अब इन्साफ़ होने वाला है (कहानी) : जिलानी बानो
Ab Insaf Hone Wala Hai (Story in Hindi) : Jilani Bano
खिड़की बन्द कर दो, डॉक्टर शाहिद हुसैन की गरजदार आवाज़ कमरे में गूँजती है।
"नहीं नहीं, खिड़की खोल दो।" आमिना आहिस्ते से कहती है। फिर दोनों हाथ ठोड़ी के नीचे रखकर आहिस्ता-आहिस्ता सिसकियाँ लेती है, क्योंकि वह हर वफ़ादार बीवी की तरह अपनी सिसकियों को गले से नीचे उतार सकती है, क्योंकि डॉक्टर शाहिद हुसैन हर मोहब्बत करने वाले शौहर की तरह बीवी की सिसकियों को बरदाश्त नहीं कर सकते। यों भी समाजशास्त्राी डॉक्टर शाहिद हुसैन, जिस वक़्त लिख रहे होते, तो वह अपनेआप को बड़े अहमक लगते थे। उनकी हर बात फूल होती, और हर फूल गुलाब। ऐसे वक़्त दुनिया उन्हें बड़ी हकीर-सी नज़र आती थी और अगर आमिना को देखना हो, तब उन्हें... मगर इसकी क्या ज़रूरत थी?
आमिना ने प्याज की डली की तरह अपने ऊपर मसलहतों और कुर्बानियों की इतनी परतें चढ़ा ली थीं कि उनका अन्त कहीं नहीं था और डॉक्टर शाहिद हुसैन को उलझे धागों से बड़ी वहशत होती थी।
कई लफ़्ज दूसरों के मुँह से खंजर की नोंक बनकर निकलते हैं और फिर कलेजे के पार...
डॉक्टर शाहिद हुसैन भी दिन में कई बार आमिना को क़त्ल करते हैं। फिर रात को जब उनका पुरजोश सेहतमन्द बदन आमिना को अपने हिसार में ले लेता है, तो आमिना मिश्री की डली बनकर घुलने लगती है, ख़त्म हो जाती है। मगर दिन का उजाला उसे फिर एक थकी हुई बीमार औरत के वजूद में अकेले पलंग पर पटक देता है। अब रात का समन्दर शान्त हो चुका है, इसलिए वे दोनों फिर अजनबी से बन जाते हैं। कमरे की चौहद्दी फैलने लगती है... समाजशास्त्राी डॉक्टर शाहिद हुसैन अपने खोल में बन्द होकर हिन्दुस्तान के सामाजिक हालात पर बहुत अहम पेपर तैयार कर रहे हैं। भला इतना अहम काम कहीं इस तरह हो सकता है कि बाहर की तेज़ हवा हर बार अपने साथ नये झमेले लाये और मेज़ पर रखा हुआ हिन्दुस्तान की सामाजिक समस्याओं का हल चारों तरफ़ बिखर जाये।
"खिड़की बन्द कर दो," डॉक्टर शाहिद हुसैन कहने से पहले हर बात को तोलते हैं। फिर बोलते हैं।
"खिड़की खोल दीजिये न।" आमिना फ़रियादी लहज़े में कहती है।
समाजशास्त्राी डॉक्टर शाहिद हुसैन इस बात को क्यों नहीं समझते कि खिड़की बन्द हो जाये, तो ताज़ा हवा अन्दर नहीं आती। और ताज़ा हवा अन्दर न आये तो कोई औरत...
मर्दों की बात अलग है कि वे सामाजिक हालात पर ग़ौर करने के लिए एक नयी सिगरेट काफ़ी समझते हैं, मगर औरत जात अपनी खिड़कियाँ बन्द कर ले, तो नये मसले अन्दर कैसे आयेंगे।
यों तो ताज़ा हवा घर में सुकून के साथ बैठकर काम करने वाले सारे विद्वानों के लिए ही नुकसानदेह है, मगर सबसे बढ़कर आमिना के लिए है। उसका दिल ज़्यादा ख़राब है या जिगर? गुर्दा बदलना है या ख़ून, डॉक्टर यह फ़ैसला नहीं कर पाते।
और यह मर्ज़ खुली खिड़की के रास्ते अन्दर आता है... डॉक्टर शाहिद हुसैन आमिना के इलाज करने वाले डॉक्टरों से यही बात कहते हैं और इसीलिए आमिना की उस भयभीत बीमार याचना को डॉक्टर शाहिद हुसैन हर बार अपने ज्ञान और विद्वता की कैंची से काट देते हैं।
डॉक्टर शाहिद हुसैन के साथ दुनिया के सभी विद्वान कम से कम एक बात पर ज़रूर सहमत हो सकते हैं कि खुली खिड़की के बेशुमार नुकसान हैं। इसीलिए वे लोग हमेशा अपनी खिड़कियाँ बन्द रखते हैं और इन लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए उनके महलों में लटकते हुए सोने के घण्टे मजलूमों को बजाने पड़ते हैं, ताकि इन घण्टों की आवाज़ सुनकर सारे शहर के लोग इकट्ठा हो जायें। चौंक पड़ें कि अब इन्साफ़ होने वाला है।
यह नाक़ाबिले-यक़ीन दृश्य देखने के लिए आमिना भी बड़ी मुश्किल से उठती है - यों जैसे कोई अनजानी ताक़त उसे खींचे लिये जा रही हो। वह मज़बूती के साथ ग्रिल पकड़ लेती है। इसके बावजूद कोई जादू उसे उड़ाकर नीचे ले जाता है। आमिना के इस मर्ज़ की तफ़्सील कई बार डॉक्टर शाहिद हुसैन ने डॉक्टरों को सुनायी है और हर डॉक्टर ने बड़ी चिन्तातुर नज़रों से आमिना को देखा है।
"आप ज़रा बाहर तशरीफ़ लाइये।"
वह जानती है कि डॉक्टर इतने ख़ौफ़नाक मर्ज़ का नाम उसके सामने लेना नहीं चाहते। वह यह भी जानती है कि डॉक्टर शाहिद हुसैन अब उसकी देखभाल से थक चुके हैं। औरत की छठी संज्ञा ने उसे समझा दिया है कि डॉक्टर शाहिद हुसैन का अकारण प्यार दरअसल उनकी नफ़रत का इज़हार है, क्योंकि प्यार में खोट का पता तो अहमक से अहमक औरत को भी पल भर में चल जाता है। इसलिए आमिना बाजी हारने को तैयार नहीं। कोई न कोई मोहरा आगे बढ़ाये जाती है। हर औरत की तरह कोई न कोई खिड़की खोल लेती है।
हर बार खिड़की खोलने का मतलब यही होता है कि अब आमिना ख़ौफ़ से हाँफती-काँपती पलंग पर गिर जायेगी। साथ ही उसका ब्लडप्रेशर अपना सन्तुलन खो देगा। फिर उसकी कराहों में हिन्दुस्तान के सारे सामाजिक मसले एक तरफ़ धरे रह जायेंगे और डॉक्टर शाहिद हुसैन क़लम पटककर उठ जायेंगे, क्योंकि अब उन्हें आमिना के साथ मोहब्बत भरे डायलाग्स बोलने हैं।
"डर गयी मेरी जान, आँखें खोलो, दवा ले लो।" डॉक्टर शाहिद हुसैन पहले हर बात तोलते हैं, फिर बोलते हैं और कई बार तो सिर्फ़ तोलते रह जाते हैं। इसीलिए तो कमरे की दम घुटा देने वाली फ़िज़ा में यह लफ़्ज़ बेगाना-सा लगता है, अब जिसका नाम प्यार है। इसलिए डार्लिंग आँखें नहीं खोलती और वह दवाओं की आलमारी की तरफ़ बढ़ते हैं। यह विटामिन बी है, ताक़त बढ़ाने के लिए। यह कॉमन ड्राप्स हैं दिल को जगाने के लिए। दवाओं के ढेर हैं। डॉक्टर शाहिद हुसैन को वह दवा ढूँढ़नी पड़ती है, जो आमिना को सिर्फ़ उस वक़्त खिलानी चाहिए, जब होटल फ़िरदौस के बैरे छोटी पतरोलियाँ सड़क पर फेंकते हैं, और एक क़यामत का शोर ऊपर उठता है। यह दुनिया का सबसे दिलचस्प तमाशा है। आमिना उस वक़्त का बड़ी बेचैनी के साथ इन्तज़ार करती है, जैसे एक भारी पत्थर उसके सिर पर गिरने वाला हो। फिर खिड़की खोलते ही उसे न जाने क्या हो जाता है कि वह ख़ुद भी फिसलती हुई उस हुजूम में मिल जाती है।
छोटी पतरोलियाँ चाटने के लिए, पैरों तले मसले हुए चावल खाने के लिए, धक्कमपेल में उसका पाँव फिसल जाता है। लोग उसे रौंद डालते हैं। डॉक्टर शाहिद हुसैन दवाओं की सारी अलमारी उलट-पलट कर डालते हैं। डॉक्टर आदम ने आमिना की इस ग़ैर-यक़ीनी बीमारी को देखकर यहाँ हर मर्ज़ की दवा रख दी है। घबराकर डॉक्टर शाहिद हुसैन को अपने पड़ोसियों से मशविरा करना पड़ा। यह तो पूरी कालोनी सम्मानित लोगों की है। एक से एक मशहूर आदमी यहाँ रहते हैं। मशहूर सितारवादक बासु चटर्जी, मशहूर सोशल वर्कर सोमनाथ रेड्डी, मशहूर डांसर रोशी... और मशहूर... मशहूर...
इन शानदार फ़्लैटों में रहने वाले सारे जीनियस लोग किसी न किसी ख़ौफ़नाक बीमारी में मुब्तला हैं। अब अच्छी खुराकें उनके लिए ज़हर बन चुकी हैं। वे होटल फ़िरदौस के नीचे मिट्टी में मिले हुए चावल खाने वालों को बड़ी भूखी नज़रों से ताका करते हैं
"इन कमबख़्तों को न हार्ट-अटैक होता है, न ब्लडप्रेशर बढ़ता है" मिसेज वहीदुद्दीन जल कर कहती हैं। "मैं तो नीचे के शोर की वजह से सुबह रियाज नहीं कर सकता", बासु चटर्जी हीरे की अँगूठियों वाले हाथ को लहराकर कहते हैं। "मेरी नयी दुल्हन घर में है। दिन भर ये भिखारी हमारी खिड़कियों की तरफ़ ताका करते हैं" इंस्पेक्टर जमाल गुस्से में कह रहा था।
"और मेरी बीवी... मेरी... मेरी बीवी तो इन भिखारियों को..." डॉक्टर शाहिद हुसैन बात करने से पहले बात को तोलते हैं और कभी झुकते पलड़े को हाथ से थामना भी पड़ता है।
चुनांचे इससे पहले कि भैरों के शुद्ध सुरों में कोई खोट आये, होटल फ़िरदौस के मालिक से कहा गया कि वह इस तमाशे को बन्द कर दे।
अब आमिना चुपचाप अकेली पड़ी रहती है। इतनी अकेली भी नहीं... डॉक्टर शाहिद हुसैन की शख़्सियत पूरे कमरे में छायी रहती है।
अचानक चारों तरफ़ सोने के घण्टे बजने लगे। अब किसी के साथ इन्साफ़ होने वाला है। आमिना घबराकर उठी और गिरती-पड़ती दौड़ी, खिड़की की तरफ़ जिधर से फ़िरदौस की हवा आती है, मगर अब होटल का मैनेजर जूठी पतरोलियाँ आमिना के फ़्लैट के सामने कूड़े के ड्रम में फेंकवा रहा था। इसलिए तमाम इन्तज़ार कर रहे भूखे मक्खियों की तरह कूड़े के ड्रम पर टूट पड़े। पतरोलियों पर लगे हुए चावलों के साथ-साथ बहुत-सा कूड़ा-करकट भी चट कर गये। ख़ैर, इस बात पर किसी ने भी प्रतिरोध करना ज़रूरी नहीं समझा कि यह भूखों का अपना निजी मामला था और एक जम्हूरी मुल्क़ में आप कौन होते हैं किसी के फटे में टाँग अड़ाने वाले। इसीलिए तो इंस्पेक्टर जमाल अपनी दुल्हन को मार रहा है, तो मजाल है कि कोई सभ्य पड़ोसी उधर पलटकर देखे, मगर आमिना को कहाँ क़रार... वह खिड़की की ग्रिल पकड़कर चिल्लाने लगी, "इन्साफ़... इन्साफ़... जमाल अपनी दुल्हन को मार रहा है।"
"चुप...चुप..." जमाल की अम्माँ ने आकर रोती हुई दुल्हन के मुँह पर हाथ रखा।
"तुम हट जाओ अम्माँ, आज मैं इसका क़िस्सा ख़त्म कर डालूँगा।" जमाल ने अम्माँ को हटाकर अपनी खिड़की बन्द कर ली।
"अच्छा किया..." डॉक्टर शाहिद हुसैन ठीक कहते हैं कि पड़ोसी की खिड़की में नहीं झाँकना चाहिए। अब मजाल है कि कोई जमाल की दुल्हन की चीख़ें सुन सके। अब जमाल की फ़रियाद सुनने के लिए कोई सोने के घण्टे बजाओ... बेचारे कितना सताए हुए हैं... ससुर ने पचास हज़ार का दहेज देने का वायदा करके तीस हज़ार में एक दुबली-पतली लड़की सौंप दी और फिर सितम यह है कि ईद की सलामी पर न स्कूटर भेजा, न मोटर... अगर खुले मुँह में लड्डू जाने वाले हों, और पड़ जायें कंकर... तब कितना जी जलता है न? खिड़की की ग्रिल पकड़े काँपते पैरों से आमिना कब से इन्तज़ार में खड़ी है कि जमाल ने दुल्हन का मिज़ाज ठीक किया या नहीं... उसकी आँखों में अँधेरा छाने लगा। सीने से उठने वाला धुआँ पूरे कमरे में फैलने लगा।
"आग..आग..." आमिना चिल्लाने लगी। डॉक्टर शाहिद हुसैन घबराकर उठे। हिन्दुस्तान की सामाजिक व्यवस्था पर लिखे हुए उनके काग़ज़ इधर-उधर बिखर गये। वह पहले खिड़की की तरफ़ आये और फिर आलमारी की तरफ़। उस दवा का नाम न जाने क्या है, जो किसी लड़की के चिल्लाने का दृश्य देखने वालों को खिलाना चाहिए।
"टन...टन... टन..." दरवाज़े की बेल बजती है।
"पुलिस वाले होंगे। गवाही लेने आये हैं। बस इन्साफ़ होने वाला है।"
आमिना उठकर बैठ गयी है, "हाँ, मैंने देखा है। पहले उसने जूते से और... और फिर..."
"और फिर हमने खिड़की बन्द कर ली" डॉक्टर शाहिद हुसैन ने जल्दी से आमिना की बात छीन ली।
"बात दरअसल यह है इंस्पेक्टर साहब कि मैं बहुत मसरूफ़ आदमी हूँ। हिन्दुस्तान के सामाजिक मसलों पर ग़ौर करने से मुझे इतनी फ़ुरसत कहाँ मिलती है कि औरतों की चीख़-पुकार पर वक़्त जाया..."
डॉक्टर शाहिद हुसैन, पहले हर बात को तोलते हैं, फिर बोलते हैं। इसीलिए कई बार उन्हें डण्डी भी मारनी पड़ती है।
फिर आमिना दो-तीन घण्टे तक चुपचाप लेटी रही, जमाल की दुल्हन की ठण्डी लाश की तरह।
मगर जानवरों की तरह कई इन्सान भी दहशत की बू पा लेते हैं। वह घबराकर उठ बैठी, "खिड़की खोल दो... ख़ुदा के लिए..." उसके लहज़े में ख़ुशामद थी।
"ख़ुदा के लिए..." डॉक्टर शाहिद हुसैन ने क़लम रोककर बड़ी गुस्से भरी नज़रों से आमिना को देखा। उन्होंने ख़ुदा को कभी वक़्त पड़ने पर आमिना की तरह चाहा था, और वक़्त निकल जाने के बाद आमिना की तरह नज़रअन्दाज़ भी कर चुके थे। इसलिए उस वक़्त उस चुपचाप कमरे की उदास फ़िज़ा में ख़ुदा का क्या काम था...?
मगर शायद यह एक नयी दुल्हन के जले हुए बदन की ख़ुशबू का असर था, जो सारे घर में फैली हुई थी। इसीलिए आमिना यह बात जान चुकी थी कि अब डॉक्टर शाहिद हुसैन सिर्फ़ उसके लिए कुछ नहीं कर सकते।
डॉक्टर शाहिद हुसैन ने दुनिया के सारे मसले हल कर डाले, मगर औरत की गुत्थी सुलझाने के लिए उन्हें आज भी क़लम रोकनी पड़ती थी।
कमरे की ख़ामोशी बढ़ने लगी। आमिना को यों लगा, जैसे वे दोनों संशय की मद्धिम-सी धुन्ध में घुल रहे हों। अँधेरा फैल चुका है, मगर उस कमरे में रोशनी होने से भी क्या फ़र्क़ पड़ता है। डॉक्टर शाहिद हुसैन काग़ज़ पर अपने ख़यालात का इज़हार हमेशा आँखें बन्द करके करते रहे हैं और आमिना उनके चेहरे पर लिखी हुई लिखत अँधेरे में पढ़ने की आदी हो चुकी है। अब वह उस दवाओं भरे कमरे से बहुत दूर निकल आयी है। उसे अपने कमरे का यह दृश्य एक पेण्टिंग की तरह नज़र आ रहा है। डॉक्टर शाहिद हुसैन एक पोट्र्रेट थे। दायरों से बनायी हुई एक तस्वीर...।
होटल फ़िरदौस के नीचे बैठने वाली भिखारिन ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही है। आमिना फिर नीचे की तरफ़ लौट आती है। उस पेण्टिंग का एक हिस्सा बनने के लिए उस भिखारिन का बच्चा किसी हादसे में टूट-फूट गया था। कुहनियों के पास से हाथ मुड़े हुए, आँखों की जगह गड्ढ़े और एक टाँग ग़ायब। आमिना को यों लगा, जैसे किसी ने गुस्से में उसे तोड़ डाला है। तभी तो लोग भिखारिन पर पैसे फेंकते हुए जाते हैं। दूसरे भिखारी इस पर ख़ूब जलते, "अपाहिज बच्चे की माँ बनकर मौज उड़ाती है साली..."
मजबूरन आमिना को फिर उठकर खिड़की खोलनी पड़ी।
सामने वाले स्टाप पर हर मिनट के बाद एक बस आकर रुकती है। लोग भागते हुए उसमें सवार हो जाते हैं, मगर वह लड़की क्यों नहीं जाती। दस-ग्यारह बरस की एक ख़ूबसूरत-सी लड़की स्कूल यूनीफार्म पहने गले में बस्ता डाले न जाने कब से अपनी बस का इन्तज़ार कर रही है।
खड़े-खड़े आमिना के पाँव दुखने लगे, मगर वह उस बच्ची को अकेला छोड़कर कैसे जा सकती है... उसे ले जाने वाले आ गये। एक आटो रिक्शा रुका। चार गुण्डे उतरे। उन्होंने बड़ी फुर्ती के साथ चीख़ती-चिल्लाती लड़की को उठाकर आटो में डाला और चल दिये।
"उन्हें रोको..." आमिना चिल्लायी, मगर उसकी आवाज़ ट्रैफ़िक के उस सिपाही तक भी नहीं पहुँचेगी, जो बीच चौराहे पर खड़ा ग़लत रास्ता चलने वालों को रोकता है। उसने आटो को नहीं रोका, क्योंकि वह लड़की वहीं जा रही थी, जहाँ उसे जाना चाहिए।
"उसे रोको...उसे पकड़ो..." आमिना ने काँपते हुए डॉक्टर शाहिद हुसैन से याचना की और उन्होंने बेजार होकर सामाजिक काम की बहस को रोक दिया। खुला हुआ क़लम पैड पर रखा। सिगार ऐशट्रे में फेंका और उठकर खिड़की तक आये, मगर आमिना तो अब अपनी बीमारी सारे कमरे में घोल चुकी थी।
"अब कौन-सी दवा दूँ?" वह फिलहाल बोलने के मूड में नहीं थे, न तोलने के।
मगर अब कोई दवा काम नहीं आयेगी। दस बरस की बच्ची और चार गुण्डे। दहशत के मारे आमिना कराहने लगी।
घबराकर डॉक्टर शाहिद हुसैन वह दवा ढूँढ़ने लगे, जो ख़ून में लथपथ औरत को दम तोड़ते वक़्त देनी चाहिए, मगर आमिना ने दवा का गिलास हाथ से झटक दिया।
"सोने के घण्टे बजाओ न... बजाओ न..."
झुँझलाकर डॉक्टर शाहिद हुसैन ने फिर खिड़की से बाहर देखा। दूर-दूर तक कोई ख़ास बात नज़र नहीं आयी। एक यही सड़क क्या, वह साल में कई बार किसी न किसी मुल्क़ में होने वाले सेमिनारों में शिरकत करने जाते हैं, मगर उन्हें कहीं कोई ग़ैर क़ानूनी बात नज़र नहीं आती...
"इन्साफ़... इन्साफ़..." बेहोशी में आमिना बड़बड़ा रही है।
दोनों हाथों में सिर थामे डॉक्टर शाहिद हुसैन बैठ गये।
थोड़ी देर बाद किसी के रोने-चिल्लाने पर उन्होंने सिर उठाया।
आमिना खिड़की की ग्रिल पकड़े बाहर की तरफ़ झुकी खड़ी थी और सिसकियाँ ले रही थी। उन्हें फिर दवा ढूँढ़ने से पहले मर्ज़ तलाश करना है... मालूम हुआ कि भिखारिन का अपाहिज बच्चा कोई उठाकर ले गया।
ममता की आग बुरी बला होती है। उसके रोने पर डॉक्टर शाहिद हुसैन को भी अफ़सोस हुआ। कोई हद है... अभी चन्द घण्टे पहले उसी सड़क पर एक लड़की का अगवा हुआ और अब एक बच्चे की चोरी...
आमिना अपनी आदत के अनुसार रोते-रोते फिर बेहोश हो गयी। डॉक्टर शाहिद हुसैन ने घबराकर उसे कई दवाएँ एक साथ खिला दीं। डॉक्टर आदम ने नये सिरे से उसके सारे चौकअप किये और फिर डॉक्टर शाहिद हुसैन का अहमतरीन आलेख तैयार हो गया, क्योंकि अब सड़क सुनसान पड़ी रहती थी। भिखारिन की जगह एक तोते के पिंजरे वाला ज्योतिषी बैठने लगा। इसलिए सारी कालोनी अपने नसीबों का हाल सुनकर सहम चुकी थी, मगर एक दिन उस ज्योतिषी की क़िस्मत पर भी शनि का मनहूस साया मँडराने लगा। आमिना ने देखा कि वही भिखारिन अपनी गुदड़ी सँभाले फिर आ गयी और उस गुदड़ी में से उसने एक लाल निकाला। साल भर की दम तोड़ती हुई बच्ची। आँखों की जगह दो गड्ढ़े। हाथ पीछे की तरफ़ मुड़े हुए...एक टाँग ग़ायब...
"खिड़की बन्द कर दो... बन्द कर दो अब..." आमिना ज़ोर से चिल्लायी और ग्रिल छोड़कर धड़ाम से फ़र्श पर गिर पड़ी। समाजशास्त्राी डॉक्टर शाहिद हुसैन ने ऐनक सरकाकर ग़ौर से सड़क पर देखा, मगर उन्हें इतना ख़ौफ़नाक दृश्य कोई नज़र नहीं आया कि आमिना आज खिड़की बन्द करने का फ़ैसलाकर डाले, "उठो, उठो आमिना... अब इन्साफ़ होने वाला है।" वह आदत के मुताबिक़ बोलने से पहले तोलने बैठ गये।