बादल आसमान में क्यों रहते हैं ? : अमरीकी लोक-कथा

Why Clouds Are in the Sky ? : American Lok-Katha

(Folktale from Native Americans, Hopi Tribe/मूल अमेरिकी, होपी जनजाति की लोककथा)

बहुत दिनों पहले दुनियाँ बनाने वाले ने दुनियाँ और उसमें हर चीज़ बनायी। उसने धरती और आसमान पास पास बनाये और धरती के रहने वालों के लिये आसमान में खाना रख दिया।

लोगों को यह तरीका अच्छा लगता था क्योंकि उनको खाना पाने के लिये काम नहीं करना पड़ता था। जब भी उनको खाने की जरूरत पड़ती वे आसमान की तरफ हाथ बढ़ाते और आसमान में से ही खाना ले लेते।

अपनी उँगली उठाते, हवा में उससे गोला बनाते, फिर उसके अन्दर एक और गोला बनाते और वह डोनट (Donut) बन जाता। बीच में उसे दबाते और खाने का बहाना करते तो उनका पेट भर जाता।

सफेद बादलों के कुछ टुकड़े लेते, उनको छोटे छोटे टुकड़ों में काट लेते। उनको उबाल लेते और वह चावल बन जाता। हवा में एक छोटा गोला बनाते, उसको दो हिस्सों में काटते, हाथ से उनमें छेद करते तो वे छेद कई रंगों के बीजों से भर जाते।

उसका आधा हिस्सा वे खाते तो वह तरबूज बन जाता। बीज तो उसमें से उनको थूकने ही पड़ते थे।

पर उस समय लोगों को खाने का बहाना नहीं बनाना पड़ता था। वे आसमान के खाने से ही डोनट बना लेते थे, उसे खाते थे और उनका पेट भर जाता था।

लोगों को खाने के लिये काम भी नहीं करना पड़ता था। जब वे सुबह उठते तो कम से कम खाने के लिये कोई काम नहीं करते थे, बस हाथ बढ़ा कर आसमान से खाना लेते थे और नाश्ता कर लेते थे।

हवा में गोला बनाते, ज़रा सी धूप उसके अन्दर रखते तो वह स्वादिष्ट अंडा बन जाता। उस बादल को आसमान से उठाते जिसमें धूप की चमकीली नारंगी किरनें निकल रही होतीं, उनको गिलास में निचोड़ते और वह सन्तरे का मीठा रस बन जाता।

आसमान का खाना खाने के लिये उनको केवल अपना दिमाग ही इस्तेमाल करना होता था, बस।

पर खाना क्योंकि मुफ्त मिलता था इसलिये लोग उसको बर्बाद बहुत करते थे। वे जरूरत से ज़्यादा खाना ले लेते और बचा हुआ खाना जमीन पर फेंक देते।

आसमान के खाने के बहुत बड़े बड़े टुकड़े बर्बाद होते और इस तरह से दुनियाँ बनाने वाले की सुन्दर दुनियाँ कूड़े कबाड़ से भरती जा रही थी।

इससे दुनियाँ बनाने वाला नाराज हो गया और उसने लोगों का ध्यान खींचने के लिये सारे आसमान में बिजली की कड़क लुढ़का दी।

वह बोला — “अपनी भूख से ज़्यादा खाना मत लो। अगर तुम मेरा दिया हुआ खाना इसी तरह से बर्बाद करते रहे तो मैं अपना खाना और आसमान दोनों बहुत ऊपर पहुँचा दूँगा जहाँ से फिर तुम खाने को इतनी आसानी से नहीं ले पाओगे।”

कुछ दिनों तक तो लोगों ने सुना और केवल उतना ही खाना लिया जितने की उनको जरूरत थी पर जल्दी ही वे अपनी पुरानी आदतों पर आ गये और खाना फिर से बर्बाद करने लगे।

वे आसमान का एक हिस्सा तोड़ते, उसमें से जितनी उनकी इच्छा होती खाते और जब कोई नहीं देख रहा होता तो उसे फेंक देते। दुनियाँ के लोग तो यह देख नहीं रहे होते थे पर दुनियाँ बनाने वाला तो सब देख रहा था।

कुछ दिनों बाद उसने फिर से सारे आसमान में बिजली की कड़क लुढ़का कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा और बोला
— “यह मेरी तुमको आखिरी चेतावनी है कि तुम आसमान से खाना ले सकते हो पर उतना ही लो जितना खा सको।

खाना खाओ मगर खाना बर्बाद मत करो। अगर तुम खाना जमीन पर गिराओगे तो मैं आसमान और बादल बहुत ऊपर खिसका दूँगा ताकि तुम फिर वहाँ कभी न पहुँच सको। फिर तुमको खाने के लिये काम करना पड़ेगा।”

सबने उसकी बात फिर से सुनी। काफी दिनों तक उन्होंने दुनियाँ बनाने वाले की बात मानी भी। अगर कभी उन्होंने गलती से ज़्यादा खाना आसमान से ले भी लिया तो उसको बाँट कर खाया। उन्होंने आसमान का खाना बर्बाद नहीं किया।

और तब एक दिन एक लापरवाह आदमी ने जरूरत से ज़्यादा खाना ले लिया। कोई नहीं जानता कि वह आदमी कौन था और फिर उसने बचा हुआ खाना जमीन पर फेंक दिया।

दुनियाँ बनाने वाले ने यह देखा और फिर से बिजली की कड़क आसमान में लुढ़कायी और लोगों से बोला — “मैंने तुमसे कहा था कि अगर तुमने खाना बर्बाद किया तो क्या होगा। तुम फिर से आसमान से खाना नहीं खा पाओगे और तुमको खाना लेने के लिये काम करना पड़ेगा।”

बस उसका यह कहना था कि आसमान और बादल जमीन से ऊपर उठने लगे और फिर उसके बाद कोई आदमी उन तक नहीं पहुँच सका।

लोगों को खाने के लिये काम करना शुरू करना पड़ गया। कुछ लोग खाना इकठ्ठा करने वाले बन गये। वे जंगली गिरियाँ, बेर, जड़ें, फल आदि इकठ्ठा करते जो दुनियाँ में उगते थे।

कुछ दूसरे लोगों ने बीज बो कर अन्न उगाना शुरू कर दिया। वे रोटी बनाने के लिये गेंहू उगाते और बहुत सारे तरीके की सब्जियाँ उगाते।

कुछ लोग शिकारी बन गये। वे जंगली जानवरों का शिकार करते जैसे खरगोश, हिरन, चिड़ियें आदि। कुछ ने जानवर पालने शुरू कर दिये जैसे गाय, बकरियाँ, भेड़, मुर्गियाँ आदि और कुछ ने समुद्री जानवर जैसे मछलियाँ केंकड़े आदि पकड़ने शुरू कर दिये।

कुछ मकान बनाने वाले, गाने नाचने वाले बन गये। ये लोग दूसरों के लिये काम करते थे और फिर दूसरों से खाना लेते थे।

और इस तरीके से उन्होंने अपना खाना आसानी से लेने का तरीका उसको बर्बाद कर कर के खो दिया।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)

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