यूसुफ : क़ुरआन-कथा
Yusuf : Quran-Katha
याकूब के यहाँ तेरह बेटे थे। उन तेरह में से ग्यारह एक पत्नी से थे और दो दूसरी से। इन दो में से ही बड़े का नाम यूसुफ था।
एक दिन यूसुफ को स्वप्न दिखलाई दिया कि ग्यारह तारे, चाँद और सूरज उसके सामने झुककर सिज़दा कर रहे हैं। यूसुफ ने अपना स्वप्न याकूब को जाकर बतलाया। याकूब ने कहा-"बेटा, अपना यह स्वप्न अपने भाइयों को मत बतलाना। वे तुझसे वैसे ही जलते हैं। अगर तेरा स्वप्न उन्हें मालूम हो गया तो वे और भी अधिक जलने लगेंगे और तुझे नुकसान पहुँचाने की कोशिश करेंगे। बेटे! परवरदिगार तुझ पर बहुत मेहरबान हैं। वह तुझे सपने की बातों का मतलब लगाने की विद्या सिखलाएगा और बहुत अधिक दौलत तुझे देगा।"
याकूब के सब बेटों में यूसुफ सबसे खूबसूरत और लायक था इसीलिए याकूब सबसे ज्यादा मुहब्बत भी उसी से करता था। याकूब के दूसरे ग्यारह बेटे इस बात से चिढ़ते थे। उन सब ने एक दिन याकूब से कहा-"अब्बाजान! हम सब जंगल में खेलने और फल खाने जाना चाहते हैं। आप यूसुफ को भी साथ में भेज दीजिए।" पहले तो याकूब ने मना किया लेकिन उन सबने बहुत जिद की तो यूसुफ को उनके साथ भेज दिया।
जंगल में पहुँचकर उन ग्यारह बेटों ने यूसुफ को एक अँधेरे कुएँ में ढकेल दिया और घर आकर अपने बाप से कहा- "अब्बाजान! हम जंगल में कबड्डी खेल रहे थे और यूसुफ को कपड़ों के पास बैठा रखा था कि एक भेड़िया आया और उसे उठा ले गया।"
यह सुनकर याकूब बहुत दुखी हुआ, लेकिन अब किया क्या जा सकता था? उधर मिस्र के सौदागरों का एक काफ़िला उस जंगल से गुजरा, जिसमें यूसुफ एक अँधेरे कुएँ में पड़ा हुआ था। सौदागरों का भिश्ती कुएँ से पानी लेने गया तो यूसुफ डोल में चढ़कर कुएँ से बाहर निकल गया। काफ़िले वालों ने यूसुफ को अपने साथ छुपाकर उसे ले जाना चाहा लेकिन तभी ख़बर यूसुफ के भाइयों तक पहुंच गई। वे सौदागरों के पास आए और उन्होंने यूसुफ को बहुत सस्ते दामों में ही उनके हाथों गुलाम बनाकर बेच दिया। वे उसे अपने साथ ले गए।
मिस्र में पहुँचने पर वहाँ के बादशाह ने सौदागरों से उसे खरीद लिया और अपने महल में लाकर अपनी बेग़म जुलेखा से कहा-"इसका पालन-पोषण अच्छी तरह करो। मुमकिन है यह किसी दिन हमारे काम आए या हम इसे अपना बेटा ही बना लें।"
मिस्र के बादशाह के महल में रहते-रहते यूसुफ जवान हुआ तो बेग़म जुलेखा उस पर मोहित हो गई। एक दिन उसने मकान के दरवाज़े बन्द कर दिए और अपनी इच्छा यूसुफ पर प्रकट की। बेग़म की बात सुनकर यूसुफ बहुत घबराया और उसने खुदा से इबादत की कि मेरे दीन को बचाओ।
यूसुफ बेग़म के प्रेम-जाल से बचने के लिए महल से बाहर निकलने लगा तो बेग़म उसके पीछे भागी और उसका कुर्ता पकड़कर खींचने लगी; लेकिन यूसुफ नहीं रुका और उसका कुर्ता फट गया। तभी बादशाह अज़ीज़ दरवाज़े के पास आ गया। अज़ीज़ को देखते ही जुलेखा ने कहा-"जो शख्स तुम्हारी बीबी को बुरी नज़र से देखे, उसकी सजा यही है कि उसे कैद में डाल दिया जाए।"
यूसुफ ने अज़ीज़ से कहा-"मैंने नहीं, इसी ने मुझे बुरी नज़र से देखा है। इसका सबूत यह है कि मुझे रोकने के लिए इसने मेरा कुर्ता भी फाड़ दिया है।"
बादशाह अज़ीज़ ने कहा-"चलो, इसी बात पर फैसला रहा-अगर कुर्ता सामने से फटा होगा तो यूसुफ की बदकारी है; पीछे से फटा होगा तो जुलेखा की ही नीयत खराब थी।"
जाँच करने पर पता चला कि कुर्ता पीछे से ही फटा था। अज़ीज़ ने जुलेखा को डाँट कर कहा-"औरत! सब बदकारी तेरी ही है। तू यूसुफ से माफी माँग।"
जुलेखा ने माफी माँग ली।
शहर-भर की औरतों में यह बात फैल गई कि जुलेखा अपने गुलाम से नाजायज़ मतलब हासिल करना चाहती है। जुलेखा ने ये ताने सुने तो उसने एक महफ़िल का इन्तज़ाम किया और उसमें उन ताने देने वाली सभी औरतों को बुलाया। जब सब आ गईं तो फल तराशने के लिए एक-एक छुरी उन सबके हाथों में दे दी और ठीक उसी वक्त यूसुफ को वहाँ बुलवा लिया। यूसुफ की खूबसूरती को देखकर वे सब एकटक उसकी तरफ देखती रह गईं और उन्होंने छुरियों से अपनी उँगलियाँ काट ली। वे सब कहने लगीं-"या अल्लाह! यह तो इन्सान नहीं, कोई फरिश्ता है।"
इस पर बेग़म जुलेखा ने कहा- "यही तो है वह, जिसके बारे में तुम मुझे ताने देने चली थीं!" - यूसुफ के बेकसूर साबित हो जाने के बाद भी बादशाह अज़ीज़ ने उसे बेग़म की निगाहों से दूर रखने के लिए यही मुनासिब समझा कि यूसुफ को कुछ समय के लिए जेल में डाल दिया जाए; और उसे जेल में डाल दिया गया।
यूसुफ के साथ दो आदमी और जेलखाने में दाखिल हुए। रात में उन दोनों ने स्वप्न देखे और सुबह होने पर स्वप्नों का अर्थ समझने की गरज से अपने-अपने सपने यूसुफ को बतलाए। एक ने कहा- "मैंने देखा है कि जैसे मैं शराब निचोड़ रहा हूँ।" दूसरे ने कहा-"मुझे ऐसा दिखलाई दिया कि मैं सिर पर रोटियाँ उठाए हुए हूँ और परिन्दे
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सपने का मतलब सुनकर बादशाह बहुत खुश हुआ और यूसुफ से बोला-"हम तुम्हें शाही नौकरी में रखना चाहते हैं।"
यूसुफ ने जबाव दिया-"आप मुझे अपने खजाने पर रख लीजिए। मैं बहुत होशियार और ईमानदार हूँ।"
बादशाह ने यूसुफ की बात मान ली और उसे सरकारी खजाने का काम सौंप दिया।
उन्हीं दिनों यूसुफ के भाई रसद लेने के लिए वहाँ आए। वे यूसुफ को न पहचान सके लेकिन यूसुफ ने उन्हें पहचान लिया। फिर उसने अपने छोटे भाई और माँ-बाप को भी अपने पास ही बुला लिया।
यूसुफ के माँ-बाप आ गए तो उसने उन्हें एक ऊँचे तख्त पर बैठाया और उनके आगे माथा नवाया। और तभी यूसुफ ने अपने बाप याकूब से कहा-"अब्बा जान! यह मेरे बचपन के उस सपने का फल है जिसमें ग्यारह सितारे थे और चाँद सूरज भी!"
अधूरी रचना