अनमोल है जीवन (लघुकथा) : डॉ. महिमा श्रीवास्तव
Anmol Hai Jivan (Hindi Laghukatha) : Dr. Mahima Shrivastava
सांझ का सिंदूरी सूर्य झील में डुबकी लगा रहा था। झील किनारे टहलती उमा जी ने अपनी फिटनैस घड़ी पर दृष्टिपात किया।
अभी तक उनके द्वारा पांच हज़ार कदम ही हो पाये थे दिन भर के। उन्होंने अपनी चाल तेज करने का प्रयास किया किन्तु शीघ्र ही हाँफने लगीं।
तभी उन्होंने देखा एक किशोर लड़का झील किनारे बनी दीवार पर चढ़ नीचे की ओर ताक रहा है, शायद कूदने ही जा रहा है। उमा जी उसका ,आत्महत्या के प्रयास का इरादा तुरंत भाँप गईं।
उन ने देखा, चारों ओर बिल्कुल ही सुनसान था। कुछ ना सूझा तो नीचे मिट्टी पर बैठ कर चिल्लाने लगीं, “अरे, पैर में मोच आ गई है, कोई तो उठाओ मुझे।“
लड़का चौंका व मुड़ कर पीछे देखा, तुरंत कूद कर उनके पास आ गया व सहारा दे कर खड़ा किया। उमा ने उसे अपनी कार तक सहारा देते हुए पहुँचाने को कहा।
कार तक पहुंचे तो उमा जी ने उससे पूछा कि उसे कार चलाना आता है क्या ? फिर उसे अपने घर तक छोड़ने को कहा।
लड़का तनिक झल्लाया सा प्रतीत हुआ।
फिर वह ड्राइवर की सीट पर जा बैठा व उनके बताये रास्ते पर फर्राटे से कार दौड़ा दी। घर पहुंच उमा ने लड़के को अंदर बुला लिया। दो बच्चे आ हुलस कर उन से लिपट गये।
उमा जी ने अपने सिर से घने काले केशों का विग हटा दिया।
लड़का उनके सुंदर मुख को केशविहीन देख भौंचक्का रह गया।
उमा जी ने कहा- “ बेटा, तुम अपने प्राण लेने जा रहे थे ना ?”
लड़के की आंखों से अश्रु बह निकले।
उमा जी आगे बोलीं- “अब फिर से प्रयास करोगे। पर बेटा,क्या तुम भगवान द्वारा दी गई उम्र के जो वर्ष अपनी इच्छा से समाप्त करना चाहते हो, वे वर्ष मुझे दे कर जा सकते हो ? कैंसर के कारण मेरी अब एक वर्ष ही जीवित रहने की उम्मीद है । मेरे बच्चे अभी छोटे ही हैं और उन्हें मेरी आवश्यकता है।“
एक छोटी सी बात से विचलित हो झील में कूद कर प्राण तजने चला लड़का यह सब सुन अब बहुत शर्मिंदा था।