जमींदार और उसकी कटार : उत्तर प्रदेश की लोक-कथा
Zamindar Aur Uski Kataar : Lok-Katha (Uttar Pradesh)
सेठ गिरधारीलाल कालिवन गाँव का जमीन्दार था। उसके पास ढेर सारे खेत थे जिन पर काम करने के लिए उसने बहुत से मज़दूरों को बहाल कर रखा था। वह कंजूस था, लेकिन धन जमा करनेवाला सामान्य कंजूस नहीं, बल्कि धन खर्च करते समय उसे कंजूसी करने में बड़ा मजा आता था। वह मजदूरों को पूरी मजदूरी नहीं देता या किसी बहाने से दूसरे दिन, पर टाल देता था।
बेचारे गरीब मजदूर इसलिए चुपचाप रह जाते थे कि कहीं और उन्हें शायद काम न मिले । चालाक सेठ किसी शुभ दिन या त्योहार के दिन का इंतजार करता और उस दिन मजदूरों को बुला कर उनकी मजदूरी का केवल एक हिस्सा ही देता। वह भी इसलिए दे देता था ताके मज़दूर उसे गाली-ग्लौज न दें। मजदूर बेचारे इसलिए चुपचाप थोड़ा-सा खुश हो चले जाते कि कम से कम एक दिन तो उन्हें भर पेट खाना मिलेगा और यह आशा लगाये रहते कि एक दिन सेठ उनका सारा बकाया तो चुकायेगा ही। आखिर वह इतना गरीब तो नहीं हो जायेगा कि उनकी मजदूरी ही न दे सके, क्योंकि उसके पास तो काफी धन है।
एक दिन गिरधारीलाल शहर के माहवारी हाट में मवेशी खरीदने गया, क्योंकि उसकी गायें अब उतना दूध नहीं दे रही थीं जो सबके लिए काफी हो। बाजार में उसने दो गायों को पसन्द किया और मोल-भाव कर दाम तय किया। अचानक उसे याद आया कि पैसों की उसकी मखमली थैली घर पर छूट गई। अब वह दुविधा में पड़ गया। वह सौदे को हाथ से जाने देना नहीं चाहता था। वह जानता था कि मवेशी का सौदागर कल तक इन्तजार नहीं करेगा और किसी के हाथ गायों को बेच देगा। उसने सोचा कि उसे किसी न किसी तरह पैसों का जुगाड़ वहीं करना होगा ताके उसी दिन गायों को घर ले जा सके।
गिरधारीलाल किसी महाजन की तलाश करने लगा। बाजार के पास ही उसे एक महाजन मिल गया। लेकिन किसी जमानत या सुरक्षा के बिना उधार देने को तैयार न था। सेठ के पास उस समय सोने की मूठ वाली कटार थी जो उसे उसके दादा ने भेंट में दी थी। घर से बाहर जाते समय डाकुओं के डर से वह इसे हमेशा अपने पास रखता था।
सेठ गिरधारी लाल ने अपनी कटार दिखाते हुए महाजन से कहा, "यह हमारी पुसतैनी कटार हमारे दादा की भेंट है। यह हमारे लिए अमूल्य है। साथ ही इसकी मूठ सोने की है। लेकिन लाचारी है इसलिए इसकी जमानत मैं देने को तैयार हूँ।"
महाजन कटार की जमानत पर उसकी जरूरत भर ऋण देने को तैयार हो गया। गिरधारी लाल ऋण लेकर और कुछ दिनों में ऋण लौटा कर कटार वापस ले जाने का वादा करके बाजार चला गया और उन गायों को खरीद कर उन्हें एक युवक की सहायता से अपना गांव ले आया।
गिरधारीलाल कई सप्ताह बल्कि कई महीनों तक महाजन को ऋण चुकाने नहीं गया। महाजन धीरज के साथ इन्तजार करता रहा और सोचता रहा कि सोने की मूठ वाली कटार को क्या करे। क्या उसे बेच कर सूद के साथ ऋण का पैसा वसूल कर ले।
लेकिन महाजन से कटार कौन लेगा? उलटा, कोई देख लेगा तो जितने लोग उतनी तरह की बातें बनायेंगे और उसकी प्रतिष्ठा धूल में मिल जायेगी।
इसलिए वह चुपचाप रहा और उसने जमीन्दार के पास अपने नौकर को भेजने का निश्चय किया। जब नौकर जमीन्दार के घर आया तो वह घर पर नहीं था। नौकर वापस चला गया। कुछ दिनों के बाद उसे फिर ज़मीन्दार के पास भेजा गया। किन्तु इस बार भी बह जमीन्दार से नहीं मिल पाया, क्योंकि यह बीमार होने के कारण सो रहा था। जमीन्दार के नौकरों ने महाजन के नौकर को वापस भेज दिया।
महाजन, इस आशा से कि जमीन्दार मेरे नौकर के जाने का सन्देश पाकर ऋण लौटाने के लिए स्वयं आ जायेगा, कुछ और दिनों तक धैर्यपूर्वक सब सहता रहा।
उसके बाद निराश होकर उसने एक योजना बनाई। जब अगली बार नाई सुखराम उसके बाल काटने आया तब उसने उसे सारी कहानी बता दी। और साथ में यह भी कहा कि उसकी कटार कहीं गायब हो गई है। अच्छा यही होगा कि जमीन्दार ऋण वापस कर अपनी कटार लेने न आये।
महाजन जानता था कि नाई खबर फैलाने में माहिर होते हैं और उसके द्वारा शीघ्र ही यह खबर सब तक पहुँच जायेगी कि ज़मीन्दार ने ऋण अभी तक नहीं चुकाया है और महाजन को जमानत में दी हुई उसकी सोने की मठ वाली कटार गायब हो गई है। सचमुच हुआ भी ऐसा ही। यह खबर आसपास के गांवों में सब जगह फैल गई।
जब वह नाई बाल काटने के लिए ज़मीन्दार के घर आया तब उसने यह खबर उसे भी सुनाई।
गिरधारीलाल को अब तक इस बात पर शर्म महसूस नहीं हुई थी कि उसने महाजन का ऋण नहीं चुकाया। क्योंकि इस रहस्य को उसके अलावा कोई नहीं जानता था। लेकिन अब उसने अनुमान लगाया कि बहुत से ग्रामीणों को उसके ऋण के बारे में पता लग गया होगा। इसलिए उसने अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए निश्चय किया कि वह महाजन के पास जाकर यह कहेगा कि पैसे वापस लेने हैं तो मेरी कटार लौटा दो। यद्यपि उसे पूरा विश्वास था कि उसे एक पैसा भी खर्च नहीं करना पडेगा क्योंकि कटार खो जाने के कारण महाजन उसे लौटा नहीं सकेगा, फिर भी वह महाजन के पास काफी पैसे लेकर गया।
महाजन के घर पर, जब जमीन्दार को यह बताया गया कि उसकी कटार की चोरी हो गई है तो उसने खूब हो हल्ला मचाया।
“किसे विश्वास होगा कि महाजन जमानत के लिए कटार रखेगा?" उसने ऊँची आवाज में चिल्लाते हुए कहा । उसने सावधानीपूर्वक सोने के दस्ते की चर्चा नहीं की।"भला महाजन के घर से कटार कौन चुरायेगा?" वह और भी जोर से चिल्लाया। ज़मीन्दार भीड़ इकट्ठा करने के लिए महाजन का मज़ाक उड़ाते हुए ठठाकर हँसने लगा।
जब सड़क पर काफी भीड़ इकट्ठी हो गई। तब ज़मीन्दार ने महाजन से कहा, "क्यों नहीं घर के अन्दर जाकर कटार की खोजबीन करते?" उसे यह उम्मीद थी कि महाजन अन्दर जाकर शीघ्र ही बाहर आ जायेगा और उसे यह कहेगा कि हिसाब बराबर हो गया। और इस तरह ऋण का एक पैसा भी वापस करना नहीं पड़ेगा।
महाजन दबते-सहमते अन्दर गया और बहुत देर तक बाहर नहीं आया। गिरधारीलाल बारबार अपनी मखमली थैली निकाल कर दिखा रहा था जिससे भीड़ को यह विश्वास हो जाये कि यह ऋण के पैसे ईमानदारी से वापस लौटाना चाहता है। वह इस प्रकार अपनी खोई प्रतिष्ठा को पुनः प्रतिष्ठित कर सकता है।
अचानक महाजन अन्दर से आते हुए बोला, "सेठ जी, आप की कटार मिल गई। यह रही! मैंने इसे सुरक्षित रूप से रख दी थी, लेकिन कहाँ रखी थी, यह मैं भूल गया था। क्या अब आप मेरा ऋण लौटा देंगे जो बहुत दिनों से बकाया पड़ा था?" उसने भीड़ को सुनाते हुए आखिरी शब्दों पर जोर देते हुए कहा।
गिरधारीलाल को लाचार होकर सूद सहित ऋण के सारे पैसे भुगतान करने पड़े। लोगों ने देखा कि वह ऋण चुकाने के बाद सिर नीचे किये जाने लगा।
भीड़ के लोग छीः छीः कर रहे थे, लेकिन उसने सिर उठाकर किसी को नहीं देखा। गिरधारीलाल को एक सीख मिल गई थी। जिन लोगों को उसके अपमान और शर्मिन्दगी से लाभ पहुंचा वे उसके खेतिहर मजदूर थे। उन्हें अब समय पर पूरी मजदूरी मिलने लगी।