समुद्र खारा क्यों : चीनी लोक-कथा
Why the Sea is Salty : Chinese Folktale
यह हजारों साल पुरानी बात है कि चीन में पूर्वीय समुद्र के किनारे दो भाई रहा करते थे। बड़े भाई का नाम आह बौंग था और वह बहुत ही आलसी था। छोटे भाई का नाम आह डौंग था पर वह बहुत ही मेहनती, दयावान और ज़िन्दगी को आसानी से लेने वाला आदमी था।
आह बौंग तो अपना दिन बिस्तर में लेट कर गुजारता था जब कि आह डौंग अपनी जमीन पर काम करता था और शाम को शाम का खाना बनाने के लिये घर लौट कर आ जाता था।
एक दिन सुबह सवेरे आह डौंग दोपहर के खाने के लिये अपने चावल ले कर पास की एक पहाड़ी पर लकड़ी काटने के लिये गया। जैसे ही वह अपनी कुल्हाड़ी पहली बार एक पेड़ में मारने ही वाला था कि उस पेड़ के पीछे से एक बूढ़ा बौना निकल पड़ा।
आह डौंग ने अपनी कुल्हाड़ी नीचे कर ली और उस बौने की तरफ बढ़ा कि शायद वह उसकी कुछ सहायता कर सके। उस बूढ़े बौने ने आह डौंग का हाथ अपने हाथ में लिया और प्रार्थना भरी निगाहों से उसको देखता हुआ बोला — “मैंने कई दिनों से खाना नहीं खाया है। क्या तुम मुझे थोड़ा सा खाना दोगे?”
आह डौंग के लिये यह बहुत मुश्किल काम था कि वह उस भूखे बूढ़े बौने को खाने के लिये मना कर देता क्योंकि उस बौने को तो देखने से ही लग रहा था कि वह शायद एक महीने से न तो नहाया है और न ही उसने कुछ खाया है।
आह डौंग ने तुरन्त ही अपने बन्दगोभी के पत्ते खोले जिसमें उसके चावल लिपटे थे। उसने उनको दो हिस्सों में बाँटा और उसमें से एक हिस्सा उस बौने को दे दिया। बौने ने तुरन्त ही उन चावलों को अपनी छोटी छोटी उँगलियों में पकड़ लिया और जितनी जल्दी उन्हें खा सकता था खा लिया।
अभी उसने अपना पूरा चावल खत्म भी नहीं किया था और उसके मुँह में भी अभी चावल भरा ही था कि उसने अपनी उँगलियाँ चाटीं और आह डौंग से उसका बचा हुआ चावल और माँगा।
आह डौंग थोड़ा हिचकिचाया क्योंकि यह बचा हुआ चावल उसके दोपहर के खाने के लिये था जो उसको शाम तक काम करने के लिये ठीक रखता पर वह बौना इतना बूढ़ा और दया के लायक था कि वह उसको मना नहीं कर सका और उसने अपना वह बचा हुआ खाना भी उसको दे दिया।
उस बौने ने उसका दिया यह खाना भी उतनी ही जल्दी खा लिया जितना पहले वाला खाना खाया था और खुशी से एक पेड़ के सहारे बैठ गया।
वह बोला — “तुम एक बहुत ही अच्छे आदमी हो। मैं जानता हूँ कि बहुत कम लोग ऐसे होते है जो अपना आखिरी कौर भी किसी अजनबी को खाने के लिये दे देते हैं। अपनी इस दया के बदले में तुम मेरी एक भेंट स्वीकार करो।”
कह कर उस बौने ने एक बहुत ही पुराना पत्थर का बक्सा निकाला और उसका ढक्कन खोला। उस बक्से में से उसने एक बहुत ही ऊबड़ खाबड़ बनी हुई पत्थर की एक चक्की निकाली और आह डौंग को दे कर बोला।
“लो यह लो। यह एक बहुत ही बढ़िया पीसने वाला पत्थर है। बस तुमको इसको केवल पीसने के लिये कहना है और यह तुमको वह हर चीज़ दे देगा जो भी तुम चाहोगे।
और जब तुमको इसको रोकना हो बस तुमको यह कहना है “चक्की चक्की, तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद।” और फिर यह तुरन्त ही अपने आप रुक जायेगी।”
आह डौंग ने उसकी यह इतनी बढ़िया भेंट स्वीकार कर ली और उसको इसके लिये बहुत धन्यवाद दिया। हालाँकि उस चक्की की ताकत को बारे में उसके मन में कुछ शक था फिर भी...।
उसके बाद उस बौने ने बहुत नीचे तक झुक कर आह डौंग का धन्यवाद किया और उसको वहीं छोड़ कर चला गया।
आह डौंग ने वह बक्सा वहीं पास में उगी घास पर रख दिया और अपनी लकड़ी काटने में लग गया। दोपहर तक उसको भूख लग आयी थी सो उसने उस चक्की को जाँचने का निश्चय किया।
उस चक्की को उसने बड़ी सावधानी से अपने हाथ में पकड़ा और जैसे उस बौने ने उसको कहने के लिये बताया था कहा — “चक्की चक्की मुझे थोड़ा चावल दो।”
उसके कहने की देर थी कि वह चक्की हिली और उसने पके हुए चावल के छोटे छोटे ढेर लगाने शुरू कर दिये। डौंग ने उस चक्की को रुकने के लिये कहा पर चक्की ने सुना नहीं और वह चावल के ढेर पर ढेर निकाल कर जमीन पर लगाती रही।
बाद में उसको उस चक्की रोकने का ठीक वाक्य याद आया और वह बोला — “चक्की चक्की तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद।” तब कहीं जा कर वह चक्की रुकी। आह डौंग ने उस चक्की को फिर से बहुत सँभाल कर उसी बक्से में रख दिया।
जितना चावल उस चक्की ने बना कर उसको दिया था उसमें से एक ढेर को छोड़ कर बाकी सब चावल उसने अपने एक तिनकों से बने थैले में रख लिये।
उन चावलों में से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी और ऐसे चावल तो उसने पहले कभी खाये ही नहीं थे। वे बहुत ही बढ़िया उबले हुए थे और उसमें फल, मूँगफली और मिर्च पड़ी हुई थीं। उन चावलों का केवल एक ढेर ही उसको शाम तक के लिये काम करने के लिये ताकत देने के लिये काफी था। शाम को वह चावल, चक्की, कुल्हाड़ी और लकड़ी ले कर घर वापस लौट आया।
जब आह डौंग शाम को घर वापस लौटा तो आह बौंग तभी जागा था और रसोईघर में कुछ खाने के लिये ढूँढ रहा था। जैसे ही आह डौंग घर में घुसा तो उसको उस बढ़िया चावल की खुशबू आयी।
बिना कुछ कहे सुने उसने अपने छोटे भाई से उसका वह तिनकों का थैला छीन लिया जिसमें उसके चक्की से निकले हुए चावल रखे हुए थे और उनको खाने लगा। वह उन चावलों को तब तक खाता रहा जब तक वह उनका दूसरा दाना नहीं खा सका।
जब आह बौंग खाना खा रहा था तो आह डौंग ने उसको उस बौने और उसकी दी हुई चक्की के बारे में बताया। और जब आह डौंग अपने बड़े भाई को चक्की के बारे में बता रहा था तो आह बौंग ने वह चक्की निकाली और उसको ले कर रसोईघर में भागा और उसको शाम का खाना बनाने के लिये कहा।
उस चक्की ने उसका हुक्म मान कर बढ़िया स्वादिष्ट खाने की प्लेटों पर प्लेटें निकालनी शुरू कर दीं। जब आह बौंग उन खाने की प्लेटों से सन्तुष्ट हो गया तो उसने चक्की को रुक जाने के लिये कहा पर उसने उससे नम्रता से नहीं कहा सो वह चक्की खाने की प्लेटों पर प्लेटें निकालती ही रही।
आह बौंग यह देख कर परेशान हो गया तभी उसका भाई रसोईघर में घुसा और बौने का सिखाया हुआ वाक्य बोल कर उस चक्की को खाना की प्लेटों को निकालने से रोका।
सारे खाना खाने के समय आह बौंग अपने भाई को तरकीबें सुझाता रहा कि वे उस चक्की को किस तरह अक्लमन्दी से इस्तेमाल कर सकते थे पर आह डौंग ने जब तक अपना खाना खत्म नहीं कर लिया वह नहीं बोला।
खाना खा कर आह डौंग बोला — “हमको इस चक्की के बारे में सावधानी बर्तने की जरूरत ही क्या है यह तो हमको सभी कुछ देने वाली है।”
आह बौंग बोला — “मुझे मालूम है। पर हम इससे और भी तो पैसा कमा सकते हैं। चलो हम इसको एक गाड़ी भर कर नमक देने के लिये कहते हैं। किसको पता कि नमक बेच बेच कर ही हम लोग चीन के सबसे अमीर आदमी बन जायें।”
आह डौंग बोला — “हम इस बारे में कल सुबह बात करेंगे अब रात हो गयी है चलो चल कर सोते हैं।” और वह रात को सोने के लिये अपने भूसों के गद्दे बिछाने के लिये चला गया।
जब आह डौंग चला गया तब भी आह बौंग उस चक्की से अमीर बनने की तरकीबें सोचता रहा। उसने सोचा कि जब वह अमीर बन जायेगा तो वह अपनी दौलत अपने भाई को बिल्कुल भी नहीं देगा।
आह बौंग ने अपना सामान भी बाँधने की कोशिश नहीं की। बस उसने वह चक्की अपनी बगल में दबायी और महीनों में पहली बार वह घर छोड़ कर निकल पड़ा।
दौड़ा दौड़ा वह बन्दरगाह पर पहुँचा जहाँ एक सौदागर का जहाज़ दक्षिण चीन की तरफ जा रहा था। वह वहाँ से वह एक ऐसी गुप्त और दूर जगह चले जाना चाहता था जहाँ उसका भाई उस तक पहुँच ही न सके। जहाँ वह अपनी सारी उम्र एक अमीर और इज़्ज़तदार आदमी बन कर गुजार सके।
वह उस जहाज़ पर चढ़ गया। जहाज़ का लंगर उठा लिया गया और जहाज़ खुले समुद्र की तरफ चल दिया। आह बौंग ने उस चक्की को जहाज़ के एक कोने में रख दिया और उससे कहा कि वह नमक देना शुरू करे।
उस चक्की ने उसका हुक्म मान कर नमक देना शुरू कर दिया और आह बौंग ने उस नमक को थैलों में भरना शुरू कर दिया। पर आह बौंग के नमक को थैले में भरने की रफ्तार चक्की के नमक बनाने की रफ्तार से बहुत कम थी।
वह चक्की बहुत ही जल्दी जल्दी नमक बना रही थी सो वह नमक पहले आह बौंग के पैरों पर, फिर जहाज़ के फर्श पर, फिर जहाज़ के डैक पर इकठ्ठा होना शुरू हो गया।
यह देख कर आह बौंग को डर लगा कि लोगों को कहीं उसके इस भेद का पता न लग जाये कि इतना सारा नमक कहाँ से आ रहा था सो उसने चक्की को रुकने के लिये कहा पर चक्की तो रुकी नहीं। उसने उसको फिर रुक जाने के लिये कहा पर वह तो फिर भी नहीं रुकी।
वह तो बस नमक निकाले जा रही थी निकाले जा रही थी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। अब नमक इतना सारा हो गया था कि वह चक्की खुद भी उसमें ढक जाने वाली थी।
असल में आह बौंग उसको “धन्यवाद” और “मेहरबानी कर के” जैसे शब्द कहना भूल गया था और चक्की इन शब्दों को सुने बिना तो रुकने वाली थी नहीं।
नमक का ढेर बढ़ता ही जा रहा था। आह बौंग उस चक्की को बार बार रोकने की कोशिश करता रहा पर क्योंकि वह उसको रोकने के असली शब्दों को नहीं कह पा रहा था इसलिये वह चक्की भी रुक नहीं पा रही थी।
नमक का ढेर बढ़ता ही जा रहा था। अब तो उससे वह चक्की भी ढक गयी थी पर फिर भी वह चक्की नमक निकाले जा रही थी।
अब तक जहाज़ चलाने वाले लोगों को भी इस बात का पता चल गया था कि उनके जहाज़ पर नमक बड़ी तेज़ी से बन रहा था सो वे जहाज़ को उससे डूबने से बचाने के लिये उसको समुद्र में फेंकने में लग गये थे।
पर चक्की के नमक बनाने और उनके नमक को समुद्र में फेंकने की रफ्तार का भी कोई मुकाबला नहीं था। चक्की के नमक बनाने की रफ्तार बहुत तेज़ थी।
जहाज़ के लोग घबरा गये। उनमें से कुछ अपनी जान बचाने के लिये समुद्र में कूद गये। बाद में जहाज़ चलाने वालों ने भी यही सोचा और उन्होंने भी वह जहाज़ छोड़ दिया।
अब केवल आह बौंग ही उस जहाज़ पर रह गया था। वह अपनी उस कीमती चीज़ का साथ छोड़ने को तैयार नहीं था। और चक्की अभी भी नमक बनाये जा रही थी।
नमक अब आह बौंग की गर्दन तक पहुँच रहा था। अब किसी भी समय जहाज़ डूब सकता था। बस देखते ही देखते समुद्र की एक ज़ोर की लहर आयी और दस मिनट के अन्दर अन्दर वह पूरा जहाज़ समुद्र में डूब गया।
आह बौंग और वह चक्की भी उस जहाज के साथ साथ समुद्र में डूब गये पर उस चक्की ने नमक बनाना नहीं छोड़ा क्योंकि जब तक उसको कोई रुकने के लिये कहेगा नहीं तब तक वह रुकेगी नहीं। और उसको रुकने के लिये कहता कौन?
वह चक्की आज भी उस पूर्वीय समुद्र के अन्दर पड़ी पड़ी नमक बना रही है और उसको रोकने वाला कोई नहीं है इसीलिये आज सारे समुद्र का पानी खारा है।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)