यादों के पन्नों से : श्याम सिंह बिष्ट
Yaadon Ke Panno Se : Shyam Singh Bisht
काम में व्यस्त होने के कारण अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, को फोन करने का मौका कम ही मिलता था, सोचा आज --ग्वार वाले पान सिंह जी को फोन कर लूं -फोन मिलाया जैसे ही फोन की घंटी बजी -
पान सिंह जी ने डायल टोन - बादशाह की लगा रखी थी, डायल टोन -D.J वाले बाबू मेरा गाना चलादे बज रहा था ।
पान सिंह जी ने फोन उठाया -और बोलै हेलो -
कैसे हो भुला, कभी आ जाओ मिलने हमारे घर ?
मेरा भी रिप्लाई आया मैंने कहा-
ठीक है पान सिंह जी कल संडे की छुट्टी है,
आपसे मिलने आता हूं ।
अगले दिन पान सिंह जी के घर पहुंचे-
पान सिंह जी से हेलो व राम-राम हुई ।
पान सिंह जी ने शहर में दो रूम सेट किराए पर ले रखा था,
और बाद में पता चला कि अभी हाल ही हाल उन्होंने 100 गज का प्लॉट भी लिया हुआ है ।
पान सिंह जी को बधाई देते हूऐ ,
मैंने कहा- मुबारक हो पनि दा,
कहा जगह ली है ?
पनि दा बौलै - क्या बताऊं भूला-
वह ऐरिया अभी कच्चा है , अभी वहां चार-पांच साल और लगंगे उस एरिया को डेवलपमेंट होने में।
अभी तो वहां पर मेट्रो और बस स्टॉप, पीने के पानी की बहुत दिक्कत है ।
आने वाले कुछ सालों में develop हो जायेगा, फिर वही जाकर बच्चों के साथ सेटल हो जाएंगे ।
मैरा भि खुरापाति सर घूमा और मैनै कहा - पनि दा वो तो चलो ठिक है, पर जहां आपने जगह ली है आना जाना नही हूआ तौ -वहां तो कोई और कबजा कर जाएगा ।
पान सिंह जी बोले - नहीं देखने तो जाता ही रहता हूं, हर महीने में, और तो और चारदीवारी भी कर दी है ।
और वहां के आस -परोस कै लोगों से बोल रखा है -ध्यान रखना , बाकी उनको कुछ खर्चा पानी भी दे देता हूं,प्लॉट की निगरानी के लिए ।
मैंने कहा- यह तो बहुत बढ़िया काम किया है आपने, पर जो आपकी अपनी उत्तराखंड में जमीन और मकान है उसकी भी निगरानी करा रखी है,या ऐसे ही छोड़ रखा है ?
पान सिंह जी को मेरी बात सुनकर मानो साप सूंघ गया,
और बोले -भूला यह कैसी पागलों जैसी बातें कर रहे हो,
वहां कौन कबजा मारैगा,सब लोग तो है देखने के लिए ।
मैंने कहा- कौन -कौन है पान सिंह जी ?
पान सिंह जी बोले -अभी तो पड़ोस वाली अम्मा है,
बाकी दो चार लोग और गाँव वालै हैं ।
मैंने कहा अच्छा -वह लोग कब तक देखेंगे ?
कुछ समय बाद कौन देखेगा, गाँव मैं कोई रहैगा ही नही तो ।
मैनै कहा- पान सिंह जी -कागजों मैं लिखी हुई स्याही मिटाने में देर नहीं लगती ।
एक चार दिवारी अपने गांव वाले मकान में भी करवा देते,जंगली जानवरों हानि नही पहूचातै ।
वह भी तो आपके बुजुर्गों की धरोहर है ।
आस-पड़ोस वालों को साल का कुछ पैसा देते, वह देख लेते दस पंद्रह दिन - महीने में एक दो बार आपके गांव के घर की सफाई हो जाती है, और देखभाल भी हो जाती ।
और किसी का पान - बिरि का खर्चा चल जाता ।
वहां पर भी तो आपकी मेहनत की जमीन है,
उसको ऐसे क्यों छोड़ कर रखा हुआ है ?
बुढ़ापे में और आने वाले वक्त में आप के, व बच्चों कै काम ही आएगी ।
सब लोग जानते हैं पहाड़ों में रोजगार का अभाव है तभी हम लोग शहरों में आते हैं, शहर ने हमें बहुत कुछ दिया है ।
इसकी वजह से ही हम सब लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा, अच्छा खान -पान अच्छा पहनावा सब कुछ दे रहे हैं । और हर माता-पिता का यह कर्तव्य भी होना चाहिए कि वह अपने बच्चों को हर सहूलियत उपलब्ध कराएं ।
पर साथ ही साथ हमैं अपनी- जन्म भूमि -पहाड़ों के गांव, के मकानों को बिल्कुल भी ना छोड़े ।
क्या पता कब किस को कहां जाना पड़ जाए ।
हम सब लोग शहरों में कहीं पर किसी कच्ची एरिया में मकान या प्लॉट लेते हैं- तो हमें विश्वास होता है कि वह एरिया कुछ सालों बाद अच्छा हो जाएगा ।
हमें इसी विश्वास के साथ उत्तराखंड की जमीन व मकानों को नहीं छोड़ना चाहिए -हमें विश्वास रखना चाहिए कि उत्तराखंड में भी आने वाला समय विकास की ओर जरुर बढ़ेगा और सबके लिए एक मिसाल बनेगा ।