अन्ना करेनिना (रूसी उपन्यास) : लेव तोल्सतोय

Anna Karenina (Russian Novel in Hindi) : Leo Tolstoy

अन्ना करेनिना : (अध्याय 1-भाग 2)

जाड़े के अन्त में यह तय करने के लिए कि कीटी की सेहत का क्या हाल है और उसके गिरते स्वास्थ्य को ठीक करने की खातिर क्या किया जाए, श्चेर्बात्स्की परिवार में डॉक्टरों को मशविरे के लिए बुलाया गया। कीटी बीमार रहती थी और वसन्त के निकट आने पर उसकी सेहत और भी ज़्यादा ख़राब हो गई थी। परिवार के डॉक्टर ने उसे कॉर्ड लिवर ऑयल पिलाया, उसके बाद आयरन खिलाया और इसके पश्चात चाँदी का घोल पीने को दिया, किन्तु किसी भी दवाई से कोई लाभ नहीं हुआ। चूँकि उसने वसन्त में विदेश जाने की सलाह दी, इसलिए एक जाने-माने डॉक्टर से सलाह लेने का निर्णय किया गया। इस प्रसिद्ध डॉक्टर ने, जो अभी जवान और ख़ासा खूबसूरत मर्द था, रोगी का पूरी तरह मुआयना करना चाहा। वह तो मानो विशेष आनन्द के साथ इस बात पर जोर देता था कि लड़की की लाज-शर्म बीते ज़माने की असभ्यता का अवशेष है और इससे अधिक स्वाभाविक कुछ नहीं हो सकता कि वह मर्द, जो अभी खुद भी बूढ़ा नहीं हुआ, जवान नंगी लड़की के शरीर को जाँचे-परखे। वह इसलिए इसे स्वाभाविक मानता था कि हर दिन ही ऐसा करता था और ऐसा करते हुए न तो कुछ महसूस करता था और, जैसाकि उसे प्रतीत होता था, न कोई बुरा विचार ही उसके मन में आता था। इसलिए लड़की के लजाने-शरमाने को वह न केवल जहालत का अवशेष, बल्कि अपना अपमान भी मानता था।

इस डॉक्टर की इच्छा के सामने झुकना ज़रूरी था। कारण कि यद्यपि सभी डॉक्टरों ने एक ही विद्यालय में, एक ही जैसी किताबों से पढ़ाई की थी, वे एक जैसी ही विद्या जानते थे और यद्यपि कुछ ऐसा भी कहते थे कि यह किसी काम का डॉक्टर नहीं है तथापि प्रिसेंस श्चेर्बात्स्काया के घर और उसकी जान-पहचान के लोगों में ऐसा माना जाता था कि यह विख्यात डॉक्टर कोई खास चीज़ जानता है और सिर्फ़ वही कीटी को बचा सकता है। परेशान और शर्म से बेहाल हुई कीटी की अच्छी तरह से जाँच करने और उसकी पसलियों पर उँगलियाँ बजाने तथा खूब अच्छी तरह से हाथ धोने के बाद प्रसिद्ध डॉक्टर मेहमानखाने में खड़ा हुआ प्रिंस से बातचीत कर रहा था। प्रिंस डॉक्टर की बातें सुनते हुए तनिक खाँसते थे और नाक-भौंह सिकोड़ रहे थे । वे काफ़ी ज़िन्दगी देख चुके थे, ख़ासे समझदार और स्वस्थ व्यक्ति थे, चिकित्साशास्त्र में विश्वास नहीं करते थे और मन-ही-मन इस सारे तमाशे पर झल्ला रहे थे। ख़ासतौर पर इसलिए कि वे अकेले ही तो कीटी की बीमारी के कारण को अच्छी तरह से जानते थे । 'बातूनी कहीं का,' बेटी की बीमारी के लक्षणों के बारे में उसकी बक-बक को सुनते हुए वे मन-ही-मन इस प्रसिद्ध डॉक्टर की तुलना खाली हाथ लौटने, किन्तु बढ़-चढ़कर बातें बनानेवाले शिकारी के साथ कर रहे थे। दूसरी तरफ़ डॉक्टर भी बड़ी मुश्किल से इस बूढ़े कुलीन के प्रति अपनी तिरस्कार भावना पर क़ाबू पा रहा था और कठिनाई से ही उनकी समझ के नीचे स्तर पर बातचीत कर रहा था । वह अच्छी तरह से जानता था कि बूढ़े से बात करने में कोई तुक नहीं और घर में माँ ही सब कुछ हैं। वह उन्हीं के सामने अपने क़ीमती मोती बिखेरना चाहता था। इसी समय प्रिंसेस परिवार के डॉक्टर के साथ मेहमानख़ाने में आईं। प्रिंस इस बात को छिपाने की कोशिश करते हुए कि उन्हें यह सारा तमाशा कितना हास्यास्पद लग रहा है, परे हट गए। प्रिसेंस बहुत परेशान थीं और समझ नहीं पा रही थीं कि क्या करें। वे अपने को कीटी के सामने दोषी अनुभव करती थीं ।

"तो डॉक्टर कीजिए हमारी क़िस्मत का फ़ैसला,"प्रिंसेस ने कहा । "मुझे सब कुछ बताइए।"'कोई उम्मीद है या नहीं ?' उन्होंने कहना चाहा, किन्तु उनके होंठ काँप गए और वे यह सवाल नहीं पूछ पाईं।

"हाँ, तो डॉक्टर ?”

“प्रिंसेस, मैं ज़रा अपने सहयोगी के साथ बात कर लूँ और तब आपकी सेवा में अपनी राय पेश करूँगा।"

"तो हम आपको अकेले छोड़ दें ?"

"जैसा ठीक समझें ।"

प्रिंसेस निःश्वास छोड़कर बाहर चली गईं।

जब दोनों डॉक्टर ही कमरे में रह गए, तो परिवार का डॉक्टर अपना यह मत बताने लगा कि तपेदिक़ की शुरुआत है, लेकिन... इत्यादि । प्रसिद्ध डॉक्टर ने उसकी बात सुनते हुए बीच में ही अपनी सोने की बड़ी-सी घड़ी पर नज़र डाली ।

“हाँ,” प्रसिद्ध डॉक्टर ने कहा । "लेकिन...”

परिवार का डॉक्टर आदरपूर्वक बीच में ही चुप हो गया ।

“जैसाकि आप जानते हैं, तपेदिक़ की शुरुआत को हम निश्चित तो कर नहीं सकते, कैविटी के प्रकट होने तक कुछ भी स्पष्ट नहीं हो सकता। किन्तु हम ऐसा सन्देह कर सकते हैं। इसके लिए आधार भी हैं - भूख की कमी, चिड़चिड़ापन दूर किया जाए, तो हमारे सामने सवाल यह है - तपेदिक की प्रक्रिया के आरम्भ का सन्देह होने पर भूख को बढ़ाने के लिए क्या किया जाए ?”

“किन्तु, जैसाकि आप जानते हैं, इसके पीछे हमेशा नैतिक और मानसिक कारण छिपे रहते हैं, "परिवार के डॉक्टर ने हल्की सी मुस्कान के साथ इतना तो कह ही दिया ।

“हाँ, सो तो है ही,” नामी डॉक्टर ने फिर से अपनी घड़ी पर नज़र डालकर जवाब दिया । "माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन क्या याउज़ा पुल बन गया या अभी तक बड़ा चक्कर काटकर जाना पड़ता है ?” उसने पूछा। “अच्छा, बन गया ! तब तो मैं बीस मिनट में पहुँच सकता हूँ। हाँ, हम कह रहे थे कि हमारे सामने सवाल यह है- भूख बढ़ाई जाए और चिड़चिड़ापन दूर किया जाए। ये दोनों चीजें, एक-दूसरी से सम्बन्धित हैं और हमें दोनों की ओर ध्यान देना चाहिए।”

"किन्तु विदेश जाने के बारे में आपकी क्या राय है ?"परिवार के डॉक्टर ने पूछा ।

"मैं विदेश जाने का बड़ा विरोधी हूँ । आप इस बात पर ध्यान दें कि अगर तपेदिक़ की प्रक्रिया का आरम्भ ही है, जो हम निश्चित नहीं कर सकते, तो विदेश यात्रा से कोई लाभ नहीं होगा। ऐसे इलाज की ज़रूरत है, जिससे भूख बढ़े और हानि किसी तरह की न हो।"

नामी डॉक्टर ने सोडेन खनिज जल से इलाज करने की योजना बताई। ऐसे इलाज का सुझाव देने का सम्भवतः मुख्य कारण यही था कि इससे किसी तरह की हानि नहीं होगी ।

परिवार का डॉक्टर बहुत ध्यान और बड़े आदर से उसकी बात सुन रहा था।

"किन्तु विदेश यात्रा के पक्ष में मैं यह कहना चाहूँगा कि उससे अभ्यस्त जीवन में कुछ परिवर्तन होगा, यादों को ताज़ा करनेवाला वातावरण नहीं रहेगा। इसके अलावा उसकी माँ ऐसा चाहती भी हैं, "उसने कहा ।

"समझा ! अगर ऐसा है, तो जाएँ, लेकिन ये जर्मन नीम-हकीम नुक़सान ही पहुँचाएँगे...ज़रूरत इस बात की हैं कि वे मेरी बातों पर कान दें।"

उसने फिर से घड़ी पर नज़र डाली।

"ओह ! जाने का वक़्त हो गया..."और दरवाज़े की तरफ़ चल दिया ।

नामी डॉक्टर ने प्रिंसेस से कहा (शायद शिष्टतावश ऐसा करना ज़रूरी था कि उसके लिए रोगी को फिर से देखना ज़रूरी है।

"क्या मतलब ! फिर से देखना ज़रूरी है ?” प्रिंसेस घबराकर चिल्लाईं ।

"नहीं, नहीं, मेरा मतलब यह है कि कुछ तफ़सीलें जानना ज़रूरी है।”

"कृपया पधारिए।"

और माँ डॉक्टर को मेहमानख़ाने में कीटी के पास ले चलीं । दुबलाई और दहकते गालों तथा आँखों में उस शर्म के कारण, जो उसे सहन करनी पड़ी थी, विशेष प्रकार की चमक लिए कीटी कमरे के मध्य में खड़ी थी। डॉक्टर के कमरे में दाखिल होने पर वह बिल्कुल लाल हो गई और उसकी आँखें छलछला आईं। उसे अपनी सारी बीमारी और उसका इलाज एक बेवकूफ़ी, यहाँ तक कि हास्यास्पद भी लग रहा था । उसे अपना इलाज टूटे हुए फूलदान के टुकड़ों को जोड़ने के समान बेहूदा प्रतीत हो रहा था। उसके दिल के टुकड़े हो गए थे। तो क्या वे दवाई की गोलियों और पाउडरों से उसका इलाज करना चाहते हैं ? लेकिन वह माँ के दिल को ठेस नहीं लगा सकती थी, ख़ासतौर पर जबकि माँ अपने को दोषी अनुभव करती थीं।

“प्रिंसेस, ज़रा बैठ जाने की कृपा करें,"नामी डॉक्टर ने कहा ।

डॉक्टर मुस्कुराता हुआ उसके सामने बैठ गया, उसने नब्ज़ हाथ में ले ली और फिर से ऊब भरे सवाल पूछने लगा । कीटी ने उत्तर दिए और अचानक नाराज़ होकर खड़ी हो गई ।

“क्षमा चाहती हूँ, डॉक्टर, किन्तु इस सबसे कोई लाभ नहीं होगा। आप मुझसे वही बात तीसरी बार पूछ रहे हैं।"

नामी डॉक्टर ने बुरा नहीं माना।

“यह चिड़चिड़ापन बीमारी के कारण है,” कीटी के बाहर चली जाने पर उसने माँ से कहा। “वैसे, मैं अपना काम पूरा कर चुका हूँ..."

डॉक्टर ने एक असाधारण सूझ-बूझ वाली नारी के रूप में माँ के सामने बेटी की हालत को वैज्ञानिक ढंग से स्पष्ट किया और अन्त में यह बताया कि कैसे वह खनिज जल पिया जाए, जिसे पीने की कोई आवश्यकता नहीं थी। यह पूछे जाने पर कि विदेश जाएँ या नहीं, डॉक्टर ऐसे गहरी सोच डूब गया मानो कोई मुश्किल सवाल हल कर रहा हो । आखिर उसने अपना यह फ़ैसला सुनाया- जाएँ, किन्तु नीम-हकीमों पर विश्वास न करें और हर बात के लिए उसकी सलाह लें ।

डॉक्टर के जाने के बाद मानो खुशी-सी छा गई। बेटी के पास लौटने पर माँ खुश-खुश - सी दिखाई दीं और बेटी ने भी यह ढोंग किया कि वह अच्छे मूड में है। कीटी को अक्सर, लगभग हर समय ही अब ढोंग करना पड़ता था ।

“सच कहती हूँ कि मैं भली-चंगी हूँ, maman. किन्तु यदि आप चाहती हैं, तो हम विदेश चल सकती हैं,” कीटी ने कहा और यह दिखाने की कोशिश करते हुए कि निकट भविष्य में होनेवाली यात्रा में उसकी दिलचस्पी है, उसकी तैयारी की चर्चा करने लगी ।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 2-भाग 2)

डॉक्टर के जाने के फ़ौरन बाद डॉली आ गई । उसे मालूम था कि इस दिन डॉक्टरों से सलाह-मशविरा किया जाएगा और इस चीज़ के बावजूद कि उसने कुछ ही दिन पहले प्रसूति से मुक्ति पाई थी (जाड़े के अन्त में उसने एक और बेटी को जन्म दिया था), और इस बात की भी परवाह न करते हुए कि खुद उसे भी कुछ कम परेशानियाँ और चिन्ताएँ नहीं थीं, वह अपनी दूधपीती बच्ची और दूसरी बीमार बालिका को छोड़कर कीटी के भाग्य निर्णय के बारे में जानने का, जो आज तय हो रहा था, यहाँ आई थी।

"तो क्या कहा डॉक्टरों ने ?” उसने टोपी उतारे बिना ही मेहमानखाने में दाखिल होते हुए पूछा । "आप सभी खुश नज़र आ रहे हैं। सब कुछ ठीक-ठाक है न ?”

नामी डॉक्टर ने जो कुछ कहा था, उन्होंने उसे वह बताने की कोशिश की । किन्तु, यद्यपि डॉक्टर बहुत सुन्दर ढंग से और देर तक अपनी बात कहता रहा था, वे किसी तरह भी डॉली को यह न बता सकीं कि उसने क्या कहा था। दिलचस्प बात सिर्फ़ इतनी ही थी कि विदेश जाने का निर्णय कर लिया गया था।

डॉली ने अनचाहे ही गहरी साँस ली। उसकी सबसे अच्छी मित्र, उसकी बहन विदेश जा रही थी । और डॉली का अपना जीवन सुखी नहीं था । सुलह के बाद ओब्लोन्स्की के साथ उसके सम्बन्ध अपमानजनक हो गए थे। आन्ना ने जो सन्धि करवाई थी, वह बहुत पक्की साबित नहीं हुई और पारिवारिक मेल-मिलाप में उसी जगह फिर से दरार पड़ गई थी। ख़ास बात तो नहीं हुई थी, किन्तु ओब्लोन्स्की घर पर लगभग कभी नहीं रहता था, घर में पैसे भी लगभग कभी नहीं होते थे, पति की बेवफ़ाई के सन्देह डॉली को निरन्तर यातना देते रहते थे और डॉली ईर्ष्या भाव की पीड़ा से डरती हुई इन सन्देहों को अपने से दूर भगाती रहती थी । ईर्ष्या का जो पहला विस्फ़ोट वह सहन कर चुकी थी, अब उसकी पुनरावृत्ति नहीं हो सकती थी और बेवफ़ाई की जानकारी होने पर भी अब उस पर वैसा ही असर न होता, जैसा पहली बार हुआ था। ऐसी जानकारी होने पर उसका केवल अभ्यस्त पारिवारिक जीवन की गड़बड़ा जाता और वह उसे तथा इस दुर्बलता के लिए अपने से और भी अधिक घृणा करती हुई अपने को धोखा देने देती । इस परेशानी के अलावा बड़े कुनबे की चिन्ताएँ उसे निरन्तर घेरे रहती थीं -कभी तो बच्ची को दूध पिलाने में कठिनाई होती, फिर आया चली गई और फिर कभी कोई बच्चा बीमार हो जाता, जैसा आज था।

"तुम्हारे बच्चों का क्या हालचाल है ?"माँ ने पूछा ।

“ओह, maman, आपकी अपनी परेशानियाँ ही बहुत हैं। लिली बीमार हो गई है और मुझे डर है कि उसे लाल बुख़ार है। मैं कीटी के बारे में जानने को अभी चली आई, नहीं तो भगवान न करें, अगर उसे लाल बुखार होगा, तो मेरा घर से निकलना ही नहीं हो सकेगा ।"

बूढ़े प्रिंस भी डॉक्टर के जाने के बाद अपने कमरे से बाहर निकल आए और डॉली से अपने गाल पर चुम्बन पाने तथा उससे बातचीत करने के बाद पत्नी से बोले :

"तो क्या जाने का फ़ैसला कर लिया ? मेरे बारे में क्या विचार है ?"

“मैं समझती हूँ कि तुम्हें यहीं रहना चाहिए, अलेक्सान्द्र"बीवी ने जवाब दिया । "जैसा ठीक समझें ।"

“Maman, पापा भी क्यों न चलें हमारे साथ ?” कीटी ने कहा । "ये भी खुश रहेंगे और हम भी।"

बूढ़े प्रिंस उठे और उन्होंने कीटी के बाल सहलाए। कीटी ने मुँह ऊपर को किया और यत्नपूर्वक मुस्कुराकर पापा की तरफ़ देखा । कीटी को हमेशा ऐसा लगता था कि यद्यपि पापा उससे बहुत कम बात करते थे, वही उसे परिवार में सबसे ज़्यादा अच्छी तरह समझते थे। सबसे छोटी होने के नाते वह पापा की लाड़ली थी और कीटी को ऐसा प्रतीत होता था कि उसके प्रति पापा के प्यार ने उन्हें सूक्ष्मदर्शी बना दिया है। उसे एकटक देखती हुई पापा की नीली और दयालु आँखों से जब उसकी आँखें मिलीं तो उसे लगा कि पापा उसे आर-पार देख रहे हैं और उसकी आत्मा की हर बेचैनी को समझते हैं। कीटी लज्जारुण होते हुए इस आशा से पापा की ओर झुकी कि वे उसे चूमेंगे, किन्तु उन्होंने केवल उसके बाल थपथपा दिए और बोले :

“ये मूर्खतापूर्ण पराये बाल ! अपनी बिटिया के बाल सहलाने के बजाय किन्हीं मृत बुढ़ियाओं के बालों कोही सहला पाता हूँ। हाँ, तो डॉली,” उन्होंने बड़ी बेटी को सम्बोधित किया, "तुम्हारा वह तुरुप का इक्का क्या तीर मार रहा है ?"

"ठीक है, पापा,” डॉली ने यह समझते हुए कि उसके पति की चर्चा हो रही है, जवाब दिया । "हमेशा बाहर ही रहता है, मैं तो उसे लगभग घर में नहीं देख पाती,” वह व्यंग्यपूर्ण मुस्कान के साथ इतना और कहे बिना न रह सकी ।

"तो क्या वह अभी तक जंगल बेचने के लिए गाँव नहीं गया ?"

"नहीं, सोच रहा है जाने की।"

“अच्छा !” प्रिंस ने कहा । "तो क्या मुझे भी जाने की तैयारी करनी चाहिए ? मैं हुक्म बजाने को तैयार हूँ,” उन्होंने बैठते हुए अपनी बीवी से कहा । "और कीटी, तुम ऐसा करो,” वे छोटी बेटी से बोले, “किसी एक शुभ दिन तुम आँख खोलते ही अपने आपसे कहना - मैं बिल्कुल स्वस्थ और ख़ूब मज़े में हूँ और फिर से पापा के साथ तड़के ही जाड़े पाले में सैर को जाया करूँगी। क्या ख़याल है ?"

पापा ने जो कुछ कहा था, वह यों तो बहुत सीधा-सादा प्रतीत होता था, किन्तु ये शब्द सुनकर कीटी एक अपराधी की तरह बेचैन और परेशान हो उठी। "हाँ, पापा सब कुछ जानते, सब कुछ समझते हैं और इन शब्दों द्वारा मुझसे यह कह रहे हैं कि बेशक तुम्हें शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ रहा है, फिर भी तुम्हें उससे निजात पानी चाहिए।"वह उन्हें जवाब देने की हिम्मत नहीं बटोर पाई। उसने कुछ कहना शुरू किया, लेकिन अचानक रो पड़ी और कमरे से बाहर भाग गई ।

"यह नतीजा होता है तुम्हारे मज़ाक़ों का !” प्रिंसेस पति पर बरस पड़ीं। "तुम हमेशा ..."उन्होंने पति को डाँट पिलानी शुरू कर दी।

प्रिंस देर तक पत्नी की डाँट सुनते हुए चुप रहे, किन्तु उनके तेवर चढ़ते चले गए।

“वह इतनी ज़्यादा दुःखी है, इतनी ज़्यादा दुःखी है, बेचारी, लेकिन तुम यह महसूस नहीं करते कि उसे असली वजह की तरफ़ ज़रा-सा इशारा करने पर भी कितनी ठेस लगती है । आह ! कितना धोखा खा जाते हैं हम लोगों के बारे में !” प्रिंसेस ने कहा और उनका अन्दाज़ बदलने से डॉली तथा प्रिंस समझ गए कि अब वे व्रोन्स्की की चर्चा कर रही हैं। "मेरी समझ में नहीं आता कि ऐसे दुष्ट और बुरे लोगों के ख़िलाफ़ कोई क़ानून-क़ायदे क्यों नहीं हैं ?"

“आह, यह तुम क्या कह रही हो !” प्रिंस ने दुःखी होते और मानो बाहर जाने की इच्छा ज़ाहिर करते हुए कहा। लेकिन वे दरवाज़े के पास जाकर रुक गए। "क़ानून तो हैं और अब अगर तुमने मुझे ज़बान खोलने को मजबूर कर ही दिया है, तो सुनो कि इस सबके लिए तुम, और केवल तुम ही दोषी हो। ऐसे छैल-छबीलों के विरुद्ध क़ानून सदा थे, और हैं ! हाँ, अगर वैसा न होता, जैसाकि नहीं होना चाहिए था, तो मैं, बूढ़ा होते हुए भी, उस शैतान को द्वन्द्व-युद्ध की चुनौती देता । और अब इसका इलाज करवाइए, इन ढोंगी नीम-हकीमों के फेर में पड़िए !"

प्रिंस सम्भवतः और भी बहुत कुछ कहना चाहते थे, किन्तु प्रिंसेस ने जैसे ही उनका बात कहने का यह अन्दाज़ देखा, वैसे ही, जैसेकि हमेशा सभी गम्भीर मामलों में होता था, फ़ौरन झुक गईं और पश्चात्ताप करने लगीं ।

“अलेक्सान्द्र, अलेक्सान्द्र,” पति की ओर बढ़ती हुई प्रिंसेस फुसफुसाईं और रो पड़ीं ।

पत्नी के रो पड़ते ही प्रिंस चुप हो गए। वे पत्नी के पास जाकर बोले:

“बस, बस करो ! मैं जानता हूँ कि तुम्हारे मन पर भी भारी गुज़र रही है । किया क्या जाए ? कोई बड़ी मुसीबत नहीं है। भगवान दयालु हैं..."खुद यह न समझते हुए कि वे क्या कह रहे हैं तथा हाथ पर पत्नी के आँसू भीगे चुम्बन को अनुभव करके और धन्यवाद देकर वे कमरे से बाहर चले गए।

कीटी जैसे ही आँखों में आँसू भरे हुए कमरे से निकली, डॉली ने स्वयं माँ और पारिवारिक जीवन की अभ्यस्त होने के नाते फ़ौरन यह समझ लिया कि अब नारी के रूप में उसे कुछ करना चाहिए और उसने अपने को इसके लिए तैयार कर लिया। उसने अपनी टोपी उतार दी और मन-ही-मन मानो आस्तीने चढ़ाकर मैदान में उतरने को तत्पर हो गई। माँ जब पिता पर बरस रही थीं, तो उसने बेटी के नाते जहाँ तक उचित था, माँ को रोकने की कोशिश की। पिता के फट पड़ने पर वह ख़ामोश रही। उसे माँ के लिए शर्म और पिता के प्रति, उनकी उसी क्षण लौट आनेवाली दयालुता के कारण प्यार की अनुभूति हो रही थी। किन्तु पिता के बाहर चले जाने पर वह सबसे महत्त्वपूर्ण चीज़ यानी कीटी के पास जाकर उसे शान्त करने की सोचने लगी।

"Maman, मैं बहुत दिनों से आपको एक बात कहना चाहती थी-आपको यह मालूम है या नहीं कि लेकिन जब आखिरी बार यहाँ था, तो वह कीटी से विवाह का प्रस्ताव करना चाहता था ? उसने स्तीवा से यह कहा था।"

"तो क्या हुआ ? तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आ रही..."

"हो सकता है कि कीटी ने उसे इनकार कर दिया हो ? उसने आपसे नहीं कहा ?"

"नहीं, उसने दोनों में से किसी के बारे में भी कुछ नहीं कहा, वह बड़ी गर्वीली है। लेकिन मैं जानती हूँ कि यह सब कुछ इसी बात के कारण है..."

“हाँ, आप कल्पना करें कि अगर उसने लेविन को इनकार कर दिया है, किन्तु वह उसे कभी इनकार न करती अगर वह दूसरा न होता। मैं जानती हूँ...और बाद में इसने उसे कैसे धोखा दिया ?"

प्रिंसेस के लिए यह सोचना बड़ा भयानक था कि कीटी के सामने वे कितनी अधिक दोषी हैं और इसलिए वे झल्ला उठीं।

"ओह, मेरी समझ में अब कुछ नहीं आ रहा ! आजकल सब अपनी ही अक्ल से जीना चाहते हैं और माँ को कुछ भी नहीं बताते। इसीलिए बाद में यह..."

"Maman, मैं उसके पास जाती हूँ।"

“जाओ। मैं क्या तुम्हें मना कर रही हूँ ?"माँ ने जवाब दिया।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 3-भाग 2)

कीटी के सुन्दर, गुलाबी रंगवाले और सैक्सोनी चीनी मिट्टी की गुड़ियाओं सहित छोटे कमरे में दाख़िल होने पर, जो दो महीने पहले की कीटी के समान की ताज़गी, गुलाबीपन और प्रफुल्लता लिए हुए था, डॉली को यह याद हो आया कि पिछले साल कैसे दोनों बहनों ने मिलकर कितनी खुशी और प्यार से इस कमरे को सजाया-सँवारा था । उसने जब कीटी को दरवाज़े के क़रीब नीची-सी कुर्सी पर बैठे और क़ालीन के एक कोने पर निश्चल दृष्टि जमाए देखा, तो उसका दिल बैठ गया । कीटी ने अपनी बहन की तरफ़ नज़र उठाई और उसके चेहरे पर रुखाई, बल्कि कुछ कठोरता का भाव नहीं बदला।

“मैं अभी चली जाऊँगी, फिर घर से निकल नहीं सकूँगी और तुम मेरे पास आ नहीं सकोगी, "डॉली ने कीटी के निकट बैठते हुए कहा । "मैं तुम्हारे साथ कुछ बातचीत करना चाहती हूँ ।"

“किस बारे में ?” घबराकर सिर ऊँचा करते हुए कीटी ने झटपट पूछा ।

"अगर तुम्हारे दुःख के बारे में नहीं तो और किस बारे में ?"

"मुझे कोई दुःख नहीं है ।"

"हटाओ, कीटी ! क्या तुम यह सोचती हो कि मुझसे यह सब छिपा रह सकता है ? मैं सब कुछ जानती हूँ। और मुझ पर यक़ीन करो कि यह इतनी तुच्छ चीज़ है...हम सभी को इसका अनुभव हुआ है ।"

कीटी ख़ामोश रही और उसके चेहरे पर कठोरता का भाव बना रहा था ।

“वह इसके लायक़ नहीं है कि तुम उसके लिए अपना मन दुःखाओ,"डॉली ने सीधे-सीधे मतलब की बात कह दी।

“हाँ, क्योंकि उसने मेरी उपेक्षा कर दी है,” कीटी काँपती आवाज़ में कह उठी । “कुछ नहीं कहो ! कृपया इस बारे में कुछ नहीं कहो !"

“ऐसा तुमसे किसने कहा है ? किसी ने भी ऐसा नहीं कहा। मुझे विश्वास है, वह तुमसे प्यार करता था और अब भी करता है, किन्तु...”

“आह, ये सहानुभूति के प्रदर्शन ही सबसे ज़्यादा भयानक होते हैं !” कीटी अचानक गुस्से में आकर चिल्ला उठी। उसने कुर्सी पर घूमकर मुँह दूसरी ओर कर लिया, गुस्से से लाल हो गई और उँगलियों को जल्दी-जल्दी हिलाते हुए कभी एक, तो कभी दूसरे हाथ से पेटी के उस बकसुए को दबाने लगी, जो वह हाथ में लिए थी। गुस्से में आने पर हाथों को ऐसे पकड़ने - दबाने की कीटी की आदत से डॉली परिचित थी। उसे यह भी मालूम था कि क्रोध के ऐसे क्षणों में कीटी को भले-बुरे का कुछ भी ध्यान नहीं रहता और वह बहुत-सी अवांछित तथा कड़वी बातें भी कह सकती है। डॉली ने उसे शान्त करना चाहा, किन्तु देर हो चुकी थी ।

"क्या, तुम क्या अनुभव करवाना चाहती हो मुझे ?"कीटी जल्दी-जल्दी कह रही थी ।

"यही कि मैं ऐसे आदमी को प्यार करती थी, जिसने मेरी रत्ती भर परवाह नहीं की और यह कि मैं उसके प्यार में मरी जा रही हूँ ? और मुझसे ऐसा मेरी बहन कह रही है, जो यह समझती है कि... कि वह मेरे प्रति सहानुभूति प्रकट कर रही है !... मुझे नहीं चाहिए ऐसी सहानुभूति और ऐसा ढोंग !”

"कीटी, यह तुम्हारी ज़्यादती है !”

“किसलिए तुम मुझे यह यातना दे रही हो ?"

“मैं तो उल्टे... मैं देख रही हूँ कि तुम दुःखी हो..."किन्तु कीटी ने अपने गुस्से में उसकी बात नहीं सुनी।

"मेरे लिए दुःखी होने और सान्त्वना पाने का कोई कारण नहीं है। मैं इतनी गर्वीली हूँ कि कभी ऐसे आदमी को प्यार नहीं करूँगी, जो मुझे प्यार नहीं करता।”

"मैं तो यह कह ही नहीं रही हूँ...तुम एक बात मुझे सच सच बताओ,” कीटी का हाथ अपने में लेकर डॉली बोली, “मुझे बताओ, क्या लेविन ने तुमसे अपने इरादे का ज़िक्र किया था ?..."

लेविन की याद दिलाने पर तो कीटी मानो बिल्कुल आपे से बाहर हो गई । वह उछलकर कुर्सी से उठ खड़ी हुई, उसने बकसुआ ज़मीन पर दे मारा और हाथों को तेज़ी से हिलाते-डुलाते हुए कह उठी :

“लेविन का यहाँ क्या सवाल पैदा होता है ? समझ में नहीं आता कि तुम किसलिए मुझे सताना चाहती हो ? मैं कह चुकी हूँ और दोहराती हूँ कि मुझमें आत्माभिमान है और कभी, कभी भी वह नहीं करूँगी, जो तुम करती हो - उस आदमी के पास कभी नहीं लौटूंगी, जिसने मेरे साथ बेवफ़ाई की है और किसी दूसरी नारी को प्यार करने लगा है। यह मेरी समझ में नहीं आता, नहीं आता। तुम ऐसा कर सकती हो, मैं नहीं कर सकती !”

ये शब्द कहकर उसने बहन पर नज़र डाली और यह देखकर कि डॉली सिर झुकाए हुए ख़ामोश है, कीटी कमरे में बाहर आने के बजाय, जैसाकि उसका इरादा था, दरवाज़े के पास बैठ गई और मुँह को रूमाल से ढँककर उसने सिर झुका लिया ।

कोई दो मिनट तक ख़ामोशी बनी रही। डॉली अपने बारे में सोच रही थी। अपना यही अपमान, जो वह हमेशा अनुभव करती थी, बहन के याद दिलाने पर विशेषतः ज़ोर से टीस उठा। उसने बहन से ऐसी निर्ममता की आशा नहीं की थी और वह उससे नाराज़ हो गई। किन्तु अचानक उसे पोशाक की सरसराहट और साथ ही दबी-घुटी सिसकियों की आवाज़ सुनाई दी और किसी ने नीचे की तरफ़ से उसके गले में बाँहें डाल दीं । कीटी उसके सामने घुटने टेके हुए थी ।

"प्यारी डॉली, मैं इतनी दुःखी हूँ, इतनी अधिक दुःखी हूँ !” वह दोषी की तरह फुसफुसाई । कीटी ने आँसुओं से तर अपना प्यारा चेहरा डॉली के स्कर्ट में छिपा लिया ।

आँसू तो मानो उस ज़रूरी तेल के समान थे, जिनके बिना दोनों बहनों के आपसी मेल-मिलाप की गाड़ी सफलतापूर्वक नहीं चल सकती थी । आँसुओं के बाद बहनों ने उस बात की चर्चा नहीं की, जिसमें उन दोनों की दिलचस्पी थी। किन्तु दूसरी बातों की चर्चा करते हुए भी वे एक-दूसरी को समझ गईं। कीटी समझ गई कि उसने गुस्से में डॉली के पति की बेवफ़ाई और उसके अपमान के बारे में जो कुछ कहा था, उससे बेचारी बहन के दिल को गहरी ठेस लगी है, मगर उसने उसे क्षमा कर दिया है। दूसरी तरफ़ डॉली वह सब समझ गई, जो जानना चाहती थी। उसे यक़ीन हो गया कि उसके अनुमान बिल्कुल सही थे, कीटी का दुःख, वह दुःख, जिसका कोई इलाज नहीं था, इसी बात में निहित था कि लेविन ने उससे विवाह का प्रस्ताव किया और उसने उसे इनकार कर दिया, किन्तु व्रोन्स्की ने उसे धोखा दिया और वह लेविन को प्यार करने को तैयार थी तथा व्रोन्स्की से घृणा करती थी । कीटी ने इस सम्बन्ध में एक शब्द भी नहीं कहा, उसने तो केवल अपनी मानसिक स्थिति की चर्चा की ।

“मुझे किसी तरह कोई दुःख नहीं है,” शान्त होने पर उसने कहा, "लेकिन तुम समझ सकती हो कि मुझे कुछ गन्दा, घिनौना और बेहूदा लगता है और सबसे पहले मैं खुद अपनी नज़रों में ही ऐसी हो गई हूँ। तुम कल्पना भी नहीं कर सकतीं कि सभी चीज़ों के बारे में मेरे दिल में कैसे बुरे विचार आते हैं।"

"कैसे बुरे विचार हो सकते हैं तुम्हारे मन में ?"डॉली ने मुस्कुराते हुए पूछा ।

"बहुत, बहुत ही बुरे और बेहूदा । मैं तुम्हें बता भी नहीं सकती। यह बेचैनी नहीं, ऊब नहीं, बल्कि इससे कहीं अधिक बुरी चीज़ है। ऐसे लगता है कि मानो मेरे भीतर जो कुछ भी अच्छा था, सब गायब हो गया और सिर्फ़ सबसे बुरा ही बाक़ी रह गया है। कैसे समझाऊँ मैं तुम्हें यह ?” बहन की आँखों में यह भाव देखकर मानो वह उसे समझ न पा रही हो, वह कहती गई । “पापा अभी मुझसे कहने लगे...मुझे लगता है, वे केवल यही समझते हैं कि मुझे शादी करनी चाहिए । अम्मा मुझे बॉल में ले जाती हैं- मुझे लगता है, वे इसीलिए मुझे वहाँ ले जाती हैं कि जल्दी से मेरी शादी करके मुझसे पिंड छुड़ा लें। मैं जानती हूँ कि यह सच नहीं है, किन्तु ऐसे विचारों को दिल से खदेड़ नहीं पाती। तथाकथित वरों को तो मैं फूटी आँखों नहीं देख पाती। ऐसा लगता है कि वे मानो मेरी माप लेते हैं। पहले तो बॉल की पोशाक पहनकर कहीं जाना मेरे लिए बड़ी खुशी की बात होती थी, मैं अपने पर मुग्ध हुआ करती थी, किन्तु अब मुझे शर्म आती है, अटपटापन महसूस होता है। तो क्या करूँ मैं ? और डॉक्टर... हाँ..."

कीटी झिझक गई। वह आगे यह कहना चाहती थी कि जिस समय से उसमें यह परिवर्तन हुआ है, स्तेपान अर्काद्येविच उसकी नज़र में बुरी तरह खटकने लगा है और वह बहुत ही बुरे और घिनौने विचारों के बिना उसकी कल्पना नहीं कर सकती।

“हाँ, सब कुछ बहुत बुरे और घिनौने रूप में मेरे सामने आता है,"वह कहती गई । "यही मेरी बीमारी है। शायद यह दूर हो जाएगी..."

"तुम सोचा न करो...'

"मैं ऐसा नहीं कर पाती। सिर्फ़ बच्चों के साथ, सिर्फ़ तुम्हारे यहाँ ही मैं खुश रहती हूँ ।"

"दुःख की बात है कि तुम मेरे यहाँ नहीं आ सकतीं।”

"नहीं, मैं आऊँगी। मुझे लाल बुखार हो चुका है और मैं maman से तुम्हारे यहाँ जाने की अनुमति ले लूँगी।”

कीटी ने अपनी बात मनवा ली, बहन के यहाँ चली गई और लाल बुख़ार के दौरान, जो सचमुच ही प्रकट हो गया था, बच्चों की देखभाल करती रही। दोनों बहनों ने छः के छः बच्चों को इस रोग के संकट से सही-सलामत उबार लिया, किन्तु कीटी का स्वास्थ्य बेहतर नहीं हुआ। लेन्ट पर्व के अवसर पर श्चेर्बात्स्की परिवार विदेश चला गया ।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 4-भाग 2)

पीटर्सबर्ग का ऊँचा सामाजिक हलक़ा वास्तव में एक ही है- सभी एक-दूसरे को जानते हैं, एक-दूसरे के यहाँ आते-जाते भी हैं । किन्तु एक बड़े हलके में अपने छोटे-छोटे दायरे भी हैं। आन्ना अर्काद्येव्ना कारेनिना के तीन विभिन्न दायरों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध थे और वहाँ उसकी सहेलियाँ और मित्र थे । एक दायरा तो उसके पति का सरकारी और औपचारिक दायरा था, जिसमें उसके साथ काम करनेवाले तथा उसके मातहत लोग शामिल थे। ये लोग अत्यधिक विविधतापूर्ण और अजीब ढंग से सामाजिक सम्बन्धों में बँधे या बँटे हुए थे । आन्ना अब मुश्किल से ही उस लगभग पावन सम्मान की भावना को याद कर सकती थी, जो शुरू में वह उन लोगों के प्रति अनुभव करती थी। अब तो वह उन सभी को वैसे ही जानती थी, जैसे छोटे से शहर में एक-दूसरे को जानते हैं । उसे मालूम था कि किसकी कैसी आदतें और कमज़ोरियाँ हैं, किसको किसके कारण परेशानी होती है, एक-दूसरे और मुख्य केन्द्र के प्रति उनके रवैये से परिचित थी। उसे पता था कि कौन किसका, कैसे और किस चीज के बल पर दामन थामे है और कौन किस चीज़ में सहमत और असहमत है। लेकिन काउंटेस लीदिया इवानोव्ना के समझाने-बुझाने के बावजूद इन सरकारी हितों वाले मर्दों का यह दायरा उसे कभी अच्छा नहीं लगता था, और वह उससे कतराती थी ।

आन्ना के मेल-जोल का दूसरा दायरा वह था, जिसके ज़रिये उसके पति कारेनिन ने अपनी नौकरी में तरक़्क़ी की थी। काउंटेस लीदिया इवानोव्ना इस दायरे का केन्द्र-बिन्दु थी । यह बूढ़ी, बदसूरत, सदाचारी और धर्म-कर्म में डूबी हुई औरतों और समझदार, विद्वान तथा महत्त्वाकांक्षी मर्दों का दायरा था। इस दायरे से सम्बन्ध रखनेवाले एक बुद्धिमान व्यक्ति ने इसे 'पीटर्सबर्ग के समाज की आत्मा' की संज्ञा दी थी। कारेनिन इस दायरे को बहुत महत्त्व देता था और सबके साथ निबाह कर लेनेवाली आन्ना ने पीटर्सबर्ग के अपने प्रारम्भिक जीवन में इस दायरे में भी मित्र बना लिए थे। अब मास्को से लौटने पर यह दायरा उसे बहुत ही बुरी तरह से अखरने लगा। उसे प्रतीत होता कि वह खुद और बाक़ी सभी लोग भी ढोंग करते हैं। इसलिए इस दायरे में वह बड़ी ऊब तथा अटपटापन अनुभव करने और काउंटेस लीदिया इवानोव्ना के यहाँ कम-से-कम जाने लगी ।

तीसरा, आखिरी दायरा, जिसके साथ उसके सम्बन्ध थे, बॉलों, दावतों और शानदार पोशाकों का दायरा था । यह वह कुलीन समाज था, जो एक हाथ से दरबार को थामे रहता था, ताकि अपने से नीचे के समाज में न खिसक जाए। इस कुलीन समाज के लोग अपने ख़याल में इस नीचेवाले समाज को तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे, किन्तु उसके साथ उनकी रुचियाँ न केवल मिलती-जुलती ही, बल्कि सर्वथा समान थीं। इस दायरे के साथ प्रिंसेस बेत्सी त्वेरस्काया के ज़रिये उसका सम्बन्ध बना हुआ था। प्रिंसेस बेत्सी उसके चचेरे भाई की पत्नी थी, उसकी एक लाख बीस हज़ार की आमदनी थी, और आन्ना के कुलीन समाज में प्रकट होते ही उसे उससे विशेष अनुराग हो गया था । वह आन्ना की बहुत ख़ातिरदारी करती थी और काउंटेस लीदिया इवानोव्ना के दायरे का मज़ाक़ उड़ाते हुए उसे अपने दायरे में खींच लाई थी ।

"बूढ़ी- खूसट और बदसूरत होने पर मैं भी उसके जैसी ही हो जाऊँगी,” बेत्सी कहती, "लेकिन आपके जैसी जवान और सुन्दर नारी के लिए अभी उन बूढ़ी औरतों के आश्रम में जाने का वक़्त नहीं आया ।"

पहले कुछ समय में तो आन्ना ने प्रिंसेस बेत्सी त्वेरस्काया के दायरे से यथासम्भव दूर रहने का प्रयास किया, क्योंकि इसके लिए जितने ख़र्च की ज़रूरत थी, वह उसके साधनों से बाहर की बात थी और वैसे दिल से भी वह पहले दायरे को ही तरजीह देती थी। लेकिन मास्को से लौटने के बाद उसका रुख़ बिल्कुल दूसरा हो गया। वह अपने नैतिक झुकाववाले मित्रों से कन्नी काटती और ऊँचे कुलीन समाज में जाती। वहाँ व्रोन्स्की से उसकी भेंट होती और ऐसी भेंटें उसे उत्तेजनापूर्ण खुशी प्रदान करतीं । बेसी के यहाँ तो विशेषतः उसकी व्रोन्स्की से अक्सर मुलाक़ात होती । बेत्सी भी व्रोन्स्की परिवार में ही जन्मी थी और उसकी चचेरी बहन थी । व्रोन्स्की हर उस जगह पर पहुँचता, जहाँ उसे आन्ना से मिलने की आशा होती और जब भी सम्भव होता, उससे अपने प्यार की चर्चा करता । वह उसे किसी भी तरह का बढ़ावा न देती, किन्तु उससे होनेवाली हर मुलाक़ात के समय उसे वैसी ही सजीवता की अनुभूति होती, जैसी उसने उस दिन रेलगाड़ी में व्रोन्स्की को पहली बार देखने पर अनुभव की थी । आन्ना ने खुद यह महसूस किया था कि उसे देखते ही उसकी आँखों में खुशी की चमक आ जाती है, होंठों पर मुस्कान खिल उठती है और अपनी खुशी की इस अभिव्यक्ति को वह किसी तरह भी छिपा नहीं पाती है।

शुरू-शुरू में आन्ना सच्चे मन से यह विश्वास करती थी कि व्रोन्स्की का हर जगह उसके पीछे-पीछे पहुँच जाना उसे अच्छा नहीं लगता है। किन्तु मास्को से लौटने के कुछ ही दिन बाद जब वह एक समारोह में गई, जहाँ उसे उससे मिलने की आशा थी, किन्तु वह वहाँ नहीं आया था, तो उस पर हावी हो जानेवाले निराशा भाव से वह स्पष्टतः यह समझ गई कि अपने को धोखा देती रही है, कि व्रोन्स्की द्वारा हर जगह उसके पीछे-पीछे जाना न केवल उसे रुचिकर है, बल्कि उसके जीवन का सबसे बड़ा सुख है।

प्रसिद्ध गायिका दूसरी बार गा रही थी और सारा ऊँचा समाज थिएटर में था। पहली क़तार में बैठे व्रोन्स्की ने चचेरी बहन बेत्सी त्वेरस्काया को बॉक्स में बैठे देख लिया और अन्तराल की प्रतीक्षा किए बिना ही उसके पास चला गया।

"आप दोपहर के खाने पर क्यों नहीं आए ?"बेत्सी ने पूछा । "प्रेमियों के दिलों में एक समान बजनेवाले तारों से हैरानी होती है,” उसने मुस्कुराकर ऐसे धीरे से कि केवल व्रोन्स्की को ही सुनाई दे, इतना और जोड़ दिया । "वह भी नहीं आई। लेकिन ऑपेरा के बाद आ जाइए।”

व्रोन्स्की ने प्रश्नसूचक दृष्टि से बेत्सी की ओर देखा । उसने सिर झुकाया । व्रोन्स्की ने मुस्कुराकर आभार प्रकट किया और उसके निकट बैठ गया ।

“मुझे याद आता है कि कैसे आप दूसरों का मज़ाक़ उड़ाया करते थे,” प्रिंसेस बेत्सी ने कहा, जिसे इस प्रेम-लीला की प्रगति की चर्चा में विशेष सुख मिलता था। “कहाँ हवा हो गया अब वह सब कुछ ! प्रेम जाल में फँस गए हो।"

“मैं सिर्फ़ यही तो चाहता हूँ कि जाल में फँस जाऊँ,” व्रोन्स्की ने अपने शान्त और खुशमिज़ाजी की द्योतक मुस्कान के साथ कहा। अगर सच कहूँ, तो मुझे सिर्फ़ यही शिकायत है कि जाल में बहुत कम फँसा हूँ। मैं तो निराश होने लगा हूँ।”

“आप आशा ही कैसे कर सकते हैं ?” बेत्सी ने अपनी सहेली के लिए बुरा मानते हुए कहा ।

"Entendons nous..."(एक-दूसरे को समझ लें-फ्रांसीसी) लेकिन उसकी आँखों में ऐसी लौ थी, जो कह रही थी कि वह बहुत अच्छी तरह, ठीक वैसे ही जैसे व्रोन्स्की, यह समझती है कि उसे क्या आशा हो सकती है।

"कुछ भी नहीं,” व्रोन्स्की ने हँसते और अपने सुन्दर दाँतों की झलक दिखाते हुए कहा । "माफ़ी चाहता हूँ,” बेत्सी के हाथ से दूरबीन लेते और उसके उघाड़े कन्धे के ऊपर से सामनेवाले बॉक्सों पर उसे केन्द्रित करते हुए व्रोन्स्की ने इतना और जोड़ दिया । "मुझे लगता है कि मैं उपहास-पात्र बनता जा रहा हूँ ।"

व्रोन्स्की बहुत अच्छी तरह से यह जानता था कि बेत्सी और उसके दायरे के अन्य सभी लोगों की नज़रों में उसके उपहास - पात्र बनने का कोई ख़तरा नहीं था । उसे बहुत अच्छी तरह से यह मालूम था कि इन लोगों की दृष्टि में किसी युवती या किसी आज़ाद नारी के बदक़िस्मत प्रेमी की भूमिका उपहासजनक हो सकती है, किन्तु उस व्यक्ति की भूमिका, जो किसी विवाहिता पर बुरी तरह लट्टू हो और हर क़ीमत पर उसे अपने प्रेम-पाश में बाँधना चाहता हो, सुन्दर और गरिमापूर्ण भूमिका है और कभी भी उपहासजनक नहीं हो सकती। इसीलिए अपनी मूँछों के नीचे होंठों पर गर्वीली और सुखद मुस्कान के साथ उसने दूरबीन नीचे की और चचेरी बहन की ओर देखा ।

"तो आप दोपहर के खाने पर क्यों नहीं आए ?"मुग्ध भाव से उसे देखते हुए उसने फिर पूछा ।

"यह तो मुझे आपको बताना ही चाहिए। मैं व्यस्त था । और जानती हैं किस चीज़ में ? आप सौ बार, एक हज़ार बार कोशिश कर लीजिए, फिर भी अनुमान नहीं लगा सकेंगी। मैं एक पत्नी का अपमान करनेवाले के साथ उसके पति की सुलह करवा रहा था। हाँ, बिल्कुल सच कहता हूँ !”

"तो करवा दी सुलह ?"

"लगभग ।"

“आपको यह तो सारा क़िस्सा मुझे सुनाना चाहिए,” प्रिंसेस बेत्सी ने उठते हुए कहा । "अगले अन्तराल में आ जाइएगा।"

"यह मुमकिन नहीं । मैं फ़्रांसीसी थिएटर में जा रहा हूँ ।"

"निल्सोन को छोड़कर ?"बेत्सी ने स्तब्ध होते हुए पूछा, यद्यपि वह निल्सोन और किसी मामूली सहगान-गायिका में किसी तरह भी अन्तर नहीं कर सकती थी।

"लेकिन किया क्या जाए ? मुझे अपने सुलह-सफ़ाई के इसी काम के सिलसिले में वहाँ किसी से मिलना है।"

"खुदा की रहमत हो इन सुलह करवानेवालों पर, उनकी बदौलत वे बच जाएँगे,"बेत्सी ने किसी के मुँह के सुने-सुनाए कुछ इसी तरह के शब्दों को याद करते हुए कहा। "तो बैठिए, सुनाइए कि यह क्या क़िस्सा है ?"

और वह फिर बैठ गई।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 5-भाग 2)

"यह किस्सा कुछ बेहूदा, मगर इतना दिलचस्प है कि सुनाने को बहुत ही मन हो रहा है,"हँसती आँखों से बेत्सी की ओर देखते हुए व्रोन्स्की ने कहा। "मैं नाम नहीं बताऊँगा।"

"लेकिन मैं बूझूँगी और यह तो और भी ज्यादा अच्छा रहेगा।"

"तो सुनिए-रंग में आए हुए दो जवान आदमी घोड़ों पर जा रहे थे..."

"ज़ाहिर है, आपकी रेजिमेंट के अफ़सर ।"

"मैं अफ़सर नहीं कह रहा हूँ, बस, नाश्ता करने के बाद दो जवान आदमी...”

"कहिए-पिए हुए।”

"मुमकिन है । वे बहुत खुशी के मूड में एक दोस्त के यहाँ दोपहर का खाना खाने जा रहे थे । क्या देखते हैं कि एक बहुत ही प्यारी सी औरत किराए की बग्घी में उनसे आगे निकली जाती है, मुड़कर देखती है और कम-से-कम उन्हें तो ऐसा लगता है कि उनकी ओर सिर हिलाकर इशारा करती और हँसती है। ज़ाहिर है कि वे उसके पीछे हो लिए। ख़ूब ज़ोर से घोड़े दौड़ाने लगे। उन्हें बड़ी हैरानी हुई कि इस सुन्दरी की बग्घी उसी घर के सामने रुकी, जहाँ वे जा रहे थे । सुन्दरी जल्दी से सबसे ऊपरवाली मंज़िल पर भाग गई। उन्हें उसके छोटे-से झीने आवरण में से सिर्फ़ लाल होंठों और छोटे-छोटे, सुन्दर पैरों की ही झलकी मिली।"

“आप ऐसे मज़े ले-लेकर यह सुना रहे हैं कि मुझे ऐसे लग रहा है मानो आप इन दोनों में से एक हों।"

“और आपने मुझसे अभी क्या कहा था ? तो ये दोनों जवान आदमी अपने दोस्त के यहाँ पहुँचे और वहाँ विदाई-भोज था। वहाँ उन्होंने निश्चय ही पी और सम्भव है कि कुछ ज़्यादा ही पी हो, जैसा कि विदाई की दावतों में हमेशा होता है। खाना खाते हुए उन्होंने यह पूछताछ की कि इस घर में ऊपर की मंज़िल पर कौन रहता है। किसी को भी यह मालूम नहीं था और मेज़बान के नौकर से यह पूछने पर कि ऊपर mademosielles रहती हैं या नहीं, उन्हें जवाब मिला कि यहाँ तो वे बहुत-सी हैं। खाना ख़त्म होने पर ये दोनों जवान आदमी मेज़बान के लिखने-पढ़ने के कमरे में चले गए और वहाँ बैठकर उन्होंने इस अनजानी औरत को ख़त लिखा । उन्होंने प्रेम-मुहब्बत और अपने दिल की हालत की चर्चा की और खुद ही उसे ख़त देने के लिए ऊपर गए, ताकि वह स्पष्ट कर सकें, जो पत्र से पूरी तरह समझ में न आ पाए।"

"आप मुझे ऐसी गन्दी बातें क्यों सुना रहे हैं ? तो आगे क्या हुआ ?"

"उन्होंने दरवाज़े की घंटी बजाई। एक लड़की बाहर निकली, उन्होंने उसे ख़त दिया और यह यक़ीन दिलाने लगे कि दोनों इस बुरी तरह उसके प्रेम में पागल हो रहे हैं कि इसी वक़्त दरवाज़े पर ही जान दे देंगे। हकबकाई-सी लड़की उनसे बातचीत कर रही थी। अचानक सासेजों जैसी क़लमोंवाला तथा केंकड़े की तरह लाल एक हज़रत नमूदार हुआ और यह कहते हुए कि उसकी बीवी के सिवा घर में और कोई नहीं रहता, उसने उन दोनों को बाहर निकाल दिया । "

"आपको यह कैसे मालूम है कि उसकी क़लमें सासेजों जैसी हैं ?”

“खैर, आप सुनिए। तो मैं आज उनकी सुलह करवाने गया ।”

"तो क्या नतीजा निकला ?”

“यहीं तो सबसे दिलचस्प बात शुरू होती है। पता चला कि यह खुशक़िस्मत दम्पति उपाधिप्राप्त कौंसिलर और उसकी पत्नी हैं। कौंसिलर ने शिकायत कर दी और मैं सुलह करवानेवाला बन गया। सो भी कैसा ! तैलीराँ भी मेरा क्या मुक़ाबला करेगा !”

"तो मुश्किल क्या सामने आई ?”

“सुनिए, बताता हूँ...हमने, जैसे होना चाहिए था, अच्छी तरह माफ़ी माँगी - 'हमें बहुत ही ज़्यादा अफ़सोस है, हमसे होनेवाली इस गलतफ़हमी के लिए माफ़ी चाहते हैं।' साजेसों जैसी क़लमोंवाला कौंसिलर कुछ नर्म होने लगा, लेकिन वह भी अपनी भावनाएँ व्यक्त करना चाहता था । ज्योंही वह उन्हें व्यक्त करना आरम्भ करता आग-बबूला होने और भला-बुरा कहने लगता, मुझे फिर से अपनी व्यवहार कुशलता दिखानी पड़ती। 'मैं मानता हूँ कि यह बुरी हरकत है, लेकिन आपसे इस बात को ध्यान में रखने का अनुरोध करता हूँ कि ग़लतफ़हमी हो गई, जवानी ठहरी। इसके अलावा जवान लोग नाश्ता करते ही घर से निकले थे। आप समझते हैं न ! बे सच्चे दिल से माफ़ी चाहते हैं, क़सूर माफ़ करने की प्रार्थना करते हैं !' कौंसिलर फिर से नर्म पड़ जाता - 'मैं सहमत हूँ, काउंट, और माफ़ करने को तैयार हूँ। लेकिन आप इस बात को समझिए कि मेरी बीवी, जो शरीफ़ औरत है, मेरी बीवी का पीछा किया जाता है, उसे किन्हीं छोकरों के बुरे बर्ताव और बेहूदा हरकतों का सामना करना पड़ता है, कमीने कहीं के...आप ज़रा ख़याल करें कि एक बेहूदा छोकरा वहीं खड़ा था । और मुझे उनकी सुलह करवानी थी। मैं फिर से अपनी व्यवहार कुशलता दिखाता और जैसे ही मामला ख़त्म होने को आता, कौंसिलर फिर से गर्म हो उठता, लाल हो जाता, उसकी सासेजें ऊपर को उठतीं और मैं फिर से व्यवहार कुशलता की बारीकियों का जाल बुनने लगता ।”

"आह, यह क़िस्सा तो आपको ज़रूर सुनना चाहिए,"बेत्सी ने हँसते हुए अपने बॉक्स में आनेवाली महिला को सम्बोधित करके कहा । "इन्होंने मुझे ऐसे हँसाया है कि कुछ न पूछो।"

“तो bonne chance,’ (सफलता की कामना करती हूँ-फ्रांसीसी ) हाथ में थामे हुए पंखे से मुक्त एक उँगली व्रोन्स्की की ओर बढ़ाते हुए उसने कहा और कन्धे को ऐसे हिलाया कि उसके लॉक की ऊपर को उठी हुई चोली नीचे हो जाए, ताकि जब वह स्टेज लाइटों और गैस की रोशनी में आगे जाए और सबकी नज़रों के समाने आए, तो पूरी तरह से नग्न दिखाई दे ।

व्रोन्स्की फ़्रांसीसी थिएटर में चला गया, जहाँ उसे सचमुच ही रेजिमेंट के कमांडर से मिलना था, जो हर फ़्रांसीसी तमाशा ज़रूर देखता था। व्रोन्स्की उससे अपने उस सुलह सम्बन्धी काम की चर्चा करना चाहता था, जिसमें वह पिछले तीन दिनों से व्यस्त रहा था और जिससे उसका काफ़ी मनोरंजन हुआ था । इस क़िस्से में एक तो पेत्रीत्स्की उलझा हुआ था, जिसे वह प्यार करता था और दूसरा अफ़सर था जवान, बड़ा प्यारा तथा बहुत अच्छा साथी प्रिंस केद्रोव, जो कुछ ही समय पहले इनकी रेजिमेंट में आया था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि रेजिमेंट की इज़्ज़त का सवाल था ।

ये दोनों अफ़सर व्रोन्स्की के दस्ते में थे। सरकारी अधिकारी, कौंसिलर वेन्देन रेजिमेंट के कमांडर से इन दोनों की, जिन्होंने उसकी पत्नी का अपमान किया था, शिकायत करने आया था । वेन्देन ने बताया था कि केवल छः महीने पहले ही उसने शादी की है और उसकी जवान बीवी अपनी माँ के साथ गिरजाघर गई थी । वहाँ अचानक उसकी तबीयत ख़राब हो गई, क्योंकि वह गर्भवती है और अधिक देर तक खड़ी रहने में असमर्थ थी । इसलिए किराए की पहली बग्घी सामने आते ही वह उसमें बैठकर घर को चल दी। अफ़सरों ने उसका पीछा किया, वह डर गई और पहले से भी ज़्यादा बुरी तबीयत के साथ भागती हुई सीढ़ियाँ चढ़कर घर पहुँची। खुद वेन्देन दफ़्तर से लौटा और दरवाज़े पर घंटी तथा कुछ आवाजें सुनकर बाहर निकला और पत्र लिए हुए नशे में धुत अफ़सरों को देखकर उसने उन्हें बाहर धकेल दिया। उसने कमांडर से अनुरोध किया कि इन दोनों अफ़सरों को कड़ी सज़ा दी जाए।

"नहीं, आप चाहे कुछ भी क्यों न कहें,"रेजिमेंट ने व्रोन्स्की को अपने पास बुलाकर कहा, "पेत्रीत्स्की तो बर्दाश्त के बाहर होता जा रहा है। हर हफ़्ते ही कोई-न-कोई बखेड़ा खड़ा कर देता है। यह कौंसिलर मामले को यहीं नहीं छोड़ेगा, ऊपर तक ले जाएगा।"

व्रोन्स्की इस क़िस्से के सभी मुमकिन बुरे नतीजों को समझ रहा था कि द्वन्द्व-युद्ध नहीं हो सकता, कि कौंसिलर को ठंडा और मामले को रफ़ा - दफ़ा करने के लिए पूरा ज़ोर लगाना चाहिए । रेजिमेंट के कमांडर ने व्रोन्स्की को इसीलिए बुलाया था कि वह उसे नेक और समझदार आदमी मानता था और मुख्यतः तो इसलिए कि व्रोन्स्की अपनी रेजिमेंट के नाम को बहुत महत्त्व देता था। इन दोनों ने इस मसले पर गौर करके यह फ़ैसला किया कि पेत्रीत्स्की और केद्रोव को व्रोन्स्की के साथ जाकर कौंसिलर से माफ़ी माँगनी चाहिए। रेजिमेंट का कमांडर और व्रोन्स्की दोनों ही यह समझते थे कि व्रोन्स्की के नाम और ज़ार के एड-डी. कैम्प के रूप में उसके पद चिह्न से कौंसिलर को शान्त करने में बड़ी सहायता मिलेगी। वास्तव में ही इन दोनों बातों का प्रभाव पड़ा, लेकिन सुलह करवाने का नतीजा साफ़ नहीं हो पाया था, जैसाकि व्रोन्स्की ने बताया था ।

फ्रांसीसी थिएटर में व्रोन्स्की रेजिमेंट कमांडर के साथ लॉबी में चला गया और उसने उसे अपनी सफलता या असफलता के बारे में बताया। मामले पर सभी पहलुओं से विचार करने के बाद रेजिमेंट- कमांडर ने उसे जहाँ का तहाँ छोड़ देने का फ़ैसला किया। लेकिन बाद में महज़ मज़ा लेने के लिए वह व्रोन्स्की से कौंसिलर के साथ हुई बातचीत की तफ़सीलें पूछने लगा और व्रोन्स्की से यह सुनकर देर तक हँसता रहा कि कुछ शान्त होनेवाला कौंसिलर मामले के सभी ब्योरों को याद करके फिर-फिर भड़क उठता था और कैसे व्रोन्स्की ने सुलह के अन्तिम शब्द कहकर अपनी होशियारी दिखाते हुए पेत्रीत्स्की को आगे की तरफ़ धकेला और खुद पीछे हट गया था ।

"बड़ा बेहूदा, मगर मज़ेदार क़िस्सा है यह। केद्रोव उस कौंसिलर महोदय से द्वन्द्व-युद्ध तो नहीं कर सकता न, तो इतना अधिक लाल-पीला हो उठा था वह ?” कमांडर ने हँसते हुए पूछा । "और क्लेर आज कैसी लग रही है ? अद्भुत !” उसने नई फ्रांसीसी अभिनेत्री के बारे में कहा । "बेशक कितनी बार ही देखो, हर बार नई दिखाई देती है । सिर्फ़ फ़्रांसीसी ही ऐसा कर सकते हैं।"

अन्ना करेनिना : (अध्याय 6-भाग 2)

अन्तिम अंक की समाप्ति की प्रतीक्षा किए बिना ही प्रिंसेस बेत्सी थिएटर से चली गई। शृंगार-कक्ष में जाकर उसने अपने लम्बोतरे तथा पीले चेहरे पर पाउडर लगाया, केश-विन्यास ठीक किया और बड़े मेहमानखाने में चाय का प्रबन्ध करने का आदेश दिया ही था कि बोल्शाया मोर्काया सड़क पर उसके बड़े घर के सामने एक के बाद एक बग्घियाँ आकर रुकने लगीं। मेहमान बड़े-से दरवाजे पर बग्घी से उतरते और भारी-भरकम दरबान, जो सुबह के वक़्त शीशे के दरवाज़े के पीछे राहगीरों पर प्रभाव डालने के लिए अख़बार पढ़ता रहता था, किसी तरह की आवाज़ के बिना धीरे से इस बड़े दरवाज़े को खोल देता और मेहमान भीतर चले जाते।

केश-विन्यास को सँवारने और चेहरे पर ताज़गी लाने के बाद गृह-स्वामिनी और मेहमान लगभग एक ही समय अलग-अलग दरवाज़ों से बड़े मेहमानखाने में दाखिल हुए। मेहमानख़ाने की दीवारें गहरे रंग की थीं, उसमें गुदगुदे कालीन बिछे थे और वह मोमबत्तियों की रोशनियों, मेज़ पर बिछे सफ़ेद मेज़पोश, चाँदी के समोवार और चीनी मिट्टी के पारदर्शी बर्तनों की चमक से चमचमा रहा था।

गृह-स्वामिनी समोवार के पास बैठ गई और उसने दस्ताने उतार लिए। अपनी उपस्थिति का भास न देनेवाले नौकरों की मदद से कुर्सियों को खिसकाकर मेहमान दो भागों में बँटकर बैठ गए। कुछ लोग तो गृह-स्वामिनी के साथ समोवार के क़रीब और बाक़ी एक राजदूत की सुन्दर पत्नी के निकट बैठ गए, जो मख़मल की काली पोशाक पहने थी और जिसकी कमान जैसी काली भौंहें थीं। जैसाकि हमेशा होता है, दोनों ही जगहों पर शुरू में बातचीत का रंग नहीं जम सका, क्योंकि और लोगों के आने, दुआ-सलाम तथा चाय के पेश किए जाने आदि से खलल पड़ जाता था, मानो यह खोज हो रही हो कि किस विषय पर रुका जाए।

"वह कमाल की अभिनेत्री है। साफ़ ही पता चलता है कि उसने काउलबाख का अध्ययन किया है,” राजदूत की बीवी के मंडल में बैठे एक कूटनीतिज्ञ ने कहा । "आपने ध्यान दिया कि वह कैसे गिरी थी..."

"ओह, कृपया निल्सोन की चर्चा नहीं कीजिए ! उसके बारे में नया कुछ भी नहीं कहा जा सकता !” एक मोटी, लाल चेहरे, बिना भौंहों और बिना नक़ली बालोंवाली स्वर्णकेशी महिला ने कहा, जो पुरानी रेशमी पोशाक पहने थी । यह प्रिंसेस म्याग्काया थी, जो अपनी सादगी तथा बातचीत के फूहड़पन के लिए मशहूर थी और जिसे लोग enfant terrible (हुल्लड़बाज़-फ़्रांसीसी) कहते थे। प्रिंसेस म्याग्काया दोनों दलों के बीच बैठी थी और दोनों तरफ़ कान लगाए हुए कभी इस, तो कभी उस दल की बातों में हिस्सा लेती थी। “काउलबाख़वाला वाक्य मुझसे आज तीन आदमी कह चुके हैं, मानो उन्होंने आपस में यह तय कर रखा हो । समझ में नहीं आता कि उन्हें यह वाक्य किसलिए इतना पसन्द आया है !"

इस टिप्पणी से बातचीत का सार टूट गया और अब फिर से नया विषय ढूँढ़ना ज़रूरी था ।

"हमें कोई दिलचस्प बात सुनाओ, लेकिन वह निन्दा चुगली नहीं होनी चाहिए,"राजदूत की बीवी ने कूटनीतिज्ञ को सम्बोधित करते हुए कहा, जिसे ऐसी सुन्दर बातें करने में, जिन्हें अंग्रेज़ी में small talk कहा जाता है, कमाल हासिल था। कूटनीतिज्ञ की समझ में भी नहीं आ रहा था कि वह क्या बात शुरू करे ।

"कहते हैं कि यह बहुत मुश्किल काम है, कि सिर्फ़ निन्दा-चुगली ही मज़ेदार होती है,"कूटनीतिज्ञ मुस्कुराते हुए कहना शुरू किया। “लेकिन मैं कोशिश करता हूँ। कोई विषय सुझाइए । असली बात तो विषय ही है। विषय बता देने पर उसके इर्द-गिर्द ताना-बाना बुनना आसान हो जाता है। मेरे दिमाग़ में अक्सर ऐसा ख़याल आता है कि पिछली सदी के जाने-माने बातूनियों के लिए अब कोई अक़्लमन्दी की बात कहना मुश्किल होता । अक़्लमन्दी की सभी बातों से लोग बुरी तरह ऊब चुके हैं..."

"यह तो बहुत पहले कही जा चुकी है,"राजदूत की बीवी ने हँसते हुए उसे टोक दिया।

प्यारी बातचीत शुरू हुई, लेकिन चूँकि वह बहुत ही प्यारी थी, इसलिए फिर से बीच में ही बन्द हो गई। सबसे ज़्यादा भरोसे के साधन का ही, जो कभी धोखा नहीं देता था, उपयोग ज़रूरी था । यह साधन था - निन्दा - चुगली ।

“आपको ऐसा नहीं लगता कि तुश्केविच में लुई 15वें जैसा कुछ है ?” उसने मेज़ के क़रीब खड़े सुनहरे बालोंवाले सुन्दर नौजवान की तरफ़ आँखों से इशारा करके कहा ।

"अरे हाँ ! उसमें मेहमानख़ाने के साथ जँचनेवाली कोई चीज़ है और इसीलिए वह इतना अक्सर - यहाँ आता है।"

यह बातचीत कुछ देर तक चलती रही, क्योंकि संकेतों से वह चर्चा की जा रही थी, जो इस मेहमानखाने में नहीं की जानी चाहिए थी, यानी घर की मालकिन के साथ तुश्केविच के सम्बन्ध की।

इसी बीच संमोवार और गृह स्वामिनी के निकट भी शुरू में बातचीत तीन अनिवार्य विषयों - नवीनतम सामाजिक समाचार, थिएटर और निन्दा - चुगली के बीच डाँवाडोल होती रही और आखिर अन्तिम विषय यानी निन्दा - चुगली से उसका रंग जम गया।

"आप लोगों ने माल्तीश्चेवा- बेटी नहीं, माँ के बारे में सुना है कि वह अपने लिए diable rose (चटख गुलाबी-फ्रांसीसी) फ्रॉक बनवा रही है ?"

"यह असम्भव है ! बहुत खूब !”

"मैं हैरान हूँ कि उसकी अक़्ल को क्या हो गया है, वह बुद्धू तो नहीं है- क्या इतना भी नहीं समझती कि वह कितनी हास्यास्पद लगती है ?"

बदक़िस्मत माल्तीश्चेवा की भर्त्सना और उसका उपहास करने के लिए सभी के पास कुछ-न-कुछ मसाला था और बातचीत दहकते अलाव की तरह बड़े मज़े से चलने लगी ।

प्रिंसेस बेत्सी का पति, जो खुशमिज़ाज, मोटा आदमी और रेखाचित्रों के संग्रह का दीवाना था, यह मालूम होने पर कि पत्नी के पास अतिथि आए हैं, क्लब जाने से पहले कुछ देर को मेहमानख़ाने में आया। नर्म क़ालीन पर आहट किए बिना वह प्रिंसेस म्याग्काया के पास पहुँचा ।

“निल्सोन कैसी लगी आपको ?” उसने पूछा ।

“आह, कोई ऐसे दबे पाँव भी आता है ! कैसे डरा दिया आपने मुझे !” उसने जवाब में कहा । "कृपया मेरे साथ ऑपेरा की चर्चा नहीं करें, आप तो संगीत के बारे में कुछ भी नहीं समझते। यही ज़्यादा अच्छा रहेगा कि मैं आपके स्तर पर उतर आऊँ और आपसे रेखाचित्रों तथा मेजोलिकों के बारे में ही बातचीत करूँ। तो बताइए, हाल में कौन-सी अनूठी चीज़ ख़रीदी है आपने कबाड़ियों के बाज़ार से ?"

"चाहती हैं, तो दिखाऊँ ? लेकिन आप कुछ जानती तो हैं नहीं।”

“दिखाइए। मैंने...उनसे, क्या कहते हैं उन्हें... बैंकरों से कुछ सीख लिया है ... उनके यहाँ रेखाचित्रों के बहुत बढ़िया नमूने हैं। उन्होंने हमें दिखाए थे।"

"तो क्या आप शुत्सबुर्ग के यहाँ गई थीं ?” समोवार के पास बैठी गृह स्वामिनी ने पूछा।

“हाँ, ma chère, उन्होंने हम पति-पत्नी को खाने पर बुलाया था। मुझे बताया गया कि उनके खाने में परोसी गई चटनी पर एक हज़ार रूबल खर्च हुआ है,"म्याग्काया ने यह महसूस करते हुए कि सभी उसकी बात सुन रहे हैं, ऊँचे स्वर में कहा, “और बहुत ही बेहूदा थी वह चटनी, हरी-सी । हमारे लिए भी उन्हें बुलाना ज़रूरी था, मैंने पचासी कोपेक की चटनी बनाई और सबने खुश होकर खाई। मैं तो एक हज़ार रूबलोंवाली चटनियाँ नहीं बना सकती।”

"इसकी कोई मिसाल नहीं !” गृह स्वामिनी ने कहा ।

“अद्भुत है !” किसी अन्य ने ज़ाहिर की ।

प्रिंसेस म्याग्काया की बातें हमेशा एक जैसा ही प्रभाव पैदा करती थीं और उसके द्वारा पैदा किए जानेवाले असर का राज़ इस बात में छिपा था कि वह बेशक मौत के मुताबिक़ बात नहीं कहती थी, जैसाकि इस वक़्त हुआ था, लेकिन वह समझदारी की और सीधी-सादी होती थी। वह जिस सामाजिक हलके में रहती थी, उसमें ऐसे शब्द सूझ-बूझवाले मज़ाकों का प्रभाव पैदा करते थे। प्रिंसेस म्याग्काया यह समझने में असमर्थ थी कि ऐसा क्यों होता था, लेकिन इतना जानती थी कि ऐसा असर होता है और वह इसका फायदा उठाती थी।

चूँकि प्रिंसेस म्याग्काया के बात करने के वक़्त सभी उसे सुन रहे थे और राजदूत की पत्नी के आस-पास बातचीत बन्द हो गई थी, इसलिए गृह-स्वामिनी ने सभी लोगों को एक ही जगह पर एकत्रित करने की इच्छा से राजदूत की पत्नी को सम्बोधित किया :

“आप सचमुच बिल्कुल चाय नहीं पीना चाहतीं ? आप भी यहाँ, हमारे पास ही आ जाइए।"

"नहीं, हम यहाँ मज़े में हैं,"राजदूत की बीवी ने मुस्कुराकर जवाब दिया और शुरू की हुई बातचीत जारी रखी।

बातचीत बहुत दिलचस्प थी। कारेनिन दम्पति पर टीका-टिप्पणी हो रही थी।

"अपनी मास्को-यात्रा के बाद आन्ना बहुत बदल गई है। उसमें कुछ अजीब-सा प्रतीत होता है,"उसकी एक सहेली ने कहा।

"सबसे बड़ी तब्दीली यह है कि वह अपने साथ अलेक्सेई व्रोन्स्की की छाया लेकर आई है,"राजदूत की बीवी ने कहा।

"तो क्या हुआ ? ग्रीम का एक क़िस्सा है-छाया के बिना, छाया से वंचित व्यक्ति । और यह उसके लिए किसी चीज़ का दंड होता है । मेरी समझ में कभी नहीं आया कि यह दंड क्या है । लेकिन औरत को तो छाया के बिना बुरा लगना चाहिए।"

“हाँ, लेकिन छायावाली औरतों का अक्सर बुरा अन्त होता है,” आन्ना की सहेली ने कहा ।

"आपकी ज़बान जल जाए,"इन शब्दों को सुनकर प्रिंसेस म्याग्काया ने अचानक कहा । "आन्ना बहुत ही बढ़िया औरत है। उसका पति मुझे अच्छा नहीं लगता, लेकिन उसे मैं बहुत प्यार करती हूँ।”

“उसका पति क्यों अच्छा नहीं लगता आपको ? बहुत अच्छा आदमी है वह,” राजदूत की बीवी ने कहा। “मेरे पति का कहना है कि यूरोप में इस जैसे राजकीय कार्यकर्त्ता बहुत कम हैं।"

“मेरा पति भी मुझसे ऐसा ही कहता है, लेकिन मुझे यक़ीन नहीं होता,” प्रिंसेस म्याग्काया ने कहा । “अगर हमारे पति यह सब न कहते, तो हम वह देख लेतीं, जो वास्तव में है । मेरे ख़याल में तो अलेक्सेई अलेक्सान्द्रोविच बुद्धू है। मैं फुसफुसाकर यह कह रही हूँ... सच है न कि ऐसा करने में सब कुछ स्पष्ट हो जाता है ? पहले जब मुझसे उसमें समझदारी देखने को कहा जाता था, तो मैं खोजती रहती और यह महसूस करती कि मैं खुद बुद्धू हूँ, क्योंकि उसकी अक़्ल को नहीं देख पाती हूँ। लेकिन ज्यों ही मैंने फुसफुसाकर कहा- वह बुद्धू है - तो सब कुछ बिल्कुल स्पष्ट हो गया । सच है न ?”

"कैसी जली-कटी बातें कर रही हैं आज आप !”

“ज़रा भी नहीं ! मेरे लिए और कोई चारा ही नहीं। हम दोनों में से एक तो बुद्धू है ही । लेकिन आप यह जानती हैं कि अपने बारे में आदमी यह कभी नहीं कह सकता।"

“अपनी दौलत से कोई खुश नहीं, मगर अक़्ल से हर कोई खुश है,"कूटनीतिज्ञ ने फ्रांसीसी कविता की पंक्ति सुनाई ।

“बिल्कुल, बिल्कुल यही बात है,” प्रिंसेस म्याग्काया जल्दी से अपनी ओर मुड़ी। "लेकिन यह जान लीजिए कि आन्ना पर मैं आपको उँगली नहीं उठाने दूँगी । वह इतनी अच्छी, इतनी प्यारी है। वह कर ही क्या सकती है, अगर सभी उसे प्यार करते हैं और उसके इर्द-गिर्द छायाओं की तरह मँडराते हैं ?"

“मैं उस पर उँगली उठाने की सोच ही कब रही हूँ,"आन्ना की सहेली ने अपनी सफ़ाई पेश की।

“अगर हमारे पीछे-पीछे कोई छाया की तरह नहीं घूमता तो इसका यह मतलब नहीं है कि हमें दूसरों पर छींटे फेंकने का हक़ हासिल है।"

आन्ना की सहेली की अच्छी तरह से तबीयत साफ़ करने के बाद प्रिंसेस म्याग्काया उठी और राजदूत की बीवी के साथ उस मेज़ पर जा बैठी, जहाँ प्रशा के बादशाह के बारे में आम बातचीत हो रही थी।

“वहाँ आप लोगों ने किसकी निन्दा-चुगली की ?"बेत्सी ने पूछा।

"कारेनिन दम्पति की। प्रिंसेस ने अलेक्सेई अलेक्सान्द्रोविच का बढ़िया खाका खींचा,"राजदूत की बीवी ने मेज़ पर बैठते हुए मुस्कुराकर जवाब दिया।

"अफ़सोस की बात है कि हम नहीं सुन सकीं,"घर की मालकिन ने दरवाज़े की तरफ़ देखते हुए कहा। “आख़िर आप आ ही गए,"उसने भीतर आते व्रोन्स्की को सम्बोधित करते हुए मुस्कुराकर कहा।

व्रोन्स्की यहाँ उपस्थित सभी लोगों को न सिर्फ़ जानता था, बल्कि इनसे हर दिन मिलता था। इसलिए वह ऐसे इत्मीनान से अन्दर आया, जैसे आदमी उन लोगों के पास आता है, जिन्हें छोड़कर अभी बाहर गया हो।

“मैं कहाँ से आया हूँ ?"उसने राजदूत की बीवी के सवाल के जवाब में कहा। “क्या हो सकता है, बताना ही पड़ेगा। बुफ़ थिएटर से। शायद सौवीं बार, फिर भी नई खुशी लेकर। कमाल है ! मैं जानता हूँ कि यह शर्म की बात है, फिर भी मानना पड़ेगा कि ऑपेरा में मुझे नींद आ जाती है, लेकिन बुफ़ थिएटर में अन्तिम क्षण तक बड़े मज़े से बैठा रहता हूँ। आज..."

उसने फ्रांसीसी अभिनेत्री का नाम लिया और उसके बारे में कुछ कहना चाहा, लेकिन राजदूत की बीवी ने मज़ाकिया ढंग से घबराहट ज़ाहिर करते हुए उसे रोक दिया :

“कृपया, ये भयानक बातें नहीं सुनाइए !"

"अच्छी बात है, नहीं सुनाऊँगा, ख़ासतौर पर जबकि सभी ये भयानक बातें जानते हैं।”

"और अगर उसे भी ऑपेरा की भाँति माना जाता तो सभी वहाँ जाते,” प्रिंसेस म्याग्काया ने इतना और जोड़ दिया।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 7-भाग 2)

दरवाज़े पर पैरों की आहट सुनाई दी और प्रिसेंस बेत्सी ने यह जानते हुए कि आन्ना आई है, व्रोन्स्की पर नज़र डाली। वह दरवाज़े की तरफ़ देख रहा था और उसके चेहरे पर अजीब, नया-सा भाव था । वह खुशी से, टकटकी बाँधे और साथ ही सहमा हुआ सा भीतर आती आन्ना को देख रहा था और धीरे-धीरे उठकर खड़ा हो गया । आन्ना मेहमानखाने में दाखिल हुई। हमेशा की भाँति बिल्कुल सीधी तनी हुई और अपनी तेज़, दृढ़ और हल्की-फुल्की चाल से, जो उसे ऊँचे समाज की दूसरी महिलाओं से अलग करती थी, और अपनी दृष्टि को एक ही दिशा में रखते हुए वह कुछ क़दम बढ़ाकर गृह-स्वामिनी के पास पहुँची और उससे हाथ मिलाया, मुस्कुराई और इसी मुस्कान के साथ उसने व्रोन्स्की की ओर देखा । व्रोन्स्की ने सिर झुकाया और उसकी तरफ़ कुर्सी बढ़ा दी ।

आन्ना ने सिर्फ़ सिर ही झुकाया, लज्जारुण हो गई और भौंहें सिकोड़ लीं। किन्तु इसी समय जल्दी से परिचितों को सिर झुकाकर और अपनी ओर बढ़े हाथों से हाथ मिलाकर उसने गृह स्वामिनी को सम्बोधित किया:

"मैं काउंटेस लीदिया के यहाँ गई थी और जल्दी ही यहाँ आ जाना चाहती थी, मगर ज़्यादा देर तक बैठी रही। उसके यहाँ सर जॉन आया हुआ था । बहुत दिलचस्प आदमी है वह ।”

"अरे, वही मिशनरी ?"

“हाँ, वह रेड इंडियनों के जीवन के बारे में बहुत दिलचस्प बातें सुनाता रहा।”

आन्ना के आने से बातचीत का तार टूट गया था, मगर अब उसमें बुझाए जाते लैम्प की फड़फड़ा उठनेवाली लौ की तरह फिर से जान आ गई।

“सर जॉन ! हाँ, सर जॉन । मैंने उसे देखा है। उसका बयान करने का अन्दाज़ बहुत अच्छा है। व्लास्येवा तो उस पर जान छिड़कती है।"

"क्या यह सच है कि छोटी व्लास्येवा तोपोव से शादी कर रही है ?"

"हाँ, कहते हैं कि यह बिल्कुल तय हो चुका है ।"

"मुझे तो माँ-बाप पर हैरानी होती है। सुनते हैं कि यह प्रेम-विवाह होगा ।"

“प्रेम-विवाह ? कैसे बाबा आदम के ज़माने के ख़याल हैं तुम्हारे ! आजकल कौन प्रेम की चर्चा करता है ?” राजदूत की बीवी ने कहा ।

"क्या हो सकता है ? यह बेवकूफ़ी भरा पुराना फ़ैशन अभी तक ख़त्म होने का नाम नहीं लेता," व्रोन्स्की ने कहा ।

"यह उनके लिए और भी बुरा है, जो इस फ़ैशन के फेर में पड़े हुए हैं। मैं तो केवल ऐसे सुखी विवाह ही जानती हूँ, जो भौतिक लाभ के लिए किए गए हैं।"

“हाँ, लेकिन दूसरी तरफ़ भौतिक लाभ के लिए किए गए विवाह अक्सर इसीलिए धूल की तरह हवा में उड़ जाते हैं कि वही प्रेम प्रकट हो जाता है जिसकी अवहेलना की गई थी," व्रोन्स्की ने कहा ।

“लेकिन हम भौतिक लाभवाले विवाह उन्हें कहते हैं, जब दोनों अपने जनून से निजात पा चुकते हैं । यह तो जैसे लाल बुखार है, जिसको भुगतना ही पड़ता है।"

“तब तो प्रेम से बचने के लिए चेचक की तरह कृत्रिम ढंग से टीका लगाना सीखना चाहिए ।"

“अपनी जवानी के दिनों में मैं एक डीकन को प्यार करती थी,” प्रिंसेस म्याग्काया ने कहा । " मालूम नहीं, मुझे इससे कोई फ़ायदा हुआ या नहीं ।"

“मैं मज़ाक़ के बिना ऐसा सोचती हूँ कि प्यार को जानने के लिए भूल करना और फिर उसे सुधारना ज़रूरी है,” प्रिंसेस बेत्सी ने कहा ।

"शादी के बाद भी ?” राजदूत की पत्नी ने मज़ाक़ किया ।

"भूल जब सुधार ली जाए तभी अच्छा है," कूटनीतिज्ञ ने एक अंग्रेज़ी कहावत का हवाला दिया।

“बिल्कुल सही,” बेत्सी ने झटपट पुष्टि की, “भूल करना और फिर उसे सुधारना ज़रूरी है । आपका इस बारे में क्या ख़याल है ?” उसने आन्ना से पूछा, जो तनिक दिखाई देनेवाली विश्वासपूर्ण मुस्कान के साथ इस बातचीत को चुपचाप सुन रही थी ।

“मैं सोचती हूँ,” आन्ना ने हाथ से उतारे हुए दस्ताने के साथ खिलवाड़ करते-करते कहा, “मैं सोचती हूँ...कि जितने सिर हैं उतनी ही अक़्लें, तो जितने दिल हैं, उतनी ही क़िस्म के प्रेम हैं।"

व्रोन्स्की आन्ना को देख रहा था और धड़कते दिल से उसके जवाब का इन्तज़ार कर रहा था । आन्ना के जवाब के बाद उसने ऐसे राहत की साँस ली मानो ख़तरा टल गया हो । आन्ना ने अचानक उसे सम्बोधित किया :

“मेरे पास मास्को से पत्र आया है। उसमें लिखा है कि कीटी श्चेर्बात्स्काया बहुत बीमार है ।"

"सच ?" व्रोन्स्की ने माथे पर बल डालकर कहा ।

आन्ना ने कड़ी नज़र से उसकी तरफ़ देखा ।

"आपको इसमें कोई दिलचस्पी नहीं ?"

"उल्टे, बेहद दिलचस्पी है। अगर मैं पूछ सकता हूँ, तो बताइए कि क्या लिखा है उन्होंने आपको ?” उसने कहा ।

आन्ना उठी और बेत्सी के पास चली गई।

"मुझे चाय की प्याली दीजिए,” उसकी कुर्सी के पीछे खड़े होकर वह बोली ।

प्रिंसेस बेत्सी ने जब तक चाय डाली, इसी बीच व्रोन्स्की आन्ना के पास आ गया। "क्या लिखा है उन्होंने आपको ?” व्रोन्स्की ने दोहराया।

"मैं अक्सर ऐसा सोचती हूँ कि भोंडी हरकत किसे कहते हैं, मर्द लोग यह नहीं समझते, गो वे इसकी बहुत चर्चा करते हैं,” आन्ना ने व्रोन्स्की को जवाब दिए बिना कहा । "मैं बहुत दिनों से आपसे यह कहना चाहती थी,” उसने इतना और कहा तथा कुछ क़दम चलकर कोनेवाली उस मेज़ के पास जा बैठी, जिस पर एल्बम रखे थे ।

“मैं आपके शब्दों का अर्थ पूरी तरह नहीं समझ पा रहा हूँ," चाय की प्याली उसे देते हुए व्रोन्स्की ने कहा ।

आन्ना ने अपने पासवाले सोफ़े की तरफ़ देखा और वह फ़ौरन वहाँ बैठ गया ।

“हाँ, मैं आपसे यह कहना चाहती थी,” व्रोन्स्की की तरफ़ देखे बिना आन्ना ने कहा ।

"आपने बुरा व्यवहार किया, बुरा, बहुत बुरा व्यवहार किया ।"

“क्या मैं यह नहीं जानता हूँ कि मैंने बुरा व्यवहार किया है ? लेकिन मेरे ऐसा व्यवहार करने का कारण कौन है ?"

“आप मुझसे यह क्यों कह रहे हैं ?" कड़ाई से उसकी ओर देखते हुए आन्ना ने कहा ।

“आप जानती हैं कि क्यों कह रहा हूँ,” व्रोन्स्की ने आन्ना से नज़रें मिलाते और उन्हें झुकाए बिना दिलेरी तथा खुशी से जवाब दिया ।

व्रोन्स्की नहीं, आन्ना परेशान हो उठी।

"इसमें सिर्फ़ इसी बात का सबूत मिलता है कि आपके सीने में दिल नहीं है,” आन्ना ने कहा । लेकिन उसकी नज़र कह रही थी कि वह जानती है कि उसके पास दिल है और इसीलिए वह उससे डरती है।

"वह जिसकी आपने अभी चर्चा की है, प्रेम नहीं था, भूल थी।"

"याद है न कि मैंने आपको यह शब्द, यह घिनौना शब्द मुँह से निकालने की मनाही कर दी थी," आन्ना ने सिहरते हुए कहा । किन्तु इसी क्षण उसने यह अनुभव किया कि केवल इस एक 'मनाही' शब्द से उसने यह ज़ाहिर कर दिया है कि उसे उस पर कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं और इसी से वह उसे प्रेम के बारे में चर्चा करने को प्रोत्साहित करती है । "मैं बहुत पहले ही आपसे यह कहना चाहती थी,” वह दृढ़ता से उससे नज़र मिलाते हुए कहती गई और उसका चेहरा तमतमाहट से लाल होता जा रहा था, "और आज तो मैं यह जानते हुए कि आपसे यहाँ भेंट हो सकेगी, जान-बूझकर यहाँ आई हूँ। मैं आपसे यह कहने आई हूँ कि इस क़िस्से को ख़त्म होना चाहिए। कभी और किसी के सामने भी मेरी आँखें शर्म से नहीं झुकीं, लेकिन आप मुझे किसी बात के लिए अपने को अपराधी अनुभव करने को विवश करते हैं ।"

व्रोन्स्की ने आन्ना की ओर देखा और उसके चेहरे के नए आत्मिक सौन्दर्य से चकित रह गया। "आप मुझसे क्या चाहती हैं ?" व्रोन्स्की ने सरलता और गम्भीरता से पूछा ।

"मैं चाहती हूँ कि आप मास्को जाएँ और कीटी से क्षमा-याचना करें,” उसने जवाब दिया ।

"आप ऐसा नहीं चाहतीं," व्रोन्स्की ने कहा।

व्रोन्स्की देख रहा था कि आन्ना जो कहना चाहती है, वह नहीं, बल्कि वह कह रही है, जो अपने को कहने के लिए मजबूर कर रही है।

“अगर मुझसे प्रेम करते हैं, जैसा कि आप कहते हैं," आन्ना फुसफुसाई, "तो ऐसा करें, कि मुझे चैन मिल सके।"

व्रोन्स्की का चेहरा खिल उठा।

"क्या आप यह नहीं जानतीं कि मेरे लिए आप मेरी ज़िन्दगी हैं ? लेकिन चैन तो न मैं खुद जानता हूँ और न आपको ही दे सकता हूँ। हाँ...पूरी तरह अपने को और अपना प्रेम दे सकता हूँ। मैं अपने और आपके बारे में अलग-अलग सोच ही नहीं सकता। मेरे लिए मैं और आप एक ही हैं। और मुझे न तो अपने लिए और न आपके लिए ही चैन की सम्भावना दिखाई देती है। मैं हताशा और दुःख की सम्भावना देखता हूँ...या मुझे सुख की सम्भावना नज़र आती है, कैसे सुख की !...क्या वह सम्भव नहीं ?" उसने केवल होंठ हिलाकर इतना और कह दिया, किन्तु आन्ना ने उसे सुन लिया।

आन्ना अपनी बुद्धि का सारा ज़ोर लगा रही थी ताकि वह कहे, जो उसे कहना चाहिए, किन्तु इसके बजाय उसने अपनी प्रेम-भरी नज़र उसके चेहरे पर टिका दी और कुछ भी जवाब नहीं दिया।

'तो यह बात है !' व्रोन्स्की आह्लादपूर्वक सोच रहा था। 'उस क्षण, जब मैं हताश हो रहा था और जब मुझे ऐसा लग रहा था कि इस क़िस्से का कोई अन्त नहीं होगा-तो यह बात है ! वह मुझसे प्रेम करती है ! वह इसे स्वीकार करती है!'

"तो मेरे लिए इतना कीजिए कि कभी भी मुझसे ये शब्द नहीं कहिए और हम अच्छे मित्र बने रहेंगे," उसने कहा, किन्तु उसकी नज़र कुछ दूसरा ही कह रही थी।

"मित्र हम नहीं बनेंगे, यह तो आप स्वयं जानती हैं। किन्तु हम या तो सबसे सुखी अथवा दुःखी लोग होंगे-यह आपके हाथ में है।"

आन्ना ने कुछ कहना चाहा, मगर व्रोन्स्की ने उसे इसका अवसर नहीं दिया।

"मैं आपको कहीं भी भगाना नहीं चाहती।"

"केवल कुछ भी बदलिए नहीं। जैसा है, सब कुछ वैसा ही रहने दीजिए," उसने काँपती आवाज़ में कहा। “लीजिए, आपके पति आ गए।"

सचमुच इसी समय अलेक्सेई अलेक्सान्द्रोविच अपनी शान्त और अटपटी चाल से मेहमानख़ाने में दाखिल हुआ।

अपनी पत्नी और व्रोन्स्की पर नज़र डालकर वह गृह-स्वामिनी के पास गया और चाय का प्याला लेकर बैठने के बाद उसने अपने धीमे-धीमे, किन्तु सदा सुनाई देनेवाले और किसी को निशाना बनाते हुए मज़ाकिया अन्दाज़ में बोलना शुरू किया।

"आपकी राम्बुल्ये (महफ़िल) तो खूब अच्छी तरह जमी हुई है," उसने लोगों पर दृष्टि दौड़ाते हुए कहा, "रूप का निखार और कला का श्रृंगार भी है।"

किन्तु प्रिंसेस बेत्सी उसके इस sneering (फ़बतियाँ कसने का-अंग्रेज़ी) लहजे को, जैसा वह कहती थी, बर्दाश्त ही नहीं कर सकती थी और एक अच्छी मेज़बान के नाते उसने बातचीत को अनिवार्य सैनिक सेवा के गम्भीर विषय की ओर मोड़ दिया। अलेक्सेई अलेक्सान्द्रोविच फ़ौरन इस चर्चा में उलझ गया और नए आदेश का, जिसकी प्रिंसेस बेत्सी ने आलोचना की थी, गम्भीरता से पक्ष-पोषण करने लगा।

व्रोन्स्की और आन्ना छोटी मेज़ पर ही बैठे रहे।

"यह तो अशिष्ट मामला होता जा रहा है," एक महिला ने व्रोन्स्की, आन्ना और उसके पति की ओर आँखों से संकेत करते हुए फुसफुसाकर कहा।

"मैंने क्या कहा था आप लोगों से ?” आन्ना की सहेली ने जवाब दिया ।

लेकिन इन्हीं महिलाओं ने नहीं, बल्कि मेहमानख़ाने में बैठे सभी लोगों, यहाँ तक कि प्रिंसेस म्याग्काया और खुद बेत्सी ने भी अन्य सभी से दूर बैठे हुए इन दोनों व्यक्तियों की ओर कई बार देखा, जो मानो बाक़ी लोगों की उपस्थिति के कारण बाधा अनुभव कर रहे हों। सिर्फ़ कारेनिन ने ही एक बार भी उधर नज़र नहीं डाली और शुरू हुई बातचीत में ही दिलचस्पी लेता रहा ।

प्रिंसेस बेत्सी ने सभी पर पड़नेवाले बुरे प्रभाव की ओर ध्यान देते हुए किसी अन्य को कारेनिन की बातें सुनने के लिए अपनी जगह पर बिठा दिया और आन्ना के पास गई।

“आपके पति की अभिव्यक्ति की स्पष्टता और अचूकता से मैं हमेशा दंग रह जाती हूँ," बेत्सी ने कहा । "जब वह बात करते हैं, तो बहुत ही उलझी - उलझाई बातें भी अच्छी तरह से मेरी समझ में आ जाती हैं।"

"अरे, हाँ !” आन्ना ने खुशी से चमकते और बेत्सी ने जो कुछ कहा था, उसका एक भी शब्द समझे बिना कहा । वह बड़ी मेज़ पर आ बैठी और साझी बातचीत में हिस्सा लेने लगी ।

आध घंटे तक बैठने के बाद कारेनिन पत्नी के पास गया और उससे अपने साथ घर चलने को कहा। किन्तु आन्ना ने उसकी तरफ़ देखे बिना ही यह जवाब दिया कि वह खाना खाने के लिए रुक रही है। कारेनिन ने सिर झुकाकर विदा ली और चला गया।

चमड़े की चमकती हुई जाकेट पहने आन्ना कारेनिना का बूढ़ा और मोटा तातार कोचवान बाईं ओर से घोड़े को बड़ी मुश्किल से क़ाबू में रख पा रहा था, जो ठिठुर जाने के कारण उछलता और दुलत्ती चलाता था। नौकर बग्घी का दरवाज़ा खोले खड़ा था । दरबान बाहर जाने का दरवाज़ा थामे था । आन्ना अपने छोटे और फुर्तीले हाथ से आस्तीन के लैस को फ़र-कोट की हुक में से छुड़ा रही थी और सिर झुकाए हुए खुशी से व्रोन्स्की की बातें सुन रही थी, जो उसे बाहर पहुँचाने आया था।

"आपने कुछ भी तो नहीं कहा। खैर, मैं ऐसी कोई माँग भी नहीं करता, " व्रोन्स्की कह रहा था, "लेकिन आप जानती हैं कि मुझे दोस्ती की ज़रूरत नहीं है । मेरी ज़िन्दगी में केवल एक ही खुशी मुमकिन है और यह वह शब्द है, जो आपको इतना नापसन्द है...हाँ, प्रेम...”

“प्रेम,” उसने अपने लिए ही धीमे-धीमे इसे दोहराया और अचानक उसी समय, जब उसने लैस को हुक से छुड़ा लिया, यह और कह दिया, "मैं इसलिए इस शब्द को नापसन्द करती हूँ कि यह मेरे लिए बहुत ज़्यादा मानी रखता है, उससे कहीं अधिक, जितना कि आप समझ सकते हैं,” और उसने बहुत गौर से व्रोन्स्की के चेहरे को देखा । “नमस्ते !”

उसने व्रोन्स्की से हाथ मिलाया और तेज़, लचीला क़दम बढ़ाकर दरबान के पास से गुज़री और बग्घी में जाकर ओझल हो गई ।

आन्ना की दृष्टि और उसके हाथ के स्पर्श से व्रोन्स्की मानो झुलस गया । आन्ना ने जिस जगह उसकी हथेली को छुआ था, उसने उस जगह को चूमा और यह सुखद चेतना लिए कि पिछले दो महीनों की तुलना में आज की शाम वह अपनी लक्ष्य-सिद्धि के कहीं निकट पहुँच गया है, घर को चल दिया ।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 8-भाग 2)

कारेनिन को इस चीज़ में कुछ अजीब और बुरा दिखाई नहीं दिया कि उसकी बीवी एक अलग मेज़ पर बैठकर बड़ी ज़िन्दादिली से व्रोन्स्की के साथ बातें कर रही थी। लेकिन उसने देखा कि मेहमानख़ाने में बैठे दूसरे लोगों को यह कुछ अजीब और बुरा लग रहा था और इसलिए उसे भी भद्दा प्रतीत हुआ । उसने तय किया कि उसके बारे में बीवी से कहना चाहिए ।

घर लौटने पर कारेनिना, जैसाकि वह हमेशा करता था, अपने अध्ययन कक्ष में चला गया और पोपवाद के बारे में किताब को उसी जगह पर खोलकर, जहाँ काग़ज़ काटने का चाकू रखा हुआ था, आरामकुर्सी में बैठकर उसे पढ़ने लगा । जैसाकि वह आमतौर पर करता था, रात के एक बजे तक उसका पढ़ना जारी रहा। केवल कभी-कभी वह अपने ऊँचे माथे को हाथ से मसलता और सिर को झटकता मानो किसी चीज़ को दूर भगा रहा हो। हर दिन के नियत समय पर वह उठा और बिस्तर में जाने के लिए तैयार हुआ । आन्ना अभी तक नहीं आई थी । किताब बग़ल में दबाए वह ऊपर गया, लेकिन आज आम विचारों और दफ़्तरी मामलों से सम्बन्धित ख़यालों के बजाय उसके दिमाग में बीवी और उसके बारे में कुछ बुरे विचार भरे हुए थे। आदत के मुताबिक़ बिस्तर में लेटने की जगह वह पीठ पीछे अपने दोनों हाथ बाँधकर एक सिरे से दूसरे सिरे तक कमरों में आने-जाने लगा। यह महसूस करते हुए कि उसे पैदा हो जानेवाली परिस्थितियों पर एक बार फिर से अच्छी तरह सोच-विचार करना चाहिए, वह बिस्तर पर नहीं जा सकता था।

कारेनिन ने जब मन-ही-मन यह तय किया था कि बीवी के साथ बात करनी चाहिए, तो उसे यह बहुत आसान और मामूली बात लगी थी। लेकिन अब, जब उसने पैदा हुई परिस्थिति पर फिर से सोच-विचार करना शुरू किया, तो उसे यह बहुत पेचीदा और मुश्किल प्रतीत हुई ।

कारेनिन शक्की तबीयत का आदमी नहीं था । उसके विश्वास के अनुसार शक करने का मतलब बीवी का अपमान करना था और उसे उस पर भरोसा करना चाहिए। उसे क्यों भरोसा करना चाहिए यानी उसे क्यों इस बात का पूरा यक़ीन होना चाहिए कि उसकी जवान बीवी उसे हमेशा प्यार करेगी, यह वह अपने से नहीं पूछता था। लेकिन उसे सन्देह की अनुभूति भी नहीं होती थी, क्योंकि वह यक़ीन करता था और अपने आपसे कहता था कि उसे यक़ीन करना चाहिए। यद्यपि उसकी यह आस्था कि बीवी पर शक करना एक लज्जाजनक भावना है और उसे उस पर यकीन करना चाहिए, अभी तक खंडित नहीं हुई थी, फिर भी अब वह यह अनुभव करता था कि उसे बेतुकी और समझ में न आनेवाली परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा है और यह नहीं जानता था कि क्या करे। कारेनिन को जीवन का सामना करना पड़ रहा था, उसे यह सम्भावना दिखाई दे रही थी कि उसकी बीवी उसके सिवा किसी और से भी प्यार कर सकती है, और यह उसे बेहद उलझी तथा समझ में न आनेवाली बात प्रतीत हो रही थी, क्योंकि यह तो खुद ज़िन्दगी थी। कारेनिन ने अपना सारा जीवन सरकारी काम-काज के क्षेत्रों में, जिनका केवल जीवन की परछाइयों से सम्बन्ध था, बिता दिया था। और जब कभी उसे जीवन से दो-चार होना पड़ता था, वह दामन बचाकर निकल जाता था। अब उसे कुछ ऐसा महसूस हो रहा था, जैसाकि वह आदमी अनुभव कर सकता है, जो बड़े चैन से पुल पर चलता हुआ खड्ड पार कर लेता है और फिर अचानक यह देखता है कि वहाँ पुल नहीं रहा और नीचे खड्ड है। स्वयं जीवन ही वह खड्ड था और पुल था वह अवास्तविक जीवन, जो कारेनिन ने बिताया था। उसकी बीवी के किसी दूसरे आदमी को प्यार कर सकने की सम्भावना के सवाल पहली बार उसके सामने आए थे और वह स्तब्ध रह गया था।

कपड़े उतारे बिना वह केवल एक लैम्प से प्रकाशित भोजन कक्ष के आवाज़ पैदा करते तख़्तों से फ़र्श पर, अँधेरे मेहमानख़ाने के क़ालीन पर, जिसमें कुछ ही समय पहले बनाए गए और सोफ़े के ऊपर लटके हुए उसके अपने बड़े चित्र पर रोशनी पड़ रही ही, और फिर आन्ना के कमरे में, जहाँ दो मोमबत्तियाँ आन्ना के रिश्तेदारों और सहेलियों के चित्रों तथा लिखने की मेज़ पर रखी हुई उसकी सुन्दर और चिरपरिचित छोटी-मोटी चीज़ों को रौशन कर रही थीं, सधे हुए क़दमों से जाता । आन्ना के कमरे से वह सोने के कमरे तक जाकर वापस लौट आता ।

अपने ऐसे हर चक्कर में और अधिकतर रौशन भोजन कक्ष के तख़्तोंवाले फ़र्श पर वह रुकता और अपने आपसे कहता : 'हाँ, इस मामले को तय और ख़त्म करना ज़रूरी है, मेरे लिए अपनी राय ज़ाहिर करना और अपना फ़ैसला बताना ज़रूरी है। और इसके बाद वह वापस चल देता । 'लेकिन क्या बताऊँ ? कैसा फ़ैसला ?' वह मेहमानखाने में अपने से पूछता और उसे कोई जवाब न मिलता । 'आख़िर हुआ ही क्या है ?' आन्ना के कमरे की ओर मुड़ने के पहले वह यह सवाल करता । 'कुछ भी तो नहीं। उसने उससे देर तक बातचीत की। तो क्या हुआ ? लोगों से मिलने-जुलनेवाली औरत किसी से भी बातचीत कर सकती है। और फिर शक करना - यह तो खुद अपना और उसका अपमान करना है,' आन्ना के कमरे में दाखिल होते हुए वह अपने आपसे कहता । किन्तु वह दलील, जो पहले उसके लिए इतना अथक वज़न रखती थी, अब बेमानी और महत्त्वहीन हो गई थी। और वह सोने के कमरे के दरवाज़े से फिर हॉल की तरफ़ मुड़ जाता । किन्तु जैसे ही वह अँधेरे मेहमानख़ाने में दाखिल होता, कोई आवाज़ उससे कहती कि वह मामला सीधा-सादा नहीं है और अगर दूसरों का इसकी तरफ़ ध्यान गया है, तो इसका मतलब है - कुछ तो है ही । और भोजन कक्ष में आकर वह फिर अपने से कहता : 'हाँ, इस मामले को तय और ख़त्म करना तथा अपनी राय ज़ाहिर करना ज़रूरी है...' और फिर आन्ना के कमरे की ओर मुड़ने से पहले वह मेहमानखाने में अपने से पूछता: 'क्या तय किया जाए ?' इसके बाद अपने से सवाल करता : 'क्या हुआ है ?' और जवाब देता : 'कुछ नहीं,' तथा उसे यह याद आ जाता कि शक की भावना तो पत्नी का अपमान करनेवाली भावना है, किन्तु मेहमानखाने में उसे फिर से यक़ीन हो जाता कि कुछ तो हुआ है। उसके शरीर की तरह उसके विचार भी चक्कर पूरा करते और उन्हें कुछ भी नया न सूझता । इस बात की ओर उसका ध्यान गया, उसने अपने माथे को हाथ से रगड़ा और आन्ना के कमरे में बैठ गया ।

यहाँ, उसकी मेज़ पर मेलाकाइट की फ़ाइलवाली लेखन सामग्री और अधूरे पत्र को देखते हुए उसके विचारों में अचानक परिवर्तन हो गया। वह आन्ना के बारे में, इस बारे में सोचने लगा कि वह क्या सोचती और अनुभव करती है। उसने पहली बार आन्ना के व्यक्तिगत जीवन, उसके विचारों, उसकी इच्छाओं की मूर्त कल्पना की और यह ख़याल कि उसका कोई अपना अलग जीवन हो सकता है और होना चाहिए, उसे इतना भयानक प्रतीत हुआ कि उसने उसे जल्दी से दूर भगा दिया। यह वही खड्ड था, जिसमें झाँकते हुए उसका दिल डरता था । विचार और भावना से अपने को किसी अन्य व्यक्ति की आत्मा में ले जाना एक ऐसी आत्मिक क्रिया थी, जिससे कारेनिन अनजान था । वह ऐसी आत्मिक क्रिया को हानिकारक और कल्पना की ख़तरनाक उड़ान मानता था ।

'और सबसे बुरी बात तो यह है,' वह सोच रहा था, 'कि इस वक़्त, जब मेरा काम ख़त्म होने को आ रहा है (वह उस परियोजना के बारे में सोच रहा था, जिसे इस समय अमली शक्ल दे रहा था), जब मुझे पूरी शान्ति और मानसिक शक्ति की आवश्यकता है, इस बेहूदा परेशानी ने मुझे आ घेरा है। लेकिन क्या हो सकता है ? मैं तो इन लोगों में से नहीं हूँ, जो परेशानी और चिन्ता को बर्दाश्त करते हैं तथा उनका सामना करने की हिम्मत नहीं रखते ?'

“मुझे अच्छी तरह सोच-विचार करना, निर्णय पर पहुँचना और इस चीज़ को दिमाग़ से निकाल फेंकना चाहिए,” उसने ऊँचे-ऊँचे कहा ।

‘उसकी भावनाओं के प्रश्नों और इस बात का मुझसे कोई वास्ता नहीं है कि उसकी आत्मा में क्या हुआ है या हो रहा है। यह उसकी आत्मा का मामला है और धर्म के अन्तर्गत आता है,' उसने इस चेतना से राहत महसूस करते हुए अपने आपसे कहा कि उसे नैतिक नियमावली का वह बिन्दु मिल गया है, जिसके अन्तर्गत इस समय पैदा होनेवाली यह परिस्थिति आती है ।

'तो' कारेनिन ने अपने आपसे कहा, 'उसकी भावनाओं आदि के प्रश्न उसकी आत्मा के ही प्रश्न हैं और मुझे उनसे कुछ मतलब नहीं। मेरा उत्तरदायित्व बिल्कुल स्पष्ट है। परिवार के मुखिया के नाते मैं वह व्यक्ति हूँ, जिसे उसका निदेशन करना चाहिए और इसीलिए मैं वह व्यक्ति हूँ, जो कुछ हद तक उसके लिए ज़िम्मेदार हूँ । मुझे उस ख़तरे की तरफ़ इशारा करना चाहिए, जो मुझे नज़र आ रहा है, उसे सावधान और यहाँ तक कि अपने प्रभाव का भी उपयोग करना चाहिए। मुझे उससे साफ़-साफ़ कह देना चाहिए।' और कारेनिन के दिमाग़ में वह सब कुछ स्पष्ट हो गया, जो अब वह अपनी बीवी से कहेगा । यह सोच-विचार करते हुए कि वह क्या कहेगा, उसे इस बात का अफ़सोस हो रहा था कि उसे घरेलू मामले के लिए अपने समय और शक्ति का उपयोग करना पड़ रहा है और जिसका लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, मगर उसके बावजूद उसके मस्तिष्क में उन सभी बातों का, जो वह अपनी बीवी से कहेगा, रूप और क्रम ऐसे स्पष्ट होने लगा मानो वह कोई सरकारी रिपोर्ट पेश करनेवाला हो। 'मुझे यह सब कुछ कहना और पूरी तरह से स्पष्ट कर देना चाहिए एक, जनमत और शिष्टाचार का महत्त्व; दो, विवाह के महत्त्व का धार्मिक पक्ष तीन, आवश्यक होने पर यह भी कि इससे बेटे को कैसे दुर्भाग्य का शिकार होना पड़ सकता है; चार, खुद उसके लिए भी क्या दुर्भाग्य हो सकता है।' और उसने हथेलियों को नीचे की ओर करके उँगलियों को उँगलियों में डालकर दबाया और वे चटक उठीं।

उँगलियों के चटखाने की इस हरकत, इस बुरी आदत से वह हमेशा शान्त हो जाता था और उसे वह मानसिक सन्तुलन प्राप्त होता था, जिसकी उसे इस वक़्त वेहद ज़रूरत थी। घर के प्रवेश द्वार के निकट आती बग्घी की आवाज़ सुनाई दी। कारेनिन हॉल के बीचोबीच खड़ा हो गया ।

ज़ीने पर औरत के क़दमों की आहट मिल रही थी। अपना भाषण देने के लिए तैयार कारेनिन अपनी गुँथी हुई उँगलियों पर ज़ोर डालते हुए यह प्रतीक्षा कर रहा था कि उनमें से कोई और भी चटकती है या नहीं । आखिर एक उँगली चटकी ।

ज़ीने पर हल्के क़दमों की आहट से उसने अनुभव किया कि वह निकट आ रही है और यद्यपि वह अपने सोचे हुए भाषण से सन्तुष्ट था, तथापि कुछ क्षण बाद पत्नी से होनेवाली बातचीत के विचार से उसे दहशत महसूस हुई...।

अन्ना करेनिना : (अध्याय 9-भाग 2)

आन्ना सिर झुकाए और अपने हुड के फुंदनों से खिलवाड़ करती चली आ रही थी। उसका चेहरा तेज़ चमक से दीप्तिमान था, किन्तु यह उल्लासपूर्ण दीप्ति नहीं थी । यह अँधेरी रात में आग की भयानक चमक की याद दिलाती थी। पति को देखकर आन्ना ने सिर ऊपर किया और मानो नींद से जागते हुए मुस्कुराई ।

“तुम बिस्तर में नहीं गए ? यह भी कमाल है !” आन्ना ने कहा, हुड उतार फेंका और रुके बिना अपने शृंगार-कक्ष की ओर आगे बढ़ गई । “सोने का वक़्त हो गया, अलेक्सेई अलेक्सान्द्रोविच,” उसने दरवाज़े के पीछे से कहा ।

"आन्ना, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"

“मुझसे ?” उसने हैरान होते हुए कहा और दरवाज़े के पीछे से सामने आकर उसकी तरफ़ देखा । "क्या बात है ? किस बारे में ?” आन्ना ने बैठते हुए पूछा। “अगर ज़रूरी है, तो आओ कर लें बात । लेकिन शायद बेहतर होगा कि सोया जाए ।" आन्ना के मुँह में जो कुछ आ रहा था, वह वही कहती जा रही थी और अपने को सुनते हुए उसे झूठ बोलने की अपनी क्षमताओं से आश्चर्य हो रहा था। कितने सीधे-सादे और स्वाभाविक थे उसके शब्द तथा कितना अधिक ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह सोना चाह रही है ! वह ऐसा अनुभव कर रही थी मानो झूठ का अभेद्य कवच पहने हो । उसे लग रहा था मानो कोई अदृश्य शक्ति उसकी मदद कर रही है, उसे सहारा दे रही है । I

“आन्ना, मेरे लिए तुम्हें सावधान करना ज़रूरी है," पति ने कहा ।

“सावधान करना ?” उसने पूछा । " किस बात के लिए ?”

वह ऐसी मासूमियत, ऐसी खुशमिज़ाजी से उसकी तरफ़ देख रही थी कि जो व्यक्ति उसे उसके पति की भाँति ही अच्छी तरह नहीं जानता पहचानता था, न तो उसके अन्दाज़ और न ही उसके शब्दों के अर्थ में कोई बनावटीपन महसूस कर सकता था। लेकिन उसके लिए, जो उसे अच्छी तरह से जानता था, जो यह जानता था कि अगर वह पाँच मिनट भी देर से बिस्तर पर जाता था, तो आन्ना का इस चीज़ की ओर ध्यान जाता था और वह उसका कारण पूछती थी, उसके लिए, जो यह जानता था कि अपनी सभी खुशियों, सभी मनोरंजनों और दुःख - मुसीबतों की वह फ़ौरन उससे चर्चा करती थी- उसके लिए अब यह देखना कि वह उसकी मानसिक स्थिति को अनदेखा करना चाहती है, अपने बारे में एक शब्द भी नहीं कहना चाहती, बहुत माने रखता था । वह देख रहा था कि उसकी आत्मा की गहराई, जो पहले हमेशा उसके सामने खुली रहती थी, अब उसके लिए पर्दे से ढकी हुई है। इतना ही नहीं, उसके बात करने के अन्दाज़ से वह देख रहा था कि इससे उसे किसी प्रकार की घबराहट भी नहीं महसूस हो रही, बल्कि मानो वह साफ़ कह रही थी 'हाँ, मेरे दिल का दरवाजा बन्द कर दिया गया है और यह ऐसे ही होना चाहिए तथा आगे भी ऐसा ही होगा।' अब उसे उस आदमी जैसी अनुभूति हो रही थी, जो घर लौटने पर वहाँ ताला लटकता देखता है। लेकिन हो सकता है कि अभी भी चाबी मिल जाए,' कारेनिन सोच रहा था।

"मैं तुम्हें इस बारे में सावधान करना चाहता हूँ,” उसने धीमी आवाज़ में कहा, "कि असावधानी और गम्भीरता की कमी के कारण तुम सोसाइटी को अपने सम्बन्ध में चर्चा करने का मौक़ा दे सकती हो। काउंट व्रोन्स्की (उसने दृढ़ता और शान्ति से इस नाम पर जोर दिया) के साथ आज तुम्हारी बहुत ही सजीव बातचीत ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया।"

वह अपनी बात कह तथा आन्ना की हँसती और अभेद्यता के कारण अब भयानक बनी आँखों को देख रहा था और बोलते हुए अपने शब्दों की पूरी व्यर्थता तथा निरर्थकता को अनुभव कर रहा था।

"तुम्हारा हमेशा ऐसा ही हाल रहता है," उसने ऐसे कहा मानो उसकी बात बिल्कुल न समझ रही हो और उसने जो कुछ कहा, उसमें से अन्तिम बात को ही जान-बूझकर समझा हो। “कभी तुम्हें यह अच्छा नहीं लगता कि मैं ऊबी-ऊबी रहूँ, तो कभी यह अखरता है कि मैं खुश हूँ। मैं ऊब महसूस नहीं कर रही थी। तुम्हें यह बुरा लगा ?"

कारेनिन सिहरा और उसने उँगलियाँ चटकाने के लिए हाथों को नीचे की ओर झुकाया।

"ओह, कृपया उँगलियाँ नहीं चटकाना, मुझे यह बिल्कुल पसन्द नहीं," उसने कहा।

“आन्ना, यह तुम ही हो ?" कारेनिन ने जैसे-तैसे अपने पर काबू पाते और हाथों की हरकत को रोकते हुए धीमी आवाज़ में कहा।

“पर यह मामला क्या है ?" आन्ना ने बड़े निष्कपट और हास्यपूर्ण आश्चर्य के अन्दाज़ में पूछा। "क्या चाहते हो तुम मुझसे ?"

कारेनिन ख़ामोश रहा और माथे पर तथा आँखों पर हाथ फेरा। वह स्पष्टतः यह समझ रहा था कि जो कुछ करना चाहता था वह न करते हुए, यानी पत्नी को सोसाइटी की दृष्टि में भूल करने से बचाने के बजाय अनचाहे ही उस चीज़ के लिए परेशान हो रहा है, जिसका आन्ना की आत्मा से सम्बन्ध था और अपने द्वारा कल्पित किसी दीवार के विरुद्ध संघर्ष कर रहा है ।

"मैं यह कहना चाहता हूँ,” उसने रुखाई और शान्ति से अपनी बात जारी रखी, “और मैं तुमसे पूरी बात सुन लेने का अनुरोध करता हूँ। जैसाकि तुम जानती हो, मैं शक करने को अपमानजनक और तिरस्कारपूर्ण भावना मानता हूँ तथा कभी भी इसे अपने पर हावी नहीं होने दूँगा । किन्तु शिष्टाचार के कुछ नियम हैं, जिनके उल्लंघन का अनिवार्य रूप से दंड भुगतान पड़ता है। आज मैंने ऐसा कुछ नहीं देखा, किन्तु सोसाइटी पर पड़े प्रभाव के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि सभी ने इस बात की ओर ध्यान दिया कि तुमने वैसा व्यवहार नहीं किया, जैसाकि करना चाहिए था ।”

"मैं बिल्कुल कुछ भी नहीं समझ पा रही हूँ,” आन्ना ने कन्धे झटककर कहा । 'इसके लिए सब बराबर है,' आन्ना ने सोचा । 'लेकिन दूसरे लोगों ने ध्यान दिया और इससे इसे परेशानी हो रही है ।' "तुम स्वस्थ नहीं हो, अलेक्सेई अलेक्सान्द्रोविच,” उसने इतना और कहा, उठी और दरवाज़े की तरफ़ जाना चाहा, किन्तु कारेनिन मानो उसे रोकने के लिए आगे बढ़ा।

उसका चेहरा ऐसा विकृत और उदास था, जैसाकि आन्ना ने पहले कभी नहीं देखा था । आन्ना रुकी और सिर को पीछे की ओर तनिक टेढ़ा झुकाकर फुर्ती से उँगलियाँ चलाती हुई बालों में से सूइयाँ निकालने लगी ।

“तो मैं सुनने को तैयार हूँ, जो कहना है कहो,” आन्ना शान्त और उपहासपूर्ण ढंग से बोली । “यहाँ तक कि दिलचस्पी से सुनूँगी, क्योंकि जानना चाहती हूँ कि मामला क्या है ।"

  • आन्ना करेनिना : (भाग 1, अध्याय 21-34)
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