मध्यकालीन रोमांस (कहानी) : मार्क ट्वेन

A Medieval Romance (English Story in Hindi) : Mark Twain

रात थी। कुगेस्टिएन के पुराने विशाल सामंती किले में सन्नाटा पसरा हुआ था। सन् 1222 अपने अंत की ओर सरक रहा था। दूर किले की सबसे ऊँची मीनार में एक अकेली रोशनी टिमटिमा रही थी। वहाँ एक गुप्त बैठक चल रही थी। कुगेस्टिएन के बूढ़े कठोर लॉर्ड शाही कुरसी पर बैठे थे। वह किसी सोच में डूबे हुए थे। कुछ देर बाद बड़े नरम लहजे में वे बोले, ‘‘बेटी!’’

सामंती शक्ल-सूरत और सिर से पैर तक सामंती वेशभूषा में सजे एक युवक ने जवाब दिया, ‘‘जी, पिताजी।’’

‘‘बेटी, अब समय आ गया है कि मैं वह रहस्य तुम पर उजागर कर दूँ, जिसने तुम्हारे सारे युवा जीवन को उलझन में रखा है। उसके मूल में जो मामले थे, उनका अब मैं खुलासा करने जा रहा हूँ। मेरा भाई उलरिख ब्रैंडस्बर्ग का महान् ड्यूक है। मेरे पिता ने अपनी मृत्यु-शय्या पर निर्णय सुनाया था कि अगर उलरिख के कोई बेटा नहीं होता और मेरा बेटा होता है तो मेरे वंशज उत्तराधिकारी होंगे। अगर दोनों में से किसी का भी बेटा नहीं होता और बेटियाँ ही होती हैं तो उलरिख की बेटी उत्तराधिकारिणी होगी, बशर्ते वह निष्कलंक साबित हो। अगर ऐसा न हुआ तो उत्तराधिकार मेरी बेटी के हिस्से आएगा, अगर उसके नाम पर कोई धब्बा न लगा हो। इसलिए मैंने और मेरी पत्नी ने रात-दिन बेटे के लिए प्रार्थना की। लेकिन सारी प्रार्थना व्यर्थ साबित हुई। तुमने हमारे यहाँ जन्म लिया। मेरी निराशा का ठिकाना न रहा। मुझे इतनी विशाल संपदा अपने हाथों से फिसलती महसूस हुई। मेरा सुनहरा सपना धुँधलाकर अदृश्य होता सा लगा। मैं बहुत उम्मीद लगाए हुए था, क्योंकि पाँच साल के विवाहित जीवन के बावजूद उलरिख की पत्नी उसे कोई संतान नहीं दे पाई थी।

‘ठहरो,’ मैंने अपने आप से कहा, ‘अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है।’ बचने की एक योजना मेरे दिमाग में कौंधी थी। तुम्हारा जन्म आधी रात को हुआ था। सिर्फ डॉक्टरनी, नर्स और छह सेविकाओं को पता था कि हमारे यहाँ बेटा हुआ है या बेटी। मैंने एक घंटे के अंदर-अंदर उन सबको फाँसी दे दी। अगली सुबह यह घोषणा होते ही सारा सामंत वर्ग हर्ष-उल्लास में मस्त हो गया कि कुगेस्टिएन के बेटा हुआ है—शक्तिशाली ब्रैंडस्बर्ग का उत्तराधिकारी। और यह राज अभी तक बना हुआ है। तुम्हारी माँ की बहन ने खुद तुम्हें बचपन में पाला। फिर तुम्हारे बड़े होने पर हमें कोई अंदेशा न रहा।

‘‘जब तुम दस साल की थीं, उलरिख के यहाँ एक बेटी पैदा हुई। हमें बहुत दुःख हुआ। हम खसरा या हकीमों की करतूत या शिशुओं के अन्य प्राकृतिक शत्रुओं की आस लगाए रहे; लेकिन हमेशा निराशा ही हाथ लगी। वह जीवित रही, पली-बढ़ी—खुदा उसे गारत करे! फिर भी, कोई बात नहीं। हम सुरक्षित हैं, क्योंकि हा-हा! क्या हमारा बेटा नहीं है? क्या हमारा बेटा भावी ड्यूक नहीं? मेरी प्यारी कानराड, क्या ऐसा नहीं? क्योंकि 28 साल की किसी स्त्री को, जो कि तुम हो, किसी दूसरे नाम से कभी नहीं पुकारा गया।

‘‘पता चला है कि मेरे भाई को बुढ़ापे ने दबोच लिया है। वह कमजोर हो गया है। राजकाज उसे थका मारता है। इसलिए वह चाहता है कि तुम उसके पास आकर कार्यकारी ड्यूक बन जाओ, भले ही अभी उपाधि न मिले। तुम्हारे सेवक तैयार हैं और तुमको आज रात ही प्रस्थान करना है।

‘‘अब मेरी बात बहुत ध्यान से सुनो। मैं जो कुछ कह रहा हूँ, उसका एक-एक शब्द याद रखना। जर्मनी जितना ही पुराना एक कानून है। अगर कोई स्त्री सार्वजनिक ताजपोशी से पहले जरा देर को भी ड्यूक के सिंहासन पर बैठती है तो उसकी सजा मौत है। इसलिए विनम्रता का बहाना बनाना। सिंहासन के पास रखी प्रधानमंत्री की कुरसी पर बैठकर अपने निर्णय सुनाना। जब तक तुम्हारी ताजपोशी नहीं हो जाती और तुम सुरक्षित नहीं हो जातीं, ऐसा ही करना। तुम स्त्री हो या पुरुष, इसका पता लगने की कोई संभावना नहीं है। फिर भी, समझदारी इसी में है कि दुनिया की इस साजिशों भरी जिंदगी में जितना हो सके, सुरक्षित रहें।’’

‘‘आह, पिताजी! इसी वजह से मेरा जीवन झूठ बनकर रह गया? क्या यह कि मैं अपनी रिश्ते की बहन को धोखा देकर उसका अधिकार हड़प लूँ! मुझे माफ कर दो पिताजी, अपनी बच्ची को माफ कर दो।’’

‘‘यह क्या, ढीठ लड़की! मैंने इतना सोच-विचारकर तुम्हारे लिए जिस अपार संपत्ति का जुगाड़ किया है, तुम उसका यह बदला दे रही हो? बाप की कसम, तुम्हारी यह भावुकता मुझे जरा नहीं सुहाती। तुरंत ड्यूक के पास जाने के लिए रवाना हो जाओ और मेरे उद्देश्य में दखलंदाजी न करो।’’

बातचीत का इतना हिस्सा ही इस अनुमान के लिए काफी है कि क्या कुछ हुआ होगा। बेचारी भली लड़की के आँसू किसी काम नहीं आए। न तो आँसू, न ही कोई और बात बूढ़े कठोर लॉर्ड कुगेस्टिएन को पिघला सकी। इसलिए, अंत में भरे दिल से बेटी ने अपने पीछे किले के दरवाजे बंद होते देखे। वह हथियारबंद सेनानियों और वीर सैनिकों एवं सेवकों के काफिले के साथ अँधेरी रात में यात्रा पर निकल पड़ी।

बेटी के जाने के बाद बूढ़े लॉर्ड कुछ मिनटों तक चुपचाप बैठे रहे। फिर उन्होंने अपनी उदास पत्नी की तरफ देखकर कहा, ‘‘लगता है, हमारा मकसद तेजी से पूरा हो रहा है। मैंने तीन महीने पहले ही धूर्त और खूबसूरत काउंट डेजिन को अपना शैतानी उद्देश्य पूरा करने के लिए भाई की लड़की के पास भेज दिया था। अगर वह असफल रहता है तो हम पूरी तरह सुरक्षित नहीं। लेकिन अगर सफल रहता है तो फिर दुनिया की कोई ताकत हमारी बेटी को ड्यूक बनने से नहीं रोक सकती।’’

‘‘मेरा दिल आशंकाओं से भरा है। सबकुछ अच्छा हो!’’

‘‘छी, छी, औरत! अपशकुन की बात मत कर। जाकर सो जा और ब्रैडनबर्ग की भव्यता के सपने देख।’’

उत्सव और आँसू

इन घटनाओं के छह दिन बाद ब्रैडनबर्ग की भव्य राजधानी सैनिक प्रदर्शनों की शान-शौकत से दमक रही थी। चारों तरफ स्वामीभक्त प्रजाजनों के हर्षोल्लास का हंगामा था, क्योंकि सिंहासन के युवा उत्तराधिकारी कानराड पधारे थे। बूढ़े ड्यूक का दिल खुशी से भरपूर था। कोनराड के सुंदर व्यक्तित्व और मृदु आचरण ने आते ही उनका प्रेम पा लिया था। महल के विशाल कक्ष सामंतों से भरे हुए थे। उन्होंने कानराड का वीरोचित स्वागत किया। सबकुछ बहुत उज्ज्वल और आनंददायक लग रहा था। उसे लगा कि उसका डर व दुःख दूर हो रहे हैं और उनके स्थान पर राहत देनेवाला संतोष ले रहा है।

लेकिन महल के एक दूर-दराज कमरे में किसी और ही तरह की भावना उभर रही थी। ड्यूक की इकलौती बेटी लेडी कांस्टेंस खिड़की में खड़ी थी। उसकी आँखें लाल और सूजी हुई थीं। उनमें आँसू भरे थे। वह अकेली थी। वह एक बार फिर रुआँसी हो गई और खुद से ही बोली, ‘दुष्ट डेजिन चला गया। वह हमारे राज्य से भाग खड़ा हुआ। पहले तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ। लेकिन आह, यह सच है। मैंने उससे प्रेम करने का दुःसाहस किया था। हालाँकि मैं अच्छी तरह जानती थी कि मेरे ड्यूक पिता कभी उससे शादी करने की अनुमति नहीं देंगे। मैं उससे प्रेम करती थी, पर अब नफरत करती हूँ। अपनी आत्मा की गहराई से उससे नफरत करती हूँ। आह, मेरा क्या होगा! मैं तो बरबाद हो गई। मैं पागल हो जाऊँगी।’

रहस्य गहराया

कुछ महीने गुजर गए। युवा कानराड के शासन की चारों तरफ प्रशंसा हो रही थी। उसके विवेकपूर्ण फैसलों, दंड देने में दयालुता और जिस विनम्रता से वह महान् ड्यूक का उत्तरदायित्व सँभाले हुए था, उसका गुणगान हो रहा था। वृद्ध ड्यूक ने शीघ्र ही सबकुछ उसके हाथों में सौंप दिया। वह चुपचाप बैठकर गर्व और संतोष के साथ अपने उत्तराधिकारी को प्रधानमंत्री के आसन पर बैठे राजकीय निर्णय सुनाते देखा करते। जाहिर था कि कानराड के रूप में जिसे सब इतना आदर-मान व प्रेम देते थे, वह प्रसन्न ही तो हो सकता था। लेकिन हैरानी की बात थी कि खुश न था। वह यह देखकर बहुत घबरा गया था कि राजकुमारी कांस्टेंस उससे प्रेम करने लगी थी। बाकी सारी दुनिया का उसके प्रति प्रेम उसका अहोभाग्य था। लेकिन यह तो भयानक खतरा था। उसे पता चला था कि ड्यूक को भी उसके प्रेम का पता चल गया था और वह अति प्रसन्न थे। वह तो अभी से शादी के सपने भी देखने लगे थे। दिन-दिन राजकुमारी के चेहरे पर गहराई उदासी की परतें कम होती जा रही थीं। हर दिन उसकी आँखों में आशा की किरणें दिख रही थीं। जो चेहरा इतना परेशान रहता था, उसपर अब तो मुसकराहट भी छाने लगी थी।

कानराड भयभीत था। उसने अपनी उस प्रवृत्ति को जी भर कर कोसा, जिसके कारण उसके अपने ही लिंग ने उसका साथ पाना चाहा था। वह उदास था, महल में अजनबी-सा था और सहानुभूति चाहता था। ऐसी सहानुभूति उसे किसी स्त्री से ही मिल सकती थी। उसने अब अपनी बहन से कतराना शुरू कर दिया। लेकिन इससे हालत और भी बदतर हो गई; क्योंकि वह जितना ही उससे बचता, वह उतनी ही उसके रास्ते में आती। पहले-पहल वह इससे हैरान हुआ, फिर एकदम घबरा गया। उसे लगता कि लड़की हर समय उसके पीछे पड़ी है। उसे लगता कि दिन हो या रात, वह हर समय और हर जगह उसके साथ है। वह बहुत व्याकुल हो गया। लगता था कि इस व्याकुलता के पीछे कहीं कोई रहस्य जरूर है।

ऐसा सब दिन तो चल नहीं सकता था। दुनिया भर में इसकी चर्चा थी। ड्यूक भी उलझन में पड़े-से लगते थे। बेचारा कानराड भय और व्यथा से आक्रांत लगता था। एक दिन जब वह अपनी चित्रशाला से सटे कक्ष से बाहर निकल रहा था तो कांस्टेंस उसके सामने आ गई। उसने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में पकड़ लिये और बोली, ‘‘ओह! तुम क्यों मुझसे दूर भागते हो? मैंने क्या किया है? मैंने ऐसा क्या कहा है, जिससे मेरे बारे में तुम्हारी मेहरबानी जाती रही, क्योंकि निश्चित ही तुम कभी मेहरबान थे। कानराड, क्या तुम मुझसे नफरत करते हो? मुझ दुखियारी पर रहम खाओ! मैं तुम्हारी चुप्पी और बरदाश्त नहीं कर सकती। यह मुझे मार ही डालेगी। कानराड, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। अगर तुम मुझसे नफरत करना चाहते हो तो करो, पर यह तुम्हें स्पष्ट बताना होगा।’’

कानराड स्तब्ध, मौन खड़ा रहा। कांस्टेंस जरा देर को हिचकी। उसने उसकी खामोशी के गलत मायने निकाले। उसकी आँखों में उल्लास की तीव्रता झलक आई। उसने उसके गले में अपनी बाँहें डाल दीं और बोली, ‘‘तुम्हारा दिल पिघल रहा है। तुम पिघल रहे हो! तुम मुझे प्यार कर सकते हो! तुम मुझसे प्यार करोगे! कहो, करोगे! मेरे कानराड, मैं पूजती हूँ तुम्हें!’’

कानराड जोर से कराह उठा। उसका चेहरा पीला-जर्द हो गया। वह काँपने लगा। हताशा में भरकर उसने लड़की को अपने से दूर कर दिया और बोला, ‘‘तुम नहीं जानतीं कि तुम मुझसे क्या माँग रही हो। यह सदा-सदा के लिए असंभव है।’’

इसके बाद वह किसी अपराधी की तरह भाग खड़ा हुआ। राजकुमारी स्तब्ध और हैरान-परेशान हो गई। लगभग मिनट भर बाद राजकुमारी यहाँ बिलख रही थी, सिसक रही थी और कानराड अपने कक्ष में बिलख रहा था, सिसक रहा था। दोनों निराश थे। दोनों को लगता था कि तबाही उनके सामने मुँह बाए खड़ी है।

धीरे-धीरे कांस्टेंस अपने पैरों पर खड़ी हुई। वह यह कहते हुए वहाँ से चली गई, ‘‘जब मैंने सोचा कि उसका बेरहम दिल पिघल रहा है, तब भी वह मुझसे नफरत ही करता था। मैं भी उससे नफरत करती हूँ। उसने कुत्ते की तरह मुझे दुत्कारा और नफरत की।’’

भयानक रहस्योद्घाटन

समय बीतता गया। ड्यूक की बेटी के चेहरे पर फिर से एक स्थायी उदासी आकर ठहर गई थी। कानराड और वह अब कभी इकट्ठे दिखाई न देते थे। ड्यूक इससे दुःखी थे। लेकिन कुछ सप्ताह और गुजरने के बाद कानराड के चेहरे पर रंगत और आँखों में पहले की-सी चमक लौट आई। वह राजकाज अपने स्पष्ट विवेक से चलाने लगा।

तभी महल के बारे में एक विचित्र कानाफूसी सुनाई पड़ने लगी। वह तेज होती गई, दूर तक फैलती गई। यह गप राज्य भर में फैल गई। यह कानाफूसी कह रही थी—

‘‘राजकुमारी कांस्टेंस ने एक बच्चे को जन्म दिया है।’’

जब लॉर्ड कुगेस्टिएन ने यह सुना तो उन्होंने अपना हैट तीन बार अपने सिर पर घुमाया और जोर से चिल्ला पड़े, ‘‘ड्यूक कानराड जिंदाबाद! अब तो उसका ताज पक्का हो गया। डेटिजिन ने अपना काम बखूबी निभाया। उस अच्छे लुच्चे को भरपूर इनाम दिया जाएगा।’’

उन्होंने इस खबर को दूर-दूर तक फैलाया। चौरासी घंटों तक उनके सारे इलाके में लोग नाच-गाकर उत्सव मनाते रहे। सब बूढ़े कुगेस्टिएन के लिए खुशी का इजहार कर रहे थे।

दिल दहलानेवाली आफत

मुकदमा शुरू हो गया। ब्रैंडनबर्ग के सभी बड़े लॉर्ड और बैरन न्यायालयवाले बड़े कक्ष में उपस्थित थे। किसी भी दर्शक के बैठने या खड़े होने की कोई जगह खाली न थी। जामुनी और सफेद रोएँवाले वस्त्रों में सजा कानराड प्रधानमंत्री की कुरसी पर बैठा था। उसके दोनों ओर राज्य के प्रधान न्यायाधीश बैठे थे। बूढ़े ड्यूक ने सख्त हिदायत दी थी कि उनकी बेटी का मुकदमा बिना किसी रियायत के सुना जाए। उसके बाद दिल टूट जाने की वजह से उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था। अब वह चंद दिनों के ही मेहमान थे। बेचारे कानराड ने बहुत मिन्नतें कीं कि उसे अपनी ही बहन के अपराध का मामला सुनने से मुक्त किया जाए, लेकिन उसकी बात नहीं मानी गई।

सभी उपस्थित लोगों में अगर कोई दिल सबसे अधिक दुःखी था तो वह कानराड के सीने में था।

सबसे ज्यादा उल्लास से भरा दिल उसके पिता का था। उनकी बेटी कानराड को पता न था कि बूढ़े लॉर्ड कुगेस्टिएन भी सामंतों की इस भारी भीड़ में उपस्थित थे। वह अपने घराने को मिलनेवाली अपार संपदा से फूले नहीं समा रहे थे।

जब उद्घोषकों ने आवाज लगा ली और प्रारंभिक औपचारिकताएँ पूरी हो गईं तो माननीय मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘‘बंदी उठकर खड़ा हो जाए।’’

दुःखी राजकुमारी उस भारी जनसमूह के सामने बिना किसी परदे के खड़ी हो गई।

लॉर्ड मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा, ‘‘आदरणीय महिला, इस राज्य के महान् न्यायाधीशों के सामने यह सिद्ध हो चुका है कि आपने एक संतान को जन्म दिया है। इस अपराध की सजा मौत है। कार्यवाहक ड्यूक लॉर्ड कानराड अब इस बारे में विधिवत् अपना निर्णय सुनाएँगे। आप ध्यान से सुनने को तैयार हो जाएँ।’’

कानराड ने अपना राजदंड हिलाया। इसके साथ ही उसके सीने में छिपा एक स्त्री का दिल बंदिनी के लिए पिघल उठा। उसकी आँखों में आँसू उभर आए। उसने फैसला सुनाने के लिए अपने होंठ खोले ही थे कि मुख्य न्यायाधीश ने तुरंत कहा, ‘‘वहाँ से नहीं महामहिम, वहाँ से नहीं। ड्यूक खानदान के किसी सदस्य के लिए आप वहाँ से निर्णय नहीं सुना सकते। यह न्यायसम्मत न होगा। आप राजसिंहासन पर बैठकर निर्णय सुनाएँ।’’

बेचारे कानराड का दिल दहल गया। उसके बूढ़े पिता का फौलादी शरीर भी सिहर उठा। कानराड की ताजपोशी नहीं हुई थी। क्या वह सिंहासन पर बैठने का दुःसाहस करे? वह हिचकिचाया। डर से उसका चेहरा पीला पड़ गया। लेकिन अब कोई चारा भी तो न था। सबकी हैरान निगाहें उसपर टिकी थीं। अगर वह देरी करता तो वही शंका की निगाहों में बदल जाती।

वह सिंहासन पर जा बैठा। फिर राजदंड उठाकर बोला, ‘‘बंदी, हमारे महान् ब्रैडनबर्ग के ड्यूक लॉर्ड उलरिख की ओर से मैं उस कर्तव्य का पालन करने जा रहा हूँ, जो मुझे सौंपा गया है। मेरी बात ध्यान से सुनो। राज्य के प्राचीन कानून के मुताबिक, अगर तुमने अपने अपराध के सहभागी का नाम नहीं बताया और उसे वधिक को नहीं सौंपा तो तुम्हें मृत्युदंड मिलना निश्चित है। अभी भी अपनी जान बचा लो। अपनी संतान के पिता का नाम बताओ।’’

सारे न्यायालय में सन्नाटा छा गया। ऐसा सन्नाटा कि लोग अपने दिलों की धड़कनें तक सुन सकते थे। राजकुमारी धीरे से मुड़ी। उसकी आँखों में नफरत भरी थी। उसने अपनी उँगली सीधे कानराड की तरफ उठाई और बोली, ‘‘आप हैं वह आदमी!’’

इस अचानक दोषारोपण से उपजे निस्सहाय कर देनेवाले घोर संकट से कानराड के बदन में सिहरन दौड़ गई—साक्षात् मौत जैसी सिहरन। दुनिया की कौन सी ताकत अब उसे बचा सकेगी! इस आरोप से बचने के लिए उसे यह रहस्य खोलना पड़ेगा कि वह स्त्री है। और बिना ताजपोशी के किसी स्त्री के ड्यूक के सिंहासन पर बैठने की सजा मौत थी। वह और उसका बूढ़ा बाप एक साथ बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े।

इस रोंगटे खड़े करनेवाली कहानी का शेष भाग यहाँ या किसी भी अन्य पुस्तक में नहीं मिलेगा। न अब, न भविष्य में।

सच बात तो यह है कि मैंने अपनी कहानी के नायक तथा नायिका को ऐसी कठिन स्थिति में फँसा दिया है कि मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि उसे कभी भी कैसे इससे बाहर निकाल सकता हूँ। इसलिए मैं तो इस सारे मामले से हाथ झाड़कर हमेशा के लिए अलग हो रहा हूँ। अब मैं इससे बाहर निकलने का रास्ता खोजने या इसी स्थिति में बने रहने का विकल्प उसी पर छोड़ता हूँ। पहले मैंने सोचा था कि इस कठिनाई का कोई-न-कोई हल निकल आएगा, पर अब यह मुझे मुश्किल लग रहा है।

(अनुवाद : सुशील कपूर)