो कुछ कर सकेगा, कर गुजरेगा। उसने यकीन दिलाया कि तुम्हारे लिए उसके दिल में उठा तूफान एक आई-गई बात थी, और तुमसे अब उसे कोई लगाव नहीं रह गया है। वह नहीं चाहता कि तुम लूजिन से शादी करो... उसकी बातचीत कुछ उलझी-सी थी।'

'तुमने उसकी बातों के बारे में क्या राय बनाई है, रोद्या वह तुम्हें कैसा आदमी लगा?'

'मैं साफ बात बताऊँ, मैं बातों को ठीक से समझ भी नहीं सका। वह तुम्हें दस हजार रूबल देने की बात कहता है और दूसरी तरफ यह भी कहता है कि वह बहुत मालदार नहीं है। कभी कहता है कि वह कहीं चला जाएगा और दस मिनट बाद ही भूल जाता है कि ऐसा उसने कहा था। कभी कहता है कि शादी करनेवाला है और उसने लड़की तय कर ली है। ...इसमें कोई शक नहीं कि उसका कोई मंसूबा है, और वह शायद बुरा ही है। लेकिन अगर तुम्हारे बारे में उसका कोई मंसूबा होता तो वह उसे इतने भोंडेपन से क्यों कहता... यह बात कुछ अजीब लगती है। जाहिर है, मैंने तुम्हारी तरफ से यह रकम लेने से इनकार कर दिया, साफ और पक्का इनकार कर दिया। मुझे वह कुल मिला कर कुछ अजीब-सा लगा... कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि वह पागल है। लेकिन हो सकता है कि मेरा खयाल गलत हो; या हो सकता है कि वह महज कोई स्वाँग रच रहा हो। लगता है मार्फा पेत्रोव्ना के मरने का उसके दिल पर गहरा असर हुआ है।'

'भगवान उनकी आत्मा को शांति दें!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने आह भर कर कहा। 'मैं उनके लिए हमेशा प्रार्थना करूँगी! दूनिया, इस तीन हजार रूबल के बिना तो हम लोग कहीं के न रहते! यह तो जैसे भगवान ने छप्पर फाड़ा है! रोद्या, आज सबेरे हम लोगों के पास सिर्फ तीन रूबल थे और दुनेच्का और मैं घड़ी गिरवी रखने की बात सोच रहे थे, ताकि जब तक वह आदमी खुद अपनी तरफ से मदद करने की बात न करे, तब तक हमें उससे माँगना न पड़े।'

स्विद्रिगाइलोव के रकम देने की पेशकश पर दूनिया भौंचक रह गई और खड़ी-खड़ी कुछ सोचने लगी थी।

'उसके दिमाग में कोई भयानक मंसूबा है,' उसने बुदबुदा कर अपने आपसे कहा और काँप-सी उठी।

रस्कोलनिकोव का ध्यान उसके इस घोर डर की ओर गया।

'मैं समझता हूँ, मुझे अभी कई बार उससे मिलना पड़ेगा,' उसने दूनिया से कहा।

'उस पर तो हम नजर रखेंगे! मैं उसका पता जरूर खोज लूँगा!' रजुमीखिन जोश में चिल्लाया। 'मैं उसे आँखों से ओझल तक नहीं होने दूँगा। रोद्या ने मुझे इसकी इजाजत दे दी है। उसने अभी खुद कहा था : मेरी बहन का ध्यान रखना। मुझे क्या आपकी भी इजाजत है, अव्दोत्या रोमानोव्ना?'

दूनिया ने मुस्करा कर अपना हाथ बढ़ाया लेकिन उसके चेहरे पर चिंता की छाप बनी रही। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना सहमी हुई उसे देखती रहीं, लेकिन तीन हजार रूबल की बात से उन्हें जो तसल्ली बँधी थी, वह साफ दिखाई दे रही थी।

कोई पंद्रह मिनट बाद वे सब दिल खोल कर हँस-बोल रहे थे। रस्कोलनिकोव भी कुछ देर तक ध्यान से सब कुछ सुनता रहा पर कुछ बोला नहीं। बोलने का फर्ज रजुमीखिन अदा किए जा रहा था।

'आखिर क्यों, आप लोग यहाँ से जाएँगी क्यों?' वह खुशी के जोश में बोलता रहा। 'और उस छोटे से कस्बे में जा कर करेंगी क्या सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहाँ आप सब एक साथ हैं और आपको एक-दूसरे की जरूरत है - आप लोगों को एक-दूसरे की बहुत ही जरूरत है, मेरी यह बात गाँठ में बाँधिए। बहरहाल, कुछ वक्त के लिए तो है ही... मुझे अपना साथी, अपना हमराज बना लीजिए, और मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि हम लोग एक शानदार योजना बनाएँगे। सुनिए! मैं आपको सारी बातें विस्तार से समझाता हूँ, सारी योजना! यह बात आज ही सुबह मेरे दिमाग में अचानक आई, जब कि यह सब हुआ भी नहीं था। ...मैं बतलाता हूँ : मेरे एक चाचा हैं, मैं उन्हें आप लोगों से मिलवाऊँगा। (बहुत ही मेल-जोल से रहनेवाले, इज्जतदार बूढ़े आदमी हैं।) मेरे इन चाचाजान के पास एक हजार रूबल की पूँजी है, पर वह अपनी पेन्शन पर गुजर कर लेते हैं सो उन्हें उस पैसे की कोई जरूरत नहीं है। पिछले दो साल से वह मेरी जान खा रहे हैं कि मैं यह रकम उनसे उधार ले लूँ और उन्हें छह फीसदी सूद दे दिया करूँ। मुझे पता है इसका मतलब क्या है; वह बस मेरी मदद करना चाहते हैं। पिछले साल तक मुझे इस रकम की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन इस साल मैंने फैसला किया है कि उनके आते ही यह रकम उनसे ले लूँगा। अब अगर आप लोग अपने तीन हजार में से एक हजार मुझे उधार दे दीजिए तो हमारे पास काम शुरू करने के लिए काफी पूँजी हो जाएगी। इस तरह हम लोग एक साझेदारी कायम करेंगे... और हम लोग कारोबार क्या करेंगे?'

इसके बाद रजुमीखिन अपनी योजना समझाने लगा। उसने विस्तार से बताया कि हमारे जितने प्रकाशक और किताबफरोश हैं, उन्हें किताबों के बारे में बहुत ही कम जानकारी है और इसीलिए वे काफी बुरे प्रकाशक हैं जबकि आमतौर पर कोई भी अच्छा प्रकाशन बिक जाता है, उसमें मुनाफा होता है, कभी-कभी तो काफी होता है। रजुमीखिन तो बहुत दिनों में प्रकाशक बनने का सपना देख रहा था। क्योंकि दो साल तक वह प्रकाशकों के यहाँ काम कर चुका था और वह तीन यूरोपीय भाषाएँ अच्छी तरह जानता है, हालाँकि अभी छह दिन पहले उसने रस्कोलनिकोव को बताया था कि वह जर्मन भाषा में 'कमजोर' है और चाहता था कि रस्कालेनिकोव उससे अनुवाद का आधा काम और उसका आधा मेहनताना ले ले। उस वक्त उसने झूठ बोला था, और रस्कोलनिकोव को पता था कि वह झूठ बोल रहा है।

'मैं पूछता हूँ हम यह मौका चूकें क्यों, आखिर क्यों, जब सफलता का सबसे बड़ा साधन हमारे पास है - खुद अपना पैसा!' रजुमीखिन जोश में आ कर बोला। 'जाहिर है कि काम तो भारी करना पड़ेगा, लेकिन काम हम सब लोग करेंगे... आप, अव्दोत्या रोमानोव्ना, मैं और रोदिओन... आजकल कुछ किताबों पर अच्छा मुनाफा मिल जाता है! फिर इस कारोबार में सबसे अच्छी बात यह है कि हमें मालूम होगा कि किस किताब के अनुवाद की जरूरत है। हम लोग सारे काम एक साथ करेंगे, अनुवाद करेंगे, किताबें छापेंगे, बहुत कुछ सीखेंगे। इसमें मैं काम का आदमी साबित हो सकता हूँ क्योंकि मुझे इसका अनुभव है। मैं लगभग दो साल से प्रकाशकों के यहाँ चक्कर काट रहा हूँ, और मुझे उनके कारोबार की हर बात मालूम हो चुकी है। मेरी मानिए! वे कोई परोपकारी या संत नहीं होते, तो हम यह मौका हाथ से क्यों जाने दें! अरे, दो-तीन किताबें तो मैं ऐसी जानता हूँ - यूँ मैं किसी को बताता नहीं कि उनका अनुवाद छापने की बात सोचने के ही सौ-सौ रूबल मिल सकते हैं। अरे, उनमें से एक तो ऐसी है कि मैं उसके लिए पाँच सौ भी लेने को तैयार नहीं हूँगा। एक बात आपको मालूम है अगर किसी प्रकाशक से मैं कहूँ तो मेरा दावा है कि वह हिचकिचाएगा - ऐसे ही काठ के उल्लू होते हैं ये लोग। जहाँ तक कारोबार का, छपाई-कागज-बिक्री का सवाल है, मुझ पर भरोसा रखिए, मैं यह सारी बातें अच्छी तरह जानता हूँ। हम लोग छोटे पैमाने पर शुरू करेंगे और धीरे-धीरे काम बढ़ाएँगे। पेट भरने को तो बहरहाल मिल जाएगा और हमारी पूँजी वापस आ जाएगी।'

दूनिया की आँखें चमक उठीं। बोली, 'आप जो कुछ कह रहे हैं, द्मित्री प्रोकोफिच, मुझे पसंद है।'

'मैं तो इसके बारे में कुछ जानती भी नहीं,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना बीच में बोलीं, 'हो सकता है कि खयाल ठीक हो, लेकिन फिर... भगवान ही जानता है। नया काम है, पहले कभी किया तो है नहीं। जाहिर है, हम लोगों को यहाँ कुछ अरसा तो रहना ही पड़ेगा...' उन्होंने रोद्या की ओर देखा।

'तुम्हारा खयाल क्या है, भैया?' दूनिया ने पूछा।

'मैं समझता हूँ खयाल इसका बहुत अच्छा है,' उसने जवाब दिया। जाहिर है, अभी से प्रकाशनगृह के सपने देखना जल्दबाजी होगी, लेकिन पाँच-छह किताबें तो हम छाप ही सकते हैं और अपनी कामयाबी सफलता की पक्की बुनियाद डाल सकते हैं। एक किताब तो मैं भी जानता हूँ जो यकीनन बहुत बिकेगी। जहाँ तक इंतजाम का सवाल है, उस बारे में भी मुझे कोई शक नहीं। यह कारोबार को समझता है... लेकिन इसकी बातें तो हम बाद में भी कर सकते हैं...'

'वाह!' रजुमीखिन खुश हो कर चिल्लाया। 'अच्छा तो अब आगे सुनिए, इसी घर में एक फ्लैट है, इसी मालिक का। वह एक अलग और खास तरह का फ्लैट है जिसका दूसरे किराए के कमरों से कोई वास्ता नहीं। जरूरत का सारा फर्नीचर उसमें मौजूद है, किराया मामूली है और कमरे तीन हैं। आप लोग कुछ दिनों के लिए उसे ले ही लें। मैं कल ही आपकी घड़ी गिरवी रख कर पैसे ला दूँगा, और सारा इंतजाम कर लिया जाएगा। आप तीनों साथ रह सकते हैं, और रोद्या आपके साथ रहेगा... लेकिन, रोद्या, तुम चले कहाँ?'

'रोद्या, तुम अभी जा रहे हो?' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने ताज्जुब से पूछा।

'ऐसे वक्त?' रजुमीखिन भी भड़क गया।

दूनिया अपने भाई को अविश्वास और आश्चर्य से देखती रही। वह अपनी टोपी हाथ में लिए खड़ा था और उन लोगों से विदा लेने वाला ही था।

'कोई सुनेगा तो यही सोचेगा कि तुम लोग मुझे दफन करने जा रहे हो या मुझसे हमेशा के लिए विदा हो रहे हो,' उसने जरा अजीब ढंग से कहा।

उसने मुस्कराने की कोशिश की लेकिन होठों पर मुस्कराहट न आ सकी।

'लेकिन सच कौन जाने, शायद यह हमारी आखिरी ही मुलाकात हो...' उसके मुँह से अचानक निकल गया।

दरअसल वह सोच भी यही रहा था, जो उसके मुँह से किसी तरह निकल गया।

'तुम्हें हुआ क्या है?' उसकी माँ दुखी हो कर कराह उठीं।

'कहाँ जा रहे हो, रोद्या?' दूनिया ने कुछ अजीब ढंग से पूछा।

'नहीं, मुझे जाना ही होगा,' उसने कुछ अस्पष्ट लहजे में उत्तर दिया, गोया जो कुछ वह कहना चाहता हो, उसे कहने से झिझक रहा हो। लेकिन उसके चेहरे पर, जिसका रंग एकदम सफेद पड़ गया था, एक दृढ़ संकल्प की छाया थी।

'मैं यह कहने के इरादे से आया था... मैं जब यहाँ आ रहा था... माँ, मैं तुम्हें और दूनिया, तुम्हें भी बताना चाहता था कि हमारे लिए अच्छा यही होगा कि हम कुछ वक्त के लिए अलग हो जाएँ। मैं बीमार हूँ; मन में शांति नहीं है। ...मैं बाद में आऊँगा, खुद आ जाऊँगा... जब मुमकिन होगा। तुम लोगों को मैं याद करता हूँ और मुझे तुम लोगों से प्यार है। ...मुझे छोड़ दो, मेरे हाल पर छोड़ दो। इसका फैसला मैं पहले ही कर चुका था... यह बात अपने मन में ठान चुका था। मेरा चाहे जो हाल हो, चाहे मैं तबाह हो जाऊँ या न होऊँ, मैं अकेले रहना चाहता हूँ। मुझे भूल जाओ। यही बेहतर होगा... मेरे बारे में पूछताछ करना भी नहीं। जब भी हो सकेगा, मैं खुद आऊँगा या ...तुम लोगों को बुलवा लूँगा। सब कुछ फिर शायद पहले जैसा हो जाए, लेकिन तुम लोगों को अगर मुझसे प्यार है तो मुझे भूल जाओ... वरना मुझे तुम लोगों से नफरत होने लगेगी, मैं यह बात महसूस कर रहा हूँ... तो मैं चला!'

'हे भगवान!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना चीख उठीं।

माँ और बहन दोनों ही बेहद सहमी हुई थीं। यही हाल रजुमीखिन का था।

'रोद्या, रोद्या, हमसे रूठ कर न जाओ! हम लोग पहले की तरह रहेंगे!' बेचारी माँ दुखी हो कर बोलीं।

वह धीरे-धीरे दरवाजे की ओर बढ़ा लेकिन वहाँ तक उसके पहुँचने से पहले ही दूनिया वहाँ जा पहुँची।

'माँ का क्या हाल कर रहे हो भैया?' उसने धीमे लहजे में कहा। उसकी आँखें गुस्से से चमक रही थीं। रस्कोलनिकोव ने घूरती आँखों से उसे देखा।

'कोई बात नहीं, मैं आऊँगा... आया करूँगा,' वह बहुत ही धीमे बुदबुदाया, गोया उसे होश न हो कि वह क्या कह रहा है। इतना कह कर वह कमरे के बाहर निकल गया।

'बेरहम और दुष्ट स्वार्थी इनसान!' दूनिया चीख उठी।

'वह पा...गल जरूर है, निर्दयी नहीं। आपको दिखाई नहीं देता कि वह आपे में नहीं है? आप अगर इतना भी नहीं समझ सकतीं तो आप ही निर्दयी हैं!...'

रजुमीखिन ने उसका हाथ जोर से पकड़ कर उसके कान के पास कहा।

'भयभीत माँ से उसने चिल्ला कर कहा, मैं अभी लौट कर आता हूँ,' और भाग कर कमरे से बाहर चला गया।

गलियारे के छोर पर रस्कोलनिकोव उसकी राह देख रहा था।

'जानता था मैं कि मेरे पीछे तुम भागे आओगे,' उसने कहा। 'लौट जाओ उनके पास-उनके ही पास रहो... उनके पास कल भी रहना और हमेशा... मैं... मैं शायद आऊँ... अगर आ सका तो... अलविदा!'

मिलाने के लिए हाथ बढ़ाए बिना ही वह चल पड़ा।

'लेकिन जा कहाँ रहे हो? कर क्या रहे हो तुम? हो क्या गया है? इस तरह काम कैसे चलेगा...' रजुमीखिन घोर निराशा से बुदबुदाया।

रस्कोलनिकोव एक बार फिर ठहर गया। 'हमेशा के लिए कहे देता हूँ, मुझसे किसी बात के बारे में कभी न पूछना। तुम्हें बताने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं... मिलने भी मत आना। शायद मैं ही यहाँ आऊँ... मुझे भले ही छोड़ दो, लेकिन इनका... साथ न छोड़ना। समझे मेरी बात...।'

गलियारे में अँधेरा था। वे दोनों एक लैंप के पास खड़े थे। लगभग एक मिनट तक दोनों एक-दूसरे को चुपचाप देखते रहे। रजुमीखिन को वह एक मिनट जिंदगी भर याद रहा। रस्कोलनिकोव की सुलगती हुई तीखी नजरें हर पल पैनी से पैनी होती जा रही थीं और उसकी आत्मा, उसकी चेतना में, पैठती जा रही थीं। अचानक रजुमीखिन चौंका। लगा, उन दोनों के बीच कोई विचित्र बात हुई है ...यूँ लगा कि दोनों के बीच कोई विचार, कोई इशारा, कुछ भयानक और विकराल अचानक गुजर गया था, जिसे दोनों ने अचानक समझ लिया था... रजुमीखिन पीला पड़ गया।

'अब तुम्हारी समझ में आया...' रस्कोलनिकोव ने कहा। उसका चेहरा दर्द के मारे टेढ़ा हो रहा था। 'जाओ, उनके ही पास वापस जाओ,' उसने अचानक कहा और तेजी से मुड़ कर घर से बाहर चला गया...

मैं यह सब बयान नहीं करने जा रहा कि उस शाम पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना के कमरे में क्या हुआ, रजुमीखिन किस तरह उन दोनों के पास वापस गया, किस तरह उन्हें तसल्ली दी, किस तरह उन्हें समझाया कि बीमार को आराम की जरूरत है, कि रोद्या जरूर आएगा, कि वह रोज आएगा, कि वह बेहद परेशान है, कि ऐसी कोई भी बात नहीं की जानी चाहिए जिससे उसकी चिड़चिड़ाहट बढ़े कि वह, यानी रजुमीखिन, उस पर नजर रखेगा, उसके लिए डॉक्टर बुलाएगा, सबसे अच्छा डॉक्टर, उसके इलाज का बंदोबस्त करेगा... सच तो यह है कि उसी रात रजुमीखिन ने उनके बीच एक बेटे और एक भाई की हैसियत से अपनी एक जगह बना ली।

अपराध और दंड : (अध्याय 4-भाग 4)

रस्कोलनिकोव सीधा नहर के किनारे उसी घर तक गया जहाँ सोन्या रहती थी। हरे रंग का पुराना-सा तीन-मंजिला मकान। दरबान को खोज कर उसने दर्जी कापरनाउमोव के यहाँ तक पहुँचने का रास्ता, मोटे तौर पर मालूम किया। आँगन के एक कोने में अँधेरी और तंग सीढ़ियों का दरवाजा ढूँढ़ कर वह ऊपर दूसरी मंजिल पर गया और एक गलियारे में जा निकला जो आँगन से लगी-लगी पूरी दूसरी मंजिल के चारों ओर चली गई थी। अभी वह अँधेरे में भटक ही रहा था कि कापरनाउमोव के दरवाजे तक पहुँचने के लिए किधर घूमे, कि उससे तीन कदम की दूरी पर एक दरवाजा खुला। उसने कुछ सोचे-समझे बिना उस दरवाजे को पकड़ लिया।

'कौन है?' एक औरत की घबराई हुई आवाज ने पूछा।

'मैं... तुमसे मिलने आया हूँ,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया और छोटी-सी ड्योढ़ी में घुस गया। टूटी-सी एक कुर्सी पर ताँबे के दबे-पिचके शमादान में शमा जल रही थी।

'आप! हे भगवान,' सोन्या ने कमजोर आवाज में कहा और उसी जगह खड़ी रह गई।

'तुम्हारा कौन-सा कमरा है इधर?' फिर रस्कोलनिकोव उसकी ओर न देखने की कोशिश करते हुए जल्दी से अंदर चला गया।

मिनट भर बाद सोन्या भी शमा लिए हुए अंदर आई, और शमादान पर रख कर घबराई-सी उसके सामने खड़ी हो गई। उसे एक अजीब-सी बेचैनी महसूस हो रही थी और वह उसके अचानक इस तरह वहाँ आ जाने से थोड़ा डर गई थी। अचानक उसके पीले चेहरे पर लाली दौड़ गई और आँखों में आँसू आ गए... वह परेशानी और शर्मिंदगी महसूस कर रही थी, पर साथ ही खुश भी थी... रस्कोलनिकोव तेजी से घूमा और मेज के पास पड़ी कुर्सी पर धप से बैठ गया। कमरे की हर चीज पर उसने एक सरसरी-सी नजर डाली।

कमरा काफी बड़ा लेकिन बेहद नीची छत वाला था। कापरनाउमोव परिवार ने बस यही कमरा किराए पर उठाया था। बाईं ओर की दीवार में जो बंद दरवाजा था, वह उनके ही कमरों में जाने का रास्ता था। सामने, दाहिनी दीवार में एक और दरवाजा था जिसमें हमेशा ताला पड़ा रहता था। वह एक और फ्लैट में जाने का रास्ता था, जो किसी और का था। सोन्या का कमरा अनाज के बखार जैसा लगता था। बहुत ही बेतुका, चौकोर कमरा था जिसका कोई कोना बराबर नहीं था। इस वजह से वह देखने में कुछ अजीब और भयानक लगता था। एक दीवार में तीन खिड़कियाँ नहर की ओर खुलती थीं और वह तिरछी दीवार ऐसा तीखा कोण बनाती हुई दूसरी दीवार से मिलती थी कि बहुत तेज रोशनी के बिना उस कोने में रखी हुई किसी चीज को देखना भी मुश्किल था। दूसरा कोना जरूरत से ज्यादा कोणदार था। कमरे में फर्नीचर के नाम पर थोड़ी-सी ही चीजें थीं। दाहिनी ओर कोने में एक पलँग और उसके पास, दरवाजे से सटी हुई एक कुर्सी। उसी दीवार के सहारे दूसरे फ्लैट में खुलने वाले दरवाजे के पास चीड़ की एक छोटी-सी बहुत मामूली मेज और उस पर नीले रंग का मेजपोश। मेज के पास बेंत से बुनी हुई दो कुर्सियाँ पड़ी थीं। सामनेवाली दीवार के सहारे, तीखे कोने के पास एक मामूली-सी, बहुत छोटी अलमारी रखी थी, जो रेगिस्तान में खोई हुई लगती थी। कमरे में सामान बस इतना ही था। दीवार पर पीले रंग का खरोंच लगा हुआ, मैला कागज कोनों के पास एकदम काला पड़ चुका था। जाड़ों में यहाँ बेहद सीलन रहती होगी और धुआँ भर जाता होगा। हर चीज से गरीबी टपकती थी। पलँग के इर्द-गिर्द पर्दे तक नहीं थे।

सोन्या चुपचाप खड़ी मेहमान को देखती रही, जो उसके कमरे को ध्यान से, बेझिझक देखे जा रहा था। आखिरकार वह काँपने लगी, गोया अपनी किस्मत का फैसला करनेवाले के सामने खड़ी हो।

'देर हो गई... ग्यारह तो बज ही रहा होगा?' उसने पूछा। वह अभी तक नजरें झुकाए हुए था।

'जी,' सोन्या ने बुदबुदा कर कहा, 'इतना ही होगा,' उसने जल्दी से इस तरह कहा मानो उसके बच निकलने का यही एक रास्ता हो। 'मकान-मालकिन की घड़ी में अभी घंटा बजा था... मैंने खुद सुना था...'

'मैं यहाँ आखिरी बार आया हूँ,' रस्कोलनिकोव ने उदास स्वर में आगे कहा, हालाँकि यहाँ वह पहली ही बार आया था। 'शायद तुमसे अब मुलाकात न हो...'

'आप... क्या कहीं जा रहे हैं?'

'मालूम नहीं... कल पता चलेगा...'

'तो कल आप कतेरीना इवानोव्ना के यहाँ नहीं आएँगे?' सोन्या की आवाज काँप उठी।

'नहीं कह सकता। कल सुबह पता चलेगा... लेकिन बात कुछ और है, मैं कुछ कहने आया हूँ...'

उसने सोच में डूबी नजरें उठा कर सोन्या की ओर देखा अचानक उसे खयाल आया कि देर से वह कुर्सी पर बैठा था और वह अभी तक उसके सामने खड़ी रही थी।

'खड़ी क्यों हो? बैठ जाओ,' उसने बहुत बदले हुए लहजे में कहा, जिसमें मुलायमियत थी और स्नेह था।

वह बैठ गई। रस्कोलनिकोव ने प्यार से और उस पर तरस खाते हुए उसे देखा।

'कितनी दुबली हो तुम! हाथ तो देखो! काँच का बना हुआ लगता है, मुर्दा औरत जैसा।'

यह कह कर उसने उसका हाथ पकड़ लिया। सोन्या धीरे से मुस्कराई। 'मैं हमेशा से ऐसी ही हूँ,' वह बोली।

'घर पर रहती थीं, तब भी?'

'जी।'

'जरूर रही होगी,' उसने जल्दी से कहा। अचानक उसके चेहरे का भाव और उसका स्वर फिर बदल गए। उसने एक बार फिर चारों ओर नजर डाली।

'यह जगह कापरनाउमोव से तुमने किराए पर ली है?'

'जी...'

'वे लोग उधर रहते हैं, दरवाजे के पार?'

'जी हाँ... ऐसा ही एक कमरा उनके पास भी है।'

'सिर्फ एक कमरे में?'

'जी।'

'मैं तुम्हारे इस कमरे में रात को रहूँ तो डर से मर जाऊँ,' उसने उदास हो कर कहा।

'बहुत अच्छे लोग हैं, बड़े मेहरबान,' सोन्या ने जवाब दिया। वह अभी भी बौखलाई हुई लग रही थी। 'यह सारा फर्नीचर, हर चीज... हर चीज उन्हीं की है। और वे बड़े नेक लोग हैं; उनके बच्चे भी मुझसे मिलने आते हैं...'

'सब बोलने में मुश्किल महसूस करते हैं न?'

'जी... वह हकलाता है... और लँगड़ा भी है। उसकी बीवी भी... वह हकलाती तो नहीं लेकिन साफ नहीं बोल पाती। अच्छी, बहुत अच्छे दिल की औरत है। पहले यह किसी के घर में बँधुआ नौकर था। सात बच्चे हैं... हकलाता सिर्फ सबसे बड़ा है, बाकी सब बस बीमार रहते हैं... लेकिन हकलाते नहीं। ...इनके बारे में आपने कहाँ सुना?' उसने कुछ ताज्जुब से पूछा।

'तुम्हारे बाप ने मुझे बताया था, उस दिन। तुम्हारे बारे में उन्होंने मुझे सब कुछ बताया... किस तरह तुम छह बजे चली गईं और लौट कर नौ बजे आईं और किस तरह कतेरीना इवानोव्ना एक पाँव पर तुम्हारे पलँग के पास बैठी रहीं।'

सोन्या उलझन में पड़ गई। 'मुझे लगा कि आज उन्हें मैंने देखा है,' वह सकुचाते हुए फुसफुसाई।

'किसे?'

'पापा को। मैं सड़क पर चली जा रही थी। वहाँ उस नुक्कड़ पर... कोई दस बजे होंगे... मुझे ऐसा लगा कि वे मेरे आगे चल रहे हैं। एकदम वही लग रहे थे। मैं कतेरीना इवानोव्ना के यहाँ जा रही थी...'

'तुम सड़क पर चल रही थीं?'

'जी,' सोन्या ने झट से जवाब दिया और फिर एक बार सिटपिटा कर नीचे घूरने लगी।

'जब तुम कतेरीना इवानोव्ना के साथ रहती थीं तब वे तुम्हें जरूर मारती होंगी। मारती थीं न?'

'जी नहीं, आप क्या कह रहे हैं हरगिज नहीं!' सोन्या ने उसे कुछ-कुछ हैरत के भाव से देखा।

'तो उन्हें तुम प्यार करती हो?'

'मैं उन्हें प्यार करती हूँ। जरूर करती हूँ!' सोन्या ने दर्द भरी आवाज में जोर दे कर कहा और दोनों हाथ आपस में कस कर भींच लिए। 'आह, उन्हें आप नहीं जानते... काश कि आपको मालूम होता। वे बिलकुल बच्चों जैसी हैं। दुख झेलते-झेलते... उनका दिमाग अब ठिकाने भी नहीं रह गया। ...कितनी समझदार हुआ करती थीं वे... कितनी उदार... कितनी नेक! आह, आप नहीं जानते, कुछ भी नहीं जानते!'

सोन्या ने यह बात जज्बात और दर्द के एहसास से हाथ मलते हुए कुछ इस तरह कही, जैसे वह हताश हो चुकी हो। उसके पीले गालों पर लाली दौड़ गई और उसकी आँखों से दर्द झाँकने लगा। साफ मालूम होता था कि दिल की गहराइयों तक वह हिल उठी थी, कि वह कुछ कहने किसी के हक में कुछ कहने के लिए, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए तड़प रही थी। चेहरे की एक-एक भंगिमा से, यूँ कहें कि अथाह संवेदना प्रकट हो रही थी।

'मुझे मारती थीं। यह बात आपने कही कैसे? हे भगवान, मुझे वे मारती थीं क्या! और अगर मुझे मारती भी थीं तो उससे क्या आपको कुछ नहीं मालूम, कुछ भी नहीं मालूम इस बारे में... वे कितनी दुखी हैं... आह, कितनी! और बीमार... वे न्याय की तलाश में हैं, उनका मन एकदम पवित्र है। उन्हें इतना पक्का विश्वास है कि हर जगह न्याय होना चाहिए और वे इसकी आशा भी करती हैं... अगर आप उन्हें तकलीफ भी पहुँचाएँ तो भी वे आपके साथ अन्याय नहीं करेंगी। वे यह नहीं समझतीं कि लोगों का न्यायपूर्ण होना असंभव है और जब लोग ऐसे नहीं होते तो उन्हें इस बात पर गुस्सा आता है... बच्चों की तरह, बिलकुल बच्चों की तरह! वे बहुत इन्साफपसंद हैं।'

'पर तुम्हारा क्या होगा?'

सोन्या ने उसे सवालिया निगाहों से देखा।

'बात यह है कि अब उन सबका बोझ तुम्हारे ऊपर आन पड़ा है। यूँ तो पहले भी सबका बोझ तुम्हारे ही ऊपर था, और ऊपर से तुम्हारा बाप तुम्हारे पास शराब के लिए पैसे माँगने आ जाता था। खैर, अब गाड़ी कैसे चलेगी'

'नहीं मालूम,' सोन्या ने उदास हो कर कहा।

'वे लोग क्या वहीं रहेंगे?'

'नहीं मालूम... उन्हें उस घर का काफी बकाया किराया चुकाना है लेकिन मैंने सुना है, मकान-मालकिन ने आज कहा कि वह उन लोगों से छुटकारा पाना चाहती है। उधर कतेरीना इवानोव्ना भी कहती हैं कि वहाँ अब एक मिनट भी नहीं रहेंगी।'

'इतनी हिम्मत उनमें कहाँ से आई तुम्हारे भरोसे?'

'जी नहीं, इस तरह की बातें मत कीजिए! ...हम सब एक हैं, एक हो कर रहते हैं।' सोन्या फिर उत्तेजित हो उठी थी। साथ ही उसे गुस्सा भी आ रहा था, ठीक वैसे ही जैसे किसी छोटी-सी चिड़िया को गुस्सा आए। 'वे और कर भी क्या सकती थीं क्या कर सकती थीं...' वह उत्तेजना के साथ अपनी बात को बार-बार दोहराती रही। 'और आज वे रो किस तरह रही थीं! उनका दिमाग ठिकाने नहीं है, आपने देखा नहीं। कतई ठिकाने नहीं है। एक पल बच्चों की तरह परेशान होने लगती हैं कि कल हर चीज ठीक-ठाक होनी चाहिए। खाना और सभी चीजें, और अगले ही पल अपने हाथ मलने लगती हैं, खून थूकने लगती हैं, रोने लगती हैं, निराशा हो कर दीवार से अपना सर टकराने लगती हैं। कुछ देर बाद वे फिर मामूल पर आ जाती हैं। वे तो सारी आस आप से लगाए हुए हैं; कहती हैं कि अब आप उनकी मदद करेंगे। यह भी कहती हैं कि कहीं से थोड़ा पैसा उधार ले कर वे मेरे साथ अपने शहर चली जाएँगी, वहाँ भले घरों की लड़कियों के लिए स्कूल खोलेंगी, मुझे उसकी निगरानी सौंप देंगी, और हम लोग इस तरह एक नई और शानदार जिंदगी शुरू करेंगे। वे मुझे चूमती हैं, कलेजे से लगाती हैं, तसल्ली देती हैं। मैं आपसे क्या बताऊँ, उन्हें कितना भरोसा है, अपने इन सपनों पर कितना भरोसा है! कोई उनकी इन बातों को काटे तो कैसे! आज उन्होंने सारा दिन कपड़े धोते, झाड़ू लगाते और फटे कपड़ों की मरम्मत करते बिताया। अपने कमजोर हाथों से वे कपड़े धोने की नाद घसीट कर कमरे में लाईं और हाँफ कर पलँग पर ढेर हो गईं। आज सुबह हम लोग पोलेंका और लीदा के लिए जूते खरीदने बाजार गए क्योंकि उनके जूते एकदम फट गए थे। हम लोग जितना पैसा जुटा सके, वह काफी नहीं था; पैसे काफी कम पड़ रहे थे। उन्होंने भी ऐसे प्यारे, छोटे-छोटे जूते पसंद किए थे कि क्या कहूँ; आप नहीं जानते... उनकी पसंद बहुत अच्छी है, वे वहीं दुकान के नौकरों के सामने फूट-फूट कर रोने लगीं कि उनके पास पूरा पैसा नहीं था... देख कर कलेजा फट रहा था।'

'अच्छा, अब समझ में आया कि तुम... इस तरह क्यों रहती हो,' रस्कोलनिकोव ने कड़वी मुस्कान के साथ कहा।

'तो आपको उन पर तरस नहीं आता दुख नहीं होता?' सोन्या फिर उस पर बरसी। 'क्या मैं नहीं जानती कि आपने यह सब देखे बिना भी अपनी आखिरी रकम तक उन्हें दे दी थी। काश कि आपने वह सब देखा होता! कितनी ही बार उन्हें ऐसा हो चुका। कितनी ही बार वे मेरी वजह से रोईं! अभी पिछले हफ्ते, जी हाँ, मेरी ही वजह से! पापा के मरने से बस एक हफ्ता पहले। मैंने ही बेरहमी की थी! कितनी ही बार मैं ऐसा कर चुकी! आह, इस बारे में सोच कर मैं दिन-भर दुखी होती रही!'

सोन्या उस बात को याद करके दुख से हाथ मलने लगी।

'तुमने बेरहमी की थी?'

'हाँ, मैंने... मैंने ही। उन लोगों से मैं मिलने गई थी,' वह रो-रो कर कहती रही, 'और पापा ने कहा : 'कुछ पढ़ कर सुनाओ, सोन्या, मेरे सर में दर्द हो रहा है, यह किताब पढ़ कर सुनाओ।' एक किताब थी उनके पास जो उन्हें आंद्रेई सेम्योनोविच लेबेजियातनिकोव ने दी थी। वे वहीं रहते हैं और न जाने कहाँ से मजेदार किताबें लाते हैं। मैंने कहा : 'मैं ज्यादा देर रुक नहीं सकती।' दरअसल मैं पढ़ना नहीं चाहती थी, और खास कर कतेरीना इवानोव्ना को कुछ कालर और कफ दिखाने गई थी। उस फेरीवाली लिजावेता ने कुछ कालर और कफ मेरे हाथ बहुत सस्ते बेचे थे। खूबसूरत, नए और कढ़े हुए। कतेरीना इवानोव्ना को बहुत अच्छे लगे; उन्होंने उनको लगा कर खुद को आईने में देखा और बेहद खुश हुईं। 'ये मुझे दे दे, सोन्या', वे बोलीं, 'मैं हमेशा तेरा एहसान मानूँगी,' उन्होंने कहा था। उनके लिए उनका जी बहुत ललचा गया था। पर उन्हें वे पहनतीं तो कब! बस उन्हें देख कर वे अपने बीते हुए सुखी दिनों की याद कर रही थीं। उन्होंने अपने आपको आईने में देखा, सराहा और तब, जबकि उनके पास ढंग के कपड़े तक नहीं, अपनी कोई चीज नहीं, बरसों से कभी रही भी नहीं! पर कभी किसी से कोई चीज वे नहीं माँगतीं। लेकिन ये उन्होंने इसलिए माँगे कि उन्हें बेहद अच्छे लगे थे। पर मेरा जी देने को नहीं चाहता था। 'ये आपके किस काम के? मैंने कहा। मैंने उनसे बिलकुल इसी तरह कह दिया जो कि कहना नहीं चाहिए था! उन्होंने मुझे इस तरह देखा कि बस पूछिए मत। मेरे इनकार करने पर वे इतनी दुखी हुईं, इतनी हुईं कि बस, उन्हें देख कर दिल दुखता था... उन्हें कालर न मिलने का दुख नहीं था, दुख था मेरे इनकार का... यह बात मैंने अच्छी तरह समझ ली थी। काश कि मैं वह सब लौटा सकती, बदल सकती, अपनी कही हुई बात वापस ले सकती! काश कि मैं... लेकिन आपको इससे क्या!'

'उस फेरीवाली लिजावेता को तुम जानती थीं?'

'जी... आप भी उसे जानते थे क्या?' सोनिया ने जरा ताज्जुब से पूछा।

'कतेरीना इवानोव्ना को तपेदिक है, तेजी से बढ़नेवाली तपेदिक; जल्दी ही वे मर जाएँगी,' रस्कोलनिकोव ने उसके सवाल का जवाब दिए बिना कुछ ठहर कर कहा।

'अरे नहीं, ऐसा मत कहिए!' सोन्या ने अनायास ही रस्कोलनिकोव के दोनों हाथ कस कर पकड़ लिए, जैसे यह मना रही हो कि वे न मरें।

'लेकिन उनके लिए मर जाना ही बेहतर होगा।'

'नहीं, बेहतर नहीं होगा, कतई नहीं होगा!' सोन्या ने एक बार फिर डर कर दोहराया। उसे शायद पता भी न रहा हो कि वह क्या कह रही है।

'और बच्चे? उन्हें अपने साथ रखने के अलावा तुम कर भी क्या सकती हो?'

'आह, मुझे नहीं मालूम,' सोन्या चीखी और निराश हो कर दोनों हाथों में अपना सर थामे बैठ गई। साफ लग रहा था कि यह बात उसके मन में पहले भी कई बार आई थी। रस्कोलनिकोव ने तो बस उसे फिर से कुरेद दिया था।

'और इस वक्त भी, जबकि कतेरीना इवानोव्ना अभी जिंदा हैं, तुम अगर बीमार पड़ जाओ और अस्पताल भेज दी जाओ, तब क्या होगा?' निर्दयता से वह इसी बात को आगे बढ़ाता रहा।

'आप ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं? ऐसा नहीं हो सकता!' सोन्या का चेहरा दहशत के मारे फड़कने लगा।

'नहीं हो सकता!' रस्कोलनिकोव बेरहम मुस्कान के साथ कहता रहा। 'इसके खिलाफ तुमने कोई बीमा तो कराया है नहीं, या कराया है तब उनका क्या होगा सब सड़क पर मारे-मारे फिरेंगे... सारे के सारे वे। खाँस-खाँस कर भीख माँगेंगी और किसी दीवार से अपना सर टकराएँगी, जैसा कि आज सुबह किया था, और बच्चे रोएँगे... फिर वे कहीं गिर पड़ेंगी, थाने और अस्पताल ले जायी जाएँगी, वहीं मर जाएँगी, और बच्चे...'

'नहीं, नहीं! ...भगवान ऐसा नहीं होने देगा!' अचानक सोन्या के सीने में भरा हुआ सारा गुबार फूट पड़ा। वह याचक भाव से उसकी बात सुनती आ रही थी और दोनों हाथ जोड़े उसे देखे जा रही थी, मानो सब कुछ उसी पर निर्भर हो।

रस्कोलनिकोव उठा और कमरे में टहलने लगा। एक मिनट बीता। सोन्या घोर निराशा में सर झुकाए खड़ी थी। हाथ ढीले लटक रहे थे।

'क्या तुम कुछ पैसा नहीं बचा सकतीं आड़े वक्तों के लिए?' उसने अचानक सोन्या के सामने रुक कर पूछा।

'नहीं,' सोन्या ने धीमे से कहा।

'जाहिर है, तुम्हारे लिए ऐसा मुमकिन नहीं हैं। कभी कोशिश की?' उसने लगभग व्यंग्य से कहा।

'की तो है।'

'और उसका कोई नतीजा नहीं निकला! जाहिर है, नहीं निकला होगा! इसमें पूछने की क्या बात!'

वह एक बार फिर कमरे में टहलने लगा। एक मिनट और बीता।

'तुम्हें रोज पैसे नहीं मिलते?'

सोन्या पहले से भी ज्यादा सिटपिटा गई। उसका चेहरा फिर तमतमा उठा।

'नहीं,' उसने बहुत कोशिश करके धीमे से कहा, जैसे उसे भारी तकलीफ हो रही हो।

'जाहिर है, पोलेंका का भी यही हाल होगा,' वह अचानक बोला।

'नहीं, बिलकुल नहीं! ऐसा नहीं हो सकता, कभी नहीं!' सोन्या घोर निराशा से तड़प कर जोर से चिल्लाई, गोया किसी ने उसके छुरा भोंक दिया हो। 'भगवान ऐसी भयानक बात कभी नहीं होने देगा।'

'दूसरों का तो वह ऐसा ही हाल करता है।'

'नहीं कतई नहीं! भगवान करेगा उसकी रक्षा, भगवान करेगा! ...' उसने बेचैन हो कर एक बार फिर कहा।

'भगवान तो शायद कोई है भी नहीं,' रस्कोलनिकोव ने कुछ बदनीयती से मुस्करा कर कहा और उसकी ओर देखने लगा।

अचानक सोन्या के चेहरे का भाव भयानक सीमा तक बदल गया और उस पर एक जरा-सी कँपकँपी दौड़ गई। उसने रस्कोलनिकोव को अकथनीय निंदा के भाव से देखा, कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन कुछ कह न सकी और दोनों हाथों में अपना मुँह छिपा कर, सिसक-सिसक कर रोने लगी।

'अरे, कहती हो कि कतेरीना इवानोव्ना का दिमाग ठिकाने नहीं है। अरे, खुद तुम्हारा दिमाग ठिकाने नहीं है,' उसने थोड़ी देर की चुप्पी के बाद कहा।

कोई पाँच मिनट बीत गए। वह अभी तक सोन्या की ओर देखे बिना कमरे में इधर-से-उधर टहल रहा था। आखिरकार वह उसके पास गया। उसकी आँखें चमक रही थीं। उसके कंधों पर अपने दोनों हाथ रख कर वह उसकी आँसू भरी आँखों में आँखें डाल कर देखने लगा। उसकी आँखों में कठोरता थी, गोया उसे तेज बुखार चढ़ आया हो, उसकी नजरें तीर की तरह बेध रही थीं, होठ फड़क रहे थे... अचानक वह तेजी से नीचे झुका और जमीन पर गिर कर उसने सोन्या के पाँव चूम लिए। सोन्या छिटक कर उससे इस तरह दूर हो गई जैसे किसी पागल से किनाराकशी कर रही हो। तब वह पागलों जैसा लग भी रहा था।

'यह कर क्या रहे हैं आप मेरे साथ?' वह धीरे से बुदबुदाई। उसका रंग पीला पड़ गया था। अचानक घोर तकलीफ ने दिल को जकड़ लिया था।

वह फौरन उठ खड़ा हुआ।

'मैं तुम्हारे नहीं, पूरी दबी-कुचली मानव जाति के सामने सर झुका रहा था,' वह जुनून के आलम में बोला और खिड़की की तरफ चला गया। 'सुनो,' एक मिनट बाद उसने सोन्या की ओर मुड़ कर कहा। 'मैंने कुछ ही देर हुए एक बदतमीज आदमी से कहा था कि वह तुम्हारी कानी उँगली के बराबर भी नहीं... यह भी कहा था कि मैंने अपनी बहन को तुम्हारे साथ बिठा कर उसे सम्मान दिया था।'

'छिः उनसे आपने ऐसी बात कही और अपनी बहन के सामने।' सोन्या डर कर चीखी। मेरे साथ बैठना और सम्मान की बात! कहाँ मैं एक... कलंकिनी हूँ! ...मैं एक पापिन... आह, आपने ऐसी बात कही भी कैसे?'

'मैंने तुम्हारे बारे में अपनी बात तुम्हारे कलंक और तुम्हारे पाप की वजह से नहीं, उन तमाम मुसीबतों को ध्यान में रख कर कही थी, जो तुमने झेली हैं। लेकिन यह बात तो सच है कि तुम बहुत बड़ी पापिन हो।' उसने उत्तेजना से कहा, 'सो तुम्हारा सबसे बड़ा पाप यह है कि तुमने बेकार ही अपने आपको तबाह और अपने साथ विश्वासघात किया है। यह क्या भयानक बात नहीं? यह भयानक बात नहीं है क्या कि तुम ऐसी गंदगी में रहती हो जिससे तुम्हें नफरत है, और साथ ही तुम खुद जानती हो (तुम्हें बस अपनी आँखें खोलने की जरूरत है) कि तुम ऐसा करके किसी की मदद नहीं कर रही हो, किसी चीज से किसी को बचा नहीं रही हो मुझे बताओ,' वह लगभग दीवानों की तरह बोलता रहा, 'यह कलंक और यह पतन तुम्हारे अंदर उनकी उलटी जो दूसरी पवित्र भावनाएँ हैं, उनके साथ कैसे रह सकते हैं इससे कहीं अच्छी, हजार गुनी माकूल और समझदारी की बात यह होगी कि तुम पानी में छलाँग लगा दो और यह सब खत्म कर दो।'

'लेकिन फिर उनका क्या होगा' सोन्या ने दर्दभरी आँखों से उसे घूरते हुए पूछा। फिर भी उसके भाव से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे इस सुझाव पर कोई हैरत हुई हो। रस्कोलनिकोव ने विचित्र ढंग से सोन्या को देखा।

उसने सोन्या के चेहरे से सब कुछ पढ़ लिया : तो यह विचार उसके मन में पहले भी उठा होगा, शायद कई बार, और हर तरफ से निराश हो कर ईमानदारी से उसने यही सोचा होगा कि इसे खत्म कैसे किया जाए। और यह सब इतनी ईमानदारी से उसने सोचा होगा कि अब इस सुझाव पर उसे कोई खास हैरत नहीं हो रही थी। उसके शब्दों की क्रूरता की ओर भी उसने कोई ध्यान नहीं दिया था। (जाहिर है, सोन्या ने उसके तानों और अपने कलंक की ओर उसके विचित्र रवैए की ओर भी ध्यान नहीं दिया था, और यह बात भी रस्कोलनिकोव की समझ में अच्छी तरह आई।) लेकिन फिर यह बात भी उसकी समझ में आई कि अपनी इस कलंकित और अपमानित स्थिति का विचार उसे कितनी बुरी तरह सता रहा था और कितने अरसे से सताता आ रहा था। 'क्या चीज थी, वह क्या चीज थी,' उसने सोचा, 'जो अब तक उसे इस सिलसिले को खत्म कर देने से रोके हुए रही...' अब जा कर उसकी समझ में आया कि सोन्या के लिए कितना महत्व था उन छोटे-छोटे अनाथ बच्चों का और उस दयनीय, आधी पागल कतेरीना इवानोव्ना का, जो तपेदिक की मरीज थी और बार-बार अपना सर दीवार से टकराने लगती थी।

तो भी यह बात उसके दिमाग में साफ थी कि अपने स्वभाव की वजह से और जैसे-तैसे करके उसने जो शिक्षा पाई थी उसकी वजह से, वह ऐसी हालात में हमेशा तो नहीं रह सकती थी। लेकिन यह सवाल उसे अब भी परेशान कर रहा था कि इतने दिनों तक ऐसी हालत में रहने के बाद अगर वह पानी में कूद कर आत्महत्या नहीं कर सकी तो फिर पागल क्यों नहीं हो गई? यह तो वह जानता था कि समाज में सोन्या की स्थिति एक बदनसीबी का नतीजा था, हालाँकि बदनसीबी की बात तो यह थी कि पहले कभी ऐसा हुआ ही न हो या अकसर होता न रहता हो, ऐसा भी नहीं था लेकिन उसकी समझ में यही आता था कि इसी वजह से, जो थोड़ी-बहुत शिक्षा उसने पाई थी उसकी वजह से, और अपने इससे पहले के जीवन की वजह से, उसे इस घिनौने रास्ते पर पहला कदम रखते ही मर जाना चाहिए था। तो उसे किस चीज ने रोके रखा? वह कोई चरित्रहीन तो थी नहीं... इस सारी बदनसीबी का स्पष्ट था कि उस पर थोड़ा-सा ही असर हुआ था, सचमुच चरित्रहीनता का एक कतरा भी उसके दिल की गहराइयों तक नहीं पहुँच सका था। यह बात वह जानता था। आज उसके सामने खड़े रह कर रस्कोलनिकोव को उसका सारा वास्तविक रूप नजर आ रहा था।...

'तीन रास्ते हैं इसके सामने,' उसने सोचा, 'जा कर नहर से डूब मरे, पागलखाने जाए या... फिर उसी चरित्रहीनता के दलदल में जा फँसे, जिसमें सोचने की शक्ति धुँधला जाती है, दिल पथरा जाता है।' अंतिम विकल्प सबसे ज्यादा घिनावना था, लेकिन वह अविश्वासी था, नौजवान था, अमूर्त ढंग से सोचता था, और इसलिए क्रूर था। यही कारण था कि वह यह सोचे बिना नहीं रह सका कि सबसे अधिक संभावना अंतिम विकल्प के ही साकार होने की थी।

'लेकिन ऐसा हो सकता है क्या?' उसका दिल कराह उठा। यह संभव है क्या कि जिस प्राणी ने अपनी आत्मा की शुद्धता को अभी तक बचा कर रखा हो, आखिरकार जाने-बूझे गंदगी और सड़ाँध की इस दलदल में खिंचा चला आए, कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सिलसिला शुरू हो गया हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि अभी तक वह इसे सिर्फ इसलिए बर्दाश्त करती आ रही हो कि पाप का यह जीवन उसे कम घिनावना लगता हो नहीं, ऐसा नहीं हो सकता!' वह उसी तरह चीखा जैसे अभी कुछ ही देर पहले सोन्या चीखी थी। 'नहीं, अभी तक जिस चीज ने उसे नहर से दूर ही रखा है वह है पाप का विचार और वे बच्चे... अगर वह अभी तक पागल नहीं हुई है... लेकिन कौन कहे पागल नहीं है वह क्या कोई होश में है कोई क्या इस तरह बात कर सकता है। इस तरह तर्क दे सकता है जैसे वह देती है यह कैसे हो सकता है कि घिनौनेपन के जिस दलदल में वह फँसती जा रही है, उसके कगार पर ही बैठी रहे और जब उसे इस खतरे के बारे में बताया जाए तो वह सुनने से भी इनकार कर दे क्या वह किसी चमत्कार की आस लगाए हुए है बेशक वह यही आस लगाए बैठी है। इन सब बातों का मतलब क्या पागलपन नहीं है?'

वह हठधर्मी से इस विचार पर जमा रहा। यह वजह बल्कि उसे किसी भी दूसरी वजह के मुकाबले ज्यादा पसंद थी। वह सोन्या को और भी ध्यान से देखने लगा।

'तो तुम भगवान की काफी प्रार्थनाएँ करती हो, सोन्या?' उसने पूछा।

सोन्या कुछ नहीं बोली। वह उत्तर की प्रतीक्षा में उसके पास ही खड़ा रहा।

'भगवान के बिना क्या हाल होता मेरा?' सोन्या ने कहा। उसकी आँखें अचानक चमक उठी थीं। उसने यह बात रस्कोलनिकोव की ओर एक नजर देख कर धीमे स्वर में और जल्दी से अपने शब्दों पर भरपूर जोर देते हुए कही। रस्कोलनिकोव का हाथ उसने कस कर अपने हाथों में भींच लिया।

'यानी कि मेरी बात सही है!' उसने सोचा।

'और भगवान तुम्हारे लिए करता क्या है?' उसने सोन्या के विचारों की और भी थाह लेने के लिए पूछा।

सोन्या काफी देर तक चुप रही, जैसे कोई जवाब न दे पा रही हो। उसका कमजोर सीना भावनाओं के दबाव के मारे धौंकनी की तरह चल रहा था।

'एक शब्द भी नहीं! ऐसे सवाल पूछिए भी मत! आप इसके अधिकारी नहीं हैं...' उसे कठोर और क्रोध से भरी आँखों से देखती हुई अचानक वह चीखी।

'ऐसा ही है! ऐसा ही!' वह बार-बार अपने आपसे दोहराता रहा।

'करता वही सब कुछ है,' सोन्या ने जल्दी से, धीमे लहजे में कहा और फिर एक बार नीचे देखने लगी।

'तो यह है हल और यह है वजह!' रस्कोलनिकोव एक नई, अजीब, लगभग बीमारों जैसी भावना के साथ सब कुछ टकटकी बाँधे देखता रहा। उसे पीले, दुबले-पतले, हड़ियल, तीखे नाक-नक्शेवाले छोटे से चेहरे को, उन नीली और कोमल आँखों को, जिनमें आग जैसी, कठोर प्रबल भावना की चमक भी पैदा हो सकी, रोष और क्रोध से काँपते हुए उस छोटे-से शरीर को और यह सब उसे हर पल अधिकाधिक विचित्र, लगभग असंभव नजर आने लगा। 'दिमाग की कमजोरी!' उसने अपने आप से कहा।

दराजोंवाली अलमारी के ऊपर एक किताब पड़ी थी। कमरे में इधर-से-उधर टहलते हुए हर बार रस्कोलनिकोव उसे देखता रहा था। अब उसने वह किताब उठा ली और उसे देखने लगा। वह इंजील के 'न्यू टेस्टामेंट' का रूसी अनुवाद था। चमड़े की जिल्द मढ़ी, फटी-पुरानी किताब थी।

'यह कहाँ मिली?' उसने कमरे के दूसरे छोर से पुकार कर पूछा। वह अभी तक उसी जगह, मेज से तीन कदम की दूरी पर खड़ी थी।

'किसी ने ला कर दी थी,' उसने उसकी ओर देखे बिना जवाब दिया, गोया जवाब देने को जी न चाह रहा हो।

'लाया कौन?'

'लिजावेता। मैंने मँगाई थी।'

'लिजावेता! अजीब बात है!' उसने सोचा। सोन्या की हर बात उसे हर पल अधिक विचित्र और अधिक आश्चर्यजनक लग रही थी। किताब को शमा के पास ले जा कर वह उसके पन्ने उलटने लगा।

'इसमें लैजरस का जिक्र कहाँ पर है?' उसने अचानक पूछा।

सोन्या नजरें जमाए जमीन की ओर देखती रही, कोई जवाब नहीं दिया। वह मेज के पास कुछ तिरछी खड़ी थी।

'इसमें लैजरस के फिर से जिंदा होने की बात कहाँ है? जरा ढूँढ़ कर तो दो, सोन्या।'

सोन्या ने चुपके से नजरें बचा कर उसकी ओर देखा।

'आप ठीक जगह नहीं देख रहे... चौथे संदेश में है,' सोन्या ने उसके पास आए बिना धीमे स्वर में पर कठोरता से कहा।

'निकाल कर और मुझे पढ़ कर सुनाओ,' उसने कहा। वह मेज पर कुहनियाँ टिका कर बैठ गया, सर अपने हाथ पर टेक लिया और उदास भाव से दूर देखता हुआ सुनने के लिए तैयार हो गया।

'तीन हफ्ते में ही इसे पागलखाने भेज दिया जाएगा!' वह अपने आप बुदबुदाता रहा। 'मैं समझता तो हूँ कि मैं भी वहीं हूँगा... अगर मेरे साथ उससे भी बदतर कुछ न हुआ।' वह मन-ही-मन बुदबुदाया।

सोन्या ने रस्कोलनिकोव की प्रार्थना अविश्वास के साथ सुनी और झिझकती हुई मेज की ओर बढ़ी। न चाहते हुए भी उसने किताब उठा ली।

'आपने पढ़ा नहीं है?' मेज के पार से रस्कोलनिकोव की ओर आँखें उठा कर देखते हुए उसने पूछा। उसके स्वर में कठोरता लगातार बढ़ती जा रही थी।

'बहुत पहले... जब स्कूल में था। तो पढ़ो!'

'कभी गिरजाघर में भी नहीं सुना?'

'मैं... गिरजाघर कभी गया ही नहीं। क्या तुम अकसर जाती हो?'

'न... हीं,' सोन्या ने दबी आवाज में जवाब दिया। रस्कोलनिकोव मुस्कराया।

'मैं समझ रहा हूँ... और कल अपने बाप के जनाजे में भी नहीं जाओगी?'

'जरूर जाऊँगी। पिछले हफ्ते भी गिरजाघर गई थी... किसी आत्मा की शांति के लिए खास तौर पर प्रार्थना कराई थी।'

'किसकी आत्मा की?'

'लिजावेता की। किसी ने कुल्हाड़ी से उसकी हत्या कर दी थी।'

रस्कोलनिकोव के दिमाग में तनाव बढ़ता जा रहा था। उसका सर चकराने लगा।

'लिजावेता से क्या तुम्हारी दोस्ती थी?'

'जी... वह बहुत अच्छी थी... यहाँ आती रहती थी... बहुत ज्यादा तो नहीं... उसे इतना मौका ही नहीं मिलता था... हम लोग मिल कर पढ़ा करते थे और... बातें करते थे। वह भगवान के पास जाएगी।'

रस्कोलनिकोव के कानों में ये किताबी बातें कुछ अजीब-सी लगीं। उसे इसमें फिर एक नई बात दिखाई दी : लिजावेता से उसका रहस्यमय ढंग से मिलना और दोनों... कमजोर दिमाग की!

'जल्दी ही मैं भी दिमाग का कमजोर हो जाऊँगा। यह छूत की बीमारी है!' उसने सोचा। 'पढ़ो!' उसने अचानक चिड़चिड़ा कर ऊँचे आग्रहभरे स्वर में कहा।

सोन्या अब भी झिझक रही थी। उसका दिल धड़क रहा था। पढ़ कर सुनाने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। वह उस 'दुखी पागल लड़की' की ओर लगभग कातर हो कर देखने लगा।

'किसलिए? आप इस सब में विश्वास तो करते नहीं...' उसने रुँधे हुए स्वर में कहा।

'पढ़ो! मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे पढ़ कर सुनाओ!' वह आग्रह करता रहा। 'तुम लिजावेता को पढ़ कर तो सुनाती थी!'

सोन्या ने किताब खोल कर वह प्रसंग निकाला। उसके हाथ काँप रहे थे, आवाज साथ नहीं दे रही थी। दो बार उसने कोशिश की लेकिन पहला शब्द भी उसके मुँह से न निकल सका।

'तो हुआ यह कि एक शख्स बीमार था, उसका नाम था लैजरस, बेथनी का रहनेवाला...' आखिर उसने किसी तरह, अपने आपको मजबूत करके पढ़ा। पर तीसरे ही शब्द पर उसकी आवाज जरूरत से ज्यादा कसे तार की तरह झनझना कर टूट गई। साँस में फंदा पड़ गया।

रस्कोलनिकोव कुछ-कुछ समझ रहा था कि सोन्या उसे पढ़ कर सुनाने के लिए अपने आपको तैयार क्यों नहीं कर पा रही थी, और यह बात जितनी ही उसकी समझ में आती जा रही थी, उतनी ही ज्यादा रुखाई और चिड़चिड़ाहट के साथ वह उससे पढ़ने का आग्रह करता जा रहा था। वह बहुत अच्छी तरह समझ रहा था कि सोन्या को जो कुछ उसका अपना था, उसे बताने में, खोल कर उसके सामने रखने में कितना कष्ट हो रहा था। वह समझ रहा था कि ये भावनाएँ उसकी अपनी गुप्त निधि थीं, जिन्हें उसने शायद बरसों से सँजो कर रखा था। शायद बचपन से, जब वह एक अभागे बाप और दुख झेलते-झेलते पागल हो जानेवाली सौतेली माँ के साथ, भूख से बिलखते हुए बच्चों के बीच रहती होगी और बुरी-बुरी गालियाँ और उलाहने सुनती रही होगी। लेकिन साथ ही वह अब यह भी जानता था, और पक्के तौर पर जानता था, कि उसके मन में तो डर समाता जा रहा था, उसे पीड़ा भी हो रही थी पर फिर भी उसे यह इच्छा निरंतर साल रही थी कि वह पढ़े और उसे पढ़ कर सुनाए, इसी वक्त पढ़ कर सुनाए, और 'फिर चाहे जो हो!' यह बात उसे सोन्या की आँखों में जज्बात की उथल-पुथल में दिखाई दे रही थी। सोन्या ने अपने आपको सँभाला, गले में फँसे हुए जोश को वश में किया और सेंट जॉन के संदेश का ग्यारहवाँ अध्याय पढ़ने लगी। वह उन्नीसवें पद पर पहुँची :

'और बहुत-से यहूदी आए मार्था और मरियम के पास उनको उनके भाई के बारे में सांत्वना देने। फिर मार्था को जैसे ही पता चला कि प्रभु यीशु आ रहे हैं, वह उनसे जा कर मिली; लेकिन मरियम घर पर ही रही। मार्था ने कहा यीशु से : प्रभु! मेरा भाई न मरता यदि आप यहाँ होते। लेकिन अब भी जानती हूँ मैं कि अब भी आप जो कुछ माँगेंगे ईश्वर से, ईश्वर आपको देगा।'

यहाँ आ कर वह एक बार फिर रुक गई। यह सोच कर वह शर्मिंदा होने लगी कि उसकी आवाज फिर काँपेगी और बीच में टूट जाएगी...

'यीशु ने कहा : उससे फिर जी उठेगा तेरा भाई। मार्था बोली : यह तो मैं जानती हूँ कि अंतिम दिन, रविवार को, जब होगा मुर्दों का पुनरुत्थान तब उठ खड़ा होगा वह भी। यीशु ने कहा उससे : मैं ही मृतोत्थान हूँ और जीवन भी मैं ही हूँ : जो विश्वास रखता है मुझ पर वह मर ही क्यों न चुका हो, वही जीवित रहेगा। और जो है जीवित और मुझ पर रखता है विश्वास वह कभी मरेगा नहीं। क्या तुझे है इस बात पर विश्वास वह उनसे बोली : ...'

(बहुत दर्द-भरी साँसें ले-ले कर सोन्या साफ-साफ और जोर दे कर पढ़ती रही, गोया सबके सामने अपनी आस्था की ऐलान कर रही हो :)

'हाँ, प्रभु! है मुझे विश्वास कि आप ही हैं ख्रीस्त, वही ईश्वर के पुत्र जिन्हें आना है इस संसार में।'

वह पढ़ते-पढ़ते रुकी, जल्दी से नजरें उठा कर उसकी ओर देखा, और फिर अपने आपको काबू में करके पढ़ने लगी। रस्कोलनिकोव मेज पर कुहनियाँ टिकाए, नजरें दूसरी ओर फेरे चुपचाप बैठा रहा। सोन्या पढ़ते-पढ़ते बत्तीसवें पद पर पहुँच गई।

'फिर जब वहाँ आई मरियम जहाँ थे यीशु और उसने उन्हें देखा, तो गिर पड़ी उनके पाँव पर और बोली : प्रभु! अगर होते आप यहाँ तो न मरता मेरा भाई। जब यीशु ने रोते देखा उसे, और उन यहूदियों को भी, जो उसके साथ आए थे, तो कराह उठी उनकी आत्मा और हो उठे वे चिंतित और बोले : तुम लोगों ने उसे दफन कहाँ किया है वे लोग बोले उनसे : प्रभु! चल कर देख लीजिए। रो पड़े यीशु। तब यहूदी बोले : देखो, ये कितना प्यार करते थे उससे! और उनमें से कहा कुछ ने : क्या यह आदमी जिसने अंधे की खोल दीं आँखें, ऐसा नहीं कर सकता था कि यह आदमी भी न मरता?'

रस्कोलनिकोव ने उसकी भावनाओं से सराबोर हो कर देखा : हाँ, यही हुआ था! सोन्या काँप रही थी, उसे सचमुच बुखार चढ़ रहा था। रस्कोलनिकोव पहले ही सोच चुका था कि ऐसा ही होगा। अब वह परम चमत्कार की कहानी के पास पहुँच रही थी और विजय की बेपनाह गहरी भावना उस पर छाए जा रही थी। उसकी आवाज घंटी की तरह गूँजने लगी; विजय और प्रसन्नता की भावनाओं ने उसमें अपार शक्ति भर दी थी। पंक्तियाँ उसकी आँखों के सामने नाच रही थीं, लेकिन जो कुछ वह पढ़ रही थी वह उसे जबानी याद था। जब वह इस अंतिम वाक्य पर पहुँची कि 'क्या यह आदमी, जिसने अंधे की खोल दीं आँखें...' तब सोन्या ने अपनी आवाज कुछ धीमी करके, भावावेग में उन अंधे अविश्वासी यहूदियों की शंका, उनके ताने और उनकी भर्त्सना को व्यक्त किया, जो दूसरे ही पल यीशु के चरणों में गिर कर इस तरह रोए मानो उन पर बिजली गिरी हो और उनके मन में आस्था उत्पन्न हुई हो...' और वह, वह भी - वह जो अंधा है और अविश्वासी है वह भी सुनेगा, वह भी विश्वास करेगा, हाँ! फौरन, अभी,' सोन्या यह सपना देख रही था, और इस सुखद आशा से काँप रही थी।

'यीशु कब्र के पास पहुँचे, अंदर ही अंदर कराहते हुए। वह थी एक गुफा और उसके मुँह पर रखा था एक पत्थर। यीशु बोले : हटा दो पत्थर। मार्था ने, जो मरनेवाले की बहन थी, उनसे कहा : प्रभु! अब तक तो आने लगी होगी उसके शव से दुर्गंध क्योंकि उसे मरे हुए तो चार दिन बीत चुके।'

सोन्या ने चार शब्द पर जोर दिया।

'यीशु बोले उससे : कहा था न मैंने तुझसे कि होगी अगर तेरे मन में आस्था तो दिखाई देगी तुझे प्रभु की लीला। तब उन लोगों ने हटाया उस जगह से पत्थर जहाँ रखा गया था मृतक का शव। और यीशु ने ऊपर की ओर उठाई अपनी आँखें और बोले : हे परमपिता, मैं तेरा आभारी हूँ कि तूने मेरी बात सुनी और मैं जानता था कि तू सुनेगा सदा मेरी बात; लेकिन ऐसा कहा था मैंने अपने आसपास खड़े लोगों के कारण ताकि हो जाए उन्हें यह विश्वास कि तूने ही मुझे भेजा है और यह कह चुकने के बाद उन्होंने पुकार कर कहा, ऊँचे स्वर में, उठो लैजरस। और उठ खड़ा हुआ वह जो मर चुका था।'

(वह ऊँचे स्वर में पढ़ रही थी। खुशी के मारे उसका शरीर ठंडा पड़ गया था और वह काँपे जा रही थी, गोया अपनी आँखों के सामने यह दृश्य देख रही हो :) 'लिपटे हुए थे उसके हाथ और पाँव कफन में और बँधा हुआ था उसके मुँह पर रूमाल। यीशु ने कहा उन लोगों से : खोल दो इसे और जाने दो।'

'तब बहुत से यहूदियों ने, आए थे जो मरियम के पास, उन्होंने अपनी आँखों देखा था, जो कुछ किया था यीशु ने, उन पर विश्वास करने लगे।'

सोन्या ने आगे नहीं पढ़ा बल्कि सच तो यह है कि पढ़ न सकी। उसने किताब बंद कर दी और जल्दी से अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुई।

'लैजरस के फिर से जिंदा होने की कहानी बस इतनी ही है,' सोन्या ने अचानक कठोर स्वर में कहा और घूम कर बेहरकत खड़ी रही। रस्कोलनिकोव की ओर आँखें उठा कर देखने की हिम्मत उसे नहीं हो रही थी, गोया वह शर्मिंदगी महसूस कर रही हो। वह अभी तक काँप रही थी, मानो बुखार चढ़ रहा हो। दबे-पिचके शमादान में शमा के आखिरी सिरे की लौ झिलमिला रही थी, और इस दीन-हीन कमरे में उस हत्यारे पर और उस वेश्या पर मद्धम-मद्धम रोशनी बिखेर रही थी जो विचित्र ढंग से मिल कर एक धर्मग्रन्थ का पाठ कर रहे थे। इसी तरह पाँच मिनट या उससे भी ज्यादा समय बीत गया।

'मैं तुमसे कुछ कहने आया था,' रस्कोलनिकोव ने माथे पर बल डाल कर अचानक ऊँची आवाज में कहा। वह उठ कर सोन्या के पास गया और सोन्या ने आँखें उठा कर चुपचाप उसे देखा। रस्कोलनिकोव का चेहरा खास तौर पर कठोर लग रहा था। उस पर एक वहशियाना संकल्प की छाप थी।

'आज मैं अपने परिवार को छोड़ कर आया हूँ,' वह बोला, 'अपनी माँ और बहन को। उनसे मिलने मैं अब नहीं जाऊँगा। उनसे मैंने नाता तोड़ लिया है।'

'पर क्यों?' सोन्या ने आश्चर्य से पूछा। हाल ही में उसकी माँ और बहन से मिल कर वह बहुत प्रभावित हुई थी, हालाँकि उससे इसका कारण पूछा जाता तो वह आसानी से शायद नहीं बता सकती थी। रस्कोलनिकोव के मुँह से यह बात सुन कर वह सहम गई।

'मुझे अब सिर्फ तुम्हारा सहारा है,' रस्कोलनिकोव कहता रहा। 'मैं तुम्हारे पास आया हूँ। हम दोनों अभागे हैं... इसलिए चलो, हम साथ चलें!'

उसकी आँखें चमक रही थीं। 'गोया वह पागल है,' इस बार सोन्या ने सोचा।

'कहाँ जाएँगे?' सोन्या ने भयभीत हो कर पूछा और अनायास पीछे हटी।

'मुझे क्या मालूम? मैं बस इतना जानता हूँ कि हम दोनों का एक रास्ता है। इतना मुझे पक्का पता है - बस हम दोनों की एक ही मंजिल है!'

सोन्या ने उसकी ओर देखा पर उसकी समझ में कुछ नहीं आया। वह बस इतना ही समझ सकी कि वह बहुत दुखी था, बेपनाह दुखी।

'तुम अगर बताओगी भी तो उनमें से कोई तुम्हारी बात नहीं समझेगा, लेकिन मैं समझ रहा हूँ। मुझे जरूरत है तुम्हारी। इसीलिए तुम्हारे पास आया हूँ,' वह कहता रहा।

'मैं नहीं समझी...' सोन्या ने धीमे स्वर में कहा।

'बाद में समझ जाओगी। तुमने भी क्या यही नहीं किया है? हद से आगे तो तुम भी निकल गई हो... हद से आगे निकल जाने की हिम्मत तुम में थी। तुमने खुद पर हाथ डाला है... एक जिंदगी बर्बाद की है, खुद अपनी (वह भी वही बात है!)। आत्मा और विवेक की कसौटी पर खरी उतरनेवाली जिंदगी तुम भी बिता सकती थीं, लेकिन आखिर में तुम भूसामंडी ही पहुँचोगी... लेकिन वह सब तुम बर्दाश्त नहीं कर सकोगी, और अगर अकेली रहोगी तो मेरी ही तरह पागल हो जाओगी। अभी भी तुम पागलों जैसी ही हो। इसलिए हम दोनों को एक ही रास्ते पर साथ चलना है। आओ, चलें!'

'क्यों? यह सब किसलिए कह रहे हो?' सोन्या बोली। उसकी बातों से उसमें एक अजीब और तीखी विद्रोह-भावना पैदा हो गई थी।

'क्यों? इसलिए कि तुम इस हाल में नहीं रह सकतीं; और क्यों! तुम आखिरकार संजीदगी और सच्चाई से हर चीज के बारे में सोचो, और बच्चों की तरह रो-रो कर यह मत कहो कि भगवान कभी ऐसा नहीं होने देगा! कल तुम्हें सचमुच अगर अस्पताल पहुँचा दिया गया तो क्या होगा? वे तो खैर पागल और तपेदिक की शिकार हैं; कुछ ही दिन की मेहमान हैं, पर बच्चे? तुम क्या मुझसे यह कहना चाहती हो कि पोलेंका की इज्जत नहीं उतरेगी? तुमने क्या यहाँ ऐसे बच्चों को नहीं देखा जिन्हें उनकी माँएँ सड़क के नुक्कड़ पर भीख माँगने भेज देती हैं? मैंने पता लगाया है कि वे माँएँ कहाँ और कैसे हालात में रहती हैं। बच्चे? वहाँ बच्चे नहीं रहते। वहाँ सात साल के ही बच्चे में सारी बुराइयाँ पैदा हो जाती हैं, वह चोर बन जाता है। फिर भी बच्चे, तुम तो जानती ही हो, ईसा मसीह का रूप होते हैं : 'उनका जीवन स्वर्ग है!' हमें उन्होंने बच्चों का सम्मान करने, उनसे प्यार करने का आदेश दिया था... वे मानवता के भविष्य हैं...'

'पर किया क्या जाए... क्या किया जाए?' सोन्या ने हाथ मलते हुए, बिलख-बिलख कर रोते हुए दोहराया।

'क्या किया जाए? जिस चीज को तोड़ना है उसे तोड़ दें... फौरन, और सारी मुसीबत अपने ऊपर ले लें। क्या... तुम नहीं समझीं? बाद में समझ जाओगी... आजादी और ताकत... सबसे बढ़ कर ताकत! सारी काँपती हुई मखलूक पर, चींटियों के सारे ढेर पर! ...लक्ष्य यही है! याद रखना! चलते-चलते मेरा संदेश यही है! तुमसे मैं शायद आखिरी बार बातें कर रहा हूँ। कल अगर मैं न आया और तुम इस बारे में सब कुछ सुनो, तब इन शब्दों को याद करना। फिर कुछ अरसा बीत जाने पर शायद बरसों बाद, तुम्हारी समझ में आए कि उनका मतलब क्या था। कल अगर मैं आया तो तुम्हें बताऊँगा कि लिजावेता को किसने मारा था। तो मैं चला।'

सोन्या डर कर चौंक पड़ी।

'क्यों, आपको मालूम है कि उसे किसने मारा था?' दीवानों की तरह उसे देखते हुए उसने पूछा। डर के मारे उसका खून जमा जा रहा था।

'मुझे मालूम है और मैं बताऊँगा... तुम्हें... सिर्फ तुम्हें! इसके लिए मैंने तुम्हें ही चुना है। मैं तुम्हारे पास क्षमा माँगने नहीं, सिर्फ बताने आऊँगा। यह बात कहने के लिए तुम्हें मैंने बहुत पहले ही चुन लिया था, जब तुम्हारे बाप ने मुझसे तुम्हारे बारे में कुछ बातें बताई थीं और लिजावेता जिंदा थी। तभी मैंने इस बारे में सोचा था, तो मैं चला। हाथ मिलाने की कोई जरूरत नहीं। कल!'

वह बाहर निकल गया। सोन्या उसे यूँ घूरती रही जैसे वह कोई पागल हो, लेकिन वह खुद पागलों जैसी हो रही थी और इस बात को महसूस करती थी। उसका सर चकरा रहा था। 'हे भगवान इन्हें कैसे मालूम कि लिजावेता को किसने मारा? उन शब्दों का मतलब क्या है? कितनी भयानक बात है!' लेकिन इसके बाद भी वह विचार उसके दिमाग में नहीं आया, एक पल के लिए भी नहीं! 'ओह, वे बहुत दुखी होंगे! ...अपनी माँ और बहन को उन्होंने छोड़ दिया है। क्यों हुआ क्या है? क्या बोझ था उनके दिमाग पर उन्होंने मुझसे क्या कहा था? मेरा पाँव चूमा था और कहा था... और कहा था (हाँ, साफ-साफ कहा था) कि वे मेरे बिना नहीं रह सकते... हे भगवान, दया करो!'

सोन्या की वह रात बुखार और सरसाम की हालत में बीती। बीच-बीच में चौंक कर वह उछल पड़ती थी, रोती थी, हाथ मलती थी, फिर बुखार की हालत में सो जाती थी और पोलेंका, कतेरीना इवानोव्ना और लिजावेता को सपने में देखती थी। वह सपने में देखती थी कि उन्हें बाइबिल पढ़ कर सुना रही है... उनका पीला चेहरा और दहकती हुई आँखें... कि वे मेरे पाँव चूम रहे हैं, और रोए जा रहे हैं... हे भगवान!

सोन्या के कमरे और मादाम रेसलिख के फ्लैट के बीच दाहिनी तरफ जो दरवाजा था, उसके दूसरी ओर एक कमरा था जो बहुत दिनों से खाली पड़ा था। किराए के लिए उस कमरे के खाली होने का इश्तहार फाटक पर और नहर की ओर खुलनेवाली खिड़कियों पर चिपका दिया गया था। सोन्या एक अरसे से उस कमरे के खाली पड़े रहने की आदी हो चुकी थी। लेकिन स्विद्रिगाइलोव उस खाली कमरे के दरवाजे के पास तमाम वक्त खड़ा, कान लगाए सुनता आ रहा था। रस्कोलनिकोव के जाने के बाद वह चुपचाप खड़ा एक पल तक कुछ सोचता रहा, फिर पंजों के बल उस खाली कमरे से लगे हुए अपने कमरे में गया, और कोई आवाज किए बिना वहाँ से एक कुर्सी ला कर उसे सोन्या के कमरे में जाने के दरवाजे के पास रख दिया। वह पूरी बातचीत उसे दिलचस्प और महत्वपूर्ण लगी और उसमें उसे बहुत मजा आया - यहाँ तक कि वह एक कुर्सी उठा लाया ताकि आगे कभी, मिसाल के लिए कल ही, उसे घंटे भर खड़े रहने की तकलीफ न उठानी पड़े, और आराम से वह सारी बात सुन सके।

अपराध और दंड : (अध्याय 4-भाग 5)

अगले दिन सबेरे रस्कोलनिकोव ठीक ग्यारह बजे फौजदारी मुआमलों की छानबीन वाले विभाग में पहुँचा। उसने अपना नाम पोर्फिरी पेत्रोविच के पास भिजवाया तो उसे यह देख कर ताज्जुब हुआ कि उसे देर तक इंतजार कराया गया। कम-से-कम दस मिनट बीतने के बाद ही उसे अंदर बुलाया गया। उसने सोचा था, वे लोग देखते ही उस पर लपक पड़ेंगे। वह बाहरी कमरे में खड़ा इंतजार करता रहा और ऐसे लोग, जिनको बजाहिर उससे कोई वास्ता नहीं था, उसके सामने से हो कर इधर-से-उधर गुजरते रहे। उसके बादवाले कमरे में, जो देखने में कोई दफ्तर लगता था, कई क्लर्क बैठे कुछ लिख रहे थे। जाहिर है, उन्हें इस बात का कोई इल्म नहीं था कि रस्कोलनिकोव कौन और क्या है। उसने बेचैन हो कर और शक से यह पता लगाने के लिए चारों ओर देखा कि उस पर कोई पहरा तो नहीं लगाया गया है या किसी रहस्यमय ढंग से उस पर नजर तो नहीं रखी जा रही कि वह भाग न सके। लेकिन इस तरह की कोई बात नहीं थी। उसे सिर्फ उन क्लर्कों के चेहरे नजर आए जो छोटे-छोटे कामों में व्यस्त थे और कुछ ऐसे लोगों के भी, जिनमें से किसी को भी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। रहा वह, तो वह जहाँ भी चाहे, जा सकता था। उसके मन में यह विश्वास और पक्का हो गया कि कलवाले उस रहस्यमय आदमी ने, जो धरती का सीना फाड़ कर अचानक निकल आए, उस प्रेत ने सब कुछ देखा होता, तो वे लोग उसे वहाँ इस तरह खड़े-खड़े इंतजार करने का मौका न देते। या वे लोग इस बात की राह देखते कि वह खुद ग्यारह बजे आ कर वहाँ हाजिर हो या तो उस आदमी ने उन लोगों को अभी तक कोई खबर नहीं दी थी, या... या फिर उसे कुछ भी मालूम नहीं था, उसने कुछ भी नहीं देखा था (वह देख भी कैसे सकता था!), और इसलिए कल उसके साथ जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक भ्रम था, जिसे उसकी बीमार और जरूरत से ज्यादा थकी हुई कल्पना ने बढ़ा-चढ़ा कर एक भीषण रूप दे दिया था। उसके सारे भय और सारी निराशा के बीच यह अनुमान कल ही पकना शुरू हो गया था। अब इस सारी बात पर फिर से विचार करते, एक नए संघर्ष की तैयारी करते हुए, उसे अचानक एहसास हुआ कि वह काँप रहा है। मगर मन में यह विचार आते ही कि वह उस मनहूस पोर्फिरी पेत्रोविच का सामना करने के डर से काँप रहा था, उसे अपने अंदर क्रोध का एक तूफान उठता हुआ महसूस हुआ। उसे सबसे ज्यादा डर उससे फिर मिलने से लग रहा था। उससे उसको गहरी नफरत थी, खुली हुई नफरत, और उसे डर था कि इस नफरत की वजह से कहीं उसका भेद खुल न जाए। फिर तो उसे इतना गुस्सा आया कि उसका काँपना फौरन बंद हो गया। वह शांत भाव से और ढिठाई के अंदाज में अंदर जाने को तैयार हो गया और उसने मन-ही-मन कसम खाई कि जहाँ तक हो सकेगा, वह चुप रहेगा, सिर्फ देखेगा और सुनेगा और कम-से-कम इस बार अपने जरूरत से ज्यादा थके हुए दिमाग पर लगाम लगा कर रखेगा। उसी पल उसे पोर्फिरी पेत्रोविच के सामने बुलाया गया।

उसने देखा उस पल पोर्फिरी पेत्रोविच अपने दफ्तर में अकेला था। दफ्तर न बहुत बड़ा था, न बहुत छोटा। एक बड़ी-सी लिखने की मेज रखी हुई थी, पास ही एक सोफा पड़ा था जिस पर मोमजामा चढ़ा हुआ था, एक और दफ्तरी मेज थी, कोने में किताबों की एक अलमारी और बहुत-सी कुर्सियाँ। यह सब पीली पालिश की हुई लकड़ी का सरकारी फर्नीचर था। दूरवाली दीवार में एक बंद दरवाजा था, जिसके उधर यकीनन दूसरे कमरे होंगे। रस्कोलनिकोव के अंदर आते ही पोर्फिरी पेत्रोविच ने फौरन वह दरवाजा बंद कर दिया, जिससे हो कर वह कमरे में आया था, और वहाँ वे दोनों अकेले रह गए। वह अपने मेहमान से जाहिरा तौर पर काफी मिलनसारी और खुशमिजाजी के साथ मिला। रस्कोलनिकोव को कुछ मिनट बाद उसमें अटपटा महसूस करने के चिह्न दिखाई पड़े, गोया उसका सारा हिसाब गड़बड़ हो गया हो या वह कोई खुफिया काम करते हुए पकड़ा गया हो।

'आओ, यार। तो तुम आ ही गए... हमारे हलके में...' पोर्फिरी ने दोनों हाथ उसकी ओर बढ़ा कर कहना शुरू किया। 'आओ, बैठो उस्ताद... या शायद तुम्हें यह पसंद नहीं कि तुमसे यार और उस्ताद कह कर बात की जाए... खैर छोड़ो। मेरी बेतकल्लुफी का बुरा न मानना... यहाँ बैठो सोफे पर।'

रस्कोलनिकोव बैठ गया और नजरें जमा कर उसे देखने लगा। 'हमारे हलके में', बेतकल्लुफी की माफी माँगना, बीच में, फ्रांसीसी के कुछ शब्द कह देना, ये सब बातें खास होती थीं। 'उसने दोनों हाथ मेरी ओर बढ़ाए लेकिन मिलाया नहीं... मिलाने से पहले ही खींच लिया।' इस बात से रस्कोलनिकोव के मन में शक पैदा हुआ। दोनों एक-दूसरे को गौर से देखते थे, लेकिन नजरें मिलते ही बिजली जैसी तेजी से किसी दूसरी ओर देखने लगते थे।

'मैं यह कागज ले कर आपके पास आया था... घड़ी के बारे में। इसे देख लीजिए। ठीक हैं या फिर से लिख दूँ?'

'क्या कागज हाँ, हाँ... परेशान न हो, ठीक है,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने कहा, जैसे उसे किसी बात की बड़ी जल्दी हो। यह कह चुकने के बाद उसने कागज की ओर देखा। 'हाँ, ठीक है। और किसी चीज की जरूरत नहीं है,' उसने उतनी ही तेजी से कहा और कागज मेज पर रख दिया। मिनट-भर बाद जब वह कोई दूसरी बात कर रहा था, उसने वह कागज उठा कर अपनी मेज पर रख दिया।

'मैं समझता हूँ आपने कल यह कहा था कि आप... जिसका कत्ल हुआ है उस औरत के साथ... मेरी जान-पहचान के बारे में पूछताछ करेंगे... बाकायदा, सरकारी तौर पर!' रस्कोलनिकोव ने फिर कहना शुरू किया। 'मैंने भला 'मैं समझता हूँ' क्यों जोड़ दिया,' उसके दिमाग में पलक झपकते यह विचार उठा। 'फिर फौरन ही आखिर 'मैं समझता हूँ' कह देने पर मैं इतना परेशान क्यों हूँ' यह दूसरा विचार भी उसके दिमाग में बिजली की तरह कौंधा।

अचानक उसे महसूस हुआ कि पोर्फिरी के साथ संपर्क होने के साथ ही, उसकी पहली बात पर ही, उसकी सूरत देखते ही उसकी बेचैनी ने बढ़ते-बढ़ते एक भयानक रूप ले लिया था... और यह कि यह बात बेहद खतरनाक थी। उसकी रगें तक काँप रही थीं, भावों का ज्वार चढ़ता जा रहा था। 'बहुत बुरी बात है, बहुत ही बुरी! ...मैं फिर शायद जरूरत से ज्यादा कुछ कह जाऊँगा।'

'हाँ, हाँ, हाँ! कोई जल्दी नहीं है, कोई नहीं,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने मेज के पास किसी साफ मकसद के बिना ही इधर-से-उधर टहलते हुए बुदबुदा कर कहा। कभी वह झपट कर खिड़की के पास चला जाता, कभी दफ्तर की मेज के पास, फिर कभी लिखने की मेज के पास। कभी वह रस्कोलनिकोव की संदेही नजरों से बचने की कोशिश करता, और कभी चुपचाप खड़ा उसकी नजरों में नजरें डाल कर देखने लगता। उसका गोलमटोल, छोटा-सा शरीर देखने में अजीब लग रहा था, मानो कोई गेंद इधर-से-उधर लुढ़के और किसी चीज से टकरा कर फिर लौट आए।

'हमारे पास वक्त बहुत है! ...बहुत सिगरेट पीते हो, है तुम्हारे पास लो, पियो...' मेहमान की ओर सिगरेट बढ़ाते हुए वह बोलता रहा। 'बात यह है कि मैं तुमसे मिल तो यहाँ रहा हूँ, लेकिन मेरा अपना घर, मतलब यह कि मेरा सरकारी घर वहाँ, उस पार है। अभी तो मैं वहाँ से बाहर ही रह रहा हूँ क्योंकि उस घर में कुछ मरम्मत का काम चल रहा है। मरम्मत लगभग पूरी हो चुकी है... सरकारी घर, तुम तो जानते ही हो, बहुत बढ़िया होते हैं। क्यों, क्या खयाल है?'

'हाँ, बढ़िया होते हैं,' रस्कोलनिकोव ने लगभग व्यंग्य से उसे देखते हुए कहा।

'बहुत... बहुत ही बढ़िया,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने फिर दोहराया, मानो अभी-अभी उसे किसी बिलकुल ही दूसरी चीज का खयाल आया हो। 'हाँ, बेहद बढ़िया,' आखिर वह लगभग चीख उठा और रस्कोलनिकोव से कोई दो कदम दूर खड़ा हो कर, उसकी आँखों में आँखें डाल कर घूरने लगा। अपने मेहमान को वह जिस गंभीर, विचारमग्न और रहस्यमयी निगाह से देख रहा था उसके साथ फूहड़ ढंग से एक ही बात को बार-बार दोहराना बेतुका लगता था।

लेकिन इस बात ने रस्कोलनिकोव का गुस्सा पहले से भी ज्यादा भड़का दिया। वह अपने आपको उसे व्यंग्य भरी और एक हद तक अविवेक से भरी चुनौती देने से न रोक सका।

'आपको पता है,' रस्कोलनिकोव ने लगभग ढिठाई से उसे देखते हुए अचानक पूछा, जैसे उसे अपनी इस ढिठाई में मजा आ रहा हो। 'मैं समझता हूँ यह एक तरह का कानूनी नियम है। छानबीन करनेवाले सभी वकीलों के लिए एक तरह का कानूनी तरीका कि वे अपना हमला दूर से शुरू करते हैं, किसी बहुत छोटी-सी बात से, कम-से-कम किसी ऐसी बात से जिसका असल मामले से कोई संबंध न हो, ताकि जिस आदमी से वे सवाल-जवाब कर रहे हों, उसे बढ़ावा मिले, या उसका ध्यान दूसरी ओर हट जाए, वह चौकस न रह पाए, और तब वे कोई टेढ़ा सवाल करके अचानक उस पर ऐसा वार करें कि वह टिक न सके। इसका पालन मैं समझता हूँ, इस धंधे के सभी कामों में पाबंदी से किया जाता है।'

'क्यों, क्या तुम्हारा खयाल यह है कि मैं सरकारी घर की चर्चा इसलिए कर रहा था... क्यों?' यह कहते हुए पोर्फिरी पेत्रोविच ने आँखें तरेर कर आँख मारी। उसके चेहरे पर जरा देर के लिए खुशमिजाजी मिली, चालाकी का भाव उभरा, माथे पर पड़े बल सीधे हो गए, आँखें सिकुड़ गईं, चेहरा कुछ और चौड़ा हो गया, और अचानक वह देर तक घबराई हुई हँसी हँसता रहा। उसका सारा शरीर हिल रहा था और वह रस्कोलनिकोव की आँखों में आँखें डाल कर देख रहा था। रस्कोलनिकोव भी न चाहते हुए हँसने लगा। लेकिन जब पोर्फिरी ने उसे हँसते देख कर ऐसा ठहाका मारा कि उसका चेहरा एकदम लाल हो गया, तो उसके प्रति रस्कोलनिकोव की घृणा सावधानी की सारी हदें तोड़ कर बाहर फूट निकली। हँसना उसने बंद कर दिया, आँखें तरेरी और नफरत भरी नजरों से पोर्फिरी को घूरता रहा। फिर तो पोर्फिरी जब तक जान-बूझ कर अपनी हँसी को खींचता गया, वह भी उस पर आँखें गड़ाए रहा। लेकिन लापरवाही दोनों ओर से बरती जा रही थी। लग रहा था कि पोर्फिरी पेत्रोविच अपने मेहमान को चिढ़ाने के लिए ही हँस रहा था और उसे इस बात की जरा भी परवाह नहीं थी कि उसके मेहमान को उसकी हँसी से कितनी नफरत हो रही थी। यह बात रस्कोलनिकोव के लिए बहुत ही अधिक महत्व रखती थी। उसने देखा कि इससे फौरन पहले पोर्फिरी कतई अटपटा महसूस नहीं कर रहा था, लेकिन शायद वह खुद, यानी कि रस्कोलनिकोव, किसी जाल में फँस गया था; कि इसमें कोई ऐसी बात होगी, कोई ऐसा उद्देश्य होगा जिसका उसे कुछ भी पता नहीं था; कि शायद हर तैयारी पहले से करके रखी गई थी और अभी एक पल में भेद अचानक उसके सामने खोल दिया जाएगा और वह अचेते ही पकड़ा जाएगा...

वह फौरन मतलब की बात पर आ गया, कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और अपनी टोपी उठा ली।

'पोर्फिरी पेत्रोविच,' उसने सधे लहजे में लेकिन कुछ चिड़चिड़े ढंग से कहना शुरू किया, 'कल आपने कहा था कि आप चाहते हैं, मैं किसी जाँच-पड़ताल के लिए आपके पास आऊँ।' (उसने जाँच-पड़ताल शब्द पर खास जोर दिया।) 'तो मैं आ गया हूँ और आपको मुझसे अगर कुछ पूछना है तो पूछिए, वरना मुझे जाने दीजिए। मेरे पास फालतू वक्त नहीं, मुझे काम है... मुझे उस आदमी के जनाजे में जाना है जो घोड़ागाड़ी से कुचल कर मर गया, जिसका आपको... इल्म भी है,' उसने कहा। लेकिन यह बात जोड़ देने के साथ ही उसे फौरन गुस्सा आया और अपने इस गुस्से के सबब पर वह और भी चिड़चिड़ा हो गया। 'मैं तंग आ चुका हूँ, इन सब बातों से, सुना आपने और बहुत अरसे से तंग हूँ। यही एक हद तक मेरी बीमारी की वजह भी है। कहने का मतलब यह,' यह महसूस करके कि यह अपनी बीमारी की चर्चा करने का कोई मौका नहीं था, वह जोर से बोला, 'कहने का मतलब यह कि या तो जो भी पूछताछ करनी हो, फौरन कीजिए या मुझे जाने दीजिए... और अगर पूछताछ करनी भी है तो बाकायदा, सही तरीके से कीजिए! मैं किसी दूसरे तरीके से ऐसा करने की इजाजत नहीं दूँगा... अभी इस वक्त तो मैं चलता हूँ क्योंकि जाहिर है हमारे पास अब कोई ऐसा काम नहीं जिसके लिए मैं यहाँ रुकूँ।'

'कमाल है! तुम आखिर किस चीज के बारे में बातें कर रहे हो? चाहते क्या हो, मैं तुमसे किस चीज के बारे में पूछताछ करूँ?' पोर्फिरी पेत्रोविच ने फौरन हँसना बंद कर दिया और अपना लहजा बदलते हुए चहक कर बोला। 'बे-वजह परेशान न हो,' वह बेचैनी से कभी इधर जाता, कभी उधर और आग्रह के साथ रस्कोलनिकोव से बार-बार बैठ जाने को कहता। 'कोई जल्दी नहीं है, कोई भी नहीं, यह सब बकवास है। अरे, मैं तो खुश हूँ कि आखिर तुम मुझसे मिलने तो आए... मैं तो तुम्हें अपना मेहमान मानता हूँ। रहा सवाल मेरी इस कमबख्त हँसी का, तो उसके लिए मुझे माफ करना रोदिओन रोमानोविच। रोदिओन रोमानोविच यही नाम है न तुम्हारा ...मेरा स्वभाव ही ऐसा बन चुका है और तुमने तो एक दिलचस्प बात कह कर मुझे जैसे गुदगुदा दिया। तुम्हें मैं यकीन दिलाता हूँ कि कभी-कभी तो मैं आधे-आधे घंटे तक रबर की गेंद की तरह उछल-उछल कर हँसता रहता हूँ... हाँ, मेरी तबीयत में हँसी-मजाक बहुत है। मेरे जैसे डीलडौलवाले आदमी के लिए यह बात जरा खतरनाक होती है। अकसर मुझे डर लगने लगता है कि मुझे कहीं लकवा न मार जाए। बैठो, अब बैठ भी जाओ, नहीं तो मैं समझूँगा कि नाराज हो...'

रस्कोलनिकोव कुछ नहीं बोला, बस उसे सुनता और देखता रहा। पहले की ही तरह उसके माथे पर गुस्से से बल पड़े रहे। वह बैठा तो भी अपनी टोपी हाथ में ही लिए रहा।

'रोदिओन रोमानोविच, तुम्हें मैं अपने बारे में एक बात बता दूँ,' पोर्फिरी पेत्रोविच कमरे में इधर-उधर तेजी से टहलता हुआ और मेहमान से नजरें मिलाने से बचता हुआ अपनी बात कहता रहा। 'देखो, बात यह है कि मैं ठहरा एक कुँवारा; न मैं दुनियादार न लोगों के बीच मेरा कोई असर-रसूख या नाम। इसके अलावा, अब मुझे जिंदगी से कुछ मिलना भी नहीं है। मैं एक लीक पकड़े चल रहा हूँ, पुराना पड़ता जा रहा हूँ और... और एक बात देखी है तुमने, रोदिओन रोमानोविच, कि हमारे यहाँ, यानी रूस में, खास कर इस पीतर्सबर्ग के समाज में, अगर दो ऐसे समझदार कहीं मिल जाएँ, जो एक-दूसरे को अच्छी तरह न जानते हों लेकिन एक-दूसरे की एक तरह से इज्जत करते हों, जैसे तुम और मैं हैं, तो उन्हें बातचीत का कोई विषय ढूँढ़ने में ही आधा घंटा लग जाता है। वे गूँगे बन जाते हैं; एक-दूसरे के सामने बैठे अटपटा-सा महसूस करते रहते हैं। हरेक के पास बातचीत के लिए कुछ न कुछ जरूर होता है, मिसाल के लिए बड़े घरों की औरतों के पास... समाज के ऊँचे वर्गों के पास हमेशा बातचीत के अपने विषय होते हैं, बँधे, बँधाए, लेकिन हम जैसे मामूली लोग, मेरा मतलब है सोचने वाले लोग... उनकी जबान हमेशा ही बंद रहती है और वे अटपटा-सा महसूस करते हैं। वजह क्या है इसकी मुझे नहीं मालूम, ऐसा क्यों होता है : इसलिए कि हम लोगों में कोई समाजी दिलचस्पी नहीं होती, या इसलिए कि हम इतने ईमानदार होते हैं कि एक-दूसरे को धोखा देना नहीं चाहते। तुम्हारा खयाल क्या है टोपी रख दो, नहीं तो ऐसा लगता रहेगा कि तुम जानेवाले हो। इससे मुझे उलझन होती है... जबकि अभी मुझे वाकई खुशी है...'

रस्कोलनिकोव ने अपनी टोपी रख दी और गंभीर मुद्रा बनाए, त्योरियों पर बल डाले, चुपचाप बैठा पोर्फिरी पेत्रोविच की गोल-मोल और खोखली बकवास सुनता रहा। 'यह क्या सचमुच अपनी बेवकूफी की बातों से मेरा ध्यान बँटाना चाहता है?'

'मैं यहाँ तुम्हें कॉफी नहीं पिला सकता। इस काम के लिए यह जगह है भी नहीं। लेकिन एक दोस्त के साथ पाँच मिनट क्यों नहीं बिताए जा सकते?' पोर्फिरी बड़बड़ाता रहा, 'और सरकारी काम का हाल तुम तो जानते ही हो। ...मेरे इस तरह इधर-उधर टहलने का बुरा न मानना; इसके लिए मैं माफी चाहता हूँ। मुझे डर लग रहा है कि कहीं मेरी किसी बात का बुरा न मान जाओ, लेकिन यह कसरत मेरे लिए बेहद जरूरी है। मुझे हर वक्त बैठे रहना पड़ता है और पाँच मिनट भी चलने-फिरने को मिल जाएँ तो मुझे बेहद खुशी होती है... हरदम बैठे ही रहना जी का जंजाल हो गया है... बवासीर है न... मैं हमेशा यही सोचता रहता हूँ कि इलाज के लिए कसरत करना शुरू कर दूँ, सुना है कि बड़े-बड़े अफसर, प्रिवी कौंसिलर तक बीच-बीच में खुश हो कर रस्सी कूदते रहते हैं; यही तो है आधुनिक विज्ञान! ...हाँ, हाँ... लेकिन जहाँ तक यहाँ मेरे काम का सवाल है, यह सारी जाँच-पड़ताल और इसी तरह की सारी रस्मी कार्रवाई... जाँच-पड़ताल की बात तो अभी तुम ही कर रहे थे... तो मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि कभी-कभी इस जाँच-पड़ताल में जिससे पूछताछ की जाती है, उसको उतनी परीशानी नहीं होती जितनी कि पूछताछ करनेवाले को होती है... अभी तुमने खुद यह बात बहुत अच्छे और दिलचस्प ढंग से कही थी।' (रस्कोलनिकोव ने इस तरह की कोई बात नहीं कही थी।) 'आदमी है कि उलझ कर रहा जाता है! एकदम उलझ कर वह एक ही सुर में अलापता रहता है, ढोलक की तरह! सुना है कोई सुधार होनेवाला है और हम लोगों के ओहदों के नाम बदल दिए जाएँगे। चलो, कम-से-कम इतना तो होगा, हिःहिःहिः! जहाँ तक हमारे कानूनी तरीकों का सवाल है, जैसा कि तुमने दिलचस्प तरीके से उसे बयान किया, मैं तुमसे सौ पैसे सहमत हूँ। गँवार से गँवार कोई किसान ही क्यों न हो, जिस कैदी पर भी मुकद्दमा चलाया जाता है वह जानता है कि ये लोग शुरू में उससे बे-मतलब सवाल करके उसे गाफिल करते हैं। (जैसा कि तुमने बहुत अच्छे ढंग से बयान किया) और फिर अचानक उस पर करारी चोट करते हैं कि बंदा ढेर हो जाता है... हिः-हिः-हिः! तुम्हारी ही दी हुई मुनासिब मिसाल है... हिः-हिः-हिः! तो तुम्हारा सचमुच यह खयाल था कि 'सरकारी घर' से मेरा मतलब... हिः-हिः-हिः! तुम भी खूब डंक मारनेवाले आदमी हो। अच्छा, तो लो यह बात मैं नहीं करता! अरे हाँ, याद आया! बात में से बात निकलती है। तुमने अभी बाकायदा कार्रवाई की बात कही थी, जाँच-पड़ताल के सिलसिले में... याद है लेकिन बाकायदा कार्रवाई से फायदा क्या? कई मुआमलों में तो यह सरासर बकवास होती है। कभी-कभी तो दोस्ताना बातचीत करके ही उससे कहीं ज्यादा बातें मालूम की जा सकती हैं। बाकायदा कार्रवाई का सहारा तो कभी भी लिया जा सकता है, इसका मैं तुम्हें यकीन दिला दूँ। बहरहाल उससे नतीजा क्या निकलता है? छानबीन करनेवाला मजिस्ट्रेट हर कदम पर बाकायदा कार्रवाई की हदों में जकड़ कर तो नहीं रह सकता। छानबीन का काम, यूँ कहो कि अपने ढंग की एक अलग ही कला है... हिः-हिः-हिः...'

पोर्फिरी पेत्रोविच ने एक मिनट रुक कर दम लिया। वह थके बिना धाराप्रवाह बोलता रहा। कभी-कभी अपनी खोखली निरर्थक बातों के बीच कोई पहेली जैसे शब्द बोल देता था, और फिर वही बेसर-पैर की बकवास करने लगता था। वह जमीन की ओर देखता हुआ कमरे में इधर-से-उधर, लगभग दौड़ रहा था और उसकी छोटी-छोटी पर मोटी टाँगों की रफ्तार लगातार तेज होती जा रही थी। उसने दायाँ हाथ पीठ के पीछे कर रखा था और बाएँ हाथ को हिला-हिला कर ऐसे भाव व्यक्त करने की कोशिश कर रहा था... जो उसके शब्दों से कतई मेल नहीं खाते थे। रस्कोलनिकोव का ध्यान अचानक इस बात की ओर गया कि कमरे में इधर-से-उधर भागते वक्त दो बार यूँ लगा कि वह दरवाजे के पास एक पल के लिए ठिठका, मानो कुछ सुनने की कोशिश कर रहा हो...' उसे क्या किसी बात का इंतजार है?'

'तुम्हारा कहना एकदम ठीक है,' पोर्फिरी ने चौकस रस्कोलनिकोव की ओर बेहद मासूमियत से देखते हुए, खुश हो कर कहना शुरू किया (इस बात से रस्कोलनिकोव चौंका और फौरन चौकस हो गया) : 'हमारे कानूनी तौर-तरीकों पर तुम्हारा इस तरह मजे ले-ले कर हँसना एकदम ठीक है... हिः-हिः-हिः! हमारे ये पेचीदा मनोवैज्ञानिक तरीके तो इतने बेसिर-पैर के हैं कि उन पर हँसी आती है, उनमें कम-से-कम कुछ तो जरूर ऐसे हैं। अगर कोई कानूनी कार्रवाई की बहुत सख्ती से पाबंदी करे तो वे बेकार भी साबित होते हैं। हाँ... मैं फिर कानूनी कार्रवाई की ही बात करने लगा। खैर, जो भी छोटा-मोटा मामला मेरे हवाले किया जाता है उसमें अगर मैं किसी आदमी को पहचान लूँ, यूँ कहो कि अगर किसी पर मुझे शक हो जाए कि वह अपराधी है तो... तुम कानून ही पढ़ रहे हो न, रोदिओन रोमानोविच?'

'पढ़ रहा था...'

'खूब, तो यह एक ऐसी मिसाल है जो आगे चल कर तुम्हारे काम आएगी - हालाँकि अपराध के बारे में तुम्हारे जैसे बढ़िया लेख उसके बाद भी छपे हैं... यह न समझना कि मैं तुम्हें कुछ सिखाने की जुरअत कर रहा हूँ, मैं तो बस एक मिसाल दे रहा हूँ... तो यूँ समझ लो कि मैं अगर किसी को अपराधी समझ भी लूँ तो मैं पूछता हूँ, इसकी क्या जरूरत है कि उसके खिलाफ सबूत होते हुए भी मैं उसे वक्त से पहले परेशान करूँ? किसी मामले में हो सकता है कि मेरे लिए किसी को फौरन गिरफ्तार कर लेना जरूरी हो, लेकिन दूसरे मामले में हालत एकदम दूसरी भी हो सकती है... तुम तो जानते ही हो... तो मैं उसे शहर में थोड़ा घूम-फिर लेने का मौका क्यों न दूँ? हिः-हिः-हिः! लेकिन मैं देख रहा हूँ कि बात तुम्हारी समझ में कुछ आ नहीं रही... लो, मैं तुम्हें इससे भी ज्यादा साफ मिसाल देता हूँ। अगर मैं उसे जरूरत से पहले ही जेल में डाल दूँ, तो एक तरह से यह भी हो सकता है कि उसे मेरी वजह से नैतिक सहारा मिल जाए... हिः-हिः! तो तुम हँस रहे हो?'

(रस्कोलनिकोव हँसने की बात सोच भी नहीं रहा था। वह अपने होठ भींचे और अपनी बुखार से चूर आँखें पोर्फिरी पेत्रोविच पर गड़ाए हुए बैठा था।) 'फिर भी होता यही है, खासतौर पर कुछ लोगों के मामले में। आदमी तो हर तरह के होते हैं लेकिन उन सबसे निबटने का एक ही सरकारी तरीका होता है। तुम सबूत की बातें करते हो। तो, सबूत तो हो सकता है। लेकिन, तुम जानो, सबूत तो आमतौर पर दोधारी तलवार जैसा हो सकता है। मैं जाँच-पड़ताल का मजिस्ट्रेट तो जरूर हूँ, लेकिन इनसान भी तो हूँ। मैं ऐसा सबूत जुटाना चाहूँगा जो समझ लो कि हिसाब की तरह साफ हो। मैं ऐसे सुबूतों का एक पूरा सिलसिला तैयार करना चाहूँगा जैसे दो और दो चार होते हैं। सबूत सीधा और ऐसा होना चाहिए कि उसकी काट न हो सके! तो अगर मैं जरूरत से ज्यादा पहले ही उसे बंद कर दूँ, चाहे मुझे उसके अपराधी होने का पूरा-पूरा विश्वास ही क्यों न हो - तो बहुत मुमकिन है कि मैं उसके खिलाफ और ज्यादा सबूत जुटाने का रास्ता ही अपने पर बंद कर लूँ। पूछो क्यों? मैं उसे एक तरह से एक निश्चित मनोवैज्ञानिक स्थिति में पहुँचा कर उसकी सारी दुविधा दूर कर दूँगा, उसे निश्चित कर दूँगा, और इस तरह वह वापस अपने खोल में चला जाएगा। लोग कहते हैं कि सेवास्तोपोल में, आल्मा की जंग के फौरन बाद, वहाँ के होशियारों के दिल में यह डर समा गया था कि दुश्मन खुला हमला करेगा और सेवास्तोपोल पर कब्जा कर लेगा। लेकिन जब उन्होंने देखा कि दुश्मन बाकायदा घेराबंदी के पक्ष में है, तो उन्हें बहुत खुशी हुई : वे इसलिए खुश थे कि घेराबंदी कम-से-कम दो महीने खिंचेगी। तुम फिर हँस रहे हो... तो तुम्हें अभी भी मेरी बात पर यकीन नहीं आया तुम्हारा कहना भी ठीक ही है। ठीक कहते हो, तुम बिलकुल ठीक कहते हो। ये सब खास मिसालें हैं, मैं मानता हूँ, खास कर यह आखिरी मिसाल। लेकिन तुम्हें यह बात समझनी चाहिए, रोदिओन रोमानोविच मेरे दोस्त, कि वह मिसाल जिसके लिए सारे कानूनी तौर-तरीके और कायदे बनाए जाते हैं, जिसे सामने रख कर सारा हिसाब लगाया गया और किताबों में दर्ज किया गया, वह औसत मिसाल कहीं होती भी नहीं। इसलिए कि मिसाल के लिए हर अपराध, जैसे ही वह होता है, फौरन एक खास मामला बन जाता है और कभी-कभी तो वह ऐसा मामला बन जाता है जैसा उससे पहले कभी सामने आया ही नहीं। कभी-कभी इस तरह के बहुत ही हास्यास्पद मामले भी होते हैं। अगर मैं किसी भले आदमी को उसके हाल पर छोड़ दूँ, अगर उसे एकदम न छेड़ूँ, उसे परेशान न करूँ, लेकिन उसे यह जता दूँ या कम-से-कम उसके दिल में यह शक पैदा कर दूँ कि मुझे उस मामले के बारे में सब कुछ पता है और मैं दिन-रात उस पर नजर रखे हुए हूँ, अगर वह हरदम इसी शक और डर का शिकार बना रहे, तो यकीनन वह अपने होश-हवास खो बैठेगा। वह आप चल कर मेरे पास आएगा या फिर कोई ऐसी हरकत कर बैठेगा जिससे सारी बात दो और दो चार की तरह साफ हो जाएगी... बड़ा मजा आता है इसमें। जाहिल किसान के मामले में भी ऐसा ही होता है, लेकिन हम लोग जैसे पढ़े-लिखे और समझदार आदमी के मामले में तो, जिसमें इसके अलावा कुछ... वह क्या नाम है... कुछ खास रुझान भी हों, ऐसा होना यकीनी हैं इसलिए, मेरे दोस्त कि यह जानना बहुत जरूरी होता है कि किसी आदमी के दिमाग में किस तरह के रुझान सबसे ज्यादा हावी हैं। और फिर धीरज का भी सवाल होता है... कि किसमें कितना धीरज है इस बात की ओर तुमने तो ध्यान भी नहीं दिया! इसलिए कि आजकल सभी लोग कितने बीमार, बेचैन और चिड़चिड़े दिखाई देते हैं! ...जरा सोचो, वे सब लोग दुनिया से कितने तंग रहते हैं। उनमें से हर एक के दिल में कितना जहर भरा है। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ, ये सारी बातें हमारे लिए सोने की खान जैसी होती हैं। और शहर भर में उसके खुले फिरते रहने से मुझे क्या परीशानी? घूमने दो! जितना जी चाहे घूम-फिर लेने दो! मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मैंने उसे पकड़ लिया है, वह मेरे पंजे से निकल नहीं सकता। भाग कर जाएगा कहाँ... हिः-हिः-हिः ...विदेश? एक पोल तो विदेश भाग जाएगा, लेकिन मेरा आदमी नहीं, खास कर इसलिए कि उस पर मेरी नजर है, मैंने सारी रोकथाम कर रखी है। शायद वह कहीं दूर देहात में निकल जाए लेकिन उसे वहाँ किसानों... असली रूसी किसानों के अलावा कोई नहीं मिलेगा। आजकल का पढ़ा-लिखा रूसी हमारे किसानों जैसे अजनबियों के बीच रहने की बजाय जेल में रहना ज्यादा पसंद करेगा। हिः-हिः-हिः! लेकिन यह सब है बकवास और वह भी छिछोरी बकवास। 'वह भाग जाएगा' - मतलब क्या है इसका? महज अटकल। बात यह तो है ही नहीं। देखो, वह मुझसे इसलिए नहीं भाग सकता कि उसके पास जाने के लिए कोई जगह है ही नहीं। फिर उसकी दिमागी हालत भी ऐसी होती है कि वह मुझसे भाग कर जा ही नहीं सकता। हिः-हिः! क्या लाजवाब बात है! इनसानी स्वभाव से वह ऐसा बँधा रहता है कि उसके पास भाग कर जाने की कोई जगह हो, तब भी वह मुझसे भाग कर नहीं जा सकता। कभी तुमने शमा पर परवाने को मँडराते देखा है उसी तरह वह भी मेरे चारों ओर, शमा के चारों ओर, मँडराता रहेगा। उसमें आजादी की कोई चाह नहीं रह जाएगी। वह अपने ही विचारों में घुटता रहेगा, अपने ही चारों ओर एक जाल बुन लेगा, चिंता करते-करते मर जाएगा! इतना ही नहीं, वह मेरे लिए गणित के सवाल जैसा साफ सबूत जुटा देगा - अगर मैं उसे काफी लंबा वक्त दूँ... तो वह मेरे चारों ओर मँडराता रहेगा, मँडराता रहेगा, धीरे-धीरे मेरे पास आता जाएगा और फिर... लप! सीधे मेरे मुँह में आ जाएगा, मैं उसे निगल जाऊँगा, और इसमें बड़ा मजा आएगा... हिः-हिः-हिः! तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं आता?'

रस्कोलनिकोव ने कोई जवाब नहीं दिया। उसका रंग पीला पड़ रहा था और वह पत्थर की मूरत की तरह बैठा नजरें गड़ा कर पोर्फिरी के चेहरे को घूरता रहा।

'पाठ अच्छा पढ़ा लेता है!' उसने सोचा और उसका सारा शरीर ठंडा पड़ने लगा। 'यह कल जैसी बात भी नहीं है कि बिल्ली के पंजे में चूहा आ गया और वह उससे खेल रही है। यह किसी खास मतलब के बिना, सिर्फ मुझे अपनी ताकत तो नहीं दिखा रहा... मुझे कोई खास दिशा में जाने का उकसावा देने के लिए वह इससे कहीं ज्यादा चालाक है... जरूर कोई दूसरी चाल होगी। क्या यह सब बकवास है, मेरे दोस्त, तुम दिखावा कर रहे हो मुझे डराने के लिए! तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है और जो शख्स कल मेरे पास आया था वह असल में कहीं है ही नहीं। तुम बस यह चाहते हो कि मैं अपना संतुलन खो बैठूँ; पहले से मुझे भड़काना और इस तरह मुझे कुचल देना चाहते हो। लेकिन यह तुम्हारी भूल है। तुम ऐसा नहीं कर पाओगे... ऐसा कर नहीं सकोगे! लेकिन मुझे इस तरह अपनी सारी चाल पहले से बताने की तकलीफ क्यों उठा रहा है भला किस चीज का भरोसा किए बैठा है मेरे उलझे हुए दिमाग का? नहीं दोस्त, यह भूल है तुम्हारी, तुम ऐसा कभी नहीं कर सकोगे, भले ही तुम्हारे पास कोई जाल हो... देखना है, मेरे खिलाफ तुम्हारे पास क्या-क्या हथकंडे हैं।'

अब वह एक भयानक और अज्ञात आफत के लिए तैयार था। कभी-कभी उसका जी चाहता था कि वह पोर्फिरी पर टूट पड़े, उसका गला घोंट दे। उसे इसी गुस्से से शुरू से ही डर लग रहा था। उसको महसूस हुआ कि उसके सूखे होठों पर झाग आ रहा है। दिल धड़क रहा था। लेकिन अभी भी वह अपने इसी इरादे पर कायम था कि सही वक्त से पहले नहीं बोलेगा। उसने अच्छी तरह समझ लिया था कि वह जिस हालत में था उसके लिए सबसे अच्छा रवैया यही था। जरूरत से ज्यादा कही गई बातों की बजाय उसकी खामोशी से दुश्मन ज्यादा चिड़चिड़ाएगा और उसे जरूरत से ज्यादा खुल कर बातें करने का उकसावा मिलेगा। उसे कम-से-कम यही उम्मीद थी।

'नहीं, मैं देख रहा हूँ कि तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं आ रहा। तुम समझते हो मैं तुम्हारे साथ यूँ ही कोई बेमतलब मजाक कर रहा हूँ,' पोर्फिरी ने फिर कहना शुरू किया। हर पल उसका जोश बढ़ता जा रहा था और थोड़ी-थोड़ी देर बाद वह चहक उठता था। वह एक बार फिर कमरे में इधर-से-उधर टहलने लगा था। 'और तुम्हारा ऐसा समझना यकीनन ठीक है। भगवान ने मुझे डीलडौल ही ऐसा दिया है कि इसे देख कर अगला शख्स हँसने के सिवा और कर ही क्या सकता है। मैं बिलकुल मसखरा लगता हूँ। लेकिन इतना मैं तुम्हें बता दूँ, और इस बात को मैं दोहराना चाहता हूँ। मुझे बूढ़ा समझ कर माफ कर देना, रोदिओन रोमानोविच, तुम अभी जवान हो, तुम्हारी जवानी अभी एक तरह से शुरू ही हुई है और इसलिए तुम सभी नौजवानों की तरह अकल को सबसे बड़ी चीज समझते हो। मजाकिया हाजिर-जवाबी और हवाई दलीलें तुम्हें अच्छी लगती हैं। जहाँ तक मैं फौजी मुआमलों को समझ सका हूँ, यह आस्ट्रिया की पुरानी शाही फौजी कौंसिल जैसी बात है। मतलब यह कि कागज पर उन्होंने नेपोलियन को हरा दिया था, उसे कैदी भी बना लिया था, और अपने अध्ययनकक्षों में उन्होंने बड़ी होशियारी से सारा हिसाब-किताब ठीक भी कर लिया था, लेकिन क्या देखा हमने कि जनरल मैक ने अपनी पूरी फौज सहित हथियार डाल दिए थे... हिः-हिः-हिः! मैं देख रहा हूँ, देख रहा हूँ रोदिओन रोमानोविच, कि तुम इसी बात पर हँस रहे हो कि मुझ जैसा गैर-फौजी आदमी फौजी इतिहास से मिसालें निकाल कर दे रहा है। लेकिन मैं मजबूर हूँ, यह मेरी कमजोरी है। मुझे युद्ध-कला के बारे में पढ़ने का शौक है। ...और सारा फौजी इतिहास पढ़ने का तो उससे भी ज्यादा शौक है। मैं जिंदगी के लिए सही रास्ता चुनने में चूक गया। मुझे फौज में होना चाहिए था... कसम से कहता हूँ, मुझे वहीं होना चाहिए था। नेपोलियन तो मैं नहीं बन पाता, लेकिन मेजर तो बन ही जाता... हिः-हिः-हिः! खैर, तो मैं सारी बात तुम्हें सच-सच बताए देता हूँ दोस्त, मेरा मतलब है इस खास मिसाल के बारे में : सच्चाई और आदमी का स्वभाव ऐसी चीजें हैं कि भारी महत्व रखती हैं, और हैरत होती है कि कभी-कभी इनकी वजह से सही से सही हिसाब भी किस तरह गलत हो जाता है! एक बूढ़े आदमी की बात सुनो - मैं बहुत संजीदगी से कह रहा हूँ रोदिओन रोमानोविच,' (यह बात कहते हुए पोर्फिरी पेत्रोविच, जो मुश्किल से पैंतीस साल का होगा, सचमुच बूढ़ा लगने लगा; उसकी आवाज तक बदल गई और लगा कि वह कुछ सिकुड़ भी गया है), 'इसके अलावा, मैं खरी बात कहनेवाला आदमी हूँ... खरी-खरी कहनेवाला हूँ कि नहीं तुम्हारा क्या खयाल है? मैं समझता हूँ कि मैं सचमुच हूँ : ये सारी बातें मैं तुम्हें तुमसे कुछ लिए बिना ही बताए दे रहा हूँ और मुझे यह उम्मीद भी नहीं कि मुझे कोई इनाम मिलेगा... हिः-हिः-हिः! हाँ, तो मैं कह रहा था कि मेरी राय में हाजिर-जवाबी बहुत अच्छी चीज है, एक तरह से प्रकृति का वरदान है और जिंदगी के लिए बहुत बड़ी तसल्ली की चीज है। क्या-क्या गुल खिला सकती है यह! यहाँ तक कि कभी-कभी तो बेचारे जाँच-पड़ताल करनेवाले मजिस्ट्रेट के लिए भी यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि आखिर वह है कहाँ, खास कर तब, जब इस बात का खतरा हो कि वह भी कहीं अपने मन में सोची हुई बातों की धार में न बह जाए, क्योंकि वह भी तो बहरहाल इनसान ही होता है! लेकिन आम तौर पर अपराधी का स्वभाव उसे बचा लेता है - यही तो मुसीबत है! लेकिन अपनी हाजिर-जवाबी के धारे में बह जानेवाले नौजवान 'सारी अड़चनों को पार करके आगे निकल जाते वक्त,' जैसा कि तुमने इसी बात को कल बड़े दिलचस्प ढंग से और बड़ी होशियारी से बयान किया था, इसके बारे में नहीं सोचते। वह झूठ बोलेगा - मेरा मतलब उस आदमी से है जो खास मिसाल होता है, जो भेस बदले रहता है - और वह हद दर्जे की चालाकी से अच्छी तरह झूठ बोलेगा; आप समझेंगे कि उसकी जीत हो जाएगी और वह अपनी हाजिर-जवाबी के फल चखेगा, लेकिन तभी सबसे दिलचस्प, सबसे बेतुके मौके पर उसे गश आ जाएगा। जाहिर है कि इसकी वजह बीमारी भी हो सकती है, कमरे में घुटन भी हो सकती है, लेकिन फिर भी! बहरहाल, इससे हमें कुछ सुराग तो मिल ही जाता है! उसने झूठ तो लाजवाब बोला, लेकिन अपने स्वभाव को भूल गया और इसी से उसका भाँडा फूट गया! फिर कभी ऐसा भी होता है कि अपनी मजाकिया हाजिर-जवाबी के धारे में बह कर वह उसी आदमी का मजाक उड़ाने लगता है जो उस पर शक करता है, उसका रंग पीला पड़ जाता है, गोया वह जान-बूझ कर, गुमराह करने के लिए ऐसा कर रहा हो, लेकिन उसके चेहरे का पीलापन बहुत ही स्वाभाविक होता है, बिलकुल असली जैसा, और इससे भी हमें सुराग मिल जाता है! हो सकता है कि उससे सवाल करनेवाला शुरू-शुरू में धोखा खा जाए, लेकिन अगर वह बेवकूफ नहीं है तो रात को उसके बारे में सोचेगा और असलियत का पता लगा लेगा... हर कदम पर यही तो होता रहता है! वह लगातार बोलता रहता है जबकि उसे चुप रहना चाहिए... वह दुनिया-भर की मिसालें ढूँढ़ कर देता है... हिः-हिः-हिः! आ कर पूछता है कि आपने हमें बहुत पहले ही क्यों नहीं पकड़ लिया... हिः-हिः-हिः! और यह जान लो कि चालाक से चालाक आदमी के साथ, सारा मनोविज्ञान जाननेवाले के साथ, साहित्यिक प्रवृत्तिवाले आदमी के साथ भी ऐसा हो सकता है। स्वभाव के आईने में हर चीज एकदम साफ नजर आती है! आईने को ध्यान से देखो और जो कुछ दिखे उसे सराहो! लेकिन तुम्हारा रंग इतना पीला क्यों पड़ रहा है, रोदिओन रोमानोविच कमरे में घुटन है क्या? खिड़की खोलूँ?'

'नहीं, आप तकलीफ न कीजिए,' रस्कोलनिकोव ने ऊँचे स्वर में कहा और अचानक हँस पड़ा। 'आप कतई तकलीफ न कीजिए!'

पोर्फिरी उसके सामने आ कर खड़ा हो गया, एक पल रुका और फिर वह भी यकायक हँस पड़ा। रस्कोलनिकोव अचानक अपनी दीवानों जैसी हँसी रोक कर सोफे से उठ खड़ा हुआ।

'पोर्फिरी पेत्रोविच,' उसने ऊँचे लहजे में साफ-साफ कहना शुरू किया, हालाँकि उसकी टाँगें काँप रही थीं और वह ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। 'आखिर अब मेरी समझ में साफ-साफ आ गया है कि आपको मुझ पर उस बुढ़िया और उसकी बहन लिजावेता को कत्ल करने का शक है। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं आपको बता दूँ कि मैं इन सब बातों से तंग आ चुका हूँ। अगर आप समझते हैं कि आपको मुझ पर कत्ल का इल्जाम लगाने या मुकद्दमा चलाने का अधिकार है तो वही कीजिए। लेकिन मैं किसी को इसकी इजाजत नहीं दूँगा कि मेरे मुँह पर मेरा मजाक उड़ाया जाए और मुझे सताया जाए।'

एकाएक उसके होठ काँपने लगे, आँखें गुस्से से सुलग उठीं, और वह अपनी आवाज भी काबू में नहीं रख पा रहा था।

'ऐसा मैं होने नहीं दूँगा!' मेज पर जोर से मुक्का मारते हुए वह चिल्लाया। 'सुना आपने, पोर्फिरी पेत्रोविच! इसकी इजाजत मैं नहीं दूँगा!'

'हे भगवान! इसका मतलब क्या है' पोर्फिरी पेत्रोविच भी जोर से बोला। सूरत से लग रहा था कि वह काफी डर चुका था। 'यार रोदिओन रोमानोविच तुम्हें हो क्या गया है?'

'मैं ऐसा होने नहीं दूँगा!' रस्कोलनिकोव फिर चीखा।

'धीमे बोलो, दोस्त! लोग सुनेंगे तो अंदर आ जाएँगे। जरा सोचो फिर हम उनसे क्या कहेंगे...' पोर्फिरी पेत्रोविच अपना मुँह रस्कोलनिकोव के मुँह के पास ला कर घबराते हुए धीमे से बोला।

'मैं ऐसा होने नहीं दूँगा, नहीं होने दूँगा!' रस्कोलनिकोव मशीनी ढंग से दोहराता रहा। लेकिन वह भी अचानक अब धीमे लहजे में बोलने लगा था।

पोर्फिरी तेजी से घूम कर खिड़की खोलने के लिए लपका।

'कुछ ताजा हवा आने दो! और तुम मेरे यार, थोड़ा-सा पानी पी लो। तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है!' वह पानी मँगाने के लिए दरवाजे की ओर लपका ही था कि कोने में उसे एक जग में पानी रखा नजर आया।

'लो, थोड़ा-सा पियो,' जग ले कर तेजी से उसकी ओर आते हुए वह धीमे स्वर में बोला। 'इससे तबीयत सँभल जाएगी...' पोर्फिरी की बौखलाहट और हमदर्दी इतनी स्वाभाविक थी कि रस्कोलनिकोव चुप हो गया और उसे भारी उत्सुकता से देखता रहा। पर उसने पानी नहीं पिया।

'रोदिओन रोमानोविच, मेरे यार! मैं तुमसे सच कहता हूँ कि इस तरह तो तुम अपने आपको खब्ती बना लोगे। छिः! पी भी लो, थोड़ा-सा पानी पी लो!'

उसने गिलास जबरदस्ती उसे पकड़ा दिया। रस्कोलनिकोव मशीन की तरह उसे होठों तक ले गया, लेकिन फिर बेजारी से उसे मेज पर वापस रख दिया।

'हाँ, तुम्हें जरा-सा दौरा तो पड़ा था! तुम इस तरह तो अपनी बीमारी फिर वापस बुला लोगे, तो दोस्त,' पोर्फिरी पेत्रोविच दोस्ताना हमदर्दी से चहक कर, हालाँकि वह अभी भी कुछ घबराया हुआ लग रहा था। 'भगवान के लिए, अपनी सेहत की ओर से इतनी लापरवाही तो मत करो! द्मित्री प्रोकोफिच यहाँ आया था, मुझसे मिलने। मैं जानता हूँ, जानता हूँ मैं कि मेरा मिजाज बहुत बुरा और तानेबाज है, लेकिन लोग उसका जाने क्या-क्या मतलब निकाल लेते हैं... हे भगवान, वह कल तुम्हारे जाने के बाद आया था। हम लोगों के साथ खाना खाया और वह बातें करता रहा। बोलता रहा, बोलता रहा, यहाँ तक कि आखिर में निराश हो कर दुआ माँगने लगा! मैंने सोचा - हे भगवान! ...वह तुम्हारे पास से आया था क्या? लेकिन तुम बैठो तो, मेरे हाल पर रहम खा कर बैठ जाओ!'

'नहीं, वह मेरे पास से नहीं आया था, लेकिन मुझे पता था कि वह आपके पास गया था और किसलिए गया था,' रस्कोलनिकोव ने तीखेपन से जवाब दिया।

'तुम्हें पता था?'

'हाँ, पता था। तो उससे क्या हुआ?'

'तो बात यह है रोदिओन रोमानोविच, मेरे दोस्त, कि मुझे तुम्हारे बारे में उससे ज्यादा मालूम है; मुझे हर बात पता है। मुझे यह भी मालूम है कि तुम रात के वक्त अँधेरे में फ्लैट किराए पर लेने गए थे। तुमने घंटी बजाई, खून के बारे में पूछा, और मजदूरों और दरबानों को चक्कर में डाल दिया। हाँ, तुम्हारे दिमाग की तब जो हालत थी उसे मैं समझता हूँ... लेकिन मैं सच कहता हूँ, इस तरह तो तुम पागल हो जाओगे! दिमाग ठिकाने नहीं रहेगा! तुम्हारे साथ पहले तो तुम्हारे मुकद्दर की तरफ से और फिर पुलिस अफसरों की तरफ से जो ज्यादतियाँ हुई हैं, उन पर तुम्हारे दिल में बेहद गुस्सा भरा हुआ है। सो तुम एक से दूसरी चीज की ओर भागते रहते हो कि उन्हें खुल कर बोलने पर मजबूर करो और इस पूरे किस्से का खात्मा कर दो क्योंकि तुम इन सारे शक-शुबहों और बेवकूफी की बातों से उकता चुके हो। है न यही बात देखो, मैंने सही-सही अंदाजा लगा लिया है कि तुम क्या महसूस करते हो, कि नहीं ...हाँ, इतनी बात जरूर है कि इस तरह तुम अपना भी दिमाग खराब करोगे और रजुमीखिन का भी। वह इतना नेक बंदा है कि उसे ऐसी हालत में नहीं पहुँचना चाहिए; यह बात तो तुम्हें मालूम होनी ही चाहिए। तुम बीमार और वह नेक, और तुम्हारी बीमारी की छूत उसे भी लग सकती है... जब तुम्हारे हवास जरा और दुरुस्त होंगे तब मैं तुम्हें इस बारे में बताऊँगा... लेकिन, भगवान के लिए बैठो तो सही। थोड़ा आराम करो... पर... तुम्हारी सूरत डरावनी लगती है। बैठ भी जाओ।'

रस्कोलनिकोव बैठ गया। अब वह काँप नहीं रहा था पर उसका सारा शरीर तप रहा था। वह आश्चर्य से और ध्यान दे कर पोर्फिरी पेत्रोविच की बातें सुनता रहा, जो दोस्ताना ढंग से उस पर ध्यान देते हुए भी कुछ डरा हुआ लग रहा था लेकिन रस्कोलनिकोव को उसके एक शब्द पर भी विश्वास नहीं था, हालाँकि अजीब बात यह थी कि उसका दिल विश्वास करने को हो रहा था। पोर्फिरी ने फ्लैट के बारे में जो कुछ कहा था, उससे वह बेबस हो गया था, क्योंकि उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसके मुँह से यह बात सुनेगा। 'यह कैसे हो सकता है। इसका मतलब है कि इसे फ्लैट के बारे में मालूम है,' उसने अचानक सोचा, 'और यह खुद इसके बारे में बता रहा है!'

'हाँ, हमारे कानून के इतिहास में लगभग ऐसे ही एक मामले की मिसाल मिलती है, बीमार मनोदशा के मामले की,' पोर्फिरी ने अपनी बात का टूटा हुआ सिरा फिर से पकड़ते हुए जल्दी से कहना शुरू किया। 'उस मामले में भी किसी को यह बात सूझी कि कत्ल के जुर्म का इकबाल कर ले। और, सच कहता हूँ, उसने यह काम कमाल से किया! हम लोगों को उसने एक सरासर ऊटपटाँग किस्सा सुनाया, जैसे सचमुच सारी बातें उसकी आँखों के सामने हो रही हों... उसने ठोस तथ्य पेश किए, सारी परिस्थितियाँ बयान की और हर किसी को बुरी तरह चकरा कर रख दिया। और किसलिए इसलिए कि कुछ हद तक, लेकिन कुछ ही हद तक, अनजाने में, वह भी उस कत्ल का सबब था। सो जब उसे पता चला कि उसकी वजह से ही कातिलों को मौका मिला था, तो वह घोर निराशा में डूब गया, उसके मन में बात बैठ गई और उसका दिमाग फिर गया। वह तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगा और धीरे-धीरे उसने अपने आपको कायल कर लिया कि कत्ल उसी ने किया था। लेकिन आखिरकार सेनेट में अपील के बाद पूरे मामले की छानबीन की गई, वह बेचारा बरी कर दिया गया और उसकी देखभाल का पूरा इंतजाम किया गया। यह सब कुछ सेनेट की बदौलत! च-च-च! लोग भी क्या-क्या हरकतें करते हैं! तो मेरे दोस्त, तुम्हारा अगर यही हाल रहा तो आगे चल कर क्या होगा इसी तरह तो आदमी पर जुनून सवार होता है। एक बार जहाँ ऐसी किसी सनक को अपने दिमाग में पनपने दिया तो आदमी रात-बिरात गिरजे में जा कर घंटियाँ बजाने लगता है, खून के बारे में पूछने लगता है अपनी नौकरी के दौरान मैंने इस तरह की मनोदशा का गहरा अध्ययन किया है। कभी-कभी आदमी का जी चाहता है कि खिड़की से बाहर या गिरजाघर की बुर्जी से नीचे कूद पड़े। घंटियाँ बजाना भी रोदिओन रोमानोविच ऐसा ही है... यह एक तरह की बीमारी है! तुम अपनी... बीमारी की तरफ से लापरवाही बरतने लगे हो। तुम्हें तो उस मोटे की बजाय किसी अच्छे तजर्बेकार डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। तुम्हारे होश ठिकाने नहीं रहते! जिस वक्त तुमने यह सब किया उस वक्त भी तो तुम सरसामी हालत में ही थे...'

पलभर के लिए रस्कोलनिकोव को हर चीज घूमती मालूम हुई।

'यह क्या मुमकिन है, ऐसा हो सकता है क्या,' उसके दिमाग में यह विचार बिजली की तरह कौंधा, 'कि यह अब भी झूठ बोल रहा हो? नहीं ऐसा नहीं हो सकता!' उसने इस विचार को दिमाग से निकाल देने की कोशिश की क्योंकि वह पहले ही महसूस करने लगा था कि यह उसे जुनून की किस हद तक पहुँचा सकता है, उसे पागल बना सकता है।

'मैं तो सरसामी हालत में नहीं था। तब मुझे अच्छी तरह मालूम था कि मैं क्या कर रहा हूँ,' वह पोर्फिरी की चाल को समझने के लिए दिमाग की पूरी शक्ति लगाते हुए चीखा। 'मैं पूरी तरह होश में था, आप सुन रहे हैं न?'

'हाँ, सुन भी रहा हूँ और समझ भी रहा हूँ। कल भी तुमने कहा था कि तुम सरसामी हालत में नहीं थे, और तुमने इस बात पर खास जोर दिया था! तुम मुझे जो कुछ भी बता सकते हो, वह मैं पहले से ही समझता हूँ! अच्छा... तो सुनो, रोदिओन रोमानोविच, मेरे दोस्त! मिसाल के लिए इसी बात को लो... अगर तुम सचमुच अपराधी होते, या इस सिड़ी मामले में किसी भी तरह से तुम्हारा हाथ होता, तो क्या इस बात पर अड़े रहते कि तुम सरसामी हालत में नहीं, बल्कि पूरी तरह होश में थे... वह भी इतना जोर दे कर इस तरह लगातार... क्या यह मुमकिन है? मैं समझता हूँ कि एकदम नामुमकिन है। अगर तुम्हारे जमीर पर जरा भी बोझ होता तो तुम यही कहते कि तुम सरसामी हालत में थे। मैं सही कह रहा हूँ न?'

उसके इस सवाल में काइयाँपन का जरा-सा पुट भी था। जैसे ही पोर्फिरी उसकी ओर झुका रस्कोलनिकोव सोफे पर पीछे खिसक गया और चुपचाप, उलझन में गिरफ्तार उसे घूरता रहा।

'या फिर रजुमीखिन को ले लो। मेरा मतलब है, इस सवाल को कि कल वह अपनी मर्जी से मुझसे बात करने आया था या तुम्हारे कहने पर। तुम्हें यकीनन यही कहना चाहिए था कि वह अपनी मर्जी से आया था, ताकि तुम इसमें अपने हाथ की बात पर पर्दा डाल सको! लेकिन इसे छिपाने की बात तुम्हारे दिमाग में नहीं आई! बल्कि तुम तो इसी बात पर जोर दे रहे हो कि वह तुम्हारे कहने से यहाँ आया था।'

रस्कोलनिकोव ने कभी ऐसा किया ही नहीं था। उसकी रीढ़ में ऊपर से नीचे तक सिहरन दौड़ गई।

'आप झूठ बोले चले जा रहे हैं,' उसने होठों को टेढ़ा करके, उन पर एक बीमार मुस्कराहट ला कर, धीरे-धीरे और कमजोर लहजे में कहा, 'आप एक बार फिर यही जताने की जुगत कर रहे हैं कि आपको मेरी सारी चालें पता हैं, कि मैं जो कुछ भी कहूँगा वह आपको पहले से मालूम हैं।' फिर वह खुद महसूस करने लगा कि अपने शब्दों को उतनी अच्छी तरह नहीं तोल रहा था जिस तरह उसे तोलना चाहिए था। 'या तो आप मुझे डराना चाहते हैं... या मुझ पर सिर्फ हँस रहे हैं।'

वह ये बातें कहते वक्त भी उसे घूरता रहा। उसकी आँखों में गहरी नफरत की चमक एक बार फिर पैदा हो गई।

'आप झूठ बोले जा रहे हैं!' उसने चीख कर कहा। 'आप अच्छी तरह जानते हैं कि जहाँ तक मुमकिन हो, सारी बात सच-सच बता देना ही अपराधी के लिए सबसे अच्छा सौदा होता है। उसे तो चाहिए कि जहाँ तक मुमकिन हो, कम-से-कम छिपाए। मैं आपकी बात का यकीन नहीं करता!'

'बड़े चालाक हो तुम भी!' पोर्फिरी दबी हुई हँसी के साथ बोला, 'तुम्हें दबा सकना नामुमकिन है... तुमने बस एक ही बात अपने दिमाग में बिठा ली है। मेरी बात का तुम्हें यकीन नहीं आता फिर भी मैं तुम्हें बता दूँ, दोस्त, कि तुम्हें मेरी बात का थोड़ा-बहुत यकीन जरूर आ रहा है, और मुझे भरोसा है कि जल्द ही मैं तुम्हें पूरा यकीन दिला दूँगा। इसलिए कि तुम मुझे सचमुच अच्छे लगते हो और मैं सच्चे दिल से तुम्हारा भला चाहता हूँ।'

रस्कोलनिकोव के होठ फड़के।

'हाँ, सच कहता हूँ,' पोर्फिरी ने मित्रता के भाव से रस्कोलनिकोव की बाँह को कुहनी से ऊपर धीरे-से पकड़ कर अपनी बात का सिलसिला जारी रखा, 'तुम्हें अपनी बीमारी का खयाल रखना चाहिए। इसके अलावा, अब तो तुम्हारी माँ और बहन भी यहीं हैं; उनके बारे में भी तुम्हें सोचना चाहिए। तुम्हें तो चाहिए कि उन्हें तसल्ली दो, कुछ आराम पहुँचाओ, और तुम हो कि उलटे उन्हें डराने के सिवा कुछ नहीं करते...'

'आपको इन बातों से क्या? आपको यह सब कैसे पता चला?, इन बातों से आपका मतलब? ...क्या यही न कि आप मेरे ऊपर नजरें रख हुए हैं और मुझे यह बात जता देना चाहते हैं?'

'हे भगवान! मुझे यह सब तो खुद तुमसे पता चला। तुम्हें तो पता भी नहीं चलता और तुम आपा खो कर और दूसरे लोगों को सब कुछ बता देते हो। कल रजुमीखिन से भी बहुत-सी दिलचस्प बातें मालूम हुईं। तुमने मेरी बात काट दी, लेकिन मैं तुम्हें बता दूँ कि तुममें अपनी तमाम होशियारी के बावजूद, अपने शक्कीपन की वजह से, चीजों को समझदारी से देखने की क्षमता नहीं बची है। मिसाल के लिए, घंटी बजाने की बात को लो। छानबीन करनेवाला मजिस्ट्रेट हो कर भी मैंने ऐसी अनमोल बात तुम्हें बता दी, (क्योंकि यह सच्चाई है), और तुम्हें इसमें कुछ भी नजर नहीं आता! अरे, मुझे तुम्हारे ऊपर अगर जरा भी शक होता तो मैं कभी इस तरह की बातें करता नहीं, पहले मैं तुम्हारे सारे शक दूर करता, तुम्हें यह न पता चलने देता कि मुझे इस बात का पता है, तुम्हारा ध्यान किसी और चीज की तरफ फिरा देता और फिर अचानक ऐसा वार करता जिसके सामने तुम टिके न रहते। (यह तुम्हारा ही जुमला है) तब मैं कहता : 'जनाब, मेहरबानी करके यह बताइए कि रात को दस बजे या लगभग ग्यारह बजे आप उस औरत के फ्लैट में क्या कर रहे थे, जिसका कत्ल हुआ, और आपने घंटी क्यों बजाई और आपने खून के बारे में क्यों पूछा... दरबानों से आपने यह क्यों कहा कि वह आपके साथ थाने चलें, पुलिस के असिस्टेंट कमिश्नर साहब के पास... अगर मुझे तुम्हारे ऊपर राई बराबर भी शक होता तो मैं क्या करता : मैं बाकायदा तुम्हारी गवाही लेता, तुम्हारे घर की तलाशी लेता, शायद तुम्हें गिरफ्तार भी करता... इसका मतलब यह है कि मुझे तुम्हारे ऊपर कोई शक नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है! लेकिन तुम इस बात को सहज भाव से नहीं देखना चाहते और तुम्हें कुछ दिखाई भी नहीं देता। मैं एक बार फिर यही बात दोहरा रहा हूँ।'

रस्कोलनिकोव इस तरह चौंका कि पोर्फिरी ने यह बात साफ-साफ देखी।

'आप झूठ ही बोलते जा रहे हैं!' वह चिल्ला कर बोला। 'यह तो मुझे नहीं मालूम कि आप चाहते क्या हैं, लेकिन आप झूठ बोले जा रहे हैं... अभी आप इस तरह की कोई बात नहीं कर रहे थे और इसे समझने में मुझसे गलती नहीं हो सकती... आप झूठ बोल रहे हैं!'

'मैं झूठ बोल रहा हूँ!' पोर्फिरी ने पलट कर पूछा। उसकी सूरत से लग रहा था कि उसका गुस्सा भड़क उठा है लेकिन उसने अपने चेहरे पर हँसी-मजाक और व्यंग्य का भाव बनाए रखा, जैसे उसे इसकी जरा भी परवाह न हो कि उसके बारे में रस्कोलनिकोव की राय क्या है। 'मैं झूठ बोल रहा हूँ ...लेकिन अभी मैंने तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव किया... मैंने, छानबीन करनेवाले मजिस्ट्रेट ने... मैंने तुम्हें बताया कि तुम्हें क्या कहना चाहिए। मैंने तुम्हें बचाव की सारी तरकीबें बताईं : बीमारी, सरसाम की हालत, चोट, उदासी, पुलिस के अफसर, और भी न जाने कितनी बातें कि नहीं... हिः-हिः-हिः! वैसे सच तो यह है कि बचाव के ये सारे मनोवैज्ञानिक हथियार कुछ खास भरोसेमंद नहीं होते और दोनों तरफ काट करते हैं। बीमारी, सरसामी हालत, मुझे याद नहीं - सब ठीक है, लेकिन इसकी क्या वजह है, मेहरबान कि आपकी बीमारी और सरसाम की हालत में आपके सर पर इन्हीं भ्रमों का भूत सवार रहता था, दूसरे भ्रमों का नहीं दूसरे भ्रम भी तो रहे होंगे, क्यों? हिः-हिः-हिः!'

रस्कोलनिकोव ने ढिठाई और तिरस्कार के साथ उसकी ओर देखा।

'थोड़े-से शब्दों में,' उसने खड़े हो कर और इस चक्कर में पोर्फिरी को थोड़ा-सा पीछे ढकेल कर ऊँचे लहजे में और रोब के साथ कहा, 'थोड़े से शब्दों में, मैं यह बात जानना चाहता हूँ कि आप मुझे शक से पूरी तरह बरी मानते हैं कि नहीं बताइए, पोर्फिरी पेत्रोविच, मुझे आखिरी तौर पर बताइए और जल्दी बताइए।'

'तुम्हारे जैसे आदमी से निबटना भी आसान नहीं है!' पोर्फिरी ने मजाक की मुद्रा बनाए रख कर जोर से कहा। लेकिन उसके चेहरे से, जिस पर जरा भी घबराहट नहीं थी, काइयाँपन साफ नजर आता रहा था। 'पर तुम जानना क्यों चाहते हो? इतनी-इतनी बातें भला क्यों जानना चाहते हो जबकि अभी तुम्हें किसी ने परेशान करना शुरू भी नहीं किया? अरे, तुम तो बिलकुल बच्चों की तरह खेलने के लिए आग माँगे जा रहे हो! और इतने बेचैन क्यों हो भला? अपने आपको हम लोगों पर थोप क्यों रहे हो, क्यों? हिः-हिः-हिः!'

'मैं एक बार फिर कहता हूँ,' रस्कोलनिकोव गुस्से से बिफर कर चीखा, 'मैं यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकता...'

'क्या बर्दाश्त नहीं कर सकते दुविधा?' पोर्फिरी ने बात काटी।

'बंद करो मेरा मजाक उड़ाना! मैं इसे बर्दाश्त नहीं करूँगा! कहे देता हूँ कि मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसे न बर्दाश्त कर सकता हूँ और न करूँगा! सुन लिया... सुना कि नहीं?' मेज पर एक बार फिर मुक्का मारते हुए वह चिल्लाया।

'धीरे! कुछ धीरे! कोई सुन लेगा! मैं संजीदगी से तुम्हें कहे देता हूँ, अपना खयाल रखो। मैं मजाक नहीं कर रहा!' पोर्फिरी ने चुपके से कहा, लेकिन अब उसके चेहरे पर बुढ़ियों जैसी नेकदिली का और घबड़ाहट का भाव नहीं था। इसके विपरीत उस वक्त वह उसे खुलेआम आदेश दे रहा था। उसकी मुद्रा कठोर थी और माथे पर बल थे, गोया एक ही झटके में उसने हर अस्पष्ट पहलू और हर रहस्य पर से पर्दा हटा दिया हो। लेकिन ऐसा केवल एक पल ही रहा। रस्कोलनिकोव बौखला कर अचानक सचमुच ही उन्माद का शिकार हो गया, लेकिन अजीब बात यह हुई कि इस बार फिर उसने धीमे बोलने का हुक्म मान लिया, हालाँकि उसका गुस्सा भड़क कर सारी हदें तोड़नेवाला था।

'मैं इसकी इजाजत नहीं दूँगा कि मुझे सताया जाए,' उसने पहले की तरह धीमे स्वर में कहा। फिर फौरन यह महसूस करके उसे भारी नफरत हुई कि हुक्म मान लेने के अलावा उसके पास और कोई चारा नहीं था। यह सोच कर उसका गुस्सा और भी भड़क उठा। 'मुझे गिरफ्तार कीजिए, मेरी तलाशी लीजिए, लेकिन बराय मेहरबानी जो कुछ भी कीजिए सही ढंग से कीजिए और मेरे साथ खेल मत कीजिए! कभी इसकी हिम्मत भी मत कीजिएगा...'

'सही ढंग की चिंता न करो,' पोर्फिरी ने उसी मक्कारी भरी मुस्कान के साथ उसकी बात काटते हुए कहा, गोया रस्कोलनिकोव को इस हाल में देख कर उसे मजा आ रहा हो। 'मैंने दोस्ताना ढंग से तुम्हें मिलने के लिए यहाँ बुलाया था।'

'मुझे आपकी दोस्ती नहीं चाहिए। मैं थूकता हूँ उस पर! सुना आपने और यह देखिए, मैंने अपनी टोपी उठाई और चला। अगर आपका इरादा मुझे गिरफ्तार करने का है तो अब आप क्या कहेंगे?'

अपनी टोपी उठा कर वह दरवाजे तक पहुँचा।

'तुम क्या मेरा छोटा-सा अजूबा भी नहीं देखोगे?' पोर्फिरी एक बार फिर उसकी बाँह पकड़ कर उसे दरवाजे पर ही रोकते हुए चहका। लगता था, पोर्फिरी का रवैया पहले से भी ज्यादा मजाक और चुहल का हो गया था, जिस पर रस्कोलनिकोव गुस्से से धीरज खोने लगा।

'कैसा छोटा-सा अजूबा?' उसने पूछा। वह सन्न हो कर पोर्फिरी को सहमी-सहमी नजरों से देख रहा था।

'मेरा छोटा-सा अजूबा वहाँ दरवाजे के पीछे है... हिः-हिः-हिः!' (उसने बंद दरवाजे की तरफ इशारा किया।) 'उसे मैंने ताले में बंद कर रखा है कि भागने न पाए।'

'क्या है? कहाँ? क्यों...?' रस्कोलनिकोव चल कर उस दरवाजे तक गया और उसे खोलना चाहा, लेकिन उसमें ताला लगा था।

'उसमें ताला बंद है। चाभी यह रही!'

सचमुच उसने अपनी जेब से एक चाभी निकाली।

'तुम झूठ बोल रहे हो,' रस्कोलनिकोव ने सारी शराफत ताक पर रख कर गरजा, 'तुम झूठे हो, कमबख्त मसखरे कहीं के!' यह कह कर वह पोर्फिरी की ओर झपटा, जो पीछे हट कर दूसरे दरवाजे की तरफ चला गया। वह जरा भी नहीं डरा।

'सब समझता हूँ मैं! सब कुछ!' रस्कोलनिकोव झपट कर उसके पास पहुँचा। 'तुम झूठ बोल रहे हो और मुझे चिढ़ा रहे हो ताकि मैं अपना भेद तुम्हें बता दूँ...'

'अरे, भेद बताने को अब रहा ही क्या है, यार रोदिओन रोमानोविच! अभी तुम आपे में नहीं हो। चीखो नहीं, वरना मैं अभी क्लर्कों को बुलवाता हूँ।'

'झूठ बोल रहे हो तुम! कुछ भी तुम नहीं कर सकते। बुलाओ अपने आदमियों को! तुम जानते थे कि मैं बीमार हूँ और फिर भी तुमने मुझे चिढ़ा कर जुनून की हालत में पहुँचाने की कोशिश की ताकि मैं अपना भेद खोल दूँ। यही तुम चाहते थे न अपने सबूत पेश करो! मैं सब समझ रहा हूँ। तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है, तुम्हारे दिमाग में भी जमेतोव की ही तरह शक का कूड़ा भरा है! तुम्हें मेरा स्वभाव मालूम था, तुम चाहते थे कि मैं गुस्से से आपे से बाहर हो जाऊँ और तब तुम पादरियों और गवाहों का सहारा ले कर मेरे ऊपर ऐसा वार करो कि मैं टिक न सकूँ। ...तुम क्या उन्हीं का इंतजार कर रहे हो क्यों किस चीज का इंतजार कर रहे हो? कहाँ हैं वे लोग? लाओ उन्हें!'

'गवाहों से तुम्हारा मतलब क्या है जानेमन तुम भी कैसी-कैसी बातें सोच लेते हो! ऐसा करना तो, वह जिसे तुम कहते हो न सही ढंग, तो सही ढंग से काम करना नहीं होगा। तुम्हें इस काम का कुछ भी इल्म नहीं है, दोस्त! ...और अभी बाकायदा काम करना तो बचा ही है जो कि तुम खुद देखोगे,' पोर्फिरी बुदबुदाता रहा और दरवाजे पर कान लगाए सुनता रहा। दरवाजे के उस पार, दूसरे कमरे में सचमुच कुछ हलचल हो रही थी।

'तो वे आ रहे हैं!' रस्कोलनिकोव चीखा। 'उनको तुमने बुला ही लिया! उन्हीं की राह तुम देख रहे थे न अच्छी बात है, पेश करो सबको, अपने गवाहों को, और जिसे-जिसे भी तुम चाहो! ...मैं तैयार हूँ! एकदम तैयार!'

लेकिन तभी एक अजीब-सी घटना हुई, ऐसी अप्रत्याशित कि रस्कोलनिकोव और पोर्फिरी पेत्रोविच दोनों में से किसी को गुमान न था कि ऐसा नतीजा निकलेगा।

अपराध और दंड : (अध्याय 4-भाग 6)

बाद में उस पल को याद करने पर वह दृश्य रस्कोलनिकोव को इस रूप में नजर आया :

दरवाजे के पीछे शोर अचानक बढ़ा, और दरवाजा जरा-सा खुला।

'क्या है?' पोर्फिरी पेत्रोविच झुँझला कर चीखा। 'मैंने तुमको हुक्म दिया था न...'

पलभर के लिए कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन इतनी बात साफ थी कि दरवाजे के पास बहुत से लोग थे और किसी को पीछे धकेलने की कोशिश कर रहे थे।

'यह क्या है?' पोर्फिरी पेत्रोविच ने बेचैन हो कर दोहराया।

'कैदी निकोलाई हाजिर है,' किसी ने जवाब दिया।

'उसकी कोई जरूरत नहीं! ले जाओ उसे! थोड़ी देर उसे इंतजार करने दो! यहाँ वह क्या कर रहा है कैसी अफरातफरी मचा रखी है!' पोर्फिरी चीख कर दरवाजे की ओर लपका।

'लेकिन वह...' उसी आवाज ने फिर कहा पर अचानक बीच में रुक गई।

महज कुछ सेकेंड तक खींचातानी चलती रही, फिर किसी ने जोर का झटका दिया। एक आदमी, जिसका चेहरा पीला पड़ चुका था, लंबे कदम भरता हुआ कमरे में आया।

पहली निगाह में इस आदमी का हुलिया कुछ अजीब लगा। वह ठीक सामने नजरें गड़ाए हुए था, मानो उसे कुछ भी नजर न आ रहा हो। आँखों में संकल्प की चमक थी, साथ ही चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई थी, गोया उसे फाँसी के तख्ते पर खड़ा कर दिया गया हो। सफेद होठ थोड़े-थोड़े फड़क रहे थे।

वह मजदूरों जैसे कपड़े पहने हुए था। मँझोला कद, अभी भी काफी जवान, छरहरा बदन, बाल गोल टोपी की शक्ल में कटे हुए, दुबला-पतला, सूखा हुआ नाक-नक्शा। जिस आदमी को झटका दे कर उसने धकेला था, वह भी उसके पीछे-पीछे कमरे में आ गया और लपक कर उसका कंधा पकड़ लिया। वह वार्डर था, लेकिन निकोलाई ने झटक कर अपनी बाँह फिर छुड़ा ली।

दरवाजे पर बहुत से लोग जिज्ञासा के मारे भीड़ लगाए खड़े थे। कुछ ने अंदर आने की भी कोशिश की। यह सब कुछ लगभग पलक झपकते हो गया। 'बाहर जाओ, तुम कुछ पहले ही आ गए हो। जब तक बुलाया न जाए, इंतजार करो! इसे इतनी जल्द तुम लोग क्यों ले आए?' पोर्फिरी पेत्रोविच झुँझला कर बड़बड़ाया, मानो उसका सारा हिसाब बिगड़ गया हो। निकोलाई अचानक घुटनों के बल बैठ गया।

'क्या है?' पोर्फिरी ने आश्चर्य से चीख कर पूछा।

'मैं अपराधी हूँ! यह पाप मैंने ही किया! मैं ही हूँ, हत्यारा,' निकोलाई ने अचानक कुछ हाँफते हुए कहा, लेकिन वह काफी ऊँचे सुर में बोल रहा था।

कुछ सेकेंड तक मुकम्मल खामोशी रही, गोया सब गूँगे हो गए हों। वार्डर भी पीछे हटता हुआ दरवाजे तक पहुँच गया और वहीं चुपचाप खड़ा हो गया।

'है क्या?' पोर्फिरी पेत्रोविच ने पलभर के भौंचक्केपन से मुक्त हो कर डपटते हुए पूछा।

'मैं... हत्यारा हूँ...' निकोलाई ने कुछ देर चुप रहने के बाद दोहराया।

'क्या... तुम... किसकी हत्या की?'

'पोर्फिरी पेत्रोविच एकदम अक्ल से हैरान लग रहा था।'

निकोलाई पलभर फिर चुप रहा।

'अल्योना इवानोव्ना और उसकी बहन लिजावेता इवानोव्ना... मैंने... मारा है... उनको... कुल्हाड़ी से। मेरे मन पर कालिख छा गई थी,' उसने अचानक कहा और चुप हो गया। वह अभी तक घुटनों के बल बैठा हुआ था।

पोर्फिरी पेत्रोविच कुछ पल विचारों में डूबा रहा, लेकिन अचानक सँभल कर उसने बिन-बुलाए तमाशबीनों को हाथ के इशारे से चले जाने को कहा। वे फौरन वहाँ से निकल गए और दरवाजा बंद हो गया। इसके बाद पोर्फिरी रस्कोलनिकोव की ओर घूमा जो कोने में खड़ा फटी-फटी आँखों से, दीवानों की तरह निकोलाई को घूर रहा था। वह उसकी ओर बढ़ा, अचानक ठिठक कर रुक गया, उसकी ओर देखा, फिर निकोलाई की ओर देखा। उसके बाद फिर रस्कोलनिकोव की ओर, फिर निकोलाई की ओर, और फिर अपने आपको काबू में रखने में असमर्थ पा कर तीर की तरह निकोलाई की ओर बढ़ा।

'मन पर कलिख छा जाने की बात का क्या मतलब भला...,' उसने कुछ गुस्से से डाँट कर कहा। 'तुमसे मैंने पूछा तो नहीं कि तुम्हारे पर कौन-सा भूत सवार था... तो बोलो, क्या उनकी हत्या तुमने की थी?'

'मैं... हत्यारा हूँ... मैं बयान देना चाहता हूँ,' निकोलाई ने कहा।

'अच्छा! उन्हें तुमने मारा किस चीज से?'

'कुल्हाड़ी से। पहले से मेरे पास थी।'

'हूँ बयान देने की बड़ी जल्दी है इसे! तो अकेले ही?'

सवाल निकोलाई की समझ में नहीं आया।

'यह काम तुमने क्या अकेले किया?'

'जी हाँ। मित्रेई का कोई कसूर नहीं, उसका इसमें कोई सरोकार नहीं।'

'मित्रेई की अभी कोई जल्दी नहीं है! अच्छा! तो तुम उस वक्त इस तरह नीचे कैसे भाग गए? दरबानों ने तो तुम दोनों को साथ देखा!'

'ऐसा मैंने उन लोगों को भटकाने के लिए किया... मैं मित्रेई के पीछे भागा,' निकोलाई ने जल्दी से जवाब दिया, गोया उसने जवाब तैयार रखा हो।

'आह, तो यह किस्सा है।' पोर्फिरी झुँझला उठा। 'यह अपनी बात नहीं कह रहा,' वह अपने आप से बुदबुदा कर बोला और उसकी बाँह पकड़ कर दरवाजे की तरफ इशारा किया।

निकोलाई से सवाल-जवाब करने में वह साफ तौर पर इतना व्यस्त था कि एक पल के लिए उसे रस्कोलनिकोव का ध्यान भी नहीं रह गया था। उसने अचानक अपने आपको सँभाला। वह कुछ सिटपिटाया हुआ भी लग रहा था।

'यार रोदिओन रोमानोविच, माफ करना मुझे।' वह लपक कर उसके पास पहुँचा। 'यह सब कायदे के खिलाफ है। मैं समझता हूँ, तुम्हें यहाँ से चले जाना चाहिए। तुम्हारे लिए यहाँ ठहरना ठीक नहीं है। मैं ऐसा करता हूँ... देखो, बात यह है, कैसी हैरानी की बात है। अच्छा तो फिर मिलेंगे।' फिर उसकी बाँह पकड़ कर वह उसे दरवाजे की तरफ ले गया।

'मैं समझता हूँ, आप इसकी उम्मीद नहीं कर रहे थे?' रस्कोलनिकोव ने कहा। वह स्थिति को पूरी तरह समझ तो नहीं सका लेकिन उसकी हिम्मत लौट आई थी।

'इसकी उम्मीद तुम्हें भी तो नहीं रही होगी, दोस्त! देखो तो तुम्हारा हाथ किस तरह काँप रहा है! हिः-हिः!'

'काँप तो आप भी रहे हैं, पोर्फिरी पेत्रोविच!'

'हाँ, मैं काँप रहा हूँ... मैंने इसकी उम्मीद नहीं की थी...'

वे लोग दरवाजे पर पहुँच चुके थे। पोर्फिरी बेजार हो रहा था कि रस्कोलनिकोव किसी तरह वहाँ से फूटे।

'और वह अपना छोटा-सा अजूबा, नहीं दिखाएँगे क्या?' रस्कोलनिकोव ने अचानक कहा।

'बातें तो खूब कर रहा है, लेकिन दाँत कैसे बज रहे हैं इसके... हिः-हिः! तुम भी यार, अंदर से भरे हुए बंदे हो। अच्छा, तो फिर मिलेंगे!'

'मैं समझता हूँ, हम एक-दूसरे से हमेशा के लिए विदा ले सकते हैं।'

'सो तो भगवान के हाथ में है, 'पोर्फिरी एक अजीब-सी हँसी के साथ बुदबुदाया।

बाहरी दफ्तर से हो कर गुजरते वक्त रस्कोलनिकोव ने पाया कि बहुत-से लोग उसकी ओर देख रहे थे। उनमें उसे उस घर के वे दोनों दरबान भी थे जिन्हें उसने उस रात थाने चलने की चुनौती दी थी। वे वहाँ खड़े इंतजार कर रहे थे। लेकिन वह अभी सीढ़ियों तक पहुँचा ही था कि उसे पीछे से पोर्फिरी पेत्रोविच की आवाज सुनाई दी। उसने मुड़ कर देखा, वह हाँफता हुआ पीछे भागा आ रहा था।

'बस एक बात, रोदिओन रोमानोविच। जहाँ तक बाकी बातों का सवाल है, सो तो भगवान के हाथ में है, लेकिन मुझे तुमसे कुछ सवाल बाकायदा कार्रवाई के सिलसिले में पूछने ही होंगे... इसलिए हम फिर मिलेंगे; ठीक!'

पोर्फिरी मुस्कराता हुआ उसके सामने चुपचाप खड़ा रहा। 'देखेंगे!' उसने आगे कहा।

लग रहा था कि वह कुछ और कहना चाहता है लेकिन कह नहीं पा रहा है।

'अभी जो कुछ हुआ, मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ, पोर्फिरी पेत्रोविच; मुझे गुस्सा आ गया था,' रस्कोलनिकोव ने कहना शुरू किया। उसमें फिर एक बार हिम्मत पैदा हो गई थी और उसका जी चाह रहा था कि अपने आपको पूरी तरह शांत साबित कर दे।

'अरे यार कोई बात नहीं, कैसी बातें करते हो,' पोर्फिरी ने खुश हो कर जवाब दिया। 'मैं खुद भी तो... मैं मानता हूँ कि मेरा मिजाज बहुत बुरा है। लेकिन हमारी मुलाकात फिर होगी, जरूर होगी। भगवान ने चाहा तो अभी हम दोनों की बहुत सारी मुलाकातें होंगी।'

'और एक-दूसरे को हम लोग पूरी तरह समझेंगे,' रस्कोलनिकोव ने जोड़ा।

'हाँ, एक-दूसरे को पूरी तरह समझेंगे,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने सहमति जताई और आँखें सिकोड़ कर ध्यान से रस्कोलनिकोव को देखने लगा। 'इस वक्त तुम किसी की सालगिरह पार्टी में जा रहे हो न?'

'नहीं, जनाजे में।'

'अरे हाँ, जनाजे में! अपनी सेहत का ध्यान रखना, दोस्त, ध्यान रखना...'

'मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इसके बदले आपके लिए मैं किस चीज की कामना करूँ,' रस्कोलनिकोव सीढ़ियाँ उतरने लगा था लेकिन एक बार फिर पीछे मुड़ कर वह पोर्फिरी की ओर देख कर बोला - 'मैं आपकी और भी सफलता की कामना करना चाहता हूँ, लेकिन आप तो खुद ही जानते हैं कि आपका काम अजीब मसखरोंवाला है।'

'मसखरोंवाला क्यों!' पोर्फिरी पेत्रोविच वापस जाने के लिए मुड़ चुका था, लेकिन यह सुन कर उसके कान खड़े हो गए।

'वो लीजिए, आप लोगों ने उस बेचारे निकोलाई को तो अपने ढंग से कैसी-कैसी दिमागी तकलीफें दी होंगी, कैसे-कैसे परेशान किया होगा, तब कहीं जा कर उसने जुर्म कबूल किया होगा! दिन-रात एक करके आप लोगों ने उसके दिल में यह बात बिठाई होगी कि वही हत्यारा है। और अब... चूँकि उसने कबूल कर लिया है, सो आप लोग फिर उसकी धज्जियाँ उड़ाना शुरू करेंगे। आप कहेंगे : झूठ बोल रहे हो तुम। तुम हत्यारे नहीं। हत्यारे तुम हो ही नहीं सकते! तुम अपनी बात तो कह नहीं रहे हो! अब भी आपका काम अगर मसखरोंवाला नहीं तो और क्या है!'

'हिः-हिः-हिः! अच्छा तो तुमने मेरी बात पकड़ ही ली, वही जो अभी-अभी निकोलाई से मैंने कहा था कि तुम अपनी बात तो कह ही नहीं रहे हो!'

'भला कैसे नहीं पकड़ता?'

'हिः-हिः! तुम्हारा दिमाग तेज है। हर चीज की तरफ ध्यान देता है! सचमुच चुलबुलापन है तुम्हारे दिमाग में! और मसखरेपन के पहलू को हमेशा तुम पकड़ लेते हो... हिः-हिः! लोग कहते हैं कि लेखकों में यही खास खूबी गोगोल की थी।'

'हाँ, गोगोल की।'

'हाँ, गोगोल की... अगली प्यारी-सी मुलाकात तक के लिए अलविदा!'

'हाँ, तब तक के लिए...'

रस्कोलनिकोव सीधा घर गया। इतना उलझा और बौखलाया हुआ कि घर पहुँच कर सोफे पर पंद्रह मिनट तक बैठा अपने विचारों को सुलझाने की कोशिश करता रहा। निकोलाई के बारे में सोचने की उसने कोशिश तक नहीं की। उसे लग रहा था कि निकोलाई का अपराध स्वीकार करना एक हैरत की बात थी, जिसकी कोई वजह समझ में नहीं आती थी... ऐसी हैरत की बात थी जो उसकी समझ में कभी भी नहीं आ सकती थी। लेकिन यह भी तो एक ठोस हकीकत थी कि निकोलाई ने जुर्म कबूल किया था। इस हकीकत के नतीजे उसे साफ दिखाई दे रहे थे : सच्चाई कभी न कभी सामने आएगी और तब वे लोग फिर उसके पीछे पड़ेंगे। कम से कम उस वक्त तक के लिए वह जरूर आजाद था, और इस बीच ही उसे अपने लिए कुछ करना होगा, क्योंकि उसके लिए किसी वक्त भी खतरा पैदा हो सकता था।

लेकिन वह खतरे में किस हद तक था, स्थिति स्पष्ट होती जा रही थी। पोर्फिरी के साथ उसकी अभी जो नोक-झोंक हुई थी, उसकी मोटी-मोटी बातों को ही याद करके वह फिर एक बार दहशत से काँप उठा। जाहिर है उसे अभी तक पोर्फिरी के सारे मंसूबे मालूम नहीं हुए थे, वह उसकी सारी चालों की टोह नहीं पा सका था। लेकिन उसने एक हद तक अपने दाँव-पेंच की झलक दे ही दी थी। इस बात को रस्कोलनिकोव से बेहतर कोई नहीं जानता था कि पोर्फिरी की यह 'चाल' उसके लिए कितनी खतरनाक थी। बस थोड़ी ही-सी कसर रह गई थी, नहीं तो उसका भाँडा पूरी तरह फूट चुका होता। पोर्फिरी जानता था कि उसका चिड़चिड़ापन बीमारी की हद तक पहुँच चुका था और पहली ही नजर में वह उसकी नस-नस पहचान चुका था। सो पोर्फिरी अपने खेल में थोड़ा दुस्साहस जरूर दिखा रहा था, लेकिन आखिर में उसकी ही जीत होनी थी। इससे इनकार नहीं किया जा सकता था कि रस्कोलनिकोव ने अपने आपको बहुत बुरी तरह शुबहे का पात्र बना लिया था। बस अभी तक तथ्य सामने नहीं आए थे; अभी तो हर बात को किसी दूसरी बात की तुलना में ही परखा जा सकता था। लेकिन स्थिति को क्या वह सही ढंग से देख रहा था कहीं कोई गलती तो नहीं कर रहा था आज पोर्फिरी आखिर क्या साबित करना चाहता था आज उसने क्या सचमुच उसके लिए कोई अजूबा तैयार करके रखा था और वह था क्या वह सचमुच किसी चीज का इंतजार कर रहा था, या नहीं अगर निकोलाई उस तरह वहाँ न आया होता तो उन दोनों की मुलाकात किस तरह खत्म होती?

पोर्फिरी ने अपने लगभग सारे पत्ते खोल दिए थे। उसने कुछ जोखिम तो जरूर मोल लिया था लेकिन पत्ते उसने खोल कर सामने रख दिए थे। अगर उसके पास सचमुच कोई तुरुप का पत्ता होता (रस्कोलनिकोव को कम से कम ऐसा ही लगा) तो वह उसे भी दिखा देता। आखिर वह 'अजूबा' था क्या? कोई मजाक था... क्या उसका सचमुच कोई मानी था? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके पीछे कोई ठोस हकीकत, कोई पक्की निशानी छिपी हो और वह शख्स जो कल उससे मिला था वह कहाँ गायब हो गया भला? आज वह कहाँ था पोर्फिरी के पास अगर सचमुच कोई सबूत होगा तो उस आदमी के साथ उसका जरूर कोई संबंध होगा...

कुहनियाँ घुटनों पर टिकाए और चेहरा हाथों में छिपाए वह सोफे पर बैठा रहा। वह अभी भी घबराहट के मारे काँप रहा था। आखिरकार वह उठा, अपनी टोपी उठाई, एक मिनट तक कुछ सोचा और दरवाजे की ओर बढ़ा।

पता नहीं कैसे उसके मन में यह खयाल आ रहा था कि कम-से-कम आज तो वह अपने को खतरे से बाहर समझ सकता था। अचानक उसे खुशी का एहसास हुआ : वह जल्दी-जल्दी से कतेरीना इवानोव्ना के यहाँ पहुँचना चाहता था। जाहिर है, जनाजे में शरीक होने के लिए तो देर हो चुकी, लेकिन मरनेवाले की याद में जो भोज हो रहा था, उसमें वक्त से पहुँच जाएगा। वहीं तो उसकी मुलाकात सोन्या से होगी।

वह चुपचाप खड़ा एक पल कुछ सोचता रहा और पलभर के लिए उसके होठों पर एक दर्दभरी मुस्कान दौड़ गई।

'आज! आज!' उसने मन-ही-मन दोहराया। 'हाँ, आज! ऐसा ही होना चाहिए...'

वह दरवाजा खोलने को था कि वह अपने आप खुलने लगा। चौंक कर वह पीछे हटा। दरवाजा धीरे-धीरे खुला और अचानक उसमें से एक चेहरा नजर आया : वही शख्स जो कल धरती का सीना चीर कर उससे मिला था।

वह शख्स दरवाजे पर खड़ा कुछ बोले बिना रस्कोलनिकोव की ओर देखता रहा, फिर एक कदम आगे बढ़ कर कमरे में आ गया। आज भी वह एकदम वैसा ही था जैसा कल था। वही हुलिया और वही पोशाक। लेकिन आज उसका चेहरा काफी बदला हुआ था : वह निराश दिखाई दे रहा था। थोड़ी देर बाद उसने गहरी आह भरी। वह अगर गाल पर हाथ रख कर सर एक ओर को झुका लेता तो एकदम बूढ़ी किसान औरत जैसा दीखता।

'क्या चाहिए?' रस्कोलनिकोव ने पूछा; वह सुन्न-सा रह गया था।

वह शख्स अब भी खामोश था, लेकिन अचानक वह लगभग जमीन तक झुका, इतना कि दाएँ हाथ की उँगली से जमीन को छू सके।

'मैंने बहुत बड़ा पाप किया है,' वह धीरे से बोला।

'कैसे?'

'बुरी बातें सोच-सोच कर।'

दोनों ने एक-दूसरे को देखा।

'मुझे बहुत नाराजगी हो रही थी। आप जब आए, शायद पिए हुए, और आपने दरबानों से थाने चलने को कहा और खून के बारे में पूछा, तो मैं इस बात से परेशान हो गया कि उन लोगों ने आपको नशे में समझ कर क्यों जाने दिया। मैं इतना परेशान हुआ कि मेरी नींद उड़ गई। आपका पता तो मुझे याद ही था; हम कल यहाँ आए थे और हमने पूछा था...'

'कौन आया था' रस्कोलनिकोव ने उसकी बात काट कर पूछा। उसे अब कुछ-कुछ याद आने लगा था।

'मैं आया था यानी कि मैंने ही आपके साथ भारी बुराई की है।'

'तो तुम उसी घर में रहते हो?'

'उन लोगों के साथ फाटक पर मैं भी खड़ा था... आपको याद नहीं हम लोग उस घर में बरसों से धंधा करते आए हैं। चमड़ा कमाने और तैयार करने का काम करते हैं। हम लोग काम घर पर लाते हैं। ...असल बात तो यह थी कि मैं परेशान था...'

उस मकान के फाटक पर परसों का पूरा दृश्य रस्कोलनिकोव की आँखों के सामने घूम गया। उसे याद आया; दरबानों के अलावा वहाँ और भी कई लोग थे और उनमें कुछ औरतें भी थीं। उसे किसी शख्स की आवाज याद आई, जिसने उसे फौरन थाने ले जाए जाने का सुझाव दिया था। उसे उस आदमी का चेहरा तो याद नहीं रहा, जिसने यह बात कही थी, वह उसे इस वक्त भी याद नहीं कर पा रहा था, लेकिन इतना जरूर याद था कि उसने मुड़ कर उसे कुछ जवाब दिया था...

तो कल के भय की असल वजह यह थी। सबसे ज्यादा डर तो उसे यही सोच कर लगा था कि उसकी नैया लगभग डूब ही चुकी है, कि एक बहुत छोटी-सी बात की वजह से उसने अपने पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मारी थी। तो उन्हें यह आदमी इसके अलावा कुछ भी नहीं बता सका होगा कि मैंने फ्लैट और खून के धब्बों के बारे में पूछताछ की थी। इसीलिए पोर्फिरी के पास भी उस सरसामी हालत के अलावा कहने को और कुछ नहीं था, कोई तथ्य नहीं था, सिर्फ यह मनोविज्ञान था जो एक दोधारी तलवार है। कोई ठोस सबूत नहीं था। इसलिए अगर अब कोई और ठोस सबूत सामने नहीं आता (और नहीं आना चाहिए, आना भी नहीं चाहिए!), तब... तब वे उसका क्या बिगाड़ लेंगे उसे उन्होंने गिरफ्तार भी कर लिया तो उसे सजा कैसे दिला सकेंगे? पोर्फिरी ने भी तो फ्लैटवाली बात उसी वक्त सुनी थी; उसे पहले इस बात का कोई इल्म नहीं था।

'पोर्फिरी को तुमने बताया था... कि वहाँ मैं गया था?' अचानक एक विचार दिमाग में आया तो उसने ऊँचे स्वर में पूछा।

'पोर्फिरी कौन?'

'वही छानबीनवाला मजिस्ट्रेट।'

'जी। दरबान तो नहीं गए थे, लेकिन मैं गया था।'

'आज?'

'वहाँ मैं आपसे दो ही मिनट पहले किस तरह पहुँचा था। और मैंने सुना, मैंने सब कुछ सुना कि उन्होंने आपको परेशान किया।'

'कहाँ क्या कब?'

'और कहाँ वहीं, बगलवाले कमरे में। पूरे वक्त मैं वहीं तो बैठा हुआ था।'

'क्या कहा अच्छा, तो वह अजूबा तुम थे लेकिन यह सब हुआ कैसे? भगवान के लिए...।'

'मैंने देखा कि मैं जो कुछ कह रहा था वह करने पर दरबान राजी नहीं थे,' उसने कहना शुरू किया, 'क्योंकि उन्होंने कहा अब बहुत देर हो चुकी है, और कौन जाने वह इसी बात पर बिगड़ने लगे कि हम उसी वक्त क्यों नहीं आए। मैं बहुत झल्लाया हुआ था। मुझे नींद नहीं आई और मैंने पूछताछ शुरू कर दी। फिर कल मुझे जब मालूम हुआ तो आज मैं वहाँ गया। पहली बार जब मैं गया तब वह वहाँ नहीं था, घंटे भर बाद गया तो उसके पास मुझसे मिलने के लिए वक्त नहीं था। फिर मैं तीसरी बार गया, तब मुझे अंदर भेजा गया। जो कुछ हुआ था, वह सब मैंने उसे सच-सच बता दिया। तब वह कमरे में ही उछलने लगा और मुट्ठियों से अपना सीना पीटने लगा। 'बदमाश तुम लोग भला मेरे साथ कर क्या रहे हो अगर मुझे पहले से यह सब मालूम होता तो मैं उसे गिरफ्तार कर लेता!' फिर वह भाग कर बाहर गया, किसी को बुलाया और उसे कोने में ले जा कर उससे बातें करने लगा। उसके बाद वह मेरी तरफ मुड़ा, मुझे डाँटने-फटकारने और सवाल करने लगा। उसने मुझे बहुत फटकारा। मैंने उसे सब कुछ बता दिया, और यह भी बता दिया कि कल आपकी हिम्मत भी नहीं पड़ी थी कि जवाब में मुझसे एक बात भी कह सकें और आपने तो मुझे पहचाना भी नहीं था। यह सुन कर वह एक बार फिर कमरे में इधर-उधर भागने लगा, अपने सीने पर मुक्के मारने लगा, बेहद नाराज हो कर तेजी से इधन-से-उधर टहलने लगा, और जब उसे आपके आने की खबर दी गई तो मुझसे बगलवाले कमरे में जाने को कहा। 'थोड़ी देर वहीं बैठो,' वह बोला, 'चाहे जो कुछ भी कान में पड़े, अपनी जगह से हिलना भी मत।' उसने वहाँ मेरे लिए एक कुर्सी रखवा दी और मुझे ताले में बंद कर दिया। 'शायद' वह बोला, 'मैं तुम्हें बुलाऊँ।' फिर निकोलाई लाया गया, और उसके बाद आपके जाते ही मुझे भी छोड़ दिया गया। वह मुझसे कहने लगा : मैं तुम्हें फिर बुला कर कुछ पूछताछ करूँगा।'

'तुम्हारे सामने उसने निकोलाई से भी कोई पूछताछ की थी?'

'निकोलाई से बात करने से पहले तो उसने मुझसे भी आप ही की तरह, पीछा छुड़ा लिया था।'

'वह आदमी थोड़ी देर एकदम चुप खड़ा रहा और फिर अचानक झुक कर अपनी उँगली से जमीन को छू लिया।'

'मेरे दिमाग में बुरे-बुरे विचार आए और आपको इस तरह मैंने बदनाम किया, इसके लिए मुझे माफ कर दीजिए।'

'भगवान माफ करेगा तुम्हें,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया। यह सुन कर वह आदमी एक बार फिर झुका, लेकिन जमीन तक नहीं, और धीरे-धीरे घूम कर कमरे के बाहर चला गया। 'हर चीज की दोहरी काट है; अब हर चीज दोनों तरफ काट करती है,' रस्कोलनिकोव ने एक ही बात को दो बार दोहराया और ऐसी उम्दा मानसिक स्थिति के साथ बाहर निकल गया जैसी कभी नहीं रही थी।

'अब होगा जम कर मुकाबला,' सीढ़ियाँ उतरते हुए उसने एक कड़वी मुस्कान के साथ कहा। अपनी इस कड़वाहट का निशाना वह खुद ही था। अपनी 'कायरता' को उसने काफी शर्मिंदगी और अपमानजनक भाव से याद किया।

  • अपराध और दंड (अध्याय 5) : फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की
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  • फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की की रूसी कहानियाँ और उपन्यास हिन्दी में
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