अपनी क़िस्मत की कमाई : बिहार की लोक-कथा
Apni Kismat Ki Kamai : Lok-Katha (Bihar)
एक राजा था। उसकी सात बेटियाँ थीं। एक दिन राजा ने अपनी सातों बेटियों को बुलाकर पूछा, “तुम सब किसकी क़िस्मत का खाती हो?” सातों बेटियों में से छह ने कहा, “हम तोरे क़िस्मत से खा ही।” परंतु सातवीं बेटी जो सबसे छोटी थी, उसने कहा, “हम अप्पन क़िस्मत के कमाई खा ही।” ऐसा सुनते ही राजा को ग़ुस्सा आ गया। उसने अपनी बेटी को घर से निकाले जाने का आदेश दे दिया। जाते समय उसकी माँ ने उसके जूड़े में एक लाल बाँध दिया और डोली में चढ़ाकर विदा कर दिया। एक दासी को भी उसके साथ भेज दिया। वह जंगल की तरफ़ चल दी। जंगल में राजा की बेटी और वह दासी ग़रीबी में अपनी ज़िंदगी गुज़ारने लगे। उसे नहाए भी कई दिन हो गए थे।
एक दिन एक पासी ताड़ पर चढ़ रहा था। राजकुमारी ने दासी से कहा कि जाकर पासी को बोलो कि दूगो खगड़ा गिरा दो। पसिया ने ढेर सारा खगड़ा (ताड़ का पत्ता) गिरा दिया। राजकुमारी उसके अड़ोत करके नहा ली। नहाते समय उसके जूड़े से वह लाल गिरा जिसे उसकी माँ ने घर से विदा होते समय उसके जूड़े में लगा दिया था। राजकुमारी ने उस लाल को दासी को देते हुए कहा, “तुम बाज़ार जाओ और इसे बेच दो। बेचकर जो पैसा मिलेगा, उससे सूई-डोरा और फूल काढ़ने का साज़-ओ-सामान ख़रीद लेना।” दासी ने वैसा ही किया। राजकुमारी रोज़ लिहाफ़ पर और रूमाल पर फूल काढ़ने लगी। दासी उसे बाज़ार में बेच देती और खाने-पीने का सामान ख़रीदने के अलावा जो पैसा बचता, राजकुमारी उसे हिफ़ाज़त से जमा करती रही।
कुछ दिनों के बाद राजकुमारी ने अपना घर बनाने की सोची। दो मज़दूर लगवाकर काम शुरू भी करवा दिया। मज़दूर जब खुदाई कर रहे थे तो ज़मीन पर पड़ते ही गैंती किसी सख़्त चीज़ से टकरा जाती। बहुत कोशिश के बाद भी खुदाई नहीं हो पा रही थी। राजकुमारी ने वहाँ जाकर देखा तो उसे ऐसा लगा जैसे वहाँ सोने की ईंट पड़ी हों। उसने मज़दूरों को घर भेज दिया। रात होते ही वह ख़ुद सोने की ईंट उखाड़ लाई । दूसरे दिन उसने दासी को उस ईंट को बाज़ार बेचने के लिए भेज दिया। दासी सोने की ईंट के बदले ढेर सारा रुपया-पैसा ले आई। राजकुमारी ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो राजमिस्त्री महल का बढ़िया नक़्शा बनाकर लाएगा, उसी से मैं अपना महल बनवाऊँगी। बहुत से राजमिस्त्री आए, किसी का नक़्शा पास नहीं हुआ। एक जान पहचान वाला मिस्त्री आया। उसे देखकर राजकुमारी ने पूछा, “तूने ही फलाना जगह के बादशाह का महल बनाया था न?” उसका सकारात्मक उत्तर सुनते ही राजकुमारी ने उससे कहा, “हम्मर महल ओकरो से अच्छा बने के चाही।” मिस्त्री तैयार हो गया। महल का निर्माण कार्य शुरू हो गया। मिस्त्री के कहे के मुताबिक़ राजकुमारी ने सारा सामान जुटा लिया। देखते ही देखते सुंदर महल बनकर तैयार हो गया। महल की सुंदरता देखने लायक़ थी।
एक दिन राजा को तीरथ पर जाने का विचार आया। उन्होंने अपनी छहों बेटियों से पूछा कि तुम्हारे लिए बाहर से क्या-क्या लाएँ? सबने अपनी-अपनी ज़रूरत बताई और राजा ने सूची बना ली। उसने अपनी छोटी बेटी की भी राय जानने के लिए एक दासी को जंगल भेजा। राजकुमारी ने ‘हारूनी पंखा’ लाने के लिए लिख भिजवाया। राजा यात्रा पर निकल गए। यात्रा से लौटते समय जब जहाज़ पर बैठे तो जहाज़ चले ही न। तब जहाज़ के हँकताहर ने कहा, “केकरो सामान छूट गया है। वह जाकर ले आए।” किसी को याद ही न आए। अंत में राजा का ध्यान गया कि छोटी बेटी के लिए ‘हारूनी पंखा’ लिया ही नहीं। उस पंखे की ख़ातिर राजा जहाज़ से उतर गए और इधर जहाज़ चल दिया। सब तरफ़ ढूँढ़ने के बाद भी वह पंखा नहीं मिला।
काफ़ी पूछताछ करने के बाद एक व्यक्ति ने बताया कि ‘हारूनी पंखा’ यहाँ के बादशाह के पास है। राजा ने बादशाह के पास पहुँचकर उस पंखे के बारे में बात की। बादशाह ने कहा, “पंखा बेचने का तो नहीं है पर आप भी तो बादशाह ही हैं। हम आपको पंखा दे देते हैं और ज़रूरत पड़ने पर आपके यहाँ से कोई सामान ले आएँगे।” राजा ‘हारूनी पंखा’ लेकर अपने राज्य आ गए और एक दासी के मार्फ़त अपनी छोटी बेटी के पास भिजवा दिया।
एक दिन की बात है। राजकुमारी को बहुत गर्मी लग रही थी। उससे रहा नहीं जा रहा था। दासी को जल्दी पंखा लाने के लिए कहा। दासी ने काफ़ी ढूँढ़ा पर कोई पंखा नहीं मिला। अंत में उसे यही ‘हारूनी पंखा’ हाथ लगा और ले आई। राजकुमारी जब पंखा झुलाए तब ख़ूब ख़ुशबूदार हवा निकले। घुमाते-घुमाते एक बार पंखा उलटा घूम गया। वहाँ पर तुरंत ‘हारून रसीद’ राजकुमार उपस्थित हो गया। उसने पूछा, “बोलो, हमरा काहे ला बुलौले है?” राजकुमारी ने कहा, “मैं क्यों बुलाऊँगी?” बादशाह ने कहा कि “तूही बुलैले है।” उसने रहस्य बताया कि पंखे को उलटा घुमाते ही हम आ जाएँगे। अब तो राजकुमारी को मज़ा आ गया। जब भी मन करे वह पंखा उलटा घूमा देती और बादशाह उपस्थित हो जाता। धीरे-धीरे दोनों को एक-दूसरे से ख़ूब मोहब्बत हो गई।
कानों-कान इस बात का पता जब उसकी छहों बहनों को चला तो वे सब छोटी राजकुमारी से ईर्ष्या करने लगीं। छोटी बहन की ख़ुशी उनसे देखी नहीं जा रही थी। उन्होंने साज़िश की। छहों बहनें पीसा हुआ सीसा लेकर छोटी बहन के यहाँ आईं और कहा कि बादशाह को बुलाओ। छोटी बहन ने पहले तो ना-नुकूर की पर अंत में बुलाने के लिए तैयार हो गई। उसने दासी से कहा, “बड़ी गर्मी लग रही है, ज़रा पंखा ले आओ।” पंखा झलते-झलते जैसे ही उसने उलटा घुमाया, बादशाह आ गया। तब तक इन छहों बहनों ने बादशाह के लिए बिछावन लगाया और उस पर सीसे का चूरा छिड़ककर चद्दर डाल दी। बादशाह आया और गर्मी के कारण अंगरखा निकाल कर बिछावन पर लेट गया। लेटते ही सीसे से पूरी पीठ चीर गई।
परेशान हो बादशाह ने जल्दी पंखा उल्टा घुमाने के लिए कहा। पंखा उल्टा घुमाते ही बादशाह ग़ायब हो गया। उसकी वहाँ काफ़ी दवा-दारू की गई। बादशाह मरते-मरते बचा। अभी उसका इलाज चल रहा था।
इधर छोटी राजकुमारी काफ़ी परेशान थी। बार-बार पंखा उलटा घुमाने पर भी बादशाह नहीं आ रहा था। एक दिन राजकुमारी अपनी दासी के साथ बादशाह की खोज में निकल पड़ी। जाते-जाते शाम हो गई तो एक पेड़ के नीचे रात्रि में विश्राम किया। उस पेड़ पर हंस-हंसिनी का एक जोड़ा रहता था। रात में हंसिनी ने पूछा कि अब हारून बादशाह का क्या हाल है? तब हंस ने बताया कि अभी भी उसके बचने की आशा नहीं है। हंसिनी बोली, “वह कइसे बचेगा?” इस पर हंस बोला, “हमारी विष्ठा ले जाके कोई उसे उबटन में मिलाकर बादशाह के बदन पर लगा कर गर्म पानी से नहला देगा तो बादशाह बच जाएगा।” राजकुमारी यह सब सुन रही थी। सवेरा होते ही उसने दासी को घर भेज दिया और स्वयं हंस-हंसिनी का विष्ठा लेकर फ़क़ीरिन की वेश-भूषा धारण कर बादशाह के पास पहुँच गई। क़िले के बाहर एक दासी पानी भर रही थी। उस फ़क़ीरिन ने उससे पीने का पानी माँगा।
इंकार करते हुए वह बोली, “हमर बादशाह मरल जा रहे हैं। उन्हके नहावे ख़ातिर हम जल्दी-जल्दी पानी ले जा रहे हैं।” फ़क़ीरिन बोली, “हमरा पानी पीला दो। हम बादशाह को ठीक कर देंगे।” दासी बोली, “बड़े-बड़े हकीम आए और थक-हार कर चले गए। तुम्हारे बस का नहीं है, जाओ।” इतना कहकर दासी पानी लेकर चल दी। दासी ने बादशाह को सब बात बताई। यह सब सुनते ही बादशाह ने उस फ़क़ीरिन को तुरंत बुलवाया। उसे अच्छा-अच्छा खाना खिलाया और पानी पिलाया। दाना-पानी से निश्चिंत हो जाने पर बादशाह ने फ़क़ीरिन से पूछा, “तुम कैसे इलाज करोगी?” इतना सुनकर फ़क़ीरिन ने हंस की विष्ठा को सुसुम पानी में घोल कर बादशाह को दिन में तीन-चार बार उबटन की तरह लगाया। बादशाह एक दिन में ही ठीक हो गया और कहा, “मैं तुम्हारे इलाज से इतनी जल्दी स्वस्थ हो गया। फ़क़ीरिन तुम्हारी जो इच्छा हो, माँगो।” उसने केवल तीन चीज़ें माँगी, “फूल वाला रूमाल, बादशाह की अँगूठी और पानदान।” बादशाह इन सबके अलावा उसे काफ़ी रुपया-पैसा देना चाहता था, पर उसने नहीं लिया। अंत में, उसने फ़क़ीरिन को तीनों चीज़ देकर विदा कर दिया। फ़क़ीरिन के वेश में वह राजकुमारी तीनों चीज़ों को लेकर सुरक्षित अपने घर आ गई। वह घर-द्वार साफ़-सुथरा करवा कर इत्मीनान से बैठी और ‘हारूनी पंखा’ झलने लगी। जैसे ही उसने पंखा उलटा घुमाया, बादशाह खीस में नंगी तलवार लेकर उपस्थित हो गया और बोला, “तूने मुझे क्यों बुलाया? तू हमर जान लेना चाहती है।” राजकुमारी सहमते हुए बोली, “हम तोहर जान मारने के बजाय जान बचउली हे।” बादशाह ने कहा, “सबूत दिखाओ।” राजकुमारी ने उसको तीनों चीज़ें दिखाई और सारा क़िस्सा कह सुनाया। बादशाह को विश्वास हो गया और वह काफ़ी अफ़सोस करने लगा। उसने उसी के सामने तलवार तोड़कर फेंक दी। दोनों ख़ुशी-ख़ुशी गले मिले। राजकुमारी ने कहा, “अब हमें शादी कर लेनी चाहिए।” फिर झटपट शादी की तैयारी हो गई। राजकुमारी ने पिता के महल तक फ़र्श बिछा दिया और बुलावा भेजा। इसके बाद हारून रसीद बादशाह और राजकुमारी दोनों की शादी हो गई। राजकुमारी ने अपने पिता से पूछा, “अब बताइए कि कौन केकर क़िस्मत से खाता है?” पिता बेचारे शर्मिंदा हो गए और उसे फलने-फूलने का आशीर्वाद दिया।
(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)