एक परिवार (कहानी) : गाय दी मोपासां
A Family (French Story) : Guy de Maupassant
मैं अपने पुराने दोस्त साइमन रादाविन से मिलनेवाला था । उससे मिले पंद्रह साल हो चुके थे। किसी जमाने में वह मेरा सबसे जिगरी यार हुआ करता था । वह ऐसा दोस्त था , जो मेरी भावनाओं को समझता था , जिसके साथ मैं अपनी शामें खामोशी और खुशी से बिता सकता था । वह ऐसा हमराज था, जिससे मैं अपने प्यार का जिक्र कर सकता था । उसके सोचने - समझने का अंदाज इतना अनोखा, सरल और संवेदनशील था कि उसकी सहानुभूति से मैं तसल्ली महसूस करने लगता था ।
कई वर्षों तक शायद ही कोई पल गुजरा जब हम एक - दूसरे के साथ न रहे हों । हम एक साथ रहते थे, घूमते थे, सोचते और यहाँ तक कि सपने भी एक साथ ही देखा करते थे। हमारी पसंद एक थी , एक ही पुस्तक को हम दोनों पसंद करते थे, एक जैसे लेखकों की पुस्तकें पढ़ा करते थे, एक जैसी उत्तेजना से काँप जाते थे, और अकसर एक नजर भर किसी को देखकर ही हम दोनों उस पर एक साथ हँस पड़ते थे।
फिर उसकी शादी हो गई । उसने चुपचाप और एकदम अचानक, एक ऐसी लड़की से शादी कर ली , जो दूर के राज्य से पेरिस में अपने लिए एक पति की तलाश में आई थी । यह बात मेरी समझ में आज तक नहीं आई कि आखिर कैसे उसे उस छोटी और पतली सी लड़की ने, जो लाखों शादी योग्य आम लड़कियों जैसी ही थी , जो फीकेपन की हद तक गोरी थी, जिसके हाथ कमजोर थे, आँखें हलकी और विचारशून्य थीं , और जिसकी आवाज ही मूों जैसी थी , उस चालाक नौजवान को अपने जाल में फंसा लिया ? क्या कोई मुझे यह बात समझा सकता है? इसमें कोई शक नहीं कि उसने एक अच्छी, कोमल और वफादार महिला की बाँहों में शांत और चिरस्थायी खुशी की कल्पना की होगी । शायद उसने वह सब उस साधारण और भूरे बालोंवाली स्कूल गर्ल के अंदर देख लिया होगा ।
उसे इस हकीकत का खयाल नहीं आया होगा कि एक सक्रिय, सजीव और तेज- तर्रार व्यक्ति जैसे ही जीवन की कड़वी सच्चाइयों को समझने लगता है, उसे इन सब चीजों से ऊब होने लगती है , बशर्ते वो इतना कठोर न हो गया हो कि उसकी सूझबूझ ही खत्म हो गई हो ।
मैं सोच रहा था, आखिर इतने वर्षों बाद जब वह मिलेगा तो कैसा होगा ? क्या वह अब भी उसी तरह का चंचल , मजाकिया , नेकदिल और जोशीला होगा, या ग्रामीण जीवन के असर से दिमागी तौर पर सुन्न हो चुका होगा? पंद्रह साल का वक्त किसी भी इनसान को बदलने के लिए काफी होता है ।
ट्रेन एक छोटे से स्टेशन पर रुकी । मैं जैसे ही बाहर निकला, एक मोटा , बहुत मोटा आदमी, जिसके गाल लाल थे और पेट निकला था , मेरी ओर बाँहें फैलाए चीखते हुए दौड़ा - जॉर्ज! मैंने उसे गले से लगाया , लेकिन मैं उसे पहचान नहीं पा रहा था , और तब मैंने आश्चर्यचकित होकर कहा , ओह जोव! तुम अब तक पतले नहीं हुए हो ! और उसने हँसते हुए मेरी बात का जवाब दिया-
तुमने क्या सोचा था ? अच्छा जीवन , एक अच्छा टेबल और अच्छी रातें ! मेरे जीवन का मतलब बस खाना और सोना है!
मैंने उसे करीब से देखा । उस बड़े से चेहरे में मैं उन खूबियों की तलाश कर रहा था , जो किसी समय मुझे अच्छी लगती थीं । सिर्फ उसकी आँखें थीं, जो अब तक बदली नहीं थीं , लेकिन उनमें भी अब वे भाव नजर नहीं आ रहे थे। तब मैंने अपने आप से कहा — अगर किसी के चेहरे के हावभाव उसकी सोच का आईना हैं , तो अब उसकी सोच वैसी नहीं रह गई, जैसी पहले हुआ करती थी, और जिन्हें मैं अच्छी तरह समझता था ।
फिर भी उसकी आँखों में दोस्ती और खुशी की वह चमक बरकरार थी । हालाँकि अब उनमें वह चमक और चतुर भाव नहीं थे, जो किसी की तीक्ष्ण बुद्धि का परिचय देते हों । अचानक उसने कहा-
ये रहे मेरे दो सबसे बड़े बच्चे । एक चौदह साल की लड़की थी , जो एक औरत की तरह नजर आ रही थी , और दूसरा लड़का था, जो तेरह साल का था । लड़के ने लिसी स्कूल की ड्रेस पहन रखी थी । वह सकुचाते और शरमाते हुए आगे आया, और तब मैंने उसकी ड्रेस की ओर इशारा कर धीरे से पूछा, क्या ये तुम्हारे हैं ? बिल्कुल ये मेरे ही हैं , उसने हँसते हुए जवाब दिया । तुम्हारे पास कितने हैं ? पाँच! घर पर तीन और रखे हैं ।
उसने गर्व से, आत्मसंतुष्टि से और प्रफुल्लित होकर कहा । मगर मुझे बहुत दया आई । इस दंभ और इनसानी दिखावे से मेरे मन में कुछ हद तक घृणा का भाव पैदा हो गया ।
साइमन हमें लेकर शहर की ओर चला । गाड़ी वह खुद चला रहा था । हम उस सुस्त, अलसाए और उदास शहर से गुजर रहे थे, जहाँ कुछ कुत्तों और एक - दो नौकरानियों के सिवाय सड़कों पर किसी प्रकार की हलचल नहीं थी । यहाँ- वहाँ कुछ दुकानदार अपनी हैट उठाकर साइमन का अभिवादन करते और साइमन पलटकर उन्हें सैल्यूट करता । साइमन उनके नाम मुझे बताता जा रहा था । निस्संदेह वह यह दिखाना चाहता था कि वह यहाँ रहनेवालों को व्यक्तिगत रूप से जानता है । तब मुझे खयाल आया कि उसके दिमाग में चैंबर ऑफ डेप्युटी का उम्मीदवार बनने की बात चल रही है । यह हर उस व्यक्ति का सपना है, जो प्रदेशों में गुजर - बसर कर रहा है ।
कुछ ही देर में हम शहर से बाहर निकल आए और गाड़ी एक बाग की ओर मुड़ी, जो किसी पार्क की नकल लग रहा था । हम एक बुर्जदार घर के आगे रुके, जिसे किसी महल की शक्ल देने की कोशिश की गई थी ।
यही है मेरा ठिकाना , साइमन ने यह सोचते हुए कहा कि मैं उसके घर की तारीफ करूँगा। मैंने भी कहा, घर सुंदर है ।
एक महिला सीड़ियों पर नजर आई, वह ऐसे तैयार हुई थी जैसे किसी कंपनी में जा रही हो और कंपनी की बोलचाल के शब्द भी पहले से रट रखे हों । वह अब पतली- दुबली और भूरे बालोंवाली लड़की नहीं थी , जिसे मैंने पंद्रह साल पहले चर्चमें देखा था , बल्कि एक मोटी महिला थी , जो मोटे-ताजे शरीर के साथ झूमकर चल रही थी । देखने में उन महिलाओं जैसी थी , जिनकी उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है, जिनमें न बुद्धि होती है और न वह सबकुछ, जो एक महिला में होना चाहिए । संक्षेप में कहूँ , तो वह एक माँ थी , मोटी , सामान्य माँ , जो बच्चे पैदा करने की मशीन होती है और जिसके जीवन में अपने बच्चों और अपने रसोईघर के सिवाय कोई और काम नहीं होता ।
उसने मेरा स्वागत किया और हॉल में चली गई , जहाँ तीन और बच्चे अपने कद के हिसाब से इस तरह निरीक्षण के लिए खड़े थे, जैसे फायरमैन किसी मेयर के सामने खड़े रहते हैं । और तब मैंने कहा - ओह ! ओह! तो येहैं वो बाकी के ? साइमन ने चहकते हुए उनका परिचय कराया — जीन , सोफी और गोंथा ।
ड्रॉइंग - रूम का दरवाजा खुला था । मैं अंदर दाखिल हुआ तो मेरी नजर आराम - कुरसी पर बैठे एक काँपते बुजुर्ग और लकवाग्रस्त व्यक्ति पर पड़ी । मैडम रादाविन ने आकर कहा - महोदय , ये मेरे दादाजी हैं , इनकी उम्र सत्तासी वर्ष है । फिर उसने काँपते हुए व्यक्ति के कानों में जोर से कहा - पापा, ये साइमन के दोस्त हैं । बूढ़े व्यक्ति ने दिन शुभ हो कहने की कोशिश की और बोले - वाह , वाह , वाह ! और हाथ से इशारा किया, मैंने कुरसी पर बैठते हुए कहा - आप बहुत दयालु हैं , महोदय ।
साइमन अभी कमरे में आया ही था कि उसने हँसते हुए कहा तो तुम्हारी जान - पहचान दादाजी से हो गई । ये बुजुर्ग व्यक्ति एक धरोहर हैं । बच्चे इनसे बहुत खुश रहते हैं । लेकिन ये इतने लालची हैं कि खाने के समय खुद को मार डालने पर तुल जाते हैं । तुम सोच भी नहीं सकते कि अगर इनकी मरजी चली तो ये क्या खाना पसंद करेंगे । लेकिन तुम वह खुद देखोगे , जरूर देखोगे। ये सारी मिठाइयों को ऐसे देखते हैं , जैसे वे कई सारी लड़कियाँ हों । आज जो तुम देखोगे, वैसा हँसा देनेवाला नजारा पहले तुमने कभी नहीं देखा होगा ।
मुझे मेरा कमरा दिखाया गया, ताकि मैं डिनर से पहले अपने कपड़े बदल सकूँ । कमरे की ओर बढ़ते समय मुझे एक साथ कई कदमों की खड़खड़ाहट अपने पीछे सुनाई पड़ी । देखा तो सारे बच्चे अपने पापा के साथ मुझे सम्मान के साथ मेरे कमरे तक छोड़ने आ रहे थे ।
मैंने खिड़की से बाहर देखा तो एक सुनसान , अनंत मैदान , घास का समुद्र, गेहूँ और जई के खेत थे। न पेड़ों का झुरमुट था, न कोई उठी हुई जमीन । कुल मिलाकर एक नीरस और उबाऊ जीवन की तसवीर थी , जो इस घर के सभी लोग बिता रहे थे।
तभी घंटी बजी । यह डिनर का बुलावा था । मैं सीड़ियों से नीचे उतरा । मैडम रादाविन ने मेरे हाथ में हाथ डाला और मुझे औपचारिक तरीके से डाइनिंग - रूम तक ले गई । एक सेवक बुजुर्ग व्यक्ति को उनके आर्मचेयर पर बिठाकर लाया । उन्होंने अपने हिलते हुए सिर को बड़ी मुश्किल से एक प्लेट से दूसरी प्लेट की ओर घुमाते हुए मीठे पकवानों को लालच और उत्सुकता भरी नजर से देखा ।
साइमन ने हाथ मलते हुए कहा — अब तुम्हें मजा आएगा । और तब सभी बच्चों ने , यह मानकर कि मैं उनके लालची दादाजी के इस कारनामे को देखकर खुश हो जाऊँगा, हँसने लगे । उनकी माँ जरा सी मुसकराई और फिर अपने कंधे उचका दिए । साइमन ने अपनी हथेली को भोंपू की शक्ल देते हुए बूढ़े व्यक्ति को जोर से कहा — आज की शाम क्रीमवाला मीठा चावल बना है! दादाजी का झुरींदार चेहरा चमक उठा । वे सिर से पैर तक और जोर से काँपने लगे, और यह दिखाने की कोशिश करने लगे कि उन्हें बेहद खुशी हुई है । उसके बाद खाना शुरू हुआ ।
जरा उधर देखो! साइमन ने फुसफुसाते हुए कहा । बूढ़े व्यक्ति को सूप पसंद नहीं था , उन्होंने इसे पीने से इनकार कर दिया । लेकिन सेहत का खयाल करते हुए उन्हें इसे पीना ही था । लिहाजा सेवक ने जबरदस्ती उनके मुँह में सूप का चम्मच डाल दिया, लेकिन बूढ़े व्यक्ति ने इतनी ताकत से फूंक मारी कि सूप मुँह में जाने की बजाय फव्वारे की तरह टेबल के चारों ओर बिखर गया , यहाँ तक कि आस- पास बैठे लोगों की प्लेट में भी जा गिरा । बच्चे यह देखकर ठहाके लगाने लगे, जबकि उनके पापा , जो खुद भी हँस रहे थे, उन्होंने कहा — ये बुड्ढा नाटक तो नहीं करता ?
पूरे डिनर के दौरान सब मेरा खयाल रखने में जुटे थे। बूढ़े व्यक्ति ने टेबल पर रखे खाने को निगल जानेवाली नजरों से देखा । अकसर वह काँपते हाथों से उन्हें अपनी ओर खींचना चाहते थे। सबकुछ उनकी पहुँच में रख दिया गया था , ताकि उन्हें थरथराते हाथों से पकड़ते देख सकें । उन्हें अपनी लाचार नजरों, मुँह और नाक से सूंघने की हरकत करते हुए देख सकें और उन पर तरस खा सकें । बुजुर्ग भी अजीब सी आवाज करते हुए अपने टेबल नैपकिन पर लार टपका रहे थे। पूरा परिवार इस भयंकर और विकृत तसवीर को देखकर बेहद खुश था ।
फिर उनकी प्लेट में एक छोटा सा टुकड़ा रखा गया, जिसे उन्होंने एक भुक्खड़ की तरह खाया , ताकि जल्दी से उन्हें दूसरा टुकड़ा मिल सके । जब मीठा चावल उनकी प्लेट में डाला गया तो उन्हें जैसे मिरगी ही आ गई । वह लालच से गुर्राने लगे , तभी गोंथा ने जोर से उनसे कहा -
आप पहले ही इतना खा चुके हैं कि अब और नहीं खा सकते । और फिर सबने नाटक किया कि वे उन्हें और नहीं देंगे । तब वह रोने लग गए । वह जितनी जोर से रो रहे थे, उतनी ही जोर से काँप रहे थे। लेकिन बच्चे थे कि जोर - जोर से हँसे जा रहे थे। आखिर में , सबने मिलकर उन्हें खाना खिलाया, थोड़ा- थोड़ा ही सही । जैसे ही वे पहला निवाला खाते , उनके कंठ से एक अजीब सी आवाज आती, वैसी ही जैसी बड़ा निवाला खाने के बाद बतख किया करती है । जैसे ही वे एक निवाला खा लेते, अपने पैर पटकने लगते कि उन्हें दूसरा निवाला खिला दिया जाए । उदास करनेवाली और हास्यास्पद इस नौटंकी को देखकर मैं दुखी था । मैंने उस बुजुर्ग का पक्ष लेते हुए कहा -
चलो, उन्हें थोड़ा और चावल दे दो! लेकिन साइमन ने कहा — अरे ! नहीं, मेरे दोस्त , अगर उन्होंने ज्यादा खा लिया , तो इस उम्र में उनके लिए नुकसानदेह होगा ।
मैं चकित था और उसके शब्दों पर गौर कर रहा था । वाह री नीति ! वाह रे तर्क! वाह रे बुद्धि ! उनकी इस उम्र में ! तो उनकी सेहत का खयाल करते हुए वे उन्हें उनकी आखिरी खुशी से भी महरूम कर रहे हैं ! उनकी सेहत की खातिर ! इस सेहत का वे क्या करेंगे, जबकि वे निष्क्रिय और काँपते मलबे का ढेर हो चुके हैं । उन्होंने कहा कि वे उनकी जिंदगी की देखभाल कर रहे हैं । उनकी जिंदगी ? आखिर कितने दिन? दस , बीस, पचास या सौ वर्ष? पर क्यों ? उनकी खातिर ? या इसलिए, ताकि कुछ और समय तक पूरा परिवार उनके लोभ और लाचारी के नजारे का लुत्फ उठा सके ।
उनकी जिंदगी में अब करने को कुछ नहीं रह गया था , कुछ भी नहीं । उनकी बस एक ही ख्वाहिश थी, बस एक ही आनंद, जब तक वे जिंदा हैं तब तक क्यों न उन्हें इसका मजा लेने दिया जाए ?
हम लोग काफी देर तक ताश खेलते रहे । फिर मैं अपने कमरे में गया और बिस्तर पर बैठ गया । सामने खिड़की थी और मेरा मन बहुत उदास था — उदास , उदास, एकदम उदास! बाहर एकदम सन्नाटा था । हाँ , बहुत दूर से किसी चिडिया के चहचहाने की आवाज आ रही थी । शायद रात के इस वक्त वह कूक से अपनी साथी को लोरी सुना रहा था , जो अपने अंडे से रही थी । और तब मैं अपने दोस्त के बेचारे पाँच बच्चों के बारे में सोचने लगा, अपने मन में कुरूप पत्नी के साथ खर्राटे भरकर सोते हुए दोस्त की तसवीर बनाई ।