नीच रानियाँ : कश्मीरी लोक-कथा

Wicked Queens : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि एक राजा था जिसके तीन रानियाँ थीं। उनमें से दो रानियों को वह अपनी तीसरी रानी से ज़्यादा प्यार करता था क्योंकि उसकी दो रानियों ने उसको दो बेटियाँ दी थीं जबकि तीसरी रानी के कोई बच्चा नहीं था।

काफी दिनों बाद उसकी तीसरी पत्नी को बच्चे की आशा हुई तो राजा को तो बहुत खुशी हुई पर उसकी दोनों रानियों को डर लगा कि अगर कहीं उसको बेटा हो गया तो राजा उनको कम प्यार करेगा सो उन्होंने दाई से यह समझौता किया कि अगर उस रानी के बेटा हो तो वह उसको वहाँ से हटा दे और उसकी जगह कोई पत्थर या चिड़िया या किसी और जानवर का बच्चा रख दे।

जब रानी के बच्चा होने वाला था तो दाई को बुलवाया गया और उससे यह पूछा गया कि उसको क्या होने वाला था बेटा या बेटी। दाई ने उनको बताया कि न तो उसको बेटा होगा न बेटी बल्कि एक चिड़िया होगी।

उसने साथ में यह भी कहा कि वह यह तो नहीं बता सकती कि ऐसा कैसे होगा पर उसे पूरा यकीन है कि ऐसा ही होगा। यह सुन कर रानी बहुत दुखी हुई। उसने दाई से इस बात को छिपा कर रखने की प्रार्थना की ताकि राजा को इस बात को पता न चले।

दाई ने वायदा किया कि अगर कोई उससे कुछ पूछेगा तो वह यह कहेगी कि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ है। सो जब बच्चे के पैदा होने का समय आया तो रानी ने कहा कि केवल दाई ही उसके पास रहेगी।

जैसी कि आशा थी रानी के बेटा हुआ तो दाई ने उसको छिपा दिया और रानी को एक कौए का बच्चा दिखा कर कहा — “देखो मैंने कहा था न। मेरी कही बात सच निकली। पर तुम चिन्ता न करना मैं इसको कहीं छिपा दूँगी। और कोई इस बात को जान भी नहीं पायेगा।”

ऐसा कह कर उस नीच स्त्री ने बच्चे और कौए को लिया और दूसरी रानियों को दिखाया। वे यह देख कर बहुत खुश हुईं और उसको बहुत बड़ा इनाम देने का वायदा किया।

इधर इन दो रानियों ने उस बच्चे को एक बक्से में रखा और एक नदी में फेंक दिया। उन्होंने सोचा कि वह बक्सा डूब जायेगा और इस तरह यह मामला यहीं खत्म हो जायेगा।

पर इत्तफाक की बात कि यह बक्सा डूबा नहीं। परमेश्वर की कृपा से वह तैरता रहा। एक बूढ़े माली ने उसे बहते देखा तो उसे नदी में से निकाल लिया और खोला तो उसमें एक बच्चे को पाया। उसने उसे निकाल लिया।

बच्चे को देख कर वह बहुत खुश हुआ। उसके अपने कोई बच्चा नहीं था सो वह उसको अपने बच्चे की तरह से पालने लगा। उसने उसके लिये एक धाय रख ली जो उस बच्चे की देखभाल करती थी।

एक साल बीत गया तो राजा की तीसरी पत्नी को फिर से बच्चे की आशा हो गयी। उसकी दोनों सौतों को फिर से यह चिन्ता हुई कि अगर अबकी बार भी उसके बेटा हो गया तो उनका क्या होगा। पहले की तरह से इस बार भी उन्होंने दाई से कह कर माँ को धोखा देने और उसका बच्चा चुराने का इन्तजाम कर लिया।

अब ऐसा हुआ कि इस बार भी रानी को बेटा हुआ पर दाई ने यह बताया कि इस बार भी उसको कौए का बच्चा हुआ है और यह कर वह बच्चे को छिपाने के लिये तुरन्त ही कमरे से बाहर निकल गयी ताकि राजा और शाही परिवार के दूसरे लोगों को उसके बारे में कुछ पता न चले।

वह उस बच्चे को ले कर फिर उन दोनों नीच रानियों के पास गयी और उसे उनको दे दिया। उन दोनों रानियों ने उस बच्चे के साथ भी वही किया जो उन्होंने उसके पहले बच्चे के साथ किया था। पर परमेश्वर की कृपा से वह बक्सा भी नदी में तैर गया और उसी जगह उसी माली को मिल गया जिसको पहला वाला बच्चा मिला था। उसने इस बच्चे को भी अपना बच्चा समझ कर पाल लिया।

एक साल बाद तीसरी रानी को फिर से बच्चे की आशा हुई पर इस बार भी उसकी आशाओं पर पानी फिर गया। क्योंकि पहले दो बार दोनों रानियाँ अपने बुरे काम में सफल हो चुकी थीं इस बार भी उन्होंने दाई को बहुत पैसा दे कर तीसरी रानी का बच्चा बदलने के लिये कहा।

पर इस बार रानी के जुड़वाँ बच्चे पैदा हुए थे सो दाई ने उसे बताया कि उसके दो पिल्ले हुए हैं और जल्दी ही उन बच्चों को ले कर कमरे से बाहर चली गयी। इन बच्चों के साथ भी वही किया गया जो पहले दो बच्चों के साथ किया गया था पर परमेश्वर की कृपा से वे दोनों भी उसी माली को मिल गये जिसको पहले दो बच्चे मिले थे।

रानी के दुख की कोई हद नहीं थी। वह तीनों बार नाउम्मीद हुई थी। उसने किसी से मिलना छोड़ दिया। वह खाती पीती भी नहीं थी बस अपने मरने की दुआ माँगती रहती थी।

इस घटना के कुछ दिन बाद एक दिन जब दोनों रानियाँ राजा से बात कर रही थीं तो उन्होंने राजा को बताया कि किस तरह उसकी तीसरी रानी ने अजीब बच्चों को जन्म दिया था। राजा यह सुन कर बहुत दुखी हुआ और उसको बहुत अजीब भी लगा। उसने तुरन्त ही दाई को बुला भेजा और उससे पूछा कि क्या यह बात ठीक थी। दाई बोली “हाँ हुजूर यह सच है।”

इस पर राजा ने अपनी तीसरी रानी को जितनी जल्दी से जल्दी हो सकता था देश निकाले का हुक्म दे दिया।

खैर वह देश से नहीं निकाली गयी। नौकरों को लगा कि इसमें दूसरी दो रानियों की कुछ चाल है जिनको कि वे समझते थे कि वे उनकी प्यारी रानी से जलती थीं।

इसलिये उन्होंने राजा के दिल में अपनी साख बनाने के लिये राजा से प्रार्थना की कि वह रानी को देश निकाला न दें बल्कि वहाँ से कुछ दूरी पर एक बागीचे में उसके लिये एक घर बनवा दें और उसको वहाँ रख दें। उसको खाने पीने और रहने सहने के लिये काफी पैसा दे दें। राजा उनकी यह बात मान गया और ऐसा ही किया गया।

उधर बच्चे माली की देखरेख में बढ़ते रहे। जब वे बड़े हो गये तब वे स्कूल भी जाने लगे। लड़कों को माली का काम भी सिखाया गया।

एक दिन एक अक्लमन्द बुढ़िया जो बहुत इधर उधर की बातें करती थी एक जगह बात सुनती थी और दूसरी जगह जा कर उसे पैसे ले कर बता देती थी राजा की दोनों रानियों के पास आयी। यह देख कर कि वह एक अक्लमन्द स्त्री है उन्होंने उससे पूछा कि उनके कोई बेटा क्यों नहीं हुआ और उससे प्रार्थना की कि वह किसी पवित्र आदमी को बुला कर ला दे जो उनकी इच्छा को पूरा होने में सहायता कर दे।

स्त्री बोली कि भगवान की मर्जी को बदला नहीं जा सकता था। जिसको वह चाहता नहीं देता और जिसको वह नहीं चाहता तो नहीं देता।

इसी संदर्भ में उसने उनको एक माली के बारे में बताया जिसको तीन साल में तीन लड़के और एक लड़की नदी में तैरते हुए मिल गये थे। जब दोनों रानियों ने यह सुना तो उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। उन दोनों ने उससे यह जानने की कोशिश की कि उसने उन बच्चों के साथ क्या किया। उसने उनको पढ़ने भेजा या नहीं। वे उसी के घर में रह रहे थे क्या आदि आदि।

बुढ़िया ने उनको सब बता दिया कि वे कितने सुन्दर थे कितने होशियार थे कैसे वे तीनों लड़के उस माली के साथ बागीचे में काम करते थे और कैसे वे तीनों अपनी छोटी बहिन को प्यार करते थे। दोनों रानियों ने ऐसा दिखाया कि उनको शक था कि तीनों भाई अपनी बहिन को इतना प्यार करते थे कि वे उसके लिये कुछ भी कर सकते थे।

उन्होंने उससे कहा कि वह उनका अपनी बहिन के लिये प्रेम का इम्तिहान ले। वह अपने भाइयों से एक खास चिड़िया लाने के लिये कहे। रानियों ने उससे यह भी कहा कि वह बहुत अच्छी चिड़िया है जो आदमियों की तरह बोलती है और इतना अच्छा गाती है जितना धरती पर कोई नहीं गा सकता। हमें यकीन है कि वह बच्ची उस चिड़िया को बहुत पसन्द करेगी।

फिर उन्होंने उससे कहा कि अगर उसने उनका यह काम कर दिया तो वे उसको बहुत सारा इनाम देंगी। बुढ़िया ने कहा कि वह उनका यह काम जरूर कर देगी और वहाँ से चली गयी।

वहाँ से जा कर उसने लड़की से दोस्ती की। वह बहुत जल्दी ही उसकी दोस्त बन गयी। उसने उसको चिड़िया के बारे में बताया तो वह तो उसके बारे में यह सुन कर कि वह क्या क्या कर सकती है उसको लेने के लिये बहुत उत्सुक हो गयी। अब उसको बिना उसके दिन रात चैन नहीं था।

उसके तीनों भाइयों ने अपनी बहिन को दुखी देखा तो उससे पूछा कि वह क्यों दुखी थी। बच्ची ने उनको उस चिड़िया के बारे में बता दिया। अब क्योंकि सारे लड़के तो अपने बागीचे के काम से एक साथ अनुपस्थित नहीं रह सकते थे सो सबसे पहले सबसे बड़ा भाई उस चिड़िया को लाने के लिये चला।

उसका रास्ता एक जंगल से हो कर जाता था सो जब वह जंगल से गुजर रहा था तो उसको जंगल में एक शिकारी मिला। उसने उस शिकारी से पूछा कि क्या वह उस चिड़िया को जानता था।

शिकारी बोला हाँ वह जानता तो है पर उसके लाने में बहुत खतरा है। उसने उसे यह भी बताया कि बहुत सारे आदमियों ने उसको लाने की कोशिश की है पर वे रास्ते में ही मर गये हैं। पर लड़के को डराया नहीं जा सकता था। उसने चिड़िया लाने का पक्का इरादा कर रखा था सो उसने उससे उसको लाने के लिये रास्ता पूछा। शिकारी ने उसको रास्ता बता दिया और वह लड़का उस चिड़िया को लाने चल दिया।

वहाँ से वह एक बड़े मैदान में पहुँचा जहाँ कोई नहीं रहता था सिवाय एक जोगी के। उसने उस जोगी से जा कर अपने दिल की बात कही तो जोगी ने भी उसे उस यात्रा पर जाने से मना किया पर लड़का तो मानने वाला नहीं था तब जोगी ने भी उसको आगे का रास्ता बताया और उसे जाने दिया।

फिर जोगी ने उसे एक छोटा सा पत्थर और एक छोटा सा मिट्टी का घड़ा दिया और कहा — “इस पत्थर को तुम अपने आगे फेंक देना तो वह तुम्हें वहाँ जाने का रास्ता दिखायेगा तुम उसके पीछे पीछे चला जाना।

वह पत्थर तुमको एक पहाड़ की तलहटी में ले जायेगा जहाँ तुमको तेज़ हवा और बिजली की कड़क जैसी बहुत तेज़ आवाज सुनायी देगी। हो सकता है कि उस आवाज में तुमको अपना नाम भी सुनायी दे।

पर तुम डरना नहीं और किसी भी हालत में वापस नहीं आना नहीं तो तुम एक पत्थर के खम्भे में बदल जाओगे। तुम उस पहाड़ पर चढ़ जाना। जब तुम उस पहाड़ की चोटी पर पहुँच जाओगे तो तुमको वहाँ सुनहरे पानी की एक झील दिखायी देगी।

उस झील के किनारे एक पेड़ खड़ा होगा जिसकी एक शाख पर एक पिंजरा लटका होगा जिसमें वह चिड़िया बन्द है। जब तुम उस पेड़ के पास पहुँचो तो सबसे पहले उसकी वह शाख पकड़ना जिस पर पिंजरा लटका है। फिर पलट कर उस रास्ते को देखना जिधर से तुम आये थे।

यह बहुत जरूरी है क्योंकि अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम जिस रास्ते से आये हो उस रास्ते को भूल जाओगे।

वह चिड़िया तुमसे पूछेगी कि तुम वहाँ क्यों आये हो तो तुम उससे कहना कि तुम उसे लेने आये हो। उसके बाद सब कुछ ठीक है। अगर तुमने मेरी ये सारी बातें मानी तो तुमको कोई खास मुश्किल नहीं पड़ेगी और तुम सुरक्षित रूप से चिड़िया को ले कर आ जाओगे।”

लड़का उस पत्थर और घड़े को ले कर चल दिया। उसने पत्थर अपने आगे फेंक दिया और उसके पीछे पीछे चलता रहा। कुछ दूर तक तो सब ठीक रहा पर जब वह पहाड़ की तलहटी में पहुँचा और उसने वहाँ तेज़ हवा और बिजली की कड़क की बहुत तेज़ तेज़ आवाजें सुनीं तो वह डर गया और उसने पीछे मुड़ कर देखा। तुरन्त ही वह पत्थर का हो गया।

कुछ दिन बाद तक भी जब बड़ा भाई चिड़िया ले कर वापस नहीं आया तो दूसरे भाई ने सोचा कि अब वह जा कर देखेगा कि उसका भाई कहाँ रह गया। वह उसी जंगल में पहुँचा जिससे हो कर उसका भाई गया था।

उसको भी वहाँ एक शिकारी मिला और शिकारी के कहने पर आगे चला तो वह भी मैदान में पहुँच गया और वहाँ वह उसी जोगी से मिला जिससे उसका बड़ा भाई मिला था।

हालाँकि दोनों ने उसको इस यात्रा पर जाने से मना किया था और उससे यह भी कहा था कि तुम्हारा भाई तो पहले ही मर चुका है और इसका सुबूत यह था कि पत्थर और मिट्टी का घड़ा जोगी के पास वापस आ चुके थे।

जब लड़के ने यह सुना तो उससे पूछा — “क्या मेरे भाई को वापस लाने का कोई तरीका है।”

जोगी बोला — “है। पर उसे वही वापस ला सकेगा जो उस चिड़िया को ले कर आयेगा।”

लड़का बोला — “तब आप मुझे वह पत्थर और मिट्टी का घड़ा दें मैं उसे लाने जाता हूँ।”

जोगी ने उसे पत्थर और मिट्टी का घड़ा दे दिया और वह लड़का उनको ले कर वहाँ से चल दिया। वह भी अपने भाई की तरह कुछ दूर तक तो ठीक चला पर उसने भी जैसे ही तेज़ हवा और बिजली की कड़क की आवाजें सुनी वह पीछे मुड़ गया और तुरन्त ही पत्थर का हो गया।

छोटे भाई ने उसका भी कुछ दिन इन्तजार किया फिर वह भी उन दोनों को देखने के लिये निकल पड़ा। दुखी पर बहादुर लड़के ने अपने पिता और बहिन को विदा कहा अपने रास्ते पर चल पड़ा।

वह उसी जंगल में पहुँचा जिससे हो कर उसका भाई गया था। उसको भी वहाँ एक शिकारी मिला और शिकारी के कहने पर आगे चला तो वह भी मैदान में पहुँच गया और उसी जोगी से मिला जिससे उसका बड़ा भाई मिला था।

हालाँकि दोनों ने उसको इस यात्रा पर जाने से मना किया और उससे यह भी कहा कि तुम्हारे दो भाई तो पहले ही मर चुके हैं और इसका सुबूत यह था कि पत्थर और मिट्टी का घड़ा जोगी के पास वापस आ चुके थे।

उसने कहा — “बिना मेरे भाइयों के मेरी भी क्या ज़िन्दगी है। आप मुझे वह पत्थर और मिट्टी का घड़ा दें मैं उस चिड़िया का लाने की पूरी कोशिश करूँगा ताकि मेरे भाई वापस आ सकें और मेरी बहिन की इच्छा भी पूरी हो जाये।”

यह सुन कर जोगी ने उसको पत्थर और मिट्टी का घड़ा दे दिया और वह वहाँ से चल दिया। इस बार पत्थर और मिट्टी का घड़ा जोगी के पास वापस नहीं आये क्योंकि यह लड़का डरा नहीं और इसने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा जब तक यह पहाड़ की चोटी पर नहीं पहुँच गया।

वहाँ उसने सुनहरे पानी की एक झील देखी और देखा उसके किनारे खड़ा एक पेड़ और पेड़ की एक शाख पर लटका हुआ एक पिंजरा। पिंजरे में चिड़िया बहुत ही मीठी आवाज में गा रही थी।

वहाँ जा कर उसने उस पेड़ की शाख पकड़ ली। उसके शाख पकड़ते ही सारा शोर बन्द हो गया। कहीं से कोई आवाज नहीं आ रही थी सिवाय चिड़िया की आवाज के।

वह पूछ रही थी — “तुम यहाँ क्या करने आये हो और तुम्हें क्या चाहिये।”

लड़के ने कहा कि उसको केवल चिड़िया पेड़ की उस शाख का एक टुकड़ा जिस पर चिड़िया का पिंजरा लटक रहा था और थोड़ा सा सुनहरा पानी चाहिये और कुछ नहीं ताकि वह अपने भाइयों को जिला सके।

चिड़िया ने उससे शाख काटने के लिये कहा और उसका मिट्टी का घड़ा सुनहरे पानी से भरने के लिये कहा। उसने उससे एक घड़ा भर कर पानी और लेने के लिये कहा। और कहा कि दूसरा घड़ा उसको पास में ही पड़ा मिल जायेगा।

लड़के ने ऐसा ही किया। पिंजरे और दूसरी चीज़ों को साथ ले कर लड़का नीचे उतरने लगा। जब वह नीचे जा रहा था तब चिड़िया ने उससे कहा कि वह एक घड़ा भर कर पानी उन पत्थरों पर छिड़क दे जो टुकड़े हो कर चारों तरफ गिर जायेंगे।

लड़के ने वैसा ही किया तो वे पत्थर के टुकड़े पहले तो टूट कर बिखर गये फिर सारे टुकड़े आदमियों में बदल गये। इस तरह बहुत सारे राजा राजकुमार और पवित्र लोग ज़िन्दा हो गये जो कभी उस चिड़िया को वहाँ से लाने गये थे।

उन्होंने उस लड़के को धन्यवाद दिया और कहा कि वे तो उसके नौकर जैसे थे। उसके दोनों भाई भी ज़िन्दा हो गये थे। एक दो दिन में यह लम्बा जुलूस जोगी के पास पहुँचा। तीनों भाई उस जुलूस के आगे आगे चल रहे थे। जब जोगी ने जुलूस आते देखा तो वह समझ गया कि यह लड़का अपने काम में सफल हो गया है। उसने उसको आशीर्वाद दिया। जब वे लोग कुछ और आगे चले तो उनको शिकारी मिला।

तीनों भाई अपने घर सुरक्षित आ पहुँचे। बूढ़े माली और उनकी बहिन ने उनका ऐसे स्वागत किया जैसे किसी के मर कर ज़िन्दा हो जाने पर करते हैं। सारे लोग जिनको लड़के ने ज़िन्दा किया था वे भी अभी तक उसके साथ थे और उसको छोड़ना नहीं चाहते थे। माली बोला — “अरे मैं इतने सारे लोगों को कैसे खिलाऊँगा पिलाऊँगा?”

चिड़िया बोली — “तुम चिन्ता न करो तुम्हें सब कुछ मिल जायेगा।” उसकी बात सच ही हुई। रोज उन सबके लिये अच्छा अच्छा और नया नया खाना आने लगा। सारे मेहमानों ने खूब पेट भर कर खाया।

जल्दी से जल्दी माली और उसके तीनों बेटों ने अपने मेहमानों के लिये रहने के लिये घर भी बना दिये। वहीं उनके पास एक तालाब बनाने की भी जगह थी सो उन्होंने एक गड्ढा खोद कर उसमें बर्तन वाला सुनहरा पानी डाल दिया जिससे वह तालाब सुनहरे पानी से भर गया। उसी तालाब के किनारे उन्होंने वह पेड़ की शाख भी लगा दी जो वे पहाड़ से लाये थे। वह शाख बढ़ कर एक बहुत सुन्दर पेड़ बन गयी।

वह बूढ़ा माली और उसका परिवार तो बहुत अमीर और खुशहाल हो गया। उसके पास तो अब इतना पैसा हो गया जितना उसने कभी सोचा भी नहीं था। उनका नाम सारी दुनियाँ में फैल गया। राजा खुद उससे मिलने आया और उसके साथ उसने बराबरी का व्यवहार किया।

एक दिन राजा ने उससे पूछा कि उसके पास यह सुन्दर और होशियार चिड़िया कहाँ से आयी तो सबसे छोटे भाई ने उसे सब कुछ बताया। उसने उससे यह भी पूछा कि इतने शानदार और इतने सारे नौकर और इतना सारा पैसा उनके पास कहाँ से आये।

इसका जवाब दिया चिड़िया ने — “सुनिये राजा साहब मैं आपको बताती हूँ। ये तीन लड़के और यह सुन्दर लड़की जिनको आप यहाँ अपने सामने देख रहे हैं ये माली के बच्चे नहीं हैं जैसा कि सारे लोग समझते हैं। ये आपके बच्चे हैं।”

यह सुन कर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ — “यह कैसे हो सकता है? यह चिड़िया तो बहुत बात बनाती है।”

चिड़िया फिर बोली — “राजा साहब आप मानें या न मानें पर ऐसा ही है। आप नाराज नहीं होना मैं आपको सब बात बताती हूँ। मैं कोई बेवकूफी भरी बात नहीं कर रही हूँ। ये चारों बच्चे आपकी सबसे छोटी रानी के बच्चे हैं जिसको आपने अपने महल से बाहर निकाल दिया था।

उसने बेचारी ने किसी कौए के बच्चों या पिल्लों को जन्म नहीं दिया था जैसा कि आपकी दोनों नीच बड़ी रानियों ने आपको बताया। उन्होंने आपसे झूठ बोला ताकि आप कहीं अपनी छोटी रानी को उनसे ज़्यादा प्यार न करने लगें और उन्हें छोड़ दें इसी डर से उन्होंने ऐसा किया।

उन्होंने अपने हाथों से इन बच्चों को बक्से में बन्द करके इन्हें नदी में बहा दिया। परमेश्वर की कृपा से ये बच्चे इस बूढ़े माली के हाथ लग गये और इसने उन्हें बचा लिया।

कुछ साल बाद उन नीच रानियों को पता चला कि ये बच्चे ज़िन्दा हैं तो उन्होंने एक अक्लमन्द बुढ़िया से इस नन्हीं सी बच्ची को इस बात के लिये मजबूर करवाया कि यह अपने भाइयों से मुझे लाने के लिये कहे। वे यह जानती थीं कि मुझे लाना बहुत मुश्किल है और इसमें कई लोगों की जानें जा चुकी हैं।

उनको यह भी मालूम था कि तीनों भाई अपनी बहिन की इच्छा पूरी करने की कोशिश जरूर करेंगे और इसी कोशिश में वे तीनों मारे जायेंगे। दो बड़े भाई तो पत्थर के बन ही गये थे और शायद वे उसी हालत में रहते अगर सबसे छोटा भाई अपने उद्देश्य में सफल नहीं होता। राजा साहब आपने सुना जो कुछ आपको मैंने बताया।”

इसके बाद चिड़िया चुप हो गयी और उस जगह बिल्कुल चुप्पी छा गयी। कई मिनटों तक कोई नहीं बोला। फिर राजा बोला — “उफ़ मैंने यह क्या किया। मैंने अपनी भोलीभाली प्यारी पत्नी को महल से निकाल दिया। मैंने अपनी उन दोनों बड़ी रानियों की बातों को सुना ही क्यों और उनके झूठ बोलने पर उसे बाहर निकाल दिया।”

कह कर राजा फूट फूट कर रो पड़ा। उसके साथ साथ वहाँ जितने लोग बैठे थे सभी रो पड़े। जैसे ही राजा अपने महल लौटा उसने अपनी दोनों बड़ी रानियों को बाहर निकाल दिया और छोटी रानी को वापस बुला लिया।

राजा और उसकी प्रिय पत्नी छोटी रानी की खुशी की तो कोई हद ही नहीं थी जब उन्होंने एक दूसरे को समझा और जाना कि वे चार सुन्दर बच्चों के माता पिता हैं – तीन लड़के और एक लड़की। वे लोग बहुत दिनों तक खुशी खुशी रहे और राजा के बाद उसके राज्य पर उसके तीनों बेटों ने राज किया।

इसी कहानी का दूसरा रूप

मैं आपको दो राजकुमारों की एक कहानी सुनाता हूँ। एक समय की बात है एक राजा था जिसके तीन रानियाँ थीं। हाालँकि उसके तीन रानियाँ थीं पर उसके बेटा कोई नहीं था। इस वजह से बहुत परेशान रहता था क्योंकि वह चाहता था कि उसका खून ही उसके बाद उसका राज्य सँभाले। इसके अलावा उसकी नजर में कोई और ऐसा आदमी नहीं था जो उसके काम कर सके।

कुछ समय बाद उसकी यह मुश्किल हल होती नजर आयी। उसकी तीसरी पत्नी को बच्चे की आशा हो गयी। यह सुन कर राजा बहुत खुश हुआ। वह हमेशा रानी का हाल पूछता रहता और उसकी देखभाल से सम्बन्धित बराबर अपने हुक्म दोहराता रहता।

अब जैसा कि सोचा जा सकता है उस रानी की इतनी देखभाल होते देख कर दोनों बड़ी रानियाँ उससे जलने लगीं। उनको यह बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी कि राजा उसकी इतनी देखभाल करे और उनके पास बिल्कुल न आये। उनको यह भी डर लगा कि ये हालात तो चलते ही रहेंगे अगर कहीं उसके लड़का हो जाये तो। सो इस सबको रोकने के लिये उन्होंने एक चाल खेली।

जैसे ही उन्होंने मौका पाया तो उन्होंने दाई को बुलाया और उससे कहा कि जब छोटी रानी के बच्चा हो तो वह बच्चे की जगह एक पिल्ला रख दे। इसके लिये उन्होंने उसको बहुत पैसे दिये। दाई ने अपना वायदा निभाया और जैसे ही रानी के बच्चा हुआ तो दाई ने उसकी जगह एक पिल्ला रख दिया और कह दिया कि रानी ने तो एक पिल्ले को जन्म दिया है।

बच्चा जो लड़का था रानियों ने एक बढ़ई की दूकान में डलवा दिया। जब राजा ने यह सुना तो उसे बहुत दुख हुआ उसकी समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे।

कुछ समय बाद छोटी रानी को फिर से बच्चे की आशा हुई तो राजा को सुन कर बहुत खुशी हुई। उसने सोचा कि भगवान अबकी बार उसकी इच्छा जरूर पूरी कर देंगे। पहले की तरह से उसने छोटी रानी की देखभाल के लिये बड़े सख्त हुक्म निकाल दिये।

उसकी दोनों बड़ी रानियों की जलन अभी खत्म नहीं हुई थी सो उन्होंने इस बार भी दाई को बहुत सारे पैसे दे कर अपनी नीचता में बच्चे को उसी बढ़ई की दूकान में फिंकवा दिया जिसमें उसके भाई को फिंकवाया था और उसकी जगह एक पिल्ले को रखवा दिया। यह बच्चा भी एक बहुत सुन्दर लड़का था।

राजा ने जब यह सुना तो वह बहुत नाउम्मीद हो गया और उसका सारा धीरज जाता रहा। उसने अपनी छोटी रानी को महल से निकलवा दिया। बेचारी रानी बिना एक पैसा लिये वहाँ से चल दी और अपना पेट भरने के लिये घर घर जा कर भीख माँगने लगी। वह खुद भी बहुत दुखी थी।

राजा के दोनों लड़के बढ़ई के घर में बढ़ई की देखभाल में बड़े होने लगे जो हमेशा भगवान को इस खजाने को उसे देने के लिये धन्यवाद देता रहता।

कुछ साल गुजर गये कि एक दिन वे दोनों लड़के महल के पास की सड़क पर एक लकड़ी के घोड़े से खेल रहे थे जो उनके बढ़ई पिता ने उनको बना कर दिया था। राजा ने उनको देखा तो उसके मुँह से निकला — “क्या ही अच्छा होता अगर ये दोनों मेरे बेटे होते तो।”

उसने उन दोनों को अपने पास बुलाया अअ‍ैर उनसे पूछा — “क्या तुम मेरे साथ महल में रहोगे और मेरा काम करोगे?”

दोनों ने बेहिचक जवाब दिया — “नहीं। हम लोग तो एक गरीब बढ़ई के बच्चे हैं। हम इतनी ऊँची जगह पर काम कैसे कर सकते हैं।” ऐसा कह कर वे वहाँ से कुछ दूर भाग गये और फिर अपने घोड़े से खेलने लगे। राजा उन्हें फिर भी देखता ही रहा। उसने देखा कि एक लड़के ने एक चम्मच चावल लिया और उसे लकड़ी के घोड़े के मुँह में देता हुआ बोला — “खा ओ लकड़ी के घोड़े खा चाहे तेरी खाने की इच्छा है या नहीं है।”

उसके बाद उसने दूसरे लड़के को देखा कि वह एक प्याले में पानी ले कर उस घोड़े की पूँछ की तरफ आया और उससे बोला — “पी ओ लकड़ी के घोड़े पानी पी चाहे तेरी पीने की इच्छा है या नहीं।”

राजा ने यह सब देखा और सब सुना फिर उनकी बेवकूफी पर आश्चर्य करने लगा। उसने उनको फिर बुलाया — “बच्चों तुम लोग यहाँ फिर से आओ और मुझे बताओ कि यह तुम लोग क्या कर रहे हो। क्या तम्हें पता नहीं कि एक लकड़ी का घोड़ा कैसे कुछ खा पी सकता है।”

लड़के बोले — “हाँ यह बात तो हमें मालूम है।”

फिर उन्होंने कुछ याद करते हुए कहा — “पर जब एक स्त्री पिल्लों को जन्म दे सकती है तो लकड़ी का घोड़ा क्यों नहीं खा पी सकता।”

यह सुन कर राजा को भी इस बेवकूफी की बात का अब अन्दाज हुआ उसने सोचा कि तब उसके दिमाग को क्या हुआ था। ऐसी बेवकूफी की बात पर उसने पहले ही कैसे विश्वास कर लिया। उसने बच्चों को वहाँ से भगा दिया और खुद महल के अन्दर चला गया।

अगली सुबह उसने अपने खास खास वज़ीरों को बुलाया और उनसे इस मामले में सलाह माँगी। सबने यही कहा कि उन्होंने जब यह सुना था तब उनमें से भी किसी को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ था।

राजा ने उनसे फिर पूछा कि वे इस मामले के बारे में क्या सोचते हैं कि क्या हुआ होगा। तो सबने उनसे एक आवाज में कहा कि यकीनन इसमें दोनों बड़ी रानियों का हाथ है उन्होंने छोटी रानी से जल कर यह जाल रचा है।

जब उन्होंने देखा कि छोटी रानी की इतनी देखभाल हो रही है तो वे जल उठीं और उन्होंने यह सब जाल रचा। फिर उन्होंने राजा को सलाह दी कि वह दाई को बुलायें और उसको मौत की सजा का डर दिखा कर उससे पूछें कि सच क्या है और उसके बच्चों का क्या हुआ। राजा ने ऐसा ही किया। दाई ने उन्हें सब बता दिया। बढ़ई के दोनों बच्चों को राजा के पास लाया गया जो अब उसके बच्चे साबित हो चुके थे। तीसरी रानी को भी तुरन्त ही बुला लिया गया और दोनों बड़ी रानियों को देश निकाला दे दिया गया।

इसके बाद सब लोग खुश खुश रहे। राजा और छोटी रानी जो अब राजा की बड़ी रानी हो चुकी थी बहुत दिनों तक जिये। बच्चे भी बड़े हो कर बहुत अच्छे बहादुर और लायक आदमी बने जिन्हें राजा और उसकी जनता बहुत प्यार करती थी।

इस कहानी का तीसरा रूप

एक बार की बात है कि एक बहुत ही बड़ा और शानदार राजा था जिसके चार सौ पत्नियाँ थीं पर कोई बेटा नहीं था। राजा के पास एक तोता था जिसको वह बहुत प्यार करता था।

वह रोज दरबार से जभी भी घर लौटता तभी उसको बुला भेजता था और अगर वह उसके पास नहीं होता था तो दुखी हो जाता था।

एक दिन राजा का एक वजीर तोते के पिंजरे के पास खड़ा हुआ था तो उसने देखा कि उसका पिंजरा कुछ गन्दा है सो उसने एक नौकर को बुलाया और उसको वह पिंजरा साफ करने के लिये दे दिया।

इस बीच उसने सोचा कि तोते की उड़ने की ताकत परखी जाये। उसने एक लम्बा सा धागा तोते के पंजे में बाँधा और उसको उड़ने के लिये छोड़ दिया।

तोता सारा धागा ले कर तुरन्त ही उड़ गया और जब उसने देखा कि अब वह धागे से बँधा होने की वजह से उड़ नहीं पा रहा है तो उसने वह धागा अपनी चोंच से काट दिया और उड़ गया। वह दूर उड़ता चला गया और वजीर उसके पीछे पीछे भागता रहा। बेचारे वजीर ने उसका आखीर तक पीछा करने का और अगर मुमकिन हो सका तो उसको पकड़ने का फैसला किया। अगर वह उसे अपने देश में न पकड़ सका तो दूसरे देश तक जाने का भी इरादा किया क्योंकि उसकी राजा के पास बिना तोते के जाने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी।

तोता बहुत सारे मैदान पार करके उड़ता चला गया। फिर उसने एक चौड़ी सी नदी पार की और एक झाड़ी पर जा कर बैठ गया जो नदी के पास ही उग रही थी। वहाँ उसको एक स्त्री ने पकड़ लिया और उसको अपने घर ले गयी। खुशकिस्मती ने वजीर ने यह देख लिया तो वह भी उसके पीछे पीछे चला गया और जा कर तोते को उससे ले लिया।

तोते को उससे ले कर वह बहुत खुश हुआ। अपनी कृतज्ञता दिखाने के लिये उसने उस स्त्री से कहा कि वह उसकी शादी राजा से करा देगा और उसकी शादी का खर्चा वह खुद करेगा। स्त्री राजी हो गयी।

सो वजीर ने उसको अपना घर ठीक करने के लिये और कुछ कपड़े खरीदने के लिये 30 हजार रुपये दिये और उससे कहा कि वह कुछ महीनों में तैयार हो जाये तब वह उसके पास आयेगा। वजीर जब महल पहुँचा तो उसने यह सब राजा को बताया।

उसने स्त्री की सुन्दरता और होशियारी का इस तरह बखान किया कि राजा का मन उससे शादी करने के लिये करने लगा। जल्दी ही शादी का इन्तजाम हो गया और शादी भी हो गयी।

राजा अपनी नयी पत्नी को बहुत प्यार करता था। उसका प्यार उससे और ज़्यादा बढ़ गया जब उसको पता चला कि उसको बच्चे की आशा हो गयी थी। उसने भगवान से प्रार्थना करनी शुरू कर दी कि भगवान करे उसके बेटा ही हो।

उसने उसकी देखभाल के लिये खास हिदायतें दे रखी थीं और दूसरे तरीकों से भी उसने उसको बहुत इज़्ज़त दी। अब जैसा कि सोचा जा सकता है कि राजा की उसके लिये इतनी देखभाल और इज़्ज़त देख कर दूसरी रानियाँ उससे जलने लगीं। इस जलन की वजह से उन्होंने सोचा कि राजा को नाउम्मीद किया जाये।

बच्चे के जन्म के कुछ दिन पहले ही उन्होंने दाई को बुलवाया और उसको जवाहरात और पैसे दे कर उससे छोटी रानी के जैसे ही बच्चा हो वैसे ही उसका बच्चा बदलने के लिये कहा। उन्होंने कहा कि वह उसको किसी पत्थर से बदल दे।

जब रानी के बच्चा हुआ जो एक बहुत ही सुन्दर लड़का था तो तुरन्त ही दाई ने उसको एक पत्थर के टुकड़े से बदल दिया। बच्चे को उसने एक बक्से में रखा और नदी में बहा दिया और कह दिया कि रानी ने एक पत्थर के टुकड़े को जन्म दिया है।

राजा ने जब इस अजीब से जन्म की कहानी सुनी तो उसका उस रानी के लिये प्यार बुरी तरह से नफरत में बदल गया। उसने उसे शाही अस्तबल में रहने के लिये भेज दिया और उसको जानवरों की तरह जौ खाने के लिये दे दिये।

अगली सुबह एक पवित्र आदमी नदी के किनारे अपनी पूजा कर रहा था कि उसने नदी में एक बक्सा तैरता जाता देखा। उसको यह देखने की उत्सुकता हुई कि उस बक्से में क्या है सो वह वहीं से चिल्लाया — “ओ बक्से अगर तू मेरे किसी काम का है तो मेरे पास आजा नहीं तो तू यहाँ से कहीं दूर चला जा।”

उसके ऐसे बुलाने पर बक्सा उसके पास आ गया। उसने उसे उठाया और घर ले गया। घर जा कर उसे खोला तो उसमें तो एक बहुत प्यारा सा बच्चा था जो पिछले दिन ही पैदा हुआ था। उसने वह बच्चा अपनी पत्नी को दे दिया। वे सब उसको धीरे धीरे बड़ा होते देख कर बहुत खुश होते रहे।

समय बीतता गया। अब वह लड़का नौ साल का हो गया था। एक दिन वह दूसरे बच्चों के साथ महल के आँगन में खेल रहा था तो राजा की रानियों ने उसे देखा। उन्होंने देखा कि उसकी शक्ल तो राजा से काफी मिलती जुलती थी। यह देख कर उनको आश्चर्य हुआ। उनको लगा कि कहीं यह राजा का बेटा तो नहीं है जिसको उन्होंने नदी में फिंकवा दिया था।

उन्होंने दाई को बुलवाया और उसे दिखाया तो उसने उसका सिर देख कर कहा कि हाँ यह तो वही है। उसने उसे उसके सिर पर पड़े एक खास गड्ढे से पहचान लिया था।

राजा की रानियाँ यह सुन कर बहुत परेशान हुईं। उनको लगा कि अगर राजा को इस बात का पता चल गया तो वह उनकी इस नीचता के लिये बहुत कड़ी सजा देंगे। सो उन्होंने दाई से हाथ जोड़ कर विनती की कि वह इस परेशानी का जल्दी से जल्दी कोई हल निकाले। इसके लिये उन्होंने उसे बहुत सारा इनाम देने का वायदा किया।

दाई ने पहले तो यह पता किया कि वह लड़का रहता कहाँ है फिर वह उसके घर गयी और उसकी पत्नी को बताया कि वह उसकी दूर के रिश्ते की ननद थी। इस तरह अब उस स्त्री को आदमी की पत्नी से अपने लिये कोई काम निकालना बहुत मुश्किल नहीं रहा।

इस तरह से वह कई बार उनके घर में जाती रही और एक दिन उस आदमी की पत्नी ने उसको अपने घर रहने के लिये बुला लिया कि वह कुछ दिन उसके पास आ कर रहे। जब वह वहाँ रह रही थी तो वह अक्सर उस लड़के के बारे में बात करती और उसके अच्छे गुणों के बारे में बात करती रहती।

एक दिन उसने उस लड़के की माँ से कहा — “वह सब तो ठीक है पर मुझे यकीन है कि एक चीज़ है जो वह नहीं करेगा। वह फलाँ फलाँ देश नहीं जायेगा जहाँ एक बहुत सुन्दर बागीचा है और उस बागीचे में उसकी दीवार के सहारे सोने की शाखों वाला और मोतियों के फूलों वाला एक चन्दन का पेड़ खड़ा है।

अगर वह वहाँ जाये और उस पेड़ को ले आये तो उसके चरित्र का भी पता चल जायेगा और उसकी किस्मत भी चमक जायेगी।” जब शाम को लड़का खेल कर वापस आया तो उसकी माँ ने उसे वह सब बताया जो उसने दाई से सुना था और उत्सुकतावश उससे वहाँ जा कर वह पेड़ लाने के लिये कहा।

लड़का राजी हो गया और अगले दिन सुबह ही वह अपनी इस खतरनाक यात्रा पर कुछ रोटियाँ अपने कमरबन्द में बाँध कर निकल पड़ा। वह बहुत दूर चलता गया जब तक वह एक नदी के पास नहीं आ पहुँचा। वहाँ वह सुस्ताने के लिये बैठ गया।

कुछ ही देर में एक स्त्री उस नदी में से बाहर निकली और उससे बात करने लगी। बातों बातों में उसने उससे पूछा कि वह कहाँ जा रहा था। लड़के ने उसे सब बता दिया तो उसने उससे प्रार्थना की कि वह वहाँ न जाये क्योंकि उस बागीचे में बहुत सारे देव और जंगली जानवर रहते थे।

पर लड़का तो मानने वाला नहीं था। वह तो वहाँ जाने के पीछे लगा था तो उस स्त्री ने सोचा कि उसको वह अपनी ताकत दे दे जिससे उसकी सहायता हो जायेगी।

वह बोली — “सुनो जब तुमने वहाँ जाने के लिये अपना मन बना ही लिया है तो तुम्हारे लिये यह जानना जरूरी हो जाता है कि तुम वहाँ के बारे में कुछ जान लो।

जब तुम वहाँ पहुँचोगे तो तुम देखोगे कि बागीचे के फाटक के दोनों तरफ दो चीते खड़े हैं जिनकी भूख को तुम्हें भेड़ की एक टाँग से शान्त करना पड़ेगा नहीं तो वे तुम्हारे ऊपर कूद पड़ेंगे और तुम्हें खा जायेंगे।

तुम उनसे डरना नहीं बस भेड़ की एक टाँग उनकी तरफ फेंक देना और उनसे सहायता माँगना। वे तुमको बागीचे के अन्दर जाने देंगे।

जब तुम बागीचे के अन्दर पहुँच जाओगे तो वहाँ तुम्हें बहुत सारे देव मिलेंगे पर तुम उनसे भी डरना नहीं। तुम उनको चाचा कह कर पुकारना और उनसे कहना कि तुम उनसे मिल कर बहुत खुश हो। तुम उनसे भी सहायता माँगना।

वे तुम्हें कुँए के पास ले जायेंगे जिसके चारों तरफ तुम्हें बहुत किस्म के बहुत सारे साँप दिखायी देंगे। तुम उनसे भी नहीं डरना। तुम उनकी तरफ जमीन पर कुछ रोटियाँ और पनीर फेंक देना तो वे तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचायेंगे।

चन्दन का पेड़ वहीं कुँए के पास ही उग रहा है। तुमको उसे वहाँ से लाने में कोई मुश्किल नहीं होगी। जाओ भगवान तुम्हें खुशहाल करे।”

लड़के को लगा कि अब उसका रास्ता बहुत आसान हो गया है। वह खुशी खुशी उस तरफ चल दिया। जैसे ही उसको लगा कि वह अब बागीचे के पास पहुँच रहा है उसने एक भेड़ की एक टाँग काट ली। कुछ रोटियाँ और पनीर भी साथ में ले लिया। जैसा कि नदी से निकली स्त्री ने उससे कहा था वह सब सच निकला।

वह बागीचे के पास पहुँचा तो उसको दो चीते मिले जिनको उसने भेड़ की टाँग खिला कर सन्तुष्ट किया। अन्दर गया तो उसको कई देव मिले जिनको उसने चाचा कह कर सलाम किया। वहाँ से वह कुँए के पास पहुँचा तो उसे बहुत किस्म के बहुत सारे साँप मिले। उनको उसने रोटी और पनीर खिला कर शान्त किया। फिर उसने चन्दन का पेड़ उखाड़ लिया और वापस घर चल दिया।

जब वह बागीचे से बाहर निकला तो एक चीते ने उससे जिद की कि वह उसके ऊपर चढ़ कर अपने घर जाये। वह एक बड़ा अच्छा दृश्य था कि एक लड़का अपने कन्धे पर चन्दन का पेड़ लिये चीते पर सवार हो कर घर आ रहा था।

यह बात सारे शहर में फैल गयी। सो यह बात राजा और रानियों के कानों तक भी पहुँची। सब लोगों ने उसकी बहुत तारीफ की पर राजा की रानियों ने तारीफ के अलावा कुछ और भी किया। वे डर के मारे रोयीं। उनको पूरा यकीन था कि राजा को सच का बहुत जल्दी पता चल जायेगा और तब वे सजा से नहीं बच पायेंगीं।

इस दुख में उन्होंने दाई को फिर से बुला भेजा और उससे उन्हें सहायता करने के लिये कहा। इस प्लान के अनुसार दाई फिर से लड़के के घर गयी और लड़के की यात्रा के बारे में पूछा। माँ ने बड़े गर्व के साथ कहा — “देखो यह है वह चन्दन का पेड़। क्या मेरा बेटा बहादुर नहीं है?”

दाई बोली — “हाँ वह तो है पर अफसोस वह वहाँ से पेड़ को ढकने वाल ढकना तो लाया ही नहीं जो वहीं एक पन्ने के बक्से में कुँए के पास ही रखा है। वह तुम्हारे पास जरूर होना चाहिये। उसके बिना तो यह पेड़ जाड़ों में मर जायेगा। उसको दोबारा वहाँ भेजो और उससे उसे और मँगवा लो।”

दाई को खुश करने के लिये और अपने आपको भी उसकी माँ कहलाने के गर्व के लिये उसने शाम को बच्चे को वहाँ दोबारा जाने और पेड़ के ऊपर ढकने का ढकना लाने के लिये कहा। निडर बच्चा फिर से वहाँ जाने के लिये तैयार हो गया।

वह अपने चीते पर चढ़ा जो तब तक वहीं था वापस नहीं गया था और जल्दी ही उसी नदी के पास पहुँच गया जहाँ वह पहली बार आराम करने के लिये लेटा था। तुरन्त ही नदी में से वह स्त्री फिर निकल कर आयी और उससे पूछा कि वह कहाँ जा रहा था।

उसने उसे बताया कि वह कहाँ जा रहा था तो उसने फिर उसे वहाँ जाने से मना किया कि इस बार यह मामला पहले से बहुत मुश्किल था। यह बक्सा कुँए की दीवार पर रखा था और यहाँ दो शाहमार रहते थे जो बहुत बड़े और भयानक थे। पर लड़का तो मानने वाला था नहीं।

जब स्त्री ने देखा कि लड़का अपने इरादे पर अटल है तो इसने लड़के से कहा कि वह खुद कुँए के पास न जाये बल्कि किसी देव को उस बक्से को उसके लिये लाने के लिये कहे। और अगर वह बक्सा लेने में सफल हो जाये तो वह इसी नदी के रास्ते से वापस जाये और उसे बताता जाये जो कुछ भी उसके साथ वहाँ हुआ था। इसके बाद उसने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि जब वह लौट कर घर जायेगा तो वह भी उसके साथ उसके घर तक जायेगी।

सब लोग कितने खुश थे जब यह लड़का दोबारा मौत के मुँह से बच कर अपने काम में सफल हो कर लौटा। राजा ने उसे बुला कर उसको अपने वजीरों का सरदार बना दिया और उसे दूसरी तरीकों से भी इज़्ज़त दी।

राजा की रानियों ने सोचा कि अब हम क्या करें। अब तो हम यकीनन पता कर लिये जायेंगे और फिर हमारी सजा भी पक्की है। पर वे कर भी क्या सकती थी सिवाय इस भेद के खुलने तक इन्तजार करने का। लड़के को पकड़ने के सारे रास्ते अब उनके लिये बन्द हो गये थे।

पर उनको ज़्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ा। एक दिन नदी की स्त्री की सलाह पर वजीर ने एक बहुत बड़ी दावत का इन्तजाम किया जिसमें उसने राजा को भी बुलाया। राजा ने उसका बुलावा स्वीकार कर लिया और उसके घर आया।

जब वे सब खाना खा रहे थे तो नदी वाली स्त्री ने चिल्ला कर सबको शान्त रहने के लिये कहा। सबकी आँखें उधर उठ गयीं। उसने बोलना शुरू किया — “राजा साहब आप अपने बेटे को देखें। यह उस स्त्री का बेटा है जिसको आपने महल से निकाल कर अपने अस्तबल में रख दिया था और जिसको आप जानवरों की तरह से जौ खाने के लिये देते हैं।

पत्थर पैदा करने वाली कहानी आपकी दूसरी पत्नियों ने गढ़ कर आपको बतायी जो आपकी उस पत्नी से जलती थीं क्योंकि आप उसकी बहुत ज़्यादा देखभाल करते थे।”

राजा के मुँह से निकला — क्या ऐसा है? क्या यह सच है? हाँ मेरा दिल कहता है कि यह सच है। इन सब नीच रानियों को राज्य से बाहर निकाल दो और मेरी रानी को और मेरे बच्चे को मेरे पास वापस ला दो।

इसके बाद मैं किसी और की तरफ देखूँगा भी नहीं। देखो एक सच्ची पत्नी और एक सुन्दर बेटा मेरे लिये आज एक ही दिन में पैदा हो गये हैं। मैं आज बहुत खुश हूँ।”

राजा ने फिर नदी वाली स्त्री को यह सब उसे बताने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद दिया। अपनी पत्नी को अस्तबल से बुला भेजा बेटे को भी बढ़ई के घर से बुलवा लिया। सभी लोग फिर खुशी खुशी रहने लगे।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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