सफेद राजकुमारी और सात बौने : रूसी लोक-कथा

White Princess and Seven Dwarfs : Russian Folk Tale

एक समय की बात है कि ठंड के दिन थे। आसमान से बर्फ के छोटे छोटे टुकड़े गिर रहे थे।

ऐसे में एक रानी अपने महल में खिड़की के पास बैठी कसीदाकारी कर रही थी। वह खिड़की काले आबनूस की लकड़ी की बनी थी।

अपने काम के बीच बीच में वह कभी कभी बर्फ गिरती भी देख लेती थी कि उसके हाथ में सुई चुभ गयी और उसके हाथ से खून की तीन नन्हीं नन्हीं बूँदें बर्फ पर गिर पड़ीं।

लाल रंग का खून बर्फ पर पड़ा हुआ था और रानी उसको एकटक देखे जा रही थी। एकाएक उसने अपने मन में ख्याल आया
“ओह, अगर मेरे पास बर्फ जैसा सफेद, खून जैसा लाल और इस खिड़की की काली लकड़ी के रंग जैसे काले बालों वाला एक बच्चा होता तो कितना अच्छा होता।”

इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उसने एक बेटी को जन्म दिया जिसके बाल आबनूस की लकड़ी की तरह काले थे, गाल और होठ खून की तरह लाल थे और उसका रंग इतना सफेद था कि सभी उसे सफेद राजकुमारी कहने लगे। राजकुमारी के पैदा होने के बाद रानी चल बसी।

एक साल बाद राजा ने दूसरी शादी कर ली। उसकी दूसरी रानी बहुत सुन्दर थी पर वह बहुत घमंडी और सबसे जलने वाली थी। दुनियाँ में उसकी केवल एक ही इच्छा थी और वह यह कि धरती पर बस वही एक सबसे सुन्दर स्त्री हो।

उसके पास जादू का एक शीशा था। वह जब भी कभी उसमें अपने आपको देखती तो उससे पूछती — “ओ शीशे, बता सबसे सुन्दर कौन है?”

तो वह शीशा जवाब देता — “ओ रानी, तू ही इस धरती पर सबसे सुन्दर है।” इस जवाब को सुन कर रानी झूम उठती थी क्योंकि वह जानती थी कि उसका यह शीशा उससे हमेशा सच बोलता है।

समय पर समय निकलता चला गया और जैसे जैसे वह सफेद राजकुमारी बड़ी होती गयी वह और भी अधिक सुन्दर होती गयी। जब वह सात साल की हो गयी तो वह दिन के उजाले की तरह चमकती हुई थी।

और फिर एक समय ऐसा भी आया जब रानी ने अपने शीशे से पूछा — “ओ शीशे, बता सबसे सुन्दर कौन है?”

तो शीशे ने जवाब दिया — “तेरी जैसी सुन्दरता कहीं नहीं है रानी, पर काले बालों वाली सफेद राजकुमारी तुझसे हजार गुना सुन्दर है।”

इस जवाब को सुन कर रानी घबरायी और जलन से लाल पीली हो गयी। अब वह जब भी सफेद राजकुमारी को देखती तो उसका दिल बैठने लगता।

वह उस भोली भाली लड़की से केवल उसकी सुन्दरता की वजह से ही नफरत करने लग गयी थी। उसका दिन का चैन और रात की नींद दोनों हराम हो गयी थीं। आखिरकार उससे रहा नहीं गया।

एक दिन उसने शाही शिकारी को बुलाया और उसे हुक्म दिया कि इस लड़की को जंगल में ले जा कर मार डालो और उसकी कोई निशानी ला कर मुझे दो जिससे मुझे विश्वास हो जाये कि तुमने उसको मार दिया है।

शिकारी रानी के हुक्म से सफेद राजकुमारी को ले कर जंगल चला। पर वहाँ जब वह उसे मारने लगा तो राजकुमारी डर के मारे रो पड़ी और बोली — “ओ शिकारी, तुम मुझे छोड़ दो, मुझे मत मारो। अगर तुम मुझे छोड़ दोगे तो मैं यहाँ से बहुत दूर चली जाऊँगी और फिर कभी इधर नहीं आऊँगी।”

उसकी यह प्रार्थना सुन कर शिकारी का दिल पसीज गया। उसने कहा — “ठीक है राजकुमारी, मैं तुमको छोड़ देता हूँ। पर तुम तुरन्त ही यहाँ से कहीं दूर भाग जाओ और फिर इधर कभी नहीं आना। भगवान जंगली जानवरों से तुम्हारी रक्षा करें।”

राजकुमारी यह सुन कर चली गयी और शिकारी रानी के लिये राजकुमारी के मारने की निशानी के तौर पर एक जंगली सूअर का दिल निकाल कर ले गया।

उस बेरहम रानी ने उस सूअर के दिल को राजकुमारी का दिल समझ लिया और रसोइये से उसे पकवा कर खूब चटखारे ले ले कर खाया।

नन्हीं राजकुमारी जंगल में चलती रही, चलती रही। उसके चारों ओर पत्तियाँ ही पत्तियाँ थीं और थे पेड़ के तने। वह कुछ नहीं जानती थी कि वह क्या कर रही है और कहाँ जा रही है।

रास्ते में कटीली झाड़ियाँ भी थीं, और टेढ़े मेढ़े पत्थर भी। चलते चलते उसको बहुत से जंगली जानवर भी मिले। वह उनसे डरी भी पर उन्होंने उसको कोई नुकसान नहीं पहुँचाया।

अब वह सात ऊँची ऊँची पहाड़ियों को पार कर शाम को एक छोटी सी झोंपड़ी के पास पहुँची। उस झोंपड़ी का दरवाजा खुला था सो वह उसके अन्दर चली गयी।

पर अन्दर तो कोई भी नहीं था। वह बहुत थकी हुई थी सो उसने आराम करने का विचार किया।

अन्दर जा कर उसने चारों तरफ देखा। वहाँ हर चीज़ बहुत छोटी थी मगर थी बहुत साफ और सुन्दर।

कमरे में एक तरफ एक मेज रखी थी जिस पर सफेद मेजपोश बिछा हुआ था। उस मेज पर सात छोटी तश्तरी, सात छोटे काँटे, सात छोटी चम्मचें और सात छोटे शराब के प्याले रखे थे।

इन सातों तश्तरियों के साथ छोटी छोटी सात कुर्सियाँ भी रखी थीं। कमरे के दूसरी ओर सात छोटे छोटे पलंग बिछे थे जिन पर दूध के समान सफेद चादरें बिछी हुईं थीं।

सफेद राजकुमारी बहुत भूखी और प्यासी थी सो उसने हर तश्तरी से थोड़ी थोड़ी रोटी और सब्जी खाई और हर प्याले से एक एक घूँट शराब का पिया। अब उसे थकान की वजह से नींद आने लगी मगर वह सोये कहाँ?

पहला पलंग उसके लिये बहुत सख्त था और दूसरा बहुत मुलायम। तीसरा बहुत छोटा था और चौथा बहुत तंग। पाँचवाँ बिल्कुल चौरस था और छठा बहुत गद्देदार। मगर सातवाँ पलंग उसके लिये बिल्कुल ठीक था सो वह उसी पलंग पर जा कर सो गयी।

जब सूरज सातवीं पहाड़ी के पीछे छिप गया और अँधेरा फैलने लगा तो उस छोटी झोंपड़ी के मालिक लोग घर लौटे। इस झोंपड़ी के मालिक सात छोटे छोटे बौने थे जो सारा दिन सोने और रत्नों की खोज में पहाड़ खोदते थे।

उन्होंने अपनी अपनी छोटी मोमबत्तियाँ जलायीं और देखा कि वहाँ तो कोई था क्योंकि सभी सामान वैसा ही नहीं था जैसा वे छोड़ कर गये थे।

पहला बौना बोला — “मेरी कुरसी पर कौन बैठा?”
दूसरा बौना बोला — “मेरी तश्तरी में से किसने खाया?”
तीसरा बौना बोला — “मेरी रोटी किसने खायी?”
चौथा बौना बोला — “मेरी सब्जी किसने खायी?”
पाँचवाँ बौना बोला — “और मेरा काँटा किसने इस्तेमाल किया?”
छठा बौना चिल्लाया — “किसने मेरे चाकू से काटा?”
और सातवाँ बौना बोला — “किसने मेरे प्याले में से शराब पी?”

तभी सबकी नजर अपने अपने पलंगों पर पड़ी।

पहले छह बौने एक साथ चिल्लाये — “हमारे पलंगों पर तो कोई सोया था।”

पर सातवाँ बोला — “वह यह है।”

वे लोग अपनी अपनी मोमबत्तियाँ ले आये और उनकी रोशनी में उस सोने वाले को देखते रहे, देखते रहे।

वे अपने छोटे मेहमान को देख कर इतने खुश हुए कि उन्होंने उसको जगाया नहीं बल्कि रात भर उसको वहीं आराम से सोने दिया। सातवें बौने ने सभी के पास बारी बारी से एक एक घंटा सो कर अपनी रात गुजारी।

सुबह सवेरे ही सफेद राजकुमारी जाग गयी। उसने कमरे में चारों ओर सात छोटे बौने देखे तो वह घबरा गयी मगर जल्दी ही उसे लगा कि वे उसके दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त हैं।

वह पलंग पर उठ कर बैठ गयी और उनकी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी। अपना पूरा आराम करने के बाद वह और भी अधिक सुन्दर लगने लगी थी।

उसको बैठे देख कर सातों बौने उसके चारों तरफ खड़े हो गये और बोले — “बेटी, तुम्हारा नाम क्या है?”

“सभी मुझे सफेद राजकुमारी कहते हैं।”

“तुमको हमारे घर का रास्ता कैसे मिला?”

इस सवाल के जवाब में उसने उन बौनों को अपनी पूरी कहानी सुना दी।

सातों बौनों ने उसकी कहानी बड़े ध्यान से सुनी और बोले — “क्या तुम्हें घर में काम करना आता है? क्या तुम हमारे लिये खाना बनाना, सिलाई, बुनाई, धुलाई तथा पलंग ठीक करना आदि काम कर सकती हो?

अगर तुम इस घर को ठीक से साफ सुथरा रख सकती हो तो तुम हमारे साथ रह सकती हो और फिर तुम्हें दुनियाँ में किसी चीज़ की जरूरत नहीं पड़ेगी।”

“हाँ, हाँ, क्यों नहीं, बड़ी खुशी से।” सफेद राजकुमारी ने कहा। सो वह वहाँ रह कर उन सातों बौनों का काम करने लगी।

रोज ही सातों बौने सुबह सातों पहाड़ियों में से एक पहाड़ी पर चले जाते और हीरे जवाहरात तथा सोना निकालते और हर शाम को सूरज डूबने के बाद ही लौटते। जब वे घर वापस आते उस समय उनका खाना मेज पर लगा होता था।

लेकिन हर सुबह वे सफेद राजकुमारी को रानी के बारे में चेतावनी देते और कहते — “हमें तुम्हारी माँ पर विश्वास नहीं है। किसी भी दिन उसको तुम्हारे यहाँ होने का पता चल सकता है इसलिये उससे होशियार रहना और किसी को भी घर के अन्दर नहीं आने देना।”

बौनों का सोचना ठीक था। एक दिन रानी ने खुशी खुशी अपने जादू के शीशे से पूछा — “ओ शीशे, बता दुनियाँ में सबसे सुन्दर कौन है?”

और शीशे ने जवाब दिया — “ओ रानी, तुम बहुत सुन्दर हो पर सबसे सुन्दर वह है जो सात बौनों के साथ उनकी झोंपड़ी में रहती है।”

रानी को बहुत गुस्सा आया क्योंकि उसका ख्याल था कि शिकारी ने उसको मार दिया था पर शिकारी ने तो उसको धोखा दिया और सफेद राजकुमारी अभी भी ज़िन्दा थी।

रानी सोच में पड़ गयी कि अब वह क्या करे। रात दिन सोचने के बाद उसके मन में एक विचार उठा।

उसने अपना चेहरा रंग लिया और एक फेरी वाली का वेश बना लिया। उसने यह सब इतनी खूबी से किया कि उसको कोई नहीं पहचान सका। फिर उसने एक टोकरी में झालर, बेलें, डोरियाँ रखीं और उन सातों बौनों के घर की तरफ चल दी।

सात पहाड़ियाँ पार कर वह उन बौनों के घर के सामने पहुँची और दरवाजा खटखटाते हुए बोली — “सुन्दर सुन्दर डोरियाँ झालरें ले लो।”

सफेद राजकुमारी ने अपनी खिड़की से झाँका और बोली — “इधर आओ, दिखाओ तुम्हारी टोकरी में क्या है?”

“झालरें, बेलें, डोरियाँ, सब तरह की और सब रंगों में।” और यह कह कर उसने चटकीले रंगों वाली झालर का एक फन्दा सा बना लिया।

राजकुमारी ने सोचा — “उँह, ये बौने बेकार में ही रानी से डरते हैं। इस ईमानदार औरत को अन्दर आने देने में कोई नुकसान नहीं है।” सो उसने उस औरत के लिये घर का दरवाजा खोल दिया।

वह औरत घर के अन्दर आ गयी और उसने उस औरत से कुछ सुन्दर बेलें ले लीं।

बेलें बेचने के बाद उस औरत ने कहा — “बेटी, तुम इस ढीली ढाली पोशाक में अच्छी नहीं लग रही हो। यहाँ आओ मेरे पास, मैं यह झालर तुम्हारी पोशाक में लगा दूँ ताकि तुम चुस्त हो जाओ।”

राजकुमारी को उस औरत की इस बात पर कोई शक नहीं हुआ सो वह उस तीखी चटकीली झालर को देखती हुई उस औरत के पास जा पहुँची।

उस औरत ने तुरन्त ही वह फन्दा उस लड़की की कमर में डाल कर इतना कस दिया जिससे उसकी साँस रुक गयी और वह जमीन पर गिर पड़ी।

अब रानी खुशी से बोली — “अहा, अब मैं ही दुनियाँ की सबसे सुन्दर स्त्री होऊँगी।” और यह कह कर अपने घर वापस चली गयी।

यह अच्छी बात थी कि यह सब तब हो रहा था जब सूरज सातवीं चोटी के पीछे छिप रहा था इसलिये बौने जल्दी ही अपना काम खत्म कर के घर आ गये।

जब उन्होंने अपनी प्यारी सी नन्हीं सी राजकुमारी को जमीन पर पड़े देखा तो उन्हें दाल में कुछ काला लगा। राजकुमारी तो न कुछ बोल रही थी न हिल डुल रही थी। उन्होंने उसे उठाया तो देखा कि एक झालर उसके शरीर पर बहुत कस कर बँधी हुई थी।

उन्होंने तुरन्त ही उसके बंधन काट दिये। बंधन कटते ही उसकी साँस वापस आ गयी और उसने आँखें खोल दीं और एक बार फिर सब कुछ ठीक हो गया।

जब बौनों ने सारी कहानी सुनी तो कहा — “वह फेरीवाली नहीं थी राजकुमारी, वह तो दुष्टा रानी थी। इसलिये आगे से होशियार रहना। हम जब घर पर न हों तो दरवाजा किसी के लिये कभी नहीं खोलना।”

जब रानी घर पहुँची तो रानी खुशी खुशी फिर से अपने जादुई शीशे के सामने खड़ी हो कर पूछने लगी — “ओ शीशे, अब बता संसार में सबसे सुन्दर कौन है?”

शीशे ने जवाब दिया — “ओ रानी, तुम बहुत सुन्दर हो पर सबसे सुन्दर वह है जो सात बौनों के साथ झोंपड़ी में रहती है।”

रानी एक बार फिर चिन्ता में पड़ गयी कि अभी तो वह उस राजकुमारी को मार कर आयी है और वह अभी भी ज़िन्दा है। यह कैसे हुआ। वह फिर गुस्से से लाल पीली हो कर कहने लगी — “अबकी बार मैं ऐसी चाल चलूँगी कि वह बचेगी नहीं।”

यह दुष्टा रानी जादूगरनी भी थी सो अबकी बार उसने एक और चाल खेली।

उसने सोने की एक सुन्दर सी कंघी बनायी जो जहर में बुझी हुई थी। उसने फिर एक बुढ़िया का रूप रखा और सातों पहाड़ियाँ पार कर सातों बौनों के घर पहुँची और आवाज लगायी — “सुन्दर सुन्दर चीज़ें ले लो। सुन्दर सुन्दर चीज़ें ले लो।”

राजकुमारी ने फिर अपनी खिड़की से झाँका और बोली —
“आज तुम अपने रास्ते जा सकती हो क्योंकि मुझे दरवाजा खोलने की और किसी को अन्दर घुसाने की इजाज़त बिल्कुल नहीं है।”

बुढ़िया ने कहा — “तुम्हें दरवाजा खोलने की जरूरत नहीं है और मेरा सामान देखने में तुम्हारा कोई नुकसान भी नहीं होगा।” यह कहते हुए उसने अपनी टोकरी से वह जहरीली कंघी निकाल कर उसको दिखायी।

राजकुमारी वह सुन्दर कंघी देख कर उसकी तरफ इतनी आकर्षित हुई कि वह बौनों की दी हुई चेतावनी को भूल गयी और उसने उस बुढ़िया के लिये घर का दरवाजा खोल दिया।

बेचारी राजकुमारी बड़े भोलेपन और विश्वास के साथ ललचाई आँखों से उस कंघी की तरफ देख रही थी। तभी उस बुढ़िया ने वह कंघी उसके बालों में लगा दी।

पर जैसे ही उस कंघी ने उसके सिर की खाल छुई वैसे ही उसमें लगे जहर ने अपना काम शुरू कर दिया और राजकुमारी बेहोश हो कर गिर गयी।

रानी ने उसकी तरफ नफरत से देखा और मन में सोचा “शायद यह तुम्हारे लिये काफी है।” कह कर वह जल्दी जल्दी वहाँ से चली क्योंकि सूरज अब सातवीं चोटी के पीछे छिपने ही वाला था।

कुछ मिनटों बाद ही बौने आये तो उन्होंने सफेद राजकुमारी को फिर से फर्श पर पड़े देखा तो समझ गये कि आज रानी फिर आयी थी और राजकुमारी ने आज फिर उसके लिये घर का दरवाजा खोला था।

जल्दी ही उन्होंने बच्ची के बालों में लगी कंघी ढूँढ ली और उसे निकाल लिया। कंघी के निकलते ही उसने आँखें खोल दीं और वह उठ कर बैठी हो गयी।

राजकुमारी की कहानी सुन कर बौने गम्भीर हो गये और बोले
— “देखा राजकुमारी, वह कोई बुढ़िया नहीं थी वह तो रानी ही थी जो रूप बदल कर यहाँ आयी थी इसलिये अबकी बार तुम होशियार रहना। किसी से कोई चीज़ खरीदना नहीं और किसी भी कीमत पर किसी को अन्दर नहीं आने देना।”

राजकुमारी ने फिर पक्का वायदा किया कि वह बौनों का कहा मानेगी और किसी के लिये भी दरवाजा नहीं खोलेगी।

इसी समय रानी अपने घर पहुँची तो एक बार फिर खुशी खुशी अपने जादुई शीशे के सामने खड़ी हो कर पूछने लगी — “ओ शीशे, बता संसार में सबसे सुन्दर कौन है?”

शीशे ने जवाब दिया — “ओ रानी, तुम बहुत सुन्दर हो पर सबसे सुन्दर वह है जो सात बौनों के साथ उनकी झोंपड़ी में रहती है।”

यह सुन कर रानी की हँसी फिर उड़ गयी और वह गुस्से से दाँत किटकिटाने लगी और बोली — “इस दुनियाँ में मैं ही सबसे सुन्दर हूँ और मैं ही सबसे सुन्दर रहूँगी।”

ऐसा कह कर वह पैर पटकती हुई अपने गुप्त कमरे में पहुँची जहाँ कभी कोई दूसरा आता जाता नहीं था।

वहाँ उसने अपने जादू के असर से एक सेब बनाया जो सफेद और लाल रंग का था। वह देखने में ऐसा था कि उसको देख कर किसी के भी मुँह में पानी आ जाये।

लेकिन अच्छाइयों से वह सेब कोसों दूर था क्योंकि उस सेब की खासियत यह थी कि उसका लाल हिस्सा जहरीला था।

फिर उसने एक किसान की पत्नी का वेश बनाया, उस जहरीले सेब को साधारण सेबों के साथ अपनी टोकरी में रखा और एक बार फिर वह सातों पहाड़ियों को पार कर वह उन सातों बौनों के घर जा पहुँची जहाँ राजकुमारी रहती थी और जा कर पहले की तरह उनकी झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया।

राजकुमारी ने खिड़की से झाँका और बोली — “मुझे न तो किसी को अन्दर बुलाने की इजाज़त है और न ही कोई चीज़ खरीदने की। सातों बौनों ने मुझे मना किया है।”

किसान की पत्नी ने कहा — “कोई बात नहीं बेटी। मुझे अपने सेब बेचने में कोई परेशानी नहीं है वह तो मैं कहीं और भी बेच लूँगी पर यह देखो, यह सुन्दर सेब मैं खास तुम्हारे लिये लायी हूँ और तुम्हें मुफ्त में देने को तैयार हूँ।”

“नही नहीं, मुझे अजनबियों से भी कोई चीज़ लेने की इजाज़त नहीं है।”

“ऐसा लगता है कि तुम डर रही हो। क्या जहर से? देखो, यह मैंने इस सेब को काट दिया और यह कोई नुकसान भी नहीं करेगा। इसका यह सफेद आधा हिस्सा मैं खाती हूँ और यह लाल मीठा हिस्सा तुम खा लो।”

यह सब देख कर राजकुमारी के मुँह में पानी भर आया और वह देर तक इन्तजार न कर सकी। उसने अपना नन्हा हाथ खिड़की से बाहर निकाला और उस सेब का वह लाल हिस्सा उस किसान की पत्नी से ले कर जैसे ही खाया वैसे ही वह फर्श पर गिर पड़ी।

नफरत भरी एक नजर राजकुमारी पर डाल कर रानी ज़ोर से बोली — “बर्फ के समान सफेद, खून के समान लाल और आबनूस की लकड़ी के समान काले बालों वाली लड़की, अब देखती हूँ कि बौने तुझे कैसे बचाते हैं।”

रानी को अब खुशी के मारे घर पहुँचना मुश्किल हो गया। घर पहुँचते ही उसने शीशे से फिर पूछा — “क्यों शीशे, अब बता दुनियाँ में सबसे सुन्दर कौन है?”

और उसकी खुशी का ठिकाना न रहा जब उसने सुना — “ओ रानी, दुनियाँ में तू ही सबसे सुन्दर है।” अब रानी के दिल दिमाग में शान्ति थी।

रानी के जाने के बाद जब वे सातों बौने घर लौटे तो उन्होंने देखा कि घर में कहीं रोशनी नहीं थी। न चिमनी से धुँआ उठ रहा था, न लैम्प जलाये गये थे और न मेज पर खाना था। सफेद राजकुमारी फर्श पर पड़ी थी और उसकी साँस भी नहीं चल रही थी।

उन्होंने सोचा कि हमें इसे जरूर बचाना चाहिये। उन्होंने अपनी अपनी मोमबत्तियाँ जलायीं और कोई भी जहरीली चीज़ ढूंढने की बहुत कोशिश की पर उनको कहीं भी कुछ भी नहीं मिला।

उन्होंने उसकी पोशाक ढीली की, बालों में हाथ फेरा, चेहरा धोया, पर कुछ नहीं हुआ। वह बेचारी बच्ची न हिली, न बोली और ना ही उसने अपनी आँखें खोलीं।

सब बौने दुखी थे। “क्या करें? हम जो कुछ कर सकते थे वह हमने सभी कुछ कर के देख लिया। लगता है राजकुमारी तो अब हमेशा के लिये हमारे हाथ से गयी।”

और फिर सब बौनों ने ज़ोर ज़ोर से रोना शुरू कर दिया। वे लोग पूरे तीन दिन तक रोते रहे और जब वे चुप हुए तब भी राजकुमारी बिना हिले डुले पड़ी हुई थी। लेकिन वह अभी भी ऐसी दिखायी दे रही थी जैसे कि अभी अभी सोयी हो।

बौनों ने आपस में कहा — “यह तो अभी भी उतनी ही सुन्दर दिखायी दे रही है जितनी पहले दिखायी देती थी। पर क्योंकि हम उसे जगा नहीं सके इसलिये हमें इसकी देखभाल ठीक से करनी चाहिये।”

सो उन्होंने उसका शरीर रखने के लिये शीशे का एक बक्सा बनवाया जिस पर लिखा था “सफेद राजकुमारी”।

उस बक्से में उन्होंने राजकुमारी को रखा और उस बक्से को पहाड़ों की उन सातों चोटियों में से एक चोटी पर ले गये जहाँ वे खुदायी करते थे। वहाँ उन्होंने वह बक्सा पेड़ों और फूलों के पास रख दिया।

वहाँ तीन पक्षी भी उसके मरने पर शोक प्रगट करने पर आये
— पहले एक उल्लू आया, फिर एक कौआ आया और फिर एक छोटी फाख्ता आयी।

अब रोज छह बौने ही खुदायी के लिये जाते थे क्योंकि एक बौना बारी बारी से राजकुमारी की देखभाल के लिये वहाँ रहता था। हफ्ते, महीने, साल बीत गये पर राजकुमारी उसी बक्से में लेटी रही। न हिली, न डुली और न उसने आँखें ही खोलीं।

उसका चेहरा पहले की तरह सफेद था। उसके गाल अभी भी लाल थे। जहाँ उसका ताबूत रखा था फूल वहाँ खूब तेज़ी से उग रहे थे, बादल भी खूब उड़ रहे थे और चिड़ियाँ भी वहाँ आ कर खूब गातीं थीं। जंगली जानवर पालतू हो गये थे और वहाँ आश्चर्य से खड़े रह कर उसको घंटों देखते रहते थे।

इन सबके साथ साथ वहाँ एक और जीव भी आया। वह भी उसको आश्चर्य से खड़ा देखता रह गया। पर वह न तो चिड़िया थी, न खरगोश, और न हिरन, बल्कि वह तो एक छोटा राजकुमार था जो उन सात पहाड़ियों पर रास्ता भूल गया था।

उसने जब इस राजकुमारी को देखा तो बस देखता ही रह गया। उसने बौनों से कहा — “आप मुझे यह शीशे का बक्सा घर ले जाने दें और इसके बदले में आप मुझसे जितना सोना चाहें ले लें।”

लेकिन बौनों ने कहा — “हम संसार की दौलत ले कर भी इसे किसी को नहीं दे सकते।”

राजकुमार आँखों में आँसू भर कर बोला — “अगर आप दौलत नहीं लेना चाहते तो न लें पर आप दयावान हैं कम से कम इसी लिये आप इसे मुझे दे दें।

जाने क्यों मेरा मन इसी की तरफ खिंचा जा रहा है। अगर आप मुझे इसे घर ले जाने देंगे तो मैं इसकी अपने खजाने की तरह देखभाल करूँगा।”

यह सुन कर बौनों ने वह बक्सा उसे दे दिया। राजकुमार ने उनको धन्यवाद दिया और अपने नौकरों को बुलाया और उनको उस बक्से को कन्धे पर उठा कर ले जाने के लिये कहा। सो वे उस बक्से को अपने कन्धों पर उठा कर ले चले।

बहुत सावधानी बर्तने के बावजूद एक पहाड़ी पर एक आदमी का पैर फिसल गया। इससे वह बक्सा पूरी तरह हिल गया और राजकुमारी के गले में से उस जहरीले सेब का टुकड़ा बाहर आ गया। और यह लो वह राजकुमारी तो जाग गयी।

सबने मिल कर वह बक्सा खोला। राजकुमारी को अपने आपको वहाँ देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ।

राजकुमार दौड़ा आया और बक्से में से उसे निकाला।

राजकुमार ने फिर उसे सारा हाल बताया कि कैसे वह उसको वहाँ से अपने घर ले कर जा रहा था और उससे प्रार्थना की कि वह उससे शादी कर ले। राजकुमारी ने हाँ कर दी।

उधर रानी को एक शादी में आने का बुलावा मिला। वह अपने सबसे अच्छे कपड़ों में तैयार हुई और जाने से पहले अपने उसी जादुई शीशे के पास अचानक जा कर खड़ी हो गयी और बोली —
“ओ शीशे, बता दुनियाँ में सबसे सुन्दर कौन है?”

शीशे ने कहा — “ओ रानी, तुम सबसे सुन्दर हो पर सफेद राजकुमारी अभी भी ज़िन्दा है और शादी के लिये तैयार है। वही सबसे सुन्दर है।”

रानी ने सुना तो ताड़ गयी कि वह बुलावा राजकुमारी की शादी का ही था। वह फिर गुस्से से लाल पीली हो गयी पर अब वह कुछ नहीं कर सकती थी।

राजकुमार और राजकुमारी की शादी हो गयी और वे दोनों और सातों बौने बहुत समय तक आनन्द से रहे।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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