स्लावी आत्मा (रूसी कहानी) : अलेक्सांद्र कुप्रिन
A Slav Soul (Russian Story in Hindi) : Aleksandr Kuprin
मैं अपने बीते दिनों की याद को जितना कुरेदता हूँ और अपने बचपन की घटनाओं तक पहुँचता हूँ, उतनी ही मेरी स्मरणशक्ति अविश्वसनीय और व्याकुल हो जाती है । निस्संदेह जो बातें मुझे याद प्रतीत होती हैं, वे बाद में मुझे बताई गई थीं—बाद में मेरे चेतन वर्षों में उन्होंने बताईं, जिन्होंने प्यार और ध्यान से मुझे पहले कदमों से चलते देखा था। इससे अधिक और कुछ नहीं हो सकता था, परंतु कुछ पढ़ने और कहीं सुनने के बाद वे सब मेरी आत्मा में डूब गए होंगे। कौन कह सकता है कि उन यादों में यथार्थ कहाँ समाप्त होता है और कल्पना कहाँ से शुरू होती है! कल्पना, जो कभी की सचाई में बदल गई है और इससे अधिक, यह दोनों कहाँ अभेद्यता से परस्पर एक-दूसरे में मिल गए हैं?
विशेषकर मेरे सामने यास और उसके दो साथियों की मौलिक आकृतियाँ उभर आती हैं। मैं यहाँ तक कह सकता हूँ, जीवन-पथ में दो मित्र - अश्वारोही सेना का पुराना मतस्का और बाड़े का कुत्ता बाऊटन।
यास अपनी सार्थक बोलचाल और काम से पहचाना जाता था। वह हमेशा ऐसे आदमी की छाप छोड़ता था जो आत्मकेंद्रित हो। वह कभी - कभार बोलता था, सदा अपने शब्दों को तौलता था और अपनी भाषा को यथासंभव रूसी बनाने का प्रयत्न करता था; केवल आध्यात्मिक उत्थान के क्षणों में छोटी रूसी गालियों पर उतर आता था— यहाँ तक कि पूरे वाक्यों में। गंभीरता से सिले उसके कपड़ों को, उसके काले रंग को, उसके शांत, परंतु कुछ-कुछ उदास और हजामत किए हुए चेहरे को और अर्थपूर्णता से उसके दबे पतले होंठों को धन्यवाद, जिससे प्रतीत होता था कि वह पुराने रीति-रिवाजों का रक्षक था।
मुझे छोड़कर सब आदमियों में से केवल यास ही मेरे पिता की प्रशंसा करता था । हम बच्चों, माँ और उसके तथा हमारे परिचितों के लिए वह सम्माननीय था, परंतु कुछ-कुछ दया और घृणित कृपा के साथ! उसके अपरिमित अहंकार का कारण मेरे लिए सदा रहस्य का साधन बना हुआ था । कभी-कभी ऐसा होता था कि नौकर अपनी अच्छी जानी-पहचानी धृष्टता के साथ अपने मालिकों की शक्ति की चमक-दमक स्वयं अपना लेते थे, परंतु मेरे पिता, यहूदी नगर एक विनीत डॉक्टर, इतनी सादगी और शांति से रहते थे कि दूसरे यास को तिरस्कार की दृष्टि से देखें, इसके लिए कोई कारण नहीं दे सके थे। इसी प्रकार यास में भी नौकर की धृष्टता का कारण नहीं था; न शहरी चमक-दमक का, न ही विदेशी वाक्यखंड का; न ही पड़ोसी नौकरानियों पर विजय पाने के आत्मविश्वास का और न ही गिटार पर झंकृत कल्पना की रसिक कला का - कला, जिसकी सिद्धि ने कई अनुभवहीन दिलों को पहले ही बरबाद कर दिया था। वह अपने खाली समय को पूर्ण आलस्य के साथ अपने बक्से पर लेटकर गुजारता था। वह कभी पढ़ता तो नहीं ही था, खुले तौर पर पुस्तकों की निंदा भी करता था । उसके विचार में बाइबिल के अतिरिक्त सब पुस्तकें झूठी थीं और लोगों से पैसा बटोरने के लिए लिखी गई थीं । अतः बक्से पर लेटे वह अपने ही मन में आनेवाले लंबे विचारों की ओर ध्यान देता था ।
मतस्का फौजी सेवा से निकाला गया घोड़ा था । उसकी बुराइयाँ भयप्रद अनुपात तक पहुँच गई थीं। इसके अतिरिक्त उसकी अगली टाँगें जोड़ों पर झुकी हुई थीं । उसका शरीर पिलपिले, उभरे मांस से सजा हुआ था, जबकि उसकी पिछली टाँगें कठोर थीं। वह अपने टेटुए को दिखाते हुए ऊँट जैसा अपना सिर हमेशा सीधा ऊपर को उठाए रहता था। साथ ही उसका बड़ा आकार, सामान्य पतलापन और आँख की अनुपस्थिति उसकी आकृति को भद्दा एवं शोकाकुल बनाते थे। ऐसे घोड़े जो अपना सिर ऊपर को रखते हैं, उन्हें फौज में तारों का अध्ययन करनेवाला 'ज्योतिषी' कहते थे।
यास बाऊटन की अपेक्षा मतस्का को अधिक मान देता था । बाऊटन कभी-कभी ओछापन दिखाता था, जो उसकी आयु के अनुकूल नहीं था । वह उन बड़े, लंबे बालोंवाले, खुरखुरे कुत्तों में से था या जो बड़े चूहे की, जिससे यह केवल दस गुना बड़ा था, या फिर छोटे बाल-कटे कुत्ते की याद दिलाता था । वह पैदाइशी रखवाली करनेवाला कुत्ता था। घर में वह अत्यंत गंभीरता और अनुशासित रूप से रहता था, परंतु सड़क पर बहुत ही अनुचित व्यवहार करता था। यदि वह पिता के साथ बाहर जाता तो कभी भी गाड़ी के पीछे नहीं दौड़ता था जैसे दूसरे अच्छे कुत्ते करते हैं। जो घोड़ा उसे रास्ते में मिलता यह उसके जबड़े पर झपटता तथा तभी पीछा छोड़ता, जब वह उत्तेजित होकर हिनहिनाने और इसे काटने के लिए अपना सिर झुकाता था। वह अपरिचित बाड़ों में घुस जाता और दर्जन भर कोपाकुल कुत्तों को पीछा करते देखकर सिर पर पाँव रखकर लुढ़कता हुआ भाग जाता था। सबसे बुरी बात यह थी कि वह ऐसे कुत्तों को मित्र बनाता था जिनकी प्रसिद्धि संदिग्ध थी।
हमारे पोडोली या बोलीनी में बन-ठनकर निकलने के अतिरिक्त आदमी को कोई चीज बुद्धिमत्ता प्रदान नहीं करती थी। एक सज्जन— जो बहुत पहले अपनी जागीर गिरवी रख चुका था तथा जो अब भी गिरवी रखी थी और प्रतिदिन वकीलों के आने की आशा करता था - हर रविवार को अपनी चार या कभी छह सुंदर घोड़ोंवाली गाड़ी में गिरजा जाता। जब वह नगर के चौक पर पहुँचता तो हमेशा कोचवान को कहता - " चाबुक मारो, जोसेफ!'' किसी तरह मुझे विश्वास हो गया था कि पड़ोसी जागीरदारों में से कोई इस शान से नहीं निकलता था जैसे यास पिता को निकालता था—जब कभी उसे कहीं जाना होता था । यास पहले स्वयं चौकोर किनारे और चौड़े पीले फीते से सजी अच्छे पेटेंट चमड़े की टोपी पहनता था । फिर कमानीदार सफरी गाड़ी में मतस्का को जोतकर घर से सौ कदम दूर ले जाया करता था। ज्यों ही पिता दरवाजे पर नजर आते, यास विजयी ढंग से अपनी चाबुक घुमाता। मतस्का कुछ समय तक चिंताग्रस्त होकर अपनी दुम हिलाता, फिर अपना सिर ऊपर-नीचे करके टाँगें उठाता हुआ धीमी चाल से चल देता था। ओसारे पर पहुँचते ही यास इस तरह का व्यवहार करता, जैसे वह लगाम खींचकर बड़ी कठिनाई से अशांत घोड़े को रोकने के लिए अपना सारा जोर लगा रहा हो। उसका सारा ध्यान घोड़े की तरफ था और भले ही कुछ भी हो जाए, यास अपना सिर नहीं मोड़ता था । इसमें शक नहीं कि यह सबकुछ हमारे परिवार की शान के लिए किया जाता था।
मेरे पिता के बारे में यास के बहुत ऊँचे विचार थे। कभी-कभी ऐसा होता कि एक विनीत यहूदी या किसान पिछले कमरे में अपनी बारी की प्रतीक्षा करता; जबकि पिता दूसरे मरीजों को देखते थे। मेरे पिता को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए—हाँ, डॉक्टर के रूप में—यास उन लोगों से प्रायः बातचीत करने लग जाता था। “तुम क्या सोचते हो?" श्रेष्ठ ढंग से मरीज को सिर से पाँव तक देखते हुए और अँगीठी के पास खड़े होकर पूछता―" संभवत: तुम सोचते हो कि किसी अधिकारी या निरीक्षक से मिलने आए हो । मेरा मालिक भाई न केवल निरीक्षक से बड़ा है बल्कि वह सुपरिंटेंडेंट से भी ऊपर है । मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि संसार में जो कुछ भी जानने योग्य है, यह जानता है। तुम्हें क्या परेशानी है? "
"मुझे दर्द हो रहा है – यहाँ मेरे दिल में, " मरीज व्याकुलता में बिना समझे बोल उठा, और मेरी छाती में और... "
"ठीक है, तुम देखते हो ! और क्यों ? और उसका इलाज कैसे किया जाता है? तुम नहीं जानते, मैं भी नहीं जानता, परंतु मेरे मालिक ने तुम्हें देखकर उसी समय बता दिया कि तुम जियोगे या मरोगे।"
यास बहुत व्यवस्थित तरीके से रहता था। वह अपने पैसों से भिन्न-भिन्न घरेलू चीजें खरीदता था और सावधानी से उन्हें अपने टीन के डिब्बे में जमा करता जाता था । हम बच्चों को इससे अधिक प्रसन्नता नहीं होती थी, भले ही हमें उसे चीजें साफ करते हुए देखने की अनुमति मिल जाती थी । ढकने के अंदर की तरफ भिन्न-भिन्न विषयों के चित्र अंकित थे। यहाँ हरी मूँछोंवाले कुलपति जैसे दिखाई देनेवाले जरनल के साथ ऐसी चीजें थीं जैसे ‘आत्मा का मुकदमा' नीवा से नक्काशी किया हुआ औरतों के सिरों का अध्ययन और बेतूल के पेड़ पर एलिया मटोनीसा के तीर की प्रतीक्षा करते, अपनी दाई आँख खोले, बुलबुल का चोर इत्यादि । फिर धीरे-धीरे बक्से में से सारी चीजें निकाली जातीं—कोट, वास्कट, लंबे कोट, भेड़ के चमड़े की टोपियाँ, प्यारी तश्तरियाँ, शीशे से सजाए गए पुराने बक्से, फूल और छोटे, गोल मुँह देखनेवाले शीशे; जेब में से सेब या ऐसी दूसरी चीज निकाली जाती जो हमेशा हमारे स्वाद के लिए उत्तम रहती थी।
कुल मिलाकर यास बहुत ही कार्यकुशल और परिश्रमी था । एक दिन उसने एक बड़ा जल- पात्र तोड़ दिया। मेरे पिता ने उसे बुरा-भला कहा । अगले दिन यास वैसे ही दो नए जल - पात्र ले आया । "इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। हो सकता है, मुझसे दूसरा भी टूट जाए और किसी तरह ये घर में काम आ जाएँगे ।" उसने कहा। कमरों में उसने सफाई का नमूना पेश किया था और इसे कायम रखा था । उसने ईर्ष्यापूर्वक अपने अधिकारों और कर्तव्यों की चौकसी की थी। यह पक्का था कि जैसे फर्श को वह साफ करता था, कोई दूसरा नहीं कर सकता था। एक दिन उसमें और नौकरानी म्योका में गरमागरम बहस को गई कि दोनों में से कौन फर्श को अच्छी तरह से साफ कर सकता है। हमें विशेषज्ञ बनने के लिए प्रार्थना की गई और हमने यास को चिढ़ाने के लिए नौकरानी के हक में निर्णय दे दिया। मानव अंत:करण को न समझते हुए हम बच्चों को शंका नहीं हुई कि हमने अपने निर्णय से उसको कितना बड़ा धक्का पहुँचाया था । वह बिना कुछ कहे चला गया और उस दिन उस छोटे नगर में हर किसी को पता चल गया कि यास ने शराब पी थी ।
उसके साथ वर्ष में दो या तीन बार प्रायः ऐसा हो गया था और इससे उसको और उसके परिवार में सबको दुःख होता था। लकड़ी काटने, घोड़ों को चारा डालने और पानी पिलानेवाला कोई नहीं होता था । पाँच या छह दिनों के लिए हम न उसको देखते और न ही उसकी बाबत कुछ सुनते थे। सातवें दिन भद्दे रूप में वह बिना टोपी और कोट के नजर आता था। उसके तीन कदम पीछे विचित्र रंगों के यहूदियों की भीड़ होती थी । सड़कों पर लड़के शोर मचाते और उसपर मुँह चिढ़ाते थे। सब जानते थे कि अब नीलामी होगी और वस्तुतः कुछ ही क्षणों में घरेलू चीजों के अपने बक्से को हाथों में उठाए यास बाहर आता और भीड़ शीघ्र ही उसके आसपास इकट्ठी हो जाती थी।
"ठीक है, तो तुम मुझे बोदका नहीं दोगे?" वह पतलून और वास्कट को हाथों पर लटकाए हुए बोला, “मेरे पास पैसा नहीं है क्या ? और यह क्या है ? और वह ?"
और एक के बाद दूसरा कपड़ा भीड़ में उड़ता और लालची हाथ उनको थाम लेते।
"तुम इसके लिए क्या दोगे?" यास किसी यहूदी पर चिल्लाया, जिसने उसका कोट थाम रखा था—''तुम कितना दोगे, घोड़ी के सिर!"
"ठीक है, मैं तुम्हें पचास कोपेक दूँगा ।" यहूदी ने उत्तर दिया ।
“पचास, अरे पचास?" यास को अत्यंत चिंता हुई— "मुझे पचास नहीं चाहिए, मुझे बीस दो, दो मुझे।... ठीक है? ओ, कंजूसो! लाओ, इस सारे माल के लिए मुझे दस कोपेक दो ! ईश्वर तुम्हारे सिरों से आँखें निकाल ले! तुमपर प्लेग की मार पड़े ! अच्छा होता, यदि तुम्हें बचपन में ही मौत आ जाती!"
हमारे नगर में पुलिस थी, परंतु उसका काम तो केवल बपतिस्मा के अवसरों पर ही उपस्थित रहना होता था। ऐसे अवसरों पर वे अव्यवस्था में हस्तक्षेप न करके विनीत और मौन अतिथि की भूमिका निभाते थे। यास की चीजों की लूट को देखकर और अपने गुस्से तथा घृणा को काबू में न रखकर (वह मूर्ख शराबी हो चुका था, इसलिए उसको अपने किए की सजा मिलनी ही चाहिए) मेरे पिता स्वार्थरहित ढंग से भीड़ में कूद पड़े। एक ही क्षण में वहाँ मेरे पिता और यास ही रह गए। यास ने हाथ में हजामत का भद्दा डिब्बा पकड़ा हुआ था। एक-दो क्षण हैरानी में निकले, असहाय स्थिति में यास ने अपनी भौंहें उठाई और एकाएक अपने आपको उनके घुटनों पर फेंक दिया -" मालिक, मालिक! उन्होंने मेरे साथ क्या किया है? मेरे प्यारे मालिक!"
‘“गोदाम जाओ!” मेरे पिता ने यास को, जो उनके कोट के पल्लू को पकड़कर चूम रहा था, धकेलकर गुस्से में कहा—“जाओ, गोदाम में जाकर सो रहो! और कल तक तुम्हारा चिह्न यहाँ नजर नहीं आना चाहिए।" आज्ञानुसार यास गोदाम में चला गया और फिर इसके लिए शराबीपन के वे पीड़ादायी घंटे शुरू हुए, जिनको पछतावे की पीड़ा ने असीमता से बुरा बना दिया था। वह अपना चेहरा नीचा किए और सिर को हथेलियों पर थामे लेटा रहा। उसकी दृष्टि उसके सामने एक बिंदु पर टिकी थी । वह अच्छी तरह से जानता था कि उस क्षण घर में क्या हो रहा है। उसने स्पष्ट रूप से देखा कि हम उसके पक्ष में किस प्रकार वकालत कर रहे हैं और पिता किस अशांति से अपना हाथ हिला रहे हैं। वह पूर्णतया जानता था कि इस बार पिता को प्रेरित नहीं किया जा सकता है।
समय-समय पर हम विस्मय से गोदाम के दरवाजे पर अंदर से आती हुई कराहने और सिसकने की आवाजों को सुनते रहे।
निराशा और उदासीनता के ऐसे अवसरों पर यास से मिलना बाऊटन अपना नैतिक कर्तव्य समझता था। बुद्धिमान कुत्ता जानता था कि उदासी के ऐसे सामान्य क्षणों में यास कभी भी जान-पहचान नहीं दिखाएगा। इसी कारण, जब भी वह किसी कठोर नौकर को दरवाजे से बाहर निकालता तो बाऊटन हमेशा किसी दूर की चीज को देखने का बहाना करता या फिर मक्खी को पकड़ने की चिंता में व्यस्त नजर आता था। एक बात मेरे लिए हमेशा पहेली बनी रही, हम प्रायः बाऊटन को प्यार करते और खिलाते थे, उसके बालों से काँटे निकालते थे, जिसको कष्ट होते हुए भी वह चुपचाप सहन करता था । ऐसे अवसरों पर हम कभी-कभी उसकी ठंडी- गीली नाक का चुंबन भी लेते थे, फिर भी उसकी सारी सहानुभूति और प्यार यास के लिए था, जिससे उसको मुक्कों के सिवा कुछ नहीं मिलता था। आह, अब उस दयाहीन अनुभव ने मुझे चीजों को ध्यान से परखना सिखा दिया था। मैंने अनुमान लगाया कि बाऊटन का यास से लगाव इतना रहस्यपूर्ण नहीं था । यह मैं नहीं था बल्कि यास था, जो उसे रात के खाने से बची-खुची चीजों की प्लेटें दिया करता था।
शांति के समय बाऊटन कभी भी यास की कृपा को उकसाने में नहीं चूकता था, परंतु संताप के दिनों में वह साहसी ढंग से गोदाम में जाता और लंबे लेटे हुए यास के पास बैठ जाता था; कोने की तरफ घूरता और सहानुभूति से भारी-भारी साँसें लेना आरंभ कर देता था । यदि इससे भी सहायता न मिलती तो बाऊटन अपने रक्षक के मुँह और हाथों को चाटने लगता था – पहले थोड़ा डरते हुए और बाद में साहसी ढंग से। अंततः यास सिसकते हुए अपनी बाँहें बाऊटन के गले में डाल देता और बाऊटन धीरे-धीरे कराहना शुरू कर देता । शीघ्र ही दोनों आवाजें मिलकर एक अजीब और हृदयस्पर्शी सहगान बन जाती थीं।
अगले दिन प्रात:काल यास घर में आया । वह उदास था और अपनी आँखें उठा नहीं सकता था । मेरे पिता के प्रकट होने से पहले ही उसने फर्श और फर्नीचर को चमकाकर रख दिया था। मेरे पिता के आ जाने के खयाल ने उसे कँपा दिया था, परंतु मेरे पिता प्रेरित नहीं हुए । उन्होंने यास का पासपोर्ट और वेतन उसे देकर आज्ञा दी कि जितनी जल्दी हो सके, रसोई साफ कर दे । प्रार्थना और विनती अप्रभावित रहीं ।
तब यास ने अपनी अंतिम चाल चली।
"आप वास्तव में चाहते हैं कि मैं चला जाऊँ, मालिक ?"
“हाँ, और शीघ्र।”
"ठीक है, मैं नहीं जाऊँगा । आप मुझे बाहर फेंक सकते हैं, परंतु मेरे बिना आप सब मक्खियों की तरह मर जाएँगे - मैं नहीं जाऊँगा । "
" पुलिस तुम्हें भेजेगी।"
"मुझे भेजेगी...?" यास ने व्याकुल होकर पूछा, “ठीक है, तो उन्हें भेजने दो। सारा नगर देखेगा कि बीस साल की आपकी विश्वसनीय सेवा के बाद यास को किस तरह थाने ले जाया जा रहा है। ले जाएँ मुझे। मुझे नहीं श्रीमान्, शर्म आपको आएगी!"
और यास वास्तव में नहीं गया; धमकियों से प्रभावित नहीं हुआ। उनकी ओर ध्यान न देते हुए वह निरंतर अपने काम में जुटा रहा और नष्ट हुए समय को पूरा करता रहा। रात में सोने के लिए रसोई में नहीं गया, बल्कि मतस्का की घुड़साल में ही सो रहा । घोड़ा सारी रात भूमि पर पैर मारता रहा और डरता रहा कि कहीं उसका पैर यास पर न पड़ जाए। मेरे पिता का स्वभाव अच्छा था - आलसी पुरुष, आसपास की वस्तुओं और अपनी आदतों के दास— सायंकाल तक उन्होंने यास को क्षमा कर दिया।
अपने ढंग से यास काफी सुंदर था— काला, चिंताकुल, छोटा रूसी । लड़कियाँ उसे देखती थीं, भले ही उनमें से कोई भी चुलबुलेपन से उसे कुहनी मारने या उत्साही मुसकराहट देने का साहस नहीं करती थी । वह बहुत घमंडी था और स्त्री जाति के लिए ठंडी घृणा रखता था । इसी प्रकार पारिवारिक जीवन का भी उसके लिए कोई आकर्षण नहीं था। "जब भी कोई महिला झोंपड़ी में आती है," वह नाक चढ़ाकर कहता - "तो हवा तुरंत गंदी हो जाती है ।" एक बार उसने किसी तरह से इस दिशा में कदम उठाया और हमें अत्यधिक विस्मित कर दिया।
एक सायंकाल जब हम चाय पी रहे थे, यास शांत, परंतु अत्यधिक उत्तेजना से डाइनिंग रूम में आया और अपने कंधे के ऊपर से गुप्त रीति से संकेत करता हुआ बोला, "क्या यह अंदर आ सकती है?"
"वहाँ कौन है?'' पिता ने पूछा, “हाँ-हाँ, उसे अंदर आने दो।" आशा की स्थिति में हमने अपनी दृष्टि दरवाजे पर जमा दी, जिसमें से एक अजनबी महिला प्रकट हुई। वह कम-से-कम पचास वर्षीय, फटे कपड़े पहने, शराब पिए हुए एक सनकी महिला थी ।
"हमें अपना आशीर्वाद दीजिए, मालिक, हम विवाह करना चाहते हैं ।" यास ने उनके घुटनों पर गिरते हुए कहा । "झुक जा, ओ मूर्ख !” उसने महिला का बाजू खींचते हुए कहा ।
मेरे पिता बहुत हैरान हुए और कुछ देर के बाद स्थिति को समझ पाए। काफी देर तक वह यास को समझाते रहे कि एक पागल आदमी ही ऐसी औरत से विवाह करेगा । यास झुके घुटनों पर खड़ा चुपचाप सुनता रहा, सनकी औरत भी उठी नहीं।
"तब मुझे विवाह नहीं करने देंगे, मालिक ?" यास ने अंतत: पूछा।
“नहीं!” पिता ने उत्तर दिया- "और इससे अधिक मुझे विश्वास है कि तुम अपने आप नहीं करोगे ।"
"चलिए, ऐसे ही सही, यास ने स्थिरता से कहा, "उठो, मूर्ख औरत!" उसने औरत से कहा, " तुमने सुना, मालिक ने क्या कहा है? चलो, जाओ ।" इन शब्दों के साथ आकस्मिक अभ्यागत को गले से पकड़कर उसके साथ खानेवाले कमरे में लुप्त हो गया।
विवाह के लिए यास का केवल यही प्रयास था । हर एक ने उसको अपने-अपने ढंग से वर्णित किया, परंतु कोई भी उसके आशय का अंदाजा लगाने से आगे नहीं सोच सका; और जब भी कोई पूछता तो यास गुस्से में हाथ हिलाकर उसे एक तरफ कर देता था ।
इससे अधिक रहस्यमयी और आकस्मिक उसकी मौत थी । वह इतनी अचानक और अगम्य ढंग से हुई कि उसका यास की जीवन संबंधी घटनाओं से कोई संबंध नहीं था और मैं उसे लिखने में अशिष्टता का आभास करता हूँ। मैं जिम्मा लेता हूँ कि जो कुछ मैंने बताया है, वह न केवल घटा ही है, बल्कि उसका जरा सा भाग भी उसकी छाप छोड़ने के लिए अतिशयोक्ति के रूप में नहीं लिया गया।
एक दिन स्टेशन, जो हमारे नगर से तीन मील दूर था, पर एक व्यक्ति ढंग से कपड़े पहने- वह बूढ़ा नहीं था, पाखाने में लटका पाया गया । उसी दिन आत्महत्या को देखने के लिए यास ने आज्ञा माँगी। वह लगभग चार घंटे के बाद लौटा और सीधा खानेवाले कमरे में गया । वहाँ मिलनेवाले बैठे थे और यह दरवाजे में रुक गया। गोदाम में पश्चात्ताप करने के बाद वह पूर्णतया संयमी हो गया था।
"क्या चाहते हो तुम? " माँ ने पूछा।
“हा, हा, हा!” वह फूट पड़ा - " उसकी जबान बाहर लटक रही थी, एक भद्र पुरुष की जबान...।" मेरे पिता ने उसे तुरंत रसोई में जाने की आज्ञा दी। मिलने आए लोगों ने यास की असामान्यताओं की चर्चा की और शीघ्र ही घटना भूल गए।
अगले दिन लगभग आठ बजे शाम को वह नर्सरी से गुजरा, मेरी छोटी बहन के पास गया और उसको चूमा।
"अलविदा!" उसने उसके बालों को सहलाते हुए कहा ।
"अलविदा, यास!" अपनी गुडिया से बिना नजर उठाए उसने उत्तर दिया।
आधे घंटे के बाद म्योका भागती हुई मेरे पिता के अध्ययन कक्ष में आई— पीली और काँपती हुई— "श्री...मान्, वह गैरट में...यास...।" वह अचेत होकर गिर गई।
गैरट में पतली रस्सी से यास लटक रहा था ।
जब मजिस्ट्रेट ने बावरची से जिरह की तो पता चला कि मौतवाले दिन यास का व्यवहार अजीब था।
"वह मुँह देखनेवाले शीशे के सामने खड़ा हुआ, " उसने कहा। फिर दोनों हाथों से अपना गला दबाया, जब तक उसका चेहरा लाल नहीं हो गया और उसकी जबान मुँह से बाहर नहीं आ गई — आँखें सिर से बाहर नहीं निकल गईं!...वह स्पष्टतया यह देखने की कोशिश कर रहा था कि लटकने के बाद वह कैसा लगेगा!"
मजिस्ट्रेट ने लिख दिया कि आत्महत्या दिमाग की खराबी के कारण की थी।
यास के दफनाने के एक दिन बाद – ऐसी जगह में जो इस प्रकार के मामलों के लिए जंगल की ढलान पर आरक्षित थी—बाऊटन का कहीं भी पता नहीं चला। ऐसा लगता था कि वफादार कुत्ता यास की कब्र की ओर चला गया था और अपने प्यारे मित्र के लिए कराहता और शोक प्रकट करता हुआ उसके पास ही लेटा रहा तथा उसके बाद वह बिना कोई चिह्न छोड़े, लुप्त हो गया।
अब मैं लगभग बूढ़ा आदमी जब कभी अपने बीते समय का पुनरावलोकन करता हूँ तो मेरा ध्यान यास की ओर जाता है और हर बार यही विचार आता है— क्या अद्भुत आत्मा थी— ईमानदार, शुद्ध, परस्पर विरोधी, भद्दा; फिर भी बड़ा-यास के शरीर में एक वास्तविक स्लावी आत्मा !
(अनुवाद : भद्रसैन पुरी)