यह बिल्कुल सच है! (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

Yeh Bilkul Sach Hai (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

एक मुर्गी ने कहा, 'यह भयानक कहानी एक मुर्गीखाने की है। अच्छा हुआ जो आज रात मैं अकेली नहीं हूँ, नहीं तो मैं आँखें बंद करने की हिम्मत भी नहीं कर सकती थी।' बताने वाली मुर्गी शहर के उस हिस्से में रहती थी, जो उस जगह से बहुत दूर था जहाँ यह घटना घटी थी।

फिर उसने कहानी सुनाई। बाकी मुर्गियों को ऐसा धक्का लगा कि उनके पर खड़े हो गए। मुर्गे की कलगी नीचे गिर गई। यह बिल्कुल सच है!

पर हम शुरू से बताते हैं कि शहर के दूसरे हिस्से के मुर्गीखाने में क्या हुआ था। सूरज अभी डूबा ही था। सारी मुर्गियाँ अपने दड़बे में चली गई थीं। उनमें एक सफेद पंखों और सफेद पैरों वाली मुर्गी थी; वह रोज एक अंडा देती थी। उसकी बड़ी इज्जत थी। वह अपने अंडे पर बैठी और उसने अपने पंखों को खुजलाया। एक छोटा-सा पंख गिर गया।

वह बोली, 'पंख गिर गया। मैं जितना खुजलाऊँगी, उतनी ही सुंदर होती जाऊँगी।' उसने मज़ाक में कहा क्योंकि वह बड़ी खुशमिजाज थी।

मुर्गियाँ दड़बे में पास-पास बैठी थीं, वहाँ अँधेरा था। जिस मुर्गी का पंख गिर गया था, उसके पास वाली मुर्गी सोई नहीं थी। उसने मुर्गी की बात सुनी तो थी, पर ऐसा ज़ाहिर किया जैसे नहीं सुनी। पड़ोसी के साथ शांति से रहने के लिए यही होशियारी रखनी चाहिए। पर वह अपनी साथ वाली मुर्गी को बताए बिना नहीं रह सकी।

'तुमने सुना अभी क्‍या कहा गया? मैं नाम तो नहीं लूँगी पर हममें से एक मुर्गी सुंदर दिखने के लिए पंख उखाड़ रही है। मैं मुर्गा होती तो उससे नफरत करती।'

मुर्गियों के घर के ठीक ऊपर उल्लुओं का परिवार रहता था। उनके कान बहुत तेज होते हैं। उन्होंने मुर्गी की सारी बात सुनी, माँ ने आँखें चढ़ाईं, पंख फड़फड़ाए और बोली, 'सुनो मत, पर मैं सोचती हूँ, सुने बिना भी कोई कैसे रहे। मैंने खुद अपने कानों से सुना है। कानों के झड़ने से पहले हमें बहुत कुछ सुनना पड़ता है। मुर्गाखाने में एक मुर्गी अपनी सारी शराफत और शर्म भुलाकर मुर्गे के सामने ही अपने पंख उखाड़ रही है।'
पिता ने कहा, “चुप रहो, बच्चों को यह सब नहीं सुनना चाहिए।'
माँ बोली, 'पर मैं अपनी पड़ोसी को ज़रूर बताऊँगी। मैं उसकी बहुत इज्जत करती हूँ।' और वह उड़ गई।

“ट्वीट! टुहू!' दोनों उल्लू बोले और इतनी ऊँची आवाज़ में कि कबूतरों ने भी सुना, “तुमने सुना, क्या तुमने सुना? टू हू! एक मुर्गी है जिसने एक मुर्गे के लिए अपने सारे पंख उखाड़ डाले। अगर वह अभी तक जिंदा है तो अब सर्दी से मर जाएगी।'
कबूतर बोले, 'कहाँ, कहाँ?'
'पड़ोस के दड़बे में! मैंने अपनी आँखों से देखा है, यह बड़ी खराब कहानी है, पर बिल्कुल सच है !'

हर शब्द सच है। कबूतरों ने दुहराया और अपने घोंसलों में यह कहानी सुनाई, 'एक मुर्गी है--कुछ लोग कहते हैं कि दो हैं--जिन्होंने औरों से अलग दिखने और एक मुर्गे को रिझाने के लिए अपने सारे पंख उखाड़ दिए हैं। उन्होंने बड़ा खतरनाक खेल खेला है, क्योंकि इससे उन्हें ठंड लग सकती है, किसी को बुखार भी आ सकता है। सुना है वे मर गईं। बल्कि दोनों!'

मुर्गा बाड़ तक गया और बोला, 'उठो! उठो!' उसकी आँखों में अभी तक नींद थी, पर फिर भी बोला, 'तीन मुर्गियाँ एक मुर्गे से प्यार न पाने के कारण मर गईं! उन्होंने अपने सारे पंख उखाड़ दिए थे। यह एक भयानक कहानी है, पर मैं इसे अपने तक न रखकर सबको सुनाऊँगा।'

चमगादड़ों ने भी कहा, 'सबको बताओ, सबको बताओ, ' मुर्गी-मुर्गे सब बोलने लगे, 'सबको बताओ, सबको बताओ।' इस तरह कहानी एक दड़बे से दूसरे में पहुँचती गई और फिर वापस उसी दड़बे में पहुँच गयी जहाँ से शुरू हुई थी।

अब यह कहा जा रहा था कि पाँच मुर्गियों ने मुर्गे का प्यार न पाने के कारण अपने-अपने पंख उखाड़ दिए, ताकि वे कमज़ोर दिखें। फिर वे एक-दूसरे को चोंच मारती रहीं, यहाँ तक कि खून बहने लगा और वे सब मर गईं। यह उनके परिवार के लिए शर्म की बात थी और मालिक का बहुत नुकसान हुआ।

जिस मुर्गी का एक पंख गिरा था, वह इस कहानी को पहचान भी नहीं पाई; वह एक शरीफ और इज्ज़तदार मुर्गी थी। वह बोली, 'मैं ऐसी मुर्गियों से नफरत करती हूँ! पर ऐसी और भी होंगी । ऐसी बातें छिपानी नहीं चाहिए! मैं इस खबर को अखबार में छपवाने के लिए जो कर सकती हूँ, करूँगी, जिससे सारे देश को पता चले। उन मुर्गियों और उनके परिवार के लिए यही ठीक रहेगा।'

और यह खबर अखबारों में छपी, यह बिल्कुल सच है कि एक छोटा- सा पंख पाँच मुर्गियाँ बन गया।

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