अनिर्वचनीय (कहानी) : बनफूल

Anirvacaniya (Bangla Story in Hindi) : Banaphool

क्षणिका खास्तगीर के सर पर वज्रपात हुआ है। अभी तक वह मरी तो नहीं है, लेकिन इस अवस्था में मरना उचित है कि नहीं, और उचित होने पर सहज एवं मर्मान्तिक मृत्यु का उपाय क्या है- यही अच्छी तरह विचारने के लिए वह छत पर चहलकदमी कर रही थी। किरासन तेल, गले में रस्सी, तालाब में डूबना, यहाँ तक कि बलंदपकम भी मामूली हो गया है। यक्ष्मा का जीवाणु सूँघना कैसा रहेगा?

अचानक पीछे से रमेशबाबू की चप्पलों की आवाज।

‘‘क्षुणू, तुम यहाँ हो? कमाल है! अच्छा, यह क्या बचपना है बताओ तो तुम?’’

क्षणिका ने कुछ नहीं कहा।

रमेशबाबू ने कहा, ‘‘कुछ कहती क्यों नहीं? मैं क्या अभी ही तुम्हारी शादी उससे किये दे रहा हूँ? एकबार सोचकर देखने में हर्ज क्या है?’’

क्षणिका ने कहा, ‘‘पिताजी, आप आखिरकार मुझे एक विधुर के हाथों सौंप देंगे- यह तो मैं सोच भी नहीं सकती।’’

रमेशबाबू ने कहा, ‘‘अच्छी बात है, मत करो उससे शादी। मुझे लड़का अच्छा लगा, इसलिए मैं कह रहा था। विद्वान है, बड़ी नौकरी करता है, स्वास्थ्यवान है, बच्चे हैं नहीं। दूसरी शादी होने से क्या हुआ? ठीक है बेटे, तुम्हें पसन्द नहीं है, तो मत करो उससे शादी। चलो, अब सो जाओ। तुमलोगों ने पढ़ाई करके अपने टौन्सिल बढ़ाये हैं, बुद्धि नहीं बढ़ी कुछ।’’

मातृभावापन्न रमेशबाबू अपनी मातृहीन कन्या को लेकर नीचे उतर गये।

बताना भूल गया- पहले ही बताना उचित था- क्षणिका खास्तगीर ने अँग्रेजी में ‘ऑनर्स’ के साथ बी.ए. पास किया है। एक प्रमुख मासिक पत्रिका में उसकी तस्वीर छप चुकी है।

क्षणिका ने अगले दिन बान्धवी सुजाता को बताया, ‘‘चलो बला टली। उस आदमी के अक्ल की मैं दाद देती हूँ। पत्नी के मरते ही शादी की जल्दी पड़ गयी है।

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