ये कोठेवालियाँ (अज्ञात) : कमलेश्वर

(यह प्रेम की सूक्ष्मतम अनुभूति और उच्चतम मानवीय संवेदना की एक चीनी कहानी है। यह कहानी सत्रहवीं सदी में चीन के मिंग राजवंश के समय लिखी गयी। उस समय चीनी कथा लेखन पूर्वापेक्षा काफी विकसित हो चुका था। शहरी जनता की माँग और आवश्यकता उस कथा साहित्य के मूलाधार हैं। प्रस्तुत कहानी आज भी उतनी ही ताजा है, जितनी उस समय थी।)

एक लड़का था ली चिया, जो चेंकियांग प्रान्त के शाओसिंग का रहने वाला था और उसने पेकिंग के एक मदरसे में जगह खरीद रखी थी। उसका पिता उस प्रान्त का खजांची था और मिजाज का बड़ा गर्म था। इधर ली पढ़ने में कमजोर निकला और ऐय्याश लड़कों की सोहबत में पड़ गया। एक बार वह ल्यू यू चिन के साथ गानेवालियों के कोठे पर गया और वहाँ उसकी मुलाकात तू वाई नामक लड़की से हो गयी, जो उस कोठे की सबसे खूबसूरत लड़की थी, और संख्या में दसवीं लड़की होने की वजह से उसे डेसिमा के नाम से पुकारा जाता था।

ली यद्यपि एक खुशमिजाज नौजवान था, लेकिन उसने डेसिमा-सी खूबसूरत दूसरी लड़की पहले कभी न देखी थी। देखते ही वह उसे चाहने लगा। उधर डेसिमा को भी ली बहुत पसन्द आया और वह भी उससे प्रेम करने लगी। डेसिमा यह जानती थी कि कोठे की बूढ़ी मालकिन का व्यवहार काफी कठोर है, इसलिए वह इस पेशे को छोड़कर घर-बार बसाना चाहती थी। अब उसे लगने लगा कि उसका मनचाहा प्रेमी मिल गया है, इसलिए वह इस पेशे को छोड़कर ली के साथ शादी करने को तैयार हो गयी। उधर ली भी डेसिमा से शादी करना चाहता था, लेकिन अपने पिता से डरता था। फिर भी दोनों का मिलना कम न हुआ और धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे को पति-पत्नी मानने लगे।

ली ने डेसिमा को खुश करने के लिए अपनी दौलत पानी की तरह लुटायी। और एक बरस में यह हाल हो गया कि वह खुक्ख हो गया। लेकिन ली ज्यों-ज्यों गरीब होता गया, डेसिमा का प्यार ली के प्रति उतना ही बढ़ता गया। उधर कोठे की मालकिन अब देख रही थी कि ली अब न तो पैसा ही देता है और डेसिमा दूसरे ग्राहकों को खुश भी नहीं करती। आखिर एक दिन तंग आकर उसने डेसिमा को खूब बुरा-भला कहा और ली को गालियाँ दीं कि अब इस भिखमंगे के पास रखा ही क्या है?

एक दिन बूढ़ी मालकिन ने ली से बड़ी बेरुखाई से बात की, लेकिन ली का डेसिमा के पास आना कम न हुआ, तो चिढ़कर बूढ़ी मालकिन ने डेसिमा से कहा कि अगर ली तुझे इतना ही चाहता है, तो उससे कह दे कि वह मुझे पैसे दे दे, मैं तेरी जगह दूसरी लड़की ले आऊँगी, मुआ भूत की तरह चिपट गया है।

डेसिमा ने जब यह बात सुनी तो वह चौंकी... उसने पूछा, “तो क्या तुम सच कहती हो?”

बुढ़िया ने कहा, “तो क्या मैं झूठ बोलती हूँ!” बुढ़िया यह जानती थी कि ली के पास पैसा-वैसा अब कुछ भी नहीं है, कहाँ से लेकर आएगा। अपने कपड़े तक तो उसने गिरवी रख छोड़े हैं।

“तो तुम कितने रुपये उससे चाहती हो?” डेसिमा ने उत्सुकता से पूछा।

“अगर और कोई होता, तो एक हजार टाइल्स (चाँदी के चीनी सिक्के) लेती, लेकिन वह तो गरीब है, उससे मैं तीन सौ टाइल्स ही लेकर कोई दूसरी लड़की ले आऊँगी जो तेरी जगह आकर काम करेगी और अपना धन्धा फिर ठीक से चलाऊँगी। लेकिन एक शर्त है, मुझे यह रकम तीन दिन के अन्दर मिल जानी चाहिए। अगर वह तीन दिन के भीतर यह रकम न ला पाया, तो मैं उसे मारकर कोठे से बाहर निकाल दूँगी... फिर मुझे कोई दोष मत देना।” बुढ़िया ने जवाब दिया।

डेसिमा पहले सकपकायी, फिर यह सोचकर बोली कि ली तीन सौ का इन्तजाम तो कर लेगा, पर तीन दिन का वक्त कम है... “क्या तुम दस दिन का वक्त नहीं दे सकतीं?”

“मैं अगर उस भुखमरे को सौ दिन का वक्त भी दूँ, तब भी वह इतने पैसे का इन्तजाम नहीं कर सकता... खैर, तू कहती है, तो दस दिन की मोहलत देती हूँ। और अगर दस दिन में पैसे न ला पाया तो?” और बुढ़िया घूमकर चल दी।

डेसिमा बड़ी खुश थी। रात जब ली आया, तो उसने उसे मनपसन्द खाना खिलाया और फिर अपने भावी जीवन की चर्चा करते हुए बताया वह तीन सौ टाइल्स मालकिन को दस दिन के अन्दर-अन्दर ला दे, तो वह जन्म भर के कष्ट से छूट जाएगी और सदा के लिए उसकी होकर रहेगी। ली रात भर सोचता रहा, और सुबह उठकर वह अपने दोस्तों, मित्रों, रिश्तेदारों के पास पैसा उधार माँगने गया कि अब वह इस शहर से वापस घर जा रहा है। रास्ते के खर्च के लिए उसे तीन सौ टाइल्स की आवश्यकता है। लेकिन शाम तक उसे एक भी पैसा न मिला।

तीन दिन तक ली को कुछ भी न मिला। हर रात वह डेसिमा को उलटे-सीधे जवाब देता रहा। चौथे दिन जब वह निराश हो गया और पैसा मिलने की कोई आशा न रही, तो वह डेसिमा के पास भी न गया, बल्कि ल्यू के पास गया, जो उसका दोस्त बनता था। ल्यू को उसने सारी कहानी कह सुनायी, तो ल्यू ने भी नकारात्मक सिर ही हिलाया और कहा कि वह ऐसी लड़कियों के चक्कर में न पड़े।

ली बड़ा दुखी था। वह यह भी नहीं चाहता था कि डेसिमा को यूँ ही हाथ से जाने दे, और कोई उपाय भी नजर नहीं आ रहा था। इसी निराशा में वह शहर भर में मारा-मारा घूमता रहा। कहीं से भी पैसे न मिले और छह दिन बीत गये।

उधर डेसिमा भी उदास और परेशान थी। तीन दिन से ली भी उसके पास नहीं आया था। आखिर उसने अपने नौकर को भेजकर ली को अपने पास बुलाया और रुपये के बन्दोबस्त की बात पूछी। ली बिना जवाब दिये रो पड़ा और बोला कि इस सारे शहर में एक भी ऐसा आदमी नहीं, जो मुझे एक पैसा भी उधार दे। मैं पैसा नहीं ला सकता। डेसिमा ने उसे ढाढस बँधाया, खाना खिलाया और आराम करने को कहा।

पौ फटने के पूर्व डेसिमा उठी और उसने ली को भी जगा दिया और कहा कि यह मेरा गद्दा ले जाओ, इसमें डेढ़ सौ टाइल्स हैं, जो मैंने वक्त जरूरत के लिए बचाकर रखी हुई थी। अब बाकी रकम का तुम खुद इन्तजाम कर लो... और जल्दी-से-जल्दी मुझे लेने आ जाओ।

ली गद्दा लेकर ल्यू के घर गया। वहाँ उसने ल्यू के सामने गद्दा फाड़ा और उसमें छिपे पैसे निकालकर ल्यू को सारी कहानी कह सुनायी। ल्यू डेसिमा की इस बात से प्रभावित हुआ और उसके मन में डेसिमा की मदद करने की इच्छा हुई और वह तत्काल घर से अपने जान-पहचान वालों के यहाँ गया और डेढ़ सौ टाइल्स उधार ले आया।

नौवें दिन ली खुशी-खुशी रकम लेकर डेसिमा के पास गया। डेसिमा भी बहुत खुश हुई। तभी बुढ़िया आ गयी और ली ने रकम बुढ़िया के सामने रख दी। बुढ़िया पहले सकपकायी, लेकिन डेसिमा को वचन दे चुकी थी, इसलिए कुछ बोल न सकी, उसने गिन-गिनकर पैसे अण्टी में रखे और दोनों को, जैसे वे बैठे थे, घर से बाहर निकालकर कमरे में ताला लगा दिया।

उधर डेसिमा ल्यू की बड़ी शुक्रगुजार थी, कि उसने मदद की। कोठे से निकलकर डेसिमा ली को लेकर अपनी सहेली यूहे-लाँग और सू-सू के यहाँ गयी। यूहे ने डेसिमा को पहनने को अच्छे-अच्छे कपड़े दिये और जाते हुए उसने एक पेटी भेंट में डेसिमा को दी कि इसमें कुछ पैसे हैं, जो उनके सफर के वक्त काम आएँगे।

यूहे-लांग और सू-सू आदि के यहाँ से निकलकर ये लोग यही सोचते रहे कि अब कहाँ जाएँ... तो डेसिमा ने एक बात सुझायी कि ऐसा करो, इस जगह से हम लोग सैर के लिए सूचाओ या हैंगचाओ चलें, वहाँ मैं रह जाऊँगी और तुम अपने पिता के पास हो आना।

कई दिन के सफर के बाद जहाज कुआचाओ बन्दरगाह पहुँचा। वहाँ से ली ने दूसरे दिन सुबह आगे के सफर के लिए एक किश्ती किराये पर ले ली।

अब डेसिमा भी बड़ी खुश थी। उसने यूहे को दी हुई बढ़िया पोशाक पहनी। और मधुर स्वर में गाने लगी। डेसिमा के गले में जितनी मिठास थी, गीत भी उतना ही प्यारा था।

उधर पासवाली किश्ती में हुए चाओ के हेसिनान का रहने वाला नमक का सौदागर सन फू अकेला बैठा था। वह लाखों की सम्पत्ति का मालिक था, डेसिमा का गाना सुनकर सन विचलित हो उठा। सन ने जब डेसिमा को देखा, तो उसकी खूबसूरती देखकर वह चकरा गया। उसने मन ही मन कई मनसूबे बनाये और फिर ली और सन मित्र बन गये।

तूफान आ जाने से सफर रुक गया। दोनों उठकर पासवाले शराबखाने में चले गये। शराब पीते-पीते सन ने ली से डेसिमा के बारे में भी पूछ लिया और ली ने शुरू से लेकर आखिर तक सारी कहानी सन को कह सुनायी और यह भी बता दिया कि वह अपने पिता से डरता है, इसलिए डेसिमा को घर नहीं ले जा सकता, पैसे की तंगी है, क्या किया जाए, समझ नहीं आता।

सन ने मौके का फायदा उठाया और सलाह देते हुए कहा कि इस तरह की लड़की को लेकर घर जाओगे, तो घर में कोहराम मचेगा। इसलिए बुरा न मानो, तो एक राय दूँ, तुम चुपचाप अपने पिता के पास जाओ और उनसे माफी माँग लो, और इस लड़की के लिए अगर तुम बुरा न मानो, तो मैं तुम्हें एक हजार टाइल्स दे सकता हूँ। वैसे तुम चाहो, तो डेसिमा से भी पूछ लो!

उधर डेसिमा खाना लिये बैठी थी। काफी रात गये ली वापस किश्ती में जब लौटा, तो बहुत उदास था। वह बहुत घबरायी और ली की उदासी का कारण पूछा, तो ली ने बताया कि वह अपने पिता की नाराजी से बहुत घबरा गया है। सन ने उसे एक सुझाव दिया है, ली ने डेसिमा को सब बता दिया कि वह एक हजार टाइल्स दे सकता है। बशर्ते वह उसके पास चली जाए।

यह बात सुनकर डेसिमा हँस दी, “बस!... इतनी सी बात थी! तुम्हारे इस दोस्त ने बड़ी सूझ-बूझ की सलाह दी है। मैं तुम्हारे लिए परेशानी बनना नहीं चाहती। मैं उसके पास चली जाती हूँ। अच्छा! सुबह ही उससे पैसा ले लो!”

सुबह ली सन की किश्ती पर गया और उसे बताया, “डेसिमा तैयार है, तुम पैसे दे दो...” सन ने जोश में पैसा दे दिया।

डेसिमा ने सारी नकदी खुद गिनी और ली के सुपुर्द करके सन की किश्ती पर चली गयी। सन की किश्ती पर आकर डेसिमा ने सन से कहा कि मुझे एक बार वह पेटी खोलने दी जाए।

डेसिमा ने ताला खोला और ली को दराज खोलने को कहा। ली ने दराज खोला, तो उसमें मोती, पन्ना आदि असंख्य कीमती पत्थर थे, जिनकी कीमत कई हजार थी। डेसिमा ने उठाकर वे कीमती पत्थर नदी में फेंक दिये। ली दौड़कर डेसिमा की तरफ बढ़ा। डेसिमा ने ली को धक्का देकर पीछे किया और सन से बोली, “तुम एक मक्कार हो, जिसने अपनी चतुराई से हमारे वैवाहिक जीवन को नष्ट करना चाहा। मैं तुमसे नफरत करती हूँ। मौत के बाद मैं भूत बनूँगी और तुम्हें खुश न रहने दूँगी।”

और फिर वह ली से बोली, “मैंने कोठे पर बड़ा दुखद जीवन बिताया है। फिर भी उस जीवन में भी मैंने इतनी दौलत बचा ली थी कि मैं बुढ़ापे में आराम से रह सकूँ। मैंने बहाना किया था कि यह पेटी मुझे भेंट में मिली थी। इसमें दस हजार टाइल्स की कीमत के जेवरात थे। जिससे हम जीवन भर खुशी से रह सकते थे। और जिसके कारण तुम्हारे घरवाले भी नाराज न होते और मुझे भी कुबूल कर लेते। लेकिन तुम्हें मुझ पर एतबार न हुआ और इस झूठे, मक्कार की बातों में आ गये। मेरे प्यार की तुमने कोई कद्र नहीं की...”

ली डेसिमा से माफी माँगने के लिए आगे बढ़ा कि डेसिमा मय उस पेटी के नदी में कूद गयी।

कहते हैं... ली उसके बाद अपनी किश्ती में बैठा उन एक हजार टाइल्स को ही देखता रहा और वहीं बैठा-बैठा पागल हो गया।

और सन डर से इतना घबरा गया कि बीमार हो गया। और डेसिमा का भूत दिन-रात उस पर मँडराता रहा... और एक दिन वह भी मर गया। ल्यूयू चुन ने जब पढ़ाई पूरी कर ली और जब वह इस तरफ से एक किश्ती में वापस घर जा रहा था, तो नदी में हाथ धोते-धोते उसका बर्तन पानी में जा गिरा। उसने मल्लाह से जाल डालने को कहा। और मल्लाह ने जाल डाला, तो उसमें से एक छोटी पेटी निकली, जिसमें असंख्य जवाहरात थे। रात को ल्यू को एक स्वप्न दिखाई दिया कि नदी की लहरों में से एक खूबसूरत लड़की निकली है, जो डेसिमा ही है। वह उसके पास आयी और बोली कि “ली विश्वासघाती था... तुमने मेरी डेढ़ सौ टाइल्स से मदद की थी... मैं तुम्हारी उस मदद को भूल न सकी, और अब वही पैसा वापस करने आयी हूँ...” ल्यू की आँख खुल गयीं। और तब उसे लगा, डेसिमा मर गयी है।

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