30,000 डॉलर की वसीयत (कहानी) : मार्क ट्वेन

30,000 Dollar Ki Vasiyat (English Story in Hindi) : Mark Twain

अध्याय एक

लेकसाइड पाँच या छह हज़ार की आबादी का एक ख़ुशनुमा छोटा-सा क़स्बा था, और ख़ासा सुन्दर भी था जैसे सुदूर पश्चिम के क़स्बे होते हैं। वहाँ के गिरजाघरों में पैंतीस हज़ार लोगों की व्यवस्था थी, जैसा कि सुदूर पश्चिम और दक्षिण में होता है, जहाँ हर कोई धर्मिक होता है, और जहाँ हर प्रोटेस्टेण्ट पंथ का कम से कम एक प्रतिनिधि और एक शाखा मौजूद है। लेकसाइड में दर्जे और हैसियतें नहीं थीं - कम से कम कोई इन्हें स्वीकारता नहीं था। हर कोई हर किसी को और उसके कुत्ते को जानता था, और सामाजिकता और दोस्ताने का माहौल व्याप्त रहता था।

सैलाडिन फ़ॉस्टर मुख्य स्टोर में खज़ांची था और लेकसाइड में अपने पेशे में अकेला ऊँची तनख़्वाह वाला शख़्स था। इस समय उसकी उम्र पैंतीस साल थी, वह चैदह साल से स्टोर में काम कर रहा था। उसने अपनी शादी वाले सप्ताह में चार सौ डॉलर सालाना पर काम शुरू किया था और चार साल तक हर साल सौ डॉलर के हिसाब से लगातार तरक़्क़ी करता रहा था। उस समय से उसकी तनख़्वाह आठ सौ पर टिकी हुई थी - लेकिन यह रक़म भी अच्छी-ख़ासी थी, और हर कोई मानता था कि वह इसके लायक़ था।

उसकी पत्नी, इलेक्ट्रा एक योग्य संगिनी थी, हालाँकि - उसी की तरह - वह भी सपने देखती थी और निजी तौर पर रोमांस का खेल भी खेलती थी। शादी के बाद उसने पहला काम यह किया कि शहर के किनारे पर एक एकड़ ज़मीन ख़रीदी और अपनी सारी जमा-पूँजी, पच्चीस डॉलर, से उसका नक़द भुगतान कर दिया। हालाँकि उस समय वह बच्ची ही थी, उसकी उम्र सिर्फ़ उन्नीस साल थी। सैलाडिन की पूँजी तो उससे भी पन्द्रह डॉलर कम थी। उसने वहाँ एक सब्ज़ी का बग़ीचा लगवाया, उस पर पड़ोसी से बँटाई पर ख़ेती शुरू करा दी और शत प्रतिशत मुनाफ़ा कमाने लगी। सैलाडिन की पहले साल की तनख़्वाह में से उसने तीस डॉलर बचत बैंक में जमा किये, दूसरे साल साठ डॉलर, तीसरे साल सौ डॉलर और चैथे साल डेढ़ सौ डॉलर। उसकी तनख़्वाह आठ सौ सालाना हो गयी, मगर इस बीच दो बच्चों ने आकर ख़र्चे बढ़ा दिये थे, फिर भी वह हर साल तनख़्वाह में से दो सौ डॉलर निकालती रहती थी। शादी के सात साल बाद उसने अपने बग़ीचे के बीच में दो हज़ार डॉलर ख़र्च करके एक सुन्दर और आरामदेह मकान बना लिया, आधा पैसा नक़द चुकाया और परिवार सहित उसमें रहने लगी। सात साल बाद उसका कर्ज़ उतर चुका था और कई सौ डॉलर की बचत उसके लिए ब्याज कमा रही थी।

वह भू-सम्पत्ति के दामों में बढ़त से भी कमाई कर रही थी, क्योंकि काफ़ी पहले उसने एक-दो एकड़ ज़मीन ख़रीदी थी और उसका ज़्यादा हिस्सा अच्छे मुनाफ़े पर ऐसे भले लोगों को बेच दिया था जो मकान बनाना चाहते थे और उसके बढ़ते परिवार के लिए अच्छे पड़ोसी होते। उसे क़रीब सौ डॉलर सालाना के सुरक्षित निवेश से अतिरिक्त आमदनी भी होती थी, उसके बच्चे शरीफ़ बच्चों की तरह बढ़ रहे थे, और वह एक सुखी व सन्तुष्ट महिला थी। वह अपने पति से ख़ुश थी, अपने बच्चों से ख़ुश थी, और पति व बच्चे उससे ख़ुश थे। इसी बिन्दु से इस इतिहास की शुरुआत होती है।

सबसे छोटी लड़की, क्लाइटेमनेस्ट्रा - जिसे क्लाइटी पुकारा जाता था - ग्यारह साल की थी। उसकी बहन ग्वेंडोलेन - जिसे ग्वेन कहते थे - तेरह की थी। दोनों सुन्दर और भली लड़कियाँ थीं। नामों से माँ-बाप के ख़ून में छिपे रोमांस का पुट मिलता था, और माँ-बाप के नामों से पता चलता था कि यह पुट उन्हें विरासत में मिला था। यह बड़ा स्नेहिल परिवार था, इसलिए उसके चारों सदस्यों के पुकार के नाम थे। सैलाडिन का नाम था सैली, और इलेक्ट्रा का अलेक। सारा दिन सैली एक भला और मेहनती खज़ांची और सेल्समैन बना रहता था, और सारा दिन अलेक एक भली और निष्ठावान माँ और गृहिणी, तथा समझदार व हिसाबी-किताबी व्यवसायी रहती थी, लेकिन रात को अपने सुखद लिविंग रूम में वे दुनिया के पचड़े किनारे कर देते थे और एक अलग ही दुनिया में जीते थे। एक-दूसरे को रूमानी कथाएँ पढ़कर सुनाते थे, सपने देखते थे और भव्य महलों तथा पुराने किलों की चमक-दमक और शानो-शौकत के बीच राजाओं, राजकुमारों और ठाठदार सामन्तों व सुन्दरियों के बीच विचरण करते थे।

अध्याय दो

तभी उन्हें शानदार ख़बर मिली! अद्भुत ख़बर - बल्कि, ख़ुशी से भर देने वाली ख़बर। वह पड़ोसी राज्य से आयी थी जहाँ परिवार का एकमात्रा जीवित रिश्तेदार रहता था। वह सैली का रिश्तेदार था - कुछ दूरदराज़ अनिश्चित-सा चाचा या चचेरा-ममेरा भाई जिसका नाम टिल्बरी फ़ॉस्टर था। उसकी उम्र सत्तर वर्ष थी, वह अविवाहित था, सुना जाता था कि उसकी माली हालत अच्छी थी और उसी के मुताबिक़ वह चिड़चिड़ा और बदमिज़ाज था। सैली ने एक बार, बहुत समय पहले उससे क़रीबी बनाने की कोशिश की थी और दुबारा फिर वह ग़लती नहीं की। अब टिल्बरी ने सैली को ख़त लिखा था कि वह जल्दी ही मर जायेगा और उसके नाम तीस हज़ार डॉलर नक़द छोड़ जायेगा। इसलिए नहीं कि वह उसे प्यार करता है, बल्कि इसलिए क्योंकि पैसा ही उसकी तमाम मुसीबतों और झंझटों की वजह रहा था, और वह उसे ऐसी जगह रखना चाहता था जहाँ इस बात की पूरी उम्मीद थी कि वह अपना घातक काम जारी रखेगा। यह बात उसकी वसीयत में लिखी होगी, और उसे भुगतान कर दिया जायेगा। बशर्ते, कि सैली वसीयत के निष्पादकों के सामने यह साबित कर सके कि उसने बोलकर या लिखकर इस उपहार पर कोई ध्यान नहीं दिया, मरणासन्न व्यक्ति की अपनी आख़िरी मंज़िल की दिशा में प्रगति के बारे में कोई पूछताछ नहीं की, और उसकी अन्त्येष्टि में शामिल नहीं हुआ था।

जैसे ही अलेक इस ख़त से पैदा हुई ज़बर्दस्त भावनाओं से एक हद तक उबरी, उसने सैली को रिश्तेदार के शहर भेजकर स्थानीय अख़बार की सदस्यता ले ली।

अब पति-पत्नी के बीच एक अलिखित समझौता हो गया, कि उस रिश्तेदार के ज़िन्दा रहते किसी के भी सामने इस शानदार ख़बर का ज़िक्र भी नहीं करेंगे, क्योंकि कौन जाने कोई अहमक़ मृत्यु शैया पर पड़े व्यक्ति तक यह ख़बर पहुँचा दे और उसे इस ढंग से पेश करे कि उन दोनों ने मनाही के बावजूद अपनी कृतज्ञता में वसीयत का उल्लंघन कर डाला है।

दिन भर सैली अपने हिसाब के बहीखातों में गड़बड़ करता रहा, और अलेक का किसी भी काम में मन लगाना मुश्किल हो गया, यहाँ तक कि कोई गमला या किताब या लकड़ी का टुकड़ा उठाते हुए भी वह यह भूल जाती थी कि वह इससे क्या करने वाली थी। वजह यह थी कि दोनों सपनों में खोये थे।

"ती-स हज़ार डॉलर!"

सारा दिन इन प्रेरणादायी शब्दों का संगीत उनके दिलो-दिमाग़ में गूँजता रहा।

शादी के दिन से ही, सारी कमाई अलेक की मुट्ठी में रहती थी, और सैली ने शायद ही कभी यह जाना था कि बिना ज़रूरत की चीज़ों पर भी कुछ पैसे ख़र्च कर देने का क्या सुख होता है।

"ती-स हज़ार डॉलर!" गीत लगातार चलता रहा। यह एक भारी रक़म थी, इतनी रक़म के बारे में उन्होंने कभी सोचा तक न था!

सारा दिन अलेक ऐसी योजनाएँ बनाने में डूबी रही कि इस पैसे को निवेश कैसे करेगी, और सैली यह योजनाएँ बनाने में कि उसे ख़र्च कैसे करेगा। उस रात कोई रोमांस की किताब नहीं पढ़ी गयी। बच्चे ख़ुद ही जल्दी सोने चले गये, क्योंकि उनके माँ-बाप ख़ामोश, परेशानहाल, और अजीब-से मनहूस लग रहे थे। बच्चों ने गुडनाइट कहकर जो पप्पी ली उस पर भी माँ-बाप का ध्यान नहीं गया, और बच्चों के चले जाने के घण्टा भर बाद कहीं उन्हें पता चला कि बच्चे अब वहाँ नहीं हैं। उस घण्टे के दौरान दो पेन्सिलें लगातार चल रही थीं - योजनाओं के नोट बनाये जा रहे थे। आखिरकार सैली ने सन्नाटा तोड़ा। ख़ुशी से भरकर वह बोल पड़ा:

"वाह, मज़ा आ जायेगा, अलेक! पहले एक हज़ार से हम गर्मियों के लिए एक घोड़ा और बग्घी खरीदेंगे, और सर्दियों के लिए एक कटर और चमड़े का लबादा।"

अलेक ने शान्त स्वर में निर्णायात्मक ढंग से उत्तर दिया -

"पूँजी से निकालकर? कत्तई नहीं। अगर दस लाख होते तब भी नहीं!"

सैली बिल्कुल हताश हो गया; उसके चेहरे की रौनक गुम हो गयी।

"ओह अलेक!" उसने दुखी होकर कहा। "हमने हमेशा ही इतनी कड़ी मेहनत की है फिर भी हमारा हाथ हरदम तंग रहा है। और अब जबकि हम अमीर हो गये हैं, तो ऐसा लगता है -" उसने बात पूरी नहीं की, क्योंकि उसने अलेक की आँखों में मुलायमियत देख ली थी; उसकी बातों ने अलेक का दिल छू लिया था। वह नर्मी से समझाते हुए बोली:

"प्यारे, हमें पूँजी को ख़र्च नहीं करना चाहिए, ये समझदारी नहीं होगी। इससे होने वाली आमदनी से -"

"मैं समझ गया, मैं समझ गया, अलेक! तुम कितनी प्यारी और अच्छी हो! इससे अच्छी-ख़ासी आमदनी होगी और अगर हम उसे ख़र्च करें -"

"सब नहीं मेरे प्यारे, सारा का सारा नहीं, लेकिन तुम इसका एक हिस्सा ख़र्च कर सकते हो। यानी एक तर्कसंगत हिस्सा। लेकिन पूरी की पूरी पूँजी - एक-एक पैसा - सीधे काम में लगनी चाहिए, और उसमें लगी रहनी चाहिए। तुम समझ रहे हो न कि यह बात कितनी जायज़ है, है न?"

"क्यों, अ-हाँ। हाँ, बिल्कुल। लेकिन हमें इतना इन्तज़ार नहीं करना पड़ेगा। बस छह महीने में ब्याज की पहली किस्त मिलने लगेगी।"

"हाँ - शायद ज़्यादा भी।"

"ज़्यादा, अलेक? भला क्यों? क्या वे छमाही भुगतान नहीं करते?"

"उस... तरह का ब्याज - हाँ; लेकिन मैं उस ढंग से निवेश नहीं करूँगी।"

"फिर किस तरह से?"

"बड़े फ़ायदे वाला।"

"बड़ा। ये तो अच्छा है। बोलती जाओ, अलेक। क्या होगा ये?"

"कोयला। नयी खदानें। कैनल। मेरा मतलब है हम दस हज़ार लगा सकते हैं। ग्राउण्ड फ़लोर। जब हम सब व्यवस्थित करेंगे, तो हमें एक के बदले तीन शेयर मिलेंगे।"

"क़सम से, सुनकर अच्छा लगता है, अलेक! और फिर शेयरों की क़ीमत हो जायेगी - कितनी? और कब?"

"लगभग एक साल। वे दस प्रतिशत छमाही भुगतान करेंगे, और क़ीमत होगी तीस हज़ार। मैं इसके बारे में सब जानती हूँ, यहाँ सिनसिनैटी के अख़बार में विज्ञापन छपा है।"

"वाह, दस के बदले तीस हज़ार - एक साल में! पूरी पूँजी इसी में लगा देते हैं और सीधे नब्बे बना लेते हैं! मैं अभी उन्हें ख़रीदने के लिए लिख देता हूँ - कल तक शायद देर हो जाये।"

वह लिखने की मेज़ की ओर लपका, लेकिन अलेक ने उसे रोककर वापस कुर्सी में बैठा दिया। उसने कहा:

"इस तरह बदहवास मत हो जाओ। हमें तब तक ख़रीदना नहीं चाहिए जब तक हमें पैसा मिल न जाये, तुम इतना भी नहीं समझते?"

सैली का उत्साह एकाध डिग्री ठण्डा हो गया, लेकिन वह पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं था।

"क्यों, अलेक, हमें वह मिलना ही है, तुम जानती हो - और वह भी बहुत जल्दी। वह शायद इससे पहले ही सारी चिन्ताओं से मुक्त हो चुके हों; मैं सौ की बाज़ी लगा सकता हूँ कि वह इसी समय नर्क में अपनी जगह चुन रहे होंगे। अब, मेरे ख़्याल से - "

अलेक सिहर उठी, और बोली:

"ऐसा कैसे कह सकते हो, सैली! इस तरह मत बोलो, यह तो एकदम भयंकर बात है।"

"ओह, ठीक, चाहो तो इसे पवित्रा बना लो, मुझे इससे मतलब नहीं कि उनका हाल क्या है, मैं तो बस बात कर रहा था। तुम किसी को बात भी नहीं करने दोगी?"

"मगर तुम ऐसे भयानक ढंग से बात करना चाहते ही क्यों हो? तुम्हें कैसा लगेगा अगर लोग तुम्हारे उपर जाने से पहले ही तुम्हारे बारे में इस तरह बात करें?"

"मेरे ख़्याल से, अव्वलन तो ऐसा शायद होगा नहीं, अगर मेरा आख़िरी काम किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए पैसे देना हो। मगर टिल्बरी की बात छोड़ो, अलेक, हम कुछ सांसारिक चीज़ों की बात करते हैं। मुझे लगता है कि पूरे तीस खदान में लगा देना ठीक होगा। तुम्हारी आपत्ति क्या है?"

"सारे दाँव एक ही खिलाड़ी पर - यही आपत्ति है।"

"अगर तुम कहती हो तो ठीक है। बाक़ी बीस का क्या? उससे तुम क्या करने वाली हो?"

"कोई जल्दी नहीं है; उससे कुछ भी करने से पहले मैं जाँच-पड़ताल करूँगी।"

"ठीक है, अगर तुमने मन बना ही लिया है," सैली ने आह भरकर कहा। कुछ देर गहरे सोच में डूबा रहा, फिर वह बोला:

"अब से एक साल बाद उस दस से बीस हज़ार का मुनाफ़ा आने लगेगा। हम उसे तो ख़र्च कर सकते हैं, है न अलेक?"

अलेक ने सिर हिलाया।

"नहीं प्यारे, " उसने कहा, "जब तक हमें छमाही लाभांश नहीं मिल जाता तब तक उसकी क़ीमत नहीं बढ़ेगी। तुम उसका एक हिस्सा खर्च कर सकते हो।"

"हुँह, बस उतना - और पूरा एक साल इन्तज़ार! भाड़ में जाये, मैं -!"

"ओह, धीरज रखो! यह तीन महीने में भी घोषित हो सकता है - इसकी पूरी सम्भावना है।"

"अरे वाह! ओह, शुक्रिया!" और सैली ने उछलकर उपकृत भाव से अपनी पत्नी को चूम लिया। "ये तीन हज़ार होंगे - पूरे तीन हज़ार! और इसमें से कितना हम ख़र्च कर सकते हैं, अलेक? जरा उदार होकर बताना - ज़रूर मेरी प्यारी, यह हुई न बात।"

अलेक खुश हो गयी, इतनी खुश कि वह दबाव में आ गयी और एक ऐसी राशि की हामी भर दी जो उसके हिसाब से बेवक़ूफ़ी भरी फिज़्ाूलखर्ची थी - एक हज़ार डॉलर। सैली ने उसे आधा दर्जन बार चूमा और तब भी वह अपनी सारी खुशी और कृतज्ञता जाहिर नहीं कर पाया। कृतज्ञता और स्नेह के इस नये प्रदर्शन से अलेक दूरदर्शिता की सीमाओं से पार निकल गयी, और इससे पहले कि वह अपने को रोक पाती उसने अपने प्यारे पति को एक और अनुदान दे दिया - वसीयत के बचे हुए बाक़ी बीस से वह साल भर में जो पचास या साठ हज़ार बनाने वाली थी उसमें से दो हज़ार! सैली की आँखों में खुशी के आँसू भर गये, और वह बोल उठा:

"ओह, मैं तुम्हें गले लगाना चाहता हूँ!" और उसने ऐसा ही किया। फिर वह अपने नोट्स लेकर बैठ गया और पहली ख़रीदारी के लिए पफेहरिस्तें बनाने लगा, कौन-कौन सी विलासिता की चीज़ें उसे सबसे पहले जुटा लेनी चाहिए। "घोड़ा-बग्घी-कटर-महँगा गाउन-पेटेण्ट लेदर-कुत्ता-प्लग-हैट-चर्च में बेंच-स्टेम-वाइंडर-नये दाँत - क्या कहती हो, अलेक! "

"हूँ?"

"जोड़ लगा रही हो, है न? यह भी ठीक है। क्या तुमने वे बीस हज़ार निवेश कर दिये हैं?"

"नहीं, उसकी कोई जल्दी नहीं है; मुझे पहले जाँच-पड़ताल करने और सोच लेने दो।"

"मगर तुम हिसाब लगा रही हो; किस चीज़ के बारे में?"

"क्यों, मुझे कोयले से मिलने वाले तीस हज़ार को भी तो कहीं लगाना है, है कि नहीं?"

"कमाल है, क्या दिमाग़ पाया है! मैंने तो उसके बारे में सोचा ही नहीं। कैसा चल रहा है? कहाँ पहुँची?"

"ज़्यादा दूर नहीं - दो-या तीन साल। मैं इसे दो बार पूरा लगा चुकी हूँ; एक बार तेल में और एक बार गेहूँ में।"

"अरे अलेक, ये तो शानदार है! कुल कितना हुआ?"

"मेरे ख़्याल से - वैसे, कम से कम एक लाख अस्सी हज़ार तो पक्का है, हालाँकि यह शायद ज़्यादा ही होगा।"

"बाप रे! है न जबर्दस्त? क़सम से! इतनी मेहनत के बाद आख़िरकार क़िस्मत हमारा साथ दे रही है, अलेक! "

"हुम्म?"

"मैं तो पूरे तीन सौ मिशनरियों को नक़द देने वाला हूँ - वरना हमें ख़र्च करने का क्या अधिकार होगा?"

"तुम इससे ज़्यादा भलाई का काम नहीं कर सकते, प्यारे; उदारता तो तुम्हारे स्वभाव में ही है, स्वार्थ तो तुममे है ही नहीं।"

तारीफ़ से सैली एकदम खुश हो गया, लेकिन उसने ईमानदारी दिखाते हुए कहा कि इसका श्रेय उसे नहीं बल्कि अलेक को है, क्योंकि वह न होती तो उसे पैसे मिलते ही नहीं।

फिर वे बिस्तर पर चले गये और परम सुख के सरसाम जैसी हालत में वे भूल ही गये और बैठकखाने में मोमबत्ती जलती छोड़ दी। उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि उन्होंने कपड़े भी नहीं उतारे थे। फिर सैली ने कहा कि उसे जलने दिया जाये; उसने कहा कि अगर वह हज़ार की भी हो तो भी वे उसका ख़र्च उठा लेंगे। मगर अलेक ने जाकर उसे बुझा दिया।

यह अच्छा ही रहा, क्योंकि वापस आते हुए उसे एक ऐसी योजना सूझी जो बाज़ार मन्दा पड़ने से पहले ही एक लाख अस्सी हज़ार को पाँच लाख में तब्दील कर देगी।

अध्याय तीन

अलेक ने जो अख़बार मँगाना शुरू किया था वह गुरुवार को छपता था। टिल्बरी के गाँव से पाँच सौ मील का सफ़र तय करके शनिवार को वहाँ पहुँचता था। टिल्बरी का पत्रा शुक्रवार को चला था। उनके उद्धारकर्ता के मरकर उस हफ़ते के अख़बार में जगह पाने के लिहाज़ से तो एक दिन से ज़्यादा की देर हो चुकी थी, लेकिन अगले अंक के लिए पर्याप्त समय था। इसलिए फ़ॉस्टर दम्पति को यह जानने के लिए लगभग एक सप्ताह इन्तज़ार करना पड़ा कि उसके साथ कुछ सन्तोषजनक हुआ है या नहीं। यह ख़ासा लम्बा सप्ताह था और इसका बोझ बड़ा भारी था। दम्पति के लिए इसे उठा पाना बहुत मुश्किल रहा होता अगर उनके दिमाग़ को आनन्ददायी भटकनों से राहत न मिलती। हम देख चुके हैं कि उन्हें ऐसी राहत मिल रही थी। पत्नी लगातार दौलत बटोरे जा रही थी, और पतिदेव उसे ख़र्च कर रहे थे - यानी, पत्नी उन्हें जो भी देने को राज़ी थी उसे ख़र्च कर रहे थे।

आखिरकार शनिवार आ गया और ‘वीकली सागामोर’ पहुँच गया। उस समय श्रीमती एवर्सली बेनेट मौजूद थीं। वह प्रेस्बिटेरियन पादरी की पत्नी थीं, और फ़ॉस्टर दम्पति को दान के लिए राज़ी करने में जुटी थीं। अचानक बातचीत की अकालमृत्यु हो गयी - फ़ॉस्टर दम्पति की ओर से। श्रीमती बेनेट को एकदम से पता चला कि उनके मेज़बान उनकी कही कोई बात सुन नहीं रहे; तो वह उठीं और हैरान-परेशान चली गयीं। जैसे ही वह घर से निकलीं, अलेक ने झपटकर अख़बार पर लिपटा काग़ज़ पफाड़ डाला और उसकी तथा सैली की आँखें मृत्यु-सूचना वाले कॉलमों पर दौड़ गयीं। अफ़सोस! टिल्बरी का कहीं नाम भी न था। अलेक जन्मजात ईसाई थी, और कर्तव्य तथा आदतवश उसे नियतक्रियाएँ करनी ही थीं। उसने ख़ुद को सँभाला, और टुँटपूँजिया व्यापारी के सात्विक ख़ुशी भरे लहजे में बोली:

"हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि वे अब भी जीवित हैं, और -"

"भाड़ में जाये चीमड़ कहीं कहा, मैं तो मनाता हूँ -"

"सैली! शर्म करो!"

"मुझे परवाह नहीं!" क्रु( पति ने पलटकर जवाब दिया। "यह तो अपनी-अपनी भावना है, और अगर तुम इस क़दर अनैतिक रूप से सात्विक न होती तो तुम भी ईमानदारी से यही कहती।"

अलेक ने चोटिल गरिमा के साथ कहा:

"मैं समझ नहीं पाती कि तुम ऐसी बुरी और अन्यायपूर्ण बातें कैसे कह सकते हो। अनैतिक सात्विकता जैसी कोई चीज़ नहीं होती।"

सैली को थोड़ी कचोट लगी, लेकिन उसने अपनी बात का रूप बदलकर उसे सही ठहराने की हिचकिचाहट भरी कोशिश में उसे छिपाने का प्रयास किया - मानो अन्तरवस्तु वही रखकर रूप बदल देने से वह उस विशेषज्ञ को चकमा दे सकता था जिसे वह मनाने की कोशिश कर रहा था। उसने कहा:

"अलेक, मेरा मतलब ऐसी बुरी बात कहना नहीं था; वाक़ई मेरा मतलब अनैतिक सात्विकता नहीं था, मेरा बस मतलब था - मतलब - पारम्परिक सात्विकता था, यानी; अ-अ-कामकाजी सात्विकता; वो-वो, तुम जानती ही हो मेरा क्या मतलब था। अलेक - वो-अरे, जब आप उस चीज़ को लेते हैं और उसके हिसाब से सोचने लगते हैं, तुम जानती ही हो, कुछ ग़लत इरादा किये बिना, बस आदतवश, पुरानी नीति, जड़ रीति-रिवाज, वफ़ादारी - छोड़ो, मुझे सही शब्द नहीं मिल रहे, मगर तुम जानती हो मेरा मतलब क्या है, अलेक, और यह भी कि इसमें कुछ हर्ज नहीं है। मैं फिर कोशिश करता हूँ। देखो, बात यह है। अगर कोई इन्सान -"

"तुम काफ़ी कह चुके," अलेक ठण्डे स्वर में बोली; "अब यह बात बन्द करो।"

"मैं तैयार हूँ," सैली ने तुरन्त जवाब दिया, उसने माथे से पसीना पोछा और उसकी कृतज्ञता बिना शब्दों के ही चेहरे से झलक रही थी। हार मानकर अब वह पूरी तरह हथियार डाल चुका था। अलेक ने उसे आँखों से क्षमादान दे दिया।

महान हित, सर्वोच्च हित, तत्काल एक बार फिर उभरकर सामने आ गया; कोई भी चीज़ उसे लगातार कई मिनटों तक पृष्ठभूमि में नहीं रख सकती थी। दम्पति टिल्बरी की मृत्यु सूचना की अनुपस्थिति की पहेली सुलझाने में लग गये। उन्होंने कमोबेश आशावादी ढंग से हर प्रकार से चर्चा कर ली, मगर वे फिर-फिर वहीं पहुँच जाते जहाँ से शुरू किया था, और उन्हें मानना पड़ता कि नोटिस न छपने की एकमात्रा तर्कसंगत वजह यही होनी चाहिए - और निस्सन्देह यही थी - कि टिल्बरी मरा नहीं था। यह कुछ उदासी भरा था, यहाँ तक कि शायद कुछ अन्यायपूर्ण भी, मगर जो था वह था, और इसके साथ ही गुज़ारा करना था। वे इस पर सहमत हो गये। सैली के लिए यह कुछ विचित्रा अबूझ-सी बात थी; उसने सोचा, यह सामान्य से ज़्यादा अबूझ थी; बल्कि उसकी याददाश्त में सबसे ग़ैरज़रूरी अबूझ बातों में से एक थी - और उसने थोड़ा भावुक होकर ऐसा कहा भी; लेकिन अलेक को भी इसमें खींचने की कोशिश में वह नाकाम रहा; उसने अपनी राय जाहिर नहीं की, अगर उसकी कोई राय थी भी। उसे किसी भी बाज़ार में, सांसारिक या इससे इतर, नासमझी भरे जोखिम लेने की आदत नहीं थी।

दम्पति को अगले सप्ताह के अख़बार का इन्तज़ार करना पड़ेगा - लगता था कि टिल्बरी ने अपना जाना टाल दिया है। उनकी यही सोच और यही फ़ैसला था। सो उन्होंने इस विषय को छोड़ दिया और यथासम्भव ख़ुशमिज़ाजी के साथ अपने काम में लग गये।

मगर, काश उन्हें पता होता, वे लगातार टिल्बरी के साथ अन्याय कर रहे थे। टिल्बरी ने वचन निभाया था, पूरी तरह निभाया था, वह मर चुका था, वह तय कार्यक्रम के अनुसार मर चुका था। उसे मरे हुए चार दिन बीत चुके थे और वह बिल्कुल मृत था, शत-प्रतिशत मृत, इतना मृत जितना कब्रिस्तान में आया कोई भी नया मुर्दा था; उसे मरे हुए इतना पर्याप्त समय था कि उस सप्ताह के सागामोर में भी आ सकता था, मगर सिर्फ़ एक दुर्घटना ने इसे रोक दिया। एक ऐसी दुर्घटना जो किसी महानगर के अख़बार के साथ नहीं हो सकती थी मगर जो ‘सागामोर’ जैसे गाँव के मामूली अख़बार में आसानी से हो जाती है। इस मौक़े पर, जैसे ही सम्पादकीय पृष्ठ को अन्तिम रूप दिया जा रहा था उसी समय होस्टेटर्स लेडीज़ एंड जेंट्स आइसक्रीम पार्लर से स्ट्राबेरी आइसवाटर का गैलन आ पहुँचा और सम्पादक की कृतज्ञता ज्ञापन के लिए टिल्बरी की ख़बर को हटना पड़ा।

कम्पोज़ीटर के पास पहुँचने के पहले ही टिल्बरी की नोटिस दब गयी। वरना वह भविष्य के किसी संस्करण में जा सकती थी, क्योंकि ‘वीकली सागामोर’ जैसे अख़बार "ज़िन्दा" सामग्री को बर्बाद नहीं करते, और उनकी गैलियों में "ज़िन्दा" सामग्री अमर होती है जब तक कि ऐसी कोई दुर्घटना न हो जाये। और इस तरह, टिल्बरी चाहे या न चाहे, वह अपनी क़ब्र में चाहे जितनी करवट बदले - उसकी मृत्यु का उल्लेख कभी भी ‘वीकली सागामोर’ में नहीं होगा।

अध्याय चार

पाँच उकताहट भरे सप्ताह बीत गये। ‘सागामोर’ हर शनिवार नियमित रूप से आता रहा, मगर कभी एक बार भी उसमें टिल्बरी फ़ॉस्टर का उल्लेख नहीं था। इस बिन्दु पर सैली का धैर्य जवाब दे गया, और उसने चिढ़कर कहा:

"न जाने क्या खाता है, वह तो अमर है!"

अलेक ने उसे बहुत तीखी झिड़की दी, और सर्द गम्भीरता से कहा:

"तुम्हें कैसा लगता अगर ऐसी घटिया बात तुम्हारे मुँह से निकलते ही तुम अचानक टें बोल जाते?"

पर्याप्त सोच-विचार के बिना ही सैली ने जवाब दिया:

"मुझे लगता कि मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि मैं इसे अन्दर रखे हुए नहीं चला गया।"

छह महीने और बीत गये। ‘सागामोर’ अब भी टिल्बरी के बारे में ख़ामोश था। इस बीच, सैली ने कई बार इशारे किये थे। अलेक ने ऐसे इशारों की अनदेखी कर दी थी। सैली ने अब तय कर लिया कि सीधे हमले का जोखिम उठायेगा। इसलिए उसने सीधे प्रस्ताव किया कि वह भेष बदलकर टिल्बरी के गाँव जायेगा और गुपचुप ढंग से सम्भावनाओं का पता लगायेगा। अलेक ने इस ख़तरनाक परियोजना पर जोशीले और फ़ैसलाकुन ढंग से रोक लगा दी। उसने कहा:

"भला तुम सोच क्या रहे हो? तुम मुझे चैन नहीं लेने देते! हर समय, बच्चे की तरह तुम पर नज़र रखनी पड़ती है कि कहीं मुसीबत में न पड़ जाओ। तुम कहीं नहीं जाओगे! "

"क्यों, अलेक, मैं ऐसा कर सकता हूँ और किसी को पता नहीं चलेगा - मुझे पक्का भरोसा है।"

"सैली फ़ॉस्टर, क्या तुम्हें पता नहीं कि तुम्हें पूछताछ करनी होगी?"

"बेशक़, मगर इससे क्या? किसी को शक़ नहीं होगा कि मैं कौन था?"

"ओह, जरा इनकी सुनो! किसी दिन तुम्हें वसीयत लागू करने वालों के सामने साबित करना होगा कि तुमने कभी पूछताछ नहीं की थी। तब क्या होगा?"

वह इस बात को तो भूल ही गया था। उसने जवाब नहीं दिया; कुछ कहने को था ही नहीं। अलेक ने आगे जोड़ा:

"अब चलो, दिमाग़ से यह बात निकाल दो, और फिर कभी मत लाना। टिल्बरी ने तुम्हारे लिए यह जाल बिछाया है। जानते नहीं, यह एक जाल है? वह नज़र रखे हुए है, और उसे उम्मीद है कि तुम उसमें पफँस जाओगे। लेकिन वह मायूस होने वाला है - कम से कम जब तक मैं सामने हूँ, सैली! "

"तो?"

"जब तक तुम ज़िन्दा हो, चाहे सौ बरस, तुम कभी पूछताछ नहीं करोगे। वादा करो! "

"ठीक है, " हिचकिचाहट भरी आह के साथ।

फिर अलेक नर्म पड़ गयी और बोली:

"अधीर न हो। हम अमीर हो रहे हैं; हम इन्तज़ार कर सकते हैं; कोई जल्दी नहीं है। हमारी छोटी-सी पक्की आमदनी लगातार बढ़ रही है; और जहाँ तक भविष्य की बात है, मैंने अभी तक कोई ग़लती नहीं की है - यह हज़ारों और दसियों हज़ार के हिसाब से बढ़ रही है। राज्य में कोई और परिवार ऐसा नहीं है जो हमारी तरह अमीर होने वाला हो। हम तो अभी से भावी सम्पत्ति में डूबने-उतराने लगे हैं। तुम जानते हो, जानते हो न?"

"हाँ, अलेक, बिल्कुल ऐसा ही है।"

"फिर ईश्वर हमारे लिए जो कर रहा है उसके शुक्रगुज़ार रहो और चिन्ता करना बन्द करो। तुम्हें ऐसा तो नहीं लगता न कि हम उसकी विशेष मदद और रहनुमाई के बिना ऐसे शानदार नतीजे हासिल कर सकते थे, क्यों?"

हिचकिचाते हुए, "न-नहीं, मेरे ख़्याल से नहीं।" फिर, भावना और सराहना के साथ, "लेकिन फिर भी, जब किसी शेयर को बढ़ाने या वालस्ट्रीट से मुनाफ़ा कमाने की बात हो तो मैं नहीं मानता कि तुम्हें किसी बाहरी ग़ैरपेशेवर मदद की ज़रूरत होगी, मैं तो यह मनाता हूँ -"

"ओह, चुप रहो! मैं जानती हूँ प्यारे, कि तुम्हारा मतलब ग़लत या अश्रद्धा जताना नहीं है, लेकिन लगता है कि तुम ऐसी बातें बोले बिना मुँह नहीं खोल सकते जिन्हें सुनकर कोई भी काँप उठेगा। तुम्हारी वजह से मैं हमेशा डरी रहती हूँ। एक समय था जब मुझे बादल गरजने से डर नहीं लगता था, मगर अब जब मैं सुनती हूँ -"

उसकी आवाज़ लड़खड़ा गयी और वह रोने लगी। यह देखकर सैली के दिल पर ठेस लगी और उसने बाँहों में लेकर उसे ढाँढस बँधाया और वादा किया कि वह बेहतर आचरण करेगा और पश्चाताप करते हुए उससे माफी माँगी।

और अकेले में, उसने गहराई से इस मुद्दे पर सोचा कि क्या करना बेहतर होगा। सुधरने का वादा करना आसान था, बल्कि वह तो वादा कर चुका था। लेकिन यह तो अस्थायी होगा - वह अपनी कमज़ोरी जानता था - वह वादा निभा नहीं सकता था। कोई ज़्यादा सुनिश्चित काम करना ज़रूरी था। और उसने ऐसा ही किया। उसने एक-एक शिलिंग जोड़कर जो पैसे बचाये थे उनसे मकान की छत पर बिजली गिरने से रोकने वाली छड़ लगवा ली।

आदत कैसे-कैसे चमत्कार कर सकती है! और कितनी जल्दी और कितनी आसानी से आदतें पड़ जाती हैं - मामूली आदतें भी और ऐसी भी जो हमें भीतर से बदल देती हैं। अगर हम दुर्घटनावश लगातार दो दिन रात के दो बजे जाग जायें, तो हमें थोड़ा परेशान होना चाहिए, क्योंकि एक और दोहराव इस दुर्घटना को आदत में बदल सकता है, और फिर एक महीने तक व्हिस्की का सहारा लेना पड़ सकता है - लेकिन हम सब ऐसे सामान्य तथ्यों से वाकिफ़ हैं।

हवा में किले बनाने की आदत, दिवास्वप्न देखने की आदत - किस क़दर बढ़ती है ये! कैसी विलासिता बन जाती है; किस तरह हम फ़ुरसत मिलते ही उड़कर इसके मोहजाल में जा पहुँचते हैं, किस तरह हम उसका मजा लेते हैं, उसकी पफन्तासियों के नशे में डूब जाते हैं - ओह हाँ, और कितनी जल्दी और कितनी आसानी से हमारा कल्पित जीवन और हमारा भौतिक जीवन इस क़दर घुल-मिल जाते हैं कि हमारे लिए उन्हें अलग करना मुश्किल हो जाता है।

कुछ दिन बाद अलेक ने शिकागो का एक दैनिक और ‘वालस्ट्रीट प्वाइंटर’ मँगाना शुरू कर दिया। पूरे सप्ताह वह उसी अध्यवसाय के साथ इनका अध्ययन करती थी जिस अध्यवसाय से वह इतवार को अपनी बाइबिल पढ़ती थी। सैली यह देखकर सराहना से भर उठता था कि भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों ही बाज़ारों की प्रतिभूतियों का पूर्वानुमान करने और उन्हें सँभालने में उसकी प्रतिभा और निर्णय क्षमता कैसे तेज और सुनिश्चित क़दमों से आगे बढ़ रही थी और विस्तारित हो रही थी। वह नश्वर संसार के शेयरों का लाभ उठाने में उसकी हिम्मत और साहस पर गर्व करता था, और उतना ही गर्व से इस बात पर था कि वह अपने आध्यात्मिक सौदों में कितनी रूढ़िवादी सावधानी से काम करती है। उसने देखा कि वह दोनों ही मामलों में कभी भी सन्तुलन नहीं खोती; कि अद्भुत साहस के साथ वह सांसारिक भावी कारोबारों में दाँव लगाती है लेकिन दूसरी दुनिया के सौदों में वह हमेशा नापतौल कर क़दम रखती है। इसकी नीति बिल्कुल समझदारी भरी और सीधी-सादी थी, जैसा कि उसने उसे समझाया था: सांसारिक सौदों में वह सट्टेबाज़ी करती थी, लेकिन आध्यात्मिक सौदों में वह खरा निवेश करती थी।

अलेक और सैली की कल्पनाओं को शिक्षित करने में कुछ ही महीने लगे। हर दिन का प्रशिक्षण दोनों मशीनों के प्रसार और प्रभाविता में कुछ नया जोड़ता गया। नतीजतन, अलेक ने जब पहली बार काल्पनिक धन कमाने का स्वप्न देखा था तब के मुक़ाबले बहुत तेज दर से पैसे बनाने लगी, और इसके अतिरिक्त बहाव को ख़र्च करने में सैली की क्षमता भी उसी के मुताबिक बढ़ती रही। शुरू-शुरू में, अलेक ने कोयले में सट्टेबाज़ी से बारह महीने में मुनाफ़ा मिलने का सोचा था, और यह मानने को तैयार नहीं थी कि इस अवधि को घटाकर नौ महीने किया जा सकता है। मगर यह तो एक ऐसी वित्तीय कल्पना के शुरुआती लड़खड़ाते क़दम थे जिसे कोई प्रशिक्षण, कोई अनुभव, कोई अभ्यास नहीं मिला था। जल्दी ही ये सहायक मिल गये, और नौ महीने बीतने से भी पहले ही कल्पना के घोड़ों पर सवार दस हज़ार डॉलर का निवेश पीठ पर तीन सौ प्रतिशत मुनाफ़े की गठरी लादे हुए लौट आया!

यह फ़ॉस्टर दम्पति के लिए एक शानदार दिन था। खुशी से पफूले न समा रहे थे। एक अन्य कारण से भी वे अवाक् थेः बाज़ार पर काफ़ी नज़र रखने के बाद अलेक ने, हाल ही में, डरते-सकुचाते, वसीयत के बचे हुए बीस हज़ार डॉलर भी जोखिम लेकर "मार्जिन’ पर निवेश कर दिये थे। अपनी मन की आँखों से इसे एक-एक अंक बढ़ते देखा था - हालाँकि बाज़ार टूटने की आशंका हमेशा बनी हुई थी - मगर आखिरकार उसके लिए लगातार उद्विग्नता को झेलना मुश्किल हो गया - वह मार्जिन कारोबार में नयी थी और अभी उसका कलेजा मज़बूत नहीं हुआ था - और उसने अपने काल्पनिक ब्रोकर को काल्पनिक टेलीग्रापफ भेजकर उसे बेच डालने का काल्पनिक आदेश दे डाला। उसने कहा कि चालीस हज़ार डॉलर का मुनाफ़ा पर्याप्त था। यह बिकवाली उसी दिन हुई जिस दिन कोयले का निवेश अपनी भारी कमाई लेकर वापस आया था। जैसा मैंने कहा, दम्पति अवाक् थे। वे उस रात परम सुख में लीन चकराये हुए-से बैठे यह अनुभव करने की कोशिश करते रहे कि अब वे सचमुच एक लाख डॉलर की साफ़-सुथरी, काल्पनिक नक़दी के मालिक थे। मगर ऐसा ही था।

यह आख़िरी मौक़ा था जब अलेक मार्जिन को लेकर डरी थी; कम से कम इतना डरी थी कि उसकी नींद उड़ जाये और उसके गाल इतने पीले पड़ जाये जितना इस कारोबार के पहले अनुभव के समय हुए थे।

वाक़ई वह यादगार रात थी। दम्पति की आत्माओं में यह अहसास धीरे-धीरे समाया कि वे अमीर हो चुके हैं, फिर उन्होंने पैसे को सँभालकर रखना शुरू कर दिया। अगर हम इन स्वप्नदर्शियों की आँखों से देख सकते तो हमने देखा होता कि उनका छोटा-सा, साफ़-सुथरा लकड़ी का घर ग़ायब हो गया और उसकी जगह ईंटों का दोमंजिला मकान खड़ा हो गया है जिसके सामने ढलवाँ लोहे की बाड़ लगी है। हमने देखा होता कि बैठकखाने की छत से तीन गोलम्बरों वाला गैस से जलने वाला पफानूश लटक रहा है; हमने कमरे में बिछी दरी को ब्रसेल्स के शानदार कालीन में बदलते देखा होता; हमने देखा होता कि मामूली आतिशदान ग़ायब हो गया और उसकी जगह इसिंग्लास की खिड़कियों वाला बड़ा-सा बेसबर्नर शोभायमान है। और हमने दूसरी बहुत-सी चीज़ें भी देखी होतीं, मसलन, बग्घी, गाउन, स्टोव-पाइप हैट वग़ैरह-वग़ैरह।

उस समय से, हालाँकि बेटियों और पड़ोसियों को उस जगह पर वही पुराना लकड़ी का घर दिखता था, मगर अलेक और सैली के लिए वह दोमंज़िला ईंटों का मकान था और एक रात भी ऐसी नहीं गुजरती थी जब अलेक काल्पनिक गैस के बिलों को लेकर चिन्ता न करती, और सैली बेपरवाही से जवाब देता: "क्या पफर्क पड़ता है? अब हम इसका ख़र्च उठा सकते हैं।"

अमीर होने की अपनी पहली रात को सोने से पहले उन्होंने तय किया कि उन्हें जश्न मनाना चाहिए। उन्हें एक पार्टी देनी चाहिए। मगर बेटियों और पड़ोसियों को क्या बतायेंगे? वे इस तथ्य को उजागर नहीं कर सकते थे कि वे अमीर हैं। सैली ऐसा करने को तैयार, बल्कि बेचैन था; मगर अलेक समझदार थी और ऐसा नहीं होने दे सकती थी। उसने कहा हालाँकि पैसा लगभग आ ही चुका है, फिर भी उसके वास्तव में आ जाने का इन्तज़ार कर लेना अच्छा होगा। वह इस नीति पर अडिग रही थी इस महान रहस्य को बेटियों से और बाक़ी सबसे छिपाकर रखा जाये।

दम्पति उलझन में थे। उन्हें जश्न मनाना ही चाहिए, वे जश्न मनाने को कृतसंकल्प थे, मगर चूँकि इस रहस्य को बनाये रखना था, तो फिर वे किस बात का जश्न मनाते? अगले तीन महीनों तक किसी का जन्मदिन नहीं था। टिल्बरी उपलब्ध नहीं था, वह तो जैसे सदा सदा के लिए जीवित रहने वाला था, फिर भला किस बात का जश्न वे मनाते? सैली ने इसी ढंग से यह बात कही और वह ख़ासा अधीर और परेशान हो रहा था। मगर आखिरकार उसे सूझ ही गया - एक अन्तःप्रेरणा से उसे यह बात सूझी और पल भर में उनकी सारी परेशानी दूर हो गयी; वे अमेरिका की खोज का जश्न मनायेंगे। कैसा शानदार विचार था!

अलेक को सैली पर फ़ख्र हो आया - उसने कहा वह तो कभी सोच भी न पाती। सैली मन ही मन खुशी और अपने आप पर गर्व से पफूला हुआ था, मगर शिष्टता दिखाते हुए उसने कहा कि यह तो कोई खास बात नहीं है और कोई भी ऐसा कर सकता था। इस पर अलेक ने खुशी से सिर झटककर कहा:

"ओह, सचमुच! कोई भी - जैसे, होसन्ना डिलकिन्स! या शायद एडलबर्ट पीनट - ओह, हाँ! मैं भी देखती कि उन्हें यह बात कैसे सूझती। अरे वह चालीस एकड़ के टापू की खोज नहीं कर सकते, पूरे महाद्वीप की भला क्या खाकर करते!"

पत्नी जानती थी कि उसके पति में प्रतिभा है; और अगर प्रेमवश उसने इसकी मात्रा को ज़रा ज़्यादा ही आँक लिया, तो यह मीठा-सा, प्यारा-सा जुर्म था और बेशक़ इसे मापफ किया जा सकता था।

अध्याय पाँच

जश्न अच्छी तरह मनाया गया। तमाम दोस्त मौज़ूद थे, नौजवान और बुज़ुर्ग और दोनों ही नौजवानों में थे "रलॉसी और ग्रेसी पीनट और उनका भाई एडलबर्ट जो कि एक उभरता हुआ युवा जर्नीमैन टिनर था, और था होसन्ना डिलकिन्स, राजमिस्त्राी जिसने अभी-अभी अप्रेण्टिसशिप शुरू की थी। कई महीनों से एडलबर्ट और होसन्ना ग्वेनडोलेन और क्लिटेमनेस्ट्रा फ़ॉस्टर में दिलचस्पी दिखा रहे थे, और लड़कियों के माता-पिता ने इसे सन्तुष्ट भाव से देखा था। मगर अब अचानक उन्हें महसूस हुआ कि वह भावना तिरोहित हो चुकी है। वे समझ गये कि बदली हुई वित्तीय स्थितियों ने उनकी बेटियों और युवा मैकेनिकों के बीच एक सामाजिक पायदान का अन्तर ला दिया है। बेटियाँ अब और उपर देख सकती हैं - और उन्हें देखना ही चाहिए। हाँ, ज़रूर देखना चाहिए। उन्हें वक़ील या व्यापारी के दर्जे से नीचे शादी करने की ज़रूरत नहीं है, पापा और मम्मी बाक़ी चीज़ों का ध्यान रख लेंगे। कोई बेमेल जोड़ी नहीं बननी चाहिए।

लेकिन उनकी यह सोच और योजनाएँ निजी थीं, और सतह पर नहीं दिखायी देती थीं और इसलिए जश्न पर इसकी कोई छाया नहीं पड़ी। जो चीज़ दिखती थी वह थी एक प्रशान्त और उदात्त सन्तुष्टि, चाल-ढाल की गरिमा और बर्ताव का गुरुत्व जिसके चलते तमाम मौजूद लोगों में प्रशंसा और अचरज का भाव उत्पन्न हो रहा था। सभी ने इस पर ध्यान दिया और सबने इस पर टिप्पणी भी की मगर कोई भी इसके रहस्य को समझ न सका। यह उनके लिए एक चमत्कार और रहस्य था। कई लोगों ने इस तरह की टिप्पणियाँ कीं, बिना यह जाने कि वे अँधेरे में कितना सटीक निशाना लगा रहे थे:

"लगता है जैसे उन्हें गड़ा ख़ज़ाना मिल गया है।"

हाँ, वाक़ई ऐसा ही था। अधिकांश माँओं ने वैवाहिक मामले को पुराने परम्परागत ढंग से लिया होता; उन्होंने लड़कियों को बुलाकर बात की होती, गम्भीर क़िस्म की और बिना सूझबूझ के - ऐसा भाषण जो अपने ही उद्देश्य को असपफल करने के लिए तैयार किया गया था, जिससे आँसू और गुप्त बग़्ाावत उत्पन्न होती, और इन माँओं ने युवा मैकेनिकों को अपना ध्यान कहीं और लगाने को कहकर मामला और बिगाड़ दिया होता। मगर यह माँ अलग थी। वह व्यावहारिक थी। उसने किसी भी सम्बन्धित युवा से, या किसी भी अन्य से कुछ नहीं कहा, सिवाय सैली के। उसने पत्नी की बात सुनी और समझी; समझी और सराहना की। उसने कहा:

"मैं समझ गया। सैम्पलों में ग़लती निकालने, और इस तरह बेवजह भावनाओं को ठेस पहुँचाने और व्यापार में रुकावट डालने के बजाय, तुम पैसे के बदले ज़्यादा उफँचे दर्जे का माल पेश कर रही हो और बाक़ी काम क़ुदरत पर छोड़ रही हो। यह अक़्लमन्दी है, अलेक, पक्की अक़्लमन्दी, और एकदम ठोस। तुम किस मछली पर काँटा लगा रही हो? क्या तुमने उसे छाँट लिया है?"

नहीं, अभी नहीं किया है। उन्हें बाज़ार की पड़ताल करनी चाहिए - और उन्होंने ऐसा ही किया। सबसे पहले उन्होंने उभरते हुए युवा वक़ील ब्रैंडिश, और उभरते हुए युवा डेंटिस्ट पफुल्टन पर सोच-विचार किया। सैली को उन्हें डिनर पर बुलाना चाहिए। मगर अलेक ने कहा, अभी नहीं, कोई जल्दी नहीं है। जोड़े पर नज़र रखो, और इन्तज़ार करो; इतने महत्वपूर्ण मामले में धीरे चलने से कुछ नुकसान नहीं होगा।

मालूम हुआ कि यह बड़ी अक़्लमन्दी की बात थी; क्योंकि तीन हफ़ते में ही अलेक ने एक शानदार दाँव मारा जिससे उसकी काल्पनिक सम्पत्ति एक लाख से बढ़कर चार लाख तक पहुँच गयी। वह और सैली उस शाम सातवें आसमान पर थे। पहली बार उन्होंने डिनर में शैम्पेन पेश की। मगर अब अमीरी का दर्प अपना विखण्डनकारी काम शुरू कर चुका था। वे एक बार फिर इस दुखद सत्य को साबित कर रहे थे जो दुनिया में पहले अनेक बार साबित हो चुका था: कि दिखावटी और अधःपतनकारी घमण्ड और दुव्र्यसनों के विरु( उसूल एक बड़ी और अहम सुरक्षा होते हैं, मगर ग़रीबी इससे कई गुना बड़ी सुरक्षा होती है। चार लाख डॉलर अपना काम कर रहे थे। दोनों ने एक बार फिर वैवाहिक मसले को हाथ में लिया। न तो डेंटिस्ट की चर्चा हुई न ही वक़ील की; वे दौड़ से बाहर हो चुके थे। अयोग्य सि( हो चुके थे। उन्होंने मांस कारखाने के मालिक के लड़के और गाँव के बैंकर के लड़के की चर्चा की। मगर आखिरकार, पिछले मामले की ही तरह, उन्होंने तय किया कि इन्तज़ार करेंगे और सोचेंगे, और पूरी सावधानी से क़दम उठायेंगे।

एक बार फिर क़िस्मत ने उनका साथ दिया। हमेशा चैकन्ना रहने वाली अलेक को एक शानदार जोखिमभरा मौक़ा नज़र आया, और उसने एक साहसिक दाँव खेल लिया। सिहरन, सन्देह, बेहिसाब बेचैनी का एक दौर चला क्योंकि नाकामयाबी का मतलब था पूरी बरबादी। फिर नतीजा आया, और अलेक खुशी से गश खाती हुई बोली; उसकी आवाज़ लरज रही थी:

"सस्पेंस ख़त्म हो गया, सैली - हमारे पास पूरे दस लाख हैं!"

सैली कृतज्ञता से रो पड़ा, और बोला:

"ओह, इलेक्ट्रा, मेरी रानी, आखिरकार हम आज़ाद हो गये, अब दौलत हमारे क़दमों में है, अब हमें फिर कभी जोड़-तोड़ नहीं करनी पड़ेगी। यह तो मौक़ा है वोव क्लिको की बोतल खोलने का। और उसने स्प्रूस-बियर का एक कैन निकाला और क़ुर्बानी के अन्दाज़ में बोला, "जो भी खर्च हो देखा जायेगा।" और अलेक ने उसे उलाहनेभरी मगर तरल और खुश आँखों से मीठी झिड़की दी। उन्होंने मांस कारखाने के मालिक के बेटे और बैंकर के बेटे को छोड़ दिया और बैठकर गर्वनर के बेटे और सांसद के बेटे पर विचार करने लगे।

अध्याय छह

इस समय से फ़ॉस्टर का काल्पनिक धन जिस तरह दिन दूनी रात चैगुनी रफ़तार से बढ़ने लगा उसका ब्यौरेवार ध्यान रखना बहुत थकाउफ होगा। यह अद्भुत था, आश्चर्यजनक था, हैरतअंगेज़ था। अलेक जिस चीज़ को छूती वह सोना बन जाती और ख़ुद-ब-ख़ुद उसका ढेर आसमान की ओर उफँचा उठने लगता। दसियों लाख डॉलरों की झड़ी लग गयी, और यह शक्तिशाली धारा बढ़ती ही जा रही थी, उसका पफैलाव लगातार बढ़ रहा था। पचास लाख - एक करोड़ - दो करोड़ - तीन करोड़ - लगता था मानो इसका अन्त ही न होगा।

दो साल ऐसे ही अद्भुत सरसाम की हालत में बीत गये, मदमत्त फ़ॉस्टर दम्पति को समय बीतने का एहसास ही न हुआ। अब वे तीस करोड़ डालर के मालिक थे; वे देश की हर अहम कम्पनी के बोर्ड आपफ डायरेक्टर्स में थे; और फिर भी समय बीतने के साथ करोड़ों में इजाफ़ा होता जा रहा था। तीस करोड़ दोगुने हो गये - फिर दुबारा दुगुने - एक बार फिर - और एक बार फिर। दो सौ चालीस करोड़ डॉलर!

कारोबार थोड़ा उलझता जा रहा था। थोड़ा हिसाब-किताब लगाना और इसे पटरी पर लाना ज़रूरी था। फ़ॉस्टर दम्पति यह बात जानते थे, वे इसे महसूस करते थे, वे समझते थे कि यह अपरिहार्य; लेकिन वे यह भी जानते थे कि इस काम को ठीक से करने के लिए ज़रूरी है कि एक बार शुरू करके इसे अंजाम तक पहुँचा दिया जाये। यह दस घण्टे का काम था; और उन्हें एक साथ पफुरसत के दस घण्टे कहाँ से मिलते? सैली रोज़-ब-रोज़ पिनें और चीनी और कपड़ा बेचता रहता था; अलेक रोज़-ब-रोज़ खाना पकाती, बर्तन धोती, झाड़ू-बुहारू करती और बिस्तर लगाती थी, और मदद के लिए कोई नहीं था, क्योंकि बेटियों को हाई सोसायटी के लिए बचा कर रखा जा रहा था। दोनों जानते थे कि दस घण्टे निकालने का बस एक तरीक़ा था, सिर्फ़ एक। दोनों ही उसका नाम लेने में शरमाते थे; दोनों इन्तज़ार में थे कि दूसरा ऐसा कर दे। आखिरकार, सैली ने कहा:

"किसी को तो झुकना ही होगा। तो मैं ही सही। मान लो कि मैंने नाम ले दिया - बोलने की ज़रूरत नहीं है।"

अलेक के गाल लाल हो गये, मगर वह कृतज्ञ थी। बिना कुछ बोले वे राजी हो गये; और इतवार की प्रार्थना छोड़ दी। क्योंकि यही एक समय था जब वे दस घण्टे खाली रहते थे। पतन के रास्ते पर यह तो बस एक और क़दम था। अभी बहुत कुछ और होना था।

उन्होंने पर्दे गिरा दिये और प्रार्थना छोड़ दी। बड़ी मेहनत और धीरज से उन्होंने अपने मालिकाने की पूरी सूची बनायी। यह तो भारी-भरकम नामों का पूरा जुलूस था! रेलवे सिस्टम, स्टीमर लाइंस, स्टैण्डर्ड आॅयल, ओशन केबल्स, डायल्यूटेड टेलीग्रापफ आदि-आदि से शुरू होकर यह क्लोंडाइक, डी बियर्स, टैमनी ग्रा"रट और पोस्टआॅफिस डिपार्टमेण्ट में खातों तक जाती थी।

दो सौ चालीस करोड़, और सब कुछ बढ़िया चीज़ों में सुरक्षित ढंग से लगा हुआ। एकदम पक्का और ब्याज लाने वाला। आमदनी, 120,000,000 डॉलर सालाना। अलेक ने खुशी से भर्रायी आवाज़ में कहा:

"क्या यह काफ़ी है?"

"हाँ है, अलेक।"

"अब हमें क्या करना चाहिए?"

"आराम।"

"कारोबार से रिटायर हो जायें?"

"बिल्कुल।"

"मैं सहमत हूँ। असली काम हो चुका है; अब हम लम्बा आराम करेंगे और पैसे का लुत्फ़ उठायेंगे।"

"बढ़िया! अलेक!"

"हाँ, प्यारे?"

"हम कितनी आमदनी खर्च कर सकते हैं?"

"पूरी की पूरी।"

उसके पति को लगा मानो उसके शरीर से टन भर जंजीरें गिर गयी हों। उसने एक शब्द भी नहीं कहा; वह इतना खुश था कि बोल भी नहीं पा रहा था।

उसके बाद, हर इतवार को वे प्रार्थना छोड़ने लगे। पूरा दिन वे आविष्कार में लगाते थे - पैसे खर्च करने के तरीक़ों का आविष्कार करने में। वे इस लज़ीज़ ऐयाशी में आधी रात के बाद तक लगे रहते; और हर मौक़े पर अलेक बड़ी चैरिटी और धार्मिक संस्थाओं को लाखों डॉलर दान देती थी और सैली ऐसी ही रक़में तमाम ऐसी चीज़ों पर उड़ाता था जिन्हें ;शुरू मेंद्ध वह निश्चित नाम देता था। बस शुरू-शुरू में ही। बाद में धीरे-धीरे नाम धूमिल पड़ने लगे और "वग़ैरह-वग़ैरह" में खोने लगे। क्योंकि सैली टूट-बिखर रहा था। इन लाखों डॉलरों को निवेश और खर्च करने की क़वायद का परिवार के खर्चों पर गम्भीर और असुविधाजनक असर पड़ रहा था - मोमबत्तियों का खर्च बढ़ता जा रहा था। कुछ समय तक अलेक चिन्तित हुई। फिर, उसने चिन्ता करना छोड़ दिया, क्योंकि इसका समय बीत चुका था। वह दुखी थी, परेशान थी, शर्मिन्दा थी; लेकिन उसने कुछ कहा नहीं, और इस तरह वह भी भागीदार बन गयी। सैली स्टोर से मोमबत्तियाँ चुरा रहा था। हमेशा ऐसा ही होता है। भारी सम्पत्ति उस व्यक्ति के लिए अभिशाप बन जाती है, जो उसका आदी न हो। यह उसकी नैतिकता को कुतर जाती है। जब फ़ॉस्टर दम्पति ग़रीब थे, तो उनके पास अनगिनत मोमबत्तियाँ सुरक्षित छोड़ी जा सकती थीं। मगर अब वे - लेकिन इस बात को छोड़ देते हैं। मोमबत्तियों से सेब तक बस एक क़दम का ही पफासला था: सैली सेब लाने लगा, फिर साबुन, फिर मेपल-शुगर, फिर डिब्बाबन्द सामान, फिर क्रॉकरी। एक बार जब हम गिरना शुरू करते हैं तो बद से बदतर होते जाना कितना आसान होता है!

इस बीच, फ़ॉस्टर दम्पति की अद्भुत वित्तीय यात्रा के रास्ते में नये-नये कीर्तिस्तम्भ खड़े हो रहे थे। ईंटों की मकान की जगह ग्रेनाइट की इमारत ने ले ली थी जिस पर चारख़ानेदार टाइल्स वाली ढलुआ छत थी। फिर वह भी ग़ायब हो गयी और उसकी जगह ज़्यादा भव्य मकान आ गया - और यह सिलसिला चलता रहा। हवा में हवेली के बाद हवेली बनती रही, और उफँची, और बड़ी, और सुन्दर, और फिर ग़ायब हो जाती रही; और अब इन शानदार दिनों में, हमारे स्वप्नदर्शी एक सुदूर इलाक़े में, एक विराट और भव्यातिभव्य महल में रहते थे जहाँ हरियाली से घिरे शिखर से दूर घाटी और नदी और कुहरे में लिपटी बलखाती पहाड़ियाँ दिखती थीं - और यह सब निजी था, सब कुछ इन स्वप्नदर्शियों की सम्पत्ति थी; वर्दीदार नौकरों से भरा-पूरा महल, जहाँ सारी दुनिया की राजधानियों से आये दौलत और शोहरत के मालिक मेहमान हुआ करते थे।

यह महल अमेरिकी कुलीन तंत्रा के अवर्णनीय इलाक़े, हाई सोसायटी की पवित्रा नगरी, न्यूपोर्ट, रोड आइलैण्ड में स्थित था। नियम के तौर पर, वे हर इतवार चर्च के बाद का समय इस शानदार घर में गुजारते थे और बाक़ी का पूरा दिन वे यूरोप में बिताते थे, या फिर अपने निजी याट पर धूप सेंकते हुए। छह दिन लेकसाइड के धूसर परिदृश्य में गन्दी और कमरतोड़ मेहनत से भरी और खींचतान कर चलने वाली ज़िन्दगी, और सातवाँ दिन परियों के देश में - यही उनका कार्यक्रम था और इसी के वे आदी हो चुके थे।

अपनी कठोर पाबन्दियों वाली वास्तविक ज़िन्दगी में वे पहले की तरह बने रहे - मेहनती, अध्यवसायी, सावधान, व्यावहारिक, मितव्ययी। वे अपने छोटे-से प्रेस्बिटेरियन चर्च के प्रति वफ़ादार बने रहे और अपनी समस्त मानसिक और आध्यात्मिक उफर्जा के साथ इसके उच्च एवं कठोर सि(ान्तों का पालन करते रहे। लेकिन अपने सपनों के जीवन में वे अपनी कल्पना के आमन्त्राणों पर चलते थे, वे चाहे जैसे भी हों, और उनकी कल्पनाएँ चाहे जो भी रूप लें। अलेक की कल्पनाओं में ज़्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होता था, मगर सैली की कल्पनाएँ इधर-उधर ख़ूब भटकती थीं। अपने स्वप्न-जीवन में अलेक एपिस्कोपल चर्च की भारी-भरकम पदवियों से प्रभावित होकर उसके दायरे में चली गयी; फिर वह हाई चर्च की मोमबत्तियों और प्रदर्शनों से प्रभावित हो गयी; और उसके बाद स्वाभाविक तौर पर वह रोमन चर्च से जुड़ गयी, जहाँ कार्डिनल थे और बहुत-सी मोमबत्तियाँ थीं। मगर ऐसे भ्रमण सैली की तुलना में तो कुछ भी नहीं थे। उसका स्वप्न-जीवन निरन्तर जगमगाते उत्साह और उत्तेजना का मूर्त रूप था, और वह एक के बाद एक बदलावों से इसके हर हिस्से को ताजा और चमकदार बनाये रखता था; हर चीज़ के साथ इसका धार्मिक भाग भी निरन्तर परिवर्तनशील रहता था। वह अपने धर्मों से जमकर काम लेता था और कमीज़ की तरह उन्हें बदलता रहता था।

कल्पनालोक में फ़ॉस्टर दम्पति की शाहखर्ची उनकी समृ(ि के शुरुआती दिनों में ही शुरू हो गयी थी, और उनकी दौलत बढ़ने के साथ यह भी बढ़ती चली गयी। समय बीतने के साथ इसका पैमाना विराट से विराटतर होता गया। अलेक हर इतवार एक या दो युनिवर्सिटी, और एक या दो अस्पताल बनाती थी; एकाध राउटन होटल, कुछ चर्च और बीच-बीच में एकाध कैथेड्रल भी बनवा डालती थी। एक बार, ग़लत समय और ग़लत ढंग से खिलन्दड़ापन दिखाते हुए सैली ने ताना कसा, "एकाध बार अलेक की तबियत ख़राब थी तभी ऐसा हुआ कि उसने जहाज़ भरकर मिशनरियों को चीन नहीं भेजा ताकि वे चिन्तनहीन चीनियों को अपना चैबीस कैरेट कन्"रयूशियसवाद छोड़कर फ़र्ज़ी ईसाइयत अपनाने के लिए राज़ी कर सकें।"

ऐसी अशिष्ट और भावनाहीन भाषा से अलेक के दिल को ठेस पहुँची और वह रोते हुए वहाँ से चली गयी। इस दृश्य से सैली को भी दुख हुआ और वह शर्मिन्दगी में डूब गया। वह ख़ुद अपने बारे में सोचने लगा। पिछले कुछ वर्षों की असीम समृ(ि में वह जिस तरह की ज़िन्दगी गुजार रहा था उसके दृश्य उसकी आँखों के सामने से गुजरने लगे और उसके गाल लाल हो गये और आत्मा पश्चाताप में घिर गयी। अलेक की ज़िन्दगी को देखो - कितनी साफ़-सुथरी थी, और निरन्तर उन्नत हो रही थी; और ज़रा ख़ुद अपनी ज़िन्दगी पर नज़र डालो - कितनी छिछली, किस क़दर दुव्र्यसनों से भरी, कितनी स्वार्थपूर्ण, कितनी ख़ाली, कितनी निर्लज्जतापूर्ण! और इसकी दिशा - कभी भी उपर की ओर नहीं, बस नीचे, और नीचे!

वह अलेक और अपने जीवन का लेखा जोखा करने लगा। जब अलेक ने अपना पहला चर्च बनवाया था तब वह क्या कर रहा था? दूसरे करोड़पतियों के साथ मिलकर पोकर क्लब बना रहा था; ख़ुद अपने महल को इससे दूषित कर रहा था; हर बैठक में लाखों हार रहा था और इससे मिलने वाली सराहनापूर्ण कुख्याति पर मूर्खों की तरह इतरा रहा था। जब वह अपनी पहली युनिवर्सिटी बना रही थी तब वह क्या कर रहा था? धन से करोड़पति और चरित्रा से कंगाल दूसरे नौदौलतियों की सोहबत में ऐयाशीभरी गुप्त ज़िन्दगी में गोते लगा रहा था। जब वह अपना पहला शिशु अनाथालय बना रही थी, तब वह क्या कर रहा था? काश! जब वह अपनी ‘सोसायटी फ़ॉर प्यूरिफ़ाइंग आॅपफ दि सेक्स’ को प्रचारित कर रही थी, तब वह क्या कर रहा था? आह, क्या बात है! जब वह और डब्ल्यूसी.टी.यू. देश से नशाख़ोरी का सफ़ाया करने के लिए अडिग क़दमों से बढ़ रही थीं, तब वह क्या कर रहा था? दिन में तीन बार नशे में धुत हो रहा था। जब एक सौ कैथेड्रल बनवाने के बाद अलेक रोम में अभिनन्दन और आशीष प्राप्त कर रही थी, और स्वर्ण गुलाब से सम्मानित की जा रही थी, तब वह क्या कर रहा था? मोंते कार्लो में जुए की बाज़ियाँ लगा रहा था।

वह ठहर गया। और आगे जाना उसके वश में नहीं था। वह दृढ़ संकल्प के साथ उठ खड़ा हुआ। इस गोपनीय जीवन को उजागर करना होगा और पाप स्वीकार करना ही होगा; वह अभी जाकर उसे सब कुछ बता देगा।

और उसने ऐसा ही किया। उसने उसे सब कुछ बता दिया; और उसकी गोद में मुँह छुपाकर रोया और उससे माफ़ी माँगी। अलेक के लिए यह गहरा धक्का था मगर वह उसका अपना था और उसने उसे क्षमा कर दिया। वह जानती थी कि वह सिर्फ़ पश्चाताप कर सकता है, सुधर नहीं सकता। फिर भी तमाम नैतिक क्षरण के बावजूद वह उसका अपना था, उसकी आस्था का केन्द्र था।

अध्याय सात

इसके कुछ समय बात इतवार की एक दोपहर को वे अपने सपनों के याट में गर्म सागर में यात्रा कर रहे थे और डेक की छत पर शामियाने के नीचे आराम से पसरे हुए थे। ख़ामोशी छायी थी, क्योंकि दोनों ही अपने-अपने ख़्यालों में गुम थे। पिछले कुछ समय से ख़ामोशी के ये दौर बढ़ते जा रहे थे; पुरानी नज़दीकी और स्नेहिलता छीज रही थी। सैली की भयंकर स्वीकारोक्ति ने अपना काम कर दिया था। अलेक उसकी याद को दिमाग़ से निकाल नहीं पा रही थी और उसकी शर्म और कड़वाहट उसके सौम्य-शिष्ट स्वप्न-जीवन में ज़हर घोल रही थी। अब वह देख सकती थी ;इतवार कोद्ध कि उसका पति घमण्डी और घृणित होता जा रहा था। वह इस ओर से आँखें बन्द नहीं कर सकती थी, और इन दिनों वह, इतवार को, उसकी ओर देखने से भी बचती थी।

मगर क्या वह ख़ुद बेदाग थी? वह जानती थी कि ऐसा नहीं है। वह उससे एक रहस्य छुपा रही थी, वह उसका अनादर कर रही थी, और यह उसे भीतर ही भीतर कचोट रहा था। वह दोनों के समझौते को तोड़ रही थी और इस बात को उससे छुपा रही थी। प्रलोभनवश उसने फिर कारोबार शुरू कर दिया था; उसने उनकी पूरी दौलत को दाँव पर लगाकर देश के तमाम रेलवे और कोयला तथा स्टील की कम्पनियाँ मार्जिन पर ख़रीद ली थीं, और अब वह इतवार को हर घण्टे यह सोचकर सिहर उठती कि कहीं मुँह से निकली किसी बात से सैली को पता न चल जाये। इस विश्वासघात के दुख और पश्चाताप में वह यह सोचती रहती कि अलेक उस पर इस क़दर भरोसा करता है और वह इतनी भयानक सम्भावित आपदा एक धागे से उसके सिर पर लटकाये हुए है -

"सुनो, अलेक?"

इन शब्दों से अचानक वह जैसे वापस लौट आयी और अपने स्वर में काफ़ी कुछ पहले जैसी कोमलता के साथ जवाब दिया:

"हाँ, प्यारे।"

"जानती हो, अलेक, मेरे ख़्याल से हम ग़लती कर रहे हैं - यानी तुम कर रही हो। मेरा मतलब है शादी के मामले में।" वह उठ बैठा और एकदम संजीदा हो गया। "देखो - पाँच साल से ज़्यादा हो गये हैं। तुम शुरू से पुरानी नीति पर क़ायम हो: कमाई में हर बढ़ोत्तरी के साथ हमेशा अपना भाव पाँच अंक और उपर कर देती हो। जब भी मैं सोचता हूँ कि अब हम शादियाँ करा सकते हैं, तुम्हें आगे कुछ और बड़ी चीज़ दिख जाती है, और मैं फिर निराश हो जाता हूँ। मुझे लगता है कि तुम्हें ख़ुश करना बहुत मुश्किल है। किसी दिन हम ऐसे ही पीछे छूट जायेंगे। पहले, हमने डेंटिस्ट और वक़ील से इन्कार किया। वह सही था - उचित था। फिर, हमने बैंकर के बेटे और मांस-कारखाने के उत्तराधिकारी को छोड़ा - वह भी सही और उचित था। फिर हमने कांग्रेस मैन और गवर्नर के बेटे को जाने दिया - मैं मानता हूँ कि ये भी बिल्कुल सटीक था। इसके बाद सीनेटर का बेटा और युनाइटेड स्टेट्स के वाइस प्रेसीडेण्ट का बेटा - ये भी सही था, इन छोटी-छोटी उपाधियों का कोई स्थायित्व नहीं होता। फिर तुमने कुलीन वर्ग पर नज़र टिकायी और मुझे लगा कि आखिरकार हमें ख़जाना मिल गया है। हम कोई न कोई पुराना वंश ढूँढ़ निकालेंगे, पुराना, पवित्रा, सम्माननीय, जो एक सदी पहले की आम ज़िन्दगी की गन्ध से भी मुक्त हो चुका हो, और तब से आज तक एक दिन के काम का भी कोई दाग़ उस पर न हो। और फिर, ज़ाहिर है कि ये शादियाँ हो जायेंगी। लेकिन नहीं, तभी यूरोप से एक जोड़ा असली कुलीन आ जाते हैं, और तुम तुरन्त इन वर्णसंकरों से पिण्ड छुड़ा लेती हो। यह बहुत हताशापूर्ण है, अलेक! उसके बाद से, कैसा जुलूस निकलता रहा है! तुमने एक जोड़ा बैरनों के लिए बैरोनेटो से इन्कार किया; एक जोड़ा विस्काउण्टों के लिए बैरनों को वापस किया; एक जोड़ा अर्लों के लिए विस्काउण्टों को मना किया; माक्र्विसों के जोड़े के लिए अर्लों को; ड्यूकों के जोड़े के लिए माक्र्विसों को इन्कार किया। अब बस, अलेक, बहुत हो चुका! तुम्हारे पास चार राष्ट्रीयताओं के चार ड्यूक मौजूद हैं; सब के सब हाथ-पैर और नस्ल से दुरुस्त, सब के सब दिवालिया और नाक तक कर्ज़ में डूबे हुए। वे महँगे हैं, लेकिन हम यह खर्च उठा सकते हैं। चलो, अलेक अब इसे और मत टालो, सस्पेंस बनाये मत रखो: सब सामने रख दो और लड़कियों को चुनने दो!"

अपनी वैवाहिक नीति की इस भर्त्स्ना के दौरान अलेक सन्तुष्ट भाव से बिना कुछ कहे मुस्कुरा रही थी, उसके चेहरे पर एक सुखद रोशनी थी, शायद जीत की जिससे एक सुखद आश्चर्य झाँक रहा था, और फिर उसने बड़ी शान्ति से कहा:

"सैली, इसके बारे में तुम्हारा क्या ख़्याल है - राज परिवार?"

अद्भुत! वह बेचारा तो चारों खाने चित हो गया। कुछ देर वह भकुआया सा रहा, फिर उसने ख़ुद को सँभाला और जाकर बीवी के पास बैठ गया। उसकी आँखों से पहले जैसी प्रशंसा और प्रेम झरने लगा।

"हे भगवान!" उसने कहा, "अलेक, तुम महान हो - दुनिया की महानतम स्त्राी! मैं कभी तुम्हें पूरी तरह पहचान नहीं सकता। मैं कभी तुम्हारी अथाह गहराइयों की थाह नहीं पा सकता। और यहाँ मैं सोच रहा था कि तुम्हारी आलोचना करने के लिए मैं योग्य हूँ। काश मैंने ज़रा ठहरकर सोचा होता, तो मैं जान जाता कि तुमने अभी कोई पत्ता छिपा रखा है। चलो मान लिया, मैं तो बिल्कुल अधीर हूँ - बताओ तुमने क्या सोचा है!"

प्रशंसा से प्रसन्न स्त्राी अपने होंठ उसके कानों के पास लायी और पफुसपफुसाकर एक राजसी नाम लिया। सुनकर उसकी साँस रुक गयी, उसका चेहरा खुशी से चमक उठा।

"वाह!" उसने कहा, "यह तो शानदार पकड़ है! उसके पास एक जुआघर है, और एक क़ब्रिस्तान, एक बिशप और एक कैथेड्रल - सब उसका अपना। और तमाम पक्के पाँच सौ प्रतिशत वाले शेयर; पूरे यूरोप में सबसे साफ़-सुथरी सम्पत्ति। और वह क़ब्रिस्तान - दुनिया में सबसे चुनिन्दाः सिर्फ़ ख़ुदकुशी वालों को आने की इज़ाज़त है। रियासत में ज़्यादा ज़मीन नहीं है, लेकिन पर्याप्त है: क़ब्रिस्तान में आठ सौ एकड़ और बयालीस उसके बाहर। मगर वह सम्प्रभु रियासत है - और यही असल बात है। ज़मीन से कुछ नहीं होता। ज़मीन तो बहुतायत में है, सहारा तो इससे भरा पड़ा है।"

अलेक खुशी से दमक उठी; अब वह बेहद खुश थी। उसने कहा:

"ज़रा सोचो, सैली - यह एक ऐसा खानदान है जिसने कभी यूरोप के राजाओं और सम्राटों के खानदान से बाहर शादी नहीं की है। हमारे नाती-पोते राजगद्दियों पर बैठेंगे!"

"यक़ीनन, अलेक - और हाथों में राजदण्ड भी थामेंगे; और उन्हें उतने ही स्वाभाविक ढंग से रखेंगे जैसे मैं कपड़ा नापने की छड़ी रखता हूँ। वाक़ई शानदार पकड़ है, अलेक। वह पफन्दे में है, है न? निकल नहीं सकता? तुमने उसे मार्जिन पर तो नहीं लिया है?

"नहीं, इसका भरोसा रखो। वह कोई देनदारी नहीं बल्कि सम्पत्ति में इजाफ़ा करने वाला है। ऐसा ही दूसरा वाला भी है।"

"वह कौन है, अलेक?"

"हिज़ रॉयल हाइनेस सिगिसमुण्ड-सीगफ़्रेण्ड-लोएनपफेल्ड-डिंकेलस्पील- श्वाटर्ज़ेनबर्ग ब्लटवुस्र्ट, कैट्ज़ेनयामर के वंशानुगत ग्राण्ट ड्यूक।

"नहीं! तुम सच नहीं कह रही!"

"यह इतना ही सच है जितना कि मैं यहाँ बैठी हूँ, क़सम से," उसने जवाब दिया।

वह अभिभूत हो उठा और उसे गले से लगाकर बोल पड़ा:

"यह सब कुछ कितना अद्भुत लगता है, और कितना ख़ूबसूरत! यह तीन सौ चौंसठ प्राचीन जर्मन रियासतों में से सबसे पुरानी और सम्मानित रियासतों में से एक है, और उन कुछ में से एक जिसे बिस्मार्क के राज में भी अपनी रियासत बचाये रखने की अनुमति मिली। मैं वहाँ जा चुका हूँ। वहाँ एक रोप-वॉक और मोमबत्ती का कारखाना है और एक सेना भी है। स्थायी सेना। पैदल और घुड़सवार सेना। तीन सिपाही और एक घोड़ा। अलेक, इन्तज़ार बहुत लम्बा रहा है और कई बार दिल टूटा और आशा टलती गयी, मगर ईश्वर जानता है कि अब मैं खुश हूँ। खुश, और तुम्हारे प्रति कृतज्ञ, मेरी अपनी, जिसने यह सब कर दिखाया। कब होना है ये?"

"अगले इतवार।"

"बढ़िया। और हम इन शादियों को आजकल के शाही अन्दाज़ में करेंगे। आखिरकार शाही ख़ानदान का मामला है। जितना मैं समझता हूँ, एक ही तरह की शादी है जो शाही परिवार के लिए पवित्रा मानी जाती है, शाही ख़ानदान के लिए बिल्कुल ख़ास: इसे कहते हैं मॉर्गेनैटिक।"

"वे इसे भला ऐसा क्यों कहते हैं, सैली?"

"मैं नहीं जानता; लेकिन जो भी हो, यह शाही है, ख़ालिस शाही।"

"तब हम इसी पर ज़ोर देंगे। इतना ही नहीं - मैं हर हाल में इसे ही करूँगी। या तो मॉर्गेनैटिक शादी होगी या नहीं होगी।"

"तो बात पक्की!" सैली ने खुशी से हाथ रगड़ते हुए कहा। "और यह अमेरिका में पहली बार होगा। अलेक, इससे न्यूपोर्ट वाले जल-भुन जायेंगे।"

फिर वे चुप हो गये, और अपने सपनों के डैनों पर सवार होकर तमाम मुकुटधारियों और उनके खानदानों को आमंत्रित करने के लिए दुनिया के दूर-दराज़ के इलाक़ों की ओर चल पड़े।

अध्याय आठ

तीन दिनों के दौरान दम्पति हवा पर चलते रहे, और उनके सिर बादलों में थे। उन्हें आसपास के माहौल का भी बस हल्का सा अहसास था; हर चीज़ धुँधली-सी दिखती थी, मानो परदे के पार से। वे सपनों में खोये हुए थे, अक्सर जब उनसे कुछ कहा जाये तो सुनते ही नहीं थे; जब सुनते थे तो अक्सर समझते नहीं थे; भ्रमग्रस्त ढंग से या यूँही कुछ भी जवाब देते थे। सैली शीरे को तौलकर बेचता था, चीनी को गज़ से नापने लगता था और मोमबत्ती माँगने पर साबुन पकड़ाता था, और अलेक ने बिल्ली को धुलाई के कपड़ों में डाल दिया और गन्दे कपड़ों को दूध पिला दिया। हर कोई भौचक्का और हतप्रभ था, और बड़बड़ाता रहता था, "फ़ॉस्टर दम्पति को आख़िर हुआ क्या है?"

तीन दिन। फिर एक के बाद एक घटनाएँ! चीज़ों ने एक सुखद मोड़ लिया था, और पिछले अड़तालिस घण्टों से अलेक की काल्पनिक दुनिया में उछाल का दौर था। उपर - और उपर - और-और उपर! लागत बिन्दु पार हो चुका था। और उपर - और भी उपर! लागत से पाँच प्वाइंट उपर - फिर दस - पन्द्रह - बीस! उस विशालकाय कारोबार पर बीस प्वाइंट का शु( मुनाफ़ा, और अब अलेक के काल्पनिक ब्रोकर काल्पनिक लांग डिस्टेंस कॉल पर पागलों की तरह चिल्ला रहे थे, "बेचो! बेचो! भगवान के लिए, बेच दो!"

उसने यह शानदार ख़बर सैली को दी और उसने भी कहा, "बेचो! बेचो - ओह, देखो ग़लती मत करना, अब तुम पूरी धरती की मालकिन हो! - बेचो, बेच दो!" मगर उसने अपनी पफौलादी इच्छाशक्ति का परिचय दिया और कहा कि जान भी देनी पड़े तो भी वह कम से कम पाँच प्वाइंट और बढ़ने तक रुकी रहेगी।

यह एक घातक संकल्प था। अगले ही दिन ऐतिहासिक ध्वंस हुआ, रिकार्डतोड़ ध्वंस, तबाह कर देने वाला ध्वंस, जब वॉलस्ट्रीट में धड़ाम से गिरावट आयी, और तमाम चमकदार शेयरों का भाव पाँच घण्टे में पंचानबे प्वाइंट नीचे आ गया और करोड़पति भी बोवेरी में कटोरा लेकर भीख माँगते नज़र आने लगे। अलेक ने मज़बूती से पकड़ बनाये रखी और जब तक सम्भव हुआ डटी रही, लेकिन आख़िरकार एक वक़्त आया जब वह अशक्त हो गयी और उसके काल्पनिक ब्रोकरों ने सब कुछ बेच दिया। सिर्फ़ तभी, उस समय से पहले कभी नहीं, उसके भीतर का पुरुष लुप्त हो गया, और भीतर की स्त्राी फिर से जाग गयी। वह पति के गले में बाँहें डालकर रोते हुए कहने लगी:

"मैं भी दोषी हूँ, मुझे माफ़ मत करना, मैं बर्दाश्त नहीं कर पाउफँगी। हम कंगाल हो गये हैं! कंगाल, और मैं दुख से पागल हो रही हूँ। अब वे शादियाँ कभी नहीं हो सकेंगी; वह सब ख़त्म हो गया; अब हम डेंटिस्ट को भी नहीं ख़रीद सकते।"

सैली की ज़ुबान में कड़वाहट थी: "मैंने तुमसे गिड़गिड़ाकर कहा कि बेच दो, लेकिन तुम -" उसने पूरी बात कही नहीं; वह उसकी हताश और पश्चाताप से भरी आत्मा को और चोट पहुँचाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। फिर उसके मन में एक बेहतर ख़्याल आया और वह बोला:

"कोई बात नहीं, अलेक, सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ है! तुमने मेरे चाचा की वसीयत से तो एक पैसा भी निवेश नहीं किया था, सिर्फ़ इस पर होने वाले भावी लाभांश को ही लगाया था; हमने जो भी गँवाया है वह तो सिर्फ़ उस भावी लाभ से होने वाली कमाई थी जो तुम्हारी अतुलनीय वित्तीय निर्णय-क्षमता और साहस का नतीजा थी। ख़ुश हो जाओ, इन दुखों को किनारे करो; हमारे पास अब भी तीस हज़ार बिल्कुल अछूते पड़े हैं; और तुमने जो अनुभव हासिल किया है, उससे ज़रा सोचो कि तुम दो साल में इन्हें कहाँ पहुँचा दोगी! शादियाँ टूटी नहीं हैं, बस टल गयी हैं।"

ये दिव्य शब्द थे। अलेक ने देखा कि इनमें वाक़ई कितनी सच्चाई थी, और उनका असर जादुई था; उसके आँसू रुक गये, और उसकी महान आत्मा एक बार फिर तनकर खड़ी हो गयी। चमकती आँखों और कृतज्ञ हृदय से, और शपथ तथा भविष्यवाणी के अन्दाज़ में हाथ उठाकर उसने कहा:

"और अब मैं दावा करती हूँ -"

लेकिन एक आगन्तुक ने बीच में ख़लल डाल दिया। वह ‘सागामोर’ का सम्पादक और मालिक था। वह अपनी एक दूरदराज़ की नानी से मिलने का कर्तव्य निभाने लेकसाइड आया था जो अन्तिम घड़ियाँ गिन रही थीं। दुख के साथ व्यावसायिक काम भी निपटा लेने के ख़्याल से वह फ़ॉस्टर दम्पति से मिलने चला आया था, जो पिछले चार वर्षों में दूसरी चीज़ों में इतना डूबे हुए थे कि उन्हें अपना वार्षिक चन्दा भेजने का भी ध्यान नहीं रहा था। छह डॉलर बक़ाया थे। किसी भी आगन्तुक का आना इतना सुखद नहीं हो सकता था। वह निश्चित ही अंकल टिल्बरी के बारे में सबकुछ जानता होगा और उसे यह भी पता होगा कि क़ब्रिस्तान की दिशा में प्रगति की उसकी क्या सम्भावनाएँ हैं। बेशक़, वे कोई सवाल नहीं पूछ सकते थे, क्योंकि इससे तो वसीयत ख़ारिज हो जाती, मगर वे विषय के इर्दगिर्द बात घुमा सकते थे और नतीजों की उम्मीद तो कर ही सकते थे। मगर योजना कामयाब नहीं हुई। घामड़ सम्पादक को पता ही नहीं चला कि बात किधर घुमाई जा रही है; लेकिन आख़िरकार संयोग ने वह कर दिखाया जिसमें कोशिशें नाकाम रही थीं। बातचीत में किसी बात पर ज़ोर देने के लिए मुहावरे के तौर पर, सम्पादक बोला:

"ज़मीन, समझ लीजिए कि वह तो टिल्बरी फ़ॉस्टर जैसी सख़्त है! - जैसा कि हम कहते हैं।"

अचानक आये इस ज़िक्र से फ़ॉस्टर दम्पति उछल पड़े। सम्पादक का ध्यान इस ओर गया और उसने माफ़ी माँगने के अन्दाज़ में कहा:

"मेरी मानिये, मेरा इरादा ग़लत नहीं था। यह तो बस एक कहावत है; बस एक मज़ाक, और कुछ नहीं। आपके रिश्तेदार थे?"

सैली ने अपनी बढ़ती उत्सुकता को दबाकर शान्त किया, और जितना तटस्थ दिख सकता था, उतना दिखने की कोशिश करते हुए जवाब दिया:

"मैं - मुझे पता नहीं, लेकिन हमने उनके बारे में सुना है।" सम्पादक को तसल्ली हो गयी। सैली ने पूछा: "क्या वह - क्या वह - वह ठीक तो हैं?" "वह ठीक है? अरे, उसे उपर गये तो पाँच साल हो गये!"

फ़ॉस्टर दम्पति दुख से काँप उठे, हालाँकि अन्दर से वे बेहद ख़ुश थे। सैली ने बिना किसी भाव के - और टटोलते हुए-से कहा:

"आह, यही तो ज़िन्दगी है, इससे तो कोई बच नहीं सकता - अमीरों को तो भी एक दिन जाना होता है।"

सम्पादक हँसा।

"अगर आप इसमें टिल्बरी को शामिल कर रहे हैं," वह बोला, "तो यह बात लागू नहीं होती। उसके पास तो पफूटी कौड़ी भी नहीं थी; उसे दफ़नाने का काम भी नगरपालिका को करना पड़ा।"

फ़ॉस्टर दम्पति दो मिनट तक बुत बने बैठे रहे; प्रस्तरवत् और बिल्कुल जड़। फिर पीले पड़े चेहरे और लड़खड़ाती आवाज़ में सैली ने पूछा:

"क्या यह सच है? क्या आप जानते हैं कि यह सच है?"

"हाँ, मुझे तो ऐसा ही लगता है! मैं उसका अन्तिम संस्कार करने वालों में से एक था। उसके पास एक छकड़े के सिवा और कुछ नहीं था और वह उसे मेरे लिए छोड़ गया। उसमें एक पहिया तक नहीं था और किसी काम का नहीं था। फिर भी यह कुछ तो था, और हिसाब बराबर करने के लिए मैंने उसके लिए एक छोटा-सा श्रद्धांजलि लेख भी लिखा था मगर और ख़बरों के चक्कर में वह रह ही गया।"

फ़ॉस्टर दम्पति को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था - उनके दुख का घड़ा भर चुका था, अब उसमें कुछ और नहीं समा सकता था। वे सिर झुकाये बैठे थे, आसपास की तमाम चीज़ों से बेपरवाह, उनके दिल दुख रहे थे।

एक घण्टा बाद भी वे वहीं सिर झुकाये, बिना हिले-डुले, चुपचाप बैठे थे। आगन्तुक काफ़ी पहले जा चुका था, पर उन्हें पता नहीं चला।

फिर वे हिले, और धीरे से सिर उठाकर एक-दूसरे को उदास, स्वप्निल, अचम्भित नज़रों से देखा; फिर बचकाने अन्दाज़ में और इधर-उधर भटकते हुए एक-दूसरे से कुछ-कुछ बोलने लगे। बीच-बीच में वे ख़ामोश हो जाते, कोई वाक्य अधूरा छोड़ देते, या तो उन्हें इसका पता ही नहीं चलता या बीच ही में भूल जाते। कभी-कभी, जब वे इन ख़ामोशियों से जागते तो उनमें इस बात की धुँधली और अस्थिर-सी चेतना पैदा होती कि उनके दिमाग़ को कुछ हुआ है; फिर एक मूक और चाहतभरे एहसास के साथ वे एक-दूसरे को सहारा देते हुए एक-दूसरे का हाथ सहलाने लगते, मानो कहना चाह रहे हों: "मैं तुम्हारे पास हूँ, तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूँगा, हम साथ मिलकर इसका सामना करेंगे; कहीं न कहीं इससे मुक्ति और क्षमादान मिलेगा, कहीं न कहीं एक क़ब्र और शान्ति प्रतीक्षा में है; धीरज रखो, इसमें देर नहीं होगी।"

मगर वे इसके बाद भी दो वर्ष जीवित रहे, मानसिक अँधेरे में, हमेशा सोच में डूबे हुए, अस्पष्ट पश्चाताप और उदास सपनों में खोये हुए, हमेशा चुपचाप। फिर दोनों को एक ही दिन इससे मुक्ति मिल गयी।

अन्त समय के निकट सैली के नष्ट मन से कुछ पल के लिए अँधेरा छँटा, और उसने कहा:

"अचानक और अप्रिय तरीक़ों से अचानक हासिल की गयी सम्पत्ति एक जाल है। इससे हमें कुछ नहीं मिला, इसके उन्मत्त सुख बस क्षणिक थे; लेकिन इसकी ख़ातिर हमने अपनी मीठी और सरल और सुखद ज़िन्दगी बरबाद कर दी - दूसरों के लिए यह एक चेतावनी होनी चाहिए।"

वह कुछ देर आँखें बन्द किये लेटा रहा; फिर जैसे ही मौत की ठण्डक उसके हृदय की ओर रेंगते हुए बढ़ी, और उसके मन से चेतना फिसलने लगी, वह बड़बड़ाया:

"धन ने उसे बदहाल बनाया था, और उसने इसका बदला हमसे लिया, जिन्होंने उसका कोई नुकसान नहीं किया था। उसकी इच्छा पूरी हुई: घृणित और धूर्ततापूर्ण चालाकी से वह हमें सिर्फ़ तीस हज़ार छोड़ गया, यह जानते हुए कि हम इसे बढ़ाने की कोशिश करेंगे और अपनी ज़िन्दगी बरबाद कर लेंगे, और हमारे दिल टूट जायेंगे। बिना किसी अतिरिक्त ख़र्च के वह हमें इतना छोड़कर जा सकता था कि हमें उसे और बढ़ाने की चाहत न होती, सट्टेबाज़ी करने का लालच न होता। कोई भला शख़्स ऐसा ही करता; मगर उसमें उदारता की कोई भावना नहीं थी, नहीं, आह, बिल्कुल नहीं -"

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