अकुऐके (नाइजीरियाई कहानी) : चिनुआ अचेबे

Akuaike (Nigerian Story in Hindi) : Chinua Achebe

अकुऐके दुश्मनी की दीवार के इस ओर बीमारी के बिस्तर पर पड़ी थी - दीवार जो उसके और उसके भाइयों के बीच एकाएक खड़ी हो गई थी । सहमी सी वह उनकी बुदबुदाहटों को सुन रही थी । उन्होंने उसे अभी तक नहीं बतलाया था कि क्या करना है, लेकिन वह जानती थी । वह उन्हें कहना चाहती थी कि वे उसे ऐज़ी में उसके नाना के यहाँ ले चलें लेकिन उनके बीच दुश्मनी की खाई इतनी गहरी बन गई थी कि उसके आत्म सम्मान ने उसे यह सुझाव देने से रोक दिया । उन्हें ही यह दुस्साहस करने दो । गई रात ओफोडिले जो सबसे बड़ा था, उसे सिर्फ देखता भर रहा । वह किसलिए रो रहा था ? उसे जाकर गू खाने दो ।

बाद में आती-जाती आधी नींद में अकुऐके को लगा कि वह सुदूर ऐज़ी में अपने नाना के दालान में है और उसे बीमारी की याद तक नहीं । वह फिर से गाँव की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी बन गई थी ।

अकुऐके अपनी माँ की सबसे छोटी सन्तान तथा अकेली बेटी थी । उसके छह भाई थे तथा उसके पिता की मृत्यु उस समय हो गई थी जब वह छोटी ही थी । लेकिन वह अमीर व्यक्ति थे, इसी कारण उनकी मृत्यु के बाद भी परिवार को वास्तविक आर्थिक कठिनाई का कोई खास सामना नहीं करना पड़ा था, क्योंकि उनके कुछ पुत्र तो पहले से ही अपने खेतों पर काम करने लगे थे ।

हर वर्ष अकुऐके की माँ अपने बच्चों को कई बार ऐज़ी में अपने रिश्तेदारों के यहाँ ले जाती थी- ऐज़ी जो छोटे बच्चों की चाल से उमुओफिया से एक दिन की यात्रा की दूरी पर था। अकुऐके कभी माँ की पीठ पर सवार होती तो कभी पैदल चलती । जब सूरज ऊपर चढ़ आता तो उसकी माँ सड़क किनारे खेतों से कसावा की एक छोटी-सी टहनी तोड़कर उसका सिर ढँक देती ।

अकुऐके को अपने नाना के यहाँ जाने के इन दिनों का इन्तज़ार रहता था । उसके नाना सफेद बालों और दाढ़ी वाले लम्बे-चौड़े व्यक्ति थे । कभी-कभी वे अपनी लम्बी दाढ़ी को रस्सी की तरह गूँथ लेते थे जिसके अन्त में एक लम्बूतरा-सा बिन्दु बन जाता था जिस पर से उनके शराब पीते समय ताड़ी ज़मीन पर टपकती रहती थी । इसे देखकर अकुऐके को हमेशा बहुत मज़ा आता था । बुजुर्गवार को इस बात का पता था और वह ताड़ी गटकते समय दाँत पीस- कर स्थिति को और भी हास्यास्पद बना देते थे ।

उन्हें अपनी नातिन से बहुत लगाव था और लोग कहते थे कि वह उनकी अपनी माँ का स्वरूप थी । वह शायद ही कभी अकुऐके को नाम से पुकारते हों हमेशा 'माँ' ही कहते थे । वास्तव में जीवन चक्र में वह उनकी माँ ही थी जो लौटकर आई थी । ऐज़ी में रहते अकुऐके को कुछ भी करने की पूरी छूट थी उसके नाना ने किसी को भी उसे डाँटने से मना कर रखा था ।

दीवार के परे आवाजें ऊँची होने लगीं । शायद पड़ोसी उसके भाइयों के साथ तकरार कर रहे थे । तो अब उन सब को पता लग गया था । गू खाने दो सबको । अगर वह उठ सकती तो वह बिस्तर के पास पड़े पुराने झाड़ू से मारकर सबको भगा देती । काश, उसकी माँ ज़िन्दा होती। तब उसके साथ यह नहीं हुआ होता ।

अकुऐके की माँ दो वर्ष पहले मर गई थी और उसे अपने लोगों में दफनाने के लिए ऐज़ी ले जाया गया था। बुजुर्गवार, जिन्होंने जीवन में कई दुख देखे थे, कहा था, "वे मुझे छोड़कर मेरे बच्चों को क्यों ले जा रहे है ?" लेकिन कुछ दिन बाद, सांत्वना देने आये कुछ लोगों से उन्होंने कहा था, "हम तो भगवान के चूजे हैं । कभी वह खाने के लिए छोटा चूज़ा चुनता है तो कभी बड़ा ।" अकुऐके को ये सभी दृश्य साफ़ साफ़ याद थे और एक बार तो वह रोने को हो आई थी । उसकी घृषित मौत के बारे में सुनकर बुजुर्गवार का क्या होगा ?

उसकी माँ की मृत्यु के बाद होने वाले सूखे मौसम में अकुऐके के आयु वर्ग ने पहला सार्वजनिक नृत्य किया था। अकुऐके ने अपने नृत्य से सनसनी फैला दी थी और उसके चाहनेवालों की तादाद दस गुनी हो गई थी। एक हाट से दूसरे हाट तक कोई न कोई आदमी उसके भाइयों के लिए ताड़ी लाता रहता था। लेकिन अकुऐके ने सबको अस्वीकार कर दिया । उसके भाइयों को चिन्ता होने लगी । वे सभी अपनी इकलौती बहन से प्यार करते थे, खासकर माँ की मृत्यु के बाद वे उसे खुश करने के लिए एक दूसरे से होड़ करने लगे थे ।

और अब उन्हें चिन्ता सता रही थी कि वह एक अच्छी शादी के अवसर गँवा रही थी । उसके सबसे बड़े भाई औफोडिले ने पूरी सख़्ती से उसे बताया था कि घमंडी लड़कियाँ जो सभी रिश्तों को ठुकराती रहती हैं उसी प्रकार दुख पाती है जैसा कि कहानी में ओनवुएरो ने पाया था जिसने सभी प्रस्तावित आदमियों को अस्वीकार कर दिया था और अन्त में उन तीन मछलियों के पीछे भागती फिरी थी जिन्होंने उसे बर्बाद करने के लिए तीन सजीले नौजवानों का रूप धारण कर लिया था ।

अकुऐके ने एक नहीं सुनी । और अब तंग आकर उसकी रक्षा करने वाले देवता ने मामला अपने हाथ में ले लिया था और उसे यह बीमारी लग गई थी। पहले तो लोगों ने उसके बढ़ते पेट की ओर ध्यान ही नहीं दिया था ।

उसकी तीमारदारी के लिए दूर-दूर से ओझा बुलाये गये थे । लेकिन उनकी जड़ी-बूटियों का कोई असर नहीं हुआ था । एक दफ़ा तांत्रिक ने अकुऐके के भाइयों को एक ऐसे ताड़ की तलाश में भेजा था जिसे एक चढ़ती बेल ने आच्छादित कर रखा हो । "जब तुम उसे देखो", उसने उन्हें कहा था, "तो एक गंडासा लेकर पेड़ का गला घोंट रही उस लता को काट देना । जिन आत्माओं ने तुम्हारी बहन को जकड़ रखा है वे तब उसे छोड़ देंगी ।" भाइयों ने तीन दिन तक उमुओफिया तथा आस-पास के गाँवों को छान मारा तब जाकर ऐसा ताड़ मिला और उन्होंने उसे आज़ाद कर दिया । लेकिन उनकी बहन को छुटकारा नहीं मिला। बल्कि उसकी हालत और ख़राब हो गई ।

अन्त में उन्होंने आपस में सलाह-मशविरा किया और भारी मन से फैसला किया कि उनकी बहन को फूलनेवाली वह बीमारी लग गई थी जो गाँव के लिए सर्वनाशकारी थी । अकुऐके को भाइयों की इस सलाह का आशय खूब पता था । जैसे ही सबसे बड़े भाई ने उसके बीमारी वाले कमरे में क़दम रखा वह ज़ोर से उस पर चिल्लाई और वह भाग खड़ा हुआ । यह सब पूरा दिन चलता रहा और डर यह था कि कहीं वह घर पर ही न मर जाये और 'आनी' का कहर अगर सारे गाँव पर नहीं तो कम से कम परिवार पर तो न टूटे। पड़ोसियों ने आकर उमुओफिया के नौ गाँवों के लिए ख़तरे की चेतावनी दी ।

शाम को वे उसे घने जंगल में ले गये । वहाँ उन्होंने उसके लिए एक अस्थाई आश्रम स्थल और घटिया सा बिस्तर बनाया था । वह अब घृणा और थकान के कारण चुप थी और वे उसे वहाँ छोड़कर चले गये ।

सुबह तीन भाई जंगल में यह पता करने आये थे कि वह अभी भी जिन्दा थी या नहीं । उन्हें यह देख कर हैरानी हुई कि आश्रम-स्थल खाली था। वे सारा रास्ता भागते हुए वापस गये बाकियों को यह बताने के लिए और वापस आकर सभी उसे खोजने लगे । उनकी बहन का कहीं नामो-निशां भी न था । ज़ाहिर था कि उसे जंगली जानवर खा गये थे। जैसा कि ऐसे केसों में कभी-कभी होता था ।

दो-तीन पूर्णमासियाँ बीत गईं और उनके नाना ने यह जानने के लिए उमुओफिया संदेश भिजवाया कि क्या अकुऐके सचमुच मर गई थी । भाइयों ने कहा 'हाँ' और संदेशवाहक वापस ऐज़ी लौट गया। एक-दो हफ्ते बाद बुज़ुर्गवार ने फिर संदेश भिजवाया कि वे आकर उससे मिलें । वह अपनी 'ओबी' में उनका इन्तज़ार कर रहा था जब उसके नाती उससे मिलने आये । स्वागत की औपचारिकता जिसमें हाल ही हुए नुकसान के कारण गर्मजोशी कां भाव कम था, ख़त्म होने के बाद बुजुर्गवार ने लड़कों से पूछा कि उनकी बहन कहाँ थी । सबसे बड़े ने उन्हें अकुऐके की मृत्यु की कहानी सुना दी। बुज़ुर्गवार अपने सिर को दायें हाथ से सँभाले अन्त तक उनकी कहानी सुनते रहे ।

"तो अकुऐके मर गई है,” उन्होंने एकाध सवाल आधे वक्तव्य के स्वर में किया । "तो तुमने मुझे संदेश क्यों नहीं भिजवाया ?" सभी चुप रहे फिर सबसे बड़े ने कहा कि वे पहले शुद्धि की सभी रस्में पूरी कर लेना चाहते थे । बुज़ुर्गवार ने दाँत पीसे, फिर तीन-चौथाई सीधे खड़े हुए, और लड़खड़ाते हुए अपने सोने वाले कमरे की ओर बढ़े, चित्रकारी से जड़े दरवाज़े को ढकेला तथा अकुऐके का प्रेत उनके सामने खड़ा था - गम्भीर तथा कठोर मुद्रा में । सभी तुरन्त कूदकर खड़े हो गये, एक-दो तो कमरे के बाहर भी हो गये ।

“लौट आओ,” बुज़ुर्गवार ने दुखभरी मुस्कराहट के साथ कहा, "तुम जानते हो यह युवती कौन है ? मुझे जवाब चाहिए । तुम ओफोडिले, तुम सबसे बड़े हो, तुम्हीं जवाब दो । यह कौन है ?"

"यह हमारी बहन अकुऐके है ।"

"तुम्हारी बहन अकुऐके है ? पर तुमने मुझे अभी बताया है कि वह तो फूलनेवाली बीमारी से मर चुकी है। वह मरने पर यहाँ कैसे हो सकती है ?" चुप्पी “या अगर तुम्हें नहीं पता था कि फूलनेवाली बीमारी क्या होती है, तो क्यों नहीं उनसे पूछ लिया, जिन्हें पता है ?”

"हमने उमुओफिया तथा अबामे में सभी ओझाओं से सलाह-मशविरा किया था ।"

"तुम उसे मेरे पास यहाँ क्यों नहीं ले आये ?”

चुप्पी थी ।

बुज़ुर्गवार ने तब उन्हें चन्द शब्दों में बताया कि उन्होंने उन सबको यहाँ इकट्ठे यह बताने के लिए बुलाया था कि उस दिन से अकुऐके उनकी बेटी हो गई थी और उसका नाम माटेफी हो गया था । वह अब उमुओफिया की नहीं बल्कि ऐज़ी की बेटी बन गई थी, वे चुपचाप उन्हें देखते रहे ।

“जब वह शादी करेगी," बुजुर्गवार ने बात ख़त्म करते हुए कहा, "उसकी वधू कीमत पर भी मेरा अधिकार होगा, तुम्हारा नहीं । और जहाँ तक शुद्धि की रस्मों का सवाल है उसे तुम जारी ही रखो क्योंकि अकुऐके सचमुच उमुओफिया के लिए मर चुकी है ।"

अपने भाइयों के स्वागत में एक शब्द भी कहे बिना माटेफी वापिस कमरे में चली गई ।

(अनुवादक : हरीश नारंग)

(साभार : फौजी लड़कियाँ तथा अन्य कहानियाँ-साहित्य अकादेमी)

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