अन्य पुरुष : रुडयार्ड किपलिंग

Anya Purush : Rudyard Kipling

जब धरती थी रुग्ण और आकाश धूसर
और वर्षा से म्लान थे वन,
तब वह मृत पुरुष आया उस पतझड़
करने अपनी प्रिया से पुनर्मिलन।

-ओल्ड बैलड

बहुत पहले '70 के दशक की बात है यह, जब शिमला में कोई सरकारी दफ्तर नहीं खुला था और जाखू वाली चौड़ी सड़क पी.डब्ल्यू.डी. के कबूतरखाने में रहती थी। उस समय मिस गौरी के माता-पिता ने कर्नल श्राइडरलिंग से उसकी शादी कर दी। वह गौरी से 35 साल से ज्यादा बड़ा नहीं रहा होगा, क्योंकि वह हर माह 200 रुपए पर गुजर-बसर करता था और उसके पास खुद का पैसा भी था। तो वह काफी संपन्न था। वह अच्छे खानदान से था और ठंड के मौसम में उसे फेफड़ों में परेशानी रहती थी। गरम मौसम में दौरे पड़ने का खतरा बना रहता था। मगर यह उसके लिए कभी जानलेवा साबित नहीं हुआ था।

यह बात आप समझ लें कि मैं श्री श्राइडरलिंग पर आरोप नहीं लगा रहा। अपने आप में वह एक अच्छा पति था और उसका पारा बस, तभी चढ़ता था जब बीमारी में उसकी देखभाल की जाती थी और ऐसा हर महीने में लगभग सत्रह दिन होता था। पैसों के मामले में अपनी पत्नी के प्रति वह करीब-करीब दरियादिल था और वह उसके खुद के लिए एक रियायत थी। फिर भी, मिसेज श्राइडरलिंग खुश नहीं थीं। उसकी शादी तब कर दी गई थी, जब वह 20 वर्ष की भी नहीं हुई थी और अपना पूरा बेचारा नन्हा-सा दिल एक अन्य पुरुष को दे चुकी थी। मैं उसका नाम भूल गया हूँ, मगर हम उसे 'अन्य पुरुष' (दूसरा आदमी) कहेंगे।

उसके पास न पैसा था और न ही संभावनाएँ थीं। देखने-सुनने में भी वह अच्छा नहीं था और शायद वह सेना के रसद महकमे में या परिवहन में था। मगर इस सबके बावजूद वह उसे बेहद प्यार करती थी और उन दोनों में उस समय एक तरह से बात हो चुकी थी, जब श्राइडरलिंग ने आकर मिसेज गौरी से कहा था कि वह उसकी बेटी से शादी करना चाहता है। तब वह दूसरी बात तोड़ दी गई थी—या यह कहिए कि मिसेज गौरी के आँसुओं में बह गई थी; क्योंकि वह महिला अपने घर को इस तरह चलाती थी कि जब उसे यह लगता था कि उसका हुक्म नहीं माना जा रहा या बुढ़ापे में उसे सही इज्जत नहीं मिली तो वह रोने-धोने बैठ जाती थी। बेटी अपनी माँ पर नहीं गई थी। वह कभी नहीं रोई, शादी पर भी नहीं।

अन्य पुरुष ने अपने नुकसान को चुपचाप सह लिया और उसे सबसे खराब स्टेशन पर भेज दिया गया। शायद वहाँ की आबो-हवा से उसे कुछ सुकून मिल गया था। उसे रह-रहकर बुखार हो आता था और शायद इसी वजह से उसका ध्यान अपनी उस दूसरी परेशानी से हट गया था। उसका दिल भी कमजोर था। दोनों तरह से। उसका एक वॉल्व खराब हो गया था और बुखार ने उसे बदतर कर दिया। यह बाद में जाकर दिखाई दिया।

फिर कई महीने बीत गए और मिसेज श्राइडरलिंग बीमार रहने लगीं। वह उस तरह सूखती नहीं चली गई, जैसा कि किस्से-कहानी की पुस्तकों में लोगों के साथ होता है; बल्कि ऐसा लगता था कि वह स्टेशन पर होनेवाली, मामूली बुखार से ऊपर तक, हर बीमारी को पकड़ रही थी। अपने सबसे अच्छे दिनों में भी वह मामूली से ज्यादा खूबसूरत नहीं दिखती थीं और अब बीमारी ने तो उन्हें बदसूरत बना दिया था। श्राइडरलिंग का यही कहना था। उसे इस बात का गर्व था कि वह अपने मन की बात कह डालता है।

जब वह प्यारी नहीं रह गई तो उसने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया और खुद अपने कुँआरेपन की माँद में वापस चला गया। वह मायूसी की-सी हालत में शिमला मॉल में इधर से उधर और उधर से इधर दुलकी चाल में घूमती रहती। एक भूरा तराई हैट उसके सिर के पीछे की तरफ होता और उसके नीचे एक भयंकर खराब काठी होती थी। श्राइडरलिंग की दरियादिली घोड़े पर आकर खत्म हो गई थी। उसका कहना था कि मिसेज श्राइडरलिंग जैसी बदहवास औरत के लिए कोई भी काठी चलेगी। उससे कभी नाच के लिए नहीं कहा जाता था, क्योंकि वह अच्छा नहीं नाचती थी। वह इतनी भोंदू और उबाऊ थी कि उसकी पेटी में अकसर कोई कार्ड नहीं होता था। श्राइडरलिंग का कहना था कि अगर उसे पता होता कि वह शादी के बाद ऐसी बिजूका बन जाएगी तो वह उससे कभी शादी नहीं करता। वह हमेशा इस बात पर गर्व करता था कि वह अपने मन की बात कह डालता है।

एक साल अगस्त के महीने में उसने उसे शिमला में छोड़ दिया और खुद अपनी रेजीमेंट में चला गया। तब वह थोड़ी सी ठीक हुई, मगर उसकी रंगत वापस नहीं आई। क्लब में मुझे पता चला कि अन्य पुरुष बीमारी-बहुत बीमारी की हालत में ठीक होने के लिए आ रहा था। मुझे लगता है, उसने चिट्ठी लिखकर गौरी को बताया होगा। उन दोनों ने शादी के एक महीने पहले से एक-दूसरे को नहीं देखा था और यहाँ इस कहानी का दुःखद पक्ष शुरू होता है।

एक दिन डवडेल होटल में मुझे शाम के धुंधलके तक रुकना पड़ गया। मिसेज श्राइडरलिंग उस पूरी दोपहरी बारिश में मॉल में इधर से उधर और उधर से इधर घूमती रही थीं। कार्टरोड पर आते हुए मेरे पास से एक ताँगा गुजरा और इतनी देर खड़े रहने से थका मेरा टटू मध्यम चाल में दौड़ पड़ा। ठीक ताँगा दफ्तर जानेवाली सड़क के सहारे मिसेज श्राइडरलिंग, सिर से पाँव तक भीगी, ताँगे का इंतजार कर रही थीं। मैं पहाड़ की ऊँचाई की तरफ मुड़ गया, क्योंकि ताँगे से मेरा कोई सरोकार नहीं था। तभी वह चीखने लगीं। मैं फौरन वापस गया और मैंने ताँगा दफ्तर की बत्तियों के नीचे देखा कि मिसेज श्राइडरलिंग अभी अभी आए ताँगे की पिछली सीट के पास गीली सड़क पर बड़े बुरे तरीके से चीखें मार रही थीं। और मेरे वहाँ पहुँचते-पहुँचते वह मिट्टी में औंधे मुँह गिर गई।

ताँगे की पिछली सीट पर बिल्कुल जमकर और तिरपाल की टेक पर एक हाथ रखे, उसके हैट और मूंछों से पानी टपकता हुआ, अन्य पुरुष विराजमान था-मुरदा। मुझे लगता है कि पहाड़ की ऊँचाई की तरफ 60 मील की यात्रा के धचकों को उसका वॉल्व झेल नहीं पाया था। ताँगेवाले ने कहा, "यह साहब सोलन से दो पड़ाव बाहर ही मर गए थे। इसलिए मैंने इन्हें रस्सी से बाँध दिया कि कहीं यह रास्ते में ही गिर न जाएँ और इस तरह शिमला आ गया। साहब, मुझे बख्शीश देंगे?" यह उसने अन्य पुरुष की तरफ इशारा करते हुए कहा, "एक रुपया देते।"

अन्य पुरुष खीसें निपोरता बैठा था, मानो अपने पहुँचने के मजाक पर उसे मजा आ रहा था। और मिट्टी में बैठी मिसेज श्राइडरलिंग ने कराहना शुरू कर दिया। दफ्तर में हम चारों के अलावा और कोई नहीं था और मूसलधार बारिश हो रही थी। सबसे पहले तो मुझे मिसेज श्राइडरलिंग को घर पहुँचाना था और दूसरा काम था इस मामले में उनका नाम न आने देना। मैंने ताँगेवाले को पाँच रुपए दिए कि वह मिसेज श्राइडरलिंग के लिए एक रिक्शा ढूँढ़ लाए। उसके बाद ही उसे ताँगा बाबू को अन्य पुरुष के बारे में बताना था और बाबू को अपने हिसाब से उसका अच्छे-से-अच्छा बंदोबस्त करना था।

मिसेज श्राइडरलिंग को बारिश से हटाकर शेड में ले जाया गया और पौन घंटे तक हम दोनों रिक्शे का इंतजार करते रहे। अन्य पुरुष जैसा आया था, उसे वैसा ही छोड़ दिया गया था। मिसेज श्राइडरलिंग और सबकुछ कर रही थीं, बस रो नहीं रही थीं, जिससे उनका जरूर भला हुआ होगा। होश-हवास लौटते ही उन्होंने चीखने की कोशिश की और फिर वह अन्य पुरुष की आत्मा के लिए प्रार्थना करने लगी। अगर वह सचमुच ईमानदार न होतीं तो उन्होंने अपनी आत्मा के लिए भी प्रार्थना की होती। मैं इंतजार में रहा कि वह ऐसा करेंगी, मगर उन्होंने अपनी आत्मा के लिए प्रार्थना नहीं की। फिर मैंने उनके कपड़ों से थोड़ी मिट्टी छुड़ाने की कोशिश की। आखिरकार, रिक्शा आ गया और मैंने उन्हें वहाँ से भेज दियाइसमें मुझे थोड़ी जोर-जबरदस्ती भी करनी पड़ी। शुरू से आखिर तक यह बहुत टेढ़ा काम था। मगर सबसे ज्यादा परेशानी तब हुई, जब रिक्शे को दीवार और ताँगे के बीच से भिंचकर निकलना पड़ा और मिसेज श्राइडर ने तिरपाल की टेक पकड़े उस पतले व पीले हाथ को देखा।

मिसेज श्राइडरलिंग को जिस समय घर ले जाया गया, उस समय हर कोई नाच के लिए वाइसरीगल लॉज जा रहा था, जो उस समय 'पीटरहॉफ' था और डॉक्टर को यही पता चला कि वह अपने घोड़े से गिर गई थीं और मैंने उन्हें जाको के पीछे से उठाया था। जिस फुरती से मैंने डॉक्टरी मदद ली थी, उसके लिए सचमुच मुझे बड़ा श्रेय जाता था। वह मरी नहीं-श्राइडरलिंग के ठप्पेवाले मर्द ऐसी औरतों से शादी करते हैं, जो आसानी से नहीं मरतीं। वे जिंदा रहती हैं और बदसूरत हो जाती हैं।

मिसेज श्राइडरलिंग ने अपनी शादी के बाद से अन्य पुरुष के साथ उस एक मुलाकात के बारे में कभी नहीं बताया। और जब उस शाम खुले में रहने की वजह से उसे ठंड लगी और खाँसी ने उसके बाहर जाने का रास्ता बना दिया तो उसने कभी भी बोलकर या इशारे से यह नहीं जताया कि मुझसे उसकी मुलाकात ताँगा दफ्तर में हुई थी। शायद उसे इसका कभी पता ही नहीं चला।

वह उस भयंकर खराब काठी पर बैठ मॉल में इधर से उधर और उधर से इधर दुलकी चाल में घूमती रहती थी। ऐसा लगता था जैसे उसे मोड़ पर किसी के मिलने की उम्मीद थी और वह हर मिनट उधर देखती रहती थी। दो साल बाद वह 'घर' चली गई और वहाँ उसकी मौत हो गई—मैं सोचता हूँ, शायद बोर्नमथ में।

श्राइडरलिंग जब कभी मेस में भावुक हो जाता तो 'मेरी बेचारी प्यारी बीवी' की बात करता था। वह हमेशा यह गर्व करता था कि वह अपने मन की बात कह डालता है।

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