अंत से शुरुआत (कहानी) : एस.भाग्यम शर्मा

Ant Se Shuruaat (Hindi Story) : S Bhagyam Sharma

रविवार का दिन था। श्वेता अपने पैरों के नाखूनों को शेप दे रही थी कि तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आई।

“हैलो, क्या आप का नाम श्वेता है?”

“जी… पर आप कौन? मैं ने आप को पहचाना नहीं।”

“मेरा नाम गिरिजा है। मैं रूपराज की पत्नी हूं। अब मैं कौन हूं समझ में आ ही गया होगा?” श्वेता कोई जवाब तो नहीं दे पाई पर वह सदमे में आ गई।

“यहां बैठ कर आराम से बात नहीं हो सकती। पास के रैस्टोरैंट में चल कर हम बात करें? कपड़े बदल कर जल्दी से चलो,” गिरिजा बोलीं।

उन की आवाज में जो गंभीरता थी उस से श्वेता को वैसे ही करने के लिए मजबूर कर दिया। उस के मन के अंदर हजारों प्रश्न उठने लगे,’झगड़ा करने आई है क्या… मेरे पति को मुझ से अलग मत करो ऐसा विनती करेगी और आदमियों को ला कर मुझे धमकी देगी…’ क्या करना चाहिए उस के समझ में नहीं आया। श्वेता कपड़े बदल कर उन के साथ रवाना हो गई।

श्वेता जहां काम करती थी वहां पर रूपराज एक बड़ा अधिकारी था। करीब ढाई हजार आदमीऔरत वहां पर काम करते थे। जहां आदमीऔरत साथ काम करते हैं तो एकदूसरे से मिलनाजुलना स्वाभाविक ही है‌। एक ही कंपनी में काम करने से कई बार रूपराज से उस की बातचीत हुई थी । एक दिन लिफ्ट में साथ आने का मौका भी मिला और फिर एक दिन मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान भी।

रूपराज के फोन पर बात करने पर वह मना नहीं कर सकी। उस से बात करना अच्छा लगने लगा। फिर मिलने की इच्छा भी होने लगी। दोनों के बीच प्रेम शुरू हो चुका था। श्वेता को लगा कि अब इस प्रेम को शादी में बदलना चाहिए।

“मैं पहले से ही शादीशुदा हूं…” कहते हुए रूपराज हकलाया,”मेरी पत्नी एक राक्षसी है, मोटी है और बदसूरत ही नहीं निपूती भी है। हमेशा चिल्लाती रहती है। सामानों को उठा कर फेंकती है। प्रेम से एक शब्द भी नहीं बोलती। मुझे तो घर जाने की इच्छा भी नहीं होती…” कह कर टेबल पर दोनों हाथ रख कर रोने लगा।

“तुम्हें देखते ही मैं तुम पर फिदा हो गया। तुम बेहद खूबसूरत हो और तुम्हें देख कर मैं सबकुछ भूल गया कि मैं शादीशुदा हूं। मुझे लगा तुम्हें मालूम पड़े तो तुम मुझ से रिश्ता नहीं रखोगी, यही सोच कर मैं ने सच को तुम से छिपाया। मुझे छोड़ कर मत चली जाना श्वेता…”

यह सुनने के बाद श्वेता को रूपराज से जो प्रेम था वह और भी बढ़ गया। इतने प्रेम से रहने वाले पति से, प्रेम न करने वाली पत्नी के ऊपर उसे गुस्सा भी आया।

“तुम चिंता मत करो। मैं उस से तलाक ले लूंगा। उस के बाद हम शादी कर लेंगे। पर तब तक मैं तुम्हें देखे बिना नहीं रह सकता। होस्टल में तो आनाजाना संभव नहीं। एक नया घर ले लेता हूं, तुम वहां रहो। 2 महीने में तलाक हो जाएगा…”

विश्वास करने लायक बात तो थी, मगर उस की पत्नी इस तरह आ कर उस के सामने खड़ी हो जाएगी यह उस ने नहीं सोचा था। रैस्टोरैंट में श्वेता और गिरिजा कोने की एक टेबल पर बैठे।

और्डर दे कर गिरिजा ने मौन को तोड़ा,”क्या बात है श्वेता, तुम कुछ भी बोल नहीं रही हो… मैं क्या कहूंगी ऐसा तुम्हें डर लग रहा है क्या?”

“मैं… यहां इस होस्टल में रहती हूं यह आप को कैसे पता चला?”

गिरिजा खिलखिला कर हंसी,”आदमी दूसरी औरत के पास जा रहा है एक औरत उसे समझ नहीं सकती क्या ?
पति से जब पूछा तब उन्होंने ठीक से जवाब नहीं दिया तब डिटैक्टिव ऐजैंसी की मैं ने सहायता ली। उस ने हर बात को सहीसही बता दिया।

“छोटी उम्र में तुम्हारे मातापिताजी गुजर गए और नजदीकी रिश्तेदार भी कोई नहीं है। औफिस में तुम किसी से भी ज्यादा बातचीत नहीं करतीं। सिर्फ शुक्रवार को ही तुम साड़ी पहनती हो और बाकी दिन चूड़ीदार या कोई वैस्टर्न ड्रैस पहनती हो। पिछली बार जब तुम रूपराज के साथ बाहर गई थीं तो उस ने तुम्हें एक पिंक कलर की सिल्क की साड़ी दिलाई थी। यह सबकुछ भी मुझे मालूम है।”

अपराधिक भावना से श्वेता ने सिर झुका लिया।

“चलो रख लो… ऐसा कह कर एक चौकलेट देने वाला भी तुम्हें कोई नहीं है। एक गंभीर आदमी के आते ही तुम उस पर फिसल गईं। मैं दिखने में सुंदर नहीं हूं, मोटी हूं, काली हूं और हमारे पिताजी की वजह से एक बेमेल शादी हो गई।”

वह आगे बोलीं,”मेरी बहन ने एक लड़के से प्रेम किया, वह कौन है, कैसा है मेरे पिताजी ने इसे भी मालूम नहीं किया। उन से बात कर के दीदी की शादी करवा दी। मेरे पिताजी को तो उस के बारे में मालूम करना चाहिए था। यदि लड़का ठीक होता तो शादी करवाते। पर ऐसा नहीं हुआ।

“उस आदमी के सही न होने कारण मेरी दीदी ने आत्महत्या कर ली। मैं भी कहीं प्रेम में न पड़ जाऊं ऐसा सोच कर वे डर गए और उन के औफिस में काम करने वाले रूपराज से जल्दीजल्दी में मेरी शादी करवा दी।पर रूपराज को हमारे पिताजी के रुपयों पर ही आंख थी, यह समझने के पहले ही उन का देहांत हो गया। हमारा कोई बच्चा नहीं है, यह तो एक बहाना है। जिन के बच्चा नहीं होता वे खुशी के साथ नहीं रहते हैं क्या? मन में प्रेम हो तो यह संभव है,” गिरिजा का गला भर आया। आंखों में नमी आ गई।

अपनी गलती को श्वेता ने महसूस किया।

“देखो, अपनी समस्या को बता कर सांत्वना लेने के लिए मैं यहां नहीं आई। मेरे पति को छोड़ दो यह भी नहीं कहूंगी। जब उस ने मेरे शरीर का बहाना बना कर दूसरी स्त्री को ढूंढ़ लिया है, तो उसी समय से मेरी शादीशुदा जिंदगी का कोई अर्थ नहीं है, यह बात मेरी समझ में आ गई थी।सिर्फ तुम्हारे बारे में बात करने के लिए मैं तुम्हें ढूंढ़ कर आई, तुम से बात करने।”

‘यदि मुझे समझाने के लिए मां होती तो मेरी यह गलती नहीं हुई होती…’ श्वेता सोचने लगी।

“तुम कैसी लड़की हो श्वेता? कोई तुम्हें बस इतना कहे कि वह तुम्हें चाहता है, वह शादीशुदा है तो तुम्हें अपना होश खो देना चाहिए? तुम्हें पूछताछ कर के सच का पता नहीं लगाना चाहिए?

“मुझे एक फोन तो कर सकती थीं न… तुम अकेली हो, नौकरी करती हो, फिर क्यों यह सैकंड हैंड हसबैंड के साथ रहना चाहती हो?

“तुम्हें कानून की जानकारी नहीं है? वह तलाक मांगे तो मैं तलाक दे दूंगी तुम ने ऐसा क्यों सोच लिया? रूपराज ने अभी तक तलाक की अर्जी भी नहीं लगाई है। वैसे, अर्जी लगा भी दे तो तलाक मिलने में 2-3 साल तो लग ही जाएंगे। यदि मैं कोई विरोध करूं तो और भी समय लग सकता है। तब तक रूपराज तुम से शादी नहीं कर सकता। यदि करे तो कानून के हिसाब से वह सही नहीं होगा।”

गिरिजा की गंभीर और सही बातों का श्वेता के पास कोई जवाब नहीं था,”अभी क्या करना चाहिए मेरी समझ में नहीं आ रहा है। आप ही बताइए क्या करूं?” श्वेता बोली।

“हमारे घर में प्रेम के कारण आत्महत्या हुई है, वैसे ही यहां नहीं हो, इसी बात को ध्यान में रख कर मैं यहां आई हूं। होस्टल में जाओ और तसल्ली से सोचो। तुम्हें रूपराज से कितना प्रेम है और रूपराज को तुम से कितना प्रेम है और वह कितना सच्चा है इसे भी मालूम करो? हमारा तलाक हो भी जाए तो रुपए, मकान और सबकुछ मेरे पास आ जाएंगे। आवाज देते ही काम के लिए आदमी हाजिर, बड़ा बंगला, हमेशा ड्राइवर के साथ गाड़ी… इन सब सुविधाओं को छोड़ने के लिए रूपराज तैयार होगा क्या, इसे मालूम करो। यदि इन सब को छोड़ कर वह तुम्हारे साथ आने को तैयार है तो वह सच्चा प्रेम है। फिर तुम उस से शादी कर लो और खुश रहो। पर पहले उसे परखो और सचाई को जानो। यदि कोई धोखा खाने वाला आदमी हो तो वहां धोखा देने वाला आदमी भी होता है।

“रूपराज की बातों को सुन कर जल्दी से होस्टल खाली कर के नया मकान ले कर चली मत जाना। जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है। तुम्हें कुछ मदद की जरूरत है तो मुझे फोन कर देना,” कह कर गिरिजा बिल चुका कर बाहर निकल गईं।

‘रूपराज ने जिस गिरिजा के बारे में बताया था उस में और इस गिरिजा में कितना अंतर है… यह सब देखे बिना ही मैं रूपराज के प्रेमजाल में फिसल गई यह मेरी ही गलती थी,’ यह सोचते हुए श्वेता ने एक दिन रूपराज से बात की।

तलाक के बारे में प्रश्न पूछने पर उस ने बेरुखी से जवाब दिया। वह श्वेता को अलग मकान में रखना चाहता था।
गिरिजा के साथ जो आरामदायक जीवन उसे मिला है, वह उसे खोना नहीं चाहता था। वह खुद को अच्छा आदमी भी दिखाना चाहता था ताकि समाज में उस की इज्जत बनी रहे। श्वेता के साथ छिप कर जिंदगी जीने का जो जाल उस ने बिछाया था वह श्वेता की समझ में आ चुका था। यह जान कर एक दिन उस ने गुस्से में कहा,”अरे, तुम कैसी बात कर रही हो। मेरे साथ घूमीफिरी हो, कितने दिन होटलों में आई हो, मौजमस्ती की हो, उन सब को मैं फोन पर डाल कर भेज दूंगा। फिर कोई तुम से शादी नहीं करेगा। मैं जैसा बोल रहा हूं वैसा रहो नहीं तो मैं क्या करूंगा मुझे ही नहीं पता।”

श्वेता डर गई। उस ने गिरिजा से मदद मांगी,”वह धमकाता है…”

तब गिरिजा ने कहा,”तो तुम क्यों डर रही हो? जो कुत्ते भूंकते हैं वे काटते नहीं। तुम्हारी फोटो डालते ही साथ में उस की तसवीर नहीं आएगी क्या? हां, तुम सतर्क जरूर रहो। गुस्से में लोग खून करने में भी पीछे नहीं रहते…

“तुम पुलिस की मदद लो। जहां विनम्र होना जरूरी हो वहां होना चाहिए पर कोई गलती करे तो उस को छोङो भी मत। किसी काम को शुरू करने के बाद मन में दुख नहीं होना चाहिए…” गिरिजा बोलीं।

फिसल कर गिरने वाली श्वेता का गिरिजा ने हाथ पकड़ कर खींचा था और उसे सही राह दिखाई थी। फिर भी वह औफिस वालों की निगाहों और रूपराज की धमकियों को सहन न कर पाई।

“तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा हो तो नौकरी छोड़ दो श्वेता,” गिरिजा बोलीं।

“नौकरी छोड़ दूं तो कैसे? फिर मेरा क्या होगा?”

“श्वेता… तुम्हें ड्रैस डिजाइनिंग का काम अच्छी तरह आता है न, तुम अपनी ड्रैस स्वयं ही डिजाइन करती हो… यह सब कैसे मालूम है मत पूछो। मैं हूं न तुम्हारे साथ। बस, पहले छोटे दुकान से शुरू करेंगे। हम दोनों के नाम से उस का नाम ‘श्वेगी’ रखेंगे। अलगअलग जगहों से कपड़े खरीदेंगे। अच्छा चलेगा तो यात्रा भी करेंगे।”

“नहीं तो?”

“नहीं तो दुकान बंद कर के ठेला लगा कर चाट बेचेंगे,” कह कर गिरिजा हंसी।

कठोर परिश्रमी, किसी बात से न डरने वाली और मजबूत इरादों वाली गिरिजा दृढ़ता से खड़ी थीं। उसे प्यार देने के लिए कोई नहीं था। एक दीदी थीं वह भी चल बसी थीं। पिता भी नहीं है। शादी की, तो पति भी दूसरी लड़की को ढूंढ़ता फिर रहा है बावजूद भी वह निडर हो कर खड़ी है। अपने फैसलों को सोचसमझ कर ले रही है। दूसरी लड़की धोखा न खाए इसलिए उस की मदद कर रही है।

गिरिजा से संबंध रखने में श्वेता का भी स्वभाविमान जाग उठा। दोनों के संयुक्त प्रयास से ‘श्वेगी फैशन’ का जन्म हुआ। जीने का आत्मविश्वास जागृत होने से और अपने परिश्रम से वे दोनों सफलता की ओर बढ़ते चले गए।

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