नए साल का तोहफा (कहानी) : गाय दी मोपासां
A New Year's Gift (French Story) : Guy de Maupassant
जाक द रैंडल ने घर पर अकेले ही खाना खाया और फिर अपने नौकर को जाने के लिए बोलकर , वह एक मेज पर चिट्ठियाँ लिखने बैठ गया ।
हर साल का अंत वह ऐसे ही करता था । वह पत्र लिखता था और सपने देखता था । वह एक तरह से अपने लिए उन चीजों का पुनरावलोकन करता था , जो पिछले नए साल के रोज से अब तक हुई थीं, जो अब बीत चुकी थीं और खत्म हो चुकी थीं । जैसे - जैसे उसके दोस्तों के चेहरे उसकी आँखों के आगे आते -जाते थे, वह उन्हें कुछ पंक्तियाँलिखता था , पहली जनवरी की हार्दिक गुड मॉर्निंग कहता था ।
इस बार भी वह लिखने बैठ गया । उसने एक दराज खोली, उसमें से एक औरत की फोटो निकाली, कुछ देर तक उसे एकटक देखता रहा और फिर उसे चूम लिया । उसे एक कागज के पास रखकर उसने लिखना शुरू किया-
मेरी प्यारी आइरीन, अब तक तुम्हें मेरी भेजी वह छोटी सी निशानी मिल गई होगी । आज शाम मैंने अपने आपको बंद कर रखा है, ताकि मैं तुम्हें यहाँ बता सकूँ ।
यहाँ आकर कलम रुक गई , जाक उठ गया और कमरे में इधर - से- उधर टहलने लगा । पिछले छह महीने से उसकी एक प्रियतमा थी । वह दूसरों जैसी प्रियतमा नहीं थी । वह कोई थिएटर की दुनिया की या बदचलन मंडली की कोई औरत भी नहीं थी, जिसके साथ यों ही चलताऊ संबंध बन जाते हैं । वह तो एक ऐसी औरत थी , जिसे उसने प्यार किया था और जिसे वह जीता था । अब वह नौजवान नहीं रह गया था , हालाँकि अपेक्षाकृत अभी भी जवान था । वह जिंदगी को गंभीरता से , सकारात्मक और व्यावहारिक भाव से लेता था ।
उसी के अनुसार वह अपनी प्रणय भावनाओं का लेखा -जोखा रखता था , जैसे वह खत्म हो जाने वाले या शुरू होने वाले नए दोस्ताना संबंधों का लेखा-जोखा रखता था । अपने जीवन में आए व्यक्तियों और हालात का लेखा जोखा रखता था कि क्या खोया, क्या पाया ? प्यार का उसका पहला जोश कुछ हलका हो गया था , इसलिए उसने किसी बनिए की तरह सटीक गुणा- भाग करते हुए अपने आपसे यह पूछा कि उस औरत के संबंध में उसके दिल की क्या हालत थी और उसने यह अनुमान लगाने की भी कोशिश की कि भविष्य में क्या होगा । उसे अपने दिल में बहुत ज्यादा और गहरा स्नेह मिला, जिसमें कोमलता थी, कृतज्ञता थी और थीं हजार बारीकियाँ, जो लंबे और सशक्त लगावों को जन्म देती हैं ।
तभी घंटी बजी और वह चौंक गया । वह थोड़ा हिचकिचाया । क्या उसे दरवाजा खोल देना चाहिए ? लेकिन उसने सोचा कि यह उसका कर्तव्य है कि वह ऐसे किसी भी अजनबी के लिए नए साल की इस रात को अपना दरवाजा खोल दे, चाहे वह कोई भी हो ।
इसलिए उसने एक मोमबत्ती ली , आगे वाले कमरे से होता हुआ गया , सिटकनी हटाई, चाबी घुमाई, दरवाजा खोला और देखा कि सामने दीवार से टिकी उसकी प्रियतमा खड़ी थी । वह मुरदे सी पीली पड़ रही थी ।
उसने भटकते हुए कहा, " क्या हुआ तुम्हें ? "
उसने जवाब दिया , " अकेले हो ? "
" हाँ । "
" नौकर तो नहीं है ? "
" नहीं । "
" बाहर तो नहीं जा रहे हो ? "
" नहीं । "
वह इस तरह से घुसी जैसे घर से परिचित हो । बैठक में पहुँचते ही वह सोफे में धंस गई और हाथों से मुँह ढाँपकर बुरी तरह से रोने लगी ।
वह उसके कदमों पर घुटनों के बल बैठ गया । उसने उसके हाथ पकड़कर उन्हें उसके चेहरे से हटाया, ताकि उन्हें देख सके । वह बोला, “ आइरीन, आइरीन ! क्या हुआ तुम्हें ? मेहरबानी करके मुझे बताओ कि तुम्हें हुआ क्या है ? "
उसने सुबकते हुए धीमे से कहा, " अब मैं इस तरह और नहीं रह सकती । "
उसकी कुछ समझ में नहीं आया ।
" इस तरह से तुम्हारा मतलब क्या है? "
" हाँ, अब मैं इस तरह और नहीं रह सकती। बहुत सह चुकी मैं । आज दोपहर बाद उन्होंने मुझे मारा । "
"किसने तुम्हारे पति ने? "
" हाँ, मेरे पति ने । "
“ अच्छा! "
वह चकित रह गया । उसने कभी शक भी नहीं किया था कि उसका पति वहशी भी हो सकता है । वह व्यावहारिक था , अच्छे तबके का था, क्लब जाता था , घोड़ों का प्रेमी था , थिएटर का शौकीन था और तलवारबाजी में दक्ष था ; हर जगह लोग उसे जानते थे, उसकी बातें करते थे, उसकी तारीफ करते थे; बहुत शिष्ट था वह , लेकिन बुद्धि के मामले में बहुत साधारण है, उसमें तालीम और अच्छी तहजीब की कमी है; जो तमाम सभ्य लोगों की तरह सोचने के लिए जरूरी है ।
वह अपनी पत्नी के प्रति समर्पित दिखाई देता था जैसा कि दौलतमंद और सभ्य लोगों के मामले में किसी आदमी को करना चाहिए । वह अपनी पत्नी की इच्छाओं, उसकी सेहत, उसके कपड़ों की काफी चिंता करता था , इसके अलावा उसने उसे पूरी तरह से आजाद छोड़ रखा था ।
रैंडल , क्योंकि आइरीन का दोस्त बन चुका था , इसलिए उसे स्नेहपूर्वक उसका हाथ पकड़ने का अधिकार था , जिसका ऋणी अच्छी तमीज वाला हरेक पति अपनी पत्नी के घनिष्ठ परिचितों के प्रति होता है । और फिर जब जाक कुछ समय तक दोस्त रहने के बाद प्रेमी बन गया तो महिला के पति के साथ उसके संबंध और भी सौहार्द्रपूर्ण हो गए ।
जाक ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इस घर में तूफान उठेगा । इस अप्रत्याशित जानकारी के उजागर होने पर वह डर गया ।
उसने पूछा, " यह हुआ कैसे ? बताओ मुझे । "
तब उसने एक लंबी कहानी सुनाई , अपनी जिंदगी की पूरी कहानी , अपनी शादी के दिन से अब तक का पूरा किस्सा । कैसे पहली कहा- सुनी एक बहुत ही मामूली सी बात पर हुई थी, फिर बढ़कर अजनबीपन में तब्दील हो गई थी , जो दो विपरीत किस्म के किरदारों के बीच हर दिन बढ़ता जाता है ।
फिर शुरू हुए झगड़े और बिलकुल अलगाव , जो दिखावटी नहीं वास्तविक थे, उसके बाद उसके पति ने अपना उग्र , शक्की और हिंसक रूप दिखाया । अब वह ईर्ष्यालु हो गया था , जाक को लेकर ईर्ष्यालु हो गया था । आज भी तमाशा खड़ा होने के बाद उसने उसे मारा था ।
उसने फैसला करते हुए आगे कहा , "मैं वापस वहाँ नहीं जाऊँगी। तुम मेरे साथ जो चाहो करो । " जाक उसके सामने बैठ गया । उनके घुटने आपस में छू रहे थे। जाक ने उसके हाथ अपने हाथों में ले लिये । उसने कहा, " मेरी जान ! तुम एक भारी, एक लाइलाज मूर्खता करने जा रही हो । अगर तुम अपने पति को छोड़ना चाहती हो तो गलतियों को एक तरफ कर दो , ताकि तुम्हारी व्यावहारिक महिला वाली छवि बची रहे । "
उसने उसे बेचैनी से देखते हुए कहा, “ तो तुम मुझे क्या सलाह देते हो ? "
" यही कि तुम घर वापस जाओ और वहाँ तब तक अपनी जिंदगी बिताओ, जब तक तुम इज्जत के साथ उससे अलग न हो जाओ या तलाक न ले लो । "
" तुम यह जो करने की सलाह मुझे दे रहे हो , यह थोड़ी कायरता नहीं होगी क्या ? "
" नहीं , यह अकलमंदी है और सही भी । तुम्हें ऊँचा रुतबा, इज्जत बचानी है, दोस्तों को बनाए रखना है और रिश्तों को सँभालना है । तुम्हें महज अपनी सनक में इन सबको खो नहीं देना है । "
वह उठ खड़ी हुई और तमककर बोली, “ नहीं , रहने दो! अब मैं इसे और बरदाश्त नहीं कर सकती! यह खत्म हो चुका ! खत्म हो चुका है यह सब ! "
फिर अपने दोनों हाथ अपने प्रेमी के कंधों पर रखते हुए और सीधे उससे आँखें मिलाते हुए उसने पूछा, " तुम मुझसे प्यार करते हो ? "
" हाँ । "
" असल में और सच में ? "
" हाँ ? "
"फिर मुझे रख लो ! "
वह बोला, " तुम्हें रख लूँ? मेरे अपने घर में ? यहाँ ? अरे , तुम पागल हो । इसका मतलब यह होगा कि मैं तुम्हें हमेशा के लिए खो दूंगा, तुम्हें वापस पाने की उम्मीद भी नहीं रहेगी! तुम पागल हो ! "
उसने धीमे- धीमे और गंभीर लहजे में उस औरत की तरह जवाब दिया, जो अपनी बातों का वजन समझती है ।
" सुनो जाक ! उन्होंने मुझे मना किया है कि तुमसे फिर न मिलूँ और मैं तुम्हारे घर चोरी- चोरी आने का यह हास्य नाटक नहीं खेलूँगी । या तो तुम्हें मुझे खोना होगा या मुझे पाना होगा । "
" मेरी प्यारी आइरीन , अगर ऐसी बात है, तब तो तुम तलाक ले लो , मैं तुमसे शादी कर लूँगा। "
" हाँ , तुम मुझसे - जल्दी- से - जल्दी भी करोगे तो - दो साल में शादी कर लोगे । कितना धैर्यवान है न तुम्हारा प्यार । "
" देखो, सोचो! अगर तुम यहाँ रह जाती हो तो कल वह तुम्हें लेने आ जाएगा, क्योंकि वह तुम्हारा पति है, क्योंकि यह उसका हक है और कानून उसकी तरफ है । "
" मैंने तुमसे यह नहीं कहा जाक कि मुझे अपने घर में रखो, तुम जहाँ चाहो मुझे वहाँ ले जाओ। मैं तो सोचती थी कि तुम मुझे इतना प्यार करते हो कि तुम यही करोगे , लेकिन मैं गलत थी । अलविदा! "
वह घूमी और इतनी तेजी से दरवाजे की तरफ गई कि वह जब तक उसे पकड़ पाता, वह कमरे से बाहर जा चुकी थी ।
" सुनो, आइरीन ! "
वह अपने आपको छुड़ाने लगी । वह अब उसकी बात सुनना ही नहीं चाहती थी । उसकी आँखों में आँसू थे और होंठों पर बस यही शब्द थे — मुझे अकेला छोड़ दो ! मुझे अकेला छोड़ दो ! मुझे अकेला छोड़ दो ! "
उसने उसे जबरन बैठा दिया और एक बार फिर उसके कदमों में घुटनों के बल गिरते हुए, उसने उसके सामने कई तर्क रखे, कई सलाहें रखीं, ताकि वह जो करना चाहती थी, उसकी मूर्खता और उसके भयंकर जोखिम को समझ सके । वह उसे समझाने के लिए जो कुछ भी कहना जरूरी समझता था, उसमें उसने कोई कटौती नहीं की । उसके दिल में उसके लिए जो प्यार था, उसकी वजह से वह बाध्य था कि वह उसे मनाए ।
वह क्योंकि चुप और उदासीन बनी हुई थी तो उसने उससे विनती की , चिरौरी की कि वह उसकी बात सुने , उस पर भरोसा करे और उसकी सलाह माने ।
जब वह अपनी बात कह चुका तो उसने बस यह जवाब दिया - " अब मुझे जाने दोगो ? अपने हाथ हटाओ तो मैं उठूँ। "
" इधर देखो, आइरीन ! "
"मुझे जाने दोगे? "
" आइरीन — क्या तुम्हारा इरादा अटल है ? "
" जाने दो मुझे । "
"मुझे बस इतना बता दो कि क्या यह इरादा, तुम्हारा यह मूर्खता भरा इरादा, जिस पर बाद में तुम्हें अफसोस होगा, क्या यह अटल है ? "
" हाँ , मुझे जाने दो ! "
" तो फिर रुक जाओ । तुम अच्छी तरह जानती हो कि यहाँ तुम बिलकुल घर जैसी हो । हम कल सुबह चल देंगे । "
वह उसकी अवहेलना करती हुई उठ खड़ी हुई और सख्त लहजे में बोली, " नहीं । अब बहुत देर हो चुकी है । मुझे बलिदान नहीं चाहिए । मुझे समर्पण चाहिए । "
" रुक जाओ! मैंने वह किया जो मुझे करना चाहिए था ; मैंने वह कहा जो मुझे कहना चाहिए था । अब मेरी तुम्हारी तरफ से कोई जिम्मेदारी नहीं है । मेरा जमीर शांत है । अब बताओ तुम मुझसे क्या चाहती हो , मैं वही करूँगा। "
वह अपनी जगह पर फिर से बैठ गई , देर तक उसे देखती रही , फिर उसने बड़े शांत स्वर में कहा , " फिर , खुलकर बताओ। "
" यह क्या बात हुई? तुम मुझसे क्या खुलकर बताने की इच्छा रखती हो ? "
" सबकुछ — वह सबकुछ, जो तुमने यह इरादा करने से पहले सोचा होगा , तब मैं देखूँगी कि मुझे क्या करना चाहिए । "
" लेकिन मैंने तो कुछ भी नहीं सोचा । मैं तुम्हें आगाह करना चाहता हूँ कि तुम मूर्खता का काम करने जा रही हो । तुम अड़ी हुई हो ; तो मैं मूर्खता के इस काम में साझीदारी करना चाहता हूँ और इस पर जोर भी दे रहा हूँ । "
" इतनी जल्दी अपनी राय बदलना स्वाभाविक नहीं होता । "
" सुनो , मेरी जान! यहाँ सवाल बलिदान या समर्पण का नहीं है । जिस दिन मुझे यह अहसास हुआ कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ तो मैंने अपने आपसे यह कहा था , जो हरेक प्रेमी को ऐसे मामले में कहना चाहिए कि जो आदमी किसी औरत से प्यार करता है , जो उसे जीतने की कोशिश करता है, जो उसे पाता है और जो उसे लेता है तो जहाँ तक उसका सरोकार है और जहाँ तक उस औरत का सरोकार है, वह एक पवित्र गठबंधन का अनुबंध करता है । ध्यान रहे, यह तुम्हारे जैसी औरत से निपटने का सवाल है , किसी जज्बाती और दब्बू स्वभाव की औरत से निपटने का नहीं ।
" शादी की बड़ी सामाजिक अहमियत होती है, बड़ी कानूनी अहमियत होती है, लेकिन जिन हालात में यह आम तौर पर होती है, उसे देखते हुए मेरी नजर में इसकी बहुत ही कम नैतिक अहमियत है ।
" इसलिए जब ऐसी कोई औरत , जो इस कानूनी बंधन से तो अपने पति से बँधी होती है, लेकिन उससे कोई लगाव नहीं रखती, क्योंकि वह उससे प्यार नहीं कर सकती । जब ऐसी औरत जिसका दिल कोई बंधन नहीं मानता, जबकि वह औरत किसी ऐसे आदमी से मिलती है, जिसकी वह परवाह करती है और अपने आपको उसे सौंप देती है । जब कोई ऐसा आदमी जिसका कोई और बंधन नहीं होता , जब वह उस औरत को इस तरह से लेता है तो मैं कहता हूँ कि मेयर के सामने हाँ कहने के मुकाबले वे इस आपसी और स्वतंत्र समझौते से एक - दूसरे के लिए अधिक वचनबद्ध होते हैं ।
"मैं कहता हूँ कि अगर वे दोनों इज्जतदार लोग हैं तो उनका मेल अधिक अंतरंग, अधिक वास्तविक, अधिक पुष्ट होगा ही, अपेक्षाकृत तब के जब उसे तमाम पवित्र संस्कारों से पवित्र किया गया हो ।
" यह औरत सबकुछ जोखिम में डाल देती है । यह ठीक इसीलिए होता है, क्योंकि वह यह जानती है, क्योंकि वह सबकुछ दे देती है, अपना दिल , अपना शरीर , अपनी आत्मा, अपनी इज्जत, अपनी जिंदगी; क्योंकि उसने सारे दुखों , सारे खतरों, सारी आफतों को पहले से देख लिया होता है; क्योंकि वह एक हिम्मत वाला काम करने का एक बहादुरी का काम करने का दुस्साहस करती है; क्योंकि वह हरेक चीज का सामना करने को तैयार और कृत संकल्प रहती है — सामना करने को अपने पति का, जो उसकी जान ले सकता है और सामना करने को उस समाज का , जो उसे बाहर कर सकता है । इसलिए तो वह अपने पति के साथ बेवफाई करने में बहादुरी से काम लेती है ; इसलिए तो उसे लेने में उसके प्रेमी ने भी सबकुछ पहले से देखा ही होगा और सभी चीजों से ज्यादा उसे पसंद किया होगा , चाहे कुछ भी हो जाए । इससे ज्यादा मुझे और कुछ नहीं कहना । शुरू में मैंने एक समझदार आदमी की तरह बात की थी , जिसका फर्ज था तुम्हें आगाह करना, लेकिन अब मुझमें बस एक आदमी रह गया है - वह आदमी, जो तुमसे प्यार करता है । तो फिर बोलो मुझे क्या करना है ? "
आइरीन ने खुश होकर उसके मुँह को अपने होंठों से बंद कर दिया और धीमे से उससे कहा , " यह सच नहीं है प्यारे ! कुछ भी नहीं हुआ है! मेरे पति कोई शक नहीं करते , लेकिन मैं देखना चाहती थी , मैं जानना चाहती थी कि तुम क्या करोगे ? मैंने हसरत की थी नए साल के तोहफे की तुम्हारे दिल की , उस हार के अलावा एक और तोहफे की , जो तुमने अभी - अभी मुझे भेजा है । तुमने वह तोहफा मुझे दे दिया है । शुक्रिया! शुक्रिया ! ईश्वर का धन्यवाद है, उस खुशी के लिए जो तुमने मुझे दी है! "