आखिरी रुखसत (कहानी) : ज्योति नरेन्द्र शास्त्री

Aakhiri Rukhsat (Hindi Story) : Jyoti Narendra Shastri

कोलकाता की सेंट जेवियर्स कॉलेज मे दोपहर के समय एलीसा अपना लंच कर रही थी । अचानक फोन की घंटी बजी, सब अपना खाना खाने मे व्यस्त थे इसलिए फोन उठाने की हिमाकत किसी ने नही की । दूसरी बार फोन बजा तो कॉलेज के चपरासी भैरु सिंह ने फोन उठाते हुए कहा, क्या है ? अभी दिख नहीं रहा लंच चल रहा है ।

आप फोन एलीसा को देंगे प्लीज़ दूसरी तरफ से एक लड़की ने दर्द भरी आवाज़ मे कहा ।

ठीक है अभी देता हु ।

एलीसा मेम आपका फोन है, पता नही किसी लड़की का है ।

हैलो एलीसा ने फोन लेते हुए कहा । भाभी जान उधर से एक आवाज़ आती है । हैलो कौन ? अचानक बने इस रिश्ते से एलीसा चौक गई थी । मै नीरजा, थोड़ा सकपकाकर कौन नीरजा ? मै तो कभी इस नाम से परिचित हुई नही ।

मै अनवर की बहन नीरजा । लेकिन कौन अनवर मै किसी अनवर को नही जानती ।

अनवर यानी आपके पति हर्षित ।

चलो मान लेते है वो अनवर है लेकिन अनवर की बहनो यानी मेरी सारी ननदो को तो मै जानती हु । अब कहा से रिश्ता हो गया ।

मै इस समय थाइलैंड के फी-फी आइलैंड से बोल रही हु नीरजा प्रत्युतर देती है । लेकिन वहा तो हमारा कोई सगा नही है । एलीसा ने बात काटते हुए कहा । शायद अहमद ने जरूरी नही समझा इसलिए नही बताया होगा । मै उनके पिता केरान पठान की दूसरी बीवी से पैदा हुई थी । अगर सम्भव हो तो अहमद भाई जान को फी -फी आइलैंड जरूर लाना । अब्बा जान इस वक्त आखिरी रुखसत पर है । जाने से पहले एक बार भाई जान को देखने की ख्वाहिश लेकर बैठे है ।

ठीक है मै मनाकर उन्हे ले आउंगी । एलीसा ने फोन रख दिया ।

अब एलीसा गहन चिंतन मे थी । इस एक नए अजनबी मेहमान के एक कॉल ने थोड़े देर मे ही बहुत कुछ बदल कर रख दिया था । नीरजा के कहे एक-एक शब्द उसके जेहन मे गुंज रहे थे ।

आख़िरकार क्या परत है इस रिश्ते की ? कौन है ये केरान पठान ? और क्या रिश्ता है उसका हर्षित से ? और वो नीरजा हर्षित को अनवर भाई जान क्यो बोल रही थी ?

शुरु से एक-एक बाते उसके मस्तिष्क मे कौंध रही थी । ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के एम बी ए प्रोग्राम मे वो पहली बार मिले थे । उसकी एक किताब जो वो लाइब्रेरी की टेबल पर रख कर गई थी, थोड़ी देर बाद जब वह लौट कर आई तो किताब नही थी । तभी सामने की रॉ मे पढ़ते किसी महानुभाव के पास किताब का कवर नजर आया । एलिसा ने पास आकर घुड़क जमाई की तुमने बिना अनुमति किताब कैसे ले ली ।

किताब ही तो ली है मोहतरमा और वैसे भी मै इसे पढ़कर वापिस कर दूंगा । अपने चश्मे को हटाते हुए वह महानुभाव बोला । एलिसा ने देखा तो सामने एक गोरा रंग का युवक बैठा हुआ था हालांकि वह अंग्रेजो जैसा तो नही लगता था उसका हल्का श्याम रंग उसे गोरो की जमात से भारतीय होने का अहसास करवाता था । भारत के प्रति श्रद्धा के चलते एलिसा ने उसे कुछ नही कहा । उसकी माँ ने जो एक अंग्रेज के साथ ब्रिस्टल मे शिफ्ट हो गई थी भारत के बारे मे काफी बाते बताया करती थी । जिससे एलिसा की दिलचस्पी भारत के प्रति विशेष रूप से जाग्रत हो गई थी । ब्रिस्टल मे वह जन्म से रह रही थी, उसे आज तक हजारों लड़के-लड़किया मिले थे लेकिन उन सबमे उसका भारतीय दोस्त एक भी नही था ।

हर्षित की आँखो पर लगा चश्मा उसके पढ़ाकू होने का अहसास करवा रहा था । एलिसा को समझते देर नही लगी की केवल पढ़ाकू व्यक्ति ही इससे गहरी दोस्ती कर सकता है । एलिसा ने बातचीत शुरु की । धीरे-धीरे दोनो ने एक दूसरे का सारा परिचय जान लिया था । अब दोनो यूनिवर्सिटी की कैंटीन मे, लंच मे तो कभी लाइब्रेरी मे मिलने लगे थे । हर्षित एलिसा को अपने वतन की ढेर सारी बाते बताया करता था । पापा, दादा-दादी को तो उसने देखा नही था । कुल मिलाकर उसके मम्मी, नाना-नानी और ममरे भाई बहन रिश्ते के नाम पर थे । मतलब खुन का रिश्ता कह सके ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था । पापा, दादा-दादी के बारे मे उसने यही बता रखा था की जब वो बहुत छोटा था तभी उनका देहांत हो गया था । उसने तो उनको देखा तक नहीं था । दादा-दादी का प्यार उसे नाना-नानी से तथा माता-पिता का प्यार उसे केवल अपनी मम्मी से मिला था । ममेरे भाई बहनो से तो उसे केवल अपेक्षा ही मिली थी । इस लिए वह पढ़कर अपनी किस्मत बदलने पर तुला हुआ था ।

कैसे उसके नाना उसे कहानिया सुनाया करते थे । राजा वीरभान की कहानी तो आज भी उसे याद थी की किस तरह राजा वीरभान ने बिछड़ने के बाद भी रानी सत्यमंती को ढूंढ निकाला था । वह उसके संघर्ष, उसकी की गई अपेक्षा हर चीज से वाकिफ थी । आज हर चीज उसके जेहन मे आ रही थी । हर्षित का बाप एक पठान कैसे ? एलिसा की शादी के लिए भी उसके नाना-नानी ने बड़ी मुश्किल से परमिशन दी थी । एलिसा के माता-पिता को कोई एतराज नही था । लेकिन एक क्रिस्चन लड़की हिन्दु परिवार मे सेटल होकर रह लेगी इसकी सुनिश्चित्ता होने के बाद ही एलिसा को हर्षित के नाना-नानी ने बहु के रूप मे मान्यता दी थी ।

सात साल सकुशल उनकी शादी को गुजर चुके थे । हर्षित और उसके परिवार ने तो हर बार यही बताया था की हर्षित के पिता एक सड़क हादसे मे मारे गये थे । और गज्जब तो ये था की घर मे उनकी सिंगल प्रतिमा तक नही थी । आख़िरकार क्या जरूरत थी उन्हे इतना बड़ा राज छुपाने की ?

क्यो हर्षित अपने पापा का नाम नहीं लेना चाहता था ? और अगर वो जिंदा है तो क्या हर्षित को उनके जिंदा होने की खबर नही मालूम क्या ? और अगर मालूम है तो बिछड़ने की वजह क्या थी ? क्यो उनसे मिलने की कोशिश नही की ? सैकड़ो सवाल एलिसा को किसी नस्तर की भांति चुभ रहे थे । जो भी हो आज वह हर्षित से इस राज को बेपर्दा करवाकर रहेगी ।

एलिसा अपने मन मे सवालों की एक श्रृंखला बनाये अपने पति हर्षित के आने का इंतजार कर रही थी । हर्षित कलकत्ता शहर के एक जाने माने बिजनेश टायकून थे । एलिसा सेंट जेवियर्स कॉलेज मे प्रोफेसर की जॉब करती थी । हर्षित के आते ही सवालों की बौछार शुरु कर दी । एलिसा को जानने से ज्यादा तों इस बात की शिकायत थी की हर्षित और उसके परिवार ने उससे झूठ क्यो बोला ? उससे ये बात क्यो छिपाई ?

मम्मी अपनी पढ़ाई के लिए ऑक्सफ़ोर्ड गई थी एलिसा । वही उनकी मुलाक़ात केरान पठान यानी उनसे हुई जिनका समाचार आपको मिला । केरान पठान कौन है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण ये था की मम्मी और उनके बीच नजदीकिया बढ़ गई थी । दोनो ने एक दूसरे को मन ही मन अपना मान लिया था । दोनो ने गुपचुप तरीके से रजिस्ट्रार के यहां शादी कर ली थी । केरान पठान आशिक मिजाज का व्यक्ति था । उसकी नजर मे दो से ज्यादा शादिया हो सकती थी । मम्मी ने खुद को बाँटने के बजाय अकेला रहना पसंद किया । कुछ समय बाद मै पैदा हुआ । बच्चे को पिता का नाम देने के लिए केवल दिखावी तौर पर कागजात बनवा दिये गये नाना जी के किसी जानकार को पिता के रूप मे । अब तुम ही बताओ एलिसा जिस आदमी ने मेरे पैदा होने से पहले मुझे छोड़ दिया मै उसका सम्मान कैसे करू ?

जो भी हो हर्षित वो तुम्हारे पिता है । भले ही उन्होंने तुम्हे कितने कष्ट दिये हो लेकिन तुम्हे उनसे एक बार जरूर मिलना चाहिए । मै नही मिलूंगा एलिसा, हर्षित ने स्पष्ट मना करते हुए कह दिया ।

एलिसा के हजार बार जोर देने पर वह जाने को तैयार हुए । कराबी एयरपोर्ट के लिए टिकट बुक करवा दी । नीरजा को आने की सूचना एलिसा ने पहले ही दे दी थी । कराबी एयरपोर्ट पर नीरजा उन्हे लेने आई । हालांकि कभी मिले नही थे । फिर भी उन्होंने उसे देखते ही पहचान लिया था ।

नीरजा के घर पहुँचे । नीरजा उन्हे सीधा उस कमरे मे ले गई जहाँ केरान पठान अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर पाप और पुण्य का स्मरण कर रहा था । उसके पति मिस्टर फरहान सिराहने बैठे हुए थे । खुन ने खुन को पहचान लिया । आ गये तुम अनवर और इतना कहते ही वो फफक-फफक कर रो पड़े । किसी अजनबी को भी उदास देखकर दयार्द्र होना मनुष्य का सहज गुण होता है वो तो उसके पिता थे । हर्षित गले लगाते हुए चुप हो जाइये । मुझे माफ़ कर दे बेटा । मै तेरा और तेरी माँ का गुनहगार हु । मेरा मन मेरे बस मे होता तो ये सब नही होता । मैने दूसरी शादी करके मै यहां शिफ्ट हों गया । मेरे ही कर्म मुझ तक लौट कर आये । मेरे तीनो बेटे नालायक निकले । बेटी ने सहारा दिया । आखिरी रुखसत से पहले मै तुमसे अपने गुनाहो की माफ़ी मांगकर तौबा करना चाहता था । दोनो के गीले शिकवे दूर हुए । अचानक हर्षित को महसूस हुआ जैसे सांसे बंद हो गई हो । कुछ देर पहले तक जिस पुतले मे एक शरीर बसता था अब वह एक पंजर है । लोगो ने कहा की रखसती से पहले सब मुरादें पुरी हो गई थी । जन्नत अता होगी, आमीन ।

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