भालू सारे जाड़े क्यों सोता है ? : अमरीकी लोक-कथा
Why Bear Sleeps All Winter ? : American Lok-Katha
(Folktale from Native Americans, Iroquois Tribe/मूल अमेरिकी, इरक्वॉइ जनजाति की लोककथा)
बालों वाली मादा खरगोश एक बहुत ही प्रेमी और बड़े दिल वाली जानवर थी। वह सब जानवरों की सहायता करने में लगी रहती। जब छोटे मेंढक को कोई और जगह खेलने के लिये नहीं मिलती तो वह मादा खरगोश अपनी जमीन में एक गड्ढा खोदती और उसको पानी से भर देती। और इस तरह से वह उस गड्ढे को मेंढक के खेलने की जगह बना देती।
मादा खरगोश ने गिलहरी को अपना घोंसला बनाते हुए देखा तो वह बहुत सारी पत्तियाँ ले आयी और उसके घोंसले के पास ला कर रख दीं ताकि वह गर्म रह सके।
वह जब मोल भाई को अपना घर बनाने के लिये पत्थर हटाते देखती तो वह पत्थर हटाने में उसकी सहायता करती।
सारे जानवर उसका धन्यवाद करते और जब भी उसको किसी सहायता की जरूरत होती तो वे उसकी सहायता के लिये तैयार रहते।
वह बड़े कत्थई भालू की भी सहायता करती। भालू गर्मी भर बैरीज़ खा कर बिता देता जो झाड़ियों पर उगती थीं।
वह शहद की मक्खी के छत्ते से शहद भी खाता था पर अब भालू भूखा था तो उस मादा खरगोश ने भालू को अपनी ओक के पेड़ की गिरियाँ (acorn) जो उसने अपने शाम के खाने के लिये रखी थीं दे दीं।
उसने उसको गाजर और बन्द गोभी भी दी जो उसने अपने खाने के लिये पास के खेत से तोड़ कर ला कर रखी थी। पर बड़े कत्थई भालू ने तो उसको धन्यवाद भी नहीं दिया बल्कि उसने तो यह भी कहा कि उसको और चाहिये।
वह बड़ा कत्थई भालू हर जगह उस मादा खरगोश के पीछे पीछे घूमता रहता। जब भी कभी वह मादा खरगोश जाड़ों के लिये अपना खाना इकठ्ठा करती वह बड़ा कत्थई भालू कहता “और”। और फिर वह उसका सारा खाना खा जाता।
इस तरह वह बड़ा भालू उसके लिये एक बड़ी समस्या बन गया था।
जब उस मादा खरगोश ने लकड़ी के एक खोखले लठ्ठे में जाड़ों के लिये अपना खाना भरा तो वह फिर बोला “और”। और फिर वह खाने के लिये उस लठ्ठे पर चढ़ गया और मादा खरगोश का खाना खा कर सो गया।
सो मादा खरगोश छोटे मेंढक़ गिलहरी और मोल भाई के पास गयी और बोली — “मैं क्या करूँ? मैं बहुत छोटी सी हूँ और बड़ा कत्थई भालू बहुत बड़ा है।
जो खाना मैं अपने लिये जाड़ों के लिये इकठ्ठा करती हूँ वह वह सारा खाना खा जाता है। इस समय वह मेरे घर में मेरे खोखले पेड़ में रह रहा है। उसने मेरा घर भी ले लिया है।”
यह सुन कर छोटे मेंढक़ गिलहरी और मोल भाई तीनों ने मादा खरगोश की सहायता करने का विचार किया।
गिलहरी ने उस खोखले पेड़ के दोनों तरफ सूखी पत्तियाँ लगा कर उसको बन्द कर दिया। छोटे मेंढक ने कीचड़ ला कर उन पत्तियों के ऊपर लपेट दी। और मोल ने उस कीचड़ के ऊपर छोटे छोटे पत्थर ला कर लगा दिये।
फिर वे सब बोले — “अब ओ मादा खरगोश तुम अपने पैरों से दबा दबा कर इन पत्थरों को इस कीचड़ में कस कर घुसा दो।” मादा खरगोश ने फिर यही किया।
जब वे लोग यह सब कर रहे थे वह बड़ा कत्थई भालू उस खोखले पेड़ के अन्दर सोता ही रहा।
जब भालू की आँख खुली तो उसको चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा दिखायी दिया क्योंकि बाहर से कोई रोशनी न आने की वजह से उस खोखले लठ्ठे में अँधेरा ही अँधेरा था तो उसने सोचा कि शायद अभी रात है सो वह फिर से सो गया। वह सोता ही रहा, सोता ही रहा, सोता ही रहा।
मादा खरगोश ने फिर अपने लिये एक नया घर ढूँढ लिया और उसको खाने से भर लिया। फिर जाड़ा आ गया। मादा खरगोश अपने घर में गर्म भी रही और अब उसके पास खाने के लिये भी बहुत कुछ था। उसके दोस्तों को बहुत बहुत धन्यवाद।
जाड़ा बीत गया। वसन्त आ रहा था। लठ्ठे के बाहर चिड़ियों के चहचहाने की आवाज सुन कर आखिर भालू की आँख खुली। तब उसने वे पत्तियाँ सूखी कीचड़ और पत्थर के टुकड़े हटाये और बाहर आया।
वसन्त आ चुका था। वह बोला — “अरे मैं तो सारे जाड़े यहाँ सोता ही रहा। यह तो बड़ा अच्छा रहा। इस तरह से मुझे जाड़े में खाने की परेशानी भी नहीं रहेगी। अब आगे से मैं यही करूँगा।”
अब तो यह बहुत पुरानी बात हो गयी पर मादा खरगोश अभी भी सबकी सहायता करती है. बड़े कत्थई भालू की भी।
पर उसको अब यह भी मालूम है कि उसके पास जाड़े भर के लिये खूब खाना रहेगा क्योंकि अब उसको बड़े कत्थई भालू से अपना खाना नहीं बाँटना क्योंकि भालू अब सारे जाड़े सोते हैं और मादा खरगोश से खाना नहीं माँगते।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)