यहाँ न कोई किसी का : बुंदेली लोक-कथा
Yahan Na Koi Kisi Ka : Bundeli Lok-Katha
मालवा के पराक्रमी और लोकप्रिय राजा भोज के संबंध में अनेक लोककथाएँ पूरे मध्यप्रदेश और अन्यत्र भी कही-सुनी जाती हैं। राजा भोज गुणों के पारखी थे। उनके दरबार में विद्वानों की पूछ-परख होने के साथ ही साथ कलाकारों और व्यापारियों को भी प्रश्रय मिलता था। इसलिए दूर-दूर के व्यापारी उनके दरबार में उपस्थित होने में गर्व अनुभव करते थे।
किसी समय चन्दन नगर का एक व्यापारी राजा भोज के दरबार में उपस्थित हुआ। राजा भोज ने दरबार के शिष्टाचार के अनुरूप उसका स्वागत किया पर उन्हें अपने मन में प्रसन्नता का अनुभव नहीं हुआ, जैसा सामान्यतः होता था। इसके विपरीत उन्हें उस व्यापारी को देखते ही क्रोध की अनुभूति हुई कि व्यापारी को कैद कर उसका धन राज्य के खजाने में डाल दिया जाए। राजा भोज खुद भी मन की इस स्थिति पर चकित और दुखी हुए कि किसी समृद्ध संभ्रांत व्यापारी के लिए उनके मन में ऐसे कलुषित विचार आए।
राजा भोज के महामंत्री ने भाँप लिया कि महाराज के मुख पर प्रसन्नता नहीं है। वे किसी चिंता से ग्रस्त हैं। महामंत्री ने व्यापारी का परिचय संक्षेप में कराकर उसके द्वारा लाए उपहार राजा के समक्ष प्रस्तुत किए और व्यापारी को अन्य प्रकोष्ठ में ले जाकर उसका स्वागत कर उसके ठिकाने का पता ले लिया कि उसे दुबारा यथासमय राज दरबार में बुलाया जा सके और विदाकर दिया।
दरबार के बाद महामंत्री ने राजा से सविनय पूछा कि दरबार में अचानक कुछ समय के लिए वे व्यग्र क्यों थे? कुछ चिंता का विषय तो नहीं है? राजा भोज अपने महामंत्री पर पूर्ण विश्वास और स्नेह रखते थे। उन्होंने अपनी मन:स्थिति बताते हुए मंत्री से इसका कारण पूछा तो मंत्री ने कुछ समय माँगा।
महामंत्री ने सोच-विचारकर अपना वेश बदला और व्यापारी से मिलकर धीरे-धीरे मित्रता स्थापित कर ली। अंतरंग बातचीत में व्यापारी ने बताया कि वह चंदन के जंगल ठेके पर लेकर चंदन की लकड़ी एकत्र कर बेचता है। उस वर्ष प्राकृतिक आपदाओं के कारण चन्दन की लकड़ी अपने प्रासादों और मंदिरों में उपयोग करने वाले और चन्दन की लकड़ी से कलाकृतियाँ बनाने वालों ने खरीदी नहीं की। इस कारण उसके पास चंदन भंडार पड़ा है। लाभ की आशा तो दूर, वर्षाकाल में लकड़ी खराब होकर भारी हानि की संभावना है। मित्र बने महामंत्री ने पूछा कि उसकी यह क्षति कैसे बच सकती है? इस पर व्यापारी बोल पड़ा कि किसी राजे-महाराजे की मृत्यु हो जाए तो उसकी अंत्येष्टि आदि के लिए बड़ी मात्रा में चंदन की लकड़ी खरीदी जाने से उसका नुकसान कुछ काम हो सकता है। ऐसे समय पर कोई मोलभाव भी नहीं किया जाता। अतः दाम भी मन मुताबिक मिल जाते हैं।
व्यापारी के मित्र बने महामंत्री ने कहा कि उसे किसी सूत्र से ज्ञात हुआ है कि राजा भोज के महलों में चंदन के द्वार आदि लगाए जाने है। यह सुनते ही व्यापारी प्रसन्न हो गया और उसने कहा कि वह शीघ्र ही महामंत्री और राजा से मिलकर चर्चा करेगा।
अगले ही दिन व्यापारी दरबार में उपस्थित हुआ। इस बार उसे देखकर राजा भोज को अप्रसन्नता नहीं हुई। उन्होंने सप्रेम उसका कुशल-क्षेम पूछकर शेष वार्ता महामंत्री से करने हेतु निर्देश देकर आत्मीयतापूर्वक व्यापारी को बिदा कर दिया।
दरबार के बाद राजा भोज ने फिर महामंत्री से कहा कि उन्हें आश्चर्य है कि आज उस व्यापारी को देखकर उन्हें क्रोध के स्थान पर अपनापन-सा क्यों लगा?
महामंत्री ने कहा- महाराज! आज मैं आपके प्रश्न का उत्तर दे सकता हूँ। जब कोई व्यक्ति आपसे मिलता है तो उसके मन में आपके प्रति जो विचार होते हैं, उनकी सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा प्रिय या अप्रिय भावना उत्पन्न करती है। पहले यह आया तो यह चाहता था कि आपका अंत हो जाए तो इसकी लकड़ी बिक जाए। अब इसकी लकड़ी ली जा रही है तो यह चाहता है कि आप लंबा जिएँ ताकि इसलिए लकड़ी बिकती रहे। इसे अपने काम से काम है, जो सहायक है उसका भला मनाएगा, जो बाधक है उसका बुरा मनाएगा।
राजा भोज ने पूरी बात समझकर कहा सत्य है ‘यहाँ न कोई किसी का सब मतलब के यार।’
(साभार : आचार्य संजीव वर्मा)