एनिमल फार्म (उपन्यास) : जॉर्ज ऑर्वेल-अनुवाद : सूरज प्रकाश

Animal Farm (Novel in Hindi) : George Orwell

(एक फार्म पर आधारित इस उपन्यास में उन पशुओं का विद्रोह होता है, जो मनुष्यों पर आधिपत्य चाहते हैं। मिस्टर जॉन्स के फार्म में रहनेवाले पशु मनुष्यों की सेवा करते-करते थक चुके हैं और उन्हें लगता है कि मनुष्यों द्वारा अपनी सारी आवश्यकताओं के लिए पशुओं का इस्तेमाल किया जाना घोर शोषण है। क्रांति की शुरुआत उस दिन होती है, जब मिस्टर जॉन्स पशुओं को चारा देना भूल जाते हैं। इसके बाद पशुओं ने नेपोलियन और स्नोबॉल नाम के दो सूअरों के नेतृत्व में मनुष्यों पर आक्रमण करने और फार्म पर कब्जा जमाने की योजना बना ली। संवेदना और मर्म को स्पर्श करनेवाले विश्वप्रसिद्ध उपन्यास का सुंदर अनुवाद, जो पाठकों को बाँध लेगा।)

मैनर फार्म यानी ताल्लुकाबाड़े के मिस्टर जोंस ने रात के लिए मुर्गियों के दड़बों को ताला तो लगा दिया था, लेकिन वह इतना ज्यादा पिए हुए था कि उनके किवाड़ बंद करना ही भूल गया। वह लड़खड़ाता हुआ अहाते की तरफ चल दिया। उसकी लालटेन से बनती रोशनी का घेरा उसके चलने से इधर-उधर हो रहा था। उसने अपने जूते पिछवाड़े के दरवाजे की तरफ उछाल दिए। फिर रसोई के कोठे में रखे पीपे में से अपने लिए बीयर का आखिरी गिलास भरा और चलता हुआ बिस्तर के पास जा पहुँचा, जहाँ मिसेज जोंस पहले ही खर्राटे लेती सोई हुई थीं।

जैसे ही बेडरूम की बत्ती बंद हुई, बाड़े की सभी इमारतों में हलचल और सुगबुगाहट शुरू हो गई। दिन में ही चारों तरफ यह खबर फैल चुकी थी कि जनाब मेजर, माननीय धूसर सूअर को कल रात एक अजीब-सा सपना आया था और उनकी इच्छा है कि अपने इस सपने के बारे में दूसरे प्राणियों को बताएँ। यह तय हो ही चुका था कि जैसे ही मिस्टर जोंस के जाने से सब कुछ सुरक्षित हो जाएगा, सब लोग बाड़ेवाले बखार में मिलेंगे। जनाब मेजर को बाड़े में इतना अधिक सम्मान मिला हुआ था कि हर प्राणी उनकी बात सुनने के लिए अपनी घंटे भर की नींद का त्याग करने के लिए बिलकुल तैयार था। (उन्हें इसी नाम से पुकारा जाता था, हालाँकि उन्हें विलिंगडन ब्यूटी के नाम से प्रदर्शित किया गया था।)

बड़े बखार के एक सिरे की तरफ एक चबूतरे पर मेजर पहले ही अपने पुआल के बिस्तर पर आराम से पसरा हुआ था। उसके ऊपर एक शहतीर से एक लालटेन लटकी हुई थी। उसकी उम्र बारह बरस की थी और पिछले कुछ अरसे से वह कुछ मुटिया गया था, लेकिन उसके बावजूद वह अभी भी राजसी ठाठ-बाटवाला सूअर था। उसे बधिया नहीं किया गया था। हालाँकि उसके आगे के नुकीले दाँत कभी काटे नहीं गए थे, फिर भी वह देखने में बुद्धिमान और उदार लगता था। काफी पहले से ही अलग-अलग पशु आने शुरू हो गए थे और अपने-अपने हिसाब से आराम से बैठ रहे थे। सबसे पहले तीनों कुत्ते, ब्लू बैल, जेस्सी और पिंचर आए। फिर सूअर आए तो चबूतरे के एकदम सामने पुआल पर पसर गए। इसके बाद मुर्गियाँ आईं जो खिड़कियों की सिल पर जा बैठीं। कबूतर फड़फड़ाते हुए शहतीरों पर बैठ गए। भेड़ों और गायों ने अपने लिए सूअरों के पीछे जगह तलाश ली और बैठे-बैठे जुगाली करने लगीं। गाड़ीवाले दोनों घोड़े बौक्सर और क्लोवर एक साथ आराम से धीरे-धीरे चलते हुए आए। वे अपने बड़े-बड़े रोएँदार सुम इतनी सावधानी से रख रहे थे कि कहीं कोई छोटा-मोटा जानवर पुआल में न छिपा बैठा हो। क्लोवर थोड़ी मोटी ममतामयी घोड़ी थी जो अब अधेड़ावस्था में पहुँच रही थी। अपने चौथे बछड़े को जनने के बाद वह अपनी पुरानी फीगर कभी वापस नहीं पा सकी थी। बौक्सर अच्छा खासा कद्दावर पशु था। वह कोई अठारह हाथ ऊँचा था और उसमें औसत दरजे के दो घोड़ों के बराबर ताकत थी। उसकी नाक पर एक सफेद धारी थी, जिसकी वजह से वह कुछ-कुछ फूहड़-सा लगता था। वह अव्वल दरजे का बुद्धिमान भी नहीं था। लेकिन एक बात थी, उसके चरित्र की गंभीरता और काम करने की अकूत ताकत की वजह से सब उसका बहुत सम्मान करते थे। घोड़ों के बाद सफेद बकरी मुरियल और बैंजामिन नाम का गधा आए। बैंजामिन बाड़े का सबसे पुराना प्राणी था और बहुत अधिक खब्ती था। वह कभी किसी से बात नहीं करता था, लेकिन जब वह बोलता तो आम तौर पर कोई न कोई कटाक्ष ही करता। उदाहरण के लिए वह कहेगा कि भगवान ने उसे पूँछ इसलिए दी है कि वह मक्खियों को उड़ा कर उन्हें दूर रखे, लेकिन जल्द ही न तो उसके पास पूँछ रहेगी और न ही मक्खियाँ रहेंगी। बाड़े पर वही केवल ऐसा पशु था जो कभी हँसता नहीं था। इसकी वजह पूछने पर वह यही कहता कि उसे कुछ भी ऐसा नजर नहीं आता जिस पर हँसा जा सके। अलबत्ता सबके सामने स्वीकार न करते हुए भी वह बौक्सर के प्रति निष्ठावान था। दोनों अक्सर अपनी रविवार की छुट्टियाँ एक साथ फलोद्यान के परेवाले छोटे पशुबाड़े में, साथ-साथ चरते हुए, लेकिन बिलकुल भी बात किए बिना गुजारते थे।

दोनों घोड़े अभी बैठे ही थे, जब बत्तख के बच्चों का झुंड कमजोर आवाज में चिंचियाता हुआ एक पंक्ति में बखार में घुसा। उनकी माँ मर चुकी थी। यह झुंड इधर-उधर लपकता-झपकता अपने लिए कोई ऐसी जगह तलाश रहा था, जहाँ उन्हें कोई बड़ा जानवर अपने पैरों तले न कुचल सके। क्लोवर ने अपने आगे के पैरों से उनके चारों तरफ एक दीवार-सी खड़ी कर दी। बत्तख के बच्चे इसके भीतर दुबक कर बैठ गए और पलक झपकते ही सो गए। सबसे आखिर में मौली आई। वह एक खरदिमाग खूबसूरत सफेद घोड़ी थी, जो जोंस की खचड़ा-गाड़ी खींचती थी। वह गुड़ की भेली मुँह में चुभलाते हुए मस्ती से आई और आगे-आगे ही बैठ गई। वह अपनी सफेद अयाल इधर-उधर लहराने लगी। वह उस पर बँधे लाल रिबनों की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहती थी। उसके भी बाद में बिल्ली आई। उसने हमेशा की तरह सबसे गरम जगह के लिए आसपास देखा, और बौक्सर और क्लोवर के बीच की जगह में खुद को सिकोड़ लिया। वहाँ वह मेजर के पूरे भाषण के दौरान संतुष्ट भाव से घुरघुराती रही। उसने मेजर का कहा हुआ एक भी शब्द नहीं सुना।

अब तक मोसेस, पालतू काले कव्वे के सिवाय सभी प्राणी पधार चुके थे। वह पिछवाड़े की तरफ एक टाँड़ पर सोया हुआ था। जब मेजर ने देखा कि अब सब आराम से अपनी जगह बैठ चुके हैं और ध्यान से उसकी बात का इंतजार कर रहे हैं तो उसने अपना गला खखारा और कहना शुरू किया :

‘साथियो, आप लोग कल रात के मेरे उस अजीब सपने के बारे में सुन ही चुके हैं। लेकिन मैं सपने की बात बाद में करूँगा। मुझे उससे पहले कुछ और कहना है। मुझे नहीं लगता, कॉमरेड्स कि अब मैं आनेवाले बहुत से महीनों में आप लोगों के साथ रह पाऊँगा और मरने से पहले मैं यह अपना कर्तव्य समझता हूँ कि जो कुछ बुद्धिमत्ता मैंने हासिल की है, उसे आप लोगों को देता जाऊँ। मैंने भरपूर जीवन जी लिया है। जब मैं अपने थान में अकेला पड़ा रहता था तो मुझे सोचने के लिए खूब वक्त मिला और मुझे लगता है कि मैं यह कह सकता हूँ कि मैं इस धरती पर जीवन के स्वरूप को, ढर्रे को और साथ ही साथ अब जी रहे किसी भी पशु को समझता हूँ। इसी के बारे में मैं आप लोगों से बात करना चाहता हूँ।

'साथियो, आप ही बताइए, हमारी इस जिंदगी का स्वरूप क्या है? ढर्रा क्या है? इसमें झाँक कर देखें, हमारी जिंदगी दयनीय है, इसमें कड़ी मेहनत है और हम अल्पजीवी हैं। जब हम पैदा होते हैं तो हमें सिर्फ इतना ही खाने को दिया जाता है कि हमारी ठठरियों में साँस भर चलती रहे। हममें से जो साँस भर लेने की ताकत रखते हैं, उन्हें शरीर में खून की आखिरी बूँद तक काम करने पर मजबूर किया जाता है, और उस पल के आते ही, जब हमारी उपयोगिता खत्म हो जाती है, हमें घिनौनी क्रूरता के साथ कत्ल कर दिया जाता है। इंग्लैंड में कोई भी ऐसा पशु नहीं है जो एक बरस का हो जाने के बाद खुशी का या फुरसत का मतलब जानता हो। इंग्लैंड में कोई भी पशु आजाद नहीं है। पशु की जिंदगी दुर्गति और गुलामी की जिंदगी है। यह एक कड़वी सच्चाई है।

'लेकिन क्या यह प्रकृति का एक सीधा-सादा-सा नियम है? क्या हमारी यह हालत इसलिए है कि हमारी धरती इतनी गरीब है कि यह इस पर रहनेवालों को एक शानदार जिंदगी मुहैया नहीं करा सकती? नहीं दोस्तो, नहीं। हजार बार नहीं। इंग्लैंड की मिट्टी उपजाऊ है, यहाँ की जलवायु अच्छी है। इसमें इतनी क्षमता है कि अब इस पर जितने पशु रह रहे हैं, उससे कई गुणा अधिक पशुओं का खूब अच्छी तरह से भरण-पोषण कर सकती है। हमारे अकेले बाड़े से एक दर्जन घोड़े, बीस गाएँ, सैंकड़ों भेडें, खूब आराम से, सम्मान की ऐसी जिंदगी बसर कर सकती हैं जिसकी आज हम कल्पना भी नहीं कर सकते। हम क्यों इस तंगहाली में जिए चले जा रहे हैं? क्योंकि हमारी मेहनत की कमोबेश पूरी की पूरी उपज हमसे मनुष्यों द्वारा चुरा ली जाती है और यही, साथियों, हमारी सारी समस्याओं का जवाब है। इसे सिर्फ एक ही शब्द में बयान किया जा सकता है - आदमी, मनुष्य, मानव। मनुष्य ही हमारा असली दुश्मन है। मनुष्य को सामने से हटा दीजिए और भूख और अतिश्रम की जड़ ही हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो बिना कुछ भी पैदा किए उपभोग करता है। वह दूध नहीं देता, वह अंडे नहीं सेता, वह इतना कमजोर है कि हल नहीं चला सकता। वह इतना तेज नहीं दौड़ सकता कि खरगोश तक पकड़ सके। फिर भी वह सब पशुओं का मालिक है। वह उन्हें काम में जोत देता है और उन्हें खाने के लिए इतना ही देता है कि वे भूखे न मरें। बाकी सब कुछ वह अपने लिए रख लेता है। हम अपनी मेहनत से मिट्टी गोड़ते हैं। हमारी लीद से, गोबर से मिट्‌टी उपजाऊ बनती है, और फिर भी हममें से एक भी ऐसा नहीं, जिसके पास अपनी चमड़ी के अलावा एक दमड़ी भी हो। आप गाएँ जो इस समय मेरे सामने बैठी हैं, आपने पिछले बरस कितने हजार लीटर दूध दिया है? और क्या हुआ उस दूध का जिसे पी कर आपके बछड़े हट्‌टे-कट्‌टे बनते हैं? उस दूध की एक-एक बूँद हमारे दुश्मनों के गले के नीचे उतरी है और तुम मुर्गियो, पिछले बरस भर में तुमने कितने अंडे दिए और उनमें से कुल कितने अंडे से कर तुमने चूजे बनाए? बाकी सारे अंडे बाजार में बिकने पहुँच गए ताकि जोंस और उसके आदमियों की कमाई हो सके। और तुम क्लोवर, क्या हुआ उन चार बछड़ों का जिन्हें तुमने जना था, और जो बुढ़ापे में तुम्हारा सहारा और आँखों का तारा बनते? साल भर का होते ही उन्हें बेच दिया गया। अब तुम उनमें से किसी को भी दोबारा नहीं देख पाओगी। बदले में तुम्हें क्या मिला? चार बार जचगियों और खेतों में कड़ी मेहनत के बदले तुम्हारे पास मामूली राशन और एक थान के अलावा और है क्या? इसके बावजूद हम जो कंगाली-बदहाली की जिंदगी जीते हैं उसे भी नैसर्गिक उम्र तक कहाँ जीने दिया जाता है? मैं अपने लिए नहीं खीझता या भुनभुनाता क्योंकि किस्मत ने थोड़ा-बहुत मेरा साथ दिया है। इस समय मैं बारह बरस का हूँ और मेरे चार सौ से भी ज्यादा बच्चे हुए हैं। एक सूअर का यही प्राकृतिक जीवन होता है। लेकिन आखिर में कोई भी जानवर इस क्रूर तलवार की मार से नहीं बच सकता। तुम जो नन्हें-मुन्ने बलिसूअर मेरे सामने बैठे हुए हो, तुम्हें माँस के लिए ही पाला जा रहा है। बरस भर बीतते-बीतते तुम सब अपनी-अपनी जान बचाते हुए चिचियाते फिरोगे। हममें से हरेक का यही बुरा हाल होना है। गायें, सूअर, मुर्गियाँ, भेड़ें, सबका। यहाँ तक कि घोड़ों और कुत्तों की जिंदगी में भी इससे बेहतर कुछ नहीं लिखा हुआ है। तुम बौक्सर, जिस दिन भी तुम्हारी इन मजबूत माँसपेशियों की ताकत खत्म हो जाएगी, जोंस तुम्हें घोड़ा कसाई के पास बेच आएगा। वह तुम्हारा गला रेतेगा और तुम्हें उबाल कर तुम्हारी बोटियाँ लोमड़ियों का शिकार करनेवाले कुत्तों के आगे डालेगा और जब कुत्ते बुढ़ा जाते हैं, उनके दाँत झर जाते हैं तो जोंस उनकी गरदन से ईंट का एक टुकड़ा बाँध देता है और उन्हें नजदीक के ताल-तलैया में ले जा कर डुबो देता है।

'क्या अब यह बात दिन की रोशनी की तरह साफ नहीं है साथियो कि हमारी इस जिंदगी की सारी विपत्तियों के पीछे मनुष्य जाति के अत्याचार ही हैं? सिर्फ आदमी से छुटकारा पा लीजिए और हमारी सारी मेहनत की उपज पर हमारा अधिकार हो जाएगा। हम रातों-रात धनवान और आजाद हो सकते हैं। इसके लिए हमें करना क्या होगा? यही कि हम दिन-रात लगे रहें, मन लगा कर हाड़-तोड़ मेहनत करें और यहाँ से मनुष्य जाति को उखाड़ फेंके। साथियो, आप लोगों के लिए यही मेरा संदेश है। विद्रोह (बगावत), मुझे नहीं पता यह बगावत कब होगी। इसमें एक सप्ताह भी लग सकता है और सौ बरस भी, लेकिन मुझे पूरा यकीन है, अपने नीचे बिछे पुआल की तरह मैं साफ-साफ देख पा रहा हूँ कि देर-सबेर हमें न्याय मिलेगा। दोस्तो, जितनी भी जिंदगी बची है तुम्हारी, उसके एक-एक पल के लिए अपनी निगाह उसी पर गड़ाए रखो और इससे भी ज्यादा खास बात यह है कि मेरे इस संदेश को उन तक भी पहुँचाओ जो तुम्हारे बाद इस धरती पर आएँगे, ताकि आनेवाली पीढ़ियाँ तब तक संघर्ष करती रहें जब तक जीत हासिल नहीं हो जाती।

'और याद रखो, कॉमरेड्स, तुम अपने संकल्प से कभी डिगो नहीं। कोई भी तर्क-कुतर्क तुम्हें बहकाए-भटकाए नहीं। इस बात पर कान मत धरो कि आदमी और पशु के हित एक से हैं और एक की संपन्नता ही दूसरे की संपन्नता है। यह सब झूठ है, बकवास है। आदमी सिर्फ अपना स्वार्थ साधता है, किसी और प्राणी का नहीं। हम सब पशुओं में, जीवों में पूरी एकता होनी चाहिए। संघर्ष के लिए मजबूत भाईचारा। सभी मनुष्य शत्रु हैं। सभी पशु साथी हैं। कामरेड हैं।'

यह सुनते ही चारों तरफ गजब का शोर उठा। हर्ष ध्वनि होने लगी। जब मेजर बात कर रहा था तो चार तगड़े चूहे अपने बिलों से बाहर सरक आए और उकड़ू बैठे उसकी बात ध्यान से सुनने लगे। अचानक कुत्तों की निगाह उन पर पड़ गई। चूहे गजब की फुर्ती से अपने बिलों की तरफ छलाँग लगा कर ही अपनी जान बचा पाए। मेजर ने अपना पैर उठा कर शांति बनाए रखने का इशारा किया।

'कॉमरेड्स,' उसने कहा, ‘यहाँ हमें एक बात साफ-साफ तय कर लेनी चाहिए। जंगली पशु जैसे चूहे और खरगोश - वे हमारे शत्रु हैं अथवा हमारे मित्र? चलिए मतदान करके तय कर लेते हैं। मैं बैठक के सामने यह सवाल रखता हूँ कि क्या चूहे कॉमरेड हैं?’

तुरंत मतदान कर लिया गया, जबरदस्त बहुमत से यह तय कर लिया गया कि चूहे कॉमरेड हैं। वहाँ केवल चार ही प्राणी असहमत थे। तीन कुत्ते और बिल्ली। बिल्ली के बारे में बाद में पता चला कि उसने दोनों तरफ मतदान किया है। मेजर ने अपनी बात जारी रखी।

‘अब मुझे ज्यादा कुछ नहीं कहना है। मैं सिर्फ अपनी बात दोहराता हूँ। मनुष्य और उसके सभी कर्मोx, तरीकों के प्रति अपनी दुश्मनी की बात हमेशा याद रखो। जो भी दो पैरों पर चले, वह शत्रु है। जो चार पैरों पर चलता है, वह मित्र है। और यह भी याद रखो कि मनुष्य के खिलाफ लड़ते वक्त ऐसा कतई न हो कि हम उसी जैसे लगने लगें। उस पर विजय पा लेने के बाद भी उसकी बुराइयों को मत अपनाना। कोई भी पशु कभी भी किसी घर में ना रहे, या बिस्तर पर ना सोए या कपड़े ना पहने, या नशा-पानी न करे, या तंबाकू सेवन न करे, या रुपए-पैसे को हाथ न लगाए, या कारोबार ना करे। मनुष्य की ये सारी आदतें ही पाप हैं। और सबसे बड़ी बात, कोई भी पशु अपने ही बंधु-बिरादरों पर अत्याचार ना करे। कमजोर और शक्तिशाली, चतुर या बोदा, हम सब भाई-भाई हैं। कोई भी पशु कभी किसी दूसरे पशु को ना मारे। सभी पशु बराबर हैं।

 'साथियो, अब मैं आपको कल रात के अपने सपने के बारे में बताऊँगा। यह सपना मैं आप लोगों के सामने बयान नहीं कर सकता। यह उस वक्त की धरती का सपना है, जब यहाँ आदमी का नामो-निशान भी नहीं रहेगा। लेकिन इस सपने ने मुझे वह सब कुछ याद दिला दिया जो मैं कभी का भूल चुका था। बहुत बरस बीते, जब मैं एक नन्हा-सा सूअर था, मेरी माँ और उसकी साथिन सूअरनियाँ एक बहुत पुराना ऐसा गाना गाया करती थीं, जिसकी सिर्फ धुन और शुरू के तीन शब्द ही उन्हें पता थे। मैं इस धुन को अपने छुटपन से ही जानता था, लेकिन अरसा हुआ, यह मेरे दिमाग से उतर गई थी। अचानक ही कल रात, वही धुन मेरे सपने में लौट आई। और इससे भी बड़ी बात यह हुई कि गीत के बोल भी लौट आए - मुझे पूरा यकीन है, यह वही बोल हैं जो सदियों पहले पशु गाया करते थे, और कई पीढ़ियों तक उनकी स्मृति से उतरे रहे। कॉमरेड्स, अब मैं वह गीत आप लोगों को गा कर सुनाऊँगा। मैं बूढ़ा हो चला हूँ। मेरी आवाज कर्कश हो गई है, लेकिन जब मैं आपको इसकी धुन सिखा दूँगा तो आप लोग इसे खुब अच्छी तरह गा सकेंगे। गीत का मुखड़ा है, ‘इंग्लैंड के पशु’।'

जनाब मेजर ने अपना गला खखारा और गाना शुरू किया। वह कह ही चुका था कि उसकी आवाज कर्कश है, लेकिन उसने काफी अच्छा गाया। उसकी धुन में कंपन था। कुछ-कुछ 'क्लेमैन्टाइन' और 'ला कुकुराचा' के बीच का। गीत के बोल इस तरह से थे :

इंग्लैंड के पशु, आयरलैंड के पशु,

देश-देश और जलवायु के पशु

खुशियों भरी मेरी बातें सुनो

स्वर्णिम भविष्य की बातें सुनो।


आएगा वह दिन देर-सबेर

दुष्ट आदमी दिया जाएगा खदेड़

और इंग्लैंड के फलदार खेतों में

पैर पड़ेंगे सिर्फ पशुओं के।


हमारी नकेलें जाएँगी छूट,

पीठ से बोझा जाएगा छूट,

लगामें, जीन जल जाएँगी

नहीं बरसेंगे कोड़े क्रूर।


कल्पना से कहीं अधिक अमीर

गेहूँ जौ, जई और घास

बनमेथी, फलियाँ, चुंदर-मूल

होंगे इक दिन हमारे पास।


चमकेंगे धूप में इंग्लैंड के खेत

पीएँगे मीठा पानी भर-भर पेट

बहेगी मीठी सुंगधित वास

वह दिन जब हम होंगे आजाद।


करें उस दिन के लिए मेहनत खूब

निकलें प्राण बेशक उससे पूर्व

गाएँ, घोड़े, हंस और गिद्ध 

सब करें मेहनत आजादी के लिए।


इंग्लैंड के पशु, आयरलैंड के पशु,

देश-देश और जलवायु के पशु

ध्यान से सुनो और खूब फैलाओ

स्वर्णिम भविष्य की मेरी बातें सुनाओ।


इस गीत को गाते-गाते पशु चरम उत्तेजना से भर गए। मेजर ने अभी गाना खत्म भी नहीं किया था कि सब पशुओं ने इसे खुद ही गाना शुरू कर दिया। सबसे भोंदू पशुओं की जुबान पर भी इसकी धुन चढ़ गई और उन्होंने भी कुछेक शब्द सीख भी लिए। जहाँ तक समझदार पशुओं जैसे सूअरों और कुत्तों का सवाल था, कुछ ही पलों में तो उन्हें पूरा गाना ही याद हो गया। और फिर थोड़ी देर के शुरुआती अभ्यास के बाद पूरा बाड़ा एक जबरदस्त स्वर मेल के साथ ‘इंग्लैंड के पशु’ गीत गाने लगा। गायों ने इसे रँभा कर गाया। कुत्तों ने रिरियाया। भेड़ों ने मिमिया कर अपना स्वर दिया तो घोड़ों ने हिनहिना कर साथ दिया। बत्तखों ने काँ-काँ की। गीत ने सबको इतने उल्लास से भर दिया कि उन्होंने इसे लगातार पाँच बार गाया। वे तो इसे सारी रात ही गाते रहते, अगर बीच में रुकावट न आ जाती।

दुर्भाग्य से शोर-शराबे ने मिस्टर जोंस की नींद में खलल डाल दिया। वह बिस्तर से उछला। उसे पक्का यकीन हो गया कि बाड़े में कोई लोमड़ी घुस आई है। उसने अपने बेडरूम के कोने में हमेशा पड़ी रहनेवाली बंदूक उठाई और अँधेरे में तड़ातड़ छह गोलियाँ चलाईं। बंदूक की गोलियाँ बखार की दीवार में जा धँसीं। बैठक अफरा-तफरी में खत्म हो गई। हर कोई अपने सिर छुपाने की जगह की तरफ लपका। चिड़ियाएँ टाँड़ पर जा उड़ीं, पशु पुआल में ही पसर गए और पल भर में ही पूरा बाड़ा नींद के आगोश में था।


2

तीन रात बाद जनाब मेजर नींद में ही चल बसे। उनका शव फलोद्यान के आगे दफना दिया गया।

मार्च का महीना शुरू हो चुका था। अगले तीन महीनों के दौरान वहाँ काफी गुपचुप सरगर्मियाँ चलती रहीं। मेजर के भाषण ने बाड़े के अधिक बुद्धिमान पशुओं को जीवन के एक नए नजरिए से परिचित करा दिया था। उन्हें पता नहीं था कि मेजर ने जिस बगावत की भविष्यवाणी की थी, वह कब होगी। यह सोचने के लिए उनके पास कोई कारण भी नहीं थे कि यह बगावत उनके जीते जी होगी भी या नहीं, लेकिन एक बात उनके सामने बिलकुल साफ थी कि इस बगावत के लिए खुद को तैयार रखना उनका फर्ज है। स्वाभाविक था कि दूसरों को सिखाने-पढ़ाने का और संगठित करने का कार्य भार सूअरों के कंधों पर आ पड़ा। वही थे जिन्हें आम तौर पर सभी पशुओं से ज्यादा चतुर माना जाता था। सूअरों में से भी जो ज्यादा उल्लेखनीय थे, वे स्नोबॉल और नेपोलियन नाम के दो युवा सूअर थे जिनको बधिया गया था। इन्हें मिस्टर जोंस बेचने की नीयत से पाल रहा था। नेपोलियन कद-काठी में बड़ा, दिखने में खूँखार बर्कशायर का सूअर था। वह बाड़े में बर्कशायर का अकेला जीव था। वह बहुत ज्यादा बात नहीं करता था, लेकिन अपनी मरजी के मालिक के रूप में विख्यात था। स्नोबॉल नेपोलियन की तुलना में ज्यादा जिंदादिल सूअर था। बातचीत में तेज और खूब आविष्कारशील। लेकिन उसके बारे में यह समझा जाता था कि उसमें चरित्र की उतनी गहराई नहीं है। बाड़े पर और जितने भी सूअर थे, वे सब माँस के लिए पाले जानेवाले सूअर यानी पोर्क थे। उनमें से जो सबसे ज्यादा नामी-गिरामी था, एक छोटा स्क्वीलर नाम का मोटा सूअर था। वह भरे-भरे गालों, मिचमिचाती आँखों और फुर्तीले शरीर और कर्णभेदी आवाज का मालिक था। वह बातचीत में एकदम उस्ताद था। वह जब भी किसी मुश्किल मुद्दे पर बहस करता तो फुदकता रहता और अपनी पूँछ तेजी से हिलाता रहता। वैसे उसकी पूँछ बहुत आकर्षक थी। स्क्वीलर के बारे में दूसरों का कहना था कि वह इतना माहिर है कि काले को सफेद में बदल सकता है। इन तीनों ने मिल कर जनाब मेजर के उपदेशों को एक पूर्ण विचारधारा के रूप में परिष्कृत किया और इसे उन्होंने पशुवाद का नाम दिया। मिस्टर जोंस के सो जाने के बाद सप्ताह में कई-कई रातें जाग कर वे बखार में गुप्त बैठकें करते रहे और पशुवाद के सिद्धांत दूसरों को समझाते रहे। शुरू-शुरू में उन्हें बेहद मूर्खता और उदासीनता का सामना करना पड़ा। कुछ जानवरों ने मिस्टर जोंस, जिसे वे मालिक कहते थे, उनके प्रति कर्तव्य का, निष्ठा का वास्ता दिया या इस तरह की मौलिक टिप्पणियाँ की ‘मिस्टर जोंस हमारा भरण-पोषण करता है अगर वही चला गया तो हम भूखों मर जाएँगे। दूसरों ने इस तरह के सवाल किए कि हम इस बात की चिंता क्यों करें कि हमारे मरने के बाद क्या होता है? या यदि किसी तरह यह बगावत होती है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि हमने इसके लिए काम किया या नहीं। उनके भेजे में यह बात बिठाने में सूअरों को खासी मेहनत करनी पड़ी कि ऐसा सोचना पशुवाद की भावना के खिलाफ है। सबसे अधिक मूर्खतापूर्ण सवाल सफेद घोड़ी मौली पूछती थी। स्नोबॉल से सबसे पहला सवाल उसने यही किया कि क्या बगावत के बाद गुड़ मिलेगा?’

‘नहीं,'नहीं,' स्नोबॉल ने कड़ाई से उत्तर दिया, ‘इस बाड़े में गुड़ बनाने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं है। इसके अलावा तुम्हें गुड़ की क्या जरूरत? तुम्हें जितनी चाहिए जई और सूखी घास मिलेगी।’

‘और, 'क्या मैं तब भी अपनी अयाल पर रिबन लगा सकूँगी?’ मौली ने पूछा।

‘कॉमरेड’, स्नोबॉल का जवाब था, ‘ये रिबन जिसके पीछे तुम इतनी पागल रहती हो, गुलामी के बिल्ले हैं। तुम्हें इतनी-सी बात समझ में नहीं आती कि स्वतंत्रता रिबनों से कहीं अधिक मूल्यवान होती है।’

मौली सहमत तो हो गई, लेकिन वह बहुत अधिक कायल नहीं लग रही थी।

सूअरों को पालतू काले कव्वे मौसेस द्वारा फैलाई गई झूठी-झूठी बातों का खंडन करने में खासी मेहनत करनी पड़ती। मौसेस, जो मिस्टर जोंस का मुँहलगा था, असल में जासूस था और चुगली करता रहता था। इसके बावजूद वह बातचीत में माहिर था। उसका दावा था कि वह एक ऐसे रहस्यमय पहाड़ के बारे में जानता है जिसका नाम मिसरी पर्वत है और मरने के बाद सभी जानवर वहीं पहुँचते हैं। यह पर्वत बादलों से ऊपर आकाश में कहीं स्थित है। मौसेस का कहना था कि मिसरी पर्वत पर सप्ताह के सातों दिन रविवार रहता है और तिपतिया घास तो वहाँ साल के हर मौसम में उगती है। गुड़ की भेली और अलसी की खली तो वहाँ बाड़ों पर उगती है। सभी पशु मौसेस से नफरत करते थे क्योंकि वह बातें तो बहुत बनाता था लेकिन काम कुछ भी नहीं करता था। लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो मिसरी पर्वत पर विश्वास करते थे। सूअरों को तर्क दे कर उन्हें मनाने में खासी मेहनत करनी पड़ती कि कहीं कोई ऐसी जगह नहीं है।

उनके सबसे अधिक निष्ठावान चेले गाड़ी में जोते जानेवाले दो घोड़े, बौक्सर और क्लोवर थे। इन दोनों के साथ यही सबसे बड़ी दिक्कत थी कि वे अपने आप कुछ भी नहीं सोच पाते थे। लेकिन एक बार सूअरों को अपना गुरु स्वीकार कर लेने के बाद उन्हें जो कुछ भी बताया गया, उन्होंने सब ग्रहण कर लिया, और उसे सरल तर्कों द्वारा दूसरे पशुओं तक पहुँचाया। वे बखार में होनेवाली गुप्त बैठकों में बिना नागा आते और इंग्लैंड के पशु गीत गवाते। बैठकें हमेशा इसी गीत के साथ समाप्त होती थीं।  

अब हुआ यह कि बगावत किसी की भी उम्मीद से बहुत पहले और आसानी से हासिल कर ली गई। पिछले वर्षों के दौरान मिस्टर जोंस कठोर मालिक होने के बावजूद एक समर्थ किसान था। लेकिन इधर कुछ अरसे से उसके दुर्दिन चल रहे थे। एक मुकदमे में पैसे गँवाने के बाद उसका दिल एकदम टूट गया था। उसने अपनी सेहत की परवाह किए बगैर बेतहाशा शराब पीना शुरू कर दिया था। वह सारा-सारा दिन रसोईघर में अपनी विंडसर कुर्सी पर पसरा रहता। अखबार पढ़ता, पीता रहता और कभी-कभी बीयर में भिगोए डबलरोटी के टुकड़े मौसेस को खिलाता। उसके नौकर‌‌-चाकर सुस्त और बेईमान थे। खेतों में खर-पतवार उग आई थी। इमारतों की छतें छाने की जरूरत थी, बाड़ें देखभाल माँगते थे और पशुओं को पूरा खाना नहीं मिल रहा था।

जून आ चुका था और सूखी घास की फसलें कटाई के लिए एकदम तैयार थीं। ग्रीष्म ऋतु के मध्य के रात यानी 24 जून को शनिवार के दिन मिस्टर जोंस विलिंगडन गया और ‘रेड लॉयन बार’ में बैठ कर इतनी पी कि रविवार की दोपहर तक वापस नहीं आया। उसके नौकर-चाकर सुबह-सुबह गायों का दूध दुहने के बाद खरगोशों का शिकार करने निकल गए। उन्हें इस बात की रत्ती भर भी परवाह नहीं थी कि पशुओं का दाना-पानी भी करना है। मिस्टर जोंस वापस लौटते ही तुरंत ड्राइंग रूम के सोफे पर सोने चला गया। अपना मुँह उसने ‘न्यूज ऑफ द वर्ल्ड’ अखबार से ढक लिया। इसलिए, जब शाम हुई तब भी पशु बगैर चारे-पानी के खड़े थे। हालत यह हो गई कि उनसे और रहा नहीं गया। एक गाय ने भंडारघर का दरवाजा अपने सींगों से तोड़ डाला। और सभी पशुओं ने डिब्बों, पीपों में से खुद खाना ले कर खाना शुरू कर दिया। इसी समय मिस्टर जोंस की आँख खुल गई। अगले ही पल वह और उनके चारों नौकर भंडार घर में थे। उसके हाथों में कोड़े थे। आते ही उन्होंने चारों तरफ कोड़े बरसाना शुरू कर दिया। भूखे-प्यासे पशु इससे ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकते थे। एक आम सहमति से, हालाँकि इस बारे में पहले से कुछ भी तय नहीं किया गया था, सब पशुओं ने अपने अत्याचारियों पर हमला बोल दिया। मिस्टर जोंस और उसके आदमियों ने अचानक पाया कि उन पर चारों ओर से घूँसों, लातों की बरसात हो रही है। स्थिति पूरी तरह उनके नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी। इन्होंने कभी पशुओं को इस तरह का बर्ताव करते हुए नहीं देखा था। अब तक तो वे जब मन चाहा इन प्राणियों पर कोड़े फटकारने और उन्हें पीटने के ही आदी थे। इस तरह अचानक इन प्राणियों के उठ खड़े होने ने उन लोगों के तो होश ठिकाने लगा दिए। उन्हें डरा दिया।

एक-दो पलों के बीतते न बीतते वे पाँचों मुख्य सड़क की तरफ जानेवाले बैलगाड़ी के रास्ते पर जान बचाते हुए सरपट दौड़ रहे थे। उनके पीछे विजय की हुंकार भरते हुए पशु बढ़े चले जा रहे थे। 

जब मिसेज जोंस ने अपनी खिड़की से यह सब होते देखा तो उसने लपक कर एक थैला उठाया, उसमें फटाफट कुछ काम की चीजें ठूँसीं और चुपके से दूसरे रास्ते बाड़े से बाहर निकल गई। मौसेस अपनी टाँड़ से फुदका और जोर-जोर से काँव-काँव करते हुए उसके पीछे-पीछे पंख फड़फड़ाने लगा। इस बीच पशुओं ने मिस्टर जोंस और उसके आदमियों को सड़क पर खदेड़ दिया और उनके पीछे पाँच सलाखोंवाला गेट भड़ाक से बंद कर दिया। और इस तरह, इससे पहले कि वे समझ पाते कि यह क्या हो गया, बगावत की विजय का बिगुल बज चुका था। जोंस खदेड़ा जा चुका था। मैनर फार्म अब उनका था।

पहले कुछ पल तो पशुओं को अपने सौभाग्य पर विश्वास ही नहीं हुआ। उन्होंने पहला काम यह किया कि एक झुंड बना कर यह देखने के लिए बाड़े की चहारदीवारी का चक्कर लगाया कि कहीं कोई आदमी तो इस पर नहीं छुपा बैठा है। इसके बाद वे दौड़ते हुए बाड़े की इमारतों की तरफ आए ताकि वहाँ से जोंस के क्रूर शासन की चीजों का आखिरी नामो-निशान ही मिटा दें। अस्तबलों के सिरे पर बना साज-सामान का कमरा तोड़ कर खोल दिया गया। लगामें, नकेलें, कुत्तों की जंजीरें, वे डरावने चाकू-छुरियाँ जिनसे मिस्टर जोंस सूअरों और मेमनों को बधिया किया करता था, इन सारी चीजों को कुएँ में उछाल दिया गया। लगाम की रस्सियाँ, गल-फासियाँ, घोड़ों की आँखों पर बाँधी जानेवाली पट्टियाँ, अपमानजनक तोबड़े इन सारी चीजों को आँगन में जल रही कूड़े की आग के हवाले कर दिया गया। यही हाल कोड़ों का हुआ। जब पशुओं ने कोड़ों को आग की लपटों में देखा तो सब खुशी के मारे कुलाँचें भरने लगे। स्नोबॉल ने उन रिबनों को भी आग के हवाले कर दिया जिनसे हाट-बाजार के दिनों में घोड़ों की अयालों और पूँछों को अकसर सजाया जाता था।

उसका कहना था, ‘रिबन को वस्त्रि माना जाना चाहिए, ये मनुष्य जाति की निशानियाँ हैं। सभी पशुओं को नंगा रहना चाहिए।’

जब बॉक्सर ने यह सुना तो वह लपक कर घास-फूस का बना अपना नन्हा हैट ले आया और इसे भी बाकी चीजों के साथ-साथ आग में झोंक दिया। इस हैट को लगा कर वह गर्मियों में मक्खियों से अपने कान बचाता था।

कुछ ही क्षणों में पशुओं ने वे सारी चीजें नष्ट कर दीं जो उन्हें मिस्टर जोंस की याद दिलाती थीं। नेपोलियन तब सबको ले कर भंडार घर में गया और सबको मकई का डबल राशन दिया। कुत्तों को दो-दो बिस्किट मिले। इसके बाद उन्होंने शुरू से आखिर तक लगातार सात बार ‘इंग्लैंड के पशु’ वाला गीत गाया और फिर सब सोने चले गए। आज जैसी नींद उन्हें इससे पहले कभी नहीं आई थी।

लेकिन अगली भोर वे हमेशा की तरह उठे। उन्हें अचानक अपने जीवन में घटी इस शानदार घटना की याद आई। वे सब चरागाह की तरफ लपके। चरागाह से थोड़ा-सा ही आगे एक टेकरी थी जिससे लगभग पूरे बाड़े का नजारा दिखाई देता था। सभी पशु इस टेकरी पर चढ़ गए और प्रभात वेला की साफ रोशनी में चारों तरफ निहारने लगे। हाँ, यह अब अपना है। जहाँ तक नजर जाती है, वहाँ तक सब कुछ अपना है। इस विचार से भावविभोर हो कर वे गोल-गोल घूमने लगे। आनंद और उल्लास के मारे हवा में खुद को उछालने लगे। कुलाँचे भरने लगे। ओस से भीगी जमीन पर लोटने लगे। उन्होंने गर्मी की मीठी घास को मुँह भर कर खाया।

उन्होंने काली मिट्‌टी को हवा में उछाले और उसकी मदमस्त गंध को अपने फेफड़ों में भरा। इसके बाद उन्होंने पूरे बाड़े का निरीक्षण करने की नीयत से दौरा किया और कृषि योग्य जमीन, घास के मैदान, फलोद्यान, तलैया, झुरमुट का मूक सराहना के साथ मुआयना किया। ऐसा लगता था कि इन चीजों को उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। अब भी उन्हें जैसे विश्वास नहीं हो रहा था, यह सब कुछ उनका अपना है।

इसके बाद वे पंक्तिबद्ध हो कर बाड़े की इमारतों की तरफ वापस आए और फार्म हाउस के दरवाजे पर आ कर चुपचाप खड़े हो गए। यह भी अब उनका था, लेकिन वे भीतर जाने से डर रहे थे। अलबत्ता, कुछ क्षणों के बाद स्नोबॉल और नेपोलियन ने अपने कंधों से धकेल कर दरवाजा खोल दिया और पशु इकहरी पंक्ति बना कर भीतर आ गए। वे चलते समय इतने सजग थे कि कहीं कोई चीज अस्त-व्यस्त न हो जाए। वे एक कमरे से दूसरे कमरे में पंजों के बल चलते रहे। वे फुसफुसाहट से ज्यादा ऊँची आवाज में बात करने से भी डर रहे थे। वे अविश्वसनीय विलासिता, पंखवाले गुदगुदे गद्देदार बिस्तर, दर्पण, घोड़ों के बाल से बने सोफे, ब्रुसेल्स का कालीन, ड्राइंगरूम में तिपाई पर रखी रानी विक्टोरिया की तस्वीर, इन सारी चीजों को विस्मय से निहार रहे थे। वे अभी सीढ़ियों से नीचे उतर ही रहे थे कि पता चला कि मौली गायब है। वापस जा कर उन्होंने पाया कि वह सबसे अच्छेवाले बेडरूम में ही रुकी रह गई थी। उसने मिसेज जोंस की श्रृंगार की मेज से एक नीला रिबन उठा लिया था और उसे अपने कंधे के सामने थामे खुद को शीशे में बहुत फूहड़ तरीके से निहार रही थी। दूसरे पशुओं ने उसे कड़ाई से झिड़का और बाहर चले आए। रसोई में छींके पर सूअर का कुछ सूखा माँस टँगा हुआ था। उसे बाहर ला कर जमीन में गाड़ दिया गया। रसोई के कोठे में बीयर के पीपे को बौक्सर की एड़ी की ठोकर से लुढ़का दिया गया। इसके अलावा किसी चीज को हाथ भी नहीं लगाया गया। हाथों-हाथ बहुमत से यह संकल्प ले लिया गया कि फार्म हाउस को संग्रहालय के रूप में सुरक्षित रखा जाए। सब इस बात से सहमत हो गए कि कभी भी कोई भी पशु इसमें नहीं रहेगा।

पशुओं ने नाश्ता किया। फिर स्नोबॉल और नेपोलियन ने सबको दोबारा बुलवाया। 

'साथियो,' स्नोबॉल ने कहा, 'अभी साढ़े छह बजे हैं और हमारे सामने पूरा दिन पड़ा है। आज हम सूखी घास की फसल काटना शुरू करते हैं। लेकिन इससे पहले एक और मामला है, जिसे हमें पहले सलटाना है।'

अब सूअरों ने रहस्योद्घाटन किया कि पिछले तीन महीनों के दौरान उन्होंने कूड़े के ढेर में मिली जोंस के बच्चों की अक्षर ज्ञान की एक किताब में से पढ़ना और लिखना सीख लिया है। नेपोलियन ने काले और सफेद रंग-रोगन के डिब्बे मँगवाए और सबको मुख्य सड़क की तरफ पाँच सलाखोंवाले गेट की तरफ ले चला। फिर स्नोबॉल ने (उसकी हस्तलिपि अच्छी थी) अपने पैर की दो गाँठों के बीच कूची थामी और गेट की ऊपरवाली पट्टी से मैनर फार्म पर रंग फेर कर उसे मिटा दिया और उसकी जगह पशुबाड़ा पेंट कर दिया। अब से इस बाड़े का यही नाम रखा जाना था। इसके बाद वे बाड़े की इमारतों की तरफ वापस लौटे। वहाँ स्नोबॉल और नेपोलियन ने एक सीढ़ी मँगवाई। इसे उन्होंने बड़े बखार की आखिरी दीवार के साथ सटा कर खड़ा कर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि पिछले तीन महीनों के अध्ययन से वे पशुवाद के सिद्धांतों को सात धर्मादेशों में ढाल पाने में सफल हो सके हैं। अब इन सात धर्मादेशों को दीवार पर अंकित किया जाएगा। ये धर्मादेश कभी न बदलनेवाले कानून होंगे और बाड़े के सभी पशुओं को मरते दम तक इनका पालन करना होगा। थोड़ी-सी मुश्किल के बाद (आखिर एक सूअर के लिए सीढ़ी पर संतुलन बनाए रखना आसान नहीं होता) स्नोबॉल सीढ़ी पर चढ़ गया और काम शुरू कर दिया। स्क्वीलर दो-तीन पाए नीचे खड़ा रंग का डिब्बा थामे रहा। दीवार पर बड़े-बड़े सफेद अक्षरों में धर्मादेश लिख दिए गए। इन्हें तीस गज की दूरी से भी पढ़ा जा सकता था। 

सात धर्मादेश


1- जो भी दो पैरों पर चलता है, वह शत्रु है।

2- जो भी चार पैरों पर चलता है, या जिसके पंख हैं, वह मित्र है।

3- कोई भी पशु कपड़े नही पहनेगा।

4- कोई भी पशु शराब नहीं पिएगा।

5- कोई भी पशु किसी दूसरे पशु को नहीं मारेगा।

6- कोई भी पशु बिस्तर पर नहीं सोऐगा।

7- सभी पशु बराबर हैं।


सब कुछ बिलकुल साफ-साफ लिखा गया था। सिर्फ मित्र की जगह मितर लिखा गया और एक जगह ग उलटा लिखा गया था। बाकी सब जगह वर्तनी बिलकुल ठीक थी। स्नोबॉल ने धर्मादेश ऊँची आवाज में पढ़ कर सुनाए ताकि सब जान सकें। सभी पशुओं ने पूर्ण सहमति में अपनी मुंडियाँ हिलाईं, और जो ज्यादा समझदार थे, उन्होंने तत्काल ही धर्मादेशों को कंठस्थ करना शुरू कर दिया।

'अब, साथियो,' स्नोबॉल ने रोगन-कूची एक तरफ फेंकते हुए कहा, 'सूखी घास की तरफ कूच करो। हम उसे अपनी इज्जत का सवाल मान लें कि जोंस और उसके नौकर-चाकर जितना समय लगाते हम उससे भी पहले फसल काट लेंगे।' 

तभी तीन गाएँ बड़ी जोर से रँभाईं। ऐसा लगा, वे काफी देर से बेचैनी महसूस कर रहीं थीं। उन्हें पिछले चौबीस घंटे से दुहा नहीं गया था। उनके थन फटने-फटने को थे। थोड़ी देर तक सोचने के बाद, सूअरों ने बाल्टियाँ मँगवाईं और बहुत सफलतापूर्वक गायों को दुह लिया। उनके गोड़ इस काम के लिए एकदम अनुकूल थे। जल्द ही वहाँ झागदार मलाईदार दूध से भरी पाँच बाल्टियाँ नजर आने लगीं। कई पशु उन बाल्टियों को काफी हसरत से निहार रहे थे। 'इस सारे दूध का क्या किया जाएगा?' किसी ने पूछा।

'जोंस कभी-कभी थोड़ा-सा दूध हमारी सानी में मिला दिया करता था।' मुर्गियों में से एक ने कहा।

'दूध की चिंता छोड़िए, कॉमरेड्स,' नेपोलियन चिल्लाया, वह बाल्टियों के सामने आ गया, 'इसे भी ठौर-ठिकाने लगा दिया जाएगा। फसल ज्यादा जरूरी है। कॉमरेड स्नोबॉल आपको रास्ता दिखाएँगे, मैं बस आ ही रहा हूँ। आगे बढ़ो, कॉमरेड्स सूखी घास आपका इंतजार कर रही है।' 

 और इस तरह सभी पशु सूखी घास के मैदानों की तरफ मार्च करते हुए चले। शाम को जब वे वापस आए तो उन्होंने पाया, दूध गायब था।


3

उन्होंने सूखी घास काटने के लिए खूब जम कर मेहनत की। खून-पसीना एक कर दिया। लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई। सूखी घास की फसल उनकी उम्मीदों से कहीं अधिक हुई थी।

कई बार काम बहुत मुश्किल होता। औजार आदमियों के इस्तेमाल के लिए बनाए गए थे न कि पशुओं के लिए, और उससे भी ज्यादा तकलीफ की बात यह थी कि कोई भी पशु ऐसा औजार इस्तेमाल नहीं कर पाता था, जिनमें पिछली दो टाँगों पर खड़े होने की जरूरत पड़ती। लेकिन सूअर इतने चतुर थे कि हर मुश्किल का कोई न कोई हल ढूँढ़ ही निकालते थे। जहाँ तक घोड़ों का सवाल था, वे खेतों के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थे और सच तो यह था कि निराई-कटाई में वे जोंस और उसके नौकरों से भी ज्यादा माहिर थे। सूअर असल में कोई काम नहीं करते थे, लेकिन दूसरों को काम बताते या उनका काम देखते। अपने विशिष्ट ज्ञान के होते उनके लिए यह स्वाभाविक ही था कि वे नेतृत्व सँभाल लेते। बॉक्सर और क्लोवर खुद को कटाई मशीन में लगा देते या घोड़ा गाड़ी में जोत लेते (इन दिनों चाबुक या कोड़ों की कोई जरूरत नहीं रह गई थी) और खेतों में गोल-गोल घूमते हुए मड़ाई करते। उनके पीछे-पीछे एक सूअर चलता होता जो मौके के अनुसार, 'और तेज कॉमरेड्स' या 'शाबाश! कॉमरेड्स!' की आवाजें निकालता रहता। छोटे से छोटा प्राणी भी सूखी घास काटने और बटोरने में लगा रहेगा। यहाँ तक कि मुर्गियाँ और बत्तखें भी तपती धूप में दिन-भर चल-चल कर कड़ी मेहनत करतीं और अपनी चोंच में घास के नन्हें-नन्हें तिनके लातीं और ले जातीं। जब उन्होंने फसल की कटाई का काम खत्म किया तो उन्हें जोंस और उसके नौकरों को आम तौर पर लगनेवाले वक्त से दो दिन कम लगे। इतना ही नहीं, बाड़े ने इतनी बड़ी फसल अब तक नहीं देखी थी। रत्ती भर भी बरबादी नहीं हुई थी। मुर्गियों और बत्तखों ने अपनी तेज निगाहों से आखिरी तिनका तक बीन लिया था। और किसी भी पशु ने मुट्‌ठी भर अनाज की भी चोरी नहीं की थी।

पूरी गर्मियों के दौरान बाड़े का काम घड़ी की सुइयों की तरह चलता रहा। पशु खुश थे, क्योंकि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा संभव हो सकता है। अन्न के दाने-दाने से उन्हें बेपनाह जुड़ाव महसूस हुआ। खुशी हो रही थी। अब यह सचमुच उनका खुद का अन्न था। इसे उन्होंने खुद और अपने लिए उगाया था। किसी ईर्ष्यालु मालिक ने उन्हें यह सेंत-मेंत में नहीं दिया था। दो कौड़ी के परजीवी आदमी के चले जाने के बाद उनके पास हरेक के खाने के लिए यह बहुत था। अब उनके पास फुरसत भी ज्यादा थी, हालाँकि जानवर इसके अनुभवी नहीं थे। उनके सामने कई तरह की तकलीफें आईं। उदाहरण के लिए, अगले बरस जब उन्होंने मकई की फसल काटी तो उन्हें इसकी मड़ाई पुरातन तरीके से करनी पड़ी और भूसी निकालने के लिए फूँकें मार कर काम करना पड़ा, क्योंकि बाड़े में भूसी निकालने की कोई मशीन नहीं थी। लेकिन सूअर अपनी अक्लमंदी से और बॉक्सर अपनी गजब की ताकत से काम निकाल ही लेते। बॉक्सर सबकी आँखों का तारा था। वह जोंस के वक्त में भी कठोर परिश्रमी था। लेकिन अब लगता था, उसमें तीन घोड़ों की ताकत आ गई है। ऐसे भी दिन रहे जब पूरे बाड़े का सारा काम उसके मजबूत कंधों पर आ गया हो ऐसा प्रतीत होता था। सुबह से रात तक वह खटता रहता। कभी धकेलता हुआ, कभी खींचता हुआ। वह हमेशा उसी जगह नजर आया जहाँ काम सबसे मुश्किल होता। उसने एक युवा मुर्गे से यह तय कर लिया था कि वह उसे सुबह औरों से आधा घंटा पहले जगा दिया करे। वह दिन का नियमित काम शुरू होने से पहले, जहाँ कहीं भी सबसे ज्यादा जरूरी हो, स्वेच्छा से कुछ काम कर दिया करेगा। हरेक समस्या, हरेक बाधा के लिए उसका एक ही जवाब होता, 'मैं और अधिक परिश्रम करूँगा।' इसे उसने अपने व्यक्तिगत लक्ष्य की तरह अपना लिया था। लेकिन हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार काम करता। उदाहरण के लिए, मुर्गियों और बत्तखों ने फसल के दौरान इधर-उधर बिखरे दाने बीन कर पाँच किलो वजन मकई बचाई। किसी ने चोरी नहीं की। कोई भी अपनी खुराक पर भुनभुनाया नहीं। पुरानें दिनों के झगड़े, चुगलखोरियाँ, जलना-भुनना, उस जीवन की सारी सामान्य बातें अब आम तौर पर गायब हो चुकी थीं। कोई भी काम से जी नहीं चुराता था। यह सच है कि मौली सुबह जल्दी उठने की आदी नहीं थी और इस आधार पर काम जल्दी छोड़ कर आ जाती कि उसके सुम में कोई कंकड़ फँस गया है। इसके अलावा बिल्ली का व्यवहार कुछ अजीब-सा था। जल्दी ही यह पाया गया कि जब भी कोई काम करने को होता, बिल्ली कहीं नजर न आती। वह लगातार कई घंटों के लिए गायब हो जाती, और फिर खाने के वक्त या एकदम शाम को सारा काम निपट जाने के बाद ही नजर आती, जैसे कुछ हुआ ही न हो। लेकिन वह एक से एक शानदार बहाने मारती। वह इतने प्यार से घुरघुर करती कि उसकी साफ नीयत पर अविश्वास करना संभव ही न होता। बेचारा बैंजामिन गधा, बगावत के बाद भी गधा ही रहा। वह पहले की ही तरह, जैसा वह जोंस के वक्त किया करता था, धीमे-धीमे अड़ियल तरीके से अपना काम किए जाता। न कभी काम से जी चुराना और न ही कभी अतिरिक्त काम के लिए स्वेच्छा से आगे आना। वह बगावत और उसके परिणामों के बारे में कोई राय जाहिर न करता। यह पूछ जाने पर कि क्या वह अब जोंस के चले जाने से पहले से ज्यादा खुश है, वह कहता, 'केवल गधे ही लंबे समय तक जीते हैं।' आज तक आप में से किसी ने मरा हुआ गधा नहीं देखा है, और दूसरों को उसके इस गोलमाल उत्तर से संतुष्ट रह जाना पड़ता।

रविवार के दिन कोई काम न होता। नाश्ता सामान्य दिनों की तुलना में एक घंटा देर से मिलता और नाश्ते के बाद एक उत्सव होता। यह उत्सव हर हफ्ते बिना नागा मनाया जाता। सबसे पहले झंडा फहराया जाता। स्नोबॉल को औजार-घर से मिसेज जोंस का एक पुराना, हरे रंग का मेजपोश मिल गया था। उसने उस पर एक सुम और एक सींग सफेद रंग से पेंट कर दिया था। इसे फार्म हाउस के बगीचे में हर रविवार की सुबह ध्वज डंडे पर चढ़ा कर फहराया जाता। स्नोबॉल ने स्पष्ट किया कि झंडा इसलिए हरा है क्योंकि यह इंग्लैंड के हरे-भरे खेतों का प्रतीक है, जबकि सुम और सींग पशुओं के उस भावी गणतंत्र की ओर इशारा करते हैं जब मनुष्य जाति को पूरी तरह खदेड़ दिया जाएगा। झंडा फहराने के बाद सभी पशु बड़े बखार में मार्च करते हुए जाते और आम सभा के लिए इकट्‌ठा होते। इसे बैठक कहा जाता। यहाँ अगले सप्ताह के कामों की योजना बनाई जाती। संकल्प सामने रखे जाते और उन पर बहस होती। हमेशा सूअर ही संकल्प सामने रखते। पशु वोट देना तो सीख गए थे, लेकिन अपनी तरफ से कोई संकल्प रखने की बात कभी नहीं सोच पाए। स्नोबॉल और नेपोलियन बहसों में सबसे ज्यादा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते। लेकिन यह पाया गया कि वे दोनों कभी एक-दूसरे से सहमत न होते। उनमें से कोई एक भी सुझाव रखता, दूसरा हर हालत में उसका विरोध करता। यहाँ तक कि जब यह संकल्प किया गया कि फलोद्यान के पीछे एक छोटा-सा बाड़ा उन पशुओं के आरामघर के लिए अलग रख छोड़ा जाए जो काम करने की उम्र पार कर चुके हैं, यह एक ऐसी चीज थी, जिस पर किसी को एतराज नहीं हो सकता था, लेकिन इस बात पर धुआँधार बहस हो गई कि पशुओं की प्रत्येक जाति के लिए सेवानिवृत्ति की सही उम्र क्या रखी जाए। बैठकें हमेशा ‘इंग्लैंड के पशु’ गीत के साथ समाप्त होतीं, दोपहर का समय मनोरंजन के लिए रखा जाता।

सूअरों ने साज-सामान के कमरे को अपने लिए मुख्यालय के रूप में चुन लिया था। वहाँ, शाम के वक्त वे बढ़ईगीरी, लुहारगीरी और दूसरी जरूरी कलाओं का अध्ययन उन किताबों से करते जो फार्म हाउस से उठा लाए थे। स्नोबॉल खुद को दूसरे पशुओं को संगठित करने में उलझाए रखता। इन्हें वह पशु समिति कहा करता। वह इस काम में बिना थके जुटा रहता। उसने मुर्गियों के लिए अंडा उत्पादन समिति (इसका उद्देश्य चूहों और खरगोशों को पालतू बनाना था), भेड़ों के लिए धवल ऊन आंदोलन और इस तरह की कई समितियाँ बनाईं। इसके अलावा उसने पढ़ने-लिखने की कक्षाएँ चलाईं। कुल मिला कर ये परियोजनाएँ टायँ-टायँ फिस्स हो गई। उदाहरण के लिए, जंगली जीव-जंतुओं को पालतू बनाने की कोशिश तो उसी समय ही चूँ बोल गई। वे पहले की ही तरह बर्ताव करते रहे और जब उनसे उदारता से पेश आया गया तो उन्होंने इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया। बिल्ली पुनर्शिक्षा समिति में शामिल हो गई। कुछ दिन तक तो वह इसमें बहुत उत्साहित रही। एक दिन वह छत पर बैठ गौरैयों से बात करती दिखाई दी। वे बिल्ली की पहुँच के जरा-सी बाहर थीं। वह उन्हें बता रही थी कि सभी पशु-पक्षी अब मित्र हैं और कोई भी गौरैया उसके पंजे पर आ कर बैठ सकती है, लेकिन गौरैओं ने अपनी दूरी बनाए रखी।

अलबत्ता, पढ़ने-लिखने की कक्षाएँ खूब सफल रहीं। शरद ऋतु के आते-आते बाड़े का हर पशु कुछ हद तक साक्षर हो चुका था।

सूअर तो पहले से ही धड़ल्ले से पढ़ और लिख सकते थे। कुत्तों ने काफी हद तक पढ़ना सीख लिया, लेकिन वे सात धर्मादेशों के अलावा कुछ भी पढ़ने या सीखने के लिए इच्छुक नहीं थे। मुरियल बकरी कुत्तों से थोड़ा बेहतर पढ़ लेती, और कई बार शाम के वक्त कचरे के ढेर में से मिली अखबार की कतरनों को पढ़ कर दूसरों को सुनाती। बैंजामिन सूअरों की ही तरह ही पढ़ लेता था, लेकिन उसने कभी इसके लिए दिमाग नहीं खपाया।

उसका कहना था, जहाँ तक वह जानता है, कुछ भी पढ़ने लायक नहीं है। क्लोवर ने पूरी वर्णमाला सीख ली, लेकिन वह अक्षरों को एक साथ नहीं रख पाती थी। बॉक्सर ई से आगे नहीं बढ़ पाया। वह अपने विशाल सुम से धूल में अ, आ, इ, ई उकेरता, और फिर कान खड़े करके इन अक्षरों को घूरता खड़ा रहता। कभी-कभी अपने भालकेश हिलाता, अपने दिमाग पर पूरा जोर लगा कर याद करने की कोशिश करता कि इसके बाद क्या आता है, लेकिन कभी सफल न हो पाता। कई बार तो उसने सचमुच उ, ऊ, ए, ऐ तक याद कर लिया, लेकिन जब तक इन अक्षरों को जान पाता, हमेशा यही पता चलता, वह अ, आ, इ, ई भी भूल चुका है। आखिरकार उसने तय कर लिया कि वह पहले अपने चार अक्षरों से ही संतुष्ट रहेगा। वह अपनी याददाश्त ताजा करने के लिए दिन में एक-दो बार लिख लेता। मौली ने अपने खुद के नाम के अक्षरों के अलावा कुछ भी सीखने से इनकार कर दिया। वह कुछ टहनियाँ ले कर बहुत सफाई से अपने नाम के अक्षर बनाती और फिर उन्हें फूलों से सजाती। तब वह आत्ममुग्धा-सी इसके चारों तरफ चक्कर काटती रहती।

बाकी पशुओं में कोई भी अ अक्षर से आगे नहीं पहुँच पाया। यह भी देखा गया कि भोंदू किस्म के प्राणी, जैसे भेड़ें, मुर्गियाँ और बत्तखें ये सात धर्मादेश भी कंठस्थ नहीं कर पाए थे। बहुत सोचने-विचारने के बाद स्नोबॉल ने घोषणा की कि देखा जाए तो इन सात धर्मादेशों को एक अकेले सूत्रवाक्य में पिरोया जा सकता है। इन्हें इस तरह घटाया जा सकता है, चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें खराब। उसका कहना था कि इसमें पशुवाद का आवश्यक सिद्धांत आ गया है। जो भी इसे अच्छी तरह ग्रहण कर लेगा, वह आदमियों के प्रभाव से बचा रहेगा। शुरू-शुरू में पक्षियों ने इस पर आपत्ति की, क्योंकि उन्हें यह लगा कि उनकी भी दो ही टाँगें हैं, लेकिन स्नोबॉल ने सिद्ध कर दिया कि ऐसा नहीं है।

‘कॉमरेड्स,' उसने बताया, ‘चिड़िया के पर फड़फड़ानेवाले यानी शरीर को आगे ले जानेवाले अंग हैं, न कि स्वार्थ साधने के अंग। इसलिए परों को पैर माना जाना चाहिए। आदमी की सबसे खास निशानी उसके हाथ हैं। इन्हीं के साथ वह दुनिया भर का छल-कपट करता है।’

चिड़ियों को स्नोबॉल की भारी-भरकम शब्दावली समझ नहीं आई, लेकिन उन्होंने उसकी व्याख्या स्वीकार कर ली। सभी छोटे, निरीह प्राणियों ने नए सूत्रवाक्य को रटना शुरू कर दिया। ‘चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें खराब’ को बखार की आखिरी दीवार पर, ‘सात धर्मादेश’ के ऊपर और बड़े अक्षरों में खुदवा दिया गया। एक बार उसे कंठस्थ कर लेने के बाद भेड़ों में इस सूत्रवाक्य के लिए खासा प्रेम उमड़ा। वे अकसर खेतों में लेटे-लेटे अचानक मिमियाने लगतीं - ‘चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें खराब। चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें खराब।’ इसे वे घंटों अलापती रहतीं। कभी भी उकताती नहीं थीं।

नेपोलियन को स्नोबॉल की समितियों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसका कहना था कि छोटों की पढ़ाई बड़े हो चुके प्राणियों के लिए कुछ करने की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण है। हुआ यह कि जेस्सी और ब्लूबैल, दोनों ने सूखी घास की फसल के तुरंत बाद पिल्ले जने। दोनों ने कुल मिला कर नौ तगड़े पिल्लों को जन्म दिया। उनका दूध छुड़ाए जाते ही नेपोलियन उन्हें उनकी माँओं से यह कहते हुए ले गया कि वह उनकी पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी उठाएगा। वह उन्हें उठा कर एक टाँड़ पर ले गया। इस पर साज-सामान के कमरे से एक सीढ़ी द्वारा ही चढ़ा जा सकता था। उसने उन्हें वहाँ इतने एकांत में रखा कि बाड़े के बाकी लोग जल्द ही उनके अस्तित्व के बारे में भूल गए।

दूध कहाँ गायब हो जाता है, इसके रहस्य से भी जल्दी ही परदा उठ गया। इसे रोज सूअरों की सानी में मिलाया जाता था। मौसम के शुरू के सेब अब पकने लगे थे। फलोद्यान की घास अपने आप गिरनेवाले सेबों से पटी पड़ी थी। सभी पशु यह मान कर चल रहे थे कि वास्तव में ये सेब सब में बराबर बाँट दिए जाएँगे। अलबत्ता, एक दिन एक आदेश जारी किया गया कि नीचे गिरे सेब इकट्‌ठा करके साज-सामानवाले कमरे में सूअरों के इस्तेमाल के लिए लाए जाने हैं। इस पर कुछ पशु भुनभुनाए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सभी सूअर, यहाँ तक कि स्नोबॉल और नेपोलियन भी, इस मुद्दे पर पूरी तरह सहमत थे। स्क्वीलर को दूसरों के सामने आवश्यक व्याख्या करने की दृष्टि से भेजा गया।

‘कॉमरेड्स’, वह चिल्लाया, ‘मेरा खयाल है आप कल्पना नहीं कर सकते कि हम सूअर लोग यह सब स्वार्थ और सुविधा की भावना से कह रहे हैं। हममें से कई को तो दरअसल दूध और सेब पसंद ही नहीं हैं। मैं खुद इन्हें नापसंद करता हूँ। इन चीजों को लेने के पीछे हमारा उद्देश्य सिर्फ यही है कि हम अपनी सेहत बनाए रख सकें। दूध और सेवों में सूअरों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी माने जानेवाले सभी तत्व मौजूद हैं। (इस बात को विज्ञान ने सिद्ध किया  है, कॉमरेड) हम सूअर लोग दिमाग से काम करनेवाले जीव हैं। इस पूरे बाड़े की व्यवस्था और संगठन हम पर निर्भर करता है। हम दिन-रात आप लोगों के लिए सिर खपाते हैं। क्या आप जानते हैं कि यदि हम सूअर लोग अपने कर्तव्य में असफल हो जाएँ तो क्या गजब हो जाएगा! जोंस वापस आ जाएगा। हाँ, जोंस वापस आ जाएगा। यह तय है, कॉमरेड्स, स्क्वीलर, बिलकुल चिरौरी करता हुआ चिल्लाया। वह दाएँ-बाएँ फुदकने लगा। उसकी पूँछ तेजी से हिलने लगी। निश्चित ही आप में से कोई भी नहीं चाहेगा कि जोंस वापस आए?’

अब अगर कोई बात थी जिस पर पशुओं में पूरी सहमति थी तो यही थी कि कोई भी जोंस की वापसी नहीं चाहता था। उन्हें पूरी बात इस आलोक में समझाई गई, तो उनके पास कहने को कुछ भी नहीं बचा। सूअरों को अच्छी सेहत में रहने की महत्ता एकदम स्पष्ट हो चुकी थी। इसलिए यही तय हुआ कि और बहस किए बिना दूध और नीचे गिरे हुए सेब (और पक जाने पर सेबों की मुख्य फसल भी) सिर्फ सूअरों के लिए आरक्षित रखे जाए।


4

गर्मियों के बीतते-बीतते बाड़े में हुई घटना का समाचार देश के आधे भाग तक फैल चुका था। हर दिन स्नोबॉल और नेपोलियन कबूतरों के झुंडो को उड़ान पर भेजते। उन्हें यह हिदायत थी कि वे पास-पड़ोस के बाड़ों में पशुओं से मिलें-जुलें और उन्हें बगावत की कहानी सुनाएँ। उन्हें ‘इंग्लैंड के पशु’ की धुन सिखाएँ।

मिस्टर जोंस अपना अधिकतर समय विलिंगडन में ‘रेड लायन की मधुशाला’ में बैठे हुए गुजारता। उसे जो भी श्रोता मिलता उसी के सामने वह दुखड़ा रोने लगता कि किस तरह कुछ निकम्मे पशुओं के झुंड ने उसे उसकी संपत्ति से बेदखल कर दिया है। उसके साथ भारी अन्याय हुआ है। दूसरे किसान शुरू-शुरू में उससे सैद्धांतिक रूप में सहानुभूति रखते रहे, लेकिन मदद के लिए आगे नहीं आए। उनमें से प्रत्येक मन-ही-मन लड्डू फोड़ रहा था कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जोंस के दुर्भाग्य को अपने सौभाग्य में बदल डालें। सौभाग्य से पशु बाड़े के दोनों तरफ के बाड़ों के मालिकों में कभी भी पटती नहीं थी। इनमें से एक बाड़े का नाम फॉक्सवुड था। यह लंबा-चौड़ा, उपेक्षित, पुराने टाइप का फार्म था। जहाँ-तहाँ झाड़-खंखार उगे हुए थे। चरागाहों में कुछ उगता नहीं था और बाड़ें दयनीय हालत में थीं। इस बाड़े के मालिक का नाम विलकिंगटन था। वह आराम-पसंद भलमानस किसान था। अपना ज्यादातर वक्त मौसम के हिसाब से मछली मारने या शिकार करने में गुजारता था। दूसरा बाड़ा पिंचफील्ड कहलाता था। वह बाड़ा छोटा और साफ-सुथरा था। फ्रेडरिक नाम का इसका मालिक कठोर और धूर्त आदमी था। हमेशा मुकदमेबाजी में उलझा रहता। उसके बारे में मशहूर था कि वह मुश्किल-से-मुश्किल सौदे पटा लेता है। दोनों एक-दूसरे को फूटी-आँख नहीं सुहाते थे। आपस में इतना अधिक चिढ़ते थे कि बेशक अपने ही हित में हो, किसी समझौते पर पहुँच पाना उनके लिए मुश्किल था।

इसके बावजूद दोनों मैनर फार्म में हुई बगावत से डरे हुए थे। उन्हें चिंता लगी हुई थी कहीं उनके पशु भी इसके बारे में ज्यादा कुछ न जान लें। शुरू में तो उन्होंने इस विचार को ही हँसी में उड़ाने की कोशिश की कि पशु अपने आप बाड़े कैसे चला सकते हैं। उनका कहना था कि पूरा मामला ही पखवाड़े भर में निपट जाएगा। उन्होंने यह खबर उड़ाई कि मैनर फार्म में (वे इसे मैनर फार्म कहने पर ही जोर देते रहे, वे पशुबाड़ा या एनिमल फार्म नाम को कैसे बर्दाश्त करते) दरअसल पशु आपस में ही लड़ मर रहे हैं। वे बहुत तेजी से भुखमरी की हालत में आ गए हैं। जब वक्त गुजरा और पाया गया कि पशु भूख से नहीं मरे हैं, तो फ्रेडरिक और विलकिंगटन ने अपना राग बदल दिया और अब पशु बाड़े में पनप रही भयानक चरित्रहीनता और दुष्टता की बात करने लगे। उन्होंने खबर उड़ाई कि वहाँ जानवर आपस में एक-दूसरे को मार कर खा रहे हैं, लाल-गर्म सलाखों से एक-दूसरे को दाग रहे हैं, और उनकी मादाएँ ‘कॉमन’ हैं। सब उनका मिल-जुल कर उपभोग कर रहे हैं। फ्रेडरिक और विलकिंगटन का कहना था कि प्रकृति के नियम के खिलाफ बगावत करने का यही नतीजा सामने आया है।

अलबत्ता, इन कहानियों पर कभी भी पूरी तरह विश्वास नहीं किया गया। एक अद्भुत बाड़ा है, जहाँ से आदमियों को खदेड़ कर बाहर निकाल दिया गया है, और पशु अपनी सारी व्यवस्थाएँ खुद कर रहे हैं, इसकी अफवाहें अस्पष्ट और विकृत रूप से प्रचारित होती रहीं। पूरे साल तक बगावत की लहर देश के दूर-दराज के इलाकों में बहती रही। साँड़ जिन्हें हमेशा से विनम्र समझा जाता था, अचानक बिगड़ैल हो गए। भेड़ों ने बाड़े तोड़ डाले और घास की फसल खोद डाली। गायों ने लात मार कर बाल्टियाँ उलट दीं। शिकार पर जाते घोड़ों ने अपने सवारों की बात मानने से ही इनकार कर दिया और उल्टे उन्हें ही उछाल कर परे फेंक दिया। सबसे बड़ी बात यह हुई कि ‘इंग्लैंड के पशु’ की धुन और यहाँ तक कि गीत के बोल भी हर जगह सबकी जबान पर चढ़े हुए थे। ये सब अजब की गति से चारों तरफ पहुँचे थे। जब मनुष्य लोग इस गीत को सुनते तो वे अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाते थे। हालाँकि बाहर से यही जतलाते कि यह सब बकवास है। वे कहते कि यह बात वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर पशु कैसे इस घृणित तुकबंदी को गाने की जुर्रत कर रहे हैं। यदि कोई पशु इसे गाता पाया जाता तो उसे तुरंत कोड़ों से पीट कर धुन दिया जाता। इसके बावजूद गीत दबाए नहीं दब रहा था। कस्तूरा पक्षी झाड़ियों में छुप कर इसे कूकते, कबूतरों ने इसे चिराबेल पेड़ों पर गुटर-गूँ करके गाया। यह लुहार के यहाँ शोरगुल में जा मिला और गिरजाघर की घंटियों की गूँज का हिस्सा बन गया। और जब आदमियों ने इसे सुना तो थर्रा कर रह गए। इसमें उन्हें अपनी कयामत की भविष्यवाणी सुनाई दे रही थी।

अक्टूबर के शुरू में, जब मकई की फसल काट कर खलिहान में पहुँचाई जा चुकी थी और उसमें से कुछ के दाने भी निकाले जा चुके थे, कबूतरों का एक झुंड हवा में पंख फड़फड़ाते हुए आया। यह झुंड पशु बाड़े में बहुत अधिक उत्तेजना में पहुँचा। जोंस और उसके सभी नौकर-चाकर, फॉक्सवुड और पिंचफील्ड के छह आदमियों के साथ पाँच सलाखोंवाले गेट तक आ पहुँचे थे और बाड़े की तरफ आनेवाली कच्ची सड़क की तरफ बढ़ रहे थे। जोंस के सिवाय वे सब के सब हाथों में लाठियाँ लिए हुए थे। जोंस हाथों में बंदूक थामे आगे-आगे चला आ रहा था। इसमें कोई शक नहीं था कि वे बाड़े पर फिर से कब्जा करने की नीयत से हमला करने आए थे। 

इसकी आशंका बहुत पहले से की जा रही थी। सब तैयारियाँ पूरी कर ली गई थीं। स्नोबॉल, जिसने फार्म हाउस में पड़ी एक पुरानी किताब में से जूलियस सीजर की मुहिमों का अध्ययन कर रखा था, इस समय सुरक्षात्मक हमले का इंचार्ज था। उसने फटाफट आदेश दिए और दो ही मिनटों में सभी पशु अपनी-अपनी जगह पर थे।

जैसे ही आदमी लोग फार्म हाउस के पास पहुँचे, स्नोबॉल ने पहला हमला बोल दिया। सभी कबूतर, जिनकी संख्या पैंतीस थी, आदमियों के सिरों के ऊपर उड़ानें भरने लगी और हवा में से उनके सिरों पर बीट करने लगी। आदमी जब तक इनसे निपटते, झाड़ियों के पीछे छुपे बैठे हंसों ने अचानक हमला कर दिया और उनकी पिंडलियों पर चोंचें मारने लगी। अलबत्ता, यह हल्की किस्म की मुठभेड़वाली झड़प थी, जिसका मकसद अव्यवस्था फैलाना था। आदमियों ने आसानी से हंसों को लाठियों से दूर हाँक दिया। स्नोबॉल ने तब दूसरी पंक्ति का हमला बोला। मुरियल, बैंजामिन और सभी भेड़ें तथा इन सबके आगे स्नोबॉल खुद आगे की तरफ तेजी से बढ़े। उन्होंने चारों तरफ से आदमियों को धकियाया और टक्करें मारीं, तब तक बैंजामिन घूमा और अपने छोटे-छोटे खुरों से उन पर दुलत्तियाँ झाड़ने लगे। लेकिन एक बार फिर आदमी अपनी लाठियों से और गुलमेखों जड़े जूतों से भारी पड़ने लगे। तभी स्नोबॉल की चीत्कार सुन कर, जो मैदान छोड़ने का संकेत था, सभी जानवर पीछे मुड़े और दरवाजे में से अहाते की ओर भाग गए।

आदमियों ने विजय का सिंहनाद किया। उन्होंने देखा कि उनकी कल्पना के अनुरूप, उनके दुश्मनों के छक्के छूट गए थे। वे उनके पीछे अफरा-तफरी में भागे और यही स्नोबॉल चाहता था। जैसे ही वे अहाते के भीतर पहुँचे, तीनों घोड़े, तीनों गाएँ और बाकी सूअर, जो तबेले में घात लगा कर छुपे बैठे थे, अचानक आदमियों के पीछे से आए और उन्हें घेर लिया। तब स्नोबॉल ने हमला बोलने का इशारा किया। वह खुद जोंस की तरफ लपका। जोंस ने उसे देखा, अपनी बंदूक उठाई और फायर कर दिया। गोलियाँ स्नोबॉल की पीठ को खरोंचती, खूनी लकीरें बनाती हुई निकल गईं, और एक भेड़ उसकी जद में आ कर मर गई। एक पल के लिए भी रुके बिना स्नोबॉल अपने पूरे वजन के साथ जोंस की टाँगों से जा भिड़ा। जोंस गोबर की एक ढेरी पर गिर पड़ा। बंदूक उसके हाथों से छिटक गई, लेकिन सबसे ज्यादा थर्रानेवाला दृश्य बॉक्सर का था। वह अपनी पिछली दो टाँगों पर खड़ा लोहे की नालें जड़े अपने विशाल सुमों से साँड़ की तरह वार कर रहा था। उसका पहला ही आघात फोक्सवुड की घुड़साल में काम करनेवाले छोकरे के सिर पर लगा और वह कीचड़ में निर्जीव हो कर गिर पड़ा। यह देखते ही, कई आदमियों ने अपनी लाठियाँ छोड़ दीं और भागने की कोशिश करने लगे। उनमें भगदड़ मच गई और अगले ही पल सब पशु मिल कर उन्हें अहातों में चारों तरफ दौड़ाने लगे। उन्हें सींग भोंके गए, दुलत्तियाँ मारी गई, काटा गया और उन्हें पैरों तले रौंदा गया। बाड़े में कोई भी ऐसा पशु नहीं था जिसने अपने तरीके से उनसे बदला न चुकाया हो। यहाँ तक कि बिल्ली भी अचानक एक छत से एक ग्वाले के कंधे पर कूदी और अपने पंजे उसकी गर्दन में गड़ा दिए। वह ग्वाला भयंकर रूप से चीखा। एक पल के लिए जब बाहर जाने का रास्ता साफ दिखा तो आदमी सर पर पाँव रख कर अहाते से भागे और भागते-भागते बड़ी सड़क तक जा पहुँचे। और इस तरह अपने हमले के पाँच मिनट के भीतर वे उसी तरह शर्मनाक तरीके से मैदान छोड़ते नजर आए। उनके पीछे हंसों का झुंड फुफकारता और उनकी पिंडलियों पर चोंचे मारता दौड़ रहा था।

एक आदमी को छोड़ कर सब वापस जा चुके थे। पीछे अहाते में बॉक्सर अपने सुमों पर टाप रहा था। वह कीचड़ में औंधे पड़े घुड़सालवाले छोकरे को सीधा करने की कोशिश कर रहा था। लड़का बिलकुल हिला-डुला नहीं।

‘यह मर चुका है।’ बॉक्सर ने दुखी होते हुए कहा। ‘ऐसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। मैं भूल गया था कि मैंने नालें लगा रखी हैं। कौन विश्वास करेगा कि मैंने यह जानबूझ कर नहीं किया है?’

‘भावुक होने की जरूरत नहीं, कॉमरेड!’ स्नोबॉल चिल्लाया। उसके जख्मों से अभी भी खून रिस रहा था। ‘युद्ध-युद्ध ही होता है। अच्छा आदमी केवल वही है जो मर चुका है।’

‘किसी की, यहाँ तक मनुष्य की भी, जान लेने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी।’

बॉक्सर ने अपनी बात दोहराई।

उसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं।

‘मौली कहाँ है?’ किसी ने आश्चर्य व्यक्त किया।

मौली दरअसल गायब थी। एक पल के लिए तो संकट की स्थिति आ गई। यह भय व्याप्त गया कि कहीं आदमियों ने उसे कोई नुकसान न पहुँचाया हो, या उसे अपने साथ न ले गए हों। लेकिन आखिर में वह अपने थान में छुपी हुई पाई गई। उसने नाद में घास के बीच अपना मुँह छुपा रखा था। जैसे ही बंदूक की गोली चली थी, वह भाग कर यहाँ आ गई थी। और जब सब उसे खोजने के बाद वापस आए, तो पाया गया कि घुड़सालवाला छोकरा, दरअसल केवल सन्न हुआ था। होश आते ही फूट लिया।

अब पशु चरम उत्तेजना में फिर से जमा हुए। हर कोई दूसरों से ऊँची आवाज में, लड़ाई में अपनी खुद की बहादुरी के किस्से बखान करने लगा। तत्काल ही विजय के उपलक्ष्य में बिना किसी तैयारी के एक उत्सव मना लिया गया। ध्वजारोहण किया गया और कई बार ‘इंग्लैंड के पशु’ गीत गाया गया। तब मारी गई भेड़ का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उसकी समाधि पर कँटीली घास का एक पौधा लगाया गया। समाधि के पास ही स्नोबॉल ने संक्षिप्त भाषण दिया जिसमें उसने इस बात पर जोर दिया कि जरूरत पड़ने पर सभी पशु अपने बाड़े के लिए मरने के लिए तैयार रहें।

पशुओं ने एक सैन्य अलंकरण ‘पशु वीर, उत्तम कोटि’ शुरू करने का निर्णय बहुमत से ले लिया और वहीं और तभी ये अलंकरण स्नोबॉल और बॉक्सर को प्रदान कर दिए गए। इसमें एक पीतल का पदक था। (ये घोड़ों के पुराने पदक थे जो साज-सामान के कमरे में मिल गए थे) इसे रविवार और छुट्टी के दिन धारण किया जाना था। एक और अलंकरण ‘पशु वीर, मध्यम कोटि’ भी बनाया गया जो मरणोपरांत मृतक भेड़ को प्रदान किया गया। 

इस बात पर बहुत चर्चा हुई कि आखिर इस लड़ाई को नाम क्या दिया जाए? आखिर में इसे ‘तबेले की लड़ाई’ नाम दिया गया, क्योंकि यही वह जगह थी, जहाँ से घात लगा कर हमला किया गया था। मिस्टर जोंस की बंदूक कीचड़ में पड़ी मिल गई थी। यह भी पता चला कि फार्म हाउस में गोलियों का भंडार रखा है। यह फैसला किया गया कि इस बंदूक को झंडे के चबूतरे के पास, अस्त्र-शस्त्र की तरह सजा कर रखा जाए। इसे साल में दो बार चलाया जाए। एक बार 12 अक्टूबर को तबेले की लड़ाई की वर्षगाँठ पर और दूसरी बार 24 जून को अर्थात बगावत की वर्षगाँठ पर।


5

सर्दियों के नजदीक आने के साथ-साथ मौली और अधिक उत्पाती होती चली गई। वह रोज सुबह काम के लिए देर से पहुँचती। वह बहाना लगाती कि वह देर तक सोती रह गई। वह जानी-अनजानी पीड़ाओं की शिकायत करती, हालाँकि उसकी खुराक अच्छी-खासी थी। वह किसी न किसी बहाने से काम से जी चुराती, वहाँ से भागती और पीने के पानीवाले ताल पर चली जाती। वहाँ वह खड़ी हो कर फूहड़ों की तरह अपनी परछाई निहारती रहती। लेकिन इससे अधिक गंभीर किस्म की अफवाहें भी उसके बारे में फैली हुई थीं। एक दिन जैसे ही मौली मस्ती में टहलते हुए, अपनी लंबी पूँछ मटकाते हुए और सूखी घास का डंठल चबाते हुए अहाते में घुसी तो क्लोवर उसके साथ हो ली।

‘मौली,' उसने कहा, ‘मुझे तुमसे एक बहुत ही गंभीर बात करनी है। आज मैंने तुम्हें पशु बाड़े को फॉक्सवुड से अलग करनेवाली झाड़ी के पार झाँकते हुए देखा। मिस्टर विलकिंगटन का एक आदमी झाड़ी की उस तरफ खड़ा हुआ था। और मैं काफी दूर थी, लेकिन मुझे पक्का यकीन है कि मैंने देखा वह तुमसे बात कर रहा था और तुम उसे अपनी नाक सहलाने दे रही थी। इसका क्या मतलब है, मौली?’

‘नहीं, नहीं, उसने ऐसा नहीं किया। मैं नहीं थी। यह सच नहीं है।’ मौली जोर से बोली। वह इठलाने और जमीन खोदने लगी।

‘मौली, मेरी आँखों में झाँक कर देखो। क्या तुम मुझे वचन दे सकती हो कि वह तुम्हारी नाक नहीं सहला रहा था?’

‘यह सच नहीं है।’ मौली ने अपने शब्द दोहराए, लेकिन वह क्लोवर से आँखें नहीं मिला सकी। अगले ही पल वह अपने पंजों पर उछली और खेत की तरफ सरपट दौड़ ली।

क्लोवर को एक तरीका सूझा। किसी से भी कुछ कहे बिना वह मौली के थान पर गई और अपने सुम से पुआल को पलट दिया। पुआल के नीचे थोड़ी-सी गुड़ की भेली और अलग-अलग रंगों के रिबनों के कई गुच्छे छुपे रखे थे।

तीन दिन बाद मौली गायब हो गई। कई हफ्तों तक तो उसका कुछ भी पता नहीं मिला। फिर कबूतरों ने बताया कि उन्होंने उसे विलिंगडन के परली तरफ देखा है। वह लाल-काले रंग में पुते एक शानदार ताँगे की छड़ में जुती हुई थी। वह ताँगा एक सार्वजनिक इमारत के बाहर खड़ा था। एक मोटा ललछौंहे मुँहवाला आदमी, जिसने चारखानेवाला जाँघिया और गेटिस यानी घुटनों तक के जूते पहने हुए थे और भठियारों जैसा लग रहा था, मौली की नाक सहलाते हुए उसे गुड़ खिला रहा था। मौली का कोट नया-नया था और उसने अपने भालकेशों पर सिंदूरी रिबन बाँध रखी थी। कबूतरों ने बताया कि लगता है, जैसे वह अब बहुत खुश है। इसके बाद किसी भी पशु ने मौली का जिक्र नहीं किया।

जनवरी का मौसम बहुत खराब आया। धरती लोहे की तरह सख्त हो गई थी। खेतों में कुछ भी नहीं किया जा सका। बड़े बखार में कई बैठकें आयोजित की गईं और सूअरों ने आनेवाले मौसम के लिए काम की रूपरेखा बनाने में खुद को व्यस्त कर लिया। यह स्वीकार कर लिया गया कि सूअर, जो घोषित रूप से दूसरे जानवरों से ज्यादा चतुर हैं, बाड़े की नीतियों के सभी सवाल तय किया करें, हालाँकि उनके फैसले बहुमत से समर्थन के बाद लागू किए जाने थे। यह व्यवस्था ठीक-ठाक चलती रहती, अगर स्नोबॉल और नेपोलियन के बीच विवाद न उठ खड़े होते। ये दोनों उस हर मुद्दे पर असहमत हो जाते, जहाँ असहमत होने की गुंजाइश होती। यदि दोनों में से एक ज्यादा एकड़ में जौ बोने का सुझाव देता तो, दूसरा जई के लिए ज्यादा एकड़ जमीन की माँग करेगा, और यदि उनमें से एक बताता कि फलाँ-फलाँ खेत बंदगोभी के लिए बिलकुल सही है, तो दूसरा घोषणा कर देता कि यह तो सिवाय कंदमूल के किसी भी दूसरी चीज के लिए बेकार है। दोनों के अपने समर्थक थे, और कई बार गरमागरम बहसें हो जातीं। बैठकों में स्नोबॉल अक्सर अपने बेहतरीन भाषणों की वजह से बहुमत से जीत जाता, लेकिन नेपोलियन बीच-बीच में अपने लिए प्रचार करा के समर्थन पा लेता। वह भेड़ों के संबंध में खास तौर पर सफल था। पिछले कुछ अरसे से भेड़ों ने ‘चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें खराब’, मौसम-बेमौसम मिमियाना शुरू कर दिया था। वे अकसर यह गा कर बैठक में व्यवधान डालतीं। यह पाया गया कि वे स्नोबॉल के भाषण के दौरान नाजुक क्षणों में ‘चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें खराब’ का राग विशेष रूप से अलापने लगतीं। स्नोबॉल को फार्म हाउस के ‘किसान’ और ‘पशुपालक’ पत्रिकाओं के कुछ पुराने अंक मिल गए थे और इसने इनका बारीकी से अध्ययन किया था। उसके पास नवीनता और सुधारों के लिए ढेरों योजनाएँ थीं। वह खेतों की नालियों, चारे को हरा बनाए रखने और कचरे आदि के बारे में विद्वत्तापूर्ण बातें करता। उसने पशुओं के लिए एक ऐसी पेचीदा योजना बनाई थी कि वे सीधे ही खेतों में हर दिन अलग-अलग जगह पर हगा करें। इससे ढुलाई की मेहनत बचेगी। नेपोलियन की खुद की कोई योजना नहीं होती थी, लेकिन वह शांति से कहता कि स्नोबॉल की योजनाओं से कुछ नहीं होन वाला। लगता, वह अपने समय की प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन कुल मिला कर उनका कोई भी विवाद इतना कटु नहीं था, जितना पवनचक्की को ले कर हुआ।

लंबे चरागाह में, फार्म की इमारतों के पास ही वहाँ एक छोटी-सी टेकरी थी, जो बाड़े की सबसे ऊँची जगह थी। जमीन का सर्वेक्षण करने के बाद स्नोबॉल ने घोषणा की कि यह पवनचक्की के लिए बिलकुल सही जगह है। पवनचक्की से डायनमो चलाया जा सकेगा और बाड़े को बिजली की सप्लाई की जा सकेगी। इससे बाड़े में रोशनी होगी, सर्दियों में वे गर्म रहेंगे। इससे एक चक्करदार आरी, चारा काटने की मशीन, चुकंदर की फाँकें काटने की मशीन और दूध दूहने की बिजली की मशीन भी चलाई जा सकेगी। पशुओं ने इससे पहले कभी इस तरह की चीजों के बारे में सुना भी नहीं था, क्योंकि बाड़ा पुरानी किस्म का था और उसमें बाबा आदम के जमाने की मशीनें थीं। वे मुँह बाए सुनते रहे और स्नोबॉल उन शानदार मशीनों की मायावी तस्वीरें खींचता रहा जो उनके काम कर दिया करेंगी और वे आराम से खेतों में चरते रहेंगे या पढ़-लिख कर या बातचीत करके अपना ज्ञान बढ़ाते रहेंगे।

कुछ ही सप्ताहों में पवनचक्की के लिए स्नोबॉल ने योजनाओं को अंतिम रूप दे दिया। इसके ज्यादातर ब्यौरे मिस्टर जोंस की तीन किताबों ‘घर में करने के हजार उपयोगी काम’, ‘हर आदमी खुद का मिस्त्री’ और ‘नौसिखुओं के लिए बिजली’ से आए। स्नोबॉल ने अपने अध्ययन के लिए सायबान चुना जो कभी अंडे सेने के बक्से रखने के काम आता था। इसका लकड़ी का समतल चिकना फर्श ड्राइंग का काम करने के लिए उपयुक्त था। वह खुद को घंटों के लिए इस कमरे में बंद कर लेता। एक पत्थर के टुकड़े की मदद से किताबें खुली रखता, अपने पैर के जोड़ों के बीच चॉक का एक टुकड़ा फँसा कर वह तेजी से आगे-पीछे चलता, एक के बाद दूसरी रेखाएँ खींचता और उत्तेजना से धीमे-धीमे प्याँ-प्याँ करता। धीरे-धीरे ये खाके क्रैंकों और दाँतेदार पहियों के जटिल जाल में बदल गए। इनसे आधे से ज्यादा फर्श भर गया। दूसरे पशुओं को ये सब बिलकुल समझ में नहीं आए, इसके बावजूद वे इनसे प्रभावित हुए। सबके सब स्नोबॉल की ड्राइंग देखने दिन में कम से कम एक बार तो जरूर आते। यहाँ तक कि मुर्गियाँ और बत्तखें भी आईं। वे इस बात का खास खयाल रखतीं कि कहीं उनके पाँव चॉक के निशानों पर न पड़ जाएँ। सिर्फ नेपोलियन अलग-थलग बना रहा। उसने शुरू से ही खुद को पवनचक्की के खिलाफ घोषित कर रखा था। अलबत्ता, एक दिन वह अचानक ही, बिना किसी उम्मीद मुआयना करने आ पहुँचा और सायबान में भारी कदमों से चहल-कदमी करता रहा। वह खाकों की सभी बारीकियों को गौर से देखता रहा और उन पर एक-दो बार घुर-घुर किया। वह उन्हें कनखियों से ध्यानपूर्वक देखता रहा, अचानक उसने अपनी टाँग उठाई, खाकों पर मूत किया और एक शब्द भी बोले बिना बाहर निकल गया। 

पवनचक्की के मामले पर पूरा बाड़ा भीतर तक बँटा हुआ था। स्नोबॉल इस बात से इनकार नहीं करता था कि इसे बनाना मुश्किल काम होगा। पत्थरों की खुदाई करनी होगी, उनकी दीवारें खड़ी की जाएँगी, पाल बनाने होंगे और इसके बाद डायनेमो और तारों की जरूरत पड़ेगी। (इन्हें कैसे हासिल किया जाना था, स्नोबॉल ने यह नहीं बताया) लेकिन उसका दावा था कि यह सब साल भर में किया जा सकता है। उसने घोषणा की कि इसके बाद इतने परिश्रम की बचत होगी, पशुओं को सप्ताह में सिर्फ तीन दिन काम करने की जरूरत पड़ेगी। दूसरी तरफ नेपोलियन ने तर्क दिया कि इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने की है, और अगर वे पवनचक्की पर वक्त बरबाद करते रहे तो सबके सब भूखे मर जाएँगे। पशुओं ने इन नारों के अंतर्गत खुद को दो धड़ों में बाँट लिया। ‘स्नोबॉल को वोट दो, सप्ताह में तीन दिन काम करो’ और ‘नेपोलियन को वोट दो और भरी हुई नाद पाओ।’ बैंजामिन ही ऐसा अकेला पशु था जो किसी भी धड़े की तरफ नहीं झुका। उसने दोनों ही बातें मानने से इनकार कर दिया कि या तो ज्यादा खाना मिला करेगा या फिर पवनचक्की से मेहनत की बचत होगी। पवनचक्की या पवनचक्की नहीं, उसका कहना था, जिंदगी हमेशा पहले की ही तरह ‘बदहाली’ में चलती रहेगी।

पवनचक्की के लिए विवादों के अलावा, बाड़े की सुरक्षा का भी प्रश्न था। यह अच्छी तरह महसूस कर लिया गया था कि मनुष्यों को तबेले की लड़ाई में हरा तो दिया गया है, वे फिर से मिस्टर जोंस को वापस लाने के लिए दूसरा और पहले से ज्यादा संकल्प के साथ हमला कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए उनके पास ठोस कारण भी थे, क्योंकि उनकी हार की खबर देश के दूर-दराज के इलाकों तक पहुँच गई थी और पड़ोसी बाड़ों के पशु अब पहले की तुलना में ज्यादा बेचैन थे। हमेशा की तरह, स्नोबॉल और नेपोलियन एक-दूसरे से असहमत थे। नेपोलियन के अनुसार पशुओं को जो सबसे जरूरी काम करना चाहिए, वह यह है कि बंदूकें आदि हासिल की जाएँ और उन्हें चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया जाए। स्नोबॉल का कहना था कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा कबूतर बाहर भेजते रहना चाहिए जो पास-पड़ोस के बाड़ों में बगावत के लिए उन्हें उकसाएँगे। एक ने यह तर्क दिया कि यदि वे खुद की रक्षा नहीं कर पाए तो तय है, उन्हें हरा दिया जाएगा और दूसरे का तर्क था कि यदि हर जगह बगावत हो जाए, तो उन्हें अपनी रक्षा करने की कोई जरूरत नहीं। पशुओं ने पहले नेपोलियन को सुना, फिर स्नोबॉल की बात सुनी। वे यह तय नहीं कर पाए कि इनमें से सही कौन है, अलबत्ता वे हमेशा खुद को उससे सहमत पाते जो उस समय उनके सामने बोल रहा होता।

आखिर वह दिन आ ही गया जब स्नोबॉल की योजनाएँ पूरी हो गई। आनेवाले रविवार को होनेवाली बैठक में यह सवाल मतदान के लिए सामने रखा जाना था कि पवनचक्की पर काम शुरू किया जाए या नहीं। जब सारे पशु बड़े बखार में जमा हो गए तो स्नोबॉल उठा और भेड़ों की मिमियाहट के द्वारा व्यवधान डालने के बावजूद पवनचक्की के निर्माण के समर्थन में अपने कारण गिनाने लगा। तब नेपोलियन जवाब देने के लिए खड़ा हुआ। उसने बहुत मजे से कहा कि पवनचक्की सिर्फ बकवास है और कोई भी इसके पक्ष में वोट न दे। वह यह कह कर बैठ गया। वह मुश्किल से तीस सैकेंड के लिए बोला होगा और उसने इस बात की शायद ही परवाह की कि उसकी बात ने क्या प्रभाव छोड़ा है। इस पर स्नोबॉल अपनी टाँगों पर उछला, और भेड़ों को, जिन्होंने फिर से मिमियाना शुरू कर दिया था, डपट कर चुप कराते हुए, पवनचक्की के पक्ष में भावपूर्ण अपील करने लगा। अब तक तो पशु अपनी-अपनी सहानुभूति में बराबर-बराबर बँटे हुए थे, लेकिन एक ही पल में स्नोबॉल की वाकपटुता ने उन्हें पिघला दिया। आवेशपूर्ण वाक्यों में उसने उस वक्त के बाड़े की तस्वीर खींची, जब पशुओं की पीठ पर से घिनौना बोझ उतार दिया जाएगा। अब उसकी कल्पनाशीलता चारा काटने की मशीनों और शलजम की फाँकें करनेवाली मशीन से आगे जा चुकी थी। उसने कहा कि बिजली थ्रैशिंग मशीनें, हल, हेंगा, लोढ़े चला सकती है और कटाई कर सकती है, फसल के गट्ठे बाँध सकती है। इसके अलावा इससे हर थान को अपनी बिजली, रोशनी, ठंडा और गर्म पानी और बिजली का हीटर मिल सकेगा। जब उसने अपनी बात खत्म की तो इस बात में कोई शक नहीं रहा कि वोट किसके पक्ष में पड़ेंगे। लेकिन अचानक तभी नेपोलियन उठा और स्नोबॉल की तरफ अजीब तरीके से कनखियों से देखते हुए उसने बहुत ऊँची आवाज में पिनपिनाहट की आवाज निकाली। ऐसी आवाज निकालते उसे किसी ने सुना नहीं था।

इस पर वहाँ बाहर की तरफ से भौंकने की भयंकर आवाजें आईं और नौ बड़े-बड़े कुत्ते, जिन्होंने पीतल जड़े कॉलर लगा रखे थे, छलाँगें मारते हुए बखार में घुस आए। वे सीधे स्नोबॉल की तरफ लपके। वह ठीक वक्त पर अपनी जगह से कूद कर हटा और इस तरह उनके झपटते पंजों से खुद को बचा सका। पल भर में ही वह दरवाजे से बाहर था, और वे उसके पीछे थे। एकदम भौचक्के और भयभीत अवाक पशु इस तरह पीछा किए जाने को देखने के लिए दरवाजे पर भीड़ लगा कर खड़े हो गए। स्नोबॉल सड़क की तरफवाले लंबे चरागाह में सरपट दौड़ा चला जा रहा था। वह इतनी तेज दौड़ रहा था जितना तेज एक सूअर ही दौड़ सकता है। लेकिन ये कुत्ते एकदम उसके पीछे लगे हुए थे। अचानक वह झपटा और यह बिलकुल लगा कि वे उसे दबोच लेंगे। वह फिर उठ खड़ा हुआ और पहले से भी ज्यादा तेज दौड़ते हुए लपका। एक बार फिर कुत्ते बिलकुल उसके पास पहुँच गए। उनमें से एक ने तो स्नोबॉल की पूँछ अपने पंजों में दबोच ही ली थी कि स्नोबॉल ने ठीक वक्त पर पूँछ को उमेठ कर बचा लिया। तब उसने थोड़ा और दम लगाया और कुछ ही इंचों के अंतराल से बाड़े के एक छेद के पार निकल गया और फिर कभी किसी ने उसे नहीं देखा।

मूक और आंतकित पशु वापस बखार में सरक आए। पल भर में कुत्ते छलाँगें लगाते लौट आए। पहले तो कोई कल्पना भी नहीं कर सका कि आखिर ये जीव आए कहाँ से, लेकिन जल्दी ही इस समस्या का समाधान हो गया। ये वही पिल्ले थे जिन्हें नेपोलियन उनकी माँओं से ले गया था और उन्हें गुपचुप बड़ा करता रहा था। हालाँकि वे अभी पूरी तरह जवान नहीं हुए थे, वे बड़े डील-डौलवाले कुत्ते थे, और देखने में भेड़ियों की तरह खतरनाक लग रहे थे। वे नेपोलियन से सटे खड़े रहे। यह देखा गया कि वे उसके आगे वैसे ही पूँछ हिला रहे थे, जैसे दूसरे कुत्ते मिस्टर जोंस के आगे पूँछ हिलाने के आदी थे।

नेपोलियन और उसके पीछे-पीछे कुत्ते फर्श के उभरे हुए हिस्से पर चढ़ गए, जहाँ पहले अपना भाषण देने के लिए कभी मेजर खड़ा हुआ था। उसने घोषणा की कि अब से रविवार सुबह की बैठकें नहीं हुआ करेंगी। उसने कहा कि ये गैर-जरूरी हैं और इनसे समय की बरबादी होती है। भविष्य में, बाड़े के कामकाज से जुड़े सभी मामले सूअरों की एक विशेष समिति द्वारा निपटाए जाएँगे। इसका अध्यक्ष वह खुद होगा। ये बैठकें गुप्त रूप से होंगी और बाद में इसके फैसले दूसरों को सुना दिए जाएँगे। पशु तब भी रविवार की सुबह झंडे को सलाम करने, ‘इंग्लैंड के पशु’ गीत गाने और सप्ताह भर के लिए अपने आदेश लेने के लिए एकत्र हुआ करेंगे, लेकिन अब और बहसें नहीं हुआ करेंगी।

स्नोबॉल के निष्कासन से उन्हें धक्का पहुँचा, उसके बाद पशु इस उद्घोषणा से और निराश हो गए। उनमें से कइयों को अगर सही तर्क मिल जाते तो उन्होंने इसका विरोध किया होता। यहाँ तक कि बॉक्सर अस्पष्ट रूप से परेशान हो गया। उसने अपने कान खड़े किए। अपने भालकेशों को कई बार हिलाया और अपने विचारों को तरबीब देने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन आखिर में वह कहने लायक कुछ भी सोच नहीं पाया। अलबत्ता, खुद सूअरों में से कुछ ज्यादा स्पष्ट थे। पहली पंक्ति में बैठे चार बलिशूकरों ने असहमति की तेज हुंकार भरी। चारों ही अपने पैरों पर कूदे और एक साथ बोलना शुरू कर दिया। लेकिन अचानक नेपोलियन के चारों तरफ बैठे कुत्तों ने गहरी, धमकी भरी गुर्राहट निकाली, जिससे सूअर खामोश हो गए और वापस बैठ गए। तभी भेड़ों ने ‘चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें खराब’ की भीषण जुगलबंदी शुरू कर दी जो पूरे पंद्रह मिनट तक चलती रही और इसने किसी भी चर्चा की संभावना को खत्म कर दिया।

बाद में स्क्वीलर को बाड़े में दूसरे पशुओं को नई व्यवस्थाओं के बारे में समझाने के लिए भेजा गया।

‘कॉमरेड्स,' उसने कहा, ‘मुझे विश्वास है कि यहाँ मौजूद प्रत्येक पशु कॉमरेड नेपोलियन के इस त्याग की सराहना करता है जो उन्होंने अपने ऊपर अतिरिक्त बोझ डाल कर किया है। यह मत समझिए, कॉमरेड्स, कि नेतृत्व से आनंद मिलता है। उसके उलटे यह एक गहरी और भारी जिम्मेदारी है। इस बात का कॉमरेड नेपोलियन से ज्यादा किसी को भी विश्वास नहीं है कि सभी पशु बराबर हैं। इस बात की उन्हें बेहद खुशी होगी कि आप लोग अपने फैसले खुद कर सकें। लेकिन कभी-कभी आप गलत फैसले भी ले सकते हैं, कॉमरेड्स, और तब हम कहाँ होंगे? मान लीजिए, आप लोगों ने स्नोबॉल की पवनचक्की के खयाली पुलाव के चक्कर में उसके पीछे चलने का फैसला कर लिया होता तो स्नोबॉल, जो अब हम जानते हैं, किसी अपराधी से कम नहीं था?’

‘वह तबेले की लड़ाई में बहादुरी से लड़ा था,' किसी ने कहा। ‘बहादुरी ही काफी नहीं है’, स्क्वीलर ने कहा, ‘निष्ठा और आज्ञापालन ज्यादा महत्वपूर्ण हैं और जहाँ तक तबेले की लड़ाई का सवाल है, मुझे विश्वास है, वह वक्त आएगा जब हमें पता चलेगा कि इसमें स्नोबॉल की भूमिका को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया है। अनुशासन, कॉमरेड्स, कड़ा अनुशासन! आज के लिए यही नारा है। एक गलत कदम और दुश्मन हमारे सिर पर होगा। यह तय है कॉमरेड्स की आप जोंस को वापस नहीं देखना चाहते?’

एक बार फिर इस तर्क का उत्तर नहीं था। निश्चित रूप से पशु जोंस को वापस नहीं चाहते थे। यदि रविवार की सुबह के समय बहसें करने से जोंस वापस आ सकता था, तो ये बहसें जरूर बंद हो जानी चाहिए। बॉक्सर ने, जिसके पास अब सोचने-समझने के लिए वक्त था, आम राय को इस तरह व्यक्त किया, ‘यदि कॉमरेड नेपोलियन ऐसा कहते हैं, तो यह सही ही होगा’ और तब से उसने एक ध्येय बना लिया, ‘नेपोलियन हमेशा ठीक कहते हैं।’ यह उसके ‘मैं और अधिक कड़ा परिश्रम करूँगा’ के व्यक्तिगत लक्ष्य के अलावा था।

इस समय तक मौसम खुल चुका था और वसंत के वक्त की जुताई शुरू हो चुकी थी। वह सायबान, जिसमें स्नोबॉल ने पवनचक्की के खाके खींचे थे, बंद कर दिया गया था और यह मान लिया गया था कि खाकों को जमीन पर से मिटा दिया गया है। हर रविवार की सुबह दस बजे सभी पशु बड़े बखार में इकट्ठे होते और सप्ताह के लिए अपने आदेश प्राप्त करते। जनाब मेजर की खोपड़ी, जिस पर से माँस झड़ चुका था, फलोद्यान से कब्र से खोद निकाली गई तथा झंडे के डंडे के नीचे एक ठूँठ पर उसे सजा दिया गया था। झंडा चढ़ाने के बाद अब पशुओं से उम्मीद की जाती थी कि वे बखार में घुसने से पहले खोपड़ी के आगे से सम्मानजनक तरीके से गुजरें। आजकल वे पहले की तरह एक साथ नहीं बैठते थे। नेपोलियन, स्क्वीलर और मिनिमस नाम के एक दूसरे सूअर के साथ उठे हुए चबूतरे पर आगे-आगे बैठता। मिनिमस गीत और कविताएँ रचने में माहिर था। पूरे नौ युवा कुत्ते उनके चारों तरफ अर्धचंद्राकार घेरे में बैठते। दूसरे सूअरों के बैठने की जगह पीछे थी। बाकी सारे पशु उनकी तरफ मुँह करके मुख्य बखार में बैठते। नेपोलियन रूखी फौजी आवाज में सप्ताह के लिए आदेश पढ़ कर सुनाता और एक बार ‘इंग्लैंड के पशु’ गीत गा लेने के बाद सब पशु तितर-बितर हो जाते।

स्नोबॉल की निकासी के बाद तीसरे रविवार पशुओं को नेपोलियन की यह उद्घोषणा सुन कर कुछ हैरानी हुई कि आखिरकार पवनचक्की बनानी ही होगी। उसने अपना विचार बदलने के पीछे कोई कारण नहीं दिया, लेकिन पशुओं को चेतावनी भर दे दी कि इस अतिरिक्त काम का मतलब बहुत अधिक मेहनत होगा, यहाँ तक कि उनका राशन कम करने की भी जरूरत पड़ सकती है। अलबत्ता, खाके और योजनाएँ एक-एक बारीकी के साथ पहले ही तैयार किए जा चुके थे। पिछले तीन सप्ताह से सूअरों की एक विशेष समिति इस पर काम कर रही थी। दूसरे कई सुधारों के साथ पवनचक्की के निर्माण में दो साल लगने की उम्मीद थी।

उस शाम स्क्वीलर ने दूसरे पशुओं को अलग से बताया कि नेपोलियन दरअसल कभी भी पवनचक्की के विरुद्ध नहीं था। इसके विपरीत, यह नेपोलियन ही था जिसने शुरू-शुरू में पवनचक्की का समर्थन किया था, और जो नक्शे स्नोबॉल ने अंडे सेनेवाले कमरे में जमीन पर बनाए थे, सच तो यह है कि वे नेपोलियन के कागजों में से चुराए गए थे। वास्तव में पवनचक्की नेपोलियन के दिमाग की ही उपज थी। किसी ने पूछा कि तब वह पवनचक्की के खिलाफ इतने कड़े विरोध में क्यों बोला था? इस पर स्क्वीलर बहुत धूर्त दिखाई दिया। ‘यह तो,' उसने कहा ‘नेपोलियन की चालाकी थी। उसने ऐसा लगने दिया कि वह पवनचक्की के खिलाफ है, ताकि स्नोबॉल से छुटकारा पाया जा सके। स्नोबॉल एक खतरनाक चरित्र था और गलत असर डाल रहा था। अब स्नोबॉल का काँटा साफ हो चुका है, इसलिए पवनचक्की की योजना बिना किसी बाधा के पूरी की जा सकती है। ‘यही,’ स्क्वीलर ने कहा, ‘रणनीति कहलाती है।’ उसने गोल-गोल घूमते हुए पूँछ ऐंठते हुए और ठहाके लगाते हुए कई बार ‘रणनीति, कॉमरेड्स, रणनीति’ दुहराया। पशुओं को पक्का पता नहीं था कि इस शब्द का मतलब क्या होता है। लेकिन एक तो स्क्वीलर इतनी विश्वसनीयता के साथ बोला और दूसरे संयोग से तीन कुत्ते उस समय वहीं मौजूद थे जो धमकी भरी आवाज में गुर्रा रहे थे, सबने कोई सवाल किए बिना उसका स्पष्टीकरण मान लिया।


6

पूरे बरस पशुओं ने गुलामों की तरह काम किया। लेकिन वे अपने काम में खुश थे। वे किसी मेहनत या त्याग से भुनभुनाए नहीं। उन्हें अच्छी तरह से पता था कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं, खुद के लिए और अपनी आनेवाली पीढ़ियों के लिए कर रहे हैं। उनकी मेहनत निठल्ले उचक्के आदमी लोगों के लिए तो नहीं ही है।

पूरे वसंत और गर्मियों के दौरान वे रोजाना दस-दस घंटे तक काम करते रहे। अगस्त में नेपोलियन ने घोषणा की कि अब से रविवार की दोपहरों को भी काम हुआ करेगा। यह काम पूरी तरह स्वैच्छिक था, लेकिन यदि कोई पशु अनुपस्थित रहता, तो उसका राशन काट कर आधा कर दिया जाता। इसके होने के बावजूद कई काम अधूरे छोड़ देना जरूरी हो जाता। फसल पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ी कम सफल रही थी, और दो खेत, जिसमें गर्मियों में कंदमूल बो दिए जाने चाहिए थे, नहीं बोए जा सके क्योंकि उन खेतों की जुताई समय रहते पूरी हो नहीं पाई थी। यह साफ-साफ नजर आ रहा था कि आनेवाली सर्दियाँ तकलीफदेह होंगी।

पवनचक्की ने अनुमान से परे की कठिनाइयाँ खड़ी कीं। बाड़े पर ही चूने के पत्थर की एक अच्छी खदान थी और नौकर-चाकरोंवाले कमरों में से रेत और सीमेंट काफी मात्रा में मिल गए। इस तरह इमारती सामान वहीं मिल गया था। लेकिन शुरू-शुरू में जिस समस्या से पशु पार नहीं पा सके, वह थी कि पत्थरों को काम लायक आकारों में किस तरह तोड़ें। इसे करने के लिए गैंती और सब्बल के सिवाय कोई तरीका नजर नहीं आ रहा था, और यही काम पशु नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि कोई भी पशु पिछली दो टाँगों पर खड़ा नहीं हो सकता था। यह तो कई हफ्तों की बेकार हुई मेहनत के बाद किसी को सही तरीका सूझा कि गुरुत्वाकर्षण के बल का प्रयोग करके देखा जाए। बड़े-बड़े शिलाखंड खदान की तली में चारों तरफ बिखरे पड़े थे। ये इतने बड़े थे कि इन्हें इसी आकार में कहीं इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। पशुओं ने इनके चारों तरफ रस्सियाँ बाँधी और तब सब गाय, घोड़ा, भेड़ कोई भी पशु, जो रस्सी थाम सकता था, यहाँ तक कि नाजुक क्षणों में कभी-कभी सूअर भी आए, मिल कर धीमी गति से ढलान से पत्थर घसीटते हुए खदान के ऊपरी सिरे तक ले जाते। वहाँ इन पत्थरों को किनारे से नीचे लुढ़का दिया जाता, ताकि नीचे गिर कर पत्थर टुकड़े-टुकड़े हो जाएँ। टूट जाने के बाद पत्थर ढोना ज्यादा आसान पड़ता। घोड़े उन्हें गाड़ियों में भर कर ले जाते, भेड़ें एक-एक पत्थर घसीटतीं, यहाँ तक कि मुरियल और बैंजामिन भी एक पुरानी छोटी गाड़ी में खुद को जोत लेते और इस तरह काम में अपना हिस्सा बँटाते। गर्मियों के ढलते-ढलते पत्थरों का अच्छा-खासा भंडार जमा हो गया था। तब सूअरों की देखरेख में इमारत बनने का काम शुरू हुआ।

लेकिन यह प्रक्रिया धीमी और हाड़तोड़ थी। कई बार तो एक अकेले शिलाखंड को घसीट कर खदान के ऊपरी सिरे तक ले जाने में पूरे दिन की थका डालनेवाली मेहनत लग जाती। कई बार ऐसा भी होता कि किनारे से ढकेले जाने पर शिलाखंड नीचे आ कर टूटता ही नहीं। बॉक्सर के बिना कुछ भी हासिल नहीं हो सकता था। उसके अकेले की ताकत बाकी सारे पशुओं की इकट्ठी ताकत के बराबर प्रतीत होती। जब शिलाखंड लुढ़कना शुरू करता और पशु उसके साथ-साथ पहाड़ी से नीचे घिसटते तो हताशा से चिल्लाना शुरू कर देते। ऐसे में हमेशा बॉक्सर ही आगे आता और रस्सी को रोकने में एड़ी-चोटी का जोर लगा देता और शिलाखंड को रोक लेता। वह दृश्य, जब वह ढलान पर एक-एक इंच के लिए जी-जान से मेहनत कर रहा हो, उसकी साँस धौंकनी की तरह चल रही हो, उसके खुरों के पोर जमीन को फोड़ डाल रहे हों और उसके मजबूत कंधे पसीने से तरबतर हों, उसके प्रति सबको सराहना से भिगो देता। क्लोवर कई बार उसे चेताती कि वह अपना खयाल रखे, खुद को इतना न थकाए, लेकिन बॉक्सर कभी भी उसकी सलाह पर कान न धरता। उसके दोनों नारे ‘मैं और अधिक परिश्रम करूँगा’ और ‘नेपोलियन हमेशा ठीक ही कहता है’, उसकी सारी समस्याओं के लिए अचूक हल प्रतीत होते। उसने मुर्गे से तय कर ली थी कि वह अब उसे सुबह आधा घंटे के बजाए पौना घंटा जल्दी जगा दिया करे। वह खाली वक्त में, हालाँकि आजकल उसके पास खाली वक्त ज्यादा बचा नहीं था, अकेला खदान में चला जाता, और टूटे पत्थरों की ढेरी इकट्ठी करता, और बिना किसी की मदद के पवनचक्की की जगह पर लुढ़काता ले जाता।

अपने काम की मुश्किलों के बावजूद पूरी गर्मियों का मौसम पशुओं के लिए इतना बुरा नहीं रहा। अगर उसके पास जोंस के दिनों की तुलना में खाने के लिए ज्यादा नहीं था तो कम भी नहीं था। सिर्फ अपने खाने-पीने की व्यवस्था करने और साथ ही पाँच फिजूलखर्च लोगों की देखभाल न करने की सुविधा इतनी बड़ी थी कि कई-कई असफलताएँ भी इसके आगे छोटी पड़तीं। कई रूपों में पशुओं के तरीके से काम करना अधिक कुशल होता और मेहनत भी बचती। उदाहरण के लिए खरपतवार निकालने जैसे काम इतनी सफाई से किए जा सकते थे, जितने आदमी के लिए असंभव ही होत। चूँकि अब कोई भी पशु चोरी नहीं करता था, इसलिए चरागाह को कृषि योग्य भूमि से अलग करने के लिए बाड़ लगाने की जरूरत ही नहीं रह गई थी जिससे बाड़ और गेट वगैरह के रख-रखाव पर लगनेवाली काफी मेहनत बच जाती। यह सब होते हुए भी जैसे-जैसे गर्मियाँ बढ़ती गईं, कई तरह की अनदेखी कमियाँ एक-एक करके सामने आने लगीं। पैराफिन का तेल, कीलें, डोरी, कुत्तों के बिस्किट, घोड़ों की नालों के लिए लोहा इन सबकी जरूरत थी। ये ऐसी चीजें थीं जिन्हें बाड़े में पैदा नहीं किया जा सकता था। बाद में बीजों और कृत्रिम खाद की, और साथ ही, अलग-अलग औजारों की और आखिर में पवनचक्की के लिए मशीनरी की जरूरत पड़नेवाली थी। कोई सोच भी नहीं पाता था कि ये चीजें आखिर कैसे जुटाई जाएँ। 

एक रविवार की सुबह, जब पशु अपने-अपने आदेश लेने के लिए जमा हुए तो नेपोलियन ने घोषणा की कि उसने एक नई नीति के बारे में फैसला किया है। अब से पशुबाड़ा पड़ोसी बाड़ों के साथ कारोबार किया करेगा। अलबत्ता इसका कोई व्यापारिक मकसद नहीं होगा, सिर्फ यही उद्देश्य रहेगा कि कुछेक तत्काल ही निहायत जरूरी चीजें हासिल की जा सकें। उसने कहा कि पवनचक्की की जरूरतों को अवश्य ही दूसरी चीजों से ऊपर रखा जाना है। इसलिए वह इसकी व्यवस्था कर रहा है कि सूखी घास का एक ढेर और इस साल की गेहूँ की फसल का कुछ हिस्सा बेचा जा सके और बाद में, यदि और धन की आवश्यकता पड़ी, तो इसे अंडों की बिक्री से जुटाया जाएगा, जिनकी विलिंगडन में हमेशा माँग बनी रहती है। नेपोलियन ने कहा कि मुर्गियों को पवनचक्की के निर्माण के लिए अपनी ओर से विशेष योगदान के रूप में इस त्याग का स्वागत करना चाहिए।

एक बार फिर पशुओं ने एक अस्पष्ट-सी बेचैनी महसूस की। आदमी लोगों के साथ कभी कोई लेन-देन न करना, कभी कारोबार न करना, कभी धन का इस्तेमाल न करना, क्या ये सब जोंस को भगाए जाने के बाद हुई पहली विजय बैठक में पारित शुरुआती संकल्पों में से नहीं थे? सभी को याद था कि इस तरह के संकल्प पारित किए गए थे या कम से कम उन्होंने सोचा कि उन्हें यह याद था। चार युवा सूअरों ने, जिन्होंने नेपोलियन द्वारा बैठकें समाप्त किए जाने का विरोध किया था, डरते-डरते अपनी आवाजें उठाईं, लेकिन उन्हें कुत्तों की भयंकर गुर्राहट से एकदम शांत कर दिया गया। तब, हमेशा की तरह, भेड़ों ने ‘चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें खराब’ का राग अलापना शुरू कर दिया और थोड़ी देर के लिए जो फूहड़पन आ गया था, उससे पार पा लिया गया। अंतत: नेपोलियन ने शांति बनाए रखने के लिए अपना पैर ऊँचा किया और बताया कि वह पहले ही सारी व्यवस्थाएँ कर चुका है। किसी भी पशु के आदमी लोगों के संपर्क में आने की कोई जरूरत नहीं है। यह साफ तौर पर बिलकुल पसंद नहीं किया जाएगा। वह सारा का सारा बोझ अपने कंधों पर उठाने की मंशा रखता है। विलिंगडन में एक वकील मिस्टर व्हिंपर रहते हैं, उन्होंने बाड़े और बाहरी दुनिया के बीच बिचौलिया बनना स्वीकार कर लिया है। वे हर सोमवार की सुबह हिदायतें लेने के लिए आया करेंगे। नेपोलियन ने 'पशुबाड़ा अमर रहे’ के, अपने घिसे पिटे-नारे के साथ अपना भाषण समाप्त किया और ‘इंग्लैंड के पशु’ गीत गाने के बाद पशुओं को दफा कर दिया गया।

बाद में स्क्वीलर ने बाड़े का एक चक्कर लगाया और पशुओं के दिमाग ठंडे कर दिए। उसने आश्वस्त किया कि कारोबार करने और धन के इस्तेमाल के खिलाफ कभी भी संकल्प पारित नहीं किया गया था और न सुझाया ही गया था। यह पूरी तरह कपोल-कल्पित बात है, शायद जिसकी जड़ें शुरू-शुरू में स्नोबॉल द्वारा प्रचारित झूठों में कहीं मिल जाएँ। कुछ पशुओं को अभी भी संदेह था, लेकिन स्क्वीलर ने उनसे धूर्तता से पूछा, ‘क्या तुम्हें पक्का यकीन है कि तुमने इस तरह का कोई सपना नहीं देखा है? कॉमरेड्स, क्या तुम्हारे पास इस तरह के संकल्प का कोई रिकार्ड है? क्या यह कहीं लिखा हुआ है? और चूँकि यह तो तयशुदा सच था कि इस तरह की कोई चीज लिखित में मौजूद नहीं थी, पशुओं को संतोष हो गया कि वे गलती पर थे।

हर सोमवार को मिस्टर व्हिंपर बाड़े में आता। वह एक चालाक दिखनेवाला, लंबे गलमुच्छोंवाला नाटा आदमी था। वह कारोबार की दृष्टि से बहुत ही मामूली किस्म का वकील था, लेकिन इतना तेज था कि उसने किसी और से पहले ही यह ताड़ लिया था कि पशुबाड़े को एक दलाल की जरूरत पड़ेगी और मिलनेवाला कमीशन अच्छा होगा। उसके आने से पशु भयातुर हो कर देखते और जहाँ तक हो सकता, उससे कतराते। यह होते हुए भी, नेपोलियन का वह दृश्य, जब वह चौपाया होते हुए भी दो पैरवाले व्हिंपर को आदेश देता, सबको गौरव से भर देता और उन्हें नई व्यवस्थाओं के प्रति कुछ हद तक मना लेता। मनुष्य जाति के साथ अब उनके संबंध पहले की तरह बिलकुल नहीं रह गए थे। फल-फूल रहे पशुबाड़े से आदमी-लोग अभी भी कम घृणा नहीं करते थे, बल्कि वे इससे पहले से भी ज्यादा घृणा करते। हर इनसान अपने मन में यह धारणा बनाए चल रहा था कि देर सबेर यह पशु बाड़ा दिवालिया हो जाएगा और पवनचक्की तो विफल ही होनी है। वे सार्वजनिक जगहों पर मिलते और एक-दूसरे के सामने रेखाचित्रों के जरिए सिद्ध करते कि पवनचक्की तो धराशायी होनी ही है, और अगर यह खड़ी भी रही तो भी काम नहीं कर पाएगी। फिर भी, अपनी इच्छा के विपरीत वे उस कुशलता के लिए एक तरह का सम्मान करने लगे थे, जिनके साथ पशु अपने कामकाज खुद सँभाल रहे थे। इसका एक प्रमाण तो यह था कि अब लोगों ने बाड़े को इसके वास्तविक नाम से पुकारना शुरू कर दिया था और अब यह दिखावा करना छोड़ दिया था कि इसका नाम मैनर फार्म था। अब उन्होंने मिस्टर जोंस की हिमायत करना भी छोड़ दिया था। जोंस ने भी अपना फार्म वापस पाने की उम्मीद छोड़ दी थी और देश के किसी दूसरे कोने में रहने चला गया था। व्हिंपर के जरिए पशुबाड़े और बाहरी दुनिया के बीच जो संपर्क था, उसके सिवाय इन दोनों के बीच कोई संपर्क नहीं था, लेकिन लगातार अफवाहें फैलती रहती थीं कि नेपोलियन या तो फॉक्सवुड के मिस्टर विलकिंगडन के साथ या पिंचवुड के मिस्टर फ्रेडरिक के साथ पक्का कारोबारी करार बस करने ही वाला है। लेकिन यह पाया गया कि दोनों के साथ करार एक साथ नहीं करेगा।

यह लगभग वही वक्त था जब सूअर अचानक फार्म हाउस में शिफ्ट कर गए और उसे अपना आवास बना लिया। फिर से पशुओं को लगा कि उन्हें याद आ रहा है कि शुरू के दिनों में इसके खिलाफ संकल्प पारित किया गया था। फिर से स्क्वीलर उन्हें समझाने-बुझाने में सफल हो गया कि ऐसी कोई बात नहीं थी। उसने बताया कि यह निहायत जरूरी था कि सूअर काम करने के लिए शांत जगह पर रहें। यह नेताजी की गरिमा के भी अधिक अनुरूप पड़ता है। (कुछ अरसे से उसने नेपोलियन को नेताजी के रूप में जिक्र करना शुरू कर दिया था) वे मामूली खोबार में रहने के बजाय एक घर में रहें। इसके बावजूद कुछ यह जान कर व्यथित हुए कि सूअरों ने न केवल रसोई में भोजन करना शुरू कर दिया है और ड्राइंग रूम को मनोरंजन कक्ष की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं, बल्कि बिस्तरों पर सोने भी लगे हैं। बॉक्सर ने इसे भी नेपोलियन हमेशा ठीक करते हैं, के साथ हमेशा की तरह उड़ा दिया, लेकिन क्लोवर को लगा, उसे याद है कि बिस्तरों के खिलाफ पक्का नियम बनाया गया था। वह बखार के आखिर की तरफ गई और वहाँ खुदे हुए सात धर्मादेशों की गुत्थी सुलझाने की कोशिश की। अलग-अलग अक्षरों से आगे कुछ भी पढ़ पाने में खुद को असमर्थ पा कर, वह मुरियल को पकड़ लाई।

 उसने मुरियल से कहा, ‘मुझे चौथा धर्मादेश पढ़ कर सुनाओ, क्या इसमें बिस्तर पर कभी न सोने के बारे में कुछ लिखा हुआ है?’

थोड़ी-सी तकलीफ के बाद मुरियल ने हिज्जे कर के पढ़ लिया। इसमें लिखा है, ‘कोई भी पशु चादरों के साथ बिस्तर पर नहीं सोएगा,’ उसने अंततः बताया।

आश्चर्य की बात थी, क्लोवर को यह याद नहीं रहा कि चौथे धर्मादेश में चादरों का जिक्र है, लेकिन अब चूँकि यह दीवार पर लिखा हुआ था, यह ऐसा ही रहा होगा। स्क्वीयर जो संयोग से उसी वक्त दो या तीन कुत्तों की अगवानी में वहाँ से गुजर रहा था, उसने सारा मामला ही सही नजरिए से साफ करके बता दिया।

‘तो आपने सुन लिया है, कामरेड्स, कि हम सूअर लोग फार्म हाउस में बिस्तरों पर सोते हैं? और आखिर क्यों न सोंएँ? आप लोग यह नहीं मान कर चल रहे होंगे कि बिस्तरों के खिलाफ कोई कायदा है? बिस्तर का मतलब तो सिर्फ सोने की जगह होता है। थान में पुआल के गट्ठर को ठीक कर बिस्तर मान लिया जाता है। कानून तो चादरों के खिलाफ था, जो कि मनुष्य का आविष्कार है। हमने फार्म हाउस के बिस्तरों से चादरें उठा दी हैं और कंबलों के बीच सोते हैं, और वे बिस्तर हैं भी काफी आरामदेह। लेकिन मैं आपको बता सकता हूँ, कॉमरेड्स, कि हम आजकल जितना दिमागी काम करते हैं, उसे देखते हुए ये हमारी जरूरत से ज्यादा आरामदेह नहीं हैं। आप हमें हमारे आराम से तो वंचित नहीं करेंगे? क्या आप ऐसा करेंगे, कॉमरेड्स? आप नहीं चाहेंगे कि हम इतना थक जाएँ कि काम ही न कर सकें? निश्चित ही आपमें से कोई भी जोंस की वापिसी नहीं देखना चाहेगा?’

पशुओं ने तत्काल ही उसे इस मुद्दे पर आश्वस्त कर दिया। इसके बाद सूअरों के फार्म हाउस में बिस्तरों पर सोने के बारे में और कुछ भी नहीं कहा गया, फिर कुछ दिन बाद यह घोषणा की गई कि अब से सूअर सुबह के वक्त दूसरे पशुओं की तुलना में एक घंटा देर से उठा करेंगे तो इसके खिलाफ भी कोई शिकायत नहीं की गई।

शरद ऋतु के आते-आते पशु थक चुके थे, फिर भी खुश थे। उन्होंने एक कठिन और तकलीफदेह बरस गुजारा था। और सूखी घास और मकई का कुछ हिस्सा बेच देने के बाद भी सर्दियों के लिए अनाज के भंडार बहुत अधिक तो नहीं थे, लेकिन पवनचक्की ने सब चीजों की भरपाई कर दी थी। अब तक यह लगभग आधी बन चुकी थी। फसल के बाद कुछ अरसे के लिए साफ-शुष्क मौसम आया तो पशुओं ने पहले की तुलना में यह सोच कर और ज्यादा मेहनत की, वे पत्थर ढोने के नीरस काम में दिन भर खटते रहे कि ऐसा करके वे दीवार को एकाध फुट और ऊपर चढ़ा लेंगे। बॉक्सर रात के वक्त भी बाहर आ जाता और शरद ऋतु की चानी में एक-दो घंटे काम करता। अपनी फुर्सत के क्षणों में पशु अधूरी बनी चक्की के आसपास चक्कर काटते। इसकी दीवारों की मजबूती और इसकी समकोण पर खड़ी लंबाई की तारीफ करते। वे खुद पर आश्चर्य करते कि वे भी ऐसी कठिन चीज खड़ी कर सकते हैं। सिर्फ बैंजामिन ही पवनचक्की को ले कर उत्साहित होने से इनकार कर देता। अलबत्ता, हमेशा की तरह अपनी गूढ़ टिप्पणी दोहराता कि गधे लंबे समय तक जीवित रहते हैं।

नवंबर आया तो तेज दक्षिणी-पश्चिमी हवाएँ चलने लगीं। इमारत का काम रोक देना पड़ा क्योंकि अब सब कुछ इतना गीला रहता था कि गारा तैयार करना मुश्किल हो जाता। आखिर ऐसी रात आई जब आँधी इतनी भयानक थी कि बाड़े की इमारतें अपनी जड़ तक हिल गई। बखार की छत से कई टाइलें उखड़ कर दूर जा गिरीं। मुर्गियाँ आतंकित हो कर तेजी से चिंचियाती नींद से उठ बैठीं। उन सबने एक कहीं दूर बंदूक की गोली छूटने का सपना देख लिया था। सुबह अपने-अपने थानों से बाहर आ कर उन्होंने पाया कि झंडे का डंडा उखड़ कर नीचे आ गिरा है। फलोद्यान के द्वार पर लगा हिमरोई का पेड़ गाजर-मूली की तरह उखड़ा पड़ा है। उन्होंने अभी यह देखा ही था कि सब पशुओं की घुटी-सी चीख निकल गई। उनकी आँखों ने एक भयानक नजारा देखा। पवनचक्की धराशायी हो चुकी थी।

सब एक साथ उस जगह की तरफ लपके, नेपोलियन, जो शायद ही चहलकदमी से ज्यादा तेज चलता था, सबसे आगे दौड़ा। हाँ, यहाँ पड़ा है मिट्टी में मिला हुआ उनके सारे संघर्षों का फल। वे पत्थर जिन्हें उन्होंने तराशा था, इतनी मेहनत से ढो कर लाए थे, अब चारों तरफ बिखरे पड़े थे। कुछ भी कहने में असमर्थ, पहले तो वे गिरे पड़े पत्थरों के ढेर को अफसोस के साथ घूरते रहे। नेपोलियन बिना कुछ बोले आगे-पीछे होता रहा। बीच-बीच में वह जमीन सूँघने लगता। उसकी पूँछ एकदम कड़ी हो गई थी और तेजी से दाएँ-बाएँ फड़क रही थी। यह इस बात का संकेत था कि वह गहरे तनाव से गुजर रहा है।

उसने धीमे से कहा, ‘कॉमरेड्स, क्या आप जानते हैं कि इसके लिए कौन जिम्मेवार है? क्या आप उस दुश्मन को जानते हैं जो रात में आया और हमारी पवनचक्की को तहस-नहस कर गया?' 

‘स्नोबॉल’ वह अचानक तूफानी आवाज में गरजा, ‘यह काम स्नोबॉल ने किया है। एक निरे बैर भाव से, यह सोच कर कि वह हमारी योजनाओं को धूल में मिला देगा और इस तरह अपने बदनामी भरे निष्कासन के लिए बदला चुका लेगा, वह विश्वासघाती रात के अँधेरे में घुस आया और हमारी बरस-भर की मेहनत पर पानी फेर गया। कॉमरेड्स, मैं अभी और यहीं स्नोबॉल को मृत्युदंड की सजा देता हूँ। जो भी उसे यह सजा देगा उसे ‘‘पशु वीर मध्यम कोटि’’ और ‘‘आधी पेटी सेब’’ मिलेंगे। उसे जिंदा पकड़ कर लानेवाले को पूरी पेटी सेब मिलेगी।’

पशु यह जान कर अपनी कल्पना से भी परे हतप्रभ थे कि स्नोबॉल भी इस तरह की किसी हरकत के लिए दोषी हो सकता है। चारों तरफ रोष की चिल्लाहट होने लगी। हर कोई स्नोबॉल को, अगर वह कभी वापस आता है, पकड़ने की तरकीबें सोचने लगा। लगभग तभी टेकरी से थोड़ी ही दूर घास में एक सूअर के पैरों के निशान मिल गए। वे सिर्फ कुछ गज तक ही देखे जा सके। लेकिन ऐसा लगता था कि वे बाड़े में छेद की तरफ जाते हैं। नेपोलियन ने गहरी साँस ले कर उन्हें सूँघा और घोषित कर दिया कि ये निशान स्नोबॉल के ही हैं। उसने अपनी यह राय भी जाहिर कर दी कि स्नोबॉल शायद फॉक्सवुड फार्म की दिशा से आया था।

‘अब और देर नहीं, कॉमरेड्स,’ पैरों के निशानों की पहचान कर लेने के बाद नेपोलियन ने कहा, ‘हमें काम करना है। हम आज सुबह ही पवनचक्की को दोबारा बनाना शुरू कर दें। इसे हम पूरी सर्दियों, बरसात या गर्मियों में बनाते रहेंगे। हम उस विश्वासघाती को यह पाठ पढ़ा कर ही रहेंगे कि वह हमारी मेहनत पर इतनी आसानी से पानी नहीं फेर सकता। याद रखो, कॉमरेड्स, हमारी योजनाओं में कोई भी रद्दोबदल नहीं होना चाहिए। वे आखिरी दिन तक पूरी की जाएँगी। आगे बढ़ो कॉमरेड्स, पवनचक्की अमर रहे। पशुबाड़ा अमर रहे।’


7

कड़ाके की सर्दियाँ पड़ीं। तूफानी मौसम अपने साथ ओले और हिमपात ले कर आया। उसके बाद जो कड़ा पाला पड़ा, वह फरवरी तक बना रहा। पशु पवनचक्की को फिर से बनाने में अपनी तरफ से जी जान से जुटे रहे। उन्हें अच्छी तरह पता था कि बाहरी दुनिया की आँखें उन पर लगी हुई हैं और अगर चक्की वक्त पर पूरी न हुई तो डाह से भरे लोग खुशियों के मारे झूम उठेंगे।

जलन के मारे, आदमी-लोगों ने जतलाया कि उन्हें विश्वास नहीं है कि स्नोबॉल ने पवनचक्की को नष्ट किया है। उनका कहना था कि यह तो दीवारें इतनी पतली होने के कारण भरभरा कर गिर पड़ीं। पशु जानते थे कि ऐसा नहीं है, इसके बावजूद यह तय किया गया कि पहले की अठारह इंच मोटी दीवारों की तुलना में इस बार दीवारों की मोटाई तीन फुट रखी जाए, जिसका मतलब था पत्थरों को और अधिक मात्रा में इकट्ठा करना। अरसे तक खदान बर्फ की परतों से भरी रही और कुछ भी नहीं किया जा सका। उसके बाद आए सूखे पालेवाले मौसम में थोड़ी-बहुत तरक्की हुई, लेकिन यह बहुत ही निर्मम काम था, और पशु इसको ले कर पहले की तरह खुद को उतना आश्वस्त नहीं पा रहे थे। उन्हें हमेशा जाड़ा लगता रहता और वे अक्सर भूखे भी होते। सिर्फ बॉक्सर और क्लोवर ने कभी हिम्मत नहीं हारी। स्क्वीलर काम के सुख और श्रम की गरिमा के बारे में शानदार भाषणबाजी करता, लेकिन दूसरे पशु बॉक्सर की ताकत और उसकी कभी न थकनेवाली, ‘मैं और अधिक परिश्रम करूँगा’ की पुकार से ज्यादा प्रेरणा पाते।

जनवरी में अनाज की तंगी हो गई। मकई के राशन में कड़ी कमी कर दी गई। यह घोषणा की गई कि इसके बदले आलू की अतिरिक्त खुराक दी जाएगी। तब यह पाया गया कि आलू की फसल का बहुत बड़ा हिस्सा, अच्छी तरह से ढक कर न रखने के कारण, ढेरियों में ही पाले की वजह से सड़ गया है। आलू एकदम नरम और बदरंग हो गए थे। बहुत कम ही आलू खाने लायक रह गए थे। लगातार कई-कई दिन तक पशुओं को चोकर और चुंकदर के अलावा खाने को कुछ भी नहीं मिला। भुखमरी के लक्षण उनके चेहरों पर नजर आने लगे थे।

इस खबर को बाहरी दुनिया से छुपाए रखना निहायत जरूरी हो गया। पवनचक्की के ढहने से निडर हो कर आदमी लोग बाड़े के बारे में अब नए-नए झूठ गढ़ रहे थे। एक बार फिर यह खबर प्रचारित की जा रही थी कि सभी पशु भुखमरी और बीमारियों से जूझ रहे हैं और वे लगातार आपस में लड़ रहे हैं। वे एक-दूसरे को मार कर खा रहे हैं। बाल-हत्याएँ कर रहे हैं। नेपोलियन अच्छी तरह जानता था कि अगर खाद्यान्न की स्थिति की सच्ची खबरें पता चल जाएँ तो बहुत खराब परिणाम हो सकते हैं। उसने विपरीत असर फैलाने के लिए मिस्टर व्हिंपर का इस्तेमाल करने का फैसला किया। अब तक तो पशुओं का व्हिंपर के साथ उसकी साप्ताहिक मुलाकातों के दौरान नहीं या नहीं के बराबर ही संपर्क था। अब अलबत्ता कुछेक चुने हुए पशुओं, खास कर भेड़ों को यह हिदायत दी गई कि वे उसे सुनाने के लिए गाहे-बगाहे यह जिक्र करती रहें कि उनका राशन बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा, नेपोलियन ने यह आदेश दिया कि भंडार घर में खाली हो चुके डिब्बों को लगभग लबालब रेत से भर दिया जाए और उन्हें, जो थोड़ा बहुत राशन खाना बचा है, उससे पाट दें। किसी मुफीद बहाने से व्हिंपर को भंडार-घर में ले जाया गया ताकि वह डिब्बों को एक निगाह देख सके। वह धोखे में आ गया और बाहरी दुनिया को लगातार यही खबरें देता रहा कि बाड़े में खाने-पीने की कोई कमी नहीं है।

इतना होते हुए भी जनवरी के खत्म होते-होते यह स्पष्ट हो गया कि कहीं से कुछ और अनाज लेना जरूरी होगा। इन दिनों नेपोलियन जनता के सामने विरले ही आता। वह अपना सारा समय फार्म हाउस में गुजारता। इसके हरेक दरवाजे पर खूँखार से लगनेवाले कुत्तों का पहरा रहता। जब भी वह बाहर आता तो उसका आना समारोह-पूर्वक होता। छह कुत्ते उससे एकदम सट कर चलते हुए उसकी अगवानी करते और यदि कोई ज्यादा नजदीक आ जाता तो गुर्राने लगते। अक्सर वह रविवार की सुबह के समय भी नजर न आता, बल्कि दूसरों सूअरों में से किसी एक के, आम तौर पर स्क्वीलर के हाथ आदेश जारी करवा देता।

रविवार की एक सुबह स्क्वीलर ने घोषणा की कि मुर्गियों को, जिन्होंने हाल ही में फिर से अंडे दिए हैं, अपने अंडे अनिवार्य रूप से सौंपने होंगे। नेपोलियन ने व्हिंपर के जरिए हर हफ्ते सौ अंडे का एक ठेका मंजूर किया है। इनसे मिलनेवाले धन से इतना अनाज और खाना लिया जा सकेगा कि पशु बाड़े को गर्मियों तक और हालत सुधरने तक चलाया जा सके।

जब मुर्गियों ने यह सुना तो उनमें भीषण हड़कंप मच गया। उन्हें पहले चेतावनी दी गई थी कि इस त्याग की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन उन्हें विश्वास नहीं था, ऐसा सचमुच हो जाएगा। वे अभी वसंत ऋतु में सेने के लिए अपने दिए अंडों की ढेरियाँ तैयार कर ही रही थीं। उन्होंने विरोध जतलाया कि उनसे ऐसे वक्त अंडे छीन ले जाना हत्या होगी। जोंस के निष्कासन के बाद यह पहली बार था कि बगावत से मिलता-जुलता कुछ हो रहा था। तीन युवा काली मिनोरका पछोरों के नेतृत्व में उन्होंने नेपोलियन की इच्छाओं पर पानी फेरने के लिए निर्णायक प्रयास किया। वे उड़ कर टाँड़ों पर जा बैठीं और वहीं अपने अंडे दिए जो नीचे गिर कर टूट-फूट गए। नेपोलियन ने तुरंत और बेरहमी से कार्रवाई की। उसने मुर्गियों की खुराक बंद करने का आदेश दिया और धमकी दी कि यदि कोई पशु मुर्गियों को अनाज का एक दाना भी देता हुआ पाया जाए तो उसे मृत्युदंड दिया जाए। कुत्तों ने इस बात की निगरानी की कि इन आदेशों का ठीक तरह से पालन हो। पाँच दिन तक मुर्गियाँ अलग-थलग रहीं। फिर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया और अपने दड़बों में लौट आई। इस बीच नौ मुर्गियाँ मर चुकी थीं। उनके शव फलोद्यान में दफना दिए गए और यह खबर फैला दी गई कि आंत्ररोग से उनकी मौत हो गई है। व्हिंपर ने इस बाबत कुछ भी नहीं सुना और अंडों की विधिवत सुपुर्दगी कर दी गई। एक किरानेवाले की गाड़ी हफ्ते में एक बार फार्म पर आती और अंडे ले जाती।

इस पूरे अरसे के दौरान स्नोबॉल को फिर नहीं देखा गया। यह अफवाह थी कि वह दोनों पड़ोसी फार्मों में से एक में फॉक्सवुड में या फिर पिंचफील्ड में छुपा हुआ है। इस समय तक नेपोलियन ने पहले की तुलना में दूसरे किसानों से थोड़े बेहतर संबंध बना लिए थे। हुआ यह कि अहाते में इमारती लकड़ी का एक ढेर पड़ा हुआ था, जो दस बरस पहले सफेदे के झुरमुट साफ करने के बाद से वहीं चट्टे लगा कर रखा हुआ था। लकड़ी अच्छी सिझाई हुई थी और व्हिंपर ने नेपोलियन को इसे बेच डालने की सलाह दी थी। मिस्टर विलकिंगटन और मिस्टर फ्रेडरिक दोनों ही इसे खरीदने के लिए उत्सुक थे। नेपोलियन दोनों के बीच हिचकिचा रहा था और फैसला नहीं कर पा रहा था। यह पता चला कि जब भी यह फ्रेडरिक के साथ सौदेबाजी करने की स्थिति तक पहुँचता यह घोषित कर दिया जाता कि स्नोबॉल फॉक्सवुड में छुपा बैठा है, जबकि विलकिंगटन की तरफ उसका झुकाव होते ही स्नोबॉल को पिंचफील्ड मे बता दिया जाता।

वसंत के शुरू में, अचानक एक खतरनाक बात पता चली। स्नोबॉल गुपचुप रात में बाड़े में आता रहा था। पशु इतने व्याकुल हो गए कि रात में अपने-अपने थान पर सोना उनके लिए मुश्किल हो गया। यह कहा गया कि हर रात वह अँधेरे का फायदा उठाते हुए भीतर सरक आता है और हर तरह की बदमाशियाँ करता है। वह मकई चुराता है, दूध के बर्तन अस्त-व्यस्त कर देता है, वह अंडे तोड़ देता है, वह क्यारियों को रौंद देता है, वह फलदार पेड़ों की छाल उतार देता है। जब भी कहीं कोई गड़बड़ होती, आम तौर पर स्नोबॉल के मत्थे मढ़ दी जाती। अगर कोई खिड़की टूट जाती, या नाली जाम हो जाती, तो कोई-न-कोई जरूर कह देता रात को स्नोबॉल आया था और ये खुराफातें कर गया। जब भंडार घर की चाभी खो गई तो पूरे बाड़े को पक्का विश्वास हो गया कि स्नोबॉल ने ही चाभी कुएँ में फेंक दी है। कौतूहल तो इस बात का था कि अनाज की बोरी के नीचे खोई हुई चाभी मिल जाने के बाद भी वे इसी पर विश्वास करते रहे। गायों ने सर्वसम्मति से घोषणा कर दी कि स्नोबॉल उनके थानों में घुस आता है और जब वे नींद में होती हैं, उनका दूध दूह ले जाता है। चूहे भी जो उन सर्दियों में ऊधमी हो गए थे, स्नोबॉल के साथ साँठ-गाँठ के दोषी करार दिए गए।

नेपोलियन ने आदेश दिया कि स्नोबॉल की हरकतों की पूरी छानबीन होनी चाहिए। उसने अपने कुत्तों को मुस्तैद किया और बाड़े की इमारतों का निरीक्षण करने के लिए सतर्क हो कर दौरा किया। पशु आदरपूर्वक उससे थोड़ी दूरी बनाए पीछे चलते रहे। थोड़े-थोड़े कदमों के बाद नेपालियन रुकता, स्नोबॉल के पैरों के निशानों को पहचानने की नीयत से जमीन सूँघता। उसका कहना था कि वह सूँघ कर ही पता लगा सकता है। उसने कोने-कोने में सूँघा। बखार में सूँघा। तबेले में सूँघा, फिर दड़बों में सूँघा। सब्जियों की क्यारियों में सूँघा। उसे कमोबेश हर जगह स्नोबॉल के पैरों के निशान मिले। वह अपना थूथन जमीन पर लगाता, लंबी-लंबी कई साँसें खींचता और डरावनी आवाज में चिल्लाता, ‘स्नोबॉल! वह यहाँ आया था? मैं उसे अलग से सूँघ कर बता सकता हूँ।’ ‘स्नोबॉल’ शब्द कानों में पड़ते ही कुत्ते भयानक रूप से गुर्राने लगते और अपने डरावने दाँत दिखाते।

पशु बुरी तरह डरे हुए थे। उन्हें लगता जैसे स्नोबॉल कोई अदृश्य जिन हो, जो हवा को चीरते हुए उन तक आ पहुँचा हो और उन्हें तरह-तरह के खतरों में डालता है। शाम के वक्त स्क्वीलर ने उन्हें इकट्ठा होने के लिए कहा। अपने चेहरे पर घबराहट के भाव लाते हुए उसने बताया कि वह उन्हें कुछ बहुत ही गंभीर बात कहने जा रहा है।

स्क्वीलर थोड़ा नर्वस हो कर फुदकते हुए चिल्लाया, ‘कॉमरेड्स, एक बहुत ही भयानक बात का पता चला है। स्नोबॉल ने खुद को पिंचफील्ड बाड़े में फ्रेडरिक के हाथों बेच रखा था। वह अभी भी हम पर हमला करने और हमारा बाड़ा हमसे छीन लेने की योजनाएँ बना रहा है। जब हमला शुरू होगा तो स्नोबॉल उसके गाइड का काम करनेवाला है। लेकिन उससे भी बदतर एक और बात है। हम तो यही सोचते आए थे कि स्नोबॉल की बगावत उसके दंभ और महत्वाकांक्षा का नतीजा थी। लेकिन हम गलती पर थे, कॉमरेड्स! क्या आप जानते हैं कि इसकी असली वजह क्या थी? स्नोबॉल ने शुरू से ही जोंस से साँठ-गाँठ कर रखी थी। वह सारे के सारे समय जोंस का सीक्रेट एजेंट था। जो दस्तावेज वह अपनी पीछे छोड़ गया है वह हमें अभी-अभी मिले हैं, उनसे यह सिद्ध हो चुका है। जहाँ तक मेरा दिमाग चलता है, कॉमरेड्स, इससे बहुत सारी बातों से परदा उठता है। क्या हमने खुद अपनी आँखों से नहीं देखा कि उसने किस तरह से हमला किया था? हमें हरा कर वह तबेले की लड़ाई में मटियामेट कर देना चाहता था। सौभाग्य से वह इसमें सफल नहीं हो सका।’

पशु हक्के-बक्के रह गए। यह तो स्नोबॉल की पवनचक्की को नष्ट करने की धूर्तता से भी ज्यादा तकलीफवाली बात थी।

उन्हें इस बात को पूरी तरह जब्त करने में थोड़ा वक्त लगा। उन सबको याद था या उन्होंने सोचा कि उन्हें याद था कि तबेले की लड़ाई में उनके आगे-आगे किस तरह स्नोबॉल को हमला बोलते उन्होंने खुद देखा था। वह किस तरह कदम-कदम पर उनमें प्राण फूँकता और उत्साहित करता था और जब जोंस की बंदूक की गोलियों से उसकी पीठ छलनी हो गई थी तब भी वह एक पल के लिए भी नहीं रुका था। पहले तो उनके लिए यह देखना ही मुश्किल हो गया कि इन सारी बातों के साथ स्नोबॉल को जोंस की तरफ कैसे मान लें। यहाँ तक कि कभी कोई सवाल न उठाने वाला बॉक्सर भी दुविधा में पड़ कर रह गया। वह नीचे बैठा। अपने आगे के पैर अपने नीचे मोड़ लिए, आँखें बंद की और बड़ी मुश्किल से अपने विचारों को सिलसिलेवार बिठा पाया।

‘मैं इस पर विश्वास नहीं करता,’ उसने कहा, ‘स्नोबॉल तबेले की लड़ाई में बहुत बहादुरी से लड़ा। मैंने खुद उसे लड़ते हुए देखा। क्या उसके तत्काल बाद हमने उसे ‘‘पशु वीर उत्तम कोटि’’ से अलंकृत नहीं किया था?’

‘वह हमारी भूल थी, कॉमरेड! क्योंकि हम अब जान पाए हैं, हमें मिले गुप्त दस्तावेजों में यह सब कुछ लिखा हुआ है कि दरअसल वह हमें बहका कर हमें सर्वनाश की ओर ले जाने की कोशिश कर रहा था।’

‘लेकिन वह जख्मी था,’ बॉक्सर ने कहा, ‘हम सबने उसे खून से लथपथ दौड़ते हुए देखा था।’

‘वह सब एक चाल का हिस्सा था।’ स्क्वीलर चिल्लाया, ‘जोंस की गोली से उसे सिर्फ खरोचें आई थीं। अगर तुम पढ़ सकते होते तो मैं खुद उसी की हैंडराइटिंग में दिखा सकता हूँ। प्लॉट यह था कि नाजुक क्षणों में स्नोबॉल भागने के लिए संकेत देता और मैदान दुश्मन के हवाले छोड़ कर भाग जाता और वह लगभग सफल हो ही चुका था, बल्कि मैं तो यही तर्क दूँगा, कॉमरेड्स! अगर हमारे नेताजी, कॉमरेड नेपोलियन ने बहादुरी न दिखाई होती तो वह जीत जाता। आपको याद नहीं है कि जब जोंस और उसके आदमी अहाते में घुस आए थे तो किस तरह स्नोबॉल अचानक मुड़ा और भाग लिया। कई पशु उसके पीछे-पीछे भागे। और क्या आपको यह भी याद नहीं है कि यह वही क्षण था, जब चारों तरफ भगदड़ मची हुई थी और लगने लगा था कि सब कुछ गया, तभी कॉमरेड नेपोलियन ‘मनुष्यता का नाश हो’ का हुंकार भरते हुए आगे उछले थे और उन्होंने जोंस की टाँग में अपने दाँत गड़ा दिए थे। यह आपको पक्का ही याद होगा, कॉमरेड्स?’ दाएँ-बाएँ फुदकते हुए स्क्वीलर ने आश्चर्य व्यक्त किया।

अब जब स्क्वीलर ने सारे दृश्य का इतनी बारीकी से साफ-साफ वर्णन किया तो पशुओं को लगा कि उन्हें यह याद है। कुछ भी रहा हो, उन्हें यह तो याद था कि लड़ाई के नाजुक क्षणों में स्नोबॉल भागने के लिए मुड़ा था। लेकिन बॉक्सर अभी थोड़ा परेशान था।

‘मुझे विश्वास नहीं होता है कि शुरू-शुरू में स्नोबॉल विश्वासघाती था।’ उसने आखिर कह ही दिया। ‘उसके बाद उसने क्या किया, यह अलग बात है। लेकिन मुझे विश्वास है, तबेले की लड़ाई में वह एक अच्छा कॉमरेड था।’

‘हमारे नेताजी, कॉमरेड नेपोलियन ने,’ स्क्वीलर ने बहुत धीमे-धीमे और दृढ़ता से बताया, ‘साफ तौर पर कहा है, कॉमरे,ड कि स्नोबॉल शुरू से ही जोंस का एजेंट था और बगावत का खयाल आने से भी पहले से ही था।’

‘ओह, तब दूसरी बात है।’ बॉक्सर ने कहा, ‘अगर कॉमरेड नेपोलियन कहते हैं तो यह ठीक ही होना चाहिए।’

‘यही सच्ची भावना है, कॉमरेड।’ स्क्वीलर चिल्लाया लेकिन यह देखा गया कि उसने अपनी छोटी-छोटी मिचमिचाती आँखों से बॉक्सर की तरफ बहुत घृणित नजर से देखा। वह जाने के लिए मुड़ा, फिर रुका और जोर देते हुए बोला, ‘मैं इस बाड़े के हर प्राणी को चेतावनी देता हूँ कि अपनी आँखें पूरी तरह खुली रखें। हमारे पास यह सोचने के कारण हैं कि इस वक्त भी हम लोगों के बीच स्नोबॉल के सीक्रेट एजेंट घात लगाए छुपे बैठे हैं।‘

चार दिन बाद दोपहर ढलने के बाद, नेपोलियन ने सभी पशुओं को बाड़े में इकट्ठा होने का आदेश दिया। सबके जमा हो जाने के बाद, नेपोलियन फार्म हाउस में से प्रकट हुआ। उसने अपने दोनों पदक लगा रखे थे। (उसने हाल ही में खुद को ‘पशुवीर उत्तम कोटि’ और ‘पशुवीर मध्यम कोटि’ के सम्मान से विभूषित कर लिया था) उसके आगे पीछे उसके नौ के नौ विशाल कुत्ते उछलते कूदते चले आ रहे थे। उनकी गुर्राने की आवाज इतनी तेज थी कि पशुओं की हड्डियों में भी डर के मारे पसीना आ जाए। सभी पशु चुपचाप अपनी-अपनी जगह में धँस गए, उन्हें पहले से ही आभास हो गया था कि कोई हादसा होनेवाला है।

नेपोलियन अपने श्रोताओं का मुआयना करते हुए दृढ़ता से खड़ा हुआ। उसके बाद उसने बहुत ऊँची आवाज में घुरघुराहट की। कुत्ते एकदम आगे लपके, चार सूअरों को कानों से दबोचा, और दर्द तथा आतंक से पिनपिनाते उन्हें नेपोलियन के कदमों में डाल दिया। कुछ पलों के लिए लगा, कुत्ते एकदम पागल हो गए हैं। सबके सब हक्के-बक्के रह गए जब उन कुत्तों में से तीन बॉक्सर की तरफ उछले। बॉक्सर ने उन्हें आते देख लिया और अपना विशाल सुम उठाया, और एक कुत्ते को बीच हवा में ही रोक लिया। उसे जमीन पर पटक कर अपने सुम के नीचे दबा दिया। कुत्ता दया के लिए किंकियाया, बाकी दोनों कुत्ते अपनी पिछली टाँगों में दुम दबा कर भाग लिए। बॉक्सर ने नेपोलियन की तरफ यह जानने की नीयत से देखा कि क्या करूँ इसका? कुत्ते को कुचल कर मार डालूँ या जाने दूँ? नेपोलियन अपनी मुखमुद्रा बदलता प्रतीत हुआ और उसने तेज आवाज में बॉक्सर को कुत्ते को छोड़ देने का आदेश दिया। बॉक्सर ने तब अपना सुम उठाया और बिलबिलाता हुआ, जख्मी हालत में वहाँ से खिसक लिया।

फिलहाल हंगामा शांत हो गया। चारों सूअर अभी भी काँपते हुए इंतजार कर रहे थे। उनके चेहरे की एक-एक शिरा पर अपराध लिखा हुआ था। तब नेपोलियन ने उन्हें अपने अपराध कबूल करने का आदेश दिया। वे वही चार सूअर थे जिन्होंने नेपोलियन के रविवार की बैठकें खत्म करने के फैसले का विरोध किया था। बिना और उकसाए उन चारों ने स्वीकार किया कि स्नोबॉल के निष्कासन के बाद से ही वे उससे गुप्त रूप से संपर्क बनाए हुए थे और उन्होंने उसके साथ मिलीभगत करके पवनचक्की को नष्ट करने का षडयंत्र रचा था और उन्होंने उसके साथ एक समझौता किया था कि बाड़ा मिस्टर फ्रेडरिक को सौंप देंगे। उन्होंने यह भी बताया कि स्नोबॉल ने निजी तौर पर उसके सामने स्वीकार किया था कि वह कई वर्षों से जोंस का सीक्रेट एजेंट रहा था। जब उन्होंने अपने-अपने अपराध स्वीकार कर लिए तो कुत्तों ने तुरंत उनके गले फाड़ डाले। खतरनाक आवाज में तब नेपोलियन गरजा कि क्या किसी और प्राणी को भी अपना कोई अपराध स्वीकार करना है?

तीन मुर्गियाँ, जो अंडों को ले कर हुई बगावत की सरगनाएँ थीं, आगे आईं और बताया कि स्नोबॉल उनके सपनों में आया था और उन्हें भड़का गया था कि वे नेपोलियन के आदेश न मानें।

उन्हें भी कत्ल कर दिया गया। तब एक हंस सामने आया जिसने स्वीकार किया कि पिछले साल फसल के मौके पर उसने मकई की छह फलियाँ छुपा ली थीं और रात के वक्त खा गया था। तब एक भेड़ ने स्वीकार किया कि उसने पीने के पानी के तालाब में पेशाब किया था। उसने बताया कि ऐसा करने के लिए उसे स्नोबॉल ने उकसाया था। दो और भेड़ों ने माना कि उन्होंने नेपोलियन के एक खास निष्ठावान भक्त एक बूढ़े भेड़ को आग के चारों तरफ दौड़ा कर उस वक्त मार डाला था जब वह खाँसी से पीड़ित था। इन सबको वहीं के वहीं मौत के घाट उतार दिया गया और इस तरह अपने-अपने अपराध स्वीकार करने का और प्राणदंड देने का सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक नेपोलियन के पैरों के आगे लाशों का ढेर नहीं लग गया। हवा खून की गंध से भारी हो चली थी। खून, जिसे जोंस के निष्कासन के बाद किसी ने नहीं जाना था।

यह सब निपट जाने के बाद, सूअरों और कुत्तों को छोड़ कर बाकी पशु एक साथ सरकते हुए निकल गए, उनके दिल दहले हुए थे और सबके सब दयनीय लग रहे थे। वे नहीं जानते थे कि उन्हें किस चीज से ज्यादा धक्का लगा है। स्नोबॉल के साथ साँठ-गाँठ करनेवाले पशुओं की धोखाधड़ी से या उस क्रूर खूनखराबे से जिसके वे थोड़ी देर पहले चश्मदीद गवाह थे। पुराने दिनों में भी अकसर इतने ही खतरनाक खूनखराबे हुआ करते थे लेकिन उन सबको लगा कि अब यह बहुत ही खराब बात है कि यह सब कुछ उनके बीच आपस में ही हो रहा है। बाड़े से जोंस के जाने के बाद से किसी भी पशु ने किसी दूसरे पशु को नहीं मारा था, यहाँ तक कि किसी चूहे को भी नहीं मारा गया था। वे सब उस छोटी टेकरी की तरफ बढ़े, जहाँ आधी-अधूरी पवनचक्की खड़ी थी। जैसे सबने तय किया हो, क्लोवर, मुरियल, बैंजामिन, गाएँ, हंसों और मुर्गियाँ के झुंड हर कोई आपस में सट कर बैठ गए, जैसे एक-दूसरे की गर्मी महसूस करना चाहते हों, इनमें बिल्ली नहीं थी, जो पशुओं को इकट्ठा होने के नेपोलियन के आदेश से कुछ ही पहले अचानक गायब हो गई थी। थोड़ी देर तक कोई भी कुछ नहीं बोला। सिर्फ बॉक्सर अपनी टाँगों पर खड़ा रहा। वह अपने पुट्ठों पर अपनी लंबी काली पूँछ सटकाते हुए बेचैनी से आगे-पीछे होता रहा। बीच-बीच में वह हैरानी की हल्की-सी हिनहिनाहट की आवाज निकालता। अंतत: उसने कहना शुरू किया, ‘मैं इसे समझ नहीं पा रहा हूँ। मुझे यकीन नहीं आ रहा, ऐसी चीजें हमारे बाड़े में हो सकती हैं। इसमें कहीं हमारा ही दोष होगा। जहाँ तक मुझे लगता है, इसका एक ही हल है, और कड़ी मेहनत की जाए। अब से मैं सुबह के वक्त एक घंटा जल्दी उठा करूँगा।’

और वह अपनी भदभदाती हुई दुलकी चाल से खदान की तरफ चल दिया। वहाँ पहुँचने के बाद उसने, रात ढलने से पहले, पत्थरों के दो ढेर जमा किए और उन्हें घसीट कर पवनचक्की तक ले गया।

सभी पशु क्लोवर के पास सरक आए। कोई भी बात नहीं कर रहा था। जिस टेकरी पर वे बैठे हुए थे, वहाँ से गाँवों की तरफ का बहुत अच्छा नजारा नजर आता था।

पशुबाड़े का ज्यादातर हिस्सा सड़क तक जाता। लंबा-चौड़ा चरागाह, घास के मैदान, पीने के पानी का ताल, जुते हुए खेत जहाँ पके हुए गेहूँ की भरी-भरी सुनहरी बालियाँ थीं, बाड़े की इमारतों की लाल छतें जिनकी चिमनियों से धुएँ की आड़ी-तिरछी लकीरें निकल रही थीं। यह सब कुछ उनकी आँखों के सामने था। यह वसंत के दिनों की एक उजली शाम थी। घास और हरी-भरी बाड़ों पर धूप की चिनगियां चमक रही थीं। पशुओं ने एक तरह आश्चर्य के साथ याद किया कि यह बाड़ा जो उनका अपना बाड़ा है, इसका चप्पा-चप्पा उनकी अपनी संपत्ति है, उन्हें कभी भी इतना प्यारा नहीं लगा था। क्लोवर अपनी आँखों में आँसू भरे पहाड़ों की तरफ देखती रही। अगर वह अपने विचारों को शब्द दे पाती तो वह यही कहना चाहती कि यह सब वह नहीं है जिसे मानव जाति को बाहर करने के लिए, काम करने के लिए बरसों पहले उन्होंने अपना मकसद बनाया था। आतंक और कत्लेआम के इन नजारों की तो उन्होंने कल्पना नहीं की थी जब उस रात जनाब मेजर ने पहली बार उनके कानों में बगावत का बिगुल फूँका था। यदि वह खुद भविष्य का कोई चित्र आँक पाती तो वहाँ पशुओं का एक ऐसा समाज होता जहाँ न भूख होती, न कोड़े होते। सब बराबर होते। हर कोई अपनी क्षमता के हिसाब से काम करता। जो बलशाली हैं, दुर्बल की रक्षा करते जैसा कि मेजर के भाषण की रात उसने अपनी अगली टाँगों के बीच बत्तखों की आखिरी पीढ़ी की रक्षा करके किया था। इसके बजाय वह नहीं जानती कि ऐसा क्यों हुआ है? वे ऐसे वक्त के दौर में आ पहुँचे हैं जहाँ कोई अपने मन की बात कहने का साहस नहीं जुटा पाता, जब खतरनाक गुर्राते कुत्ते हर जगह घूमते रहते हैं, और जब आपको अपने ही साथियों को दिल दहला देनेवाले अपराध स्वीकार करने के जुर्म के बाद चीथड़ों में चिरते दिखाई पड़ता है। उसके दिमाग में बगावत या अवज्ञा का कोई विचार नहीं था। वह जानती थी कि चीजें जैसी हैं, इसके बावजूद वे जोंस के दिनों की तुलना में अब भी बहुत अच्छी हैं और किसी भी बात के बजाय सबसे जरूरी यही है कि मनुष्य जाति को वापस नहीं आने देना है। चाहे कुछ भी हो जाए, वह निष्ठावान बनी रहेगी, खूब मेहनत करती रहेगी, उसे जो भी आदेश दिए जाते हैं, उनका पालन करेगी और नेपोलियन के नेतृत्व को स्वीकार करती रहेगी। लेकिन फिर भी उसने और सभी दूसरे पशुओं ने इस सबकी उम्मीद नहीं की थी और न ही इसके लिए पसीना बहाया था। इस दिन के लिए उन्होंने पवनचक्की नहीं बनाई थी और जोंस की गोलियों का सामना नहीं किया था। उसके इस तरह के विचार थे, लेकिन उसके पास इन सबको व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे।  

आखिर जब उसे कहने के लिए शब्द नहीं मिले तो उसने ‘इंग्लैंड के पशु’ गीत को ही कुछ हद तक विकल्प माना और इसे गाना शुरू कर दिया। उसके आस-पास बैठे पशुओं ने इसे उठाया और तीन बार पूरा गाया। बहुत ही सरस स्वर में, लेकिन धीमे-धीमे और मातमी धुन में। इस तरह से उन्होंने इसे पहले कभी नहीं गाया था।

उन्होंने अभी तीसरी बार गाना खत्म किया था जब दो कुत्तों की अगवानी में स्क्वीलर उनके पास आया। उसने इस तरह का आभास दिया जैसे कोई बहुत महत्वपूर्ण बात करनी हो। उसने घोषणा की कि कॉमरेड नेपोलियन के एक विशेष आदेश के द्वारा ‘इंग्लैंड के पशु’ बंद कर दिया गया है। अब से आगे इस गाने की मनाही होगी।

पशु हक्के-बक्के रह गए।

‘क्यों?’ मुरियल चिल्लाई।

‘अब इसकी जरूरत नहीं है, कॉमरेड,’ स्क्वीलर की आवाज में तुर्शी थी, ‘इंग्लैंड के पशु’ बगावत का गीत था, लेकिन अब बगावत पूरी हो चुकी है। इसी दोपहर को विश्वासघातियों को दी गई मौत की सजा बगावत का अंतिम अंक था। ‘इंग्लैंड के पशु’ में हमने आनेवाले दिनों एक बेहतर समाज के लिए अपनी अभिलाषा व्यक्त की थी। लेकिन अब यह समाज स्थापित हो चुका है। यह साफ है कि अब इस गीत का कोई मकसद नहीं रहा है।’

हालाँकि पशु डरे हुए थे। कुछेक ने संभवत: विरोध भी किया होता, लेकिन उसी क्षण भेड़ों ने अपनी वहीं पुरानी धुन ‘चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें खराब’ की मिमियाहट छेड़ दी। यह में-में कई मिनटों तक चलती रही और इससे बहस खत्म ही हो गई। इस तरह ‘इंग्लैंड के पशु’ फिर कभी नहीं सुना गया। इसके स्थान पर मिनिमस कवि जी ने एक और गीत की रचना की। इसकी शुरू की पंक्तियाँ इस तरह थीं :

पशुबाड़ा, पशुबाड़ा

होगा नहीं ऐसा कभी, जब

मैंने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा

इसे हर रविवार की सुबह झंडा चढ़ाने के बाद गाया जाता। लेकिन हुआ यह कि न तो इस गीत के बोल और न ही धुन पशुओं को ‘इंग्लैंड के पशु’ के स्तर की लगी।


8

कुछ दिन बीतने के बाद, प्राणदंडों से उपजा आतंक धुँधला पड़ चुका था। कुछेक पशुओं को याद था कि छठे धर्मादेश में यह आदेश था कि कोई भी किसी दूसरे पशु को नहीं मारेगा। और हालाँकि किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि कहीं सूअरों या कुत्तों की मौजूदगी में इसका जिक्र कर सके। यह महसूस किया जाता था कि जो हत्याएँ की गईं थीं, वे इससे मेल नहीं खाती थीं। क्लोवर ने बैंजामिन से कहा कि वह उसे छठा धर्मादेश पढ़ कर सुनाए और जब बैंजामिन ने हमेशा की तरह ऐसे मामलों में टाँग अड़ाने से इनकार कर दिया, तो उसने मुरियल को थामा। मुरियल ने उसे धर्मादेश पढ़ कर सुनाया। यह इस प्रकार था, कोई भी पशु किसी दूसरे पशु को बिना वजह नहीं मारेगा। पता नहीं यह कैसे हुआ, पर बीच के दो शब्द ‘बिना वजह’ पशुओं की याददाश्त से उतर गए थे। लेकिन अब उन्होंने पाया कि धर्मादेश का उल्लंघन नहीं किया गया है क्योंकि उन विश्वासघातियों को मारने के भी पीछे यही उचित वजह थी कि उनकी स्नोबॉल के साथ मिलीभगत थी।

पूरे बरस भर तक पशुओं ने पिछले वर्ष के मुकाबले बहुत अधिक मेहनत की। पवनचक्की को बनाना, उसकी दीवारों को पहले की तुलना में दुगुना मोटा रखना और उसे नियत समय के भीतर पूरा करना और इसके साथ-साथ बाड़े के नियमित काम करना, सचमुच बहुत मेहनत का काम था। ऐसे भी वक्त आए जब पशुओं को लगा कि वे ज्यादा घंटों तक काम करते हैं और जोंस के दिनों की तुलना में अच्छी खुराक भी नहीं पाते हैं। रविवार की सुबह स्क्वीलर अपने पैर में कागज की एक लंबी सूची थामे हुए आता और उसमें से उन्हें वे आँकड़े पढ़ कर सुनाता, जिनसे सिद्ध होता कि हर श्रेणी के खाद्यान्न उत्पादन में 200 प्रतिशत की, 300 प्रतिशत की या 500 प्रतिशत की, जैसी भी स्थिति हो, वृद्धि हुई है। पशुओं के पास उस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं था, खासकर इस वजह से भी कि उन्हें धुँधला-सा भी याद नहीं था कि बगावत से पहले स्थितियाँ कैसी थीं। इसके बावजूद उनके सामने ऐसे भी दिन आए, जब उन्हें लगता जब उनके लिए आँकड़े कम और खाना ज्यादा हुआ करेगा।

अब सारे आदेश स्क्वीलर या किसी दूसरे सूअर के जरिए जारी किए जाते। नेपोलियन पंद्रह-पंद्रह दिन तक सबके सामने प्रकट न होता। वह जब भी आता, उसके साथ न केवल कुत्तों की फौज होती, बल्कि अब उसके आगे-आगे एक काला मुर्गा चलता। वह नेपोलियन का बिगुल बजानेवाले की ड्यूटी अदा करता। जब भी नेपोलियन बोलता, उससे पहले यह मुर्गा कुकडू-कूँ की बाँग लगाता। यह पता चला कि फार्म हाउस में भी नेपोलियन दूसरों से परे अलग अपार्टमेंट में रहता है। वह अकेले भोजन करता है। हर समय दो कुत्ते उसकी सेवा में खड़े रहते हैं। वह हमेशा महँगे क्राउन डर्बी डिनर सर्विस सेट में खाना खाता है। यह सेट ड्राइंग रूम में काँच की अलमारी में रखा था। यह भी बताया गया कि अब से दो वर्षगाँठों के मौकों के अलावा नेपोलियन के जन्म दिन पर भी बंदूक दागी जाएगी।

अब नेपोलियन को सिर्फ नेपोलियन कह कर उसका जिक्र नहीं किया जाता था। अब हमेशा औपचारिक रूप से हमारे नेताजी, कॉमरेड नेपोलियन कह कर उनका नाम लिया जाता। सूअर उनके लिए नित नई-नई उपाधियाँ गढ़ते रहते। ये उपाधियाँ कुछ इस तरह की होतीं-सब पशुओं के पिता, मानव जाति के आतंक, भेड़-समुदाय के रक्षक, चूजों के सखा आदि। अपने भाषणों में स्क्वीलर अपने गालों पर आँसू ढरकाते हुए, नेपोलियन की बुद्धिमत्ता के गुणगान करता, उनके हृदय की पवित्रता के गीत गाता, और अन्य जगहों के पशुओं के प्रति और खासकर उन दुखी पशुओं के प्रति भी, जो अभी भी दूसरे बाड़ों में अज्ञानता और गुलामी का जीवन जी रहे थे, उन सबके प्रति नेताजी के हृदय में फूटते प्रेम के गहरे उद्गारों के बारे में बताता। यह एक सामान्य-सी बात हो गई थी कि किसी भी सफल उपलब्धि के लिए या सौभाग्य की हरेक किरण का श्रेय नेपोलियन जी को दिया जाता। आप अकसर एक मुर्गी को दूसरी मुर्गी से यह कहते सुन सकते थे, ‘हमारे नेताजी, कॉमरेड नेपोलियन के मार्गदर्शन में मैंने छह दिन में पाँच अंडे दिए हैं’ या दो गाएँ तलैया पर पानी का सुख उठातीं, कहती थी ‘इसका श्रेय हमारे नेताजी कॉमरेड नेपोलियन को जाता है कि पानी का स्वाद कितना अच्छा है।’ बाड़े की आम भावनाओं को एक कविता ‘कॉमरेड नेपोलियन’ में बहुत अच्छी तरह अभिव्यक्त किया गया था। इसकी रचना मिनिमस ने की थी और कविता इस प्रकार थी :

अनाथों के पिता

खुशियों का जैसे फूटे सोता

सम्राट सूअरों के खाने की बाल्टी के! 

ओ पिता!

कैसे मेरी आत्मा खुशी पाती

जब मैं आपको देखता।

शीतल और प्रभावशाली आपके नयन

जैसे चमके सूर्य नभ में

हे कॉमरेड नेपोलियन!

आप ही तो सबको देनेवाले

जो आपके समस्त प्राणी चाहते

दिन में दो बार भर पेट खाना,

साफ पुआल पर लेटना-सोना

हर प्राणी छोटा या बड़ा

सोता आराम से, अपने थान में पड़ा

सबको देखते रहते आपके नयन

कॉमरेड नेपोलियन

काश, मेरा कोई घेंटुला होता

इससे पहले कि वह बड़ा हो जाता

पिंट बोतल या बेलन की तरह

लुढ़कना, उसने सीख लिया होता

कैसे बने निष्ठावान और 

सच्चा आपके प्रति

जी हाँ, 

उसकी पहली घुर्र-घुर्र यही होती

‘कॉमरेड नेपोलियन’

नेपोलियन ने इस कविता को अनुमोदित कर दिया और इसे बड़े बखार में सात धर्मादेशों से परे दूसरे सिरे की दीवार पर अंकित करवा दिया। इसके नीचे ही, प्रोफाइल में नेपोलियन की एक तस्वीर लगा दी गई। इसे स्क्वीलर ने सफेद रंग में रँगा था।

इस बीच, व्हिंपर की एजेंसी के माध्यम से नेपोलियन फ्रेडरिक और विलकिंगटन के साथ जटिल समझौतों में उलझा हुआ था। इमारती लकड़ी का चट्टा अभी भी बेचा नहीं गया था। दोनों में से फ्रेडरिक इसे पाने के लिए ज्यादा आतुर था, लेकिन वह उचित दाम देने के लिए तैयार नहीं था। साथ-ही-साथ नई अफवाहें भी फैलने लगीं थीं कि फ्रेडरिक ओर उसके आदमी पशुबाड़े पर हमला करने की योजना बना रहे हैं। फ्रेडरिक को पवनचक्की फूटी आँख नहीं सुहाती थी। वह उसे भी नष्ट कर देनेवाला था। ऐसा पता चलता था कि नेपोलियन का पिंचफील्ड बाड़े की तरफ ज्यादा झुकाव है। गर्मियों के दौरान पशु यह सुन कर सचेत हो गए कि तीन मुर्गियों ने आगे बढ़ कर कुबूल किया है कि स्नोबॉल से प्रेरणा पा कर वे नेपोलियन को मारने के एक षडयंत्र में शामिल हुई थीं। उन्हें तत्काल प्राणदंड दे दिया गया और नेपोलियन की सुरक्षा के लिए और चौकसी बरतनी शुरू कर दी गई। रात के वक्त चार कुत्ते उसके बिस्तर की निगरानी करते। बिस्तर के चारों कोनों पर एक-एक कुत्ता खड़ा रहता। पिंकी नाम के एक छोटे-से सूअर को यह जिम्मेवारी सौंपी गई कि वह नेपोलियन के खाने से पहले उसका सारा खाना चख कर देखे कि कहीं उसमें जहर तो नहीं मिलाया गया है।

लगभग इन्हीं दिनों यह सुनने में आया कि नेपोलियन ने इमारती लकड़ी के चट्टे मिस्टर विलकिंगटन को बेचने की व्यवस्था कर ली है। वह पशुबाड़े और फॉक्सवुड के बीच कुछेक उत्पादों के आदान-प्रदान के लिए भी एक नियमित करार करनेवाला है। नेपोलियन और विलकिंगटन के बीच संबंध हालाँकि सिर्फ व्हिंपर के जरिए ही जोङे जाते थे, फिर भी अब उनमें दोस्ताना-सा हो गया था। एक मनुष्य के रूप में विलकिंगटन पर पशुओं को भरोसा नहीं था, लेकिन वे उसे फ्रेडरिक की तुलना में बहुत मान देते थे। फ्रेडरिक से उन्हें डर और नफरत दोनों थे। गर्मियों के बीतते-बीतते और पवनचक्की के पूरा होने का वक्त नजदीक आने के साथ-साथ भारी घातक हमले की अफवाहें और अधिक पुष्ट होती चली गयीं। यह बताया जाता कि फ्रेडरिक उनके खिलाफ शस्त्रों और बंदूकों से लैस बीस आदमी लाने की सोच रहा है। उसने मजिस्ट्रेट और पुलिस की पहले ही मुट्ठी गर्म कर दी है ताकि वह एक बार पशुबाड़े के स्वामित्व के कागजात उसके हाथ आ जाने के बाद वे कोई सवाल न उठाएँ। इतना ही नहीं, पिंचफील्ड से दिल दहला देनेवाली खबरें छन कर बाहर आ रही थीं कि किस तरह फ्रेडरिक अपने पशुओं पर जुल्म ढाता है। उसने अपने एक बूढ़े घोड़े को कोड़े मार-मार कर खत्म कर दिया है, वह अपनी गायों को भूखा मारता है, उसने अपने एक कुत्ते को भट्ठी में डाल कर भून डाला है, वह शाम के वक्त अपने मुर्गों की टाँगों में रेजर ब्लेड के धारदार टुकड़े बाँध कर उन्हें लड़वाता और मजे लेता है। जब पशु अपने कॉमरेड पर इस तरह के जुल्म ढाए जाने की बाते सुनते तो गुस्से से उनका खून खौलने लगता। कई बार वे चीखते-चिल्लाते कि उन्हें इस बात की अनुमति दी जाए कि वे एक साथ झुंड बना कर जाएँ, पिंचफील्ड बाड़े पर हमला करें, मनुष्यों को निकाल बाहर करें और पशुओं को आजाद करा दें। लेकिन स्क्वीलर उन्हें समझाता-बुझाता कि वे उतावलेपन से इस तरह की कार्रवाई न करें और कॉमरेड नेपोलियन की कूटनीति पर भरोसा रखें।

यह सब होने के साथ-साथ फ्रेडरिक के खिलाफ दुर्भावना तीखी बनी रही। रविवार की एक सुबह नेपोलियन बखार में उपस्थित हुआ और उसने स्पष्ट किया कि उसने कभी भी किसी वक्त लकड़ी फ्रेडरिक को बेचने के बारे में नहीं सोचा था। उसने बताया कि इस तरह के धूर्तों से लेनदेन करना वह अपनी तौहीन समझता है। कबूतरों को जो बगावत की चिंगारियाँ फैलाने के लिए अभी भी भेजे जाते थे, अब मना कर दिया गया कि फॉक्सवुड में कहीं भी न उतरें। उन्हें यह भी आदेश दिया गया कि पहले के नारे ‘मनुष्य जाति का नाश हो’ के स्थान पर अब वे ‘फ्रेडरिक का नाश हो’ कहा करें। गर्मियों के खत्म होते-होते स्नोबॉल की एक और कारस्तानी सामने आई। गेहूँ की फसल खर-पतवार से भरी पड़ी थी। यह पाया गया कि किसी रात आ कर स्नोबॉल ने गेहूँ के बीजों में खर-पतवार के बीज मिला दिए थे। एक हंस ने स्क्वीलर के सामने अपना अपराध स्वीकार किया कि वह इस षडयंत्र में सहभागी था। उसने तत्काल ही धतूरे के बीज निगल कर खुदकुशी कर ली। पशुओं को अब यह भी पता चला कि, उनमें से कई अब तक मानते चले आ रहे थे, स्नोबॉल ने ‘पशुवीर उत्तम कोटि’ का सम्मान कभी भी प्राप्त नहीं किया था। यह एक कल्पित कहानी मात्र थी, जिसे तबेले की लड़ाई में पीठ दिखाने के लिए उसकी निंदा की गई थी। एक बार फिर कुछ पशुओं ने इस बात को थोड़ा हक्का-बक्का हो कर सुना, लेकिन जल्दी ही स्क्वीलर उन्हें पटाने में सफल हो गया कि यह उनकी ही याददाश्त का दोष है। 

शरद ऋतु में, विस्मय भरे और थकान से चूर कर देनेवाले प्रयासों से दो काम पूरे कर लिए गए। एक तो फसल समय पर काट ली गई और उसी के साथ लगभग उसी समय पवनचक्की पूरी कर ली गई। मशीन अभी लगाई जानी बाकी थी, जिसकी खरीद के लिए व्हिंपर मोलभाव कर रहा था, लेकिन ढाँचा पूरा कर लिया गया था। हर मुश्किल के होते हुए, नौसिखएपन के बावजूद, बाबा आदम के जमाने के औजारों के साथ फूटी किस्मत के होते हुए और स्नोबॉल की कपटता के होते हुए, काम को ठीक नियत दिन पर पूरा कर लिया गया था। थकान से चूर, लेकिन गर्व से भरे पशु अपने उत्कृष्ट निर्माण के चारों और चक्कर लगाते रहे। यह उन्हें पहले बनाई गई पवनचक्की की तुलना में बहुत सुंदर लग रही थी, इसके अलावा, इसकी दीवारें भी पहले की तुलना में दुगुनी मोटी थीं। इसे इस बार विस्फोटक से कम किसी चीज से गिराया नहीं जा सकेगा। और जब उन्होंने सोचा कि उन्होंने इसके लिए कितनी मेहनत की है, किस तरह की हताशाओं से उन्हें पार पाना पड़ा है और जब पवनचक्की में पाल लगा दिए जाएँगे और डायनमो चलने लगेंगे तो उनकी जिंदगी में कितना बड़ा अंतर आ जाएगा, जब उन्होंने यह सब सोचा तो उनकी सारी थकान मिट गई। वे पवनचक्की के चारों तरफ उछले, फुदके, उन्होंने विजय की किलकारियाँ मारीं। अपने कुत्तों और मुर्गे की अगवानी में नेपोलियन खुद आया। उसने पूरे किए गए काम का मुआयना किया। उसने खुद आगे बढ़ कर पशुओं को इस उपलब्धि पर बधाई दी और घोषणा की कि यह चक्की नेपोलियन चक्की कहलाएगी। दो दिन बाद पशुओं को बखार में एक विशेष बैठक के लिए बुलाया गया। जब नेपोलियन ने उन्हें बताया कि उसने इमारती लकड़ी के चट्टे फ्रेडरिक को बेच दिए हैं तो वे आश्चर्य के मारे मुँह बाए देखते रह गए। नेपोलियन ने आगे बताया कि कल फ्रेडरिक की गाड़ियाँ आएँगी और लकड़ी ढोना शुरू कर देंगी। विलकिंगटन के साथ अपनी आभासी दोस्ती की पूरी अवधि के दौरान नेपोलियन ने दरअसल फ्रेडरिक के साथ एक गुप्त करार किया हुआ था।

फॉक्सवुड के साथ सभी संबंध तोड़ दिए गए। विलकिंटगन के पास अपमानजनक संदेश भेजे गए। कबूतरों से कहा गया कि वे पिंचफील्ड बाड़े की तरफ देखें भी नहीं और ‘फ्रेडरिक का नाश हो’ के अपने नारे के स्थान पर ‘विलकिंगटन का नाश हो’ का नारा लगाया करें। इसी समय नेपोलियन ने पशुओं को आश्वस्त किया कि पशु बाड़े पर आसन्न हमले के किस्से एकदम मनगढ़त थे, फ्रेडरिक के अपने पशुओं पर क्रूरता की कहानियाँ बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताई गई थीं। लगता है ये सारी अफवाहें स्नोबॉल और उसके एजेंटों ने उड़ाई थीं। अब यह प्रतीत हुआ कि आखिर स्नोबॉल पिंचफील्ड फार्म में ही तो छुपा हुआ था। दरअसल, वह तो अपनी पूरी जिंदगी में उस तरफ गया ही नहीं। यह बताया गया कि वह फॉक्सवुड में पूरे ठाठ-बाट के साथ आराम की जिंदगी बसर कर रहा है और सच तो यह है कि पिछले कई सालों में विलकिंगटन से पेंशन खा रहा है।

सूअर नेपोलियन की चतुरता पर भाव-विभोर थे। विलकिंगटन के साथ दोस्ती का दिखावा करके उसने फ्रेडरिक को अपनी कीमत बारह पाउंड बढ़ाने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन स्क्वीलर का कहना था कि नेपोलियन के दिमाग की उत्कृष्टता तो इस तथ्य से पता चलती है कि वास्तव में वे किसी पर भी यहाँ तक कि फ्रेडरिक पर भी भरोसा नहीं करते। फ्रेडरिक लकड़ी के दाम चेक जैसी किसी चीज के माध्यम से चुकाना चाहता था। शायद चेक कागज का एक टुकड़ा होता है, जिस पर अदा करने का वचन लिखा होता है। लेकिन नेपोलियन उसके भी गुरू हैं। उन्होंने माँग रखी कि भुगतान असली पाँच पाउंड के नोटों में किया जाए और ये नोट लकड़ी उठाने से पहले सौंप दिए जाएँ। फ्रेडरिक पहले ही भुगतान कर चुका है, उसने जो राशि चुकाई है, वह पवनचक्की के लिए मशीनरी खरीदने के लिए एकदम काफी है। 

इस बीच लकड़ी की ढुलाई तेजी से चल रही थी। जब सारा माल जा चुका तो फ्रेडरिक के बैंक नोटों के दर्शन करने के लिए बखार में एक विशेष सभा बुलाई गई। परम आनंद से मुस्कुराता हुआ अपने दोनों मैडल धारण किए नेपोलियन चबूतरे पर पुआल की मसनद पर पसरा हुआ था। उसके बगल में फार्म हाउस की रसोई से लाई गई चाँदी की एक तश्तरी में नए कड़कते नोट एक गड्डी में सजा कर रखे हुए थे। पशु धीमे-धीमे उसके आगे से गुजरे और हरेक ने भरपूर आँखों से नोटों को निहारा। बॉक्सर ने बैंक-नोटों को सूँघने की नीयत से अपनी नाक आगे की। उसकी साँस से चिकने सफेद नोट हिले और सरसरा उठे। तीन दिन बाद एक हंगामा मच गया। व्हिंपर बीमारों की तरह पीला थोबड़ा लटकाए, अपनी साइकिल पर हड़बड़ाता हुआ आया। साइकिल अहाते में लुढ़काई और सीधे फार्म हाउस की तरफ लपका। अगले ही क्षण नेपोलियन के अपार्टमेंट में से गुस्से से भरी चीत्कार सुनाई दी। जो कुछ हुआ था, उसकी खबर जंगल की आग की तरह बाड़े में फैल गई। बैंक नोट नकली थे। फ्रेडरिक ने सारी लकड़ी मुफ्त में हथिया ली थी।

नेपोलियन ने तत्काल ही सब पशुओं को इकट्ठा होने के लिए कहा और भयंकर आवाज में फ्रेडरिक को मौत की सजा सुनाई। उसने कहा कि फ्रेडरिक जैसे ही मिले, उसे जिंदा ही खौलते पानी में डाल दिया जाए। साथ ही साथ उसने चेतावनी भी दी कि उसकी इस कपटपूर्ण करतूत के बाद और कुछ अनर्थकारी भी घट सकता है। फ्रेडरिक और उसके आदमी अपना चिर-प्रतीक्षित हमला किसी भी वक्त कर सकते हैं। बाड़े में घुसने के सभी रास्तों पर संतरी बिठा दिए गए। इसके अलावा चार कबूतरों को फॉक्सवुड में मेलमिलाप कर लेने के संदेश के साथ भेजा गया। उम्मीद की गई कि इससे विलकिंगटन के साथ फिर से अच्छे संबंध बन सकेंगे।

अगली ही सुबह हमला हो गया। पशु अभी नाश्ता कर रहे थे जब पहरेदार इस खबर के साथ भागते हुए आए कि फ्रेडरिक और उसके आदमी पाँच सलाखोंवाला गेट पहले ही पार कर चुके हैं। पूरी मुस्तैदी से पशु उनका मुकाबला करने के लिए आगे बढ़े, लेकिन इस बार तबेले की लड़ाई की तरह उन्हें आसानी से विजय नहीं मिल पाई। वे कुल पंद्रह आदमी थे और उनमें से छह के पास बंदूकें थीं। वे जैसे ही पचास गज की जद में आए, उन्होंने गोलियाँ चलाना शुरू कर दिया। पशु भयानक विस्फोटों और भेदती गोलियों को झेल नहीं पाए और नेपोलियन तथा बॉक्सर द्वारा जोश दिलाए जाने के बावजूद जल्दी ही उनके पैर उखड़ गए। उनमें से कई तो पहले ही जख्मी हो चुके थे। उन्होंने भाग कर बाड़े की इमारतों में शरण ली और सावधानीपूर्वक दरारों और झिर्रियों से झाँकने लगे। इस समय पूरा विस्तृत चरागाह और पवनचक्की सब कुछ दुश्मनों के हाथ में थे। कुछ पलों के लिए तो लगा कि नेपोलियन भी हताश हो गया है। वह एक भी शब्द बोले बिना अपनी पूँछ कड़ी किए हुए और उसे मरोड़ देते हुए वह आगे-पीछे होता रहा। सब फॉक्सवुड की दिशा में टुकुर-टुकुर निहारते रहे। अगर विलकिंगटन और उसके आदमी मदद को आ जाएँ तो अब भी बाजी पलट सकती हैं, लेकिन इसी वक्त एक दिन पहले भेजे गए चारों कबूतर लौट आए। उनमें से एक के पास विलकिंगटन द्वारा भेजा गया एक कागज का टुकड़ा था। इस पर पेंसिल से शब्द लिखे हुए थे : ‘बहुत मजा आया, भुगतो अब।’

इस बीच फ्रेडरिक और उसके आदमी पवनचक्की के पास रुक गए। पशु उन्हें देखने लगे। उनमें घबराहट की वजह से फुरफुरी दौड़ गई। उनमें से दो आदमियों ने सब्बल और बड़ा हथौड़ा निकाल लिया। वे पवनचक्की को धराशायी करने जा रहे थे।

नेपोलियन चिल्लाया, ‘असंभव, हमने दीवारें इतनी मजबूत बनाई हैं कि वे सब्बल-हथौडे से नहीं गिरा सकते। वे इसे सात दिन में भी नहीं तोड़ सकते। बहादुरी दिखाओ, कॉमरेड्स’। लेकिन बैंजामिन आदमियों की हरकतें ध्यान से देख रहा था। सब्बल और हथौड़ेवाले दोनों आदमी पवनचक्की की नींव के पास एक छेद बना रहे थे। धीरे-धीरे और जैसे आनंद से झूमते हुए बैंजामिन ने अपना लंबोतरा मुँह हिलाया।

‘मुझे भी ऐसा लगा,’ उसने कहा, ‘क्या आपको नजर नहीं आता कि वे क्या कर रहे हैं? एक ही क्षण में वे उस छेद में विस्फोट मसाले भरनेवाले हैं।’

 भयातुर पशु साँस रोके घड़ियाँ गिनने लगे। अब इमारतों की शरण से बाहर निकलने की हिम्मत जुटाना उनके बूते से बाहर था। कुछ ही मिनटों में आदमी चारों दिशाओं की ओर दौड़ते दिखाई दिए। अचानक कान फोड़नेवाली आवाज में धमाका हुआ। कबूतर हवा में फड़फड़ाने लगे और नेपोलियन के अलावा सभी पशु उछल कर पेट के बल जमीन पर लेट गए और अपने मुँह छिपा लिए। जब वे दोबारा उठ खड़े हुए तो पवनचक्की की जगह पर काला धुआँ मँडरा रहा था। धीरे-धीरे हवा धुआँ को बहा ले गई। पवनचक्की का वहाँ नामोनिशान भी नहीं था।

यह दृश्य देखते ही सभी पशुओं का उत्साह लौट आया। पल भर पहले जो डर और निराशा उन्हें घेरे हुए थे, उसका स्थान इस घिनौनी और अपमानजनक हरकत के खिलाफ आक्रोश ने ले लिया। बदले की एक तीखी चीख उभरी और आगे के आदेशों का इंतजार किए बिना सब एकजुट हो कर आगे बढ़े और दुश्मन पर हमला बोल दिया। इस बार उन्होंने उन क्रूर गोलियों की भी परवाह नहीं की जो उन पर ओलों की तरह बरस रही थीं। यह एक आदिम और भयंकर लड़ाई थी। आदमियों ने बार-बार गोलियाँ चलाईं और जब पशु उनके एकदम निकट आए गए तो उन्होंने अपनी लाठियों और अपने जूतों से वार करना शुरू कर दिया। एक गाय, तीन भेड़ें और दो हंस हताहत हो गए और घायल तो लगभग सभी पशु हो गए। यहाँ तक कि नेपोलियन की पूँछ का सिरा भी एक गोली लगने से कट गया, जबकि वह लड़ाई का संचालन पीछे से कर रहा था। लेकिन मनुष्य भी बिना चोट खाए जा न पाए। उनमें से बॉक्सर के सुमों की मार से तीन के तो सिर ही फूट गए। एक गाय के सींगों के वजह से एक-दूसरे आदमी की अंतड़ियाँ बाहर आ गईं, एक अन्य आदमी की तो जेस्सी और ब्लूबैल ने लगभग पैंट ही फाड़ दी। और तभी नेपोलियन के निजी अंगरक्षक नौ कुत्तों ने अचानक आदमियों के पीछे से हमला कर दिया और उन पर क्रूरता से भूँकने लगे तो उनमें भगदड़ मच गई। इन कुत्तों को नेपोलियन ने बाड़ के पीछे घात लगा कर छुपे बैठे रहने के लिए हिदायत दे रखी थी। उन्होंने देखा कि वे चारों ओर से घेर कर खतरे में फँस गए हैं। फ्रेडरिक ने जब देखा कि अब भागने में ही खैरियत है तो उसने चिल्ला कर अपने आदमियों को भाग निकल जाने को कहा। अगले ही पल कायर दुश्मन अपनी जान बचाने के लिए भागते हुए नजर आए। पशुओं ने खेतों के आखिरी सिरे तक उनका पीछा किया और काँटेदार बाड़ के बाहर खदेड़ते खदेड़ते भी उन्हें दो-चार लातें जमा ही दीं।

वे जीत तो गए लेकिन बुरी तरह आहत हो गए थे। उनके जख्मों से खून बह रहा था। वे धीमे-धीमे लँगड़ाते हुए अपने बाड़े की तरफ लौटे। घास पर इधर-उधर बिछी अपने साथियों की लाशें देख कर उनकी आँखों में आँसू भर आए। वे उस जगह पर गहरे शोक में मौन धारण करके थोड़ी देर के लिए खड़े हो गए जहाँ कभी पवनचक्की हुआ करती थी। हाँ, अब वह नहीं रही थी। उनकी मेहनत की आखिरी निशानी भी बाकी नहीं रही थी। यहाँ तक कि उसकी नींव भी मिट्टी में मिल चुकी थी और इस बार तो दोबारा बनाने के लिए वे नीचे गिरे हुए पत्थरों का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते थे। इस बार तो पत्थर ही गायब हो गए थे। धमाके के जोर ने उन्हें सैंकड़ों गज की दूरी तक उछाल दिया था। ऐसा लगता था जैसे वहाँ कभी पवनचक्की थी ही नहीं।

वे जैसे ही बाड़े के निकट पहुँचे, स्क्वीलर फुदकता हुआ और अपनी पूँछ हिलाता हुआ संतुष्ट भाव से उनके पास आया। लड़ाई के दौरान वह रहस्यमय तरीके से गायब था। तभी पशुओं ने फार्म की इमारत की तरफ से बंदूक चलने की समारोहवाली आवाज सुनी।

‘यह बंदूक किस लिए चलाई जा रही है?’ बॉक्सर ने पूछा।

‘हमारी जीत का जश्न मनाने के लिए।’ स्क्वीलर चिल्लाया।

‘कैसी जीत?’ बॉक्सर ने कहा। उसके घुटनों से खून बह रहा था। उसकी एक नाल निकल गई थी और एक सुम चिर गया था। उसकी पिछली टाँग में दर्जन-भर गोलियाँ घुसी हुई थीं।

‘कैसी जीत, कॉमरेड? उन्होंने हमारी पवनचक्की मटियामेट कर दी है। हमने इसके लिए दो साल मेहनत की थी।’

‘तो क्या हुआ? हम दूसरी पवनचक्की बना लेंगे। हम अगर चाहें तो छह पवनचक्कियाँ बना लेंगे। आप इस बात की तारीफ नहीं कर रहे हैं, कॉमरेड, जो हमने कर के दिखाई है। इस समय हम जिस जमीन पर खड़े हैं, यही जमीन दुश्मन के कब्जे में थी। और अब कॉमरेड नेपोलियन के नेतृत्व का आभार - हमने इसका चप्पा-चप्पा वापस जीत लिया है।’

‘तो हमने यही जीता, जो हमारे पास पहले से था?’ बॉक्सर ने पूछा।

‘यही हमारी जीत है।’ स्क्वीलर ने कहा।

वे लँगड़ाते हुए अहाते में आए। बॉक्सर की टाँग में चमड़ी के नीचे गोलियाँ टीसें मार रही थीं। उसने अपने सामने, नींव से शुरू करते हुए, फिर से पवनचक्की बनाने का भारी काम देखा। उसने तुरंत ही कल्पना में खुद को हर काम के लिए तैयार कर लिया। लेकिन उसे पहली बार लगा, वह ग्यारह वर्ष का हो चुका है और उसकी मजबूत माँसपेशियाँ शायद पहले जैसी तो नहीं ही रही हैं।

 जब पशुओं ने हरा झंडा फहराते हुए देखा और दोबारा बंदूक की आवाज सुनी - पूरे सात बार गोलियाँ दागी गईं और नेपोलियन द्वारा दिया गया भाषण सुना, जिसमें उनके व्यवहार पर उन्हें बधाई दी गई थी, तो उन्हें भी लगा कि आखिर उन्होंने एक बड़ी विजय हासिल की है। लड़ाई में मारे गए पशुओं का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार कर दिया गया। बॉक्सर और क्लोवर ने शव-वाहिनी के रूप में इस्तेमाल की गई गाड़ी खींची और नेपोलियन खुद जुलूस के आगे-आगे चलता रहा। पूरे दो दिन तक जश्न मनाया जाता रहा। गाना-बजाना हुआ, भाषण दिए गए। बंदूक से और गोलियाँ दागी गईं। प्रत्येक पशु को एक-एक सेब का विशेष उपहार दिया गया। हरेक चिड़िया को दो औंस अनाज मिला और हरेक कुत्ते को तीन-तीन बिस्किट दिए गए। यह घोषणा की गई कि यह लड़ाई पवनचक्की की लड़ाई कहलाएगी। नेपोलियन ने एक नए अलंकरण की शुरूवात की है - यह हरित ध्वज पदक कहलाएगा। इसे नेपोलियन ने खुद को प्रदान कर दिया। खुशियों के आम हल्ले-गुल्ले में बैंक नोटों का दुर्भाग्यपूर्ण मामला भुला दिया गया। 

इस बात को कुछ ही दिन बीते थे कि सूअरों को फार्म हाउस के तहखाने में व्हिस्की की एक पेटी मिली। बाड़े पर पहली बार कब्जा करते समय इस पर किसी की भी निगाह नहीं गई थी। उस रात फार्म हाउस से जोर-जोर से गाने-बजाने की आवाजें आती रहीं और इस बात पर सबको आश्चर्य हुआ कि इनमें ‘इंग्लैंड के पशु’ की धुनें मिली हुई थीं। लगभग साढ़े नौ बजे के करीब मिस्टर जोंस का पुराना बड़ा-सा झुका हुआ हैट पहने हुए नेपोलियन पिछवाड़े के दरवाजे से प्रकट होता हआ साफ-साफ देखा गया। वह लपकता हुआ अहाते में जा कर गायब हो गया। थोड़ी ही देर बाद वह वापस भीतर घुस गया। लेकिन सुबह के वक्त फार्म हाउस पर गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था। कोई भी सूअर इधर-उधर नजर नहीं आ रहा था। नौ बजने को थे, जब स्क्वीलर प्रकट हुआ। वह धीमे-धीमे चल रहा था और थका-हारा लग रहा था, उसकी आँखें सुस्त थीं, पूँछ उसके पीछे लोथड़े सी लटकती हुई लग रही थी। हर दृष्टि से वह गंभीर रूप से बीमार लग रहा था। उसने सब पशुओं को इकट्ठा होने के लिए कहा और उन्हें बताया कि वह एक बहुत ही दुखदाई खबर सुनाने जा रहा है। कॉमरेड नेपोलियन मरनेवाले हैं।

अफसोस की एक चीख उभरी। फार्म हाउस के दरवाजों के बाहर पुआल बिछा दिया गया और उस पर पशु पंजों के बल चले। अपनी आँखों में आँसू भरे एक-दूसरे से पूछते फिरे कि उनसे यदि उनके नेताजी छिन जाएँगे तो वे क्या करेंगे? एक अफवाह चारों तरफ फैल गई कि आखिर स्क्वीलर नेपोलियन के भोजन में जहर मिलाने में सफल हो ही गया। ग्यारह बजे एक और घोषणा करने के लिए स्क्वीलर बाहर आया। इस धरती पर, अपने अंतिम काम के रूप में नेपोलियन ने एक आज्ञा जारी की है कि अल्कोहल का सेवन करनेवाले को मृत्युदंड दिया जाएगा।

अलबत्ता, शाम तक नेपोलियन की हालत कुछ-कुछ सुधर गई और अगली सुबह स्क्वीलर ये बताने की स्थिति में था कि नेपोलियन तेजी से ठीक हो रहे हैं। उसी दिन की शाम तक नेपोलियन काम पर आ चुके थे, और अगले दिन यह पता चला कि उन्होंने व्हिंपर से कहा है कि वह विलिंगडन से शराब बनाने आदि पर कुछ पुस्तिकाएँ खरीद कर लाए। सप्ताह भर बाद नेपोलियन ने आदेश दिया कि फलोद्यान के परे के छोटे बाड़े में जुताई की जाएगी। पहले यह इरादा था कि अब परिश्रम करने की उम्र पूरी कर चुके पशुओं को इससे अलग रखा जाएगा। यह बताया गया कि चरागाह में घास खत्म होने को है और इसमें फिर से बीज डालने की जरूरत है, लेकिन जल्दी ही यह पता चला कि नेपोलियन इसमें जौ बोना चाहता है। लगभग इन्हीं दिनों एक ऐसी विचित्र घटना घटी, जिसे शायद ही कोई समझ पाया हो। एक रात बारह बजे के आस-पास अहाते में एक जोरदार धमाका हुआ और सभी पशु अपने-अपने थान से भागे आए। चाँदनी रात थी। बड़े बखार की आखिरी दीवार, जहाँ सात धर्मादेश लिखे हुए थे, के नीचे दो टुकड़ों में टूटी हुई एक सीढ़ी पड़ी हुई थी। स्क्वीलर कुछेक क्षणों के लिए भौंचक्का उसी के पास औंधा पड़ा था। पास में हाथ भर की दूरी पर एक लालटेन, पेंट-कूची और सफेद रंग का उलटा पड़ा डिब्बा बिखरे पड़े थे। कुत्तों ने तत्काल स्क्वीलर के आस-पास घेरा बनाया और जैसे ही वह चलने लायक हुआ, उसकी अगवानी करके फार्म हाउस में ले गए। बूढ़े बैंजामिन के अलावा कोई भी समझ नहीं पाया कि आखिर हुआ क्या था। उसने अपनी मुंडी हिलाई जैसे सब जानता हो, समझता हो, लेकिन वह बोला कुछ भी नहीं।

लेकिन कुछ दिन बाद मुरियल जब खुद ही सात धर्मादेश पढ़ रही थी, तो उसने पाया कि वहाँ एक और धर्मादेश ऐसा था, जिसे पशुओं ने गलत याद रखा था। उन्होंने सोचा था कि पाँचवाँ धर्मादेश यह कहता है कि ‘कोई भी पशु शराब नहीं पिएगा’, लेकिन इसमें एक शब्द और था, जिसे वे भूल गए थे। दरअसल धर्मादेश इस तरह से था - कोई भी पशु अधिक शराब नहीं पिएगा।


9

बॉक्सर का चिरा हुआ सुम ठीक होने में बहुत समय लग गया। विजय पर्व के समारोह समाप्त होने के अगले दिन से ही उन्होंने पवनचक्की फिर से बनाना शुरू कर दिया था। बॉक्सर ने एक दिन की भी छुट्टी लेने से इनकार कर दिया और इसे इज्जत का सवाल बना लिया कि कभी भी कोई भी उसे तकलीफ में न देखे। शाम के वक्त उसने क्लोवर को अकेले में बताया कि सुम उसे बहुत तकलीफ दे रहा है। क्लोवर जड़ी-बूटियाँ चबा-चबा कर उनकी पुलटिस बनाती और उनसे बॉक्सर के सुम का इलाज करती। वह और बैंजामिन, दोनों मिल कर बॉक्सर से कम मेहनत करने का आग्रह करते। क्लोवर उसे बताती, ‘घोड़े के फेफड़े हमेशा काम करते नहीं रह सकते,’ लेकिन बॉक्सर सुना-अनसुना कर देता। उसने बताया कि जिंदगी में उसकी एक महत्वाकांक्षा है - जब वह रिटायरमेंट की उम्र तक पहुँचे, पवनचक्की को अपनी आँखों से बनता देख ले।

शुरू-शुरू में जब पशु बाड़े के लिए पहली बार कानून बनाए गए थे तो घोड़ों और सूअरों के लिए रिटायरमेंट की उम्र बारह वर्ष, गायों के लिए चौदह वर्ष, कुत्तों के लिए नौ वर्ष, भेड़ों के लिए सात वर्ष और मुर्गियों तथा हंसों के लिए पाँच वर्ष तय की गई थी। बुढ़ापे के लिए उदार पेंशन के लिए सहमति हुई थी। और इस समय हालत यह थी कि अभी तक कोई भी पशु रिटायर हो कर पेंशन नहीं पा रहा था, लेकिन अरसे से इस मामले पर खूब चर्चाएँ हो रही थीं। अब फलोद्यान के परेवाले छोटे खेत को जौ की खेती के लिए अलग कर दिए जाने से, यह अफवाहें फैलने लगी थीं कि विशाल चरागाह के एक कोने के चारों तरफ बाड़ लगा कर उसे सेवानिवृत्त पशुओं के चरने की जगह बनाया जानेवाला था। बताया गया था कि घोड़े के लिए पाँच पौंड अनाज और सर्दियों में पंद्रह पौंड सूखी घास और सार्वजनिक छुट्टियों पर एक गाजर या संभव हुआ तो एक सेब पेंशन के रूप में दिए जानेवाले थे। बॉक्सर का बारहवाँ जन्म दिन अगले साल गर्मियों के बाद पड़ता था। इस बीच जिंदगी मुश्किलों से भरी रही। सर्दियों का मौसम पिछले साल की ही तरह ठिठुरानेवाला था और खाने की पहले से ज्यादा कमी थी। एक बार फिर सूअरों और कुत्तों के अलावा सबके राशन में कटौती कर दी गई। स्क्वीलर ने स्पष्ट किया कि राशनों में नाप-तौल कर समानता लाना पशुवाद के सिद्धांतों के खिलाफ होगा। कुछ भी हो, उसे दूसरे पशुओं के सामने यह सिद्ध करने में कोई परेशानी नहीं हुई कि लगने को चाहे कुछ भी लगे, दरअसल खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी। अलबत्ता राशनों में फेरबदल करना जरूरी समझा गया। (स्क्वीलर कभी भी कटौती न कह कर फेरबदल ही कहता), लेकिन जोंस के दिनों की तुलना में देखा जाए तो आश्चर्यजनक सुधार हुआ है। अपनी तीखी, तेज आवाज में उसने विस्तार से उनके सामने सिद्ध किया कि उन्हें जोंस के दिनों की तुलना में ज्यादा जई, ज्यादा सूखी घास, ज्यादा शलजम मिल रहे हैं, वे अब कम घंटे काम करते हैं, और कि उन्हें अब ज्यादा अच्छी क्वालिटी का पीने का पानी मिल रहा है, उनका जीवन काल बढ़ गया है, उनके बाल-बच्चे अधिक अनुपात में शिशु अवस्था पार करके जीते हैं कि अब उनके थानों में ज्यादा पुआल हैं और उन्हें पिस्सू कम सताते हैं। पशु इसके एक-एक शब्द पर विश्वास कर लेते। सच तो यह था कि अब जोंस और वह सब कुछ जिसका वह प्रतीक था, उनकी स्मृतियों में लगभग उतर चुका था। वे जानते थे कि आजकल जिंदगी दुश्वार और नंगी-बुच्ची है, और कि वे अकसर भूखे और बिना ओढ़ने-बिछौने के रहते हैं और कि वे जब से नहीं रहे होते तो काम में ही जुते रहते हैं लेकिन इस बात में कोई शक नहीं था कि बीते हुए दिन बहुत खराब थे। उन्हें यह विश्वास करके अच्छा लगता था। इसके अलावा, उन दिनों वे गुलाम थे और अब वे आजाद हैं, और इसी से सारा फर्क पड़ता है। स्क्वीलर यह बताना कभी न भूलता।

अब खानेवाले बहुत अधिक बढ़ गए थे। शरद ऋतु में चार सूअरनियों ने कमोबेश एक साथ बच्चे जने। कुल मिला कर इकतीस सूअरों को जन्म दिया। नन्हेंअ सूअर चितकबरे थे और चूँकि बाड़े में सिर्फ नेपोलियन ही एक ऐसा सूअर था, जिसे बधिया नहीं किया गया था, इसलिए यह पता लगाना मुश्किल नहीं था कि ये बच्चे किसकी औलादें हैं। यह घोषणा की गई कि बाद में जब ईटें और लकड़ी खरीद ली जाएगी, फार्म हाउस के बगीचे में एक स्कूल बनाया जाएगा। फिलवक्त, नन्हे सूअरों को नेपोलियन खुद ही फार्म हाउस की रसोई में पढ़ा-लिखा रहा था। वे बगीचे में अभ्यास करते। उनसे कहा गया था कि वे दूसरे नन्हें पशुओं के साथ न खेला करें। लगभग इन्हीं दिनों, यह कानून भी बना दिया गया कि जब सूअर तथा अन्य पशु रास्ते में मिलें तो दूसरा पशु एक तरफ खड़ा हो जाएगा और यह भी कि सभी सूअरों को, चाहे वे किसी भी स्तर के हों, अब रविवार को अपनी पूँछों पर हरे रिबन लगाने की सुविधा होगी।

बाड़े के लिए यह खूब सफल साल रहा, लेकिन पैसों की तंगी फिर भी बनी रही। स्कूल की इमारत के लिए ईटें, रेती, चूना खरीदे जाने थे। पवनचक्की के लिए मशीनरी खरीदने के लिए भी बचत की शुरुआत करनी होगी। और फिर लैंप जलाने के लिए तेल था। घर के लिए मोमबत्तियाँ थीं। नेपोलियन की खुद की मेज के लिए चीनी थी (उसने दूसरे सूअरों को इस आधार पर चीनी लेने से मना कर रखा था कि इससे वे मोटे हो जाएँगे) और फिर पचीसों चीजें थीं जिन्हें बदलना था जैसे औजार, कीलें, डोरियाँ, कोयला, तार, लोहा-लंगड़ और कुत्तों के लिए बिस्किट। सूखी घास का एक गट्ठर और आलू की फसल का कुछ हिस्सा बेच दिए गए, अंडों का ठेका चार सौ अंडे से बढ़ा कर छह सौ अंडे प्रति सप्ताह कर दिया गया। इससे मुर्गियों को सेने के लिए इतने कम अंडे मिले कि वे मुश्किल से अपनी संख्या बराबर रख पाने लायक चूजे दे पाई। दिसंबर में घटाए गए राशन को फरवरी में फिर घटा दिया गया। तेल बचाने की दृष्टि से थानों पर लालटेनों की मनाही कर दी गई। सूअर पहले की तरह सुविधाएँ भोगते रहे और वे पड़े-पड़े मुटिया रहे थे। फरवरी के आखिरी दिनों की एक दोपहर को एक गर्मसी गाढ़ी घनी, भूख जगा देनेवाली खूशबू रसोईघर के परे, जोंस के वक्त से ही उजाड़ पड़े कलालखाने से बिखरनी शुरू हुई। पशुओं ने आज तक ऐसी खुशबू नहीं सूँघी थी। किसी ने कहा कि यह जौ पकने की महक है। पशुओं ने भूख से बेताब होते हुए हवा को सूँघा और हैरान हुए कि क्या उनके रात के खाने के लिए आज गरमागरम सानी तैयार किया जा रहा है। लेकिन कोई गरम सानी नजर नहीं आया। अगले रविवार को यह घोषणा कर दी गई कि अब से सारी जौ सूअरों के लिए आरक्षित रहेगी। फलोद्यान के परेवाले खेत में पहले ही जौ बोई जा चुकी थी। यह खबर फैल गई कि आजकल हरेक सूअर को रोजाना एक पिंट बीयर का राशन मिल रहा है। नेपोलियन खुद आधा गैलन बीयर लेता है। उसे यह हमेशा क्राउन डर्बी सूप की प्ले ट में सर्व की जाती है।

लेकिन यदि वहाँ सहने के लिए जीवन की तकलीफें थीं, तो उन्हें काफी हद तक यह तसल्ली भी थी कि आजकल की जिंदगी में ज्यादा मान-मर्यादा है। अब ज्यादा गाने-बजाने होते, अधिक भाषण होते, अधिक जुलूस निकाले जाते। नेपोलियन ने यह आदेश दिया था कि हफ्ते में एक बार स्वैच्छिक प्रदर्शन जैसे नामवाली कोई चीज मनाई जाए। इसका उद्देश्य यह था कि पशु बाड़े के संघर्षों और सफलताओं को मनाया जा सके। एक निर्धारित समय पर सब पशु अपना-अपना काम छोड़ देते और मिलिटरी की टुकड़ियों की तरह बाड़े की चारदीवारी में चारों तरफ मार्च किया करते। इसमें सूअर नेतृत्व करते। उनके पीछे घोड़े, फिर गायें, फिर भेड़ें और उनके बाद दड़बों के प्राणी रहते। कुत्ते जुलूस के दाएँ-बाएँ चलते और सबसे आगे नेपोलियन का काला मुर्गा मार्च करता चलता। बॉक्सर और क्लोवर हमेशा अपने बीच सुम और सींग वाला बड़ा हरा झंडा लिए चलते। इस पर लिखा रहता, ‘कामरेड नेपोलियन अमर रहे।’ इसके बाद नेपोलियन के सम्मान में रची गई कविताओं का पाठ किया जाता और फिर स्क्वीलर का भाषण होता, जिसमें वह खाद्यान्नों के उत्पादन में हाल ही में हुई वृद्धियों का लेखा-जोखा देता। इसी मौके पर बंदूक से एक गोली दागी जाती। भेड़ें इस स्वैच्छिक प्रदर्शन की सबसे बड़ी भक्त थीं, और यदि कोई शिकायत करता (जब कोई सूअर या कुत्ता आसपास न होता तो कुछ पशु कहते भी थे) कि इनसे समय की बरबादी होती है और देर तक सर्दी में ठिठुरते खड़े रहना पड़ता है, यह तय था कि भेड़ें ‘चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें खराब’ के अपने राग में उसे शांत कर देतीं। कुल मिला कर पशुओं को इन समारोहों में आनंद आता। बार-बार यह याद दिलाया जाना उन्हें सुख कर लगता कि कुछ भी हो, वे सचमुच अपने मालिक हैं और कि वे जो कुछ भी करते हैं, अपनी भलाई के लिए करते हैं। इसलिए इन गीतों से, जुलूसों से, स्क्वीलर की लंबी-चौड़ी सूचियों से, बंदूक की गूँज से, मुर्गे की कुकडू-कूँ से और झंडे के फहराने से वे भूल पाते कि उनके पेट, अकसर खाली होते हैं।

अप्रैल में पशु बाड़े को गणतंत्र घोषित कर दिया गया और इसके साथ राष्ट्रपति का चुनाव जरूरी हो गया। इस पद के लिए एक ही उम्मीदवार था - नेपोलियन। उसे ही निर्विरोध चुन लिया गया। उसी दिन सुनने में आया कि कुछ और दस्तावेज मिले हैं, जिनसे स्नोबॉल और जोंस के बीच साँठ-गाँठ के और ब्यौरों पर से परदा उठता है। अब यह पता चला कि स्नोबॉल ने दाँव-पेच के जरिए तबेले की लड़ाई में न सिर्फ हारने की कोशिश की थी, जैसी की पहले पशुओं ने कल्पना की थी, वह तो खुलेआम जोंस की तरफ से लड़ रहा था। दरअसल वही मनुष्यों की फौजों का असली लीडर था। और जब उसने लड़ाई में हमला किया था तो उसके होठों पर यही शब्द थे, ‘मानवता अमर रहे।’ कुछेक पशुओं को अभी भी याद होगा कि उन्होंने स्नोबॉल की पीठ पर घाव देखे थे, वे घाव नेपोलियन के दाँतों के गड़ने के निशान थे।

गर्मियों के दौरान मोसेस, काला कौवा अचानक बाड़े में वापस आ गया। वह कई बरसों के बाद वापस लौटा था। अब भी वह बिलकुल पहले की तरह था। कोई काम-धाम न करना और उसी तरह मिसरी पर्वत का पुराना राग अलापना। वह एक ठूँठ पर जा बैठता, अपने काले पंख फड़फड़ाता और जो भी उसे सुनने के लिए तैयार हो जाए, उसके सामने घंटों बक-बक करता। 

‘वहाँ, उधर, कॉमरेड्स,’ अपनी लंबी चोंच से वह आसमान की तरफ इशारा करके दृढ़तापूर्वक कहता, ‘उस तरफ जो आपको काले बादल दिखाई दे रहे हैं ना, उन्हीं के परे है मिसरी पर्वत, एक ऐसा सुखद देश जहाँ हम बदनसीबों को हमारी मेहनत से हमेशा के लिए छुट्टी मिलेगी।’ वह यहाँ तक दावा करता कि एक बार वह अपनी ऊँची उड़ान पर वहाँ जा चुका है, उसने खुद बनमेथी के सदाबहार खेत की झाड़ियों में उगी अलसी की खली और गुड़ देखे हैं। कई पशु उस पर भरोसा कर बैठते। उन्होंने खुद को तर्क दिया कि इस समय उनकी जिंदगियाँ भुखमरी और हाड़-तोड़ मेहनत से बेहाल हैं, क्या यह ठीक और उचित नहीं है कि कहीं एक सुखद संसार भी बसा हुआ है? मोसेस के प्रति सूअरों के रवैये को समझने में सभी को उलझन हो रही थी। उन सबने उपेक्षा से यह घोषणा कर दी कि मिसरी पर्वत के बारे में उसके किस्से चंडूखाने की उपज हैं, इसके बावजूद बिना कोई काम-काज किए, रोजाना चुल्लू भर बीयर के भत्ते पर उसे बाड़े पर रहने दिया गया।

सुम की चोट में आराम आ जाने के बाद बॉक्सर पहले से भी ज्यादा मेहनत करता। सच में, उस साल सभी पशुओं ने गुलामों की तरह काम किया। बाड़े के नियमित कामों के अलावा, पवनचक्की को फिर से बनाना था, फिर मार्च में नन्हें सूअरों के लिए स्कूल की इमारत का भी काम शुरू कर दिया गया था। कई बार अधपेट खाने के साथ काम के लंबे घंटे गुजारना दूभर होता लेकिन बॉक्सर कभी विचलित न होता। उसने न तो अपने शब्दों से और न कहीं काम से ऐसा कोई संकेत ही दिया कि अब उसमें पहले जैसी ताकत नहीं रही है। अब उसकी शक्ल-सूरत भी पहले से बदली हुई नजर आती। उसकी खाल की चमक पहले की तुलना में कम हो गई थी, और उसके विशाल पुट्ठे सिकुड़ गए लगते थे। बाकी पशु बताते, ‘वसंत ऋतु की घास आते ही बॉक्सर पहले जैसा हो जाएगा,’ लेकिन वसंत आया और गया, बॉक्सर की हालत वैसी ही रही। कई बार खदानवाली ढलान पर वह किसी बड़ी चट्टान को अपने बाहुबल के सहारे धकेलता, तो साफ लगता था, सिर्फ काम करने की लगन ही उसे उसके पैरों पर खड़ा रखे हुए हैं। ऐसे क्षणों में उसके होंठ बुदबुदाते देखे जा सकते थे, ‘मैं और कठिन परिश्रम करूँगा’, उसकी आवाज साथ छोड़ चुकी थी। एक बार फिर क्लोवर और बैंजामिन ने उसे चेताया कि सेहत का खयाल रखे, लेकिन बॉक्सर ने कान नहीं धरे। उसका बारहवाँ जन्म दिन आनेवाला था। पेंशन पर जाने से पहले वह पत्थरों का अच्छा-खासा भंडार जमा कर देना चाहता था। उसके बाद जो कुछ भी हो, उसकी उसे परवाह नहीं थी।

गर्मियों की एक शाम ढलने के बाद अचानक बाड़े में अफवाह फैली कि बॉक्सर को कुछ हो गया है। वह पवनचक्की के पास एक पत्थर घसीट ले जाने के लिए अकेला गया हुआ था। दुर्भाग्य से अफवाह सही निकली। कुछ ही मिनटों बाद कबूतर फड़फड़ाते हुए खबर ले आए, ‘बॉक्सर गिर पड़ा है। वह पसलियों के बल गिरा पड़ा है और खड़ा नहीं हो सकता।’

बाड़े के आधे पशु उस टेकरी की तरफ लपके जहाँ पवनचक्की खड़ी थी। वहाँ पड़ा हुआ था बॉक्सर, गाड़ी के बमों के बीच, गर्दन बाहर को निकली हुई। वह अपना सिर भी नहीं उठा पा रहा था। उसकी आँखें पथरा गई थीं, और सारा बदन पसीने से लथपथ था। उसके मुँह से खून की एक पतली लकीर बह कर बाहर आ रही थी। क्लोवर उसके पास ही घुटनों के बल झुकी।

‘बॉक्सर,’ वह चीखी, ‘कैसे हो?’

‘ओह, मेरा फेफड़ा’ बॉक्सर ने कमजोर आवाज में कहा, ‘कोई परवाह नहीं, मुझे लगता है, तुम मेरे बगैर भी पवनचक्की पूरी कर ही लोगी। अब तो पत्थरों का अच्छा-खासा ढेर जमा हो गया है। वैसे भी मुझे अगले ही महीने चले जाना था। तुमसे सच कहूँ तो मैं अब अपने रिटायरमेंट की राह देख रहा था। और शायद बैंजामिन भी तो बूढ़ा हो चला है, वे उसे भी उसी समय रिटायर कर देंगे। तब दोनों का साथ रहेगा।’

‘हमें तुरंत मदद की जरूरत है,’ क्लोवर बोली, ‘दौड़ो, स्क्वीलर को जा कर बताएँ।’

बाकी सभी पशु स्क्वीलर को खबर देने के लिए फार्म हाउस की तरफ दौड़ पड़े। सिर्फ क्लोवर वहीं रही और बैंजामिन बॉक्सर के पास बैठा, बिना कुछ भी बोले, अपनी लंबी पूँछ से मक्खियाँ उड़ाता रहा। लगभग पंद्रह मिनट बाद स्क्वीलर आया। वह सहानुभूति और चिंता से भरा हुआ था। उसने बताया कि नेपोलियन को अपने बाड़े से सबसे अधिक निष्ठावान कामगार के साथ हुई इस दुखद दुर्घटना का पता चला है, वे बहुत व्यथित हो गए हैं। वे बॉक्सर को इलाज के लिए विलिंगडन के अस्पताल में भेजने की व्यवस्था कर रहे हैं। इस पर पशु थोड़ा बेचैन हो गए। अब तक मौली और स्नोबॉल के अलावा और कोई भी बाड़ा छोड़ कर कभी नहीं गया था। उन्हें यह सोच कर अच्छा नहीं लग रहा था कि उनका बीमार साथी मनुष्यों के हाथों में जाए। अलबत्ता, स्क्वीलर ने उन्हें समझा-बुझा दिया कि बाड़े में जो कुछ किया जा सकता है, उसकी तुलना में विलिंगडन में पशु  चिकित्सक बॉक्सर का इलाज ज्यादा संतोषजनक तरीके से कर सकेगा। लगभग आधे घंटे के बाद, बॉक्सर की हालत थोड़ी सँभली। वह बहुत मुश्किल से अपने पैरों पर खड़ा हो सका, और लँगड़ाता हुआ अपने थान की ओर चला। क्लोवर और बैंजामिन ने वहाँ उसके लिए अच्छी तरह से पुआल बिछा कर उसका बिस्तर तैयार कर दिया था।

अगले दो दिन तक बॉक्सर अपने थान में ही पड़ा रहा। सूअरों ने गुलाबी दवा की एक बड़ी शीशी भिजवा दी थी। यह उन्हें बाथरूम में दवाओं के खाने में पड़ी मिल गई थी। क्लोवर बॉक्सर को खाने के बाद दो बार यह दवा देती। शाम के वक्त वह थान में उसके पास आ बैठती, उससे बातें करतीं, जब कि बैंजामिन उस पर से मक्खियाँ उड़ाता। बॉक्सर ने प्रकट किया कि जो भी हो गया है, उस पर अफसोस न करें। अगर वह जल्दी चंगा हो गया तो वह अगले तीन साल तक भी जीने की उम्मीद कर सकता है और वह आगे आनेवाले आराम के दिनों की राह देख रहा है, जिन्हें वह बड़े चरागाह के एक कोने में बिताया करेगा। यह पहली बार ही होगा कि वह फुर्सत से पढ़-लिख सकेगा और अपना ज्ञान बढ़ा सकेगा। उसने बताया कि वह अपनी जिंदगी के बाकी दिन वर्णमाला के बाकी बचे अक्षर सीखने में लगा देना चाहता है।

बैंजामिन और क्लोवर तो बॉक्सर के साथ सिर्फ काम के समय के बाद ही रह सकते थे, लेकिन यह दोपहर का वक्त था जब उसे ले जाने के लिए एक वैन आई। सभी पशु एक सूअर की देखरेख में शलजम के खेत की खरपतवार निकालने के काम में लगे हुए थे। तभी सबको बैंजामिन को फार्म हाउस की इमारत की तरफ से तेजी से भागते हुए आते देख कर बहुत हैरानी हुई। वह पूरे गले के जोर से रेंक रहा था। सबने पहली बार बैंजामिन को इतना उत्तेजित देखा था और पहली ही बार लोगों ने उसे भागते देखा था। जल्दी करो, जल्दी करो,' वह चिल्लाया। ‘जल्दी आओ। वे बॉक्सर को लिए जा रहे हैं।’ सूअर के आदेश की परवाह किए बिना सभी पशु काम छोड़ कर फार्म हाउस की तरफ दौड़ पड़े। हाँ, वहीं अहाते में एक बंद गाड़ी खड़ी थी, जिसमें घोड़े जुते हुए थे। गाड़ी के दोनों तरफ कुछ लिखा हुआ था और चालक की गद्दी पर बड़ा हैट पहने धूर्त-सा लगने वाला एक आदमी बैठा हुआ था। बॉक्सर का थान खाली था।

पशु वैन के चारों तरफ भीड़ लगा कर खड़े हो गए। ‘अलविदा, गुड बाय, बॉक्सर’ सबने मिल कर कहा।

‘मूर्खो! जाहिलो!’ बैंजामिन चिल्लाया, वह अपने छोटे-छोटे सुमों से जमीन खूँदने और आगे-पीछे होने लगा। ‘मूर्खो! तुम्हें नजर नहीं आता, इस वैन के दोनों तरफ क्या लिखा है?’

यह सुन कर सब पशु ठिठक गए। एकदम सन्नाटा छा गया। मुरियल ने हिज्जे करके पढ़ना शुरू किया। लेकिन बैंजामिन ने उसे एक तरफ धकेला और श्मशानी सन्नाटे में पढ़ना शुरू किया।

‘अल्फ्रेयड सिमौंड्स, घोड़ा कसाई और हड्डी की गोंद के निर्माता, विलिंगडन। चमड़े और हड्डी चूरे के विक्रेता। कुत्तों के सप्लायर। तुम्हें समझ में नहीं आता, इस सबका क्या मतलब है? वे बॉक्सर को बूचड़खाने लिए जा रहे हैं।’

पशुओं में डर की एक चीख निकल गई। तभी गद्दी पर बैठे आदमी ने घोड़ों को चाबुक मारा और वैन धीमे-धीमे अहाते से बाहर जाने लगी। सभी पशु गला फाड़ते हुए ऊँची आवाज में चिल्लाते हुए उसके पीछे लपके। क्लोवर धक्का-मुक्की करके आगे की तरफ आ गई। वैन अब गति पकड़ने लगी थी। क्लोवर ने अपने भारी-भरकम शरीर को गति देने और सरपट दौड़ने की कोशिश की। ‘बॉक्सर,’ वह चिल्लाई, ‘बॉक्सर! बॉक्सर’ और ठीक उसी वक्त वैन की पिछली खिड़की में बॉक्सर का सफेद-धारीवाला चेहरा नजर आया। उसने शायद बाहर का हल्ला-गुल्ला सुन लिया था।

‘बॉक्सर,' क्लोवर तेज आवाज में चिल्लाई, ‘बॉक्सर, बाहर निकलो। जल्दी बाहर निकलो। वे तुम्हें तुम्हारी मौत के पास लिए जा रहे हैं।’ सभी पशु चिल्लाने लगे, ‘बॉक्सर, बाहर आओ, बॉक्सर, बाहर निकलो।’ लेकिन वैन गति पकड़ चुकी थी और उनसे दूर होती चली जा रही थी। यह पता भी नहीं था कि बॉक्सर को क्लोवर का कहा कुछ समझ भी आया है या नहीं?

लेकिन क्षण भर बाद खिड़की से बॉक्सर का चेहरा गायब हो गया और वैन में से जोर-जोर से पैर पटकने, टापने की आवाजें आने लगीं। वह लातों से दरवाजा तोड़ कर बाहर आने की कोशिश कर रहा था। एक वक्त था जब बॉक्सर की लातें वैन को माचिस की डिबिया की तरह तहस-नहस कर डालतीं। लेकिन अफसोस। उसकी ताकत उसका साथ छोड़ चुकी थी। कुछ ही पलों में पैर पटकने की आवाजें कम होती चली गईं और फिर एकाएक खत्म हो गई। हताश होकर पशुओं ने वैन खींच रहे दोनों घोड़ों से चिरौरी करनी शुरू कर दी, कि वे ही गाड़ी रोक दें, ‘कॉमरेड्स, कॉमरेड्स,’ वे चिल्लाए। ‘अपने ही भाई को मौत के मुँह में मत ले जाओ।’ लेकिन मूर्ख जानवर वे इतने अज्ञानी थे कि समझ ही नहीं पाए कि हो क्या रहा है। उन्होंने अपने कान पट-पटाए और अपनी चाल तेज कर दी। बॉक्सर का चेहरा खिड़की में दोबारा दिखाई नहीं दिया। जब तक किसी को सूझा कि आगे दौड़ कर पाँच सलाखोंवाला गेट बंद कर दे, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अगले ही पल वैन गेट के बाहर थी और तेजी से सड़क पर जा कर नजरों से ओझल हो गई। बॉक्सर को फिर कभी नहीं देखा गया।

तीन दिन बाद बताया गया कि वह विलिंगडन के अस्पताल में चल बसा, हालाँकि उसे घोड़ों को मिल सकनेवाला बेहतरीन इलाज उपलब्ध कराया गया था। स्क्वीलर ने दूसरे पशुओं को यह बात बताई। उसने बताया कि वह बॉक्सर की अंतिम घड़ियों में उसके सिरहाने ही था।

‘यह मेरे जीवन में अब तक देखा गया सबसे अधिक करुण दृश्य था।’ स्क्वीलर ने अपना पैर उठा कर आँसू पोंछते हुए कहा, ‘मैं आखिरी पल तक उसके सिहराने था, और जब उसका अंत आया, वह इतना कमजोर था कि बोल भी नहीं पा रहा था, वह मेरे कान में फुसफुसाया कि उसकी सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि वह पवनचक्की के पूरा होने के पहले जा रहा है। बगावत के नाम पर आगे बढ़ो। पशुबाड़ा अमर रहे। कॉमरेड, नेपोलियन अमर रहें। नेपोलियन हमेशा ठीक कहते हैं, यही उसके अंतिम शब्द थे, कॉमरेड्स’।

यहाँ पहुँच कर स्क्वीलर का लहजा थोड़ा बदल गया। वह एक पल के लिए चुप हो गया। अपनी बात आगे बढ़ाने से पहले शक की निगाहों से चारों तरफ अपनी छोटी-छोटी आँखें घुमाई।

उसने बताया कि उसकी जानकारी में यह बात आई है कि बॉक्सर को ले जाते वक्त एक वाहियात और मूर्खतापूर्ण अफवाह फैलाई गई थी। कुछेक पशुओं ने देखा कि बॉक्सर को ले जानेवाली वैन पर ‘घोड़ा कसाई’ लिखा हुआ था, इसी से सब इस नतीजे पर जा पहुँचे कि बॉक्सर को बूचड़खाने भेजा जा रहा है। यह तो बिलकुल असंभव है, स्क्वीलर ने बताया, कोई पशु इतना मूर्ख होगा। वह पूँछ हिलाते हुए और दाएँ-बाएँ फुदकते हुए धूर्तता से चिल्लाया कि निश्चित ही वे अपने प्रिय नेताजी को इससे बेहतर कामों के लिए जानते हैं? लेकिन इसका स्पष्टीकरण बिलकुल सरल है। पहले वह वैन बूचड़खाने की संपत्ति थी, फिर उसे घोड़ा डॉक्टर ने खरीद लिया था। उसने अब तक पहले लिखे नाम को पेंट नहीं कराया था। इसी से सारी गलती हुई।

यह सुन कर पशुओं को बहुत राहत मिली। और जब स्क्वीलर बॉक्सर के मरते समय के ब्यौरे बारीकी से बताने लगा, और यह कहने लगा कि उसकी कितनी अच्छी तरह देखभाल हुई और नेपोलियन ने कीमत की रत्ती भर भी परवाह किए बगैर उसके लिए महँगी दवाएँ मँगाईं, तो सबके आखिरी शक भी मिट गए। वे अपने कॉमरेड की मृत्यु से जो दुख महसूस कर रहे थे, यह सोच कर थोड़ा कम हो गया कि चलो, वह खुशी-खुशी मरा।

अगले रविवार की सुबह बैठक में नेपालियन खुद हाजिर हुआ और बॉक्सर के सम्मान में एक छोटा-सा भाषण दिया। उसने बताया कि उनके बिछुड़े साथी का शव बाड़े में दफनाए जाने के लिए ला पाना संभव नहीं था, अलबत्ता उसने यह आदेश दे दिया कि फार्म हाउस के बगीचे में जयपत्रों से एक बड़ी माला बनाई जाए और बॉक्सर की समाधि पर रखी जाए। और कुछ ही दिनों में सूअर बॉक्सर के सम्मान में एक यादगार दावत रखने की सोच रहे हैं। नेपोलियन ने अपना भाषण बॉक्सर के दो प्रिय सूत्रवाक्य याद दिलाते हुए खत्म किया ‘मैं और अधिक परिश्रम करूँगा’ तथा ‘कॉमरेड नेपोलियन हमेशा ठीक कहते हैं।’ उसने कहा कि ये सूत्रवाक्य हर पशु अपने खुद के जीवन में उतार लेना चाहेगा।

दावत के लिए निर्धारित दिन विलिंगडन से किराने की गाड़ी आई और फार्म हाउस में लकड़ी की एक बड़ी-सी पेटी सौंप गई। उस रात वहाँ से जोर-जोर से गाने की आवाजें आती रहीं। उसके बाद लगा, जैसे मार-पिटाई और झगड़ा चल रहा हो। साढ़े ग्यारह बजे गिलास टूटने की जोरदार आवाज के साथ सब कुछ शांत हो गया। अगले दिन फार्म हाउस में दोपहर तक कोई हरकत नहीं थी, और यह खबर फैल ही गई कि कहीं-न-कहीं से सूअरों ने व्हिस्की की एक और पेटी खरीदने के लिए पैसों का जुगाड़ कर ही लिया था।


10

वर्षों बीत गए। मौसम आए और गए। अल्पजीवी पशु अपनी जीवन-लीला समाप्त कर गए। एक ऐसा भी वक्त आया जब क्लोवर, बैंजामिन, काले कव्वे मोसेस और कुछ सूअरों के सिवाय किसी को पता भी नहीं था कि बगावत से पहले के दिन कैसे थे।

मुरियल गुजर चुकी थी, ब्लूबैल, जेस्सी, पिंचर तीनों नहीं रहे। जोंस भी मर चुका था। वह देश के किसी दूसरे भाग में किसी पियक्कड़ के घर में मरा था। स्नोबॉल को भुलाया जा चुका था। बॉक्सर को भुलाया जा चुका था। वह सिर्फ उन्हीं की स्मृति में था, जो उसे जानते थे। क्लोवर अब बूढ़ी, मोटी घोड़ी थी, जिसके जोड़ों में दर्द उठता था, और आँखें हमेशा नम रहती थीं। वह रिटायरमेंट की उम्र दो साल पहले पूरी कर चुकी थी, लेकिन स्थिति यह थी कि अब तक कोई भी पशु रिटायर नहीं किया गया था। सेवानिवृति पा चुके पशुओं के लिए चरागाह का एक कोना अलग रखने की योजना कब से खटाई में डाली जा चुकी थी। नेपोलियन अब कोई डेढ़ सौ पौंड का वयस्क बधिया न किया गया सूअर था। स्क्वीलर इतना मोटा हो गया था कि आँखें खुली रख कर मुश्किल से देख पाता। सिर्फ बूढ़ा बैंजामिन पहले जैसा ही था। थोबड़े के पास उसका रंग थोड़ा सफेद हो गया था। बॉक्सर की मौत के बाद वह पहले से भी ज्यादा उदास, चिड़चिड़ा और चुप्प हो गया था।

अब बाड़े पर कई नए प्राणी आ गए थे। हालाँकि यह वृद्धि इतनी अधिक नहीं थी, जितनी शुरू के वर्षों में उम्मीद की गई थी। पैदा होनेवाले कई प्राणियों के लिए बगावत एक धुँधली सी परंपरा मात्र थी, जो मुँह जबानी एक-दूसरे से उन तक चली आई थी। कुछ ऐसे प्राणी थे जो खरीद कर लाए गए थे, जिन्होंने यहाँ आने से पहले ऐसी किसी घटना का जिक्र भी नहीं सुना था। अब बाड़े में क्लोवर के अलावा तीन घोड़े और थे। ये हट्टे-कट्टे शानदार प्राणी थे, काम करने में दिलचस्पी रखते और अच्छे साथी थे, लेकिन जाहिल थे। उन्हें बगावत के और पशुवाद के सिद्धांतों के बारे में जो कुछ भी बताया जाता, उसे वे स्वीकार कर लेते। वे क्लोवर की तो कोई बात न टालते। वे उसके प्रति माँ जैसा आदर रखते, लेकिन इस बात में शक था कि वे इसका सिर-पैर कुछ समझते भी थे या नहीं।

अब बाड़ा अधिक संपन्न और बेहतर संचालित था। इसमें अब मिस्टर विलकिंगटन से खरीदे गए दो खेत जोड़ कर इसे और बड़ा कर लिया गया था। पवनचक्की को, आखिरकार, सफलतापूर्वक पूरा कर ही लिया गया था। बाड़े में अब खुद की एक थ्रैशिंग मशीन और सूखी घास काटने की एक मशीन थी। कई नई इमारतें अब बाड़े में जुड़ चुकी थीं। व्हिंपर ने अपने लिए एक ताँगा खरीद लिया था। अलबत्ता, पवनचक्की को बिजली पैदा करने के लिए तो नहीं ही इस्तेमाल किया गया था। यह अनाज दलने के काम में ली जाती, लाभ के रूप में काफी रुपए पैसे मिल जाते। अब पशु एक और पवनचक्की बनाने में जुटे हुए थे। यह बताया गया था कि जब यह पूरी हो जाएगी तो इसमें डायनमो लगाया जाएगा। लेकिन उन विलासिताओं का जिनका कभी स्नोबॉल ने पाठ पढ़ाया था और सबको थानों में बिजली, गर्म और ठंडा पानी, तीन दिन का सप्ताह जो सपने में दिखाए थे, अब कोई इनका जिक्र नहीं करता था। नेपोलियन ने यह कह कर इन विचारों को त्याग दिया था कि पशुवाद की भावना के खिलाफ हैं। उसका कहना था कि सच्ची खुशी काम करने और थोड़े में गुजारा करने में ही है। 

पता नहीं क्यों, ऐसा लगा कि पशुओं को खुद अमीर बनाए बगैर यह बाड़ा पहले अमीर हो गया था। हाँ, इस बीच सूअर और कुत्ते जरूर अमीर हो गए थे। शायद इसका कारण आंशिक रूप से यह भी रहा हो कि वहाँ ढेरों कुत्ते थे। ऐसा नहीं था कि ये प्राणी, अपनी फैशन के बाद काम ही नहीं करते थे। वहाँ पर, जैसा कि स्क्वीलर बयान करते नहीं थकता था, बाड़े की देख-रेख का और संगठन का बेहिसाब काम था। इसमें से ज्यादातर काम तो ऐसा था कि जिसे समझ पाना दूसरे पशुओं के बस का नहीं था। उदाहरण के लिए स्क्वीलर उन्हें बताता कि सूअरों को प्रतिदिन फाइल, रिपोर्ट, कार्यवृत्त, ज्ञापन जैसी कई रहस्यमय चीजों के साथ घंटों दिमाग खपाना पड़ता है। ये बड़े-बड़े कागज होते हैं, जिन्हें ऊपर से नीचे तक लिख कर काला करना होता है। जैसे ही कागज पूरे भर जाएँ, उन्हें भट्टी में जला दिया जाता है। स्क्वीलर कहता, यह बाड़े के कल्याण के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण काम होता है। लेकिन इसके बावजूद न तो सूअर और न ही कुत्ते अपनी मेहनत से अपने लिए कुछ खाद्यान्न उगाते और ऐसे जीव वहाँ भरे पड़े थे। उनकी खुराक भी हमेशा अच्छी खासी रहती।

जहाँ तक औरों का सवाल था, वे जितना जानते थे, उनकी जिंदगी हमेशा से ऐसे ही थी। वे अकसर भूखे रहते, वे पुआल पर सोते, तलैया का पानी पीते, खेतों में मेहनत करते, सर्दियों में उन्हें ठंड सताती, गर्मियों में मक्खियाँ परेशान करतीं। कभी-कभी कुछ बूढ़े प्राणी अपनी धूमिल याददाश्त को टटोलते और यह तय करने की कोशिश करते कि तब के दिन, जब बगावत हुई थी, जोंस को निकाले ज्यादा अरसा नहीं हुआ था, चीजें बेहतर या खराब थीं या अब बेहतर या खराब हैं? उन्हें कुछ याद न आता। उनकी आज की जिंदगी में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसकी वे तुलना कर पाते, उनके पास स्क्वीलर की अंतहीन सूचियों के अलावा भरोसा करने के लिए कुछ भी नहीं था। सूचियाँ सारी चीजों को पहले से बेहतर और बेहतर बनाती चलतीं। पशुओं को इस समस्या का कोई समाधान न मिलता। वैसे भी, अब उनके पास इन सारी चीजों पर गँवाने के लिए वक्त ही कहाँ था। सिर्फ बूढ़ा बैंजामिन दावा करता कि उसे अपनी लंबी जिंदगी की छोटी से छोटी बात याद है और वह बताता कि उसे पता है कि चीजें कभी न बेहतर रही हैं न खराब। वे बेहतर या खराब हो भी नहीं सकतीं। वह कहा करता - भूख, तकलीफ और निराशा ही जीवन के न बदले जा सकनेवाले नियम हैं।’

इसके बावजूद पशुओं ने कभी आस नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं, उन्होंने एक पल के लिए भी पशु बाड़े का सदस्य होने के सम्मान की सुविधा की भावना को नहीं खोया। अभी भी पूरे देश में इंग्लैंड भर में उनका अकेला पशु बाड़ा था जिसके स्वामी और संचालक खुद पशु थे। उनमें से कोई भी, नन्हाे से नन्हाम प्राणी, यहाँ तक कि दस-बीस मील दूर के बाड़ों से खरीद कर लाए गए प्राणी भी इस पर गर्व करना न भूलते। जब वे बंदूक की गर्जन सुनते, ऊपर हरा झंडा फहराता देखते, तो उनके सीने गर्व से फूल कर कुप्पा हो जाते। उनकी बातें हमेशा वीरता भरे उन पुराने दिनों की तरफ लौट जाती जब जोंस को खदेड़ा गया था। सात धर्मादेश लिखे गए थे। वह महान लड़ाई जिसमें हमला करनेवाले मनुष्यों को हराया गया था। किसी भी पुराने सपने को त्यागा नहीं गया था। पशुओं के गणतंत्र, जिसकी मेजर ने भविष्यवाणी की थी, जब इंग्लैंड के हरे-भरे खेतों पर मनुष्यों के पैर भी नहीं पड़ेंगे, अभी भी उसमें विश्वास किया जाता था। किसी न किसी दिन यह आएगा, यह भी हो सकता है इस समय जी रहे किसी प्राणी के जीवनकाल में न आए, लेकिन वह दिन आएगा जरूर। यहाँ तक कि ‘इंग्लैंड के पशु’ गीत की धुन भी शायद यहाँ वहाँ चुपके से गुनगुना ही दी जाती थी। कुछ भी हो, यह सच्चाई थी कि बाड़े का हर पशु इस धुन को जानता था। भले ही किसी में भी इसे जोर से गाने की हिम्मत नहीं थी। यह हो सकता था कि उनका जीवन कठिन था और उनकी सारी उम्मीदें खरी नहीं उतरी थीं, लेकिन वे अच्छी तरह जानते थे कि उनका जीवन और पशुओं की तरह नहीं है। अगर वे भूखे सोते हैं तो ऐसा किसी तानाशाह मनुष्य को खिलाने की वजह से नहीं है। यदि वे हाड़तोड़ मेहनत करते हैं, तो उनकी यह मेहनत कम से कम उनके खुद के लिए होती है। उनमें से कोई भी प्राणी दो टाँगों पर नहीं चलता। कोई भी प्राणी किसी दूसरे प्राणी को मालिक नहीं कहता। सभी पशु बराबर हैं।

गर्मियों के शुरू में एक दिन स्क्वीलर ने भेड़ों को अपने पीछे आने के लिए कहा। वह उन्हें बाड़े के फालतू पड़ी जमीन की तरफ ले गया। वहाँ सफेदे की बनी झाड़ियाँ उगी हुई थीं। भेड़ों ने वहाँ, स्क्वीलर की देखरेख में सारा दिन पत्ते चरते हुए बिताया। शाम को स्क्वीलर अकेला ही फार्म हाउस में लौट आया। उसने बताया कि चूँकि मौसम गरम है, इसलिए उसने भेड़ों को वहीं रह जाने के लिए कह दिया है। आखिर हुआ यह कि भेड़ें पूरा हफ्ता वहीं रहीं और इस समय के दौरान उन्हें किसी ने भी नहीं देखा। दिन का ज्यादातर समय स्क्वीलर उन्हीं के साथ गुजारता। उसने बताया कि उन्हें एक नया गीत सिखाया जा रहा है जिसके लिए प्राइवेसी की जरूरत है।

भेड़ें अभी लौटी ही थीं। एक सुहानी शाम जब पशुओं ने अपना काम खत्म किया था और लौट कर फार्म की इमारतों की तरफ आ रहे थे, तो अहाते की तरफ से घोड़े की जबरदस्त हिनहिनाहट सुनाई दी। भौंचक्के से पशु रास्तों पर ही खड़े रह गए। यह क्लोवर की हिनहिनाहट थी। वह दोबारा हिनहिनाई। सारे पशु सरपट दौड़े और अहाते में जा पहुँचे। तब उन्हें पता चला कि क्लोवर ने क्या देख लिया था।

एक सूअर अपनी पिछली दो टाँगों के सहारे चल रहा था।

हाँ, यह स्क्वीलर था। बेहूदा-सा, इस पोजीशन में अपना भारी-भरकम शरीर सँभाल न पाने की वजह से, लेकिन एकदम सही संतुलन में, वह अहाते में चहल-कदमी कर रहा था। एक ही पल बीता था कि फार्म हाउस के दरवाजे से सूअरों की एक लंबी कतार निकली। सब के सब अपनी पिछली टाँगों पर चल रहे थे। कुछ एक दूसरों से बेहतर चल रहे थे, एक-दो हल्का-सा लड़खड़ा भी रहे थे, लग रहा था, जैसे उन्हें लाठी का सहारा मिल जाता तो अच्छा था, लेकिन उनमें से हरेक ने अहाते के चक्कर सफलतापूर्वक लगा लिए। तभी कुत्तों के जोर-जोर से भोंकने की आवाज और काले मुर्गे की तेज कुकडू-कूँ सुनाई दी। अब बाहर आया नेपोलियन, राजसी तरीके से सीधे तने हुए, दाएँ-बाएँ घमंड से देखते हुए और चारों तरफ से अपने कुत्तों से घरे हुए।

वह अपने पैर में एक कोड़ा लिए हुए था।

श्मशान जैसा सन्नाटा छा गया। चकित, डरे हुए और एक-दूसरे से सटते हुए पशुओं ने सूअरों की लंबी कतारों को अहाते में धीमे-धीमे टहलते देखा। ऐसा लगता था, धरती उलट-पलट गई है। तभी वह पल आया जब वे पहले झटके से उबरे और कुत्तों के आतंक के बावजूद कई वर्षों से, कभी शिकायत न करने, कभी चाहे कुछ भी हो जाए, कभी मीन-मेख न निकालने की आदत के बावजूद जब उन्होंने विरोध के कुछ शब्द कहने चाहे होंगे, तभी ठीक उसी वक्त जैसे कोई संकेत दिया गया हो, सभी भेड़ों ने ऊँची आवाज में मिमियाना शुरू कर दिया।

चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें ज्यादा अच्छी

चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें ज्यादा अच्छी

चार टाँगें अच्छी, दो टाँगें ज्यादा अच्छी 

यह राग पाँच मिनट तक बिना रुके चलता रहा। जब तक भेड़ों ने गाना बंद किया, विरोध में कुछ भी कहने का मौका जा चुका था। सूअर मार्च करते हुए फार्म हाउस में वापस जा चुके थे।

बैंजामिन को लगा, उसके कंधे से किसी ने अपनी नाक छुआई है। उसने आस-पास देखा। क्लोवर थी। उसकी बूढ़ी आँखें पहले से ज्यादा धुँधली लग रही थीं। एक शब्द भी बोले बिना क्लोवर ने हौले से उसकी अयाल सहलाई और उसे बड़े बखार के आखिर में ले गई, जहाँ सात धर्मादेश लिखे हुए थे। एक-दो मिनटों के लिए वे सफेद रंग के शब्दोंवाली डामर की दीवार को घूरते खड़े रहे।

‘मेरी नजर कमजोर हो गई है, उसने अंतत: कहा, वैसे जब मैं जवान थी, तब भी मैं ऊपर लिखे हुए शब्द कहाँ पढ़ पाती थी। लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि दीवार कुछ अलग सी दीख रही है? क्या सात धर्मादेश के अलावा कुछ भी लिखा हुआ नहीं था? यह इस प्रकार था :

 सभी पशु बराबर हैं

लेकिन कुछ पशु

दूसरे पशुओं से ज्यादा बराबर हैं

उसके बाद तो अगले दिन बाड़े के काम की निगरानी करनेवाले सभी सूअर अपने-अपने पैरों में कोड़े थामे हुए थे तो किसी को भी अजीब नहीं लगा। यह पता लगने पर भी किसी को आश्चर्य नहीं हुआ कि सूअरों ने अपने लिए एक रेडियो खरीद लिया है, कि वे टेलीफोन लगवाने की व्यवस्था कर रहे हैं और उन्होंने ‘जॉन बुल’, ‘टिट-बिट्स’ और ‘डेली मिरर’ मँगवाना शुरू कर दिया है। इससे भी आश्चर्य नहीं हुआ जब नेपोलियन अपने मुँह में पाइप दबाए फार्म हाउस में चहलकदमी करता हुआ दिखाई दिया। तब भी आश्चर्य नहीं हुआ जब सूअरों ने मिस्टर जोंस की अलमारियों से कपड़े निकाल कर पहन लिए। नेपोलियन ने खुद काला कोट, चुस्त जाँघिया और चमड़े की पैंट चुनी जब कि उसकी पसंदीदा सूअरनी झिलमिल रेशम की ड्रेस पहन कर निकलती। यह पोशाक मिसेज जोंस रविवार को पहना करती थी।

एक सप्ताह बाद, दोपहर के समय, बाड़े में कई कुत्तागाड़ियाँ आईं। पड़ोसी किसानों के एक प्रतिनिधि मंडल को निरीक्षण दौरा करने के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्हें पूरे बाड़े में घुमाया गया। उन्होंने जो कुछ भी देखा उसके लिए खूब तारीफ की। खासकर पवनचक्की को उन्होंने बहुत पसंद किया। पशु लोग शलजम के खेतों में खर-पतवार साफ कर रहे थे। वे पूरी निष्ठा से काम करते रहे। शायद ही किसी ने जमीन से अपना सिर ऊपर उठाया। उन्हें नहीं पता था सूअरों से ज्यादा डरना है या मेहमान मनुष्यों से।

उस रात फार्म हाउस से शाम के वक्त जोर-जोर से ठहाके लगाने की और गाने-बजाने की आवाजें आती रहीं। और अचानक मिले-जुले स्वरों की आवाजों को सुन कर, पशु उत्सुकता से ठगे रह गए। अब चूँकि पशु और मनुष्य पहली बार समानता के स्तर पर मिल रहे हैं, वहाँ भीतर क्या हो रहा होगा। सब एक राय से एकदम दबे पाँव चलते हुए फार्म हाउस बाग में सरकते हुए जा पहुँचे।

गेट पर वे थोड़ी देर के लिए रुके। वे आधे डरे हुए थे - भीतर जाए या नहीं। लेकिन क्लोवर उन्हें भीतर ले चली। पंजों के बल वे घर तक पहुँचे। जो पशु कद-काठी में ऊँचे थे, उन्होंने डाइनिंग रूम की खिड़की में से झाँका। वहाँ पर एक लंबी मेज के चारों तरफ छह किसान और अधिक सम्मान प्राप्त छह सूअर बैठे हुए थे। नेपोलियन स्वयं मेज के सिरे पर सबसे ज्यादा सम्मानवाली सीट पर जमा हुआ था। सूअर अपनी कुर्सियों पर बिलकुल आराम से बैठे हुए थे। वे ताश के खेलों का आनंद ले रहे थे। फिलहाल थोड़ी देर के लिए खेल रुका हुआ था। निश्चय ही जाम टकराने के लिए। एक बड़ा-सा जग सबके बीच घुमाया जा रहा था, और सब अपने-अपने मग फिर से भर रहे थे। किसी ने भी ध्यान नहीं दिया कि आश्चर्यचकित पशुओं के चेहरे खिड़की से घूर रहे हैं।

फॉक्सवुड का मिस्टर विलकिंगट, हाथ में अपना मग लिए उठ खड़ा हुआ। उसने कहा कि कुछेक पलों में वहाँ मौजूद लोगों को जाम टकराने के लिए, टोस्ट करने के लिए वह अनुरोध करेगा। लेकिन ऐसा करने से पहले वह कुछ शब्द कहने की जरूरत महसूस कर रहा है।

उसने बताया कि, वह विश्वास करता है, जो यहाँ उपस्थित हैं, उन सबको यह महसूस करते हुए अपार संतोष हो रहा है कि आज आपसी अविश्वास और गलतफहमी का एक लंबा युग समाप्त हो रहा है। एक समय था, जब न केवल वह खुद, या इस सभा में मौजूद कई और महानुभाव इस प्रकार की भावनाएँ रखते थे, बल्कि उस समय तो पशु बाड़े के सम्माननीय स्वामियों को, वह यह तो नहीं कहेगा विद्वेष से, परंतु शायद उनके मानव पड़ोसियों द्वारा कुछ हद तक संदेह की नजर से देखा जाता था। दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ घटती रहीं। गलतफहमियाँ फैलती रहीं। यह महसूस किया जाता रहा कि सूअरों के स्वामित्व में और उनके द्वारा संचालित बाड़ा में कुछ अजीब-सी बात है और इसका पास-पड़ोस पर बेचैन देने वाला प्रभाव पड़ेगा। बिना जाँच-पड़ताल किए कई किसानों ने यह मान लिया कि इस तरह के बाड़े पर लंपटता और अव्यवस्था का आलम होगा। उन्हें इस बात की चिंता थी कि इसका उनके खुद के पशुओं और यहाँ तक कि मनुष्य कर्मचारियों पर भी क्या असर पड़ेगा। लेकिन अब ये सारे शक दूर हो चुके हैं। आज वह और उसके साथी पशु बाड़े में आए हैं। उन्होंने अपनी खुद की आँखों से इसके चप्पे-चप्पे का मुआयना किया है। और क्या पाया है? न केवल अत्यधिक नवीनतम तरीके देखे बल्कि ऐसा अनुशासन और व्यवस्था भी पाई, जो कहीं भी सभी किसानों के लिए एक मिसाल हो सकती है। उसे विश्वास है कि उसका यह कहना सही होगा कि पशु बाड़े में निचले तबके के पशु देश में किसी भी पशु की तुलना में ज्यादा काम करते हैं और कम खुराक पाते हैं। दरअसल, उसने और उसके साथी मेहमानों ने यहाँ कई ऐसी चीजें देखी हैं जो वे खुद के बाड़ों में तत्काल अपनाना चाहेंगे।

उसने कहा कि अपनी बात एक बार फिर इस बात पर जोर देते हुए समाप्त करना चाहेगा कि पशुबाड़े और उसके पड़ोसियों के बीच जो मैत्रीभाव रहा, वह बने रहना चाहिए। सूअरों और मनुष्यों के बीच किसी भी तरह का हितों का टकराव न कभी रहा, और न ही रहना चाहिए। उनके संघर्ष और उनकी तकलीफें एक जैसी हैं। क्या श्रमिक समस्या सब जगह एक जैसी नहीं है? वहाँ यह साफ-साफ लगा कि मिस्टर विलकिंगटन पशु समुदाय पर सावधानीपूर्वक तैयार किया गया कोई जुमला उछालना चाहता था, लेकिन एक पल के लिए वह खुशी से इतना बेहाल हो गया कि कह ही नहीं पाया। वह हँसते-हँसते दोहरा हो गया, उसकी चिबुक पर सलवटें पड़ गई। काफी देर तक हँसते रहने के बाद किसी तरह उसने कहना शुरू किया, ‘अगर आपके पास निचले तबके के पशु हैं तो हमारे पास अपने निचले वर्ग हैं। इस कटाक्ष से मेज पर ठहाके लगने लगे, और मिस्टर विलकिंगटन ने एक बार फिर सूअरों को कम राशन और काम के लंबे घंटों, और पशु बाड़े में एक सिरे से गायब लाड़-प्यार पर बधाई दी।

और अब उसने अंत में कहा, ‘वह सबसे अनुरोध करता है कि सब अपने पैरों पर खड़े हों और देखें कि उनके गिलास भरे हुए हैं। सज्जनो, मिस्टर विलकिंगटन ने अपनी बात खत्म की, सज्जनो. मैं आपको टोस्ट देता हूँ, पशुबाड़े की समृद्धि के लिए।’

सबने उत्साह से तालियाँ बजाईं और पैरों से जमीन थपथपाईं। नेपोलियन इतना अभिभूत हुआ कि वह अपनी जगह से उठा, और मेज के पास आ कर अपना मग खाली करने से पहले मिस्टर विलकिंगटन के मग से टकराया। जब तालियों की गड़गड़ाहट कम हो गई, तो नेपोलियन, जो अब तक अपने पैरों पर खड़ा था, बताया कि उसे भी दो शब्द कहने हैं।

नेपोलियन के पिछले भाषणों की तरह यह भी संक्षिप्त और प्रासंगिक था। उसने भी कहा कि उसे प्रसन्नता है कि गलतफहमियों का युग अब समाप्त हो गया है। लंबे अरसे तक अफवाहें फैलाई जाती रहीं। उसके पास यह मानने के कारण हैं, वे अफवाहें किसी शत्रु द्वारा फैलाई गईं, खुद उसके और उसके साथियों का दृष्टिकोण कुछ विनाशकारी और यहाँ तक कि क्रांतिकारी हो रहा है। उन पर आरोप लगाया गया कि वे पड़ोसियों के बाड़ों पर पशुओं के बीच बगावत फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ भी सच्चाई से परे नहीं हो सकता। उनकी इकलौती इच्छा है कि वे शांति से रहें और अपने पड़ोसियों के साथ सामान्य कारोबारी रवैया बनाए रखें। उसने आगे कहा कि यह बाड़ा, जिसके नियंत्रण के लिए उसे सम्मान मिला है, एक सहकारी उद्यम है। इसके स्वामित्व के कागजात जो उसके खुद के कब्जे में हैं, सूअरों की संयुक्त संपत्ति हैं।

उसने कहा कि वह नहीं मानता कि पुराने संदेहों में से अब कोई बाकी है। अलबत्ता बाड़े के रूटीन में हाल ही में कुछ एक परिवर्तन किए गए हैं। इनसे आपसी विश्वास को और बढ़ाने में मदद मिलनी चाहिए। अब तक बाड़े में एक मूर्खतापूर्ण परंपरा चली आ रही थी कि पशु एक-दूसरे को ‘कॉमरेड’ कह कर संबोधित करते थे। इसे समाप्त किया जाना है। एक और अजीब-सी परंपरा चली आ रही थी, जिसके बारे में, पता नहीं वह शुरू कैसे हुई, कि हर रविवार की सुबह बगीचे में एक मस्तूल पर कीलों से ठुँकी एक सूअर की खोपड़ी के आगे से मार्च करते हुए सब गुजरते थे, इसे भी खत्म किया जा रहा है। खोपड़ी को पहले ही जमीन में गाड़ दिया गया है। उसके मेहमानों ने एक चबूतरे पर लहराता हरा झंडा भी देखा होगा। यदि देखा हो तो उन्होंने शायद यह भी नोट किया होगा कि पहले इस पर जो सफेद सुम और सींग पेंट किए हुए थे, उन्हें मिटा दिया गया है। अब यह सिर्फ सादा हरा झंडा होगा।

उसने कहा कि मिस्टर विलकिंगटन के शानदार और पड़ोसी भाव से दिए गए भाषण के बारे में एक ही एतराज है। मिस्टर विलकिंगटन ने लगातार ‘पशुबाड़े’ या ‘एनिमल फार्म’ का जिक्र किया है। वह इस बात को नहीं जानता था, क्योंकि वह नेपोलियन, अब पहली बार घोषणा कर रहा है कि नाम पशुबाड़ा – ‘एनिमल फार्म’ समाप्त कर दिया गया है। अब बाड़े को ‘मैनर फार्म’ के नाम से ही माना जाएगा। उसे विश्वास है यही इसका सही और मूल नाम है।

‘सज्जनो,’ नेपोलियन ने अपनी बात खत्म की, ‘मैं आपको पहले की तरह टोस्ट दूँगा, लेकिन अलग तरीके से। अपने गिलास लबालब भर लीजिए। सज्जनो, यह रहा मेरा टोस्ट : मैनर फार्म की समृद्धि के लिए।’

पहले की तरह दिल खोल कर तालियाँ बजाई गईं और मग आखिरी बूँद तक खाली कर दिए गए। लेकिन जब वहाँ से पशु इस दृश्य को देख रहे थे तो उन्हें लगा, कोई आश्चर्यजनक घटना घट रही है। सूअरों के चेहरों को कुछ हो रहा था। क्लोवर की धुँधली नजरें एक चेहरे से दूसरे पर टिकती रहीं। किसी के चेहरे पर पाँच ठुड्डियाँ थीं तो किसी के चेहरे पर चार और किसी के तीन। लेकिन यह क्या था जो पिघलता और बदलता लग रहा था। तभी जब वाहवाही का शोर थम गया, तो सबने अपने-अपने पत्ते उठाए और जो खेल रुक गया था, उसे फिर शुरू कर दिया। पशु चुपचाप सरक कर चले गए। 

लेकिन वे अभी बीस गज दूर भी नहीं पहुँचे थे कि अचानक रुक गए। फार्म हाउस से चीखने-चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। वे वापस दौड़े और फिर से खिड़की से झाँक कर देखने लगे। हाँ, अंदर भीषण लड़ाई चल रही थी। शोर-शराबा, मेज पर थपथपाहट, तेज शंकालु निगाहें, हिंसक इनकार चल रहे थे। इस सारी मुश्किल की जड़ शायद यह थी कि नेपोलियन और मिस्टर विलकिंगटन, दोनों ने एक ही साथ हुकम का इक्का चला दिया था।

बारह आवाजें गुस्से में चिल्ला रही थीं और सारी आवाजें एक-सी थीं। कोई सवाल नहीं कि सूअरों के चेहरों को अब क्या हो गया था। बाहर खड़े प्राणी कभी सूअर को देखते, कभी आदमी को, फिर आदमी से सूअर को, लेकिन अब यह कहना असंभव हो चुका था कि कौन- सा चेहरा किसका है...

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