बतख का बदसूरत बच्चा : मिस्र की लोक-कथा
An Ugly Duckling : Egyptian Folk Tale
(यह कहानी हंस क्रिश्चियन एंडरसन द्वारा लिखित "The Ugly Duckling" से काफी मिलती-जुलती है, लेकिन यह कहानी मिस्र में इसी तरह कही और सुनी जाती है।)
देश में बहुत सुहावना मौसम था क्योंकि गर्मी का मौसम आ गया था। गेहूँ की सुनहरी बालियाँ धूप में जगमगा रही थीं। हरे हरे घास के मैदान फैले पड़े थे जहाँ सारस मिस्र की भाषा में खूब बात कर रहे थे।
मैदान के चारों ओर बड़े बड़े जंगल थे और जंगलों में कई झीलें थीं। देश में वह बहुत सुन्दर जगह थी।
वहीं एक बहुत बड़ा घर था जिसके चारों ओर गहरी खाई थी और खाई में पानी भरा था और पानी में पानी में रहने वाली पत्तियाँ थीं। वे पत्तियाँ कहीं कहीं तो कई फीट लम्बी थीं। इससे ऐसा लगता था जैसे पानी में जंगल हो।
ऐसे ही एक जंगल में एक बतख अपने घोंसले में बैठी थी। वह वहाँ अपने अंडे से रही थी। उसे वहाँ बैठे बैठे बहुत देर हो गयी थी सो वह बहुत थक गयी थी।
उसकी थकान उन बतखों को देख कर और बढ़ गयी थी जो उसके आस पास तैरने का आनन्द ले रही थीं। कोई उससे बात करने के लिये भी नहीं रुक रही थी।
आखिर वे अंडे फूटने लगे और उनमें से नन्हे मुन्ने बच्चे झाँकने लगे थे। वे बोले “पिप, पिप”।
माँ बोली “क्वैं, क्वैं, जल्दी बाहर निकलो।” और बच्चे जितनी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी बाहर निकल आये और हरी हरी घास को आश्चर्य से देखने लगे।
हरा रंग आँख के लिये अच्छा होता है इसलिये उनकी माँ ने उनको घास को जी भर कर देखने दिया।
बच्चे बोले — “ओह, दुनियाँ कितनी बड़ी है माँ।”
माँ ने कहा — “मेरे बच्चो, इस सबसे भी अधिक है दुनियाँ में देखने के लिये। इस मैदान से चारों ओर रास्ते जाते हैं और बहुत दूर दूर तक जाते हैं। मैं भी अभी उतनी दूर तक नहीं गयी हूँ। तुम जब बड़े हो जाओ तब उधर जाना।
अभी मेरा काम पूरा नहीं हुआ है। अभी तो यह बड़ा अंडा सेने को है। पता नहीं इसे अभी कितने दिन लगेंगे। मैं बहुत थक गयी हूँ।” और फिर वह उस बड़े अंडे पर बैठ गयी।
एक और बतख उससे मिलने आयी तो उस बतख ने उससे पूछा “कैसा चल रहा है?”
घोंसले में बैठी बतख बोली — “एक अंडे को बहुत समय लग रहा है। ऐसा लगता है जैसे कि इसमें से बच्चा निकलेगा ही नहीं। दूसरों को देखो, वे सब कितने प्यारे बच्चे हैं, अपने पिता की तरह। और वह गन्दा पिता, वह कभी मेरे पास आने की सोचता भी नहीं।”
बूढ़ी बतख ने कहा — “ज़रा उस अंडे को मैं भी तो देखूँ, हो सकता है वह टर्की का अंडा हो। एक बार मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था।”
फिर वह अंडा देख कर बोली — “अरे, यह तो टर्की का ही अंडा है। इसे छोड़ दो। मेरा कहा मानो तो इसको ऐसे ही रहने दो।”
घोंसले वाली बतख ने जवाब दिया — “अब जब इतने दिन तक मैंने इसको सेया है तो कुछ समय और सही।”
“जैसा तुम चाहो।” कह कर वह बूढ़ी बतख वहाँ से चली गयी।
कुछ दिनों बाद वह बड़ अंडा भी फूट गया और बच्चा बोला “पिप, पिप”। वह बच्चा बहुत बड़ा और बदसूरत था।
माँ ने उसको देखा और बोली — “यह कितना बड़ा बतख है और दूसरे बच्चों से कितना अलग भी है। मुझे लगता है कि यह टर्की का ही बच्चा है। कोई बात नहीं अभी पता चल जायेगा। यदि यह बतख का बच्चा है तो पानी में तैरेगा नहीं तो नहीं।”
अगले दिन मौसम अच्छा था तो माँ बतख अपने बच्चों को साथ ले कर पानी में निकली। “क्वैं क्वैं, जल्दी आओ।” और एक एक कर के उसके सारे बच्चे पानी में कूद गये।
पल भर के लिये वे पानी में डूब गये परन्तु तुरन्त ही फिर होशियार तैराकों की तरह से तैरने लगे। वे सारे बच्चे पानी में ही थे। वह बदसूरत बच्चा भी तैर रहा था।
माँ बतख ने सोचा — “यह बच्चा तो टर्की का बच्चा नहीं है। देखो तो कितनी अच्छी तरीके से तैरने के लिये वह अपनी टाँगों का इस्तेमाल कर रहा है। वह मेरा बच्चा है। वह सुन्दर भी है। क्वैं क्वैं, मेरे पीछे आओ बच्चो, मैं तुम्हें दुनियाँ दिखाऊँ। मेरे पास ही रहना और बिल्ली का ख्याल रखना।” कह कर वह बतख दूसरी बतखों की तरफ चल दी।
बड़ी ज़ोर ज़ोर से आवाजें आ रही थीं। लगता था कि दो बतख परिवार लड़ रहे थे। माँ बतख ने देखा कि एक बिल्ली एक साँप जैसी मछली का सिर ले कर जा रही है।
“ओह, तो दोनों परिवारों में से किसी को यह सिर नहीं मिला इसी लिये वे दोनों परिवार लड़ रहे थे। बच्चो, यही है तुम्हारी ज़िन्दगी। उसको भी अगर उस सिर का एक टुकड़ा मिल जाता तो अच्छा रहता।”
फिर उसने अपने बच्चों से कहा — “अरे, अपनी टाँगों का ठीक से इस्तेमाल करो और हिलते हुए मेरे पास आओ। और देखो उस बतख के सामने अपनी गर्दन ठीक से झुकाना क्योंकि वह बहुत ही इज़्ज़तदार बतख है हमारे लिये।
यह स्पेन के पुराने खानदान की बतख है इसी लिये इतनी मोटी है। उसकी टाँग के चारों ओर वह लाल पट्टी देखो, इसका मतलब है कि इसका मालिक इसको कभी अपने से दूर नहीं करेगा और आदमी और जानवर दोनों ही इसका आदर करेंगे। अब अपनी गर्दन झुकाओ और बोलो क्वैं।”
बच्चों ने अपनी माँ का कहा माना लेकिन दूसरी बतखों ने देखा और बोलीं — “क्या हमें इन सबके लिये जगह देनी होगी? क्या यहाँ पर पहले ही अधिक भीड़ नहीं है? और उस बड़े वाले को देखो ज़रा। हम लोग उसके साथ तो किसी तरह भी नहीं रह सकते।” और एक बतख उड़ी और उस बदसूरत बच्चे की गर्दन में काट लिया।
माँ बतख ने कहा — “उसे छोड़ दो, उसने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है।”
जिस बतख ने उसे काटा था वह बोली — “वह बहुत बड़ा है और शरारती है, हम उसको एक दो बार तो मजा चखायेंगे ही।”
बूढ़ी बतख जिसकी टाँगों में लाल पट्टी थी, बोली — “बधाई हो। तुम्हारे बच्चे बहुत ही प्यारे हैं। पर उसको क्या हुआ वह जो पीछे की तरफ है, क्या तुम उसके बारे में कुछ सोच सकती हो?”
माँ बतख बोली — “वह सुन्दर तो नहीं है और उसका स्वभाव भी बड़ा अजीब सा है पर वह तैरता बहुत अच्छा है बल्कि दूसरों से कुछ ज़्यादा ही अच्छा तैरता है।
वह अपने अंडे में देर तक रहा शायद इसी लिये उसकी शक्ल ऐसी हो गयी है। जैसे जैसे वह बड़ा होता जायेगा शायद और सुन्दर हो जाये।”
बूढ़ी बतख ने उसकी गर्दन सहलायी और बोली — “फिर वह तो नर बतख है जिसकी शक्ल ज़्यादा माने नहीं रखती। इसका स्वास्थ्य अच्छा है बस यह सबसे अच्छी बात है।
मुझे पूरा भरोसा है कि वह अपने आपको दुनियाँ में रहने के लायक जरूर बना लेगा। तुम्हारे दूसरे बच्चे सुन्दर हैं। अब तुम घर बैठो और जब कभी तुम्हें उस मछली का सिर मिल जाये तो तुम उसे मेरे पास ले आना।” सो वे सब अपने घर चले गये।
लेकिन वह बदसूरत बच्चा बेचारा बहुत परेशान था। उसको बतखें ही नहीं बल्कि मुर्गियाँ भी बहुत तंग करतीं थीं। वे सभी ज़ोर ज़ोर से बोलती थीं — “अरे यह तो बहुत बड़ा है, अरे यह तो बहुत बड़ा है।”
एक बार एक टर्की मुर्गे ने जो कलंगी के साथ ही पैदा हुआ था और अपने आपको किसी बादशाह से कम नहीं समझता था उसके ऊपर से उड़ कर इतनी ज़ोर से छलाँग लगाई और उसको अपनी चोंच से इतना तंग किया कि उसका तो चेहरा ही नीला पड़ गया। वह बेचारा बहुत दुखी हुआ क्योंकि वह बहुत बदसूरत था और सभी उसका मजाक बनाते थे।
पहला दिन तो उसके लिये बुरा था ही पर हर अगला दिन उसके लिये और बुरा ही होता गया। सब उसके पीछे भागते सो वह बेचारा कभी इधर भागता तो कभी उधर।
उसके भाई बहिन भी उसको बहुत तंग करते। वे कहते —
“भगवान करे तुम्हें बिल्ली उठा कर ले जाये।”
यहाँ तक कि उसकी माँ भी उससे छुटकारा पा लेना चाहती
थी। बतखें उसे काटती थीं, मुर्गियाँ उसको चोंचें मारती थीं और
रसोई की नौकरानी जब सबके लिये अच्छा खाना लाती थी तो
उसको वह खाना वह पैर से मार मार कर देती थी।
जब वह यह सब और ज़्यादा नहीं सह सका तो उससे वहाँ नहीं रहा गया और किसी प्रकार वह वहाँ से उड़ कर दूसरी तरफ की जमीन पर झाड़ियों में आ गया तभी उसको चैन आया।
लेकिन वहाँ बहुत सारी छोटी छोटी चिड़ियाँ बैठी थीं वे उसको खतरा समझ कर उड़ कर उससे बहुत दूर जा बैठीं।
बतख के बच्चे ने सोचा, “शायद मैं बहुत बदसूरत हूँ इसी लिये ये यहाँ से उड़ गयीं।” और उसने अपनी आँखें बन्द कर लीं और वह वहाँ से भी दौड़ गया।
दौड़ते दौड़ते वह एक ऐसी जगह आ पहुँचा जहाँ जंगली बतखें रहती थीं। वह थका माँदा रात भर वहीं पड़ा रहा।
सुबह को वहाँ की जंगली बतखें उस अजनबी को देखने
आयीं। वे उसको चारों तरफ से घूर घूर कर देखने लगीं फिर बोलीं
— “तुम किस जाति के बतख हो?”
बच्चा कुछ नहीं बोला बल्कि सिर झुका झुका कर चारों ओर इधर उधर देखने लगा।
उन्होंने फिर कहा — “तुम हमारे यहाँ तब तक रह सकते हो जब तक तुम हमारे यहाँ की किसी बतख से शादी नहीं कर लेते।” पर उस बेचारे को शादी से क्या करना था उसे तो केवल रहने के लिये जगह चाहिये थी। वह उन जंगली बतखों के साथ दो दिन रहा।
तीसरे दिन वहाँ दो जंगली हंस आये। उनको भी अंडे से निकले हुए ज़्यादा दिन नहीं हुए थे।
वे उस बच्चे को देख कर चिल्लाये — “हालाँकि तुम इतने बदसूरत हो पर फिर भी हम तुम्हें पसन्द करते हैं। क्या तुम हमारे साथ दुनियाँ देखना पसन्द करोगे? यहीं पर पास में एक और मैदान है जहाँ बहुत सारे सुन्दर सुन्दर हंस रहते हैं।
वे बहुत छोटे हैं और बोलना सीखना चाहते हैं। क्योंकि तुम उनसे बिल्कुल अलग हो इसलिये वे शायद तुम्हें अपने पास रख लें।”
इतने में खटाक़ खटाक़ दो आवाजें हुईं और वे दोनों हंस पत्थर की मार से मर कर वहीं दलदल में गिर पड़े। पानी में खून ही खून हो गया।
और फिर दो आवाजें और आयीं, खटाक़ खटाक़ और जंगली हंसों का झुंड वहाँ से उड़ गया। ऐसी ही कुछ और भी आवाजें हुईं।
असल में वहाँ कुछ शिकारी आ गये थे। कुछ पेड़ों पर चढ़े हुए थे और कुछ पेड़ों के पीछे छिपे हुए थे। उनके शिकारी कुत्ते कीचड़ में छप छप करते भागे आ रहे थे।
बेचारा बतख का बच्चा बहुत डरा हुआ था। उसने अपना सिर अपने पंखों के बीच में छिपा लिया।
बच्चे के मुँह से एक आह निकली — “भगवान तुम्हारा लाख लाख धन्यवाद है कि मैं इतना बदसूरत हूँ कि कुत्ते भी मेरा कुछ बिगाड़ना नहीं चाहते।”
वह वहीं पर काफी देर तक शान्त पड़ा रहा। जब गोलियों की आवाजें आनी बन्द हो गयीं तो वह वहाँ से भाग लिया।
शाम को वह एक बहुत पुराने और टूटे फूटे मकान के पास आ पहुँचा। उसने देखा कि मकान के दरवाजे का एक कब्जा कुछ टूटा हुआ था जिससे उसमें जाने के लिये जगह बन गयी थी।
वह मकान एक बुढ़िया का था और वह बुढ़िया वहाँ अपनी मुर्गी और बिल्ले के साथ रहती थी। उसके बिल्ले का नाम सोनी था और वह अपनी मुर्गी को बहुत प्यार करती थी।
अगली सुबह बिल्ले ने बतख के बच्चे को देख लिया और उसने गुर्राना शुरू कर दिया और मुर्गी ने कुकड़ूँ कूँ की आवाज निकालनी शुरू कर दी। उनकी आवाज सुन कर बुढ़िया बाहर निकली। उस बुढ़िया को कम दिखायी देता था इसलिये उसने बतख के बच्चे को मोटी बतख समझ लिया।
वह बोली — “चलो अच्छा हुआ मुझे यह बतख मिल गयी, अबसे मैं इसको भी खाया करूँगी। अच्छा हो अगर यह नर बतख न हो। कोई बात नहीं यह भी जल्दी ही पता चल जायेगा।”
बच्चा वहाँ तीन हफ्ते तक रहा पर उसने कोई अंडा नहीं दिया। बिल्ला उस घर का राजा था और मुर्गी वहाँ की रानी थी। एक दिन मुर्गी ने बतख से पूछा “क्या तुम अंडे दे सकते हो?”
बच्चे ने कहा “नहीं”।
“तो चुप रहो। ज़्यादा शोर मचाने की जरूरत नहीं।”
बिल्ले ने पूछा — “क्या तुम अपनी कमर मोड़ सकते हो? मेरी तरह गुर्रा सकते हो?”
“नहीं”
“तब तो तुम्हारे अन्दर अक्ल ही नहीं है। यह काम तुम दूसरे अच्छे लोगों पर छोड़ दो।”
वह बतख का बच्चा दुखी सा एक कोने में बैठा था। अब उसे ताजा हवा और धूप खाने की इच्छा हो आयी। उसके मन में तैरने की भी इच्छा थी। तैरने की इच्छा उसकी इतनी तेज़ थी कि वह इस इच्छा को मुर्गी से कह बैठा।
मुर्गी ने उसे डाँटा — “क्या मामला है। ऐसा लगता है कि खाली बैठे बैठे तुम्हारे दिमाग में शरारतें आती हैं। या तो अंडे दो या फिर गुर्राना सीख लो तब तुम ठीक हो जाओगे।”
“लेकिन पानी पर तैरना कितना अच्छा लगता है। पानी में कूद मारने में कितना मजा आता है।”
“लगता है तुम्हारी अक्ल चरने चली गयी है। मैं और बिल्ला और हमारे घर में सबसे अक्ल्मन्द वह बुढ़िया तैरने के बारे में क्या सोचते हैं, कुछ मालूम है तुम्हें? पूछो पूछो। अरे अपना सिर भिगोना किसको अच्छा लगेगा?”
“तुम मेरी बात ही नहीं समझ पा रही हो मुर्गी रानी।”
“अच्छा, अगर मैं तुम्हारी बात नहीं समझ पा रही तो कौन समझ पायेगा? ज़रा बताओ तो? अब यह मत कहना कि बिल्ले और बुढ़िया से अधिक अक्लमन्द भी कोई और है इस दुनियाँ में। और तुम अब बोलो नहीं। तुमको तो भगवान को धन्यवाद देना चाहिये कि तुम हम जैसे दयावान दोस्तों के बीच में हो। मेरी बातें तुम्हें खराब लग रही होंगी मगर वह सब तुम्हारी भलाई के लिये ही है। हम तुम्हारे दोस्त हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि या तो तुम अंडे देना शुरू कर दो या फिर गुर्राना सीख लो।” “मैं तो यहाँ से बाहर जाना चाहूँगा।”
“जैसी तुम्हारी इच्छा।”
बच्चा यह सुन कर वहाँ से चल दिया। वह पानी के ऊपर तैरा, उसने पानी के नीचे डुबकी मारी मगर वह जहाँ भी गया वहीं उसे उसके साथ वालों ने घूरा क्योंकि वह बहुत बदसूरत था।
पतझड़ आया, जंगल के पेड़ों के पत्ते पीले और कत्थई रंग के होने लगे। हवा ठंडी हो गयी, बेचारा बच्चा बड़ी कठिनाई से अपना समय गुजार रहा था।
एक शाम एक झाड़ी में से बहुत ही सुन्दर चिड़ियों का झुंड निकला। बच्चे ने ऐसी चिड़ियाँ पहले कभी नहीं देखी थीं। वे हंस थे। वे सब दूध जैसे सफेद थे और उनकी गर्दनें भी खूब लम्बी लम्बी थीं। वे सब खूब ऊँचे उड़ रहे थे।
खूब ठंड पड़ रही थी। बतख का बच्चा पानी में चारों तरफ तैरता रहा ताकि पानी जमने न पाये परन्तु पानी का घेरा दिन ब दिन कम होता जा रहा था। पर क्योंकि ठंड बहुत थी सो एक दिन वह पानी में जम गया।
अगली सुबह एक किसान उधर से निकला तो उसने अपनी कुल्हाड़ी से बर्फ तोड़ कर उस बच्चे को बाहर निकाला और अपने घर ले आया। यहाँ आ कर बच्चे की जान में जान आयी।
किसान के बच्चे उसके साथ खेलना चाहते थे पर बच्चा बहुत डरा हुआ था। वह डर के मारे वहाँ से उड़ा तो दूध की भरी बालटी में जा पड़ा। सारा दूध छपाक से कमरे में बिखर गया।
किसान की पत्नी ने चीख कर हाथ हिलाया तो वह मक्खन के बर्तन में जा पड़ा और वहाँ से फिर आटे के डिब्बे में जा पड़ा। वह औरत फिर चीखी और अबकी बार वह बच्चे के पीछे डंडा ले कर दौड़ी। उसके पीछे उसके बच्चे भी बतख के बच्चे को पकड़ने के लिये दौड़े।
यह अच्छा था कि उस समय दरवाजा खुला था सो बच्चा बाहर निकल कर एक झाड़ी में छिप गया। जाड़े भर बच्चा खूब परेशान रहा। फिर वसन्त आ गया।
यकायक उसने अपने पंख फैलाये। उसके पंख फैलाने में जैसी आवाज हुई वैसी आवाज पहले कभी नहीं हुई थी और इससे पहले कि वह इस बारे में कुछ सोचता वह एक बगीचे में खड़ा था।
सेब के पेड़ फूल रहे थे। वहाँ पास में ही तीन हंस घूम रहे थे। उन्होंने भी अपने पंख फैलाये और पानी के ऊपर बड़ी शान से तैरने लगे। उनको देख कर वह बच्चा बहुत दुखी हो गया।
उसने सोचा कि मैं उन चिड़ियों के पास चलूँ पर कहीं ऐसा न हो कि वे मेरी बदसूरती की वजह से अपने पास आने के जुर्म में मेरा भुरता ही बना दें।
मगर मैं बतखों से काटे जाने की बजाय इन हंसों के हाथ से मर जाना ज़्यादा पसन्द करूँगा। और यह सोच कर वह तुरन्त अपने पर फैला कर पानी के ऊपर उड़ गया। जब उन्होंने एक बतख को आते देखा तो वे अपने आधे खुले पंखों से उसके पास आये। बतख का बच्चा डर के मारे चिल्लाया — “मुझे मार दो, मुझे मार दो।” और उसने अपना सिर नीचा कर दिया इस उम्मीद में कि अब तो वे उसे मार ही देंगे।
तभी उसने पानी में अपनी परछाँई देखी और देखा कि अब वह बदसूरत बतख का बच्चा नहीं रह गया था बल्कि खूबसूरत हंस बन गया था।
उसके बतख के घर में पैदा होने से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह कहीं भी रहता वहीं हंस बनता। क्योंकि वह हंसों के अंडे से निकला था इसलिये हंस बना।
तभी कुछ बच्चे आ गये और उन्होंने उनको रोटी और केक के टुकड़े फेंके और कहने लगे — “देखो, उस सबसे छोटे और नये हंस को देखो, वह कितना सुन्दर है।”
वह नया हंस उन बच्चों की यह बात सुन कर बहुत खुश हुआ।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)