सेठ ने किया अमृत का तिरस्कार : संत/गुरु रविदास जी से संबंधित कहानी
Seth Ne Kiya Amrit Ka Tiraskar (Hindi Story) : Sant/Guru Ravidas Ji
संत महापुरुष समस्त समाज के लिए होते हैं। उनका संबंध केवल एक जाति या वर्ण के साथ नहीं होता। वे
सर्वहित के लिए और सबको सही राह पर चलने के लिए प्रेरणा देते हैं। गुरु रविदास के पवित्र जीवन और
साधुता को देखते हुए चारों वर्णों के लोग सत्संग में आने लगे।
गुरु रविदास पवित्र आहार, पवित्र कर्म और पवित्र विचारों की बार-बार चर्चा करते थे।
एक दिन एक धनवान सेठ गुरु रविदास के सत्संग में आया। उसने अमीर-गरीब हर वर्ग के लोगों को गुरु
रविदास का उपदेश सुनते हुए देखा। सेठ के मन पर यह सब देखकर प्रभाव पड़ा और वह भी सत्संग सुनने
के लिए बैठ गया। गुरु रविदास ने कहा कि मनुष्य तन बहुत अनमोल है और यह तन बहुत दुर्लभ है--
दुलंभ जन्म पुनि फल पाइओ विरथा जात अविवेके।
इस अनमोल जन्म को प्रभु बंदगी में लगाकर सफल बनाना चाहिए। प्रभु भक्ति पर सब जातियों और वर्णों
का अधिकार है। कोई किसी भी जाति या वर्ण का आदमी हो, वह प्रभु भक्ति में लीन होकर महान् बन जाता
है।
ब्राह्मन बैस सुद अरु खत्री।
डोम चंडार मलेछ मन सोइ।
होई पुनीत भगवंत भजन ते।
आपु तारि तारे कुल देइ ॥
भजन करनेवाला ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र, क्षत्रिय, डोम, चंडाल और म्लेच्छ अथवा किसी भी जाति का हो,
प्रभु की भक्ति के द्वारा भवसागर से पार हो सकता है और अपने परिजनों को भी उबार सकता है।
सत्संग समाप्त होने के बाद श्रद्धालुओं के बीच कठौती में से अमृत बाँटा गया, जिसमें गुरु रविदास चमड़ा
भिगोते थे। सेठ ने चरणामृत तो ले लिया, परंतु उसे पीने के बजाय सिर के पीछे से फेंक दिया। चरणामृत का
कुछ अंश उसके कपड़ों पर पड़ गया। सेठ ने घर जाकर कपड़ों को अपवित्र जानकर एक भंगी को दान कर
दिया। भंगी ने ज्यों ही उन कपड़ों को धारण किया, उसका शरीर कांति से चमकने लगा और सेठ को कुष्ठ
रोग हो गया। उधर सेठ ने हकीम और वैद्यों से बहुत दवाई कराई, पर कुष्ठ रोग ठीक नहीं हुआ। जब सेठ को
ध्यान आया कि उसने किसी संत पुरुष का अनादर किया है, जिसके कारण उसे यह कष्ट उठाना पड़ रहा है
तब वह दु:खी होकर गुरु रविदास की शरण में गया। उदार हृदय गुरु रविदास ने सेठ को क्षमा कर दिया और
वह फिर से स्वस्थ हो गया।
(ममता झा)