सींगों वाली जादूगरनियाँ : आयरिश लोक-कथा

Witches with Horns : Irish Folktale

आयरलैंड की यह एक जादूगरनी की लोक कथा है।

एक रात एक स्त्री घर में सबके सो जाने के बाद अपनी ऊन ठीक करने बैठी कि अचानक किसी स्त्री ने दरवाजा खटखटाया और कहा — “खोलो खोलो, दरवाजा खोलो।”

स्त्री ने पूछा — “कौन है?”

बाहर वाली स्त्री ने कहा — “मैं हूँ एक सींग वाली जादूगरनी।”

घर की स्त्री को लगा कि पड़ोस की कोई स्त्री उससे किसी तरह की सहायता माँगने आयी है सो उसने दरवाजा खोल दिया। एक स्त्री अन्दर घुसी। उसके हाथ में ऊन साफ करने की मशीन थी और उसके सिर पर एक सींग था जैसे वह उसके सिर से ही उगा हो। वह घर के अन्दर आ कर आग के पास बैठ गयी और जल्दी जल्दी ऊन साफ करने लगी। अचानक वह बोली — “और स्त्रियाँ कहाँ हैं? उनको बहुत देर हो गयी।”

तभी किसी ने फिर दरवाजा खटखटाया और पहले की तरह से एक आवाज आयी — “खोलो खोलो, दरवाजा खोलो।”

घर की स्त्री मशीन की तरह उठी और जा कर घर का दरवाजा खोल दिया। एक दूसरी जादूगरनी घर में घुसी। उसके हाथ में चरखा था और सिर पर दो सींग थे।

वह आते ही बोली — “मुझे बैठने के लिये जगह चाहिये। मैं दो सीगों वाली जादूगरनी हूँ।” वह पहली वाली जादूगरनी के पास जा कर बैठ गयी और उसने ऊन कातना शुरू कर दिया। इस तरह दरवाजा दस बार खटखटाया गया और कई सींगों वाली जादूगरनियाँ अन्दर आती चली गयीं। पहली वाली जादूगरनी एक सींग की थी और आखिरी वाली बारह सींग की।

उन सबमें कोई ऊन साफ कर रही थी तो कोई ऊन कात रही थी, तो कोई उसकी पूली बना रही थी तो कोई उसे बुन रही थी। काम करते समय वे कोई पुराना गाना गा रहीं थीं पर उनमें से कोई भी जादूगरनी घर की स्त्री से नहीं बोली। इन जादूगरनियों की आवाज बड़ी अजीब थी और सिर पर सींग उगे होने की वजह से ये सब देखने में भी बहुत डरावनी थीं।

घर की स्त्री को यह सब देख सुन कर बड़ा डर लग रहा था। उसको लग रहा था कि वह तो बस मर ही जायेगी। उसने उठ कर सहायता के लिये चिल्लाना भी चाहा परन्तु न तो वह हिल सकी और न ही किसी को पुकार ही सकी क्योंकि उन जादूगरनियों का जादू उसके ऊपर था।

इतने में एक जादूगरनी ने उससे कहा — “उठो और हमारे लिये एक केक बनाओ।”

घर की स्त्री पहले की तरह से एक मशीन की तरह उठी और कुँए से पानी लाने के लिये कोई बर्तन ढूँढने लगी ताकि वह केक बनाने के लिये आटा गूँध सके और फिर केक बना सके पर उसको अपने घर में कोई बर्तन ही दिखायी नहीं दिया।

जादूगरनी बोली — “यह चलनी रखी है इसी में पानी ले आओ।”

उस समय उस स्त्री की समझ में यही नहीं आया कि वह चलनी में पानी कैसे लायेगी। बस वह तो उठी, उसने पास पड़ी चलनी उठायी और कुँए की तरफ पानी लाने चल दी। जब वह पानी उस में भरने लगी तो उसमें तो उससे पानी ही नहीं भरा जा रहा था। वह वहीं कुँए के पास बैठ गयी और रोने लगी।

इतने में कोई उसके कान में फुसफुसाया — “वह पीली मिट्टी उठाओ और वह घास लो और दोनों को मिला कर चलनी के छेद बन्द करो तभी उसमें पानी भरा जा सकेगा।”

उसने ऐसा ही किया। तब कहीं जा कर उसमें केक बनाने के लिये पानी भरा जा सका।

इतने में वही आवाज फिर उसके कानों में फुसफुसायी — “जाओ, अब तुम वापस अपने घर जाओ और जब तुम अपने घर के उत्तरी मोड़ पर पहुँचो तो तीन बार ज़ोर से चिल्ला कर कहना —

“फैनियान की स्त्रियों के पहाड़ और उसके ऊपर का आसमान दोनों में आग लग गयी है।”

उसने ऐसा ही किया। उधर घर में बैठी जादूगरनियों ने जब यह सुना तो उनके मुँह से चीख निकल गयी और वे सब रोती चिल्लाती उस पहाड़ की तरफ भाग लीं।

पर इस बीच में उन जादूगरनियों ने उस स्त्री के जाने के बाद एक केक बनाया और उसके परिवार के लोगों के मुँह में रख दिया जिससे वे सब मर गये।

इधर उस कुँए की आत्मा ने जिस कुँए से वह स्त्री पानी भरने गयी थी उस स्त्री को उन जादूगरनियों से अपना घर सुरक्षित करने के लिये कुछ किया ताकि वे जादूगरनियाँ अगर वापस भी लौटें तो उसके घर में अन्दर न घुस सकें।

इसके लिये सबसे पहले उसने अपने पानी से उसके बच्चे के पैर धोये। फिर उस पानी को दरवाजे की देहरी पर छिड़का। फिर उसने जादूगरनियों ने घर की स्त्री के जाने के बाद जो केक बनाया था उसमें उसके सोते हुए परिवार का खून मिला कर उस केक के छोटे टुकड़े कर के उसके परिवार के सब लोगों के मुँह में रख दिये जिससे वे सब ज़िन्दा हो गये।

फिर उसने उन जादूगरनियों के बुने हुए कपड़े को आलमारी में आधा अन्दर और आधा बाहर रख दिया और आलमारी के दरवाजे को एक बड़े से लकड़ी के लठ्ठे से बन्द कर दिया और उन जादूगरनियों का इन्तजार करने लगी।

जादूगरनियाँ जल्दी ही वापस लौट आयीं और गुस्से में भर कर बोलीं — “ओ पैरों के पानी, दरवाजा खोलो।”

पैरों का पानी बोला — “मैं यह दरवाजा नहीं खोल सकता, मैं तो जमीन पर बिखर चुका हूँ और नीचे की तरफ बह रहा हूँ।”

फिर वे दरवाजे से बोलीं — “जंगल, पेड़, लठ्ठे, दरवाजा खोलो।”

दरवाजा बोला — “मैं तो हिल भी नहीं सकता क्योंकि मैं तो लठ्ठे से बन्द हूँ।”

वे फिर बोलीं — “खोलो खोलो, ओ केक जो हमने खून मिला कर बनाया था, दरवाजा खोलो।”

केक बोला — “मैं नहीं खोल सकता क्योंकि मुझे तोड़ दिया गया है और मेरा खून बच्चों के मुँह पर है।”

यह सुन कर सब जादूगरनियाँ चीखती चिल्लाती और कुँए की आत्मा को कोसती हुई अपने पहाड़ की तरफ भाग गयीं। इस तरह उस कुँए की आत्मा ने उस स्त्री का घर बचाया।

जब सब जादूगरनियाँ भाग रहीं थीं तो भागते समय उनमें से एक जादूगरनी का शाल गिर गया। वह उस घर की स्त्री ने उस रात की घटना की याद में अपने घर में टाँग लिया था। वह शाल पाँच सौ साल बाद आज भी उसके घर में सुरक्षित है।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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